श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम 

श्री राम कथामृतम

      “ राम तुम्हारा चरित स्वंय ही काव्य है,   कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है।“                        मैथिली शरण गुप्त    दशरथ पुत्र राम, कौसल्या नंदन राम, मर्यादा पुरुषोत्तम राम .. राम एक छोटा सा नाम जो अपने आप में अखिल ब्रह्मांड को समेटे हुए है| हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार राम विष्णु का अवतार हैं | अवतार धरती पर तब ही अवतरित नहीं होते जब पाप बढ़ जाते हैं | अवतार के जन्म के पीछे सिर्फ मानव समाज का उद्धार ही नहीं बल्कि इसके पीछे उद्देश्य यह भी होता है कि साधारण मानव के रूप में जन्म ले कर उसे यह सिखा  सकें कि कि उसमें वो क्षमता है कि विपरीत परिस्थितियों का सामना कर ना सिर्फ हर बाधा पार कर सकता है अपितु  अपने अंदर ईशरत्व के गुण भी  विकसित कर सकता है | जन -जन के मन में व्याप्त राम हमारे धर्म का, इतिहास का हिस्सा है | कुछ लोग राम कथा को मिथक मानते हैं | फिर भी सोचने वाली बात है कि इतिहास हो या मिथक समकालीन वाल्मीकि से लेकर आज तक ना जाने कितनी कलमों ने, कितनी भाषाओं और कितनी शैलियों में, कितने क्षेपकों-रूपकों के साथ  राम कथा से अपनी कलम को पुनीत किया है |  सवाल ये उठता है कि, “आखिर क्या कारण है कि इतने युग बीत जाने के बाद भी राम कथा सतत प्रवाहमान है | इसका उत्तर एक ही है ..  श्री राम का चरित्र, जो सिखाता है कि एक साधारण मानव का चरित्र जीते हुए भी व्यक्ति कैसे ईश्वरीय हो जाता है | इतिहास की इस धरोहर को बार -बार कह कर सुन कर, पढ़कर हम उन गुणों को अपने वंशजों में पुष्पित -पल्लवित करना चाहते हैं | आज तक राम के चरित्र को लिखने में दो तरह की दृष्टियों का प्रयोग होता  रहा है | एक तार्किक दृष्टि दूसरी  भक्त की दृष्टि | तर्क और बौद्धिकता की दृष्टि किसी चरित्र को समझने के लिए जितनी जरूरी है, भक्त की दृष्टि उन गुणों को ग्रहण करने के लिए उतनी ही जरूरी है | भक्त की दृष्टि से लिखी गई  राम चरित मानस की लोकप्रियता इस बात की पुष्टि करती है |  घर -घर पढ़ी जाने वाली राम चरित मानस ने हमारे भारतीय परिवेश में धैर्य, सहनशीलता, क्षमा, परिवार में सामंजस्य आदि गुण तिरोहित होते रहे हैं | श्री राम के जीवन मूल्यों की धरोहर बच्चों को सौंपती -श्री राम कथामृतम  समय बदला और  इंटरनेट की खिड़की से पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति भी देश में आई | ग्लोबल विलेज के लिए ये जरूरी भी है और इसके कई सकारात्मक पहलू भी हैं पर “माता -पिता का आदर करो” के  स्थान पर “पापा डोन्ट प्रीच” बच्चों के सर चढ़ कर बोलने लगा | बड़ों का आदर कम हुआ, परिवार बिखरने लगे, बच्चों में असहनशीलता, अवसाद, अंकुरित होने लगे | घबराए माता-पिता ने संस्कार देने के लिए राम कथाओं की शरण लेनी चाही तो उनका नितांत अभाव दिखा | ऐसे में कि रण सिंह जी सुचिन्तित योजना के तहत बच्चों के लिए श्री राम कथामृतम ले कर आईं |   अपनी संस्कृति से बच्चों को जोड़ने के अभिनव प्रयास और सुंदर छंदबद्ध गेयता से समृद्ध इस पुस्तक को केन्द्रीय हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश के बाल साहित्य को दिए जाने वाले 2020 के सुर पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है |   चैत मास की नवमी तिथि को  जन्म लिए थे राम  कथा सुनाती हूँ मैं उनकी  जपकर उनका नाम     अपने आत्मकथ्य में वो कहती हैं कि “कौन बनेगा करोंणपति” देखते हुए उन्हें यह अहसास हुआ कि राम के जीवन से संबंधित छोटे- छोटे प्रश्नों के उत्तर भी जब लोग नहीं बता पाते हैं तो राम के गुणों को अपने अंदर आत्मसात कैसे कर पाएंगे | उन्होंने एक साहित्यकार के तौर पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए बच्चों को राम के चरित्र व गुणों से अवगत कराने का मन बनाया | क्योंकि बच्चे कविता को जल्दी याद कर लेते हैं इसलिए ये कथा उन्होंने बाल खंडकाव्य के रूप में प्रस्तुत की है |जिसमें 16 कथा प्रसंग  प्रांजल भाषा में लिखे गए हैं |    बाल रूप श्री राम                गुरुकुल में बच्चे कैसे रहते थे | मित्रता में राजा और -प्रजा बाधक नहीं थी | ये पढ़कर बच्चे समझ सकते हैं कि वो स्कूल में अपने मित्रों के साथ कैसा व्यवहार करें | साथ ही किसी से मित्रता करने का यह अर्थ नहीं है कि आप उसके जैसे बन जाए | हम अपने  गुणों और अपनी विशेष प्रतिभा के साथ भी मित्रता निभा सकते हैं ..    राजा -प्रजा सभी के बच्चे  रहते वहाँ समान  कठिन परिश्रम से करते थे  प्राप्त सभी हर ज्ञान  …… बने राम निषाद गुरुकुल में  अच्छे -सच्चे मित्र  उन दोनों का ही अपना था  सुंदर सहज चरित्र    ताड़का वध  व अहिल्या उद्धार    धोखे से इन्द्र द्वारा छली गई पति द्वारा शापित अहिल्या का राम उद्धार करते हैं | राम उस स्त्री के प्रति संवेदना रखने की शिक्षा देते हैं जिसका शीलहरण हुआ |    छूए राम ज्यों ही पत्थर को  शीला बनी त्यों नार  पतित पावन रामचन्द्र ने  दिया उन्हें भी तार    राम -सिया और लखन का वन गमन  राम, पिता की आज्ञा  मान  कर वन चल देते हैं | उस समय तार्किक मन  ये कह  रहा होता है कि राम के साथ गलत हो रहा है | परंतु राम के राम रूप में स्थापित होने में इस वन गमन का कितना बड़ा योगदान है ये हम  सभी जानते हैं | जो परिस्थितियाँ आज हमें कठिन दिख रहीं हैं, हो सकता है उनका हमारे जीवन को सफल आकार देने में बहुत योगदान हो |    खुशी -खुशी आदेश जनक का राम किये स्वीकार  कौशल्या से आज्ञा  लेने  आए हो तैयार    भरत मिलाप   आज हम जिस रामराज्य की बात करते हैं हैं वो भाई -भाई के प्रेम की नींव पर ही टिक सकता है | जहाँ निजी स्वार्थ के ऊपर आपसी प्रेम हो, देशभक्ति की भावना हो | मान  राम की बात भरत ने  रखी एक फिर शर्त  राजा होंगे राम आप ही  क्योंकि आप समर्थ    सीता हरण   रावण द्वारा सीता का हरण एक दुखद प्रसंग है |फिर भी वो … Read more

मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी

मनोहर सूक्तियाँ

क्या एक विचार जिंदगी बदल सकता है ? मेरे अनुसार “हाँ” वो एक विचार ही रहा होगा जिसने रेलवे स्टेशन पर गाँधी जी को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत दी .. और मोहन दास करमचंद महात्मा गाँधी बन गए | मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी Willie Jolley अपनी किताब It Only Takes a Minute to Change Your Life में कहते हैं .. वो विचार ही होता है जब हम कोई ऐसा निर्णय लेते हैं जो हमारी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट होता है | अगर निजी तौर पर बात कहूँ तो एक लोकोक्ति के रूप में मेरे नाना जी ने मन की गीली मिट्टी पर एक विचार रोप दिया था “चटोरी खोए एक घर बतोडी खोए चार घर ” अर्थात जिसे अच्छे अच्छे खाने का शौक होता है वो अपने घर के ही पैसे बर्बाद करता है | लेकिन जिसे फालतू बात करने का शौक होता है वो अपने साथ चार लोगों का समय बर्बाद करता है | कयोकि बात करने के लिए चार लोग चाहिए | यहाँ समय की तुलना सीधे -सीधे धन से की गई है | इस बात को समझ कर मैंने हमेशा समय को बर्बाद होने से बचाने की कोशिश की | निश्चित तौर पर आप लोगों के पास भी ऐसे किस्से होंगे जहाँ एक विचार आपके जीवन का उसूल बन गया | ऐसी ही एक किताब “हीरो वाधवानी ” जी की उपहार स्वरूप मेरे घर में आई | 246 पेज की इस किताब में 180 पेज में सूक्तियाँ या जीवन संबंधी विचार हैं ,जो हमें प्रेरणा देते हैं या सोचने पर विवश करते हैं | बाकी पेज में समीक्षात्मक लेख हैं | कुछ सूक्तियाँ साझा कर रहीं हूँ .. ईश्वर ने हमें एक मुँह और दो हाथ -पैर इसलिए दिए हैं ताकि हम कहें कम करें अधिक | क्रोध और अहंकार करने वाले बाहर से भले द्रण लगें अंदर से कमजोर होते हैं | मित्रता तोड़ना आईने तोड़ने जैसा है | तेज आँधी नहीं घर का क्लेश नींव को हिला देता है | ईश्वर ने सबसे अधिक हड्डियाँ इंसान के पैरों में रखीं हैं ताकि वो अपने पाँव से चले दूसरे के कंधे पर सवार ना हो | ईर्ष्यालू अंधा होता है क्योंकि वो जिससे ईर्ष्या करता है उसके परिश्रम व प्रयत्नों को नहीं देखता | ऐसी बहुत सारी जीवन उपयोगी सूक्तियाँ हैं जिन्हे एक झटके में न पढ़ कर रोज एक पेज पढ़ कर मनन करने से जीवन में अवश्य परिवर्तन आएगा | एक अच्छी व अलग किताब के लिए “हीरो वधवानी जी को बधाई व शुभकामनाएँ | वंदना बाजपेयी पगडंडियों पर चलते हुए -समाज को दिशा देती लघुकथाएं बस कह देना कि आऊँगा- काव्य संग्रह समीक्षा एक टीचर की डायरी – नव समाज को गढ़ते हाथों के परिश्रम के दस्तावेज आपको मनोहर सूक्तियाँ -विचार जो बदल दें जिंदगी समीक्षा कैसी लगी ? अपने विचारों से हमें अवगत कराएँ अटूट बंधन की साइट सबस्क्राइब करें अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करे

लव इन लॉकडाउन -कोविड -19 फर्स्ट वेव में पनपते प्रेम की दास्तान

लव इन लॉक डाउन

इस दुनिया की सबसे खूबसूरत शय है प्रेम .. प्रेम जिसके ऊपर कोई बंधन नहीं है |न धर्म का ना जाति का न उम्र का न सरहद का और ना ही लॉक डाउन का | लॉकडाउन एक ऐसा शब्द जिससे एक साल पहले तक हममें से कोई वाकिफ भी नहीं | 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के साथ हमने जाना कि सब कुछ थमना क्या होता है | पर उस दिन यही लगा कि यह किसी व्रत की तरह है | एक दिन का संकल्प लिया है .. हो जाएगा | फिर शुरू हुआ लॉक डाउन और हमनें असलियत में देखा, रुकी हुई सड़कें, रुकी हुई रेले, रुके हुए हवाई जहाज और रुका हुआ देश ,,,, एक अजीब स भय, अजीब स सन्नाटा हम सब के मन पर छाया हुआ था पर ऐसे में भी प्रेम क्या रुका है ? क्या रुक सकता है ? लव इन लॉकडाउन -कोविड -19 फर्स्ट वेव में पनपते प्रेम की दास्तान इस खूबसूरत कल्पना के साथ सुपरिचित लेखक श्यामजी सहाय एक उपन्यास ले कर आए हैं “लव इन लॉक डाउन ” बहुत ही खूबसूरत कवर वाले इस उपन्यास को पढ़ने से वो लोग शायद खुद को ना रोक पाएँ जिन्हें प्रेम कहानियाँ पसंद हैं | पर ये उपन्यास मात्र एक प्रेम कहानी ही नहीं है ये तीन मुख्य बिंदुओं पर टिका है | एक लव और दूसरा लॉक डाउन | लेकिन इसमें एक मुख्य किरदार घुमंतू बाबा भी हैं | इस उपन्यास पर बात करते समय इसके तीनों मुख्य बिंदुओं पर अलग- अलग बात करनी पड़ेगी | जब हम इसको इस तरह से पढ़ेंगे तो कवर पेज पर दो की जगह तीन दिल बनाने का मतलब भी समझ आ जाएगा| लॉक डाउन – ये कहानी शुरू होती है जनता कर्फ्यू वाले दिन यानी 22 मार्च 2020 से जब कहानी के नायक अमन का अट्ठारवाँ जन्मदिन है | वो इसे सेलिब्रेट करना चाहता है पर जनता कर्फ्यू लग जाता है | इसके बाद उपन्यास जनता कर्फ्यू, लॉक डाउन , घंटे बजाना, दीपक जलाना जैसे कार्यक्रमों के साथ आगे बढ़ते हुए भय के माहौल के साथ लॉक डाउन और अन्लॉक की एक -एक प्रक्रिया से रुबरु कराता चलता है | किस तरह से मामूली खांसी जुकाम को कोविड समझ कर अस्पताल में भरती कर दिया जाता है और दो बार निगेटिव रिपोर्ट आने पर ही डिसचार्ज किया जाता है | भय के आलम में लोग घर के अंदर ही मास्क लगा रहे हैं | सोशल डिस्टेंसिग कर रहे हैं | सोशल डिस्टेंसिग इमोशनल डिस्टेंसिग में बदल रही है | कहने का तात्पर्य ये है कि इसमें लॉकडाउन से जुड़ी छोटी बड़ी घटना को इस तरह से पिरोया गया है कि वो कहानी का हिस्सा सा लगता है | हम लोगों ने ये समय देखा है कहानी पढ़ते समय भोगे हुए दृश्यों की एक रील सी मन में चलने लगती है | इस हिस्से को हम लॉकडाउन डायरी कह सकते हैं | मुझे लगता है भविष्य की पीढ़ी जब लॉक डाउन के जानना चाहेगी तो इस किताब से उसे बहुत मदद मिलेगी | घुमंतू बाबा एक कहानी का एक मुख्य किरदार हैं | जिनका प्रवेश कहनी के पंद्रहवें एपिसोड में होता है | घुमंतू बाबा का असली नाम ज्ञानी दुबे है वो अकेले न्यूनतम सुविधाओं के साथ रहते हैं | अविवाहित हैं | उनके पास हर विषय का ज्ञान है |और ज्यादातर बातों का सटीक उत्तर देते हैं | इसलिए वो सबके प्रिय है | महत्वपूर्ण बात ये है कि इनका ज्ञान उबाऊ और नीरस नहीं लगता | इसका कारण है घुमंतू बाबा की साफगोई और रोचक शैली | कहानी के ये पात्र ऐसा है कि उनकी एक दो बातों से असहमत होते हुए भी आप उनके ज्ञान से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएंगे | अब आते कहानी के तीसरे अहम बिन्दु यानी लव पर .. ये कहनी तीन प्रेम कहानियों को एक साथ ले कर चलती है | अमन -सोनी, हरप्रीत -सुदीप व रोहन और शेफाली | तीनों का प्रेम अलग प्रेम का तरीका अलग |तीनों की पृष्ठ भूमि अलग इन अलग पारिवारिक पृष्ठ भूमि का असर नायिका के स्वभाव पर पड़ना स्वाभाविक है हरप्रीत-सुदीप की जोड़ी में हरप्रीत बहुत शोख चंचल है और प्रेम के समय में बहुत लाउड भी | दोनों खुश हैं पर हरप्रीत की एक बैक स्टोरी भी है | फौजी की बेटी हरप्रीत की माँ का चरित्र आम भारतीय महिलाओं से अलग है | उनके पति यानी हरप्रीत के पिता से सालों की दूरी और उनके पिता का प्रेम के पलों में वहशी हो जाना उन्हें तकलीफ देता रहा है .. जिस कारण वो स्वयं तृप्ति की अंधेरी गलियों में भटकती हैं | परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि सुदीप को हरप्रीत पर शक हो जाता है | ऐसे में माँ का अपनी बेटी भारतीय संस्कृति की शिक्षा देना अजीब लगता है | बाद में परिस्थितियों का यू टर्न स्वागत योग्य है | रोहन और शेफाली में शेफाली ज्यादा चंचल है शेफाली विधवा स्त्री की बेटी है और हौले से प्रेम कहानी आगे बढ़ती है| तीसरी और सबसे अहम जोड़ी कहानी के नायक अमन और सोनी की है | अमन आई आई टी दिल्ली का फर्स्ट ईयर का स्टूडेंट है और सोनी दिल्ली में हॉस्टल में रहकर 12 th कर रही है | वे क्रमश:18 और 16 साल के हैं | दोनों पटना में एक घर छोड़ कर रहते हैं पर घंटी/घंटा बजाने के दौरान (लॉकडाउन में ) पहली बार एक दूसरे को देखते हैं | आँखों -आँखों में प्रेम की चिंगारी फूटती है और प्रेम वहाट्स ऐप चैट के माध्यम से आगे बढ़ता है | दोनों संस्कारी परिवार के शुचितवादी हैं और प्रेम शुचिता के साथ परवान चढ़ने लगता है | हर काल में हर तरह का प्रेम मौजूद रहता है | आधुनिक काल में भी उसे नकारा नहीं जा सकता | लेखक ने प्रेम में शुचिता को दिखाने के लिए परिपपक्व भाषा व पुराने गानों का प्रयोग किया है | जैसे चंदन सा बदन चंचल चितवन .. गदराया बदन, उससे युवा पाठक शायद न कनेक्ट कर पाए| क्योंकि शुचिता वादी प्रेम भी अभिव्यक्ति के स्तर पर बदल चुका है | दादी के दवाब में इस उम्र सगाई … Read more

ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है•••डॉ. सुनीता

मुशर्रफ आलम जौकी

  उर्दू व हिंदी साहित्य का जाना-पहचाना नाम मुशर्रफ आलम जौकी जी का कल दिनांक 19 अप्रैल 2021 को निधन हो गया| नए साल के स्वागत में ‘2021: एक नई सुबह की शुरुआत करें’ शीर्षक से लिखे लेख में जब उर्दू के जानेमाने लेखक मुशर्रफ आलम जौकी ने लिखा था कि, “मैं इतनी बुरी दुनिया की कल्पना नहीं कर सकता. क्या वास्तव में वायरस थे? या फिर महाशक्तियों ने दुनिया को मूर्ख बनाना शुरू कर दिया? अब मुझे एहसास हो रहा है कि वायरस ने देश में एक भयानक खेल की नींव रखी है|” दुखद है कोरोना ने इतने महान लेखक को हमसे छीन लिया| उनके निधन पर समस्त साहित्य जगत में शोक है| विनम्र  श्रद्धांजलि | पढिए युवा आलोचक डॉ. सुनीता जी की उनके कृतित्व पर  टिप्पणी   ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है••• हिंदी, ऊर्दू अदब के शीर्ष अफ़सानानिगार मुशर्रफ आलम जौकी के  निधन पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ! सूचना मिलते ही मुझे #पाखी के दिसम्बर अंक में #पानी की सतह’ की याद आ गयी। यह शायद आख़िरी कहानी है जिसे मैंने पढ़ा है। ‘And the spirit of God moved upon the face of the waters’ (और ख़ुदा की रूह पानी की सतह पर तैरती थी) बाइबल। कहानी की शुरुआत उपरोक्त संदर्भ से होती है। धीरे-धीरे प्रजापति शुक्ला और तारा शुक्ला के साथ आगे बढ़ती है। हसन और॰॰॰ पेंटिंग से बाहर आने के साथ नये आयाम देती है। कहानी के नैरेटर नये अंदाज में सामने आते हैं। वैसे तो कहानी चुपके से ख़त्म हो जाती है, सिर्फ़ बरक में ख़त्म होती है जबकि पेंटिंग और हसन के साथ दिल-दिमाग में पुनः द्वंद्व के साथ शुरू होती है। ‘धूप का मुसाफ़िर’ एक छोटी सी कहानी है मगर मानस को झकझोरने में सक्षम है। दरअसल भावुक जज़्बाती रूह को कंपा देने वाले चेहरों की झुर्रियों को पढ़ने की कला सभी के पास नहीं होती है। लेकिन यह कला जौकी साहब में मौजूद है। अपने कथानक में संक्षिप्तता की अनिवार्यता का बख़ूबी ख़्याल रखते हुये जौकी साहब ने भाषायी संतुलन से हमेशा चमत्कृत किया है। जब उन्होंने ‘फ़िज़िक्स, केमिस्ट्री अलजेब्रा’ रचा तब साहित्य के लिये नयी परिभाषा भी इजात की है।यह बात और है कि अभी तक डीकोड नहीं किया गया है। जब भविष्य में इतिहास रचा जाये तब शायद डिकोडिंग का बीजलेख मिले। बहरहाल रचना के बरक्स ‘लैंडस्केप के घोड़े, ले साँस भी आहिस्ता, बाज़ार की एक रात, मत रो शालिग्राम, लेबोरट्री, फ़रिश्ते भी मरते हैं, सदी को अलविदा कहते हुये, बुख़ा इथोपिया जैसी तमाम रचनाओं से हमें लबालब भर दिया है। उलीचने का शऊर हमें स्वयं तय करना होगा। ‘प्रेम संबंधों की कहानी’ में इतनी विविधता है कि प्रेम की भी स्थायी परिधि और परिभाषा हो सकती है यह यक़ीन करने को जी चाहता है लेकिन फिर दिल व दिमाग़ जंग करते हैं और कहते हैं कि नहीं अभी तक प्रेम पर बहुत कुछ अलिखित है जिसका लिखा जाना शेष है। ‘फ़्रिज में औरत’ यह एक फंतासी तत्व से भरपूर रचना है। औरत फ़्रिज से प्रकट होती है जबकि शहर प्रतीक बनकर उभरता है। ग़ौरतलब है कि कहानी सिम्बोलिज्म की यथार्थ की भूमि को खुरचकर पढ़ने की कला की ओर उन्मुख करती है। उपरोक्त को पढ़ते वक्त रजनी गुप्त की पुस्तक ‘एक न एक दिन’, डॉ. अनुसूया त्यागी की ‘मैं भी औरत’, नूर ज़हीर की ‘अपना ख़ुदा एक औरत और वंदना गुप्ता की ‘मैं बुरी औरत हूँ’ के साथ-साथ सुधा अरोड़ा की पुस्तक ‘एक औरत ज़िंदा सवाल’ के समानांतर में उड़िया की रचनाकार प्रतिभा केड़िया को भी समकक्ष रख सकते हैं। इससे रचना की परतें तो अधिक खुलेंगी ही और दो हज़ार साल पहले और मौजूदा वक्त की औरत की भी गिरहें खुलेंगी। तकनीकी स्टोरेज में क़ैद मुसाफ़िर भी बोलेंगे। रचनाओं के आलोक में स्त्रियाँ झांकती हैं और प्रवृत्तियों की प्रक्रिया को बदल देती हैं। जौकी साहब की स्त्रियाँ मल्टीप्लेक्स, मल्टीलेयर्ड और यूनाइटेड फ़ैमिली का सेनेरियो भी बदलती चलती हैं। सूक्ष्मता से समाकलित विश्लेषण के परिप्रेक्ष्य में जौकी साहब की अधिकांश रचना बेशक हिंदी में ही लिखी गयी हैं बावजूद सभी रचनाओं का परिवेश भारतीय नहीं है। आप चाहें तो भाषायी खिलंदड़पन और कथ्यात्मकता में चुटीलेपन के बीच ऊर्दू की तमीज़ के नेपथ्य से भेदक, तीक्ष्ण दर्द पर नज़र व नज़रिया के लिये याद रखते हुये कुफ़्र की रात में चाँद वाली चौपर बिछाकर चौसर खेल भी सकते हैं। सरल क़बीलाई जीवन में कुलाँचे भरते मुस्लिम समाज के जीवन-स्थितियों का यथार्थपरक चित्रण किया है। अपने प्रौढ़, गहन-गंभीर व सशक्त शैली के कारण ख्यातिलब्ध शख़्सियत में शुमार रहे हैं। द्वंद्वात्मक मानसिकता का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तो किया ही है, जीवन-मूल्यों के चटखने की प्रतिध्वनियों की सघनता को भी पकड़ा है। आख़िर में यह कह सकती हूँ कि ‘प्रिमिटिव पैसिव सिंपैथी’ में बंधे होकर भी मुक्तिवादी भावाभिव्यक्ति करते रहे। ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है। आगे भी लेती रहेगी। डाॅ. सुनीता     यह भी पढ़ें .. प्रिडिक्टेबली इरेशनल की समीक्षा -book review of predictably irrational in Hindi “सुशांत सुप्रिय के काव्य संग्रह – इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं “की शहंशाह आलम की समीक्षा ” गहरी रात के एकांत की कविताएँ विसर्जन कहानी संग्रह -समीक्षा किरण सिंह ताबूत में कैद जिन्दगी सांस ले रही है•••डॉ. सुनीता के बारे में अपनी राय अवश्य व्यक्त करें |अगर आपको अटूट बंधन के लेख पसंद आटे हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ पुस्तक विमोचन

कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान

  भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण किया है। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया है। प्रस्तुत है कार्यक्रम की रिपोर्ट  कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’ ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ जैसी महत्वपूर्ण पुस्तक का अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं में होना चाहिए अनुवाद- पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा   नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित जानेमाने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी की पुस्‍तक ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ का लोकार्पण भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने किया। राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश के विशिष्‍ट आतिथ्‍य में इस समारोह का आयोजन किया गया। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्‍तक का लोकार्पण ऑनलाइन माध्‍यम से संपन्‍न हुआ। पुस्‍तक के लोकार्पण समारोह का संचालन प्रभात प्रकाशन के निदेशक श्री प्रभात कुमार ने किया, जबकि धन्‍यवाद ज्ञापन श्री पीयूष कुमार ने किया। ‘‘कोविड-19: सभ्‍यता का संकट और समाधान’’ पुस्तक में कोरोना महामारी के बहाने मानव सभ्‍यता की बारीक पड़ताल करते हुए यह बताने की कोशिश की गई है कि मौजूदा संकट महज स्वास्थ्य का संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है। पुस्‍तक की खूबी यह है कि यह संकट गिनाने की बजाय उसका समाधान भी प्रस्‍तुत करते चलती है। ये समाधान भारतीय सभ्यता और संस्कृति से उपजे करुणा, कृतज्ञता, उत्तरदायित्व और सहिष्णुता के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित हैं। भारत के पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश श्री दीपक मिश्रा ने इस पुस्‍तक को महत्वपूर्ण और अत्यंत सामयिक बताते हुए कहा कि पुस्‍तक सरल और सहज भाषा में एक बहुत ही गहन विषय को छूती है। इस महत्वपूर्ण पुस्‍तक का अंग्रेजी सहित अन्‍य भाषाओं में भी अनुवाद किए जाने की जरूरत है। ताकि इसका लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके। महज 130 पृष्‍ठों की लिखी इस पुस्‍तक को पढ़कर अर्नेस्‍ट हेमिंग्‍वे के मात्र 84 पृष्‍ठों के उपन्‍यास ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ की याद आना अस्‍वाभाविक नहीं है, जिसमें एक बड़े फलक के विषय को बहुत ही कम शब्‍दों में समेटा गया है। हेमिंग्‍वे को ‘’ओल्‍ड मैन एंड द सी’’ के लिए नोबेल पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। कैलाश जी की यह किताब उनके ‘सामाजिक-राजनीतिक इंजीनियर’ के रूप को भी हमारे सामने प्रकट करती है। महान संस्‍कृत कवि भवभूति ने समाज सेवा को ही मानवता की सेवा कहा है। कैलाश जी इसके ज्‍वलंत उदाहरण हैं। यद्यपि पुस्‍तक गद्य में लिखी गई है लेकिन इसकी सुगंध कविता जैसी है। जिस दर्द की भाषा का हम प्रयोग करते हैं वह भाषा इस पुस्‍तक में मिलती है। इस अवसर पर पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कैलाश जी के कवि रूप की प्रशंसा की और पुस्तक में शामिल श्री सत्यार्थी की कविताओं को उद्धृत करते हुए उसकी दार्शनिक व्याख्या भी की।   राज्‍यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने भी पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि कोविड संकट के दौर में इस पुस्‍तक का लिखा जाना मानव सभ्‍यता के इतिहास में एक नया अध्‍याय का जोड़ा जाना है। इस पुस्तक के माध्यम से बहुत ही बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण सवालों को उठाया गया और उनका समाधान भी प्रस्तुत किया गया है।  यह सही है कि कोविड-19 का संकट महज स्‍वास्‍थ्‍य का संकट नहीं है बल्कि यह सभ्‍यता का संकट है। समग्रता में इसका समाधान करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता में निहित है, जिनका उल्‍लेख कैलाश जी अपनी पुस्तक में करते हैं। उन्‍होंने करुणा, कृतज्ञता, उत्‍तरदायित्‍व और सहिष्‍णुता की नए संदर्भ में व्‍याख्‍या भी की है, जिनका यदि हम अपने जीवन में पालन करें तो समाधान निश्चित है। कैलाश जी वैक्‍सीन को सर्वसुलभ करने की बात करते हैं और उस पर पहला हक बच्‍चों का मानते हैं, जो उनके सरोकार का उल्‍लेखनीय पक्ष है। संकट बहुत बड़ा है। चुनौती बहुत बड़ी है इसलिए इसका समाधान नए ढंग से सोचना होगा, तभी हम अपने अस्तित्‍व को बचा पाएंगे।   नोबेल शांति पुरस्‍कार विजेता श्री कैलाश सत्‍यार्थी ने इस अवसर पर लोगों ध्यान कोरोना संकट से प्रभावित बच्चों की तरफ आकर्षित किया।   उन्होंने कहा कि महामारी शुरू होते ही मैंने लिखा था कि यह सामाजिक न्‍याय का संकट है। सभ्‍यता का संकट है। नैतिकता का संकट है। यह हमारे साझे भविष्‍य का संकट है और जिसके परिणाम दूरगामी होंगे। इसके कुछ उपाय तात्‍कालिक हैं, तो कुछ लगातार खोजते रहने होंगे। महामारी के सबसे ज्‍यादा शिकार बच्‍चे हुए हैं। आज एक अरब से ज्‍यादा बच्‍चे स्‍कूल से बाहर हैं। इनमें से तकरीबन आधे के पास ऑनलाइन पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं है। बच्चों की दशा को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ की संस्‍थाओं ने अनुमान लगाया है कि कोरोना से उपजे आर्थिक संकट की वजह से 5 साल से कम उम्र के तकरीबन 12 लाख बच्‍चे कुपोषण के कारण मौत के शिकार हो जाएंगे। उन्होंने इन परिस्थितियों को बदलने पर जोर देते हुए कहा कि ऐसे बच्‍चों की सुरक्षा के लिए हमने दुनिया के अमीर देशों से वैश्विक स्‍तर पर ‘फेयर शेयर फॉर चिल्ड्रेन’ की मांग की है। महामारी से निपटने के लिए अमीर देशों ने अनुदान के रूप में कोविड फंड में 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की थी, जिसमें उद्योग, व्‍यापार जगत और अर्थव्‍यवस्‍था को भी सुधारना था। हमने उसमें से आबादी के हिसाब से 20 प्रतिशत हिस्‍सा बच्‍चों के लिए देने की मांग की है। लेकिन अमीर देशों ने अभी तक बच्‍चों के मद में मात्र 0.13 प्रतिशत रकम ही दी है। न्‍याय की खाई कितनी चौड़ी है इस उदाहरण से समझा जा सकता है। श्री सत्यार्थी ने इस अवसर पर कोरोना वैक्‍सीन को मुफ्त में सर्वसुलभ कराए जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि संकट से उबरने के लिए हमें “करुणा का वैश्‍वीकरण” करना होगा।   श्री कैलाश सत्‍यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद भी बच्चों के अधिकारों के लिए सड़क पर उतर कर लगातार संघर्ष कर रहे हैं। अपना नोबेल पदक राष्ट्र को समर्पित करने वाले श्री सत्यार्थी ने दुनिया के बच्चों को शोषण मुक्त करने के लिए ‘’100 मिलियन फॉर 100 मिलियन’’ नामक दुनिया के सबसे बड़े युवा आंदोलन की शुरुआत की है। जिसके तहत 10 करोड़ वंचित बच्चों के अधिकारों की लड़ाई के लिए 10 करोड़ युवाओं को तैयार किया जाएगा। जबकि ‘’लॉरियेट्स एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रेन’’ के तहत वे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट कर … Read more

