क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते

सरिता जैन ये लीजिये आप ने स्टेटस डाला और वो मिलनी शुरू हुई लोगों की प्रतिक्रियाएं | लाइक , कमेंट , और स्माइली … आपके चेहरे पर |बिलकुल फ़िल्मी दुनिया की तरह , लाइट , कैमरा , एक्शन की तर्ज पर | उसी तर्ज पर खुद को सेलिब्रेटी समझने का भ्रम | एक अलग सा अहसास , ” की हम भी हैं कुछ खास | फेस बुक की दुनिया | इस दुनिया के अन्दर बिलकुल अलग एक और दुनिया |पर अफ़सोस ! आभासी दुनिया | आप हम या कोई और जब कोई नया इस आभासी दुनिया में कदम रखता है तो उसका मकसद सिर्फ थोडा सा समय कुछ मित्रों परिचितों के साथ व्यतीत करने का होता है | परन्तु कब इसका नशा सर चढ़ कर बोलने लगता है | यह वह भी नहीं जानता |जिस तरह से शराब या कोई और नशा कोई एक व्यक्ति करता है परन्तु उसकी सजा सारे परिवार को मिलती है | उसी तरह से ये नशा भी बहुत कुछ आपके जीवन से चुराता है | ये चुराता है आप का समय … जी हां वो समय जिस पर आपके बच्चों , परिवार के सदस्यों और सबसे प्रमुख जीवन साथी का अधिकार है | इससे निजी रिश्ते बेहद प्रभावित होते हैं | ये सिर्फ हम नहीं कह रहे | ये आंकड़े कह रहे हैं ………. फेसबुक का पति -पत्नी के रिश्ते पर क्या प्रभाव पड़ता है | इसे जान्ने के लिए एक सर्वे कराया गया | इसमें फेसबुक के 5000 यूजर्स को चुना गया उनकी उम्र 33 साल के आस-पास थी. 12 अप्रैल से 15 के बीच कराए गए इस सर्वे में ये बातें प्रमुख रूप से कही गई हैं. 1. सर्वे के दौरान करीब 26 फीसदी लोगों का कहना था कि वे अपने पार्टनर द्वारा उपेक्षित महसूस करते हैं. इस बात पर उन दोनों के बीच लड़ाई भी होती है. वहीं फेसबुक पर उन्हें ज्यादा तवज्जो और अपनापन मिलता है. 2. सर्वे में करीब 44 फीसदी लोगों ने कहा है कि फेस बुक ने उनके आपसी रिश्ते को बर्बाद कर दिया . कई बार उनका पार्टनर उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने के बजाय फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करना पसंद करता है. 3. 47 फीसदी का मानना है कि वे फेसबुक चीटिंग का शिकार हुए हैं 4. 67 फीसदी लोगों ने ये माना कि एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर और ज्यादातर तलाक के लिए फेसबुक ही सबसे अहम कारण है. 5. सर्वे के दौरान करीब 46 फीसदी लोगों ने कहा कि वे ईर्ष्या के चलते घड़ी-घड़ी अपने पार्टनर का फेसबुक चेक करते रहते हैं. 6. करीब 22 फीसदी लोगों का मानना है कि फेसबुक उन्हें ऐसी परिस्थितियां देता है जिससे अफेयर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. 7. करीब 32 फीसदी लोगों ने ये स्वीकार किया कि उनकी रोमांटिक लाइफ अब पहले की तरह नहीं रह गई है और पार्टनर के बार-बार फेसबुक चेक करने की वजह से उनके बीच का प्यार कम हो गया है. 8. करीब 17 फीसदी लोगों ने माना कि वे फेसबुक के माध्यम से अभी भी अपने x के कांटेक्ट में हैं रिसर्च के डायरेक्टर टिम रॉलिन्स का कहना है कि फेसबुक दोस्तों को खोजने और उनसे टच में बने रहने का मंच है लेकिन यहां अफेयर में पड़ने की आशंका भी बहुत अधिक होती है. फेसबुक आपके प्यार भरे रिश्तों में खटास भी ला सकता है. सवाल यह उठता है की आखिर फेसबुक पर बने रिश्ते लुभाते क्यों हैं | कुछ मुख्य कारण जो उभर कर आये ……… दिखाई देता है दूसरे का सबसे अच्छा रूप  अक्सर देखा गया है दो लोग जो आपस में प्यार करते हैं | जब शादी करते हैं तो निभा नहीं पाते | कारण स्पष्ट है , डेटिंग के दिनों में उन्होंने एक दूसरे का बेस्ट रूप ही देखा होता है | यही बात फेस बुक के साथ है |यहाँ व्यक्ति को अगले का बेस्ट रूप ही दिखाई देता है | जब अपने जीवन साथी का समग्र ( अच्छा + बुरा ) रूप | जाहिर सी बात है वो कम रुचिकर लगेगा ही | उन्मुक्तता  गाँव देहात के जो लोग आपस में या घर -परिवार के बीच बड़े झीझकते हुए बात करते हैं | वो फेस बुक पर हर तरह की बात पर अपनी बेबाक राय देते नज़र आते हैं | क्रॉस जेंडर में इस तरह की बातें कुछ हद तक एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने का कारण भी बनती हैं | इस उन्मुक्तता का निजी जीवन में जितना आभाव होता है उतनी ही तेजी से यहाँ रिश्ते बनते हैं | कोई जवाब देही नहीं  फेस बुक के रिश्तों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती | चले तो चले वरना ब्लाक बटन तो है ही | ऐसे में निजी रिश्ते बहुत उबाऊ लगते हैं जहाँ हर किसी के सवाल का जवाब देना पड़ता है | नाराजगी झेलनी पड़ती है | और गुस्सा -गुस्सी के बीच शक्ल तो देखनी ही पड़ती है | केवल लाइक कमेंट से खास होने का अहसासनिजी रिश्तों में खास का दर्जा पाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं | यहाँ बस व्यक्ति किसी की पोस्ट पर लाइक कमेंट ही लगातार करे तो वह अपना सा लगने लगता है |खास लगने लगता है | सब कुछ सार्वजानिक नहीं जीवन में कुछ पल नितांत निजी और सिर्फ महसूस करने के लिए होते हैं। facebookउन्हें सार्वजनिक करने से वे अपनी खूबसूरती खो देते हैं। आजकल कई लोग जितनी तेजी से अपनी फोटो अपडेट करने और चेक-इन के साथ स्टेटस डालने में दिखाते हैं, उतनी तेजी उनका दिल अपने पार्टनर के लिए धड़कने में नहीं दिखाता। दिल का चोर  जो लोग खुद गलत होते हैं उन्हें अपने पाट्नर पर जरूरत से ज्यादा शक होता है | खुद तो चैटिंग करेंगे अगर पर्नर ने की तो उसका पास वर्ड ले कर समय मिलनी पर जेम्स बांड बन्ने से भी गुरेज नहीं करते | वही जब पार्टनर को पता छठा है की हमारा अकाउंट चेक किया जा रहा है शक की बिनाह पर रिश्ता दरकने लगता है यूँ ही समय निकल जाता है  कई बार जीवन साथी से बेवफाई करने का मन नहीं होता पर सेलेब्रेटी होने के अहसास के लिए जो ५००० फ्रेंड्स व् … Read more

