अक्टूबर जंक्शन -जिन्दगी के फलसफे की व्याख्या करती प्रेम कहानी
वास्तवमें प्रेम क्या है ? इसकी कोई परिभाषा नहीं है और हम सब इसे अपनी -अपने तरह से परिभाषित करने का प्रयास करते हैं | ऐसा ही एक प्रयास दिव्य प्रकाश दुबे जी ने उपन्यास अक्टूबर जंक्शन में भी किया है | ये किताब 2017 से दैनिक जागरण की बेस्ट सेलर में शामिल है | इसका कारण है कि ये सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है | इसमें प्रेम कथा के साथ -साथ जीवन का फलसफा व् बहुत सारा दर्शन भी है | अक्टूबर जंक्शन -जिन्दगी के फलसफे की व्याख्या करती प्रेम कहानी “हमारी दो जिंदगियां होती हैं | एक वो जो हम जीते हैं और दूसरी वो जो हम जीना चाहते हैं | ये कहानी उसी दूसरी जिन्दगी की कहानी है |” ‘ अक्टूबर जंक्शन ‘एक ऐसा उपन्यास है जो सुदीप यादव और चित्रा पाठक की अनोखी प्रेम कहानी के साथ रिश्तों को, जिन्दगी के फलसफे को और सच व स्वप्न के बीच की खाली जगह समझने और उसकी व्याख्या करने की भी कोशिश करता है | ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जिसमें एक ‘सैड ट्यून’ लगातार पीछे बजती रहती है | कहानी के तेज प्रवाह के साथ आगे बढ़ते हुए भी ऐसा लगता है पीछे कुछ छूटा जा रहा है जिसे थामना है, पकड़ कर रखना है ..पर ये संभव नहीं पाता , ना कहानी में ना प्रेम में और ना ही जीवन में | कहानी के नायक सुदीप और चित्रा की पहली मुलाक़ात बनारस के अस्सी घाट पर होती है | बनारस , एक ऐसा शहर जो सच और सपने के बीच में बसता है | कोई यहाँ सच ढूँढने आता है तो कोई सपना भूलने | सुदीप और चित्रा भी यहाँ कुछ ऐसी ही वजह से आये हैं | सुदीप यादव सुदीप यादव केवल बारहवीं पास है | उसने आगे पढाई नहीं की लेकिन लक्ष्मी उसकी उँगलियों पर खेलती है | वो बहुत ही कम उम्र करोणपति बन गया था | आज ‘बुक माय ट्रिप’ कंपनी का मालिक है | पेज थ्री सेलेब्रेटी है | उसके हजारों -लाखों फोलोअर्स हैं | आये दिन अखबार में उसकी खबरें छपती रहती हैं | लेकिन आज वो बनारस आया है ताकि शांत दिमाग से अपनी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण फैसला ले सके | ये फैसला है अपनी कम्पनी के कुछ शेयर बेंचने का | इस पैसे से वो अपनी कम्पनी को और ऊँचाइयों पर ले जा सकेगा परन्तु उसका मालिकाना ह्क थोडा घटेगा | अपने सपने को किसी दूसरे के हाथों सौंप देना एक कठिन निर्णय है | एक तरफ जहाँ वो असमंजस में है वहीँ काम का अतरिक्त दवाब उसके जीवन में उसके खुद के लिए जीने वाले समय को चुरा रहा है | सपने के साथ आगे और आगे भागते हुए भी उसे विरक्ति हो रही है | वो हर जगह पहचान लिए जाने से ऊब चुका है | क्या यही जीवन है ? क्या बस यही उसका सपना था ? वो अभी 25 साल का है | पर वो 35 में रिटायरमेंट लेना चाहता है | दौड़ -भाग से थककर सुस्ताना चाहता है | अपनी जिन्दगी थोड़ा अपने लिए बिताना चाहता है | चित्रा पाठक चित्रा पाठक एक लेखिका है | उम्र २६ -२७ वर्ष , दो वर्ष पूर्व उसका तलाक हो गया था | वो उपन्यास लिख रही है | उसका सपना है इस उपन्यास को लिखकर नाम , शोहरत और बहुत से पैसे कमाना | वो पेज थ्री सेलेब्रिटी बनना चाहती है | वो इतना ऊँचा उठना चाहती है कि कोई उसे इग्नोर ना कर सके | कभी कहानी साथ छोड़ देती है तो कभी पात्र मुकर जाते हैं | उसे लगता है कि वो शायद इसे पूरा नहीं कर पाएगी | एक अजीब सी निराशा उसे घेरे हुए है | उसकी आँखों में सपने हैं आशाएं और निराशाएं हैं | एक का सपना उसके गले का फंदा सा बना उसे खींच रहा है और दूसरी पसीने से लथपथ होते हुए भी अपने सपने की डोर छोड़ना नहीं चाहती | विरोधाभास ही तो है कि सुदीप को आसमान से जमीन बेहद सुकून भरी दिखाई देती है तो चित्रा को जमीन से आसमान बेहद उम्मीदों भरा | ये प्रेम कथा है या नहीं पर ये कहानी अपोजिट अट्रैकट्स की भी नहीं है और ना पहली नज़र का प्यार है | खास बात ये है कि अलग अलग स्थिति में होते हुए भी दोनों एक दूसरे की तकलीफ को समझ पाते हैं, ढांढस बंधाते हैं हिम्मत देते हैं | दोनों को बस एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है …और लगता है कि यही वो जगह है जहाँ वो अपने मन को खाली कर सकते हैं | अपने मन के टनों बोझ का खाली हो जाना एक ऐसा अनुभव है जिसे वो दोहराना तो चाहते हैं पर उस स्पेस को भी बनाये रखना चाहते हैं ताकि ये सुकून का अहसास हमेशा बना रहे | इसलिए पहली बार दस अक्टूबर 2010 (10-10-10) को मिलने के बाद वो अगली बार दस अक्टूबर 2011 को मिलने का वादा कर अपने अपने रास्ते अपनी -अपनी जिंदगियों में डूब जाते हैं | ये वाद महज जुबानी नहीं है इसके लिए हर बार वो जापानी लेखक मुरकामी की किताब पर अगली तारीख लिखते हैं | इस दौरान वो एक दूसरे को कॉल भी नहीं करते | लेकिन अगली दस को वो फिर मिलते हैं , फिर अगली 10 को | 2010 से 2020 के दरमियान हर 10 अक्टूबर को मिलकर वो महज 20 दिन ही साथ रहते हैं | पर ये छोटा सा साथ उनके 364 दिनों के लिए एक टॉनिक की तरह काम करता है | वो समझते हैं इस ३६४ दिन के इंतज़ार और मिलन की अहमियत …इसलिए हर बार मिलते हैं और हर बार मिलने का वादा करते हैं | ये किरदार सच और सपने के बीच की छोटी सी खाली जगह में मिले थे | बंद मुट्ठी से खुली मुट्ठी भर ही हम जिन्दगी को छू पाते हैं | … Read more