एक टीचर की डायरी – नव समाज को गढ़ते हाथों के परिश्रम के दस्तावेज

एक टीचर की डायरी

    “वो सवालों के दिन वो जवाबों की रातें” …जी हाँ, अपना बचपन याद आते ही जो चीजें शुरुआत में ही स्मृतियों के अँधेरे में बिजली सी चमकती हैं उनमें से एक है स्कूल | एक सी स्कूल ड्रेस पहन कर, दो चोटी करके स्कूल जाना और फिर साथ में पढना –लिखना, लंच शेयर करना, रूठना-मनाना और खिलखिलाना | आधी छुट्टी या पूरी छुट्टी की घंटी |  पूरे स्कूल जीवन के दौरान जो हमारे लिए सबसे ख़ास होते हैं वो होते हैं हमारे टीचर्स | वो हमें सिर्फ पढ़ाते ही नहीं हैं बल्कि गढ़ते भी है | टीचर का असर किसी बाल मन पर इतना होता है कि एक माँ के रूप में हम सब ने महसूस किया होगा कि बच्चों को पढ़ाते समय वो अक्सर अड़ जाते हैं, “ नहीं ये ऐसे ही होता है | हमारी टीचर ने बताया है | आप को कुछ नहीं आता |” अब आप लाख समझाती रहिये, “ऐसे भी हो सकता है” , पर बच्चे बात मानने को तैयार ही नहीं होते |   एक समय था जब हमारी शिक्षा प्रणाली में गुरु का महत्व अंकित था | कहा जाता था कि “गुरु गोविंद दोऊ खड़े ……” गुरु का स्थान ईश्वर से भी पहले है | परन्तु धीरे –धीरे शिक्षा संस्थानों को भी बाजारवाद ने अपने में लपेटे में ले लिया | शिक्षा एक व्यवसाय में बदल गयी और शिक्षण एक प्रोफेशन में | गुरु शिष्य के रिश्तों में अंतर आया, और श्रद्धा में कमी | बात ये भी सही है कि जब हम किसी काम पर ऊँगली उठाते हैं तो इसमें वो लोग भी  फँसते हैं जो पूरी श्रद्धा से अपना काम कर रहे होते हैं जैसे डॉक्टर, इंजीनीयर, सरकारी कर्मचारी और शिक्षक | क्या हम दावे से कह सकते हैं कि हमें आज तक कोई ऐसा डॉक्टर नहीं मिला , सरकारी कर्मचारी…आदि  नहीं मिला जिसने नियम कानून से परे जा कर भी सहायता ना करी हो | अगर हम ऐसा कह रहे हैं तो झूठ बोल रहे हैं या कृतघ्न हैं | अगर टीचर्स के बारे में आप सोचे तो पायेंगे कि ना जाने कितनी टीचर्स आज भी आपके जेहन दर्पण में अपनी स्नेहमयी, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार छवि के रूप में प्रतिबिंबित हो रही होंगी | कितनी टीचर्स के कहे हुए वाक्य आपके जीवन सागर में लडखडाती नाव के लिए पतवार बने होंगे , तो कितने अँधेरे के दीपक | कितनी बार कोई टीचर अचनाक्ज से मिल गया होगा तो सर श्रद्धा सेझुक गया होगा |   अगर हम टीचर्स की बात करें तो इससे बेहतर कोई प्रोफेशन नहीं हो सकता क्योंकि शिक्षा के २० -२२ वर्ष पूरे करते समय हर विद्यार्थी का नाता स्कूल, कॉलेज से रहता है | समय पर जाना –आना, नियम, अनुशासन यानि एक ख़ास दिनचर्या की आदत पड़ जाती है | टीचर्स को नौकरी लगते ही अपने वातावरण में कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता और ना ही नए माहौल से तारतम्य बनाने में अधिक परिश्रम करना पड़ता है | सबसे खास बात जहाँ और प्रोफेशंस में बदमिजाज, बददिमाग, प्रतिस्पर्द्धी लोगों से जूझना होता है वहीँ यहाँ मासूम नवांकुरों से जिनके भोले मन ईश्वर के बैलेंसिंग एक्ट के तहत सारी दुनिया की नकारात्मकता को साध रहे होते हैं |   ये तो हुई हमारी आपकी बात …एक टीचर क्या सोचता/सोचती  है …जिस पर जिम्मेदारी है कच्ची मिटटी में ऐसे बीज रोपने की जो कल छायादार वृक्ष बने | उसका काम केवल बीज रोप देना ही नहीं, उसे ये सुनिश्चित भी करना है कि हर दिन उन्हें धूप , हवा, पानी सब मिले | एक शिक्षक वो कृषक है जिसके रोप बीज २० -२२ साल बाद पल्लवित, पुष्पित होते हैं | जरूरी है अथक परिश्रम, असीम धैर्य, जरूरी है मन में उपजने वाली खर-पतवार  को निकालना, बाहरी दुष्प्रभावों से रक्षा करना | क्या ये केवल  सम्बंधित पीरियड की घंटी बजने से दोबारा घंटी बजने तक का साथ है | नहीं …ये एक अनवरत साधना है | इस साधना को साधने वाले साधक टीचर्स के बारे में हमें पता चलता है “एक टीचर की डायरी से” प्रभात प्रकशन से प्रकाशित इस किताब में भावना जी ने अपने शिक्षक रूप में आने वाली चुनौतियों, संघर्षों, स्नेह और सम्मान सबको अंकित किया है | पन्ना –पन्ना आगे बढ़ते हुए पाठक एक नए संसार में प्रवेश करता है जहाँ कोई शिष्य नहीं बल्कि पाठक, शिक्षक की ऊँगली थाम कर कौतुहल से देखता है लगन, त्याग और कर्तव्य निष्ठा के प्रसंगों को |   भावना जी को मैं एक मित्र, एक सशक्त लेखिका के रूप में जानती रही हूँ पर इस किताब को पढने के बाद उनके कर्तव्यनिष्ठ व् स्नेहमयी  शिक्षक व् ईमानदार नागरिक, एक अच्छी इंसान  होने के बारे में जानकार अतीव हर्ष हुआ है | कई पृष्ठों पर मैं मौन हो कर सोचती रह गयी कि उन्होंने कितने अच्छे तरीके से इस समस्या का सामाधान किया है | इस किताब ने मुझे कई जगह झकझोर दिया जहाँ माता –पिता साफ़ –साफ़ दोषी नज़र आये | जैसे की “रिजल्ट” में | बच्ची गणित में पास नहीं हुई है पर माता पिता को चिंता इस बात की है कि उन दो लाख रुपयों का क्या होगा जो उन्होंने फिटजी की कोचिंग में जमा करवाए हैं … “पर मिस्टर वर्मा ! सोनम शुरू से मैथ्स में कमजोर है, आपने सोचा कैसे कि वो आई आई टी में जायेगी ?” “ नहीं मिस वो जानती है कि उसे आई आई टी क्लीयर करना है | मैं उसे डराने के लिए धमकी दे चूका हूँ कि अगर दसवीं में ९० प्रतिशत से कम नंबर आये …तो मैं सुसाइड कर लूँगा …फिर भी ..|” हम इस विषय पर कई बार बात कर चुके हैं कि माता –पिता अपने सपनों का बोझ अपने बच्चों पर डाल रहे हैं | पर शिक्षकों को रोज ऐसे माता –पिता से दो-चार होना पड़ता होगा | उनकी काउंसिलिंग भी नहीं की जा सकती | सारे शिष्टाचार बरतते हुए उन्हें सामझाना किता दुष्कर है |   “अंगूठी” एक ऐसी बच्ची का किस्सा है जो शरारती है | टीचर उसे सुधारना चाहती है पर उसकी उदंडता बढती जा रही है | और एक दिन वह अपनी सहपाठिन से ऐसा कठोर शब्द ख … Read more