इको जिंदगी की

सरिता जैन  एक बच्चे ने अपने पिता से पूंछा ,” पिताजी ये जिन्दगी क्या है | और ये हम सब के प्रति अलग – अलग व्यवहार क्यों करती है |नन्हें बेटे के मुँह से ये प्रश्न सुन कर पिताजी सोंच में पड़ गए | आखिरकार उन्होंने बच्चे को जीवन की पाठशाला से सिखाने का मन बनाया | और वो बेटे के साथ एक ऐसी जगह पर गए जो चरों तरफ से पहाड़ियों से घिरी थी | पिता की अँगुली थामे आगे बढ़ते हुए बेटा बहुत खुश था | अचानक से वो पिता का हाथ छुड़ा  कर तेजी से आगे बढ़ा |  पर ये क्या वो गिर गया  |  चोट लगने पर उसके मुंह से निकला , ‘ आह ‘ तुरंत पहाड़ों में से कहीं – से आवाज आई – ‘ आह ‘ बेटा अचरज में रह गया। उसने फौरन पूछा – तुम कौन हो ? सामने से वही सवाल आया , ‘ तुम कौन हो ?’ बेटे ने कहा :डरपोक सामने से आवाज़ आयी  :डरपोक उसने पिता की ओर देखा और पूछा , ‘ यह क्या हो रहा है ?’ पिता ने मुस्कुराते हुए कहा , ‘ बेटा , जरा ध्यान दो। ‘ इसके बाद पिता चिल्लाया , ‘ तुम चैंपियन हो !‘ जवाब मिला , ‘ तुम चैंपियन हो !‘ बेटे को हैरानी हुई लेकिन वह कुछ समझ नहीं सका। इस पर पिता ने उसे समझाया , ‘ लोग इसे गूंज ( इको ) कहते हैं | मतलब जो हम बोलते हैं वाही पलट कर सामने से आता है | और लगता है की प्रकृति भी हमारे साथ वही बोल रही है | अगर हम डरपोंक कहते हैं तो वो हमें उत्तर देती है डरपोंक अगर हम चैम्पियन कहते हैं तो वो हमें उत्तर देती है चैम्पियन | है ना मजेदार |  लेकिन ये सिर्फ आवाज़ का पलट कर वापस आना नहीं है | वास्तव  में यह जिंदगी है। ‘ हम जैसा सोंचते हैं वही पलट कर हमारे सामने आता है | दोस्तों – ये जिंदगी एक इको है आपके विचारों की | आप जैसे विचार रखेंगे वही आपके सामने भविष्य बनकर आएगा | तो क्यों न अच्छा सोंचा जाए | या वो सोंचा जाए जो हम चाहते हैं | फिर आनंद लें जीवन की इको का  यह भी पढ़ें ……… जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा अच्छी मम्मी , गन्दी मम्मी

