दोस्ती बनाम दुश्मनी~कुछ चुनिंदा शेर
संकलन, लिप्यंतरण एवं प्रस्तुति: सीताराम गुप्ता दिल्ली-110034 बहुत कठिन है डगर पनघट की। पनघट की तरह ही दोस्ती की भी। जिसे हम दोस्ती कहते हैं कई बार वो एक बेहद ख़ुदग़र्ज़ रिश्ते से ज़्यादा कुछ नहीं होता। वफ़ा और बेवफ़ाई की तरह दोस्ती के अनेक रूप देखने को मिलते हैं। पुरातन काल से आज तक जितने भी कवि, कलाकार लेखक, विचारक हुए हैं शायद ही उनमें से कोई ऐसा हो जिसने इस विषय पर लेखनी न चलाई हो। प्रस्तुत हैं दोस्ती व दुश्मनी पर कुछ प्रसिद्ध उर्दू शायरों के अश्आर: कहाँ की दोस्ती किन दोस्तों की बात करते हो, मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का। -वसीम बरेलवी दिन एक सितम एक सितम रात करो हो, वो दोस्त हो दुशमन को भी तुम मात करो हो। -कलीम आजिज़ माना कि दोस्तों को नहीं दोस्ती का पास, लेकिन ये क्या कि ग़ैर का एहसान लीजिए। -शहरयार मिलना-जुलना दोस्तों से बारहा टलता रहा, इस तरह भी दोस्ती का सिलसिला चलता रहा। -हबीब कैफ़ी तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ, मैं दुश्मनों में हूँ, कि तेरे दोस्तों में हूँ। -अहमद फ़राज़ दुश्मनों की भीड़ में कुछ दोस्त भी मौजूद हैं, देखते रहना करेगा मुझपे पहला वार कौन? -मंज़र मजीद दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता, दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए। -‘निदा’ फ़ाज़ली क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हमसे, कुछ नहीं है तो अदावत ही सही। -मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ मंज़िले-हस्ती में दुश्मन को भी अपना दोस्त कर, रात हो जाए तो दिखलावें तुझे दुश्मन चिराग़। -‘आतिश’ कोई सूरत तो दिल को शाद करना, हमें दुश्मन समझ कर याद करना। -असग़र अली ख़ाँ देहलवी यूँ लगे दोस्त तेरा मुझसे ख़फ़ा हो जाना, जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना। -क़तील शिफ़ाई कुछ दोस्तों से वैसे मरासिम नहीं रहे, कुछ दुश्मनों से वैसी अदावत नहीं रही। -दुष्यंत कुमार तीर कब दुश्मन चलाएगा हमें मालूम था, इसलिए तो दोस्ती से दुश्मनी अच्छी लगी। -‘क़मर’ जलालाबादी दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर, दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा। -‘आतिश’ ग़म बढ़े आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह, तुम छुपा लो मुझे ऐ दोस्त गुनाहों की तरह। -सुदर्शन फ़ाकिर वो दुश्मनों की तरह मुझपे वार करता है, मगर गिरोह में अपने शुमार करता है। -डाॅ अतीक़ुल्लाह ‘ताबिश’ तू दश्ना-ए-नफ्रत को ही लहराता रहा है, तूने कभी दुश्मन से लिपटकर नहीं देखा। -अहमद फ़राज़ दोस्ती और किसी ग़रज़ के लिए, वो तिजारत है दोस्ती ही नहीं। -इस्माईल मेरठी रिलेटेड पोस्ट ….. ये दोस्ती न टूटे कभी की तू जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में है