सुधीर द्विवेदी की लघुकथाएं

लघु कथाएँ साहित्य लेखन की लोकप्रिय विधा है| जिसमें थोड़े शब्दों में अपनी पूरी बात कह देनी होती है | आज हम आपके लिए लाये हैं सुधीर द्विवेदी जी की तीन लघुकथाएं | पढ़िए और अपनी राय दीजिये  हौसला —(लघुकथा ) डरते डरते प्रवेश किया था मनोज ने उस आलिशान इमारत के अंदर । सुसज्जित कक्षाएं , हाई टेक वातावरण..सभी कुछ व्यवस्थित । ‘यहाँ मेरे विनय का भविष्य अवश्य बन जाएगा। ‘ आश्वस्त हो मनोज ने पुराने फ़टे हुए बैग से साल भर से पेट काट काट कर जोड़े हुए पैसे काउंटर में जमा कर दिए। शहर के सबसे बड़े स्कूल में अपने बेटे का दाखिला करा वो यूँ महसूस कर रहा था मानो बहुत बड़ी जंग जीत आया हो । बाजार से सब्जी ले घर पहुंच कर झोला पत्नी को थमा दिया उसनें । ” फिर टमाटर और प्याज नही लाये आप..” पत्नी झुंझला उठी थी । “अरे भागवान बेटे का एडमिशन बड़े स्कुल में कराना और रोज रोज टमाटर प्याज खाना .. बड़ा हौसला चाहिए हम जैसे आम आदमी के लिए ।”  कहते कहते मनोज ने चेहरे पर उभर आये दर्द को हँसी से छुपा लिया ।पत्नी चुप-चाप किचन में चली गयी थी | मन का मरहम (लघुकथा ) “ओहो फिर से ये ककड़ फोड़ खेल । क्या मिलता है तुझे ये कंकड़ बिखरा के ?” दादा ने झिड़कते हुए नन्हे बिन्नू से पूछा । “दादा ये कंकड़ नही ऊ बिल्डिंग है जो बन गयी है हमारे खेतों को छीन । अब कुछ कर तो नही पाये सरकार का । तो इन्हें ही फोड़ मन भर लेते है ।“ “ अच्छा ! तो एक बड़ा पत्थर मुझे भी दे भला |” “वो देखो.. फिर छितराई ससुरी एक और ।“ दोनों ख़ुशी से उछल पड़े | पहचान (लघुकथा) कृषि विज्ञान के छात्र एक पौधे पर अनुसन्धान कर रहे थे । कभी उसके रंग के आधार पे कोई नाम सुझाते कभी पत्तियों की बनावट के आधार पर कुछ । तभी एक देहाती लड़का दौड़ता हुआ आया और कुछ पत्तियाँ तोड़ने लगा “क्या तुम इस पौधे को पहचानते हो ?” उत्सुकता से एक शोधार्थी पूछ बैठा ।” बाबू जी इसकी पत्तियों का रस मेरी माँ की खाँसी तुरन्त दूर कर देता है रामबाण है ये मेरी माँ की खांसी के लिए । यही पहचान काफी है मेरे लिए ।” सुधीर द्विवदी   यह भी पढ़ें …………… परिस्थिति सम्मान राम रहीम भीम और अखबार अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “सुधीर द्विवेदी की लघुकथाएं “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

तो मैं तो

तुलना हमेशा नकारात्मक नहीं होती | कई बार जब हम दुःख में होते हैं | तो ऐसा लगता है जैसे सारा जीवन खत्म हो गया | पर उसी समय किसी ऐसे व्यक्ति को देखकर जो हमसे भी ज्यादा विपरीत परिस्थिति में संघर्ष कर रहा है | मन में ये भाव जरूर आता है कि जब वो इतनी विपरीत परिस्तिथि में संघर्ष कर सकता हैं तो मैं तो …. आज इसी विषय पर एक बहुत ही प्रेरक लघु कथा लाये हैं कानपुर  के सुधीर द्विवेदी जी | तो आइये पढ़ते हैं  … motivational short story – तो मैं तो  अँधेरे ने रेल पटरी को पूरी तरह घेर रखा था । वो सनसनाता हुआ पटरी के बीचो-बीच मन ही मन सोचता हुआ बढ़ा जा रहा था । ‘ हुँह आज दीवाली के दिन कोई ढंग का काम नहीं मिला …पूरे दिन में पचास रुपये कमाए थे वो भी उस जेबकतरे ने..। हम गरीबों के लिए क्या होली क्या दीवाली ..साला जीना ही बेकार है अपुन का..।‘  सोचते हुए उसनें पटरी पर पड़े पत्थर पर जोर से लात मारी । अँगूठे से रिसते घाव ने उसका दर्द और बढ़ा दिया था । तभी पटरी पर धड़धड़ाती आती हुई रेलगाड़ी को देख उसका चेहरा सख्त हो गया । शायद मन ही मन वो कोई कठोर निर्णय ले चुका था । रेलगाड़ी और उसके बीच की दूरी ज्यूँ-ज्यूँ दूरी घटती जा रही थी उसकी बन्द आँखों में दृश्य चलचित्र की तरह चल रहे थे । भूखे बेटे का मासूम चेहरा , घर में खानें के लिए कुछ न होने पर खीझती पत्नी ,गली से निकलते सब्जी वाले की आवाज़ …। खट से उसकी आँखें खुल गयी  “जब वो सब्जी वाला एक हाथ कटा होनें पर भी जिंदगी से लड़ रहा है तो मैं तो… ?”अपनें दोनों मजबूत हाथो को देखते हुए वो फुसफुसाया । सीटी बजाती हुए रेलगाड़ी धड़-धड़ करती हुई अब उसके सामनेँ से गुजर रही थी । उसका चेहरा तेज़ रोशनी में दमक उठा था । सुधीर द्विवेदी जो परिस्थितियाँ हमें मिली हैं हमें उन्हीं में संघर्ष करना चाहिए विषय पर सुधीर द्विवेदी जी की  motivational short story – तो मैं तो आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आप को “अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद हैं तो कृपया हमारा फ्री ई मेल सब्स्क्रिप्शन लें ताकि हम लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके ई मेल पर भेज सकें |  यह भी पढ़ें ……. मिटटी के दिए झूठा एक टीस आई स्टिल लव यू पापा