“प्यासा कौवा “फिर से /pyasa kauva fir se

  दोस्तों , आप सब ने एक कहानी पढ़ी होगी ” thirsty crow ” या प्यासा कौवा | जिन्होंने नहीं पढ़ी उन्हें बता दें की   एक बार एक कौवा बहुत प्यासा था | पर दूर – दूर तक कहीं पानी का निशान नहीं था | अचानक उसे एक घडा दिखाई दिया पर उसमें पानी बहुत कम था | कौवे ने दिमाग लगाया और आस – पास पड़े पत्थर उसमें डालने लगा | थोड़ी देर में पानी ऊपर आ गया | कौवे ने पानी पिया और उड़ गया … फुर्र से | पर आज की कहानी थोड़ी अलग है हुआ यूँ की टीचर  ने  क्लास में आकर बच्चों से कहा की इस कहानी का दूसरा अंत क्या हो सकता है | सब अपनी – अपनी कॉपी में लिखो |सबसे अच्छा अंत लिखने वाले बच्चे को चॉकलेट  इनाम में दिया जाएगा |  बच्चे लिखने लगे | जब टीचर के पास copies आयीं तो  teacher ने देखा की ज्यादतर बच्चों ने लिखा की पानी इतना ऊपर नहीं आया की कौवा पी सके , या पानी पीते समय घडा हिल गया और वो पानी भी गिर गया | लिहाज़ा कौवा प्यासा  ही रहा | और तड़प – तड़प कर मर गया |                 एक बच्चे ने लिखा की कौवे ने थोड़ी दूर आगे खोजा | पर पानी न मिला तो निराश हो बैठ गया और मर गया | मसलन ये की class के ९९ % बच्चों ने कहानी अंत नकारत्मक कर दिया | केवल दो बच्चों ने कहानी का अंत सकारात्मक किया | उनमें से एक बच्चे ने लिखा की कौवे ने वहीं स्ट्रॉ ढूंढ ली और थोडा सा पानी पी लिया |पर रोहित की कॉपी पर teacher ठिठक गयीं |  रोहित ने लिखा था की घड़े में पानी इतना कम था की कंकड़ डालने के बाद भी कौवा घड़े से जब पानी नहीं पी पाया तो उसने सोंचा की ऐसे भी मरना है और वैसे भी तो क्यों न और पानी ढूढने की कोशिश की जाए |  उसने अपने पंखों में पूरी दम लगा कर उड़ान भरी | हालंकि सूरज  तप रहा था और उसकी देह जल रही थी , पर उसने कोशिश नहीं छोड़ी | वह उड़ता गया उड़ता गया | आखिर कार वो ऐसे जगह पहुँच गया जहाँ पानी  का झरना  बह रह था | उसने भर पेट पानी पिया | थोडा पंखों पर छिड़का | और गीली हवाओं का पूरा  आनंद  लिया | ये जीत उसको इस लिए मिली क्योंकि उसने ” करो या मरो ” सोंच कर कोशिश की थी | अंत में रोहित ने कहानी का शीर्षक लिखा …                      “कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ”  कहने की जरूरत नहीं की जीत की चॉकलेट रोहित को ही मिली | क्योंकि उसने न सिर्फ सकारात्मक अंत किया था | बल्कि ये भी सिखाया की कोई भी असफलता आखिरी नहीं होती | उसके बाद फिर प्रयास किये जा सकते हैं और जीत हांसिल की जा सकती है | वंदना बाजपेयी रिलेटेड पोस्ट ……. दो पत्ते black डॉट फोन का बिल तूफ़ान से पहले  

