महँगे काजू

काजू महँगे होते हैं इसमें कोई शक नहीं | पर क्या अपने नुकसान की भरपाई किसी दूसरे से कर लेना उचित है | पढ़िए लघुकथा … महँगे काजू  यशोदा जी ने डिब्बा खोलकर देखा 150 ग्राम काजू बचे ही होंगे | पिछले बार मायके जाने पर बच्चों के लिए पिताजी ने दिए थे | कहा था बच्चों को खिला देना | तब उसने काजू का भाव पूछा था | “कितने के हैं पिताजी ?” “1000 रुपये किलो”  “बहुत महँगे हैं ” उसने आँखें चौड़ी करते हुए कहा | पिताजी ने उसके सर पर हाथ फेर कर कहा ,” कोई बात नहीं बच्चों के लिए ही तो हैं , ताकत आ जायेगी |” वो ख़ुशी -ख़ुशी घर ले आई थी | बच्चे भी बड़े शौक से मुट्ठी-मुट्ठी भर के खाने लगे थे | १५ दिन में ८५० ग्राम काजू उड़ गए | इतने महंगे काजू  इतनी जल्दी खत्म होना उसे अच्छा नहीं लगा | सो डब्बे में पारद की गोली डाल  उसे पीछे छुपा दिया कि कभी कोई मेहमान आये तो खीर में डालने के काम आयेंगे, नहीं तो सब ऐसे ही खत्म हो जायेंगे  | फिर वह खुद ही भूल गयी | अभी आटे के लड्डू बनाते -बनाते उसे काजुओं के बारे में याद आया | उसने सोचा काजू पीस कर डाल देगी तो उसमें स्वाद बढ़ जाएगा |वर्ना रखे-रखे  खराब हो जायेंगे | उसने झट से काजू के डिब्बे को ग्राइंडर में उड़ेल कर उन्हें पीस दिया | तभी सहेली मीता आ गयी और बातचीत होने लगी | दो घंटे बाद जब वो वापस लौटी और भुने आटे में काजू डालने लगीं तो उन्हें ध्यान आया कि जल्दबाजी में वो काजू के साथ पारद की गोली भी पीस गयीं हैं | अब पारद की गोली तो घुन न पड़ने के लिए होती है कहीं उससे बच्चे बीमार ना हो जाए  ये सोचकर उनका मन घबरा गया | पर इतने महँगे काजू फेंकने का भी मन नहीं हो रहा था | बुझे मन से उन्होंने बिना काजू डाले लड्डू बाँध लिए | फिर भी महंगे काजुओं का इस तरह बर्बाद होना उन्हें खराब लग रहा था | बहुत सोचने पर उन्हें लगा कि वो उन्हें रधिया को दे देंगी | आखिरकार ये लोग तो यहाँ -वहाँ हर तरह का खाते रहते हैं | इन्हें नुक्सान नहीं करेगा | सुबह जब उनकी कामवाली रधिया आई तो उन्होंने उससे कहा , ” रधिया ये काजू  पीस दिए हैं अपने व् बच्चे  के लिए ले जा | बहुत मंहगे हैं संभल के  इस्तेमाल करना | रधिया खुश हो गयी | शाम को उसने अपने बच्चे के दूध में काजू का वह पाउडर डाल दिया | देर रात बच्चे को दस्त -उल्टियों की शिकायत होने लगी |  रधिया  व् उसका पति बच्चे को लेकर अस्पताल भागे | डॉक्टर  ने फ़ूड पोईजनिंग  बतायी | महँगे -महंगे इंजेक्शन लगने लगे | करीब ६ -सात हज़ार रूपये खर्च करने के बाद बच्चा  खतरे के बाहर हुआ | रधिया ने सुबह दूसरी काम वाली से खबर भिजवा दी की वो दो तीन दिन तक काम पर नहीं आ पाएगी …बच्चा बीमार है | यशोदा जी बर्तन साफ़ करते हुए बडबडाती जा रहीं थी … एक तो इतने महंगे काजू दिए , तब भी ऐसे नखरे | सही में इन लोगों का कोई भरोसा नहीं होता | सरिता जैन * किसी को ऐसा सामान खाने को ना दें जो आप अपने बच्चों को नहीं दे  सकते हैं | यह भी पढ़ें … सुरक्षित छुटकारा आपको  लेख “महँगे काजू  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  keywords:cashew nuts, poor people, poverty, costly items

जिंदगी मेरे दरवाजे पर

पता नहीं क्यों इस कविता के बारे में लिखते हुए मुझे ये गाना याद आ रहा है , ” जिन्दगी मेरे घर आना …आना जिंदगी” सच है हम कितनी शिद्दत से जिंदगी को बुलाते हैं पर ये जिंदगी ना जाने कहाँ अटकी पड़ी रहती है कि आती ही नहीं … और हम उदासियों की गिरफ्त में घिरते चले जाते हैं | अगर आप जानना चाहते हैं कि ये जिंदगी क्यों नहीं आती तो ये कविता जरूर पढ़ें … जिंदगी मेरे दरवाजे पर  आज  भोर से थोड़ा पहले फिर  खड़ी  थी जिंदगी मेरे दरवाजे पर , दी थी दस्तक , हौले से पुकारा था मेरा नाम , और हमेशा की तरह कान पर तकिया रख कुछ और सोने के लालच में , उनींदी आवाज़ में , लौटा दिया दिया था मैंने , आज नहीं कल आना … बरसों से यही तो हो रहा है जिन्दगी आती है द्वार खटखटाती है और मैं टाल देती हूँ कल पर और भूल जाती हूँ हर रोज  उठते ही कि मैंने ही दिखाया है उसे बाहर का रास्ता हर रोज बोझिल मन से उन्हीं कामों को  करते हुए ऊबते झगड़ते कोसती हूँ किस्मत कहाँ अटक गयी है कुछ भी तो नहीं बदल रहा जिन्दगी में साल दर साल उम्र की पायदान चढ़ते हुए भी ना जाने कहाँ खो गयी है जिन्दगी जो बचपन में भरी रहती थी हर सांस में बात में उल्लास में बढती उम्र की उदासियों के गणित में ये =ये के  की प्रमेय को सिद्ध करने में बस एक मामूली  अंतर बदल देता है सारे परिणाम कि बचपन में हर सुबह हल्की सी दस्तक पर हम खुद ही खोलते थे मुस्कुरा कर दरवाजा जिन्दगी के लिए सरिता जैन यह भी पढ़ें … मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “जिंदगी मेरे दरवाजे पर  “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, poetry, Life, door, Liveliness

Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें

                    एक तरफ बुजुर्ग होते माता -पिता की जिम्मेदारी दूसरी तरह युवा होते बच्चों के कैरियर व्  विवाह की चिंता और इन सब से ऊपर अपने खुद के स्वास्थ्य का गिरते जाना या उर्जा की कमी महसूस होना | midlife जिसे हम प्रौढ़ावस्था भी कहते हैं  वो समय है जब लगातार काम करते -करते व्यक्ति को महसूस होने लगता है कि उसकी जिन्दगी काम के कभी खत्म न होने वाले चक्रव्यूह में फंस गयी है |तबी कई भावनात्मक व् व्यवहारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं | जिसे सामूहिक रूप से midlife क्राइसिस के नाम से जाना जाता है | Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें       याद है जब पहला सफ़ेद बाल देखा था … दिल धक से रह गया होगा | क्या बुढ़ापा आने वाला है ? अरे हम तो अपने लिए जिए  ही नहीं अब तक | तभी किसी हमउम्र की अचानक से मृत्यु की खबर आ गयी |कल तक तो स्वस्थ था आज अचानक … क्या हम भी मृत्यु की तरह बढ़ रहे हैं| क्या इतनी जल्दी सब कुछ खत्म होने वाला है |45 से 65 की उम्र में अक्सर लोगों को एक मनोवैज्ञानिक समस्या का सामना करना पड़ता है , जिसे midlife crisis के नाम से जाना जाता है | इसमें मृत्यु भय , अभी तक के जीवन को बेकार समझना , जैसा जी रहे थे उससे बिलकुल उल्ट जीने की इच्छा , बोरियत , अवसाद , तनाव या खुद को अनुपयोगी समझना आदि शामिल हैं | ये मनोवैज्ञानिक समस्या शार्रीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है |                              उदहारण के तौर पर  कल रास्ते में  साधना जी मिल गयीं | बहुत थकी लग रहीं थी | धीमे -धीमे चल रही थीं | मैंने हाल चल पूंछा तो बिफर पड़ी , ” क्या फायदा हाल बताने से ,  डायबिटीज है , पैरों में ताकत नहीं लगती ऊपर से अभी घुटने का एक्स रे कराया तो पता चला कि हड्डी नुकीली होना शुरू हो गयी है | डॉक्टर के मुताबिक अभी अपना ध्यान रख लो तो  जल्दी ऑपरेशन करने की नौबत नहीं आएगी  अब आप ही बताइये सासू माँ का हिप रिप्लेसमेंट हुआ है , बेटे के बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं , बाकी रोज के काम तो हैं ही ऐसे में तो लगता है कि जिन्दगी बस एक मशीन बन कर रह गयी है |                    ऐसा नहीं है कि ये समस्या सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुष भी इससे अछूते नहीं हैं | रमेश जी  ऑफिस से लौटे ही थे कि पत्नी ने नए सोफे  के लिए फरमाइश कर दी | बस आगबबुला हो उठे | तुम लोग बस आराम से खर्चा करते रहो और मैं गधो की तरह कमाता रहूँ | अपने लिए न मेरे पास समय है न ही  तुम लोगों के बिल चुकाते -चुकाते पैसे बचते हैं |                 ये दोनों ही mid life crisis के उदाहरण हैं |इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे कारण होते हैं | जैसे महिलाओं का मेनोपॉज व् माता -पिता की मृत्यु या किसे हम उम्र प्रियजन को खोना , अपने सपनों के पूरा न हो पाने का अवसाद ( इस उम्र में व्यक्ति को लगने लगता है कि उसके सपने अब पूरे नहीं हो पायेंगे क्योंकि उम्र निकल गयी है | Midlife Crises के सामान्य लक्षण                                   यूँ तो midlife crisis के अनेकों लक्षण होते हैं जो अलग -अलग व्यक्तियों के लिए अलग होते हैं पर यहाँ हम कुछ सामान्य लक्षणों की चर्चा कर रहे हैं | mood swings _ये लक्षण सामान्य तौर पर सबमें पाया जाता है | लोग जरा सी बात पर आप खो बैठते हैं | इसका बुरा प्रभाव रिश्तों पर भी पड़ता है | अवसाद और तनाव – इसका शिकार लोग दुखी restless या तनाव में रहते हैं | खुद के लुक्स पर ज्यादा ध्यान –  उम्र बढ़ने को नकारने के लिए खुद पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं | स्रि बोरियत – ऐसा लगता है कि वो जीवन में कहीं फंस गए हैं जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है | जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता | मृत्यु के विचार – दिमाग पर अक्सर  मृत्यु के विचार छाए रहते हैं | midlife crisis से निकलने के उपाय                                midlife crisis से निकलने के लिए कुछ सामान्य  उपाय अपनाए जा सकते हैं | संकल्प –                          बीमारी कोई भी हो सुधर का पहला रास्ता वो संकल्प है जिसके द्वारा ह्म ये स्वीकार करते हैं कि मेरी जिंदगी जैसे है वैसे नहीं रहनी चाहिए मुझे इसे बदलना है | अगर आप भी ये संकल्प ले लेते हैं तो समझिये आधा रास्ता तय हो गया | ध्यान                            ध्यान एक बहुत कारगर उपाय है जो आपको अपनी तात्कालिक समस्याओं के कारण उत्त्पन्न तनाव व् अवसाद को दूर करने में सहायक है | दिमाग का स्वाभाव है कि वो एक विचार से दूसरे विचार में घूमता रहता है | कभी नींद न आ रही हो तो आपने भी ध्यान दिया होगा कि इसकी वजह ये नहीं थी कि आप रकिसी एक विचारपर केन्द्रित थे बल्कि आपका दिमाग एक विचार से दूसरे विचार पर कूद रहा था | जिसे आम भाषा में ” monkey mind” कहते हैं | नेयुरोलोजिस्ट के अनुसार ये DMN या DEFAULT MODE NETWORK है | ध्यान  मेडिटेशन हमें किसी एक विचार पर ध्यान  केन्द्रित अ सिखाता है | जिस कारण विचार भटकते नहीं है और गुस्सा , अवसाद व् तनाव जो कि अनियंत्रित विचारों का खेल है काफी हद तक कम हो जाता है |  ख़ुशी की तालाश छोड़ दें                                   सुनने में अजीब … Read more

खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग

      और क्या चल रहा है आजकल .? क्या बताये मरने की भी फुरसत नहीं, और आपका, यही हाल मेरा है , समय का तो पता ही नहीं चलता , कब दिन हुआ , कब रात हुई … बस काम ही काम में निकल जाता है | दो मिनट सकूँ के नहीं हैं |                               दो लोगों के बीच होने वाला ये सामान्य सा वार्तालाप है , समय भगा चला जा रहा है , हर किसी के पास समय का रोना है ,परन्तु सोंचने की बात ये है कि ये समय आखिर चला कहाँ जाता है | क्या हम सब इतने व्यस्त हैं या खुद को इतना व्यस्त दिखाना चाहते हैं | खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग                                        मेरी एक रिश्तेदार हैं , जिनके यहाँ मैं जब भी जाती हूँ , कभी बर्तन धोते हुए , कभी खाना बनाते हुए या कभी कुछ अन्य काम करते हुए  मिलती हैं ,और मुझे देख कर ऐसा भाव चेहरे पर लाती हैं कि वो बहुत ज्यादा व्यस्त है उन्हें एक मिनट की भी बात करने की फुरसत नहीं है | उनके घर जा कर हमेशा बिन बुलाये मेहमान सा प्रतीत होता है | कभी फोन करो तो भी उनका यही क्रम चलता है | परिवार में सिर्फ तीन बड़े लोग हैं , फिर भी उनको एक मिनट की फुर्सत नहीं है | कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता था कि वही काम करने के बाद हम सब लोग कितना समय खाली बिता देते हैं या अन्य जरूरी कामों में लगाते हैं पर उनके पास समय की हमेशा कमी क्यों रहती हैं |  मुझे लगा शायद मेरे जाने का समय गलत हो , परन्तु और लोगों ने भी उनके बारे में यही बात कही तो मुझे अहसास हुआ कि वो अपने को अतिव्यस्त दिखाना चाहती हैं | मनोवैज्ञानिक अतुल नागर के अनुसार हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर अपनी सेल्फ वर्थ सिद्ध करना चाहते हैं |                           अभी कुछ समय पहले अमेरिका में एक ऑफिस में सर्वे किया गया | लोग जितना काम करते हैं उसकी उपयोगिता  को पैमाने पर नापा गया | देखा गया सिर्फ २ % लोग अतिव्यस्त हैं बाकी २० % के करीब प्रयाप्त व्यस्त की श्रेणी में आते हैं , बाकी 78 % लोग ऐसे कामों में खुद को व्यस्त किये थे जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है या वो ऑफिस के काम की गुणवत्ता बढ़ने में कोई योगदान नहीं देता है | ये सब लोग अपने को अतिव्यस्त दिखने का प्रयास कर रहे थे |                                                                      क्या आप ने कभी गौर किया है कि आज कामकाजी महिलाओं के साथ -साथ घरेलू महिलाओं के पास भी समय की अचानक से कमी हो गयी है |  छोटा हो या बड़ा  हर कोई समय नहीं है का रोना रोता रहता है | ये अचानक सारा समय चला कहाँ गया | पहले महिलाएं खाली समय में आचार , पापड , बड़ियाँ आदि बनती , स्वेटर बुनती , कंगूरे  काढती थीं , लोगों से मिलती थी , रिश्ते बनती थीं | | आज महिलाएं ये सब काम बहुत कम करती हैं , फिर भी उनके पास समय का आभाव रहता है | वो बात -बात पर समय का रोना रोती हैं | आज जब की घरेलू कामों को करने में मदद कर्ण वाली इतनी मशीने बन गयी है तो भी आज की महिलाएं पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा व्यस्त कैसे हो गयी हैं | रीना जी का उदाहरण देखिये वो खुद को अतिव्यस्त कहती हैं …वो सुबह ६ बजे उठती हैं ,वो कहतीं है वो बहुत व्यस्त हैं | कॉलोनी के किसी काम , उत्सव , गेट टुगेदर के लिए उनके पास समय नहीं होता | जबकि  घर में सफाई वाली बाई व् कुक लगी है | उनका  टाइम टेबल इस प्रकार है | सुबह एक घंटे का मोर्निंग वाक एक घंटे मेडिटेशन दो घंटे घर के काम एक घंटे नहाना धोना पूजा करना दो घंटे फेसबुक दो घंटे लंच के बाद सोना शाम को एक घंटे वाक एक घंटे जिम दो  घंटे स्पिरिचुअल क्लास में जाना दो घंटे टी.वी शो देखना खाना – पीना सोशल साइट्स पर जाना और सो जाना                                      जाहिर है कि उन्होंने अपने को व्यस्त कर रखा है , लेकिन दुखद है कि वो कॉलोनी की अन्य औरतों को ताना मारने से बाज नहीं आती कि उनके पास समय की कमी है , वो बेहद  बिजी हैं | आखिर वो ऐसा क्यों सिद्ध करना चाहती हैं ? एक व्यक्ति के अपने भाई से रिश्ते महज इसलिए ख़राब हो गए क्योंकि उसे लगा कि वो जब भी अपने भाई को फोन करता है वो हमेशा बहुत व्यस्त हूँ कह देता है , कई बार तो यह भी कह देता है कि अपनी भाभी से बात कर लो , मैं उससे पूँछ लूँगा | धीरे धीरे उस व्यक्ति को लगने लगा कि भाई अति व्यस्त दिखा कर उसकी उपेक्षा कर रहा है , उसे कहीं न कहीं ये महसूस करा रहा है की वो तो खाली बैठा है | ये बात उसे अपमान जनक लगी और उसने फोन करना बंद कर दिया | पिछले १५ सालों से उनमें बातचीत नहीं है |  क्या हमारे सारे रिश्ते अति व्यस्त होने की वजह से नहीं खुद को अतिव्यस्त दिखाने की वजह से खराब हो रहे हैं | एक तरफ तो हम अकेलेपन की बात करते हैं , इसे बड़ी समस्या बताते  हैं , दूसरी तरफ हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर उन् से खुद दूरी बनाते हैं | क्या ये विरोधाभास आज की ज्यादातर समस्याओं की वजह नहीं है |  खुद को अतिव्यस्त दिखा कर … Read more