समीक्षा – कहानी संग्रह विसर्जन

प्रस्तुत है डेजी नेहरा के द्वारा वंदना बाजपेयी के कहानी संग्रह ‘विसर्जन ‘की समीक्षा समीक्षा – विसर्जन (कहानी-संग्रह) वंदना वाजपेयी के 2019 में आये कहानी-संग्रह “विसर्जन” की 11 अविस्मरणीय कहानियों में पहली ‘विसर्जन’ से लेकर अंतिम ‘मुक्ति’ तक हर कहानी अपने आप में सोचने पर विवश करती है. आम माध्यम परिवारों के दयनीय-बेकुसूर पात्रों की ये कथाएँ कभी वर्तमान में आस-पास की लगती हैं, कभी अतीत के किसी देखे-सुने पात्र की याद दिलाती हैं. महत्वपूर्ण यह है कि फिर भी पाठक के दिल को छू कर, उसकी आँखों में झाँक ऐसे सवाल कर बैठती हैं जिनका जवाब या तो पाठक के पास है नहीं या घिसी-पिटी सामाजिक मान्यताओं की अनदेखी स्वीकार्यता पाठक को इस कदर खामोश एवं लाचार कर देती है कि अश्रु धारा स्वतः ही बहने लगती है. एक कहानी पढ़ने पर पुस्तक बंद कर भावुक हो आँसू टपकाने के पश्चात अगली पढ़ने के लिए ‘ब्रेक’ लेना ही लेना ही पड़ता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि आँसू सुखाने हैं, अपितु इसलिए कि वो पात्र और उसकी परिस्थितियाँ आपके मानस पटल पर छा जाती हैं और विश्लेषण पर मजबूर करती हैं. वंदना जी स्वयं मानती हैं कि औरत होते हुए वह स्त्रियों के दर्द को अधिक समझती हैं, अतः अधिकतर पात्र स्त्री ही हैं. चाहे वह ‘अशुभ’ की दुलारी हो जिसके माथे पर सदा अभागी होने का ठप्पा इस क़दर रहा कि दुर्घटनाग्रस्त हो मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी सरकारी मुआवज़े की रक़म के पति और भाई (जो जीते जी उससे पीछा छुड़ाने में लगे थे) में आधे-आधे बँटने पर दोनों के द्वारा वह ‘अशुभ’ ही कहलाई क्यूँकि रक़म बँट गयी, या ‘काकी का करवाचौथ’ की काकी जिसने असली सुहाग को राम और खुद को अहिल्या मान अंतहीन प्रतीक्षा की दोषमुक्त होने के लिए, किन्तु उसे राम ने नहीं ‘ज्ञान’ ने मुक्त किया. पुरुषों के दिखते दोषी होने पर भी इल्ज़ामों के घेरे में स्त्री ही है. ‘पुरस्कार’, ‘फॉरगिव मी’, ‘अस्तित्व’ व ‘मुक्ति’ बिलकुल आज की कहानियाँ हैं जो वास्तव में अपने आस-पास के ऐसे पात्रों (जिनमें पति, बेटियां, बेटे शामिल हैं) को यदि पढ़वा दी जाएँ तो उनके जीवन की पेचीदगियां सुलझ सकती हैं. ‘दीदी’ सामाजिक बंधनों में बंधे रिश्तों, खून के रिश्तों और मन के पवित्र रिश्तों के सार्थक-निरर्थक पहलू को दर्शाती मार्मिक कहानी है. विशेषतः बहुत सी कहानियों में हम मनुष्यों पर अपनी-अपनी त्रासदियों के कारण छाते जा रहे मानसिक अवसाद की छाया नज़र आती है, जिसका अहसास लेखिका बहुत कुशलता से करवाती है. इस कड़ी में सबसे दमदार कहानियाँ हैं – ‘विसर्जन’ और ‘चूड़ियाँ’, जिनमें पात्र की मानसिक अवस्था या तो समझ में आने में बहुत देर लग जाती है, या जान-बूझ कर परम्पराएँ निबाहने हेतु उसे अनदेखा कर किसी की ज़िंदगी से खिलवाड़ किया जाता है. वंदना जी एक अत्यंत सुलझी हुई साहित्यकारा हैं जो वर्तमान में परिस्थितियों की ज़िम्मेवारी भली-भाँति समझते हुए मानसिक अवसाद जैसे विषय पर न केवल पात्रों के साथ न्याय करती हैं, अपितु एक मनोवैज्ञानिक की तरह पाठकों को भी जीवन में ऐसे पात्रों के साथ न्याय करने के तरीके समझाती-सिखाती प्रतीत होती हैं. अंततः मैं उनको ‘विसर्जन’ कहानी संग्रह के लिये बहुत बधाई देती हूँ और भविष्य के लिये शुभकामनाएँ देती हूँ कि वे अपने यथार्थ को चित्रित करते साहित्य के ज़रिये पाठकों के जीवन की विचित्र उलझनों को विसर्जित करती रहें. डॉ. डेज़ी Dr Daisy Associate Prof. & Head Dept. of English, BPS Institute of Higher Learning Director, Women Studies Centre  Additional Public Relations Officer Haryana, INDIA यह भी पढ़ें … बाली उमर-बचपन की शरारतों , जिज्ञासाओं के साथ भाव नदी में उठाई गयी लहर समीक्षा –कहानी संग्रह किरदार (मनीषा कुलश्रेष्ठ) गयी झुलनी टूट -उपन्यास :उषा किरण खान विसर्जन कहानी संग्रह पर किरण सिंह की समीक्षा आपको  लेख “ समीक्षा -कहानी संग्रह विसर्जन “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords; review , book review,  Hindi book , story book, , vandana bajpai, emotional stories

डस्टबिन में पेड़ -शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ

  डस्टबिन में पेड़ आशा शर्मा जी का नया बाल कहानी संग्रह है | पेशे से इंजिनीयर आशा जी कलम की भी धनी हैं | इस बाल कहानी संग्रह में २५ कहानियाँ हैं जो बच्चों के मन को सहलाती तो हैं ही एक शिक्षा बजी देती हैं | आइये रूबरू हिते हैं ‘डस्टबिन में पेड़’ से … डस्टबिन में पेड़ –शिक्षाप्रद बाल कहानियाँ   बचपन जीवन की भोर है | इस भोर में आँख खोलते हुए नन्हे शिशु को जो कुछ भी दिखाई देता है वो सब कुछ कौतुहल से भरा होता है …फिर चाहें वो सुदूर आसमान में उगता हुआ लाल गोला हो, या काली रात की चादर के नीचे से झाँकते टीम –टीम करते बल्ब | बालमन कभी समझना चाहता है दादाजी की कड़क आवाज में छिपा प्यार, तो कभी माँ की गोल-गोल रोटियों का रहस्य | कभी उसे  स्कूल का अनुशासन बड़ा कठोर लगता है तो कभी छोटे भाई /बहन का आगमन अपने सम्राज्य में सेंध | अब उन्हें समझाया कैसे जाए |हम सब कभी बच्चे रहे हैं फिर भी बड़े होते ही एक ना एक बार ये जरूर कहा होगा कि “बच्चो को समझाना कोई बच्चों का खेल नहीं”| इस काम में अक्सर हमारे मददगार होते हैं किस्से और कहानियाँ | कुछ किस्से दादी –नानी के जमाने से चले आ रहे हैं जो पुरातन होने के बावजूद चिर नूतन हैं | आश्चर्य होता है कि आज कल के बच्चे भी उन किस्सों को मुँह में ऊँगली दबा कर वैसे ही सुनते हैं जैसे कभी हमने सुने थे | फिर भी बदलते ज़माने के साथ दुनिया भर के बच्चों की चुनौतियां बढ़ी हैं तो उन किस्सों को सुनाने की दादी-नानी की चुनौती भी | दुनिया भर का बाल साहित्य दादी नानी की इस चुनौती को कम करने का प्रयास है | ये अलग बात है बच्चों की मांग के अनुसार ना बाल फिल्में बनती हैं न बाल साहित्य लिखा जाता है | मजबूरन बच्चों को बड़ों की किताबों में मन लगाना पड़ता है | जो उनके लिए दुरूह होती है | जिस कारण बचपन से ही उनकी साहित्य से दूरी हो जाती है | ये ख़ुशी की बात है कि इधर कई साहित्यकार बाल साहित्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझ कर इस दिशा में आगे आये हैं | बाल साहित्य केवल किस्से कहानी तक सीमित मनोरंजन भी हो सकता है पर अधिकतर का  उद्देश्य ये होता है कि किस्से कहानी के माध्यम  से उन्हें कोई शिक्षा  दे दी जाए या उनके मन की कोई गुत्थी सुलझा दी जाये | अलग –अलग वय के बच्चों की अलग –अलग समस्याएं होती हैं और उनके अलग –अलग समाधान | अपने बच्चों को बाल साहित्य से सम्बंधित कोई किताब खरीदते समय ये देखना जरूरी होता है कि वो किस उम्र के बच्चों की है | लेखिका -इंजी.आशा शर्मा आज बाल साहित्य की एक ऐसी ही किताब की चर्चा कर रही हूँ जिसका नाम है “डस्टबिन में पेड़” इसको लिखा है आशा शर्मा जी ने | जो लोग नियमित पत्र –पत्रिकाएँ पढ़ते हैं वो आशा जी की रचनात्मकता से जरूर परिचित होंगे |आशा जी निरंतर लिख रही हैं और खास बात ये हैं कि कविता कहानी से लेकर बाल साहित्य तक उन्होंने साहित्य के हर आयाम को छुआ है | उनसे मेरा परिचय उनकी लेखनी के माध्यम से ही हुआ था जो शमी के साथ और मजबूत हुआ | ये किताब आशा जी ने मुझे सप्रेम भेंट की | उस समय मैंने कुछ कहानियाँ पढ़ी फिर लेखन, पठन –पाठन सब कुछ जैसे कोरोना के ब्लैक होल में चला गया | इधर जो भी किताब उठाई वो आधी –अधूरी सी छूट गयी | यही हाल लिखने का भी रहा | आज जब संकल्प ले कर किसी किताब को पढने का मन बनाया जो ये झांकती हुई सी मिली | मुझे लगा इस समय के लिए ये किताब सबसे सही चयन है क्योकि  इंसान कितना भी बड़ा हो जाए उसके अन्दर एक बच्चा जरूर छिपा रहता है,  और क्या पता इसको पढ़कर मेरे अन्दर किताब पढने की जो धार कुंद हो गयी है वो फिर से पैनी हो जाए |   यकीन मानिए शुरू में तो यूँही पन्ने पलते फिर तो लगा जैसे समय कि ऊँगली पकड कर फिर से बचपन मुझे खींचे लिए जा रहा है | वो इमली खाना, या पेड़ों पर चढ़ने की कोशिश या फिर अपनी छोटी छोटी चिंताओं को घर के बड़ों ऐसे बताना जैसे उससे बड़ी समस्या कोई हो ही नहीं सकती और उनका हँसते –हँसते लोट –पोट हो जाना | प्रस्तुत संग्रह में करीब 25 कहानियाँ हैं  जो रोचक तो है हीं  शिक्षाप्रद भी हैं | जैसे ‘असली सुन्दरता ‘में ब्लैकी भालू अपने दोस्त की खरगोश की सुन्दरता देखकर खुद भी पार्लर जाता है और बाल सीधे व् नर्म करवा लेता है पर इससे उसकी समस्या कम करने के स्थान पर बढ़ जाती है | अंतत : उसे समझ आता है कि हम जैसे हैं वैसे ही सबसे अच्छे हैं | आजकल के बच्चों में भी सुदर दिखने का क्रेज है |माता –पिताखुद उन्हें पार्लर  ले जा रहे हैं | सुन्दर दिखने का ये बाज़ार खुद को कमतर समझने की नीव पर आधारित है | इस कहानी के माध्यम से बच्चों को जैसे है वैसा ही सबसे अच्छे हैं की शिक्षा भी मिल जाती है | ऐसी ही एक कहानी है ‘जिगरू मेनिया’ जिसमें जिगरू हाथी के कुश्ती में स्वर्ण पदक जीतते ही जंगल का हर जानवर अपने बच्चे को कुश्ती सिखाने में लग गया | अब जिराफ की तो गरदन ही बार –बार अखाड़े के बाहर निकल जाती और फाउल हो जाता | कमजोर जानवर तो बार –बार पिट जाते | अंत में फैसला हुआ कि हर कोई कुश्ती के लिए नहीं बना है किसी को ऊँची कूद तो किसी को भाला फेंकने  का खेल खेलना ज्यादा उचित है | वस्तुत : आज हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो गयी है कि सब चाहते हैं कि उनका बच्चा गणित व् विज्ञानं में अच्छा करके इंजीनियर बने पर क्या हर बच्चे की रूचि उसमें होती है ? किसी को कविता पसंद तो किसी को चित्रकारी | ये कहानी सांकेतिक भाषा में उसी समस्या का समाधान है … Read more

