कुल्हड़ भर इश्क -बनारसी प्रेम कथा
कुल्हड़ भर इश्क एक बनारसी हल्की -फुलकी प्रेम कथा है | बिलकुल बनारसी शंकर जी की बूटी की तरह जिसका नशा थोड़ी देर चढ़े खूब उत्पात मचाये और फिर उतर जाए | प्रेम कहानियों में भी मुझे थोड़ी गंभीरता पसंद है | जो मुझे विजयश्री तनवीर ( अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार ) और प्रियंका ओम ( मुझे तुम्हारे जाने से नफरत है ) अक्टूबर जंक्शन (दिव्य प्रकाश दुबे ) अंजू शर्मा (समय रेखा ) में दिखती है | ज्यादातर मैं उन किताबों पर नहीं लिखती हूँ जो मुझे बहुत पसंद नहीं होती हैं | इसका कारण है कि समयाभाव के कारण मैं उन किताबों पर भी नहीं लिख पाती जो मुझे पसंद आई हैं | फिर उन पर लिखना संभव नहीं जो मुझे पसंद नहीं आई हैं | फिर भी मैंने इस बनारसी प्रेम कथा को लिखने के लिए चुना क्योंकि मुझे लगता है कि ये किताब युवाओं को पसंद आ सकती है जो कॉलेज में पढ़ रहे हैं | जिनकी उम्र किशोरावस्था से लेकर २४ -२५ वर्ष तक है | कॉलेज में पढ़ते हैं |जिन्हें नौकरी के लिए पढाई और इश्क दोनों को संभालना पड़ता है | मैंने भी एक युवा समीक्षक की समीक्षा को पढ़कर ही इसे खरीदने का मन बनाया था |अमेजॉन पर इसके ढेर सारे रिव्यू इसके गवाह है | वैसे भी फिल्म हो, उपन्यास हो या फैशन युवा जिसे पसंद करते हैं वो बहुत जल्दी लोकप्रिय हो जाता है | किस किताब की चर्चा दस साल/20 साल बाद भी होगी ये समय तय करता है | दूसरी बात इस किताब पर लिखने के पक्ष में ये है कि किताब के लेखक कौशलेन्द्र मिश्र की उम्र मात्र 22 वर्ष है | और उनके प्रथम प्रयास के रूप में इसे उचित ठहराया जा सकता है | इस पर लिख कर नवांकुर कलम को प्रोत्साहित करना मुझे अपना दायित्व लगा | मैने एक बात गौर की है कि इधर बहुत सारी किताबें वाराणसी की पृष्ठभूमि से आ रही हैं | बनारस के घाट वहाँ कि ठंडाई ,जीवन नदिया और दार्शनिकता इन किताबों की खासियत है | अभी कुछ समय पहले की बात है कि मुझे वाराणसी जाने का बहुत मन कर रहा था | क्योंकि मेरा जन्म वाराणसी में हुआ है और बाद में भी अक्सर पिताजी बाबा विश्वनाथ के दर्शन के लिए हम लोगों को ले जाते रहे है | जिस कारण वहां से लगाव व् वहाँ जाने की इच्छा स्वाभाविक ही लगी | परन्तु एक दिन एक किताब पढ़ते -पढ़ते अचानक क्लिक किया कि साहित्य में वाराणसी का बहुत अधिक वर्णन पढने से अवचेतन में ये इच्छा जाग्रत हुई | ये एक शोध का विषय भी हो सकता है कि कितनी किताबें अभी हाल में बनारस की पृष्ठभूमि पर लिखी गयीं है | फिलहाल इतना तो कह सकते हैं कि वाराणसी का नशा फिलहाल साहित्य से जल्दी उतरने वाला नहीं है | इसका कारण है वहां की हवाओं में घुली दार्शनिकता | कुल्हड़ भर इश्क -बनारसी प्रेम कथा तो चलिए लौट कर आते हैं कुल्हड़ भर इश्क पर जिसे कौशलेन्द्र मिश्र ने काशीश्क का सबटाइटल भी दिया है | कौशलेन्द्र ने अपना बी ए (हिंदी ऑनर्स ) और बी ऐड बी एच यू से ही किया है फिलहाल वो वहीँ से हिंदी में परा स्नातक कर रहे हैं | कहानी भी बी ए, बी ऐड से गुज़रती हुई परास्नातक तक पहुँचती हैं | यानी कि कहानी की बुनावट गल्प के साथ सत्य की भी जरूर होगी | तभी हॉस्टल का जीवन, लड़कियों को ताकते और उनके पीछे भागते लड़के , पढाई के दौरान परवान चढ़ती प्रेम कहानियाँ ,जिनमें से कुछ कॉलेज बदलते ही बदल जाती हैं और कुछ अटेंडेंस रजिस्टर की तरह हमेशा के लिए बंद हो जाती है | तो कुछ ऐसी होती है जो किसी मोड़ पर अचानक से बिछुड़ जाती है | ये कहानियाँ ही खास कहानियाँ हैं क्योंकि इनकी हूक जिन्दगी में और कैरियर में हमेशा ही रहती हैं | हम सदियों से सुनते आये हैं कि कॉलेज का समय जीवन बनाता भी है और बिगाड़ता भी है | इस लिए कहानी की शुरुआत करते समय ही कौशलेन्द्र ये इच्छा जताते हैं कि विद्यार्थियों के लिए इश्क की कोई खुराक होनी चाहिए जिस पर मार्कर से निशान लगा हो | बस इतना पीना है | कहने का तात्पर्य ये है कि कुल्हड़ भर इश्क को घूँट -घूँट पीना है ताकि पढाई भी चलती रहे और प्रेम भी | क्योंकि अक्सर इन प्रेम प्रसंगों के चलते “ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम ” वाली स्थिति हो जाती है | प्रेमियों की कहीं और शादी हो जाती है और कैरियर की नैया बीच भंवर में डूब जाती है | बहुत से बच्चों को इस उम्र में भटक कर कैरियर बर्बाद करते देखा है इसलिए कौशलेन्द्र की इस बात कमें पुरजोर समर्थन करती हूँ | तो आते हैं कहानी पर |कहानी सीधी सरल है | कहानी के नायक सुबोध को अपनी कक्षा में पढने वाली रोली से प्रेम हो जाता है | सुबोध ब्राह्मण है और रोली ठाकुर | रोली थोड़ी टॉम बॉय टाइप की है | पर सुबोध का लगातार पीछा करना एक दिन रोली को भी प्रेम की गिरफ्त में ले ही लेता है | दोनों पढ़ते भी हैं और प्रेम को भी निर्धारित समय देकर संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं | उनकी लव मैरिज में घरवालों को भी दिक्कत नहीं है | बस शर्त नौकरी की है | न सिर्फ रोली के घरवाले सुबोध की नौकरी चाहते हैं बल्कि सुबोध के पिता भी नौकरी वाली बहु चाहते हैं ताकी लव मैरिज और नौकरी वाली बहु के होने से विवाह करने के उनक्ले व्यवसाय में भी इजाफा हो | दोनों मेहनत करते हैं | प्रयास करते हैं | इस समय देश की राजनीति रंग लाती है और कुछ प्रदेशों में शिक्षकों के चयन की परीक्षा रद्द हो जाती है | अब वो मिलते हैं या बिछुड़ते हैं ये तो आप किताब पढ़ कर ही जानेगे | कहानी जैसे -जैसे आगे बढती है थोड़ी संजीदा होती है …या ये कहना ज्यादा सही रहेगा कि कुल्हड़ भर | रोली का किरदार तेज तर्रार होते हुए भी प्रभावित करता है | किताब … Read more