बच्चों के एग्जाम और मम्मी का टेंशन

बच्चों के एग्जाम शुरू हो गए हैं |एग्जाम के दिन यानी सपने ,  पढ़ाई , मेहनत और टेंशन के दिन | मुझे अभी भी याद आता है वो दिन जब मेरे  बेटे का मैथ्स का एग्जाम था |  उसे रात दो बजे तक पढ़ाने के बाद सुबह से उसे स्कूल भेजने की तैयारी में लग गयी थी | मन में उलझन सी थी बार –बार उसके वो सवाल याद आ रहे थे जिन्हें समझने में उसे थोड़ी ज्यादा देर लगी थी | चलते फिरते उसे उनके फार्मूले  याद करवा रही थी |आल दा बेस्ट कह कर बेटे को भेज तो दिया पर मन में खिच –खिच सी होती रही | क्या वो सारे सवाल हल कर पायेगा ? क्या वो अच्छे नंबर ला पायेगा ? न जाने कितने सवाल बार –बार दिमाग को घेर रहे थे | इंजायटी बढती जा रही थी |खैर पेपर हो गया | पर जब –जब बच्चों के एग्जाम होते हैं मेरी ही तरह सब माएं टेंशन से घिर जाती हैं |                     ऐसा ही टेंशन का एक किस्सा शर्मा अंकल सुनाते हैं, “  पिछले दिनों मैं सविता के घर गया। शाम को घूमने और मूड़ फ्रेश करने का समय होता है। इस समय सविता और उनके बच्चों को कमरे में देखकर मुझे बेहद आश्चर्य हुआ। आज भी उस दिन का दृश्य मुझे याद है-बच्चे कमरे में पुस्तक लिये पढ़ने का अभिनय कर रहे थे और सविता बाहर बरामदे में बैठी थी, जैसे चौकीदारी कर रही हो। मुझे यह सब देखकर बड़ा विचित्र लगा था। उस दिन बातें औपचारिक ही हो पायी। मुझे ज्यादा जोर से बोलने पर मना करती हुई कहने लगी ‘जरा धीरे बोलिये, बच्चे पढ़ रहे हैं  अगले महीने से उन लोगों की परीक्षा शुरू होने वाली है।’                        मीता जी का किस्सा  भी इससे अलग नहीं है | मीता   जी कहती हैं –’कि शाम पांच से आठ और सुबह चार से छः का समय पढ़ाने के लिए इसलिये मैंने निर्धारित किया है, क्योंकि रात आठ बजे के बाद बच्चे ऊंघने लगते है  और जल्दी खाना दिया  तो सो जाते हैं । वैसे, सुबह चार बजे पढ़ने से जल्दी याद होता है, फिर छः बजे के बाद मैं घर के दूसरे कार्यो में व्यस्त हो जाती हूं। आखिर क्यों 100 % के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे                           मैं हूँ , सविता हो या मीता  यह समस्या आज हर घर में स्पष्ट देखने को मिलती है।, पढाई और एग्जाम  का प्रेशर  बच्चों पर तो होता ही हैं बच्चों के साथ-साथ मम्मी की भी दिनचर्या बदल जाती है। कहीं आना-जाना नहीं, पिक्चर देखना बंद,टी वी बंद ,  बच्चों के ऊपर सारा दिन निगरानी में ही निकल जाता है, कोई मिलने आये तो औपचारिक बातें करना, ज्यादा जोर से बातें करने से मना करना आदि।कुल मिला कर पूरा तनाव का वातावरण तैयार हो जाता है |  गौर किया जाए तो कहीं न कहीं पापा-मम्मी उनके परीक्षा फल को अपना प्रेस्टिज ईशु बना लेते हैं। फलां के बच्चे हमेशा मेरिट में आते हैं  उनके पापा-मम्मी उनका कितना ध्यान रखते हैं , आदि बातें सोचकर लोग ऐसा करते हैं।  कैसे दूर करें बच्चों के एग्जाम और मम्मी का टेंशन                               परीक्षा के दिनों में अधिकतर माताएं  बच्चों को लेकर इस कदर परेशान होती  हैं, जैसे बच्चे उनके लिये समस्या हो। बच्चे तो पहले से ही एग्जाम टेंशन झेल रहे होते हैं | इस भयग्रस्त वातावरण का बच्चों के स्वास्थ्य , मानसिक स्थिति और पढ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है, परीक्षा के दौरान बच्चों और पेरेंट्स पर बेहतर रिजल्ट को लेकर मानसिक दबाव जबरदस्त होता है। ऐसे समय में कई बार बच्चों को कुछ मनोवैज्ञानिक समस्याए हो जाती है। वे ‘एंजाइटी’ के शिकार तक हो जाते है और अवसाद में चले जाते है, जो कि काफी गंभीर है। परीक्षा के इस तनाव से कैसे निपटा जाए, आइए जानते है… बच्चे को लगे वो सब भूल जाएगा   सबसे पहली बात है कि बच्चों कि उम्र के हिसाब से उनके कोर्स डिजाईन होते है। जो बच्चे रोजाना पूरे  साल पढाई करते है, उन्हें इस तरह की  समस्या नहीं आती है। इसके अलावा पढाई के दौरान समय-समय पर माँक टेस्ट  और फीडबेक लेते रहे, उससे भी तनाव कम होता है। रोजाना एक्सरसाइज और ध्यान करने से भी बेस लाइन एंजाइटी (जिसमें नर्वसनेस बहुत जल्दी आ जाती है।) बहुत कम हो जाती है। इसके अलावा बच्चो को रोजाना अच्छी नींद लेना भी जरुरी है। पढाई के दौरान बच्चे अपने को क्रॉस चेक बिलकुल न करे, क्योंकि इस कारण से भी उनके अंदर एंजाइटी बढ़ सकती है। पढ़ते वक्त रटने के बजाय पॉइंट्स और कांसेप्ट क्लियर करें और हर चेप्टर के मुख्य पॉइंट्स को नोट जरुर करते रहे।               परीक्षा के दौरान माँ  को यह चाहिए कि वो बच्चों के खान-पान पर विशेष ध्यान दे। दिमाग को उत्तेजित करने वाले पदार्थ जैसे चाय, कॉफ़ी को बच्चों को ज्यादा न दे। फ़ास्ट फूड्स कि जगह हेल्थी डाइट दें। उनकी नींद का ख्याल रखे। सोशल फंक्शन जैसे शादी वगैरह  में भी उन्हें न  ले जाएं और जितना हो सके पढाई का माहौल  घर में बनाएं। त्यौहार और परीक्षा के बीच बच्चे कैसे बनाएं संतुलन   फाइनल एग्जाम त्यौहार के सीजन में होते हैं , एक तरह से ये  मन और इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने की भी परीक्षा होती है । ऐसे में बच्चो को  चाहिए कि वो त्यौहार के चक्कर में अपने करियर  और पढाई से समझौता  ना करें। पढाई उनका प्राथमिक लक्ष्य है,जिसे लेकर वे हमेशा गंभीर रहे। त्यौहार उनका ध्यान पढाई से हटा सकते है। इसलिए उनपर ध्यान देने के बयाय वो पढाई पर ज्यादा ध्यान दें।             माँ  को चाहिए त्यौहार के सीजन में भी जितना हो सके,घर माहौल  पढाई वाला बनाये रखे, ताकि बच्चों का मन ना भटके। बच्चो का कमरा ऐसी जगह होना चाहिए जहा महमानों कि आवाजाही ना हो, ताकि बच्चे शांति से पढाई के सके। बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें   जब बच्चा स्ट्रेस में खाना -पीना , सोना कम कर दे               स्ट्रेस को दूर करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है कि बच्चे पर्याप्त नींद ले। पढाई के बीच  में दो से तीन  घंटे … Read more