सुबह ऐसे आती है –उलझते -सुलझते रिश्तों की कहानियाँ

    अंजू शर्मा जी से मेरा परिचय “चालीस साला औरतें” से हुआ था | कविता फेसबुक में पढ़ी और परस्पर मित्रता भी हुई | इसी कविता की वजह से मैंने बिंदिया का वो अंक खरीदा था | उनका पहला कविता संग्रह “कल्पनाओं से परे का समय”(बोधि प्रकाशन) लोकप्रिय हुआ | और  मैं शुरू –शरू में उनको एक सशक्त कवयित्री के रूप में ही जानती रही परन्तु हौले –हौले से उन्होंने कहानियों में दस्तक दी और पहली ही कहानी से अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई | पिछले कुछ वर्षों से वो कहानी के क्षेत्र में तेजी से काम करते हुए एक सशक्त कथाकार के रूप में उभरी हैं | पिछले वर्ष उनका कहानी संग्रह आया, “एक नींद हज़ार सपने”(सामयिक प्रकाशन) और इस वर्ष भावना प्रकाशन से “सुबह ऐसे आती है “आया  | इसके अतिरिक्त डायमंड प्रकाशन से उनका उपन्यास “ शंतिपुरा- अ टेल  ऑफ़ लव एंड ड्रीम्स” आया है | इसके  अतिरिक्त ऑनलाइन भी उनका उपन्यास आया है | वो निरंतर लिख रही हैं | उनके साहित्यिक सफ़र के लिए शुभकामनाएं देते हुए आज मैं बात करुँगी उनके दूसरे कहानी संग्रह “ सुबह ऐसे आती है “ के बारे में ….   वैसे शेक्सपीयर ने कहा है कि “नाम में क्या रखा है” पर इस समय मेरे जेहन में दो नाम ही आ रहे हैं | उनमें से एक है “एक नींद हज़ार सपने” तो दूसरा “सुबह ऐसे आती है “ | एक कहानी संग्रह से दूसरे तक जाते हुए नामों की ये यात्रा क्या महज संयोग है या ये आती हुई परिपक्वता  की निशानी या  एक ऐलान | यूँ तो नींद से जागने पर सुबह आ ही जाती है | परन्तु सपनों भरी नींद से जागकर निरंतर परिश्रम करते हुए “सुबह ऐसे आती है “ का ऐलान एक समर्पण, निष्ठां और संकल्प का ऐलान है | तो साहित्यिक यात्रा के एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक ले जाता है |ऐसा कहने के पीछे एक विशेष उद्देश्य को रेखांकित करना  है | वो है एक स्त्री द्वारा अपने फैसले स्वयं लेने की शुरुआत करने का | यह एक स्त्री के जीवन में आने वाली सुबह है, जहाँ वो पितृसत्ता को नकार कर अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में लेने का संकल्प करती है | सुबह ऐसे आती है –उलझते -सुलझते रिश्तों की कहानियाँ अंजू शर्मा जी का कहानी कहने का एक सिग्नेचर स्टाइल है | वो कहानी की शुरुआत  बहुत ही इत्मीनान से करती हैं …शब्द चित्र बनाते हुए, और पाठक उसमें धंसता जाता है | हालाँकि इस कहानी संग्रह  में कहने का लहजा थोड़ा जुदा है पर उस पर अंजू शर्मा जी की खास शैली दिखाई देती है | जहाँ उनकी कवितायें बौद्धिकता का जामा  पहने होती हैं वहीँ कहानियाँ आस –पास के जीवन को सहजता से उकेरती हैं | पहले कहानी संग्रह में वे ज्यादातर वो कहानियाँ लायी थी जो समाजिक सरोकारों से जुडी हुई थी पर इस कहानी संग्रह में वो रिश्तों की उलझन से उलझती सुलझती कहानियाँ  लायी हैं | क्योंकि रिश्ते हमारे मन और भावनाओं से जुड़े हैं इसलिए  ज्यादातर कहानियों में पात्रों का मानसिक अंतर्वंद व् आत्म संवाद उभरकर आता है | रिश्तों के सरोकार भी सरोकार ही होते हैं | जहाँ सामाजिक सरोकार सीधे समाज या समूह की बात करते हैं वहीँ रिश्ते से जुड़े सरोकार व्यक्ति की बात करते हुए भी समष्टि तक जाते हैं | आखिर मानवीय संवेदना एक जैसी ही तो होती है | अंजू जी सपष्ट करती हैं कि, “सरोकारों से परे कोई रचना शब्दों की कीमियागिरी तो हो सकती है पर वो कहानी नहीं बन सकती | लिहाजा सरोकारों का मुझे या मेरा सरोकारों से दूर जाना संभव नहीं | तो भी कहानियों में पढ़ा जाने लायक कहानीपन बना रहे बस इतनी सी कोशिश है |” सबसे पहले मैं बात करुँगी संग्रह की पहली कहानी “उम्मीदों का उदास पतझड़ साल का आखिरी महीना है” | ये कहानी प्रेम कहानी है | यूँ तो कहते हैं कि हर कोई अपनी पहली कविता प्रेम कविता ही लिखता है और संभवत: पहली कहानी प्रेम कहानी ही लिखता होगा | प्रेम पर लिखना कोई खास बात नहीं है | खास बात ये है कि प्रेम पर जब इतना लिखा  जा रहा हो तो उसे अलहदा तरीके से लिखना ताकि ध्यान खींचा जा सके | इस कहानी में कुछ ऐसा ही है | मुझे लगता है किप्रेम के संयोग और वियोग में संयोग लिखना आसान है क्योंकि वहां शब्द साथ देते हैं | मन साथ देता है और पाठक सहज जुड़ाव महसूस करता है परन्तु वियोग में शब्द चुक जाते हैं | प्रकृति भी विपरीत लगती है | तुलसीदास जी ने बहुत सुंदर लिखा है, “घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥“ जो पीड़ा होती है सब मनोभावों में अन्तर्निहित होती है | सारा कुछ मानसिक अंतर्द्वंद होता है | ये कहानी भी कुछ ऐसी ही कहानी है | जहाँ लेखिका ने वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है | जिसमें सारी  प्रकृति सारे मनोभाव निराशा और अवसाद के स्वर में बोलते हैं | एक प्रेम कहानी के ऐसे धीरे धीरे त्रासद अंत की ओर बढ़ते हुए पाठक का दिल टूटता जाता है | यहीं कहानी यू टर्न  लेती है, जैसे बरसात के बाद धूप  खिल गयी हो | दरअसल कहानी एक रहस्य के साथ आगे बढती है और पूरे समय रहस्य बना रहता है | यह इस कहानी की विशेषता है |   “सुबह ऐसे आती है” कहानी एक स्त्री के अपने भावी बच्चे के साथ खड़े होने की है | माँ और बच्चे का रिश्ता दुनिया का पहला रिश्ता है और सबसे अनमोल भी | पितृसत्ता बच्चे के नाम के आगे पिता का नाम जुड़ने/न जुड़ने से उसे जायज या नाजायज भले ही कह दे पर इससे माँ और बच्चे के बीच के संबंद्ध पर कोई फर्क पड़ता | यूँ पति-पत्नी के रिश्तों में विचलन मर्यादित तो नहीं कहा जा सकता पर अस्वाभाविक भी नहीं है | कई बार ये विचलन पूर्व नियोजित नहीं होता | कई बार जीवन नदिया में धीरे –धीरे कर के बहुत सारे कारण इकट्ठे हो जाते हैं जब संस्कार और मर्यादाएं अपना बाँध तोड़ देते हैं | ऐसी ही एक स्त्री है … Read more

