रीता की सफलता

सफलता और असफलता केवल एक सिक्के के दो पहलू हैं | आपके माता -पिता के लिए आपकी सफलता से कहीं ज्यादा आप अनमोल हो | आखिर रीता को ऐसी क्या बात समझ में आ गयी जिससे  उसके जीवन की सफलता के मायने ही बदल गए | प्रेरक कथा -रीता की सफलता  ये उस ज़माने की बात है जब हाईस्कूल  रिजल्ट ऑनलाइन नहीं निकलते थे | छात्रों  को मात्र एक संभावित तिथि पता होती थी | उस दिन से एक दो दिन पहले से बच्चों के दिल की धड़कने बढ़ जाया करती थीं | बच्चों और उनके घरों में रिजल्ट की प्रतीक्षा  बढ़ जाती |रिजल्ट के F, S और Th बस तीन अक्षर बच्चों की ख़ुशी मात्र को निर्धारित करते | फेल  होने वाले छात्रों का रोल नंबर नहीं चाप होता था | वो बच्चे निराशा में डूब जाते , तब घर वाले तरह -तरह के प्रयास कर उन्हें , ” अरे तो क्या हुआ अगले साल पास हो जाओगे कहकर सँभालने का प्रयास करते | ये वो समय था जब रिजल्ट माता -पिता की प्रेस्टीज का इशु नहीं हुआ करता था | पर बच्चे तो उत्साहित या निराश हुआ ही करते थे |   “निकल गया भाई निकल गया , हाई स्कूल  का रिजल्ट निकल गया ” कहते हुए  जब सड़क  से होकर गुजरता था तो ना जाने  कितनी घरों की साँसे थम जाया करती थीं | बच्चे जिन्होंने हाईस्कूल  का एग्जाम दिया है वो ना रात देखते ना दिन उसी समय सड़क पर दौड़ लगा पड़ते | लडकियाँ जो रात -बिरात घर से नहीं निकल पातीं | भाइयों की चिरौरी में लग जातीं | भाई पहले तो भाव खाते फिर  मान मनव्वल करके निकल पड़ते साइकिल वाले लड़के की खोज में जिसके पास होता उसी समय  प्रकाशित हुए परीक्षाफल वाला अखबार | उसी दौर में एक लड़की थी रीता  | जिसने पूरे साल फर्स्ट डिवीजन  लाने के लिए बहुत मेहनत की थी | सारे इम्तिहान सही जारहे थे  , बस विज्ञान का पर्चा बचा था |  उस दिन हिंदी का पर्चा था |  पर्चा बहुत ही अच्छा हुआ था | घर लौटते हुए वो इम्तिहान खत्म होने के बाद मौसी के घर जा कर , अपने मौसेरे भाई -बहनों के साथ खूब मस्ती की योजनायें बना रही थी |  तभी तवे की  टनटनाहट ने उसका ध्यान खींचा | गोलगप्पे उसकी जुबान में खट्टा चटपटा स्वाद उतर आया | गोलगप्पे की तो वो दीवानी थी |  एक रुपये के पांच गोलगप्पे मिला करते थे उन दिनों और वो  दो तीन रुपये से कम के तो खाती ही नहीं थी | भैया दो रुपये के गोलगप्पे दो कहते हुए उसे ख्याल तक नहीं आया कि माँ ने मना किया है कि इम्तिहान वाले दिन बाहर की चीज मत खाना , तबियत खराब हो गयी तो पछताना पड़ेगा | धडाधड गोलगप्पे खाए और निकल पड़ी घर की ओर | शाम से ही पेट में दर्द होने लगा | उलटी और दस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वो एग्जाम रुका नहीं | जैसे -तैसे एग्जाम देने गयी | पर ठीक से पर्चा लिखा नहीं जा रहा था | जितना कुछ लिख पायी , लिख दिया |फेल होने की पूरी सम्भावना थी | रोते हुए घर लौटी | माँ से  लिपट करतो घिग्घी  ही बंध गयी | रोते हुए बोली , ” माँ मुझे माँ कर देना , मैं पास नहीं हो पाउंगी |” रीता को सबसे ज्यादा दुःख था अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे ना उतर पाने का | माँ बचपन से ही उसे अच्छे नंबर