लिव इन को आधार बना सच्चे संबंधों की पड़ताल करता ” अँधेरे का मध्य बिंदु “
” लिव इन ” हमारे भारतीय समाज के लिए एक नयी अवधारणा है | हालांकि बड़े शहरों में युवा वर्ग इसे तेजी से अपना रहा है | छोटे शहरों और कस्बों में ये अभी भी वर्जित विषय है | ऐसे विषय पर उपन्यास लिखने से पहले ही ‘वंदना गुप्ता ‘ डिस्क्लेमर जारी करते हुए कहती हैं कि लिव इन संबंधों की घोर विरोधी होते हुए भी न जाने किस प्रेरणा से उन्होंने इस विषय को अपने उपन्यास के लिए चुना | कहीं न कहीं एक आम वैवाहिक जीवन में किस चीज की कमी खटकती है क्या लिव इन उससे मुक्ति का द्वार नज़र आता है ? जब मैंने उपन्यास पढना शुरू किया तो मुझे भी पहले गूगल की शरण में जाना पड़ा था ताकि मैं लिव इन के बारे में जान सकूँ | जान सकूँ कि अनैतिक संबंधों और लिव इन में फर्क क्या है ? साथ रहते हुए भी ये अलग -अलग अस्तित्व कैसे रह सकता है ये समझना जरूरी था | हम सब वैवाहिक संस्था वाले इस बुरी तरह से जॉइंट हो जाते हैं …जॉइंट घर , जॉइंट बैंक अकाउंट , सारे पेपर्स जॉइंट और यहाँ तक की दोष भी जॉइंट पति की गलती का सारा श्रेय पत्नी को जाता है कि उसी ने सिखाया होगा और पत्नी कुछ गलत करे तो पति का कोर्ट मार्शल ऐसे आदमी के साथ रहते हुए बिटिया बदल तो जायेगी | ऐसे में क्या सह अस्तित्व और अलग अस्तित्व बनाये रखना संभव है | क्या ये पति -पत्नी के बीच की स्पेस की अवधारणा का बड़ा रूप है | इन सारे सवालों के उत्तर उपन्यास के साथ आगे बढ़ते हुए मिलते जाते हैं | लिव इन को माध्यम बना सच्चे संबंधों की पड़ताल करता ” अँधेरे का मध्य बिंदु “ शायद ये सारे प्रश्न वंदना जी के मन में भी घुमड़ रहे होंगे तभी वो रवि और शीना के माध्यम से इन सारे प्रश्नों को ले कर आगे बढ़ती हैं और एक -एक कर सबका समाधान प्रस्तुत करती हैं | इसके लिए उन्होंने कई तर्क रखे हैं | कई ऐसे विवाहों की चर्चा की है जहाँ लोग वैवाहिक बंधन में बंधे अजनबियों की तरह रह रहे हैं , एक दूसरे से बहुत कुछ छिपा रहे हैं या भयानक घुटन झेल रहे हैं | उन्होंने ‘मैराइटल रेप की समस्या को भी उठाया है | इन सब बिन्दुओं पर लिव इन एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह लगता है जहाँ एक दूसरे के साथ खुल कर जिया जा सकता है | भारतीय संस्कृति के नाम पर ‘ लिव इन ‘ शब्द से ही नाक भौ सिकोड़ते लोगों के लिए वंदना जी आदिवासी सभ्यता से कई उदाहरण लायी हैं , जो ये सिद्ध करते हैं कि लिव इन हमारे समाज का एक हिस्सा रहे हैं | वो समाज दो व्यस्क लोगों के बीच जीवन भर साथ रहने के वादे से पहले उन्हें एक -दूसरे को जानने समझने का ज्यादा अवसर देता था | ये प्रेम कथा है उन लोगों की जिन्हें आपसी विश्वास और प्यार के साथ रहने के लिए रिश्ते के किसी नाम की जरूरत नहीं महसूस होती | रवि और शीना जो अलग -अलग धर्म के हैं इसी आधार पर रिश्ते की शुरुआत करते हैं | अक्सर ये माना जाता है की लिव इन का कारण उन्मुक्त देह सम्बन्ध हैं पर रवि और शीना इस बात का खंडन करते हैं वो साथ रहते हुए भी दैहिक रिश्तों की शुरुआत करने में कोई हड़बड़ी नहीं दिखाते | एक दूसरे की भावनाओं को पूरा आदर देते हैं | एक दूसरे की निजता का सम्मान करते हैं |उनके दो बच्चे होते हैं जो सामान्य वैवाहिक जोड़ों के बच्चों की तरह ही पलते हैं | जैसे -जैसे कहानी अंत की और बढती है वो देह के बन्धनों को तोड़ कर विशुद्ध प्रेम की और बढती जाती है | अंत इतना मार्मिक है जो पाठक को द्रवित कर देता है | क्या हम सब ऐसे ही प्रेमपूर्ण रिश्ते नहीं चाहते हैं ? वंदना गुप्ता जी का उद्देश्य प्रेम के इस विशुद्ध रूप को सामने लाना है | दो आत्माएं जब एक ही लय -ताल पर थिरक रहीं हों तो क्या फर्क पड़ता है कि उन्होंने उसे कोई नाम दिया है या नहीं | सच्चा प्रेम किसी बंधन का, किसी पहचान का मोहताज़ नहीं है | स्त्री संघर्षों का जीवंत दस्तावेज़: “फरिश्ते निकले कुछ पाठक भर्मित हो सकते हैं पर ‘अँधेरे का मध्य बिंदु ‘में वंदना जी का उद्देश्य लिव इन संबंधों को वैवाहिक संबंधों से बेहतर सिद्ध करना नहीं हैं | वो बस ये कहना चाहती हैं कि सही अर्थों में रिश्ते वही टिकते हैं जिनके बीच में प्रेम और विश्वास हो | भले ही उस रिश्ते को विवाह का नाम मिला हो या न मिला हो | सहस्तित्व शब्द के अन्दर किसी एक का अस्तित्व बुरी तरह कुचला न जाए | दो लोग एक छत के नीचे एक दूसरे से बिना बात करते हुए सामाजिक मर्यादाओं के चलते विवाह संस्था के नाम पर एक घुटन भरा जीवन जीने को विवश न हों | वही अगर कोई इस प्रकार के बंधन के बिना जीवन जीना चाहता है तो समाज को उसके निर्णय का स्वागत करते हुए उसे अछूत घोषित नहीं कर देना चाहिए | उपन्यास में जो प्रवाह है वो बहुत ही आकर्षित करता है | पाठक एक बार में पूरा उपन्यास पढने को विवश हो जाता है | वहीं वंदना जी ने स्थान -स्थान पर इतने सुंदर कलात्मक शब्दों का प्रयोग किया है जो जादू सा असर करते हैं | जहाँ पाठक थोडा ठहर कर शब्दों की लय ताल के मद्धिम संगीत पर थिरकने को विवश हो जाता है | रवि और शीना के मध्य रोमांटिक दृश्यों का बहुत रूमानी वर्णन है | एक बात और खास दिखी जहाँ पर उपन्यास थोडा तार्किक हो जाता है वहीँ वंदना जी कुछ ऐसा दृश्य खींच देती है जो दिल के तटबंधों को खोल देता है और पाठक सहज ही बह उठता है | “काहे करो विलाप “गुदगुदाते पंचो में पंजाबी तडके का अनूठा समन्वय ‘अँधेरे का मध्य बिंदु ‘ नाम बहुत ही सटीक है | जब … Read more