सिंदूर खेला – पति –पत्नी के उलझते –सुलझते रिश्तों की कहानियाँ

सिंदूर खेला  “सिंदूर खेला” रंजना बाजपेयी जी का नया कहानी संग्रह है | इससे पहले उनके दो उपन्यास “अनावरण” और “प्रराब्द्ध और प्रेम” प्रकाशित हो चुके हैं | ये उनका पहला कहानी संग्रह व् तीसरी किताब है जो Evincepub Publishing से आई है | रंजना बाजपेयी जी काफी समय से लेखन में सक्रीय हैं | ख़ास बात ये हैं कि लेखन के साथ –साथ वो गायन में भी पारंगत हैं | ऐसी में उनकी किताब के प्रति सहज उत्सुकता थी | ये किताब मैंने पुस्तक मेले से पहले ही खरीद ली थी पर व्यस्तता के कारण तब नहीं पढ़ सकी | आखिर कार आज इसको पढ़ ही लिया |   सिंदूर खेला दरअसल एक त्यौहार है जो पश्चिमी बंगाल में मनाया जाता है | दशहरा के बाद देवी विसर्जन के दिन महिलाएं देवी प्रतिमा के पास एकत्र हो कर उन पर सिंदूर चढ़ाती हैं | फिर वही सिंदूर एक दूसरे के गाल, माँग, चूड़ियों, गले में लगाती हैं | ऐसा करके वो माँ से अखंड सौभाग्य का वरदान मांगते हुए उनके फिर अगले साल आने की कामना कसरती हैं | अगर देखा जाए तो सिंदूर भारतीय स्त्री के सौभाग्य की निशानी है | इस लिए उसके लिए बहुत अहम् स्थान रखता है | पति –पत्नी को तो ये सिंदूर बांधता ही है |  प्रेमी प्रेमिका के रिश्ते का रंग भी सिंदूरी ही है | ये प्रणय का रंग है मिलन का रंग है | उगता हुआ सूरज सिंदूरी आभा लिए पूरी धरती को हरित बना देता है तो दिन और रात के मिलन की साक्षी बनी संध्या के आकाश का रंग सिंदूरी ही है | ये अलग बात है कि आज शहर में महिलाएं सिंदूर नहीं लगाती है पर फिर भी पति –पत्नी के रिश्ते का रंग सिंदूरी ही है | जो ना लाल है ना पीला …उनके बीच का, उनके शारीरिक ही नहीं आत्मिक मिलन  का प्रतीक | अगर मैं सिंदूर खेला की बात करूँ तो इसकी सारी कहानियाँ पति –पत्नी के रिश्तों के ही अलग –अलग आयाम को प्रस्तुत करती हैं | कहीं कहीं वो रिश्ता प्रेमी –प्रेमिका का भी है पर वो गहरा आत्मिक प्रेम  लिए हुए है |  वैसे इसमें “ सिंदूर खेला “ नाम की कहानी भी है | जो संग्रह का शीर्षक रखे जाने को सिद्ध करती है | सिंदूर खेला – पति –पत्नी के उलझते –सुलझते रिश्तों की कहानियाँ कहानियों के बारे में रंजना जी कहती हैं कि, “किसी रचना का बीजारोपण यथार्थ की मरुभूमि पर होता है | फिर वो लेखक के मानस  और ह्रदय में पनपती और रोपित होकर आकार पाती है | तत्पश्चात हमारी कल्पना के विशाल वृहद् आकाश में उन्मुक्त विचरण करती हुई विसातर पाती है तब अक्षर यात्रा का शुभारंभ होता है और रचना प्रकट होती है | मेरा मानना है कि यथार्थ और कल्पना लोक का सफ़र ही होता है लेखन |” इसी को सिद्ध करते हुए उनकी कहानियों के ताने –बाने के धागे यथार्थ के करघे पर चढ़ कल्पना के रंग भरते जाते हैं और कहानी कुछ जानी पहचानी सी लगने लगती है |   पहली कहानी “वापसी” एक ऐसे ब्राह्मण परिवार की कहानी है | जिनका परिवार मांस –मदिरा से दूर थोड़े में संतुष्ट है | कला और संस्कृति की उन्नति ही उनके जीवन को सरस बना रही है | परिवार की दो बेटियाँ हैं इरा और इला | इरा का विवाह माता –पिता धूम –धाम से करते हैं | पर थोड़े दिन में  कितना पता लगाया जा सकता है | उस परिवार का मूल मन्त्र है पैसा …कमाना और उड़ाना | मांस मदिरा किसी चीज से परहेज नहीं | इला  बिलकुल विपरीत वातावरण में इरा सामंजस्य बिठाने की असफल कोशिश करती है और अनन्त : घर वापसी का इरादा कर लेती है | छोटी बहन को अरेंज मैरिज से भय हो जाता है | वो अपनी पसंद के लड़के से विवाह की बात करती है | परिवार उसकी बात मान लेता है | पर प्रेम कोई यूं हो जाने वाली चीज नहीं हैं | उस प्रेम को समझने, मानने  स्वीकार करने की यात्रा है वापसी |   आज लडकियां कैरियर बनाते हुए विवाह की उम्र से आगे निकल जाती हैं | पहले उनका फोकस केवल कैरियर पर होता है | फिर धीरे धीरे उन्हें विवाह से ही विरक्ति हो जाती हैं | “प्रेम की नदियाँ सूखने लगती हैं | ऐसी ही एक कहानी है “प्रीटी लेडी” यानी  इला की  | लड़की क्या  स्त्री है इला , लगभग 45 वर्ष की | लगभग ५० वर्ष का नदीम उर्फ़ आकाश जो फेसबुक के माध्यम से फेक आई दी द्वारा उस से प्रेम  प्रदर्शित कर तो कभी किसी अजनबी के रूप् में उसे आते –जाते उसे जी भर निहार कर उसके मन मेंअपने प्रति अच्छा महसूस कराकर उसके मन में प्रेम  के अंकुर उत्पन्न  कर देता है | फिर रास्ते से हट जाता है | अभी तक कैरियर से संतुष्ट रहने वाली इला को  जीवन में प्रेम की कमी महसूस होने लगती है और इस बार वो माँ के पसंद के लड़के के लिए बिना देखे हाँ कर देती है | कहानी स्वीट सी है फिर भी मैं फेक आईडी पर ज्यादा बात ना करने की सलाह ही दूँगी लड़कियों को | क्योंकि हर कहानी सुखान्त  नहीं होती |   “दूसरी औरत” कहानी एक ऐसी स्त्री के दर्द की कहानी है जिसका पति उसे प्यार तो करता है, उसका हर तरीके से ख्याल रखता है परन्तु अपनी एक महिला मित्र को अपनी पत्नी के ऊपर हमेशा वरीयता देता है | यहाँ तक कि खाने पर उसे परिवार समेत बुलाने पर अपनी पत्नी के बनाए खाने के स्थान पर उस महिला दोस्त द्वारा बनाए गए व्यंजनों की तारीफ़ करता है | महिला मित्र का पति कहीं बाहर रहता है इसलिए उनके घर की जरूरतों और मेहमानों को स्टेशन से लाने , ले जाने का जिम्मा भी वो खुद ही ओढ़े रहता है | ऐसे में पत्नी को खुद का दूसरी औरत या द्वितीय प्राथमिकता  समझना गलत नहीं है | उस महिला मित्र द्वारा भी कभी –कभी खल चरित्र व्यक्त हो ही जाता है | अन्तत: बच्चों के विवाह के बाद पत्नी एक कठोर फैसला लेती है | … Read more