लाने को कहती थीं , और पिताजी ने ट्यूशन , किताबों आदि पर अपनी सीमा से ज्यादा खर्च किया था | और वो … वो उनको क्या दे रही है | माँ ने उसे सीने लगा लिया | अकेली बेटी थी बड़ी मन्नतों बाद हुई थी | उसको यूँ निराश देखकर शब्द ही साथ छोड़ रहे थे | दो महीने बहुत ही निराशा से कटे | माँ कोे बेटी के दुःख का अंदाजा था | वो खुद ही हर रोज उसकी सफलता की दुआएं मांगती , पर रिजल्ट से कुछ दिन पहले माँ ने ये सोच कर उसे मौसी के यहाँ भेज दिया कि अचानक से फेल की खबर पर वहां भाई -बहन उसे संभल लेंगे | उसने तय कर लिया था कि वो रिजल्ट निकलने के अगले दिन ही घर आ जायेगी | तय तिथि पर रिजल्ट निकला | शाम को अपने मौसेरे  भाई के साथ घर आते ही वो माँ से चिपक गयी | माँ … ओ माँ मेरी फर्स्ट डिविजन आई है | लगता है और पेपर में नंबर इतने अच्छे आये कि  विज्ञान का पेपर ख़राब होने के बाद भी फर्स्ट डिविजन बन  गयी | माँ ने भी हुलस कर उसे गले से लगा लिया | रीता ने  अंदर आ कर देखा | खाने की मेज पर तरह -तरह के व्यंजन लगे हुए हैं | जैसे घर में कोई पार्टी हो | उसने डोंगों की प्लेट हटा कर देखा , सारे उसी के पसंद के व्यंजन थे | वो समझ गयी कि पार्टी उसी के लिए हैं | तभी उसने एक डोंगा खोला , उसमें एक परचा रखा हुआ था | जिसमें कुछ लिखा हुआ था | मेरी प्यारी बेटी रीता ,                       मुझे पता था कि तुम जरूर सफल होगी | आखिर तुमने मेहनत जो इतनी की थी | एक पेपर बिगड़ क्या तो भी तुम्हारी सफलता तय थी  | ये तुम्हारे जीवन की पहली सफलता है | इस पहले कदम को अपनी सफलता के भवन की नींव समझो और कदम दर कदम आगे बढ़ो |                                                                                 ढेर सारे प्यार के साथ                                                                                    तुम्हारी … Read more

क्या आप जानते हैं सफलता के इको के बारे में ?

ओमकार मणि त्रिपाठी  ( पूर्व प्रकाशित )  मैं समुद्र के किनारे बैठा हुआ था  | लहरे आ रही हैं जा रही थीं  | बड़ा ही मनोरम दृश्य था  | पास में कुछ बच्चे खेल रहे थे  | एक बच्चे के हाथ से नारियल छूट कर गिर गया  | लहरें उसे दूर ले गयीं  | बच्चा रोने लगा  | तभी लहरे पलट कर आयीं , शायद बच्चे का नायियल वापस करने , वो नारियल वापस कर फिर अपनी राह  लौट गयीं  | माँ बच्चे को गोद में उठा कर बोली , “ देखो तुमने समुद्र को नारियल दिया था तो उसने भी तुम्हें नारियल दिया | रोया न करो , अपनी चीज बांटोगे तो दूसरा भी अपनी चीज देगा |   ऐसे ही एक कहानी मुझे माँ बचपन में अक्सर सुनाया करती थीं | कहानी इस प्रकार है ….                         एक  माँ, अपने नन्हें पुत्र की साथ पर्वत की चढ़ाई कर रही थी, अचानक पुत्र का पैर फिसल गया और वो गिर पड़ा। चोट लगते ही वो जोर से चिल्लाया- आह… ह.ह.ह.ह…..माँ.…।  