काव्य कथा -गहरे काले रंग के परदे

किसी भी कथा को कविता के रूप में प्रतुत करने का चलन बहुत पुराना है | आज हम “ अटूट बंधन “ पर ऐसी  ही काव्य कथा – गहरे काले रंग के परदे ले कर आये हैं | परदे अपने अंदर बहुत सारा दर्द और शोषण  छिपाए रखते हैं , जिनका बेपर्दा होना बहुत जरूरी हैं| आइये पढ़ते हैं …  काव्य कथा -गहरे काले रंग के परदे  नए घर में सामन जमाते हुए बरबस ही मेरा ध्यान आकर्षित कर ले गए गहरे काले रंग के परदे जो टंगे थे मेरे घर के ठीक सामने वाले घर की बड़ी-बड़ी खिडकियों पर एक अजीब सी इच्छा जगी जानने की कि कौन रहता है इन पर्दों के पीछे जिसकी है इतनी अलग पसंद क्या कोई और रंग नहीं मिला घर सजाने को या कुछ खास ही होगा अंदर जो लगा दिया है नज़र का टीका गहरे काले रंग के पर्दों के रूप में बचपन में अम्मा ने बताया था अशुभ होता है काला रंग शोक का प्रतीक घर में पूजा करने वाले पंडित जी  ने बताया था शनि का रंग है काला दूर ही रहना इससे नहीं तो कहीं का नहीं छोड़ेगा विज्ञान की कक्षा में मास्टर जी ने बताया काला रंग सोख लेता है हर रंग को कोई भी रंग पार नहीं जा सकता इसे कितनी ही परिभाषाएं थी काले रंग की जो सब की सब बता रहीं थी उसके दोष क्या उन्हें नहीं पता ? फिर क्यों टांग रखे हैं गहरे काले रंग के परदे धीरे -धीरे चलने लगा पता मेरे ही नहीं पूरे मुहल्ले की जिज्ञासा का केंद्र थे गहरे काले रंग के परदे कोई नहीं जानता की कौन रहता है क्या होता है इन पर्दों के पीछे सुना है  रहते हैं दो औरतें और एक पुरुष माँ -बेटी कभी निकलती नहीं कभी झांकती नहीं हाँ पुरुष जाता है रोज सुबह और लौटता है शाम को दो बार खटकते हुए दरवाजों के अक्तिरिक्त कोई हलचल नहीं होती वैसे ही टंगे रहते हैं वो गहरे काले रंग के परदे एक दिन रात के चार बजे आने लगी रोने की आवाजें उन्हीं पर्दों के पीछे से अपनी -अपनी बालकनियों से झांकते लोग कर रहे थे प्रयास जानने का जमा होने लगी भीड़ दरवाजे के बाहर बढती रुदन की आवाजों से टूट गए दरवाजे अन्दर थी  दो कृशकाय स्त्रियाँ एक जीवित एक मृत एक विक्षिप्त सी माँ विलाप करती अपनी किशोर बेटी पर थोड़ी दूर अनमयस्क सा बैठा पिता घूरता भीड़ को जिसकी आँखों में थे सिर्फ प्रश्न ही प्रश्न जिनके जवाब छप गए थे दूसरे दिन के अख़बारों पर एक पिता जिसने कैद कर रखा था अपनी ही बेटी और पत्नी को घर के अन्दर पत्नी के असमर्थ हो जाने पर जो भूल गया था पिता होना और अपनी ही बच्ची को बनाता रहा अपनी वासना का शिकार सालों साल जिसका दर्द , घुटन , मौन चीखें बाहर जाने से रोक रहे थे गहरे काले रंग के परदे मैं सोंचती रह गयी काले रंग की किस की परिभाषा सही है अम्मा की , पंडित जी की या मास्टर जी की कितना कुछ छिपाए थे ये गहरे काले रंग के परदे पर्दों का रंग भले ही कला न हो  बड़े घरों में टंगे परदे जिनके पीछे के दर्द की कहानी शायद अलग हो पर वो हमेशा ये याद दिलाते हैं कि इस पर्दादार देश में पर्दों के पीछे बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जिसका बेपर्दा होना जरूरी है… सरिता जैन दिल्ली यह भी पढ़ें … मनीषा जैन की कवितायें अंतरा करवड़े की पांच कवितायें रश्मि सिन्हा की पांच कवितायेँ नारी मन पर वंदना बाजपेयी की पांच कवितायें आपको ” काव्य कथा -गहरे काले रंग के परदे  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-poetry, hindi poem, poem, curtain

क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखते हैं?