झूठा –(लघुकथा )

वो थका हुआ घर के अंदर आया और दीवार के सहारे अपनी सायकिल खड़ी कर मुँह हाथ धोने लग गया । तभी पत्नी तौलिया हाथ में पकड़ाती हुई बड़े प्यार से पूछ बैठी “क्यों जी वो जो पायल जुड़वाने के लिए सुनार को दी थी वो ले आये..? “ “ओ-हो जल्दी-जल्दी में भूल गया ।”  उसने तौलिये से हाथ पोंछते हुए जवाब दिया ।  “चार दिन से चिल्ला रही हूँ ,रोज भूल जाते हो । मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है इस घर में ..।” पत्नी पाँव पटकती हुई रसोई में चली गयी थी ।  उसनें झाँक कर रसोई में देखा तो पत्नी अंदर ही थी । इधर उधर देखते हुए चुपचाप वो माँ के कमरे में आ गया । बेटे को देखते ही चारपाई में लगभग गठरी बनी हुई माँ के मानों जान आ गयी । वह अब माँ के पैताने बैठ गया था । “क्यों रे ! कितने दिन से बहू चिल्ला रही है ..क्यों रोज-रोज भूल जावे तू..कलेस अच्छा न लगे मोहे..।”  माँ उसका चेहरा अपने हाथों से टटोलते हुए कह ही रही थी कि तभी उसनें जेब से चश्मा निकालते हुए माँ को पहना दिया । “अम्मा मोहे भी न भावे तेरा टटोल टटोल कर यूँ चलना तो आज़ तेरा टूटा चश्मा बनवा लाया । सच कहूँ माँ पायल बनवाना तो भूल ही गया मैं ।” कहते हुए उसने माँ की गोद में अपना सिर रख दिया। “चल हट झूठे …!” कहते हुए माँ नें आँचल से उसकी आँखों की कोरों में छलक आये आँसुओं को पोंछ दिया । सुधीर द्विवेदी  यह भी पढ़ें ……… पापा ये वाला लो सफलता का हीरा स्वाद का ज्ञान बोनसाई राम , रहीम , भीम और अखबार सुधीर द्विवेदी जी की लघुकथा आपको कैसी लगी | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी , कविता , लेख है तो हमें editor.atootbandhan@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर प्रकाशित किया जाएगा | 

अन्फ्रेंड

बेटे के चित्र के बगल का बिंदु कई घण्टों से हरा था ,परन्तु कई बार मैसेज करने के बाद रिप्लाई नही आया था । स्क्रीन पर काफी समय से आँखे गड़ाये हुए अब उसका सिर भी दुखने लगा था।  तभी स्क्रीन पर एक मैसेज चमका ..”आई एम् फाइन ! आप लोग कैसे हो ? ” मैसेज पढ़ते ही बूढ़ी आँखों में चमक आ गयी थी । “सब ठीक है बेटा । कितनी देर से मैसेज कर रहे है हम ..तू जवाब क्यूँ नही देता ?” काँपती हुई अँगुलियों से बड़ी मुश्किल से ढूँढे हुए अक्षरों से लिख कर उसने सेण्ड बटन पूरे जोर से दबा दिया। लम्बे इन्तजार के बाद स्क्रीन पर फिर कुछ शब्द चमके  ” चिल डैड ! यू नो .आपका बेटा सोशल नेटवर्किंग में बहुत पॉपुलर है, सबको रिस्पॉन्स करना मुश्किल होता है इसीलिए ना जाने कितने लोगो को तो रोज अन्फ्रेंड करना पड़ता है,आप भी जब देखो तब .|”  ” पर बेटा.. ” इतना ही लिख ही पाया था कि बेटे के चित्र के बगल में “एक्टिव वन मिनट एगो..” लिखा दिखने लगा । “लगता है इंटरनेट स्लो चल रहा है अभी.., तुम सो जाओ ।” पत्नी को सो जाने को कहते हुए उसने अपने हिस्से आये बेटे के उन चन्द शब्दों को स्क्रीन पर कई बार पढ़ा, थक कर काफी देर तक इधर-उधर करवट बदलता रहा,  ‘कहीं मुझे भी तो अन्फ्रेंड ….’ सोच कर हडबडा कर उठा और बेटे की हजारों लोगों की फ्रेंडलिस्ट में अपना नाम ढूँढने लग गया । सुधीर द्विवेदी  यह भी पढ़ें …  लक्ष्मी की कृपा यह भी गुज़र जाएगा  वो भी नहीं था  यकीन