पुत्र चौंक पड़ा क्योंकि पहाड़ से ठीक वैसी ही आवाज लौटकर आई। अचम्भा से उसने प्रश्न किया- कौन हो तुम? पहाड़ों से फिर से आवाज आई- कौन हो तुम? पुत्र चिल्लाया- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! आवाज आई- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! किसी को सामने न पाते हुए पुत्र गुस्से से चिल्लाया- तुम डरपोंक हो! आवाज लौटी- तुम डरपोंक हो! पुत्र आश्चर्य में पड़ गया, उसने अपनी माँ से पूछा- ये क्या हो रहा है? वो जोर से चिल्लाई- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! पहाड़ों से आवाज लौटी- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! उन्होंने दोबारा चिल्लाया- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। आवाज लौटी- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। बच्चा ने दोबारा वही पुछा- ये क्या हो रहा है? तभी माँ ने उसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते  हुए कहा- बेटा, आम शब्दों में लोग इसे इको कहते हैं लेकिन असल में यही जिंदगी है।  जिंदगी में आपको जो कुछ भी मिलता है, वो आपका ही कहा या फिर किया हुआ होता है।  जिंदगी तो सिर्फ हमारे कार्यों का आईना होती है। यदि हमें अपनी टीम से श्रेष्ठता की उम्मीद रखना है, तो हमें खुद में श्रेष्ठता लाना होगा। यदि हम दूसरों से प्यार की उम्मीद करते हैं, तो हमें दूसरों से दिल खोलकर प्यार करना होगा।  आखिर में, जिंदगी हमें हर वो चीज लौटाती है, जो हमने दिया है।,  ऐसा ही एक उदाहरण और है | वो उदाहरण एक खेल का है | उस खेल का नाम है बुमरेग | ये एक ऐसा खेल है जिसमें हम बुमेरैंग को जितनी तेजी से फेंकते हैं | यह उतनी ही तेजी से हमारे पास पलट कर आता है | अगर विज्ञानं की भाषा में कहें तो यह न्यूटन का थर्ड लॉ फॉलो करती है वही क्रिया प्रतिक्रिया का | क्या यही हमारी जिंदगी भी नहीं है ?    गौर से सोंचिये ये तीनों उदाहरण यही बताते हैं की हम जो भी शब्द  दूसरों के लिए प्रयोग  करते हैं, वो एकदिन घूमकर हमारे पास आता ही है। हम जो भी इस दुनिया को देते हैं, एक दिन वह कई गुना होकर हमारे पास लौट आता है।        समुद्र हो , पहाड़ हो , नदी हो या प्रकृति का कोई अन्य हिस्सा , सब के सब मौन होते हुए भी हमें बहुत कुछ समझाते हैं |  इसी को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही प्रकृति से समझ कर एक सूत्र वाक्य में पिरो दिया था “ जैसी करनी वैसी भरनी “ |  जो दोगे वही मिलेगा |  जीवन का सबसे बड़ा सिद्धांत यही है, कि आप जो बोयेंगे, एकदिन वही आपको काटना पड़ेगा।  जो भी चीजें आप अपने लिए सबसे ज्यादा चाहते हैं, उसे सबसे ज्यादा बाँटिये। यदि आप दूसरों से सम्मान पाना चाहते हैं, तो आपको दिल खोलकर दूसरों का सम्मान करना होगा।  लेकिन यदि आप दूसरों का तिरस्कार करेंगे तो बदले में आपको भी वही मिलेगा।यदि आप चाहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में दूसरे आपका साथ दें, तो आप उनकी मुश्किलों में उनके साथ खड़े रहिये। यदि आप प्रशंसा करेंगे, तो वही आपको मिलेगा।  