             कहते हैं,  “पहला सुख निरोगी काया”| हम सब सब अपने – अपने तरीके से  इस बात का प्रयास करते हैं कि हम स्वस्थ रहे|  जैसे  खाने में हरी सब्जियां ज्यादा लेना, तले – भुने से परहेज, जिम या वॉक करने की आदत डालना आदि- आदि|  कई लोग तो अपनी सेहत का इतना ध्यान रखते हैं कि एक – एक कैलोरी गिन – गिन कर खाते हैं|  लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समय रहते  सेहत का ध्यान नहीं रखते और किसी न किसी रोग का शिकार हो जाते हैं|  उसके बाद डॉ. ढेर सारे परहेज बता देते हैं|  फिर तो वो उन परेहेजों का पालन करने ही लग जाते हैं, क्योंकि वो जानते हैं कि,  “जान है तो जहान है”|                           ये तो रही फिजिकल हेल्थ की बात, अब बात करते हैं मेंटल हेल्थ की| क्या हम अपनी मेंटल हेल्थ का भी उतना ही ध्यान रखते हैं?  उत्तर है नहीं| क्यों? क्योंकि हमारे देश में मेंटल हेल्थ का सीधा सा सम्बन्ध पागल हो जाने से लगाया जाता है|  पागल हो जाना मतलब दिमाग पर पूरी तरह से कंट्रोल खो देना होता है| मेंटल हेल्थ के अंतर्गत निराशा, अवसाद, ज्यादा गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, किसी काम में मन न लगना आदि ऐसे बहुत से लक्षण  आते हैं जो हमारे खराब मानसिक स्वास्थ्य की और संकेत करते हैं|  फिर भी हम उनका ध्यान नहीं रखते हैं|  Do you take care of your mental health?                         जिस तरह से हम शरीर को चलाने के लिए भोजन करते  हैं| उसी तरह से हमारा दिमाग भी भोजन करता है| शरीर के लिए भोजन हम रुच विध कर बनाते हैं, अनेकों मसालों से तैयार करते हैं, प्यार से परोसते हैं, फिर खाते हैं |  क्या आप अपने मष्तिष्क के भोजन के लिए भी यही करते हैं|  नहीं, मष्तिष्क को तो जो मिलता है वो बेचारा खाने लगता है, फिर क्यों न अपच की शिकायत हो?                    हम सुबह से ले कर रात तक हम जो कुछ भी देखते सुनते, सोंचते हैं वो सब हमारे दिमाग का भोजन है| आप ने महसूस किया होगा कि जब आप कोई मार-धाड़  वाली फिल्म देखते हैं, वीडियो गेम खेलते हैं, फेसबुक या निजी जिंदगी में बहस में पड़ते हैं तो आप का दिमाग उत्तेजित हो जाता है|  वहीँ जब आप भजन सुनते हैं, बगीचे में बैठ कर फूलों का आनंद लेते हैं, या बच्चों के साथ खेलते हैं  तब आप का दिमाग शांत हो जाता है|  पॉजिटिव लोगों के साथ रहते हैं तो उर्जा और जोश से भरपूर हो जाता हैं| क्यों? यह उस विचार रुपी भोजन की प्रकृति है जो आप अपने दिमाग को खिला रहे हैं| विचार ही हमारे मष्तिष्क का भोजन हैं|   आप अपने आप अपने मेंटल हेल्थ के लिए क्या करते हैं?  अब जरा अपनी दिनचर्या पर नज़र डालिए- आप सुबह उठे सबसे पहले न्यूज़ पेपर उठाया| उसमें ख़बरों में पहले पेज पर किसी ट्रेन या बस एक्सीडेंट की खबर, किसी रेप की खबर, किसी बच्चे के शोषण की खबर होगी| उन्हें पढ़ते ही आप का मन निराशा , क्रोध और क्षोभ में भर जाएगा|  सुबह से ही आप के मन में नकारात्मकता भर जायेगी|  सुबह का समय जब अपने को पॉजिटिव करने का होता है, पर  हम न्यूज़ से अपडेट रहने की चाह में खुद को निगेटिव कर लेते हैं|  आप कह सकते हैं कि आज के समय में ख़बरों से दूर रहना बेवकूफी ही समझी जायेगी|  आप सही हैं पर  जैसा कि ब्रह्मकुमारी शिवानी जी कहती हैं कि – सुबह-सुबह ख़बरों को पढने से बचना चाहिए| जो खबरें है, वो घटनाएं घट चुकी हैं| अब उसमें कुछ किया नहीं जा सकता, परन्तु आप अपनी सुबह सकारत्मकता/नकारात्मकता से शुरू कर के अपना दिन बना या बिगाड़ सकते हैं|  ख़बरों के बाद आपाधापी होती है  स्कूल / ऑफिस जाने की, और उन्हें भेजने की…वो समय हड़बड़ी में निकल जाता है|  उसके बाद (अगर आप गृहणी है तो )आप के घर कोई आया|  या आप  किसी के घर गए और आप लग गए उनसे किसी तीसरे की चर्चा करने में|  इस बुराई- भलाई से आप भी नकारात्मक हो रहे हैं और उसे भी नकारात्मकता भेज रहे हैं जिसके बारे में बात कर रहे हैं| अगर आप ऑफिस में काम करते हैं तो काम के साथ- साथ वहां भी बॉस की, कलीग की बुराई तो करना आम बात है| कुछ नहीं तो किसी मुद्दे पर बहस ही कर ली| नहीं तो “रैट रेस” के कारण या तो खुद को जरूरत से ज्यादा झोंक दिया, नहीं तो हीन भावना ही भर ली|   क्या इसमें भाग लेकर हम खुद को चूहा नहीं साबित कर रहे|    शाम का पूरा समय ख़बरों की बहस देखने में या सोशल मीडिया पर इसकी – उसकी कहानियाँ पढ़ कर कुंठित होने में बिताते हैं|  रात को सोने से पहले बिस्तर पर लेटे – लेटे या तो अतीत को याद कर दुखी हुए या फिर भविष्य की चिंता करते हुए भयभीत होते हुए सो गए|                                     ये अमूमन हम में से हर किसी की दिनचर्या है|  हमने ही इसमें इतनी नकारात्मकता भर रखी है कि हमारी मेंटल  हेल्थ प्रभावित हो रही है|   फिर भी हम सब यही कहेंगे…ये तो नार्मल है| ये नार्मल नहीं है| अगर ये नार्मल होता तो क्या बात-बात पर गुस्सा आता, उलझन होती, बेचैनी होती, सही खाते हुए भी ब्लड प्रेशर या डाइबिटीज या हार्ट डिसीज के शिकार न होते| हम सब जानते है की ये बीमारियाँ शरीर को गलत भोजन देने कही नहीं मन को गलत भोजन देने का परिणाम हैं|  मेंटल हेल्थ  का लक्षण  है कि आप ज्यादा शांत, खुश व् संतुष्ट रहते हैं|  कैसे रखे अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान                            ये तो हमने जान लिया कि हम सब जो विचार रुपी भोजन  अपने दिमाग को देते हैं वो हमारी अच्छी या बुरी मेंटल … Read more