छोटे बेटे की सूझ – बूझ

बहुत समय पहले की बात है | एक किसान था | उसके दो बेटे थे | तीनो मिलकर खेती किया करते थे | उनका घर धन – धन्य से भरपूर था | समय के साथ किसान बूढ़ा हुआ | उसने अपना खेत छोटे बेटे को देने का फैसला किया | और बड़े बेटे को उसके एवज में धन | यह सुनकर बड़ा बेटा नाराज़ हो गया | उसने  कहा ,” पिताजी ये तो सरासर अन्याय है | ये सही है की हम सब इस खेत से ही जीवन यापन करते रहे हैं | परन्तु मैंने छोटे से ज्यादा साल खेत पर काम किया है | क्योंकि वो मुझसे उम्र में छोटा है | यानी की मेरे “कार्य दिवस ”   उससे ज्यादा हैं | इस हिसाब से मुझे खेत मिलना चाहिए | किसान ने उसे समझाते हुए कहा ,” देखो बेटा ये खेत मेरे बच्चे से भी बढ़कर है | मैं चाहता हूँ मेरे बाद ये और फूले फले | कार्य दिवस तुम्हारे ज्यादा होते हुए भी मैंने योग्य पुत्र का चयन किया | जो मेरे खेत का ध्यान बेहतर रख सकेगा | तुम्हें खाने पीने की दिक्कत न हो इसलिए तुम्हें धन दिया है | अब बड़े बेटा खुद पर काबू न रख सका | वह जोर से बोला ,” पिताजी आपने छोटे को मुझ से ज्यादा योग्य कैसे समझ लिया | देखा जाए तो मैं उससे बड़ा हूँ | अनुभव मुझे ज्यादा है | मैं ज्यादा योग्य हूँ | किसान बोला ,”मैंने बहुत सोंच समझ कर निर्णय  लिया है | फिर भी अगर तुम चाहतें हो की दूध का दूध और पानी का पानी हो  | तो मैं एक परीक्षा लेता हूँ | पहले तुम से शुरू करता हूँ | तुम्हें करना यह है की मेरे मित्र सुबोध के फार्म में जा कर पता लगाना है की वहां कितनी गाये बिकने योग्य हैं | प्रश् सुनते ही बड़ा बेटा खुश हो गया | वो सुबोध के खेत में गया और १० मिनट में ही लौट आया | उसने पिता से कहा ,” पिताजी वहां ६ गायें बिकने योग्य हैं | फिर किसान ने छोटे बेटे को बुलाया |और उसे भी यही काम दिया | वो भी वहां गया | लौटकर बोला ,” पिताजी वहां ६ गायें बिकने योग्य हैं | जिसमें चार काली और दो सफ़ेद हैं | दो काली और एक सफ़ेद गाय सबसे ज्यादा हष्ट  – पुष्ट है | एक गाय की कीमत दो हजार  रुपये हैं | सुबोध चाचाजी का कहना है की एक से ज्यादा गाय खरीदने पर वो प्रति गाय सौ रूपये कमिशन देंगे | हाँ अगर हम इंतज़ार कर सकते हैं तो अगले हफ्ते बढ़िया जर्सी गाय आ रही हैं | लेंकिन अगर  हमें जल्दी है तो वो कल शाम  तक गाय पहुंचा देंगे | छोटे बेटे का उत्तर सुनने के बाद किसान ने बड़े बेटे की तरफ देखा | उसने सर झुका लिया | वह समझ गया की केवल काम करना ही पर्याप्त नहीं होता | काम को इस तरीके से एक बार में ही करना है  जिससे बार – बार न जाना पड़े | दोस्तों , हम अक्सरआपने देखा होगा की काम करने वाले दो व्यक्ति बराबर से सफल नहीं होते हैं | इसका कारण होता है | कुछ लोग उतना ही काम करते हैं जितना उनको दिया जाता है | पर कुछ लोग आगे की सोंचते हैं, ज्यादा काम करते हैं  और पूरी जानकारी करके योजना बनाते हैं | निश्चित तौर पर वही सफल होते हैं |  सरिता जैन यह भी पढ़ें ………… दो पत्ते black डॉट फोन का बिल तूफ़ान से पहले