यही तो जीने का नियम है,  हमारे पूर्वज धर्मिक संस्कार के रूप में हमें इसे मानना सिखा भी गए हैं | तभी तो हम  अन्न  प्राप्ति कि इच्छा  के लिए अन्न  दान , धन प्राप्ति कि इच्छा   के लिए अर्थ दान करते हैं |   पर जब बात सफलता कि आती है तो हम यह कहने से नहीं  चूकते कि आज कि अआज़ की गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में किसी कि नीचे गिराए बिना आप ऊपर चढ़ नहीं सकते | युद्ध , प्रेम और सफलता के मार्ग में सब जायज है का नारा लागाते हुए हम दूसरे कि सफलता को देख कर मन में यह भाव पाल लेते हैं की अगर वह सफल है तो मैं सफल नहीं हो सकता | यही से इर्ष्या कि भावना पनपने लगती है जो अनेकों नकारात्मक विचारों का मूल है |                           डेल  कार्नेगी के अनुसार,  “जीतने का सबसे सरल रास्ता है कि आप दूसरों को उनकी जीत में मदद करें।यदि आप जीतना चाहते हैं, तो दूसरों की सफलता के हितैषी बनिए। जो आप देंगे वो कई गुना लौटकर आपके पास आएगा।”                   यह अलिखित नियम है कि अगर हम किसी कि  सफलता के बारे में नकारात्मक विचार रखेंगे तो सदा असफल ही होएंगे | इसका कारण यह भी है कि जब आप किसी सफल व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं तो आप का ध्यान  अपने काम में नहीं लगता बल्कि दूसरे को नीचा दिखाने  में लगा रहता है | सफलता तभी संभव है जब हम किसी काम में बिना आगा पीछा सोचे पूरी तरह से डूब जाए | ऐसा वही लोग कर पाते हैं जिन्हें अपने काम से प्यार होता है | इस प्यार का प्रतिशत जितना ज्यादा होता है व्यक्ति उतना ही सफल होता है | क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं हर हाल में उसकी  भलाई देखते हैं |  मान लीजिये जब आप चित्रकारी या लेखन से वास्तव में प्यार करतें है तो आप किसी दूसरे का चित्र या लेख देख पढ़ कर प्रसन्न होने कि वाह कितना अच्छा  काम किया जा रहा है इस क्षेत्र में | आप उसकी बारीकियों पर गौर कर उसे सराहेंगे | यह सराहना आप को और अच्छा काम करने कि प्रेरणा देगी |आप अपने क्षेत्र में … Read more

खिलो बच्चो , की मेरे सपनों की कैद से आज़ाद हो तुम्हारे सपने

ये जिंदगी हमेशा नहीं रहने वाली है | वो क्षण जो अभी आपके हाथ में सितारे की तरह चमक रहा है ,ओस की बूँद की तरह पिघल जाने वाला है | इसलिए वही काम, वही चुने जिसे आप सच में प्यार करते हों – नीना सिमोन                         जीवनसाथी  साथ केवल वो व्यक्ति ही नहीं होता जिसके साथ हम सात फेरे ले कर जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाते हैं | जीवन साथी वो काम भी होता है जिससे न सिर्फ हमारा घर चलता है बल्कि उसे करने में हमें आनंद भी आता हियो और संतोष भी मिलता है | परन्तु ऐसा हमेशा नहीं हो पाता क्योंकि माँ – पिता ने अपने बच्चों के लिए सपने देखे होते हैं और वो उसे उसी दिशा में मोड़ना चाहते हैं | कई बार ये दवाब इतना ज्यादा होता है की नन्ही आँखें अपने सपने आँखों में ही कैद करे रहती हैं उन्हें बाहर निकालने की हिम्मत भी नहीं कर पाती हैं | ये सपने उनकी आँखों में पानी बन  तैरते रहते हैं और डबडबायी आँखों से उनका जीवन पथ धुंधला करते रहते हैं | क्या ये जरूरी नहीं की पेरेंट्स अपने बच्चों का दर्द समझे और उन्हें उनके सपने पूरा करने में सहयोग दें | अगर ऐसा हो जाता है तो दोनों का ही जीवन बहुत खुशनुमा बहुत आसान हो जाता है | ऐसी ही हिम्मत प्रिया ने दिखाई | जिसने अपनी बेटी को वो पथ चुनने दिया जो उनके लिए बिलकुल अनजान था | उससे भी बड़ी बात ये थी की प्रिया के सपनों के पथ पर कुछ साल चल चुकी थी | अब  अपने सपने पाने के लिए उसे उतना ही वापस लौटना था | ये फैसला दोनों के लिए आसान नहीं था पर उसको लेते ही दोनों की जिंदगी आसान बन गयी | प्रिया अपनी कहानी कुछ इस तरह से सुनाती हैं …. जब मोटिवेशन , डीमोटिवेट करे कई सालपहले की बात है जब प्रिया के भाई की शादी थी | उसने बड़े मन से तैयारी की थी | एक – एक कपडा मैचिंग ज्वेलरी खरीदने के लिए उसने घंटों कड़ी धुप भरे दिन बाज़ार में बिताये थे | पर सबसे ज्यादा उत्साहित थी वो उस लहंगे के लिए जो उसने अपनी ६ साल की बेटी पिंकी  के लिए खरीदा था | मेजेंटा कलर का | जिसमें उतनी ही करीने हुआ जरी का काम व् टाँके गए मोती , मानिक | उसी से मैचिंग चूड़ियाँ , हेयर क्लिप व् गले व् कान के जेवर यहाँ तक की मैचिंग सैंडिल भी खरीद कर लायी थी | वो चाहती थी की मामा की शादी में उसकी परी सबसे अलग लगे | जिसने भी वो लहंगा देखा | तारीफों के पुल बाँध देता तो  प्रिया की ख़ुशी कई गुना बढ़ जाती | शादी का दिन भी आया | निक्ररौसी से एक घंटा पहले पिंकी लहंगा पहनते कर तैयार हो गयी | लहंगा पहनते ही पिंकी ने शिकायत की माँ ये तो बहुत भारी है , चुभ रहा है | प्रिया  ने उसकी बात काटते हुए कहा ,” चुप पगली कितनी प्यारी लग रही है , नज़र न लग जाए | उपस्तिथित सभी रिश्तेदार भी कहने लगे ,” वाह पिंकी तुम तो परी लग रही हो |एक क्षण के लिए तो पिंकी खुश हुई | फिर अगले ही क्षण बोलने लगी , माँ लहंगा बहुत चुभ रहा है भारी है | प्रिया  फिर पिंकी को समझा कर दूसरे कामों में लग गयी | पर पिंकी की शिकायत बदस्तूर जारी रही | बरात प्रस्थान के समय तक तो उसने रोना शुरू कर दिया | वो प्रिया  का हाथ पकड़ कर बोली माँ मैं ठीक से चल नहीं पा रही हूँ मैं शादी क्या एन्जॉय करुँगी | प्रिया  को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे | अगर पिंकी लहंगा नहीं पहनेगी तो इतने सारे पैसे बर्बाद हो जायेंगे , जो उसने लहंगा खरीदने के लिए खर्च किये थे | फिर वो इस अवसर पर पहनने के लिए कोई दूसरा कपडा भी तो नहीं लायी है | नाक कट जायेगी | पर उससे पिंकी के आँसूं भी तो नहीं देखे जा रहे थे | अंतत : उसने निर्णय  लिया और पिंकी का लहंगा बदलवा कर साधारण सी फ्रॉक पहना दी | पिंकी माँ से चिपक गयी | प्रिया  भी मुस्कुरा कर बोली ,”जा पिंकी अपनी आज़ादी एन्जॉय कर “ फिर तो पूरी शादी में पिंकी छाई  रही | हर बात में बढ़ – चढ़ कर हिस्सा लिया | क्या डांस किया था उसने | सब उसी की तारीफ़ करते रहे |  नाउम्मीद करती उम्मीदें                                   बरसों बाद आज माँ बेटी उसी मोड़ पर खड़े थे | पिंकी मेडिकल सेकंड ईयर की स्टूडेंट है |उसको डॉक्टर बनाने का सपना प्रिया  का ही था | पिंकी का मन तो रंगमंच में लगता था , फिर भी उसने माँ का मन रखने के लिए जम कर पढाई की और इंट्रेंस क्लीयर किया | कितनी वह वाही हुई थी प्रिया की | कितनी भाग्यशाली है | कितना त्याग किया होगा