रिश्ते और आध्यात्म – जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन

                                   नीता , मीरा , मुक्ता  व् श्रेया सब एक सहेलियां एक ग्रुप में रहती थी | जब निधि ने कॉलेज ज्वाइन किया |वो भी उन्हीं के ग्रुप में शामिल हो गयी | निधि बहुत जीजिविषा से भरपूर लड़की थी | जल्द ही वो सबसे घुल मिल गयी | कभी बैडमिन्टन खेलती कभी , डांस कभी पढाई तो कभी बागवानी तो कभी गायन या सिलाई  | ऐसा क्या था जो वो न करती हो | या दूसरों से बेहतर न करती हो | ग्रुप की सभी लडकियां उसे बेहद पसंद करती | सब उसके साथ ज्यादा समय बिताना चाहती | पर कहीं न कहीं ये बात मीरा को बुरी लगती क्योंकि वो निधि पर अपना एकाधिकार समझने लगी थी | निधि से सबसे पहले दोस्ती भी तो उसी की हुई थी | फिर डांस , पढाई व् बागवानी में वो उसके साथ ही होती | इस्सिलिये जब निधि दूसरी लड़कियों के साथ होती तो उसे जलन या इर्ष्या होती | ये बात ग्रुप  अन्य लडकियां व् निधि भी धीरे – धीरे समझने लगी | इस कारण वो मीरा से काटने लगी | क्योंकि वो सबसे बराबर की दोस्ती रखना चाहती थी | पर मीरा ऐसा होने नहीं देना चाहती थी | धीरे – धीरे अच्छी सहेलियों का वो ग्रुप उलझन भरे रिश्तों में बदल गया | सहेलियों का वो ग्रुप हो या एक परिवार की बहुएं , या ऑफिस के सहकर्मी ये जुड़ाव क्यों उलझाव में बदल जाता है | जुड़ाव क्यों बन जाता है उलझन  हम सब के जीवन में ये समस्या कभी न कभी आती है | किसी रिश्ते से जुड़ाव उलझन बन जाता है | इसके कारण को समझने के लिए रिश्तों की गहराई का बारीकी से विश्लेष्ण करना होगा | हर व्यक्ति में बहुत सारे गुण होते हैं | या यूँ कहे की हर व्यक्ति दिन भर में अनेक क्रियाओं को करता है | उस क्रिया के अनुरूप वो उसमें रूचि रखने वाले को चुनता है | ताकि उस काम को करने में मजा आये | जैसे किसी खास मित्र के साथ मूवी देखने में , किसी के साथ पढाई करने में , किसी के साथ नृत्य या सिलाई करने में मज़ा आता है | हम उन क्रियाओं के सहयोगी के रूप में अनेक लोगों से दोस्ती करते हैं व् उनका साथ चाहते हैं | दिक्कत तब आती है जब कोई एक व्यक्ति  हमारा हर समय साथ चाहे या हम किसी एक व्यक्ति का हर समय साथ चाहें | ये अत्यधिक जुड़ाव की आकांक्षा रखना ही रिश्तों में उलझन का कारण हैं | पसंद और अत्यधिक जुड़ाव में अंतर हैं  जब आप किसी के साथ इस हद तक जुड़ाव चाहते हैं की वो सिर्फ आपका ही हो तो उलझन स्वाभाविक है |आप स्वयं ये बोझ नहीं धो पायेंगे | जरा सोच कर देखिये अगर आप ग्लू या गोंद के बने हों | ये गोंद ऐसी हो की जिस चीज को आप पसंद करें वो आपसे चिपक जाए | अब जब आप घर से बाहर निकलेंगे | आपको  सामने बैठी चिड़िया अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | फूल या पत्ती अच्छी लगी  वो आपसे चिपक गयी | सब्जी अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | वृद्ध महिला अच्छी लगी वो आपसे चिपक गयी | पेड़ अच्छा लगा वो भी आपसे चिपक गया | आधे घंटे के अन्दर आपसे इतनी चीजे चिपक जायेंगी कि आपका सांस लेना भी दूभर हो जाएगा | चलना तो दूर की बात हैं | अत्यधिक जुड़ाव या एकाधिकार चाहना किसी के गले पड़ना या यूँ चिपक जाने के सामान ही है | जहाँ रिश्तों में घुटन होगी प्रेम नहीं | जुड़ाव केवल इंसानों से नहीं चीजों से भी होता है             जुड़ाव की अधिकता केवल इंसानों से नहीं चीजों से भी होती है |मान लीजिये आप किसी पार्क में आज पहली बार गए हैं | आप एक बेंच पर बैठते हैं |  संयोग से कल भी उसी बेंच पर बैठते हैं | तीसरे दिन से आप पार्क में उसी बेंच को ढूंढेगे |चाहे पार्क की साड़ी बेंचे खालीही क्यों न पड़ी हों | बेड के उसी सिरे पर लेटने से नींद आएगी | डाईनिंग टेबल की वही कुर्सी मुफीद लगेगी | कभी सोंचा है ऐसा क्यों है की इन बेजान चीजों से भी हमें लगाव हो जाता है | इसका कारण है हमारी यादाश्त जो चीजों को वैसे ही करने या होने में विश्वास करती है | तभी तो आँखे बंद हों पर घर का कोई सदस्य कमरे में आये तो पता चल जाता है की  कौन आया था | ये सब यादाश्त के कारण होता है |जन हम किसी के साथ किसी क्रिया में समानता या सामान रूप से उत्साहित होने के कारण ज्यादा समय बाँटने लगते हैं तो यादाश्त उस समय को  अपने जरूरी हिस्से के सामान लेने लगती है | फिर उसे किसी से शेयर करना उसे नहीं पसंद आता है | यही उलझन का कारण है | चीजों से जुड़ाव एक तरफा होता है इसलिए उलझन नहीं होती                                                  जब आप किसी चेज से प्यार करते हैं या जुड़ाव महसूस करते हैं तो आप जानते हैं की ये केवल आप की तरफ से हैं | आप उसे बाँध नहीं सकते हैं | जैसे आप किसी पेड़ को रोज गले लगाइए | आप जुड़ाव महसूस करेंगे पर पेड़ आप को बंधेगा नहीं | न ही आप अपने ऊपर  किसी प्रकार का बंधन अनुभव करेंगे | जिस कारण उलझन या तकलीफ होने की सम्भावना नहीं है | ईश्वर या गुरु के प्रति जुड़ाव भी ऐसा ही है | जहाँ एक तरफ़ा जुड़ाव है | बंधन कोई नहीं अपेक्षा  कोई नहीं | तो फिर उलझन भी कोई नहीं | कैसे आध्यात्म  दूर करता है उलझन                                              जैसा की मैंने पहले ग्लू का उदाहरण दिया था | … Read more

सजा किसको

saja kisko motivational story in hindi सुधीर  ११ वीं का छात्र है । अपना सामान बेतरतीब से रखना वो अपना धर्म समझता है । माँ को कितनी मुश्किल होती होगी इस सब को संभालने में उसे कोई मतलब नहीं । रोज सुबह उसका चिल्लाना … मेरा रुमाल कहाँ है , मोजा कहाँ है , वगैरह वगैरह बदस्तूर जारी रहता । माँ आटे से सने हाथ लिए दौड़ -दौड़ कर उसका सामान जुटाती । माँ उसको रोज समझाती ‘ बेटा अपना सामान सही जगह पर रखा करो … मुझे बहुत परेशानी होती है ‘। पर सुधीर उल्टा माँ पर ही इल्जाम लगा देता ” तुम जो करीने से सब रखती हो उससे ही सब बिगड़ जाता है ‘। आज माँ दूसरे  ही मूड में थी … उन्होंने सुधीर को अल्टीमेटम दे दिया … अगर  आज  अपना कमरा ठीक नहीं किया तो मैं तुम्हें स्कूल नहीं जाने दूँगी, ये तुम्हारी सजा है ।  आज वाद -विवाद प्रतियोगिता में सुधीर प्रतिभागी था । सो गुस्से में तमतमाते हुए उसने कमरा तो ठीक कर दिया पर बडबडाता रहा …  ये माँ है या तानाशाह इसकी मर्ज़ी से ही घर चले । अगर इनका हुक्म ना बजाओ तो सजा । what a rubbish ! गुस्से के कारण ना तो सुधीर  ने नाश्ता किया और ना ही लंच बॉक्स बैग में रखा । माँ पीछे से पुकारती ही रही । स्कूल जाते ही दोस्तों ने कैंटीन में उसे गरमागरम समोसे खिला दिए । गुस्सा शांत हो गया । प्रतियोगिता आरम्भ हुई … और उसमें सुधीर विजयी हुआ । देर तक कार्यक्रम चला । सब प्रतियोगियों को स्कूल की तरफ से खाना खिलाया गया । शाम को जब सुधीर घर आया, घर कुछ बेतरतीब सा दिखा । किचन में पानी पीने  गया । पर ये क्या एक भी गिलास धुला  हुआ नहीं है … और तो और पानी की बाल्टी भी नहीं भरी है । किचन से बाहर निकला तो पास वाले कमरे से डॉक्टर की माँ से बात करने की आवाज़ आ रही थी । ‘ जब आपको पता है कि इन्सुलिन लेने के बाद अगर कुछ ना खाओ तो डायबिटीज का मरीज़ कोमा में भी जा सकता है तब आपने ऐसा क्यों किया । ये तो अच्छा हुआ की आपकी पड़ोसन आपसे मिलने आ गयीं वर्ना आप तो बड़ी मुश्किल में पड जातीं  ‘। माँ टूटी आवाज़ में बोलीं ‘ क्या करूं  डॉक्टर साहब … आज बेटा  गुस्से में भूखा ही चला गया था, जब भी खाना ले कर बैठती बेटे का चेहरा याद आ जाता … खाना अंदर धंसा ही नहीं ‘। दरवाज़े पर खड़ा सुधीर सोंच रहा था … सजा माँ ने उसे दी …. या उसने माँ को ।                   बच्चों , हम सब की माँ सारा दिन हमारे लिए मेहनत  करती हैं | उनकी सारी  दुआएं बच्चों के लिए ही होतीहैं | ऐसे में अगर आप की माँ आप को कुछ डांट  दे तो ये उसका प्यार ही है | इस प्यार को समझने के लिए दिल की जरूरत है न की दिमाग की जो सजा पर अटक जाता है | अन्तत : ये समझना मुश्किल हो जाता है की सजा किसको मिली है वंदना बाजपेयी  जह भी पढ़ें … झूठ की समझ सम्मान बाल मनोविज्ञान पर आधारित पांच लघुकथाएं अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “सजा  किसको “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें   