दो पत्ते

एक बार ओशो कहीं प्रवचन  दे रहे थे | एक व्यक्ति उनके सामने आया और बोला मैं ऐसी जिंदगी बिलकुल नहीं जी सकता | मैं तब तक लड़ता रहूँगा जब तक मैं जीत न जाऊं , या परिस्तिथियों को बदल न लूँ | अब ओशो ठहरे गुरु वो समझ गए की ये व्यक्ति जिन परिस्तिथियों को बदलने की बात कर रहा है वो बदली नहीं जा सकती हैं केवल उनको स्वीकार किया जा सकता है | वो कहते है न की … कई बार हमारी समस्या  जब किसी तरह से हल नहीं हो पा रही होती है , तब वहाँ कोई समस्या ही नहीं होती बल्कि एक सच होता है जिस हमें स्वीकार करना होता है |                                    ओशो शिष्य को  सच बता सकते थे पर सच स्वीकारना इतना आसान नहीं होता | इसलिए ओशो ने उसे एक कहानी सुनाई | ओशो बोले ,” एक बार की बात है एक नदी के किनारे एक पेड़ लगा था |  पेड़  के पत्ते उसमें टूट – टूट कर गिरते रहते थे | उसी पेड़ में दो पत्ते आपस में बहुत मित्र थे | खूब बातें होती थी | एक दिन हवा का एक झोका आया और दोनों टूट कर नदी में गिर पड़े | हवा चलते समय जब दोनों पत्तों को लगा की अंत निकट है | तो एक पत्ता आड़ा गिरा और दूसरा सीधा | loading …….. अब जो पत्ता आड़ा  गिरा वो अड़ गया की मैं नदी के साथ नहीं बहूँगा | मैं तो इसे रोक कर रहूँगा | और उसने अपना पूरा बल धारा के विपरीत लगा दिया | और एक भयानक संघर्ष शुरू हो गया | दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था | वो धारा के साथ – साथ बहने लगा | और मन ही मन सोंचने लगा | वाह ! मैं कितना ताकतवर हूँ | मैं तो नदी को ही बहाए लिए जा रहा हूँ | जिधर – जिधर मैं जाता हूँ , उधर ही उधर नदी जाती है |                                              फिर थोडा रुक कर ओशो ने शिष्य से पूंछा ,” बताओ दोनों का अंत क्या हुआ ? शिष्य ने सकुचाते हुए कहा ,” गुरु वर अंत तो दोनों का एक ही हुआ | ओशो बोले ,” यही इस कथा का मूल सार है | आड़े पत्ते का सारा जीवन संघर्ष में बिता | वो बहुत पीड़ा में रहा | वहीं सीधा पत्ता सारे जीवन खुश रहा |गलतफहमी की सही पर वो नदी को बहाए लिए जा रहा है ये सोंच उसकी यात्रा आनद से कटी | जीवन की कुछ समस्याएं जिनका कोई समाधान नहीं है | उन्हें या तो आप सीकर कर लें और ख़ुशी – खशी जीवन जिए या बेमतलब का युद्ध करें और सारा जीवन संघर्ष व् अवसाद में बीत जाए | सरिता जैन रिलेटेड पोस्ट … सुकरात और ज्योतिषी शब्दों के घाव गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं

किशोर होते बच्चों को समझो पापा

सरिता जैन हार्मोंस और शारीरिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे बच्चे के मन में इस दौर में ढेरों सवाल होते हैं और दूसरी ओर पैरेंट्स का अनुशासन और हिदायतों का शिकंजा और ज्यादा कसता जाता है। अगर आपका बेटा किशोरावस्था की दहलीज पर है तो वह शारीरिक और मानसिक सामंजस्य कैसे स्थापित करे, यह उसके लिए ही नहीं बल्कि आपके लिए भी एक बड़ा सवाल होता है। लड़कों में होने वाले हार्मोंनल परिवर्तन की वजह से उन्हें गुस्सा ज्यादा आता है और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। थोड़े समय बाद दाढ़ी-मूँछ आना शुरू हो जाती है और आवाज में भी भारीपन आ जाता है जो कुछ समय बाद सही हो जाता है जिसका दूसरे बच्चे मजाक उड़ाते हैं। लड़कों को उनके शरीर में होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताएँ। इस उम्र में अक्सर वे अपनी सेहत और साफ-सफाई की ओर से लापरवाह हो जाते हैं तो ऐसे समय में उन्हें अपनी शारीरिक सफाई का ध्यान रखने के लिए समझाएँ। किशोरावस्था में बच्चों के मन में अनेक सवाल होते हैं। घर में टीवी और इंटरनेट एक ऐसा माध्यम है, जिनसे वे जो चाहें, वे सूचनाएँ मिनटों में हासिल कर सकते हैं। अक्सर इंटरनेट पर घंटों चेटिंग चलती है और लड़के पोर्न साइट्स देखते हैं। यदि आप उन्हें ऐसा करते देखते हैं तो प्यार से समझाएँ और बताएँ कि उनकी उम्र अच्छी शिक्षा हासिल करके करियर बनाने की है। इन बातों की ओर से वे अपना ध्यान हटाएँ। इस उम्र में बच्चों का पढ़ाई पर ध्यान कम लगता है। छोटी-छोटी बात पर गुस्सा होना, हाइपर एक्टिव होना, डिप्रेशन, ज्यादा सोचना इस तरह की समस्याएँ होती हैं। गुस्से में वे अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते। यदि उनका व्यवहार नियंत्रण से बाहर हो जाए तो मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग जरूरी हो जाती है। उनके असामान्य व्यवहार को यदि गंभीरता से लिया जाए और शांति से हल निकाला जाए तो वे शांत और एकाग्रचित्त हो जाते हैं। इस उम्र में अक्सर लड़के थोड़े उच्छृंखल हो जाते हैं और उन्हें किसी की भी टोका-टोकी बुरी लगती है। ऐसे में पिता को उनसे संवाद करने की पहल करनी चाहिए। पिता को चाहिए कि बच्चे की समस्याएँ सुनें, उसके दोस्त बनें और उसे इस उलझनभरे दिनों में सुलझा हुआ माहौल दें। किशोर उम्र के बच्चों की सबसे बड़ी समस्या है उनकी पहचान का संकट। पहले से ही पहचान के संकट से जूझते बच्चे को सख्ती और अनुशासन पसंद नहीं आता है। अपने और बच्चों के बीच थोड़ी दूरी भी बनाकर रखें। बच्चों की हर छोटी-बड़ी बात की जासूसी नहीं करें। फोन पर यदि वह आपको देखकर अचानक चुप हो जाए तो समझ जाएँ कि उसे प्रायवेसी चाहिए। उसकी प्राइवेसी की कद्र करें। यदि वह अपने लिए अलग चीजों की माँग करता है, तो उसे पूरा करने का प्रयास करें। बच्चे का मानसिक संबल बनें। उनके साथ कलह न करें तो बच्चे प्यार से धीरे-धीरे आपकी समस्याओं को समझने का प्रयास करेंगे। इस उम्र के बच्चे, शारीरिक, मानसिक और हारमोनल परिवर्तन के दौर से गुजर रहे होते हैं। उनका मूड तेजी से बदलता है। किसी के दुःख से वे परेशान हो उठते हैं और किसी भी सीमा तक उनकी मदद करने को तैयार रहते हैं। कुछ बच्चे बहिर्मुखी हो जाते हैं तो कुछ अंतर्मुखी हो जाते हैं। भावनात्मक परिवर्तन के दौर में उनका मार्गदर्शन करें। इस उम्र में बच्चे एक-दूसरे के प्रति जल्दी आकर्षित हो जाते हैं। इस उम्र में आकर्षण होना स्वाभाविक है जो समय के साथ धीरे-धीरे कम हो जाता है। अगर मामला भावनात्मक जुड़ाव का हो तो पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता जिसका बच्चे की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ता है। बच्चे को इन तमाम सचाइयों से प्यार से रूबरू कराएँ।

क्षमा पर्व पर विशेष : “उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा”