तभी बेटी एंट्रेंस क्लीयर कर पायी | प्रिया गर्व से फूली न समाती | परन्तु पिंकी ने इधर मेडिकल कॉलेज जाना शुरू किया उधर उसका रंगमंच से प्रेम उसे वापस बुलाने लगा | उसने माँ से  कहा भी पर प्रिया ने उसे समझा – बुझा कर वापस पढाई में लगा दिया | पिंकी थोड़े दिन तो शांत  रहती | फिर वापस उसका मन रंगमंच की तरफ दौड़ता | करते – करते दो साल पार हो गए | पिंकी थर्ड इयर में आ गयी | अब उसका मन पढ़ाई में बिलकुल नहीं लगने लगा | वो अवसाद में रहने लगी | प्रिया को भय बैठ गया | अगर इसने पढ़ाई छोड़ दी तो समाज को क्या मुँह दिखायेगी | सब चक – चक   करेंगे | फिर दो साल में पढाई में इतने पैसे भी तो लगे हैं उनका क्या होगा | वो तो पूरे के पूरे बर्बाद हो जायेंगे | पर बेटी का अवसाद से भरा चेहरा व् गिरती सेहत भी उससे नहीं देखी  जा रही थी | अंतत : उसने निर्णय लिया और एक कागज़ पर … Read more

जब मोटिवेशन ,डीमोटिवेट करें – मुझे डिफेंसिव पेसिमिज्म से सफलता मिली

जो आशावादी  था उसने हवाई जहाज बनाया , जो डिफेंसिव पेसिमिस्ट था उसने पैराशूट बनाया | दोनों ही सफल हैं व् समाज के लिए जरूरी भी |                      मैं मालविका वर्मा , मेडिकल फोर्थ इयर स्टूडेंट हूँ | आज जब मैं सफलता के नए अध्याय  लिख रही हूँ तो पीछे पलट कर देखने पर मुझे अपने वो तीन ड्राप ईयर’स और उनमें की गयी गलतियां याद आती हैं | जब मैं लगातार असफल हो रही थी | मेरा सपना डॉक्टर बनने का था और मैं  किसी भी प्रकार उसका इंट्रेंस क्लीयर करना चाहती थी | मैंने भी ठान ली थी चाहें कुछ भी हो जाए मुझे ये इंट्रेंस एग्जाम क्लीयर करना ही है | फिर भी मैं असफल हो रही थी | दरसल मेरी गलती मेहनत में नहीं मेरी स्ट्रेटजी में थी | जो की अपने मूल स्वाभाव को न समझ पाने के कारण हुई |                             शुरू से ही मेरे घर में पढाई का बहुत अच्छा  वातावरण था  | मेरे पिता आई आई एम अहमदाबाद से गोल्ड मेडीलिस्ट व् माँ एक नामी स्कूल में प्रिंसिपल है | बचपन से ही मेरे ऊपर दवाब था |दो जीनियस लोगों की बेटी को अच्छा तो करना ही चाहिए | आखिर कार जींस जो मिले हैं |  और था भी सही | शुरू से ही मेरे माता – पिता ने मेरी पढाई का बहुत ध्यान रखा | माँ मुझे घर आने के बाद  नियम से पढ़ाई कराती  और पिताजी न सिर्फ मुझे एक से बढ़कर एक बुक्स मुहैया कराते बल्कि यूँ खेलते – खेलते न जाने कितनी जानका रियाँ दे देते | इस तरह से कह सकते हैं की बचपन से ही मेरा आई क्यू बहुत स्ट्रांग हो गया | साथ ही मेरे सपने भी | मैं भी अपने माता – पिता के पदचिन्हों पर चलकर कुछ बेहतर करना चाहती थी | जिससे वो मुझ पर फक्र कर सकें | मेरे ऊपर दवाब भी था और मेरे अनवरत प्रयास भी जारी थे | मैं खेल के समय में कटौती करके पढ़ाई करती मुझे मेडिकल एंट्रेंस जो क्लीयर करना था | माँ और पिता भी मुझे असफल जीवन से डराते भी थे | या यूँ कहिये की मुझे असफलता बहुत भयभीत करती |इसलिए मैं असफल; होने का हर कारण सोंच कर पहले से ही उस द्वार को बंद कर देती | मैं लगातार सफल होती जा रही थी | इस कारण मुझ पर दवाब बढ़ रहा था | १२ th तक सब अच्छा चला | पर मेडिकल में मैं कुछ नंबर  से रह गयी | मैंने ड्राप करके दुबारा एग्जाम देने का मन बनाया | जब मैंने अपने माता – पिता को माफ़ किया                   इसी समय बहुत से लोगों ने मुझे राय देना शुरू किया | तुम पॉजिटिव सोंचा करो | पॉजिटिव सोंचने से रिजल्ट अच्छे आते हैं | मुझे बात सही लगी | मैं बाज़ार से ढेर सारी  किताबें पॉजिटिव थिंकिंग की ले आई | अच्छा सोंचो , ऊँचे सपने देखो , अच्छे एंड रिजल्ट की कल्पना करो , अपने आत्मविश्वास को बढाओ … और छू लो आसमान | मुझे सब कुछ बहुत आसान लगा | मैं खुद को डॉक्टर के रूपमें देखती , मैं कल्पना करती की मैं सारे exam बहुत अच्छे दे रही हूँ , मैं आत्म विश्वास से भरी हुई हूँ | पर खुश होने के  स्थान पर रिलैक्स होने से  मेरा तनाव बढ़ जाता |यहाँ मैं बता दूं मैंने सपनों और कल्पनाओं को जीया तो जरूर पर मेहनत में कोई कमी नहीं की | फिर भी रिजल्ट सही नहीं  आया | यहाँ तक की इस बार मेरे पिछली  बार से भी कम नंबर आये | मेरा आत्मविश्वास डगमया पर मैंने फिर प्रयास करने की ठानी | अब की मैंने मेहनत और बढा दी , साथ ही साथ खुद को सफल रूपमें देखने व् सोंचने की सीमा भी | अब मैं ज्यादातर यही सोंचती की मुझे सफलता मिल गयी है , मैं डॉक्टर बन गयी हूँ | पर अफ़सोस मेरे नंबर और कम आये | अब मैं सफलता से थोडा और दूर थी | अब मैंने अपने कारणों की एनालिसिस करना शुरू किया | मेरी मेहनत में तो कोई कमी नहीं थी | फिर क्यों मैं असफल हुई | टर्मीनली इल – कुछ पल जो मिले हैं उस पार जाने वाले के साथ           यही वो समय था | जब मेरे पिता अपना जॉब स्विच ओवर कर रहे थे | उनका इंटरव्यू था | जैसा की मैंने पहले ही लिखा था की वो  जीनियस हैं | पर इंटरव्यू से पहले वो बहुत नर्वस थे | वो तमाम फ़ालतू कल्पनाएँ कर रहे थे | मसलन अगर घबराहट में उनके हाथ से कॉफ़ी का कप गिर गया , या वो कुर्सी पर ठीक से बैठ नहीं पाए , या गैस की वजह से उन्हें तेज डकार आ गयी | उनकी कल्पनाओं को सुन – सुन कर मुझे हंसी आ रही थी | मुझे लगा इतने कमजोर आत्मविश्वास में वो इंटरव्यू देंगे तो क्या ख़ाक सफल होंगे | पर शाम को जब वो मिठाई का डिब्बा क्ले कर आये तो मेरे आश्चर्य की सीमा न रही | उन्होंने इंटरव्यू क्रैक कर लिया था | उनकी सैलिरी १० % बढ़ गयी थी | मैंने याद किया की अपने हर इंटरव्यू से पहले पिताजी ऐसे अजीबो गरीब कल्पनाएँ करते हैं | फिर भी वो इंटरव्यू क्रैक करते हैं | फिर खुद ही सोंचा ,” शायद वो जीनियस हैं इसलिए | “ तभी ध्यान आया की पिताजी अपने जीवन की हर समस्या में बुरे से बुरे की कल्पना करते हैं और फिर उस समस्या से बाहर निकल जाते हैं | फिर मैंने  अपने ऊपर ध्यान दिया | मैं भी तो पहले असफल हो जाउंगी का भय पाले रहती थी तब तक लगातार सफल हो रही थी | जब अपने को सफल होने की कल्पना करने लगी तो असफल होने लगी | ओह ! मेरे हाथ में सूत्र लग गया | मैंने एक बार फिर ड्राप करने का निर्णय लिया | पहले मेरे माता – पिता ने मेरा विरोध किया फिर मान गए | इस बार मैंने कोई गलती नहीं की | रिजल्ट मेरी इच्छा के अनुसार आया | मेरा चयन हो गया था | … Read more