राम , रहीम , भीम और अखबार

सरिता  जैन ये कहानी है तीन मित्रों की |  उनमें से एक था मुस्लिम , एक , सवर्ण और एक दलित |नाम थे रहमान , राम और भीम  | तीनों एक दूसरे के सुख – दुःख के साथी |  रोज शाम को उनकी बैठक होती रहती थी | बातें भी बहुत होती | जैसा की पुरुषों में होता है अक्सर राजनैतिक चर्चाएं होने लगती हैं | यूँ तो तीनों कहने को बात कर रहे होते |पर कहीं न कहीं उनके मन में अपनी जाति और धर्म की भावना छिपी रहती  | इस कारण जब भी कोई खबर सामचारपत्रों में आती सबका उसको देखने का एंगल अलग अलग होता | इस कारण कभी कभी हल्की बहस भी हो जाती | पढ़िए – कामलो सो लाडलो एक बार एक अखबार के एक छोटे कॉलम में खबर छपी किसी पुरानी इमारत के टूटने की | उसमें से कुछ पपु राने मंदिरों की मूर्तियों के अवशेष निकले | खबर छोटे कॉलम में थी पर हिन्दू मुस्लिम दोस्तों के मध्य बड़ा विषय बन गया | काम अतीत में हुआ था , जिसकी जानकारी सभी को थी , पर लड़ाई आज करना जरूरी थी | बमुश्किल भीम ने बात खत्म कराई | उसने कहा जो अतीत में हो गया हो गया | अब तो हम सब ऐसे अन्यायों का विरोध कर सकते हैं | फिर क्यों अतीत पर झगडें | पर मामला रफा दफा हुआ नहीं | रहीम ने भी आरोप लगाना शुरू कर दिया |असहिष्णुता  का आरोप  | आज हमें बोले का हक़ नहीं है | चारों और असहिष्णुता का बोलबाला है | ऐसे में कैसे हम अपने मन की आवाज़ कहें | राम ने तुरंत बात काटी | क्यों आप फेसबुक ट्विटर , इन्स्टा , सभाओं सब जगह बोल रहे हैं | फिर भय कैसा ?बोलते तो आप शुरू से रहे हैं बस सुनना  नहीं चाहते हैं  | हम सब एक देश के नागरिक हैं | आप को ही विशेष दर्जा क्यों ? रहीम को बात नागवार गुजरी | न रहीम अतीत के गर्व में झूमने न राम भी अतीत भूलने को तैयार था | लिहाज़ा दोस्ती टूट गयी | रहीम उठ कर चला गया |  अब राम और भीम ने बात करना शुरू किया | फिर अखबार की खबर का जिक्र था |  बहस एक किताब पर थी | जिसमें माँ दुर्गा को गाली दी गयी थी | स्त्री की अस्मिता के लिए लड़ने वाली माँ दुर्गा को XX तक कह दिया गया था | अब बारी राम के गुस्से में आने की थी | उसने माँ दुर्गा को अंट शंट  बोलने वाले को तार्किक तरीके से गलत सिद्ध करने की कोशिश की | पढ़िए – मनोबल न खोएं अब बारी भीम की उबलने की थी | वही जो अभी तक राम को अतीत भूलने की सलाह दे रहा था | अब अतीत से किस्से ढूंढ – ढूंढ कर लाने लगा | राम ने कहा अब तो अतीत जैसा माहौल नहीं है | तुम लोगों को आरक्षण भी मिला है | और खबरों में तरजीह भी | दलित की बेटी के साथ अत्याचार तो खबर बनता है , जिस खबर में दलित या मुस्लिम इस्तेमाल नहीं होता वो सब सवर्ण की बेटियाँ होती हैं फिर खबर क्यों नहीं बनती की सवर्ण की बेटी के साथ अत्याचार | ये सब जानते हो फिर ये मुद्दा क्यों ? पर भीम मानने को तैयार नहीं था | वो आज के आज बदला लेना चाहता था | उनसे जो अब उसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहते थे | लिहाजा दोस्ती टूट गयी |भीम चला गया |  दोस्तों तीन दोस्त जो एक दूसरे के सुख दुःख के साथी थे | जो एक अच्छे भविष्य को गढ़ सकते थे  | अतीत पर लड़ पड़े | और अलग हो गए | क्या आज हमारे देश में यही नहीं हो रहा | हम सब अखबार पढ़ते हैं | तर्क गढ़ते हैं | तर्कों में जीतते हैं तर्कों में हारते हैं | पर सुझाव के बारे में कोई नहीं सोंचता | अतीत  जिसे न सुधारा जा सकता है न संवारा जा सकता है | कुछ किया जा सकता तो सिर्फ वर्तमान में | जहाँ जरूरी है समझ सिर्फ इस बात की , कि अब हमें प्यार से रहना है | ताकि देश का भविष्य सुन्दर हो | काश ये बात राम , रहीम और अखबार तीनों को समझ आ जाए |  यह भी पढ़ें … लक्ष्मी की कृपा यह भी गुज़र जाएगा  वो भी नहीं था  यकीन