क्या आपने कभी सोचा है की हँसते -बोलते ,खाते -पीते भी हमें महसूस होता है टनो बोझ अपने सर पर। एक विचित्र सी पीड़ा जूझते  रहते हैं हम… हर वक्त हर जगह। एक अजीब सी बैचैनी। ………… किसी अपने के दुर्व्यवहार की ,या कभी किसी अपने गलत निर्णय की टीभ  हमें सदा घेरे रहती है। प्रश्न उठता है आखिर कया है  इससे निकलने का उपाय ?कड़वाहट भूलने के लिए सबसे जरूरी है क्षमा करना  करना। कभी -कभी हम किसी बात को पकडे हुए न सिर्फ रिश्तों का मजा खो देते हैं बल्कि अंदर ही अंदर स्वयं भी किसी आग में जलते रहते हैं। क्षमा पर्व                              स्वेताम्बर जैन समाज में पर्युषण पर्व के तहत संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी मंदिरों एवं उपाश्रयों में प्रतिक्रमण के पश्चात उपस्थित श्रावक एक-दूसरे से ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ कहकर क्षमायाचना करते है। मुनि-संतों का कहना है कि क्षमा आत्मा को निर्मल बनाती है।व्यक्ति जीवन में मैत्री और प्रेम का निरंतर विकास कर जीवन को उन्नत बना सकता है। मनुष्य द्वारा अनेक भूलें की जाती हैं। पारस्परिक कलह एवं कटुता वर्ष भर में होती है। संवत्सरी महापर्व पर अन्तःकरण से क्षमा याचना कर आत्मा को निर्मल बनाया जा सकता है।जीवनयापन के दौरान आपसी कलह से यह जीवन नरक बन जाता है  भारत की संस्कृति में क्षमा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। संत-ज्ञानीजन कभी झगड़ते नहीं हैं और कभी मत को लेकर विवाद हो भी जाता है तो वे एक-दूसरे के प्रति शत्रुता नहीं रखते हैं। आम आदमी और साधु-संतों के बीच यही फर्क होता है। मानव अपने अहं के चलते एक-दूसरे से क्षमा न मांगते हुए अपने अहं में डूबे रहते है। और यही वजह है कि वर्ष भर में ऐसा दिन भ‍ी आता है, जब मानव अपनी सारे भूलों, अपने अहंकार को छोड़कर क्षमा मांग सकता है और दूसरों को भी क्षमा कर सकता है।  अभी देर नहीं हुई है                                      क्षमा पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। अपने मन में क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना। अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है।क्षमा पर्व मनाते समय अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा माँगना इस पर्व का उद्देश्य है। हम सब यह क्यों भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ हो जाना स्वाभाविक है। ये गलतियाँ या तो हमसे हमारी परिस्थितियाँ करवाती हैं या अज्ञानतावश हो जाती हैं। तो ऐसी गलतियों पर न हमें दूसरों को सजा देने का हक है, न स्वयं को। यदि आपको संतुष्टि के लिए कुछ देना है तो दीजिए ‘क्षमा’।क्षमा करने से आप दोहरा लाभ लेते हैं। एक तो सामने वाले को आत्मग्लानि भाव से मुक्त करते हैं व दूसरा दिलों की दूरियों को दूर कर सहज वातावरण का निर्माण करके उसके दिल में फिर से अपने लिए एक अच्छी जगह बना लेते हैं।तो आइए अभी भी देर नहीं हुई है। इस क्षमावणी पर्व से खुद को और औरों को भी रोशनी का नया संकल्प पाठ गढ़ते हुए क्षमा पर्व का असली आनंद उठाए और खुद भी जीए और दूसरों को भी जीने दे के संकल्प पर चलते हुए क्षमापर्व का लाभ उठाएँ। क्षमा आत्मा का गुण   हमारी आत्मा का मूल गुण क्षमा है। जिसके जीवन में क्षमा आ जाती है उसका जीवन सार्थक हो जाता है। क्षमा भाव के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि – ‘क्षमा वीरस्य भूषणं।’ – अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण होता है। अत: आप भी इस क्षमा पर्व सभी को अपने दिल से माफी देकर भगवान महावीर के रास्ते पर चलें।क्षमा मांगने के बाद जहाँ एक और मन अपराध बोध से निकल जाता है वहीँ  क्षमा करने के बाद मन नकारात्मक  विचारों से मुक्त हो जाता है | दोनों ही स्तिथियों में क्षमा से हमें लाभ होता है | तो आइये आप भी इस पर्व में शामिल होकर क्षमा दान देकर और क्षमा मांग कर अपने मन को स्व्क्छ व् निर्मल कर लीजिये | सरिता जैन  दिल्ली  “उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा” अटूट बंधन