असफलता से सीखें

क्या आप को पता है की असफलता भी हमें सिखाती है | सफलता का एक महत्वपूर्ण सूत्र है असफल व्यक्तियों से या अपनी असफलता से  सीखना  | जी हाँ , जिंदगी के पाठ्य क्रम में सफलता व् असफलता दोनों ही शिक्षक हैं | जहाँ जरूरी है सफल ही नहीं असफलता या असफल व्यक्तियों से सफल होने के तरीके सीखना | आप भी आश्चर्य में पड़ गए होंगे | कभी आपने बचपन में किसी रस्सी को पकड़ कर उसका एक सिरा दरवाजे में बाँध कर दूसरा पकड़ कर हिलाया है | आपने महसूस किया होगा रस्सी में एक तरंग  चलने लगती है | ऊपर नीचे , ऊपर नीचे | हमारी जिंदगी भी बिलकुल ऐसी ही हैं | कभी सफलता के शिखर कभी विफलता के गर्त |अंतर केवल इतना है की असली जीवन में जो लोग एक बार गर्त में आते ही प्रयास छोड़ देते हैं वो असफल कहलाते हैं | जो गर्त में जा कर फिर से उठने का प्रयास करते हैं वो सफल कहलाते हैं | वही रस्सी के दूसरे छोर  या सफलता के शिखर तक पहुँच पाते हैं | इसके लिए असफल होने पर निराश न होकर अपनी असफलताओं से सीख लेनी पड़ती है | कैसे सीखें असफलता से   अपनी बात को समझाने के लिए मैं एक छोटी सी कहानी आपसे शेयर करना चाहता हूँ | रोहित और उसके मित्र की | रोहित एक असफल व्यक्ति था | वह अपने एक अति सफल जानकार के पास सफलता के गुर सीखने गया | जाते ही उसने प्रश्न किया | आप सफलता के गुर सिखाइए | सफल मित्र ने कहा ,” मैं क्या सिखाऊ , मैं तो खुद सीखता हूँ | आप किससे सीखते हैं , रोहित  ने उत्साह से पूंछा | असफल व्यक्तियों से , सफल व्यक्ति ने सीधा सादा  उत्तर दिया | वो कैसे ? रोहित ने आश्चर्य से पूंछा | सफल व्यक्ति बोला , “ खैर ! वो बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ की तुम असफल कैसे हुए | रोहित बोला , “ मैं बहुत जल्दी सफलता पाना चाहता था | मैंने एक कम्पनी खोली वो ठीक से जम भी न पायी की दूसरी खोल दी  | अब पहली में घाटा  होने लगा | तो उसे पूरा करने के लिए मैंने अपने सारे पैसे लगा कर तीसरी कम्पनी खोल ली | ताकि उसकी कमाई  से दोनो का घाटा पूरा कर सकूँ | पर हुआ उल्टा | काम के अत्यधिक दवाब के चलते एक –एक कर के मेरी तीनों कम्पनियां बिक गयी | और मैं सड़क पर आ गया | मैं कर्जे में डूबा हुआ हूँ | देखो तुम्हारी बातों  से मैंने दो बातें सीखी | जिन्हें तुम सफलता के सूत्र भी कह सकते हो | पहला जब तक एक काम ठीक से न जम जाए दूसरे में हाथ न डालो |दूसरी बात कभी अपना सारा पैसा कम्पनी में न  लगा दो ताकि घाटे की स्तिथि में दिवालिया होने की नौबत न आये | आप भी सीख सकते हैं असफलता से  जैसे रोहित के मित्र ने असफलता से सीखा वैसे हम सब असफल व्यक्तियों से सीख सकते हैं की क्या नहीं करना चाहिए | फलाना व्यक्ति ने ऐसा क्या किया जिससे वो असफल हुआ | यहाँ एक खास बात और हैं आप अपनी असफलता  से भी सीख सकते हैं | ज्यादातर होता यह है की जब हम असफल होते हैं तो इस बात को स्वीकार नहीं कर पाते की हम से कुछ गलती हुई है | इस कारण हम दूसरों पर दोष लगाने लगते हैं |  मसलन फलां ने काम सही नहीं किया |फलां दोस्त उस समय पैसे देने से मुकर गया | या फलां व्यक्ति को परखने में मुझसे भूल हो गयी | अगर कोई भी कारण नहीं मिलता है तो हम भाग्य को दोष देने लगते हैं | अरे , मेरा तो भाग्य ही खराब है | मैं कुछ भी करूँ काम बनता ही नहीं है | पर अगर आप अपने अहंकार को जरा हटा कर सोंचेंगे तो आपको  अपनी कमियाँ स्वीकारने का साहस आएगा | असफलता से सीखने के लिए करें सेल्फ एनालिसिस                              दोस्तों , कठिन है पर अपनी असफलता से सीखने के लिए सेल्फ एनालिसिस की जरूरत होती है |जैसे … मैंने पढाई नहीं की इसलिए नंबर कम आये टीचर के फेवरेटिज्म नहीं मेरे नम्बर मेरे दोस्त से कम इसलिए आये क्योंकि इस सा उत्तर देने के बावजूद मैं स्पेलिंग मिस्टेक ज्यादा की थीं | मेरी दोस्त मुझसे ज्यादा टेलेंटेड हैं | उससे प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए मुझे ज्यादा समय सीखने में लगाना होगा अगर मैं ऑफिस में प्रमोशन नहीं पा  रहा हूँ | जबकि मैं काम सबसे बेहतर करता हूँ तो हो सकता है मैं अपने काम को ठीक से रीप्रेजेंट नहीं कर पा  रहा हूँ | अगर फलां व्यक्ति जिसे मैंने नौकरी पर लगाया था | ठीक से काम नहीं कर रहा तो भी मेरी गलती है | क्योंकि मैं योग्य व्यक्ति का चयन करने में असफल हो गया |  अगर मेरी टीम योग्य होते हुए भी सही काम नहीं कर पा  रही है तो जरूरी मुझसे टीम कोलीद करने में कुछ गलतियाँ हुई होंगी  बिजनेस में फेल होने की वजह मेरे प्रोडक्ट में ये कमी हो सकती है या फिर मेरी कस्टमर से डीलिंग सही नहीं है | या मैं प्रोडक्ट का प्रमोशन सही तरीके से नहीं कर पा रहा हूँ |  ये तो कुछ उदाहरण हैं | हर काम और उसमें असफलता के अलग –अलग कारण होते हैं | जरूरी है हम उनकी एनालिसिस करें | अपनी गलतियों को स्वीकारें | यही उन्हें सुधार  कर आगे बढ़ना  सफलता की ओर ले जाने वाला पहला कदम होता है | जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं वो कई बार असफल हुए पर उन्होंने सफलता इसलिए पायी क्योंकि उन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा अपनी असफलता को स्वीकार किया असफलता के लिए स्वयं को जिम्मेदार माना पूरे जी जान  उस कमी को दूर करने का प्रयास किया और निरंतर ये प्रयास करते रहे |   दोस्तों अगर आप सफल हैं तो उस सफलता को बरकरार रखने या युस मुकाम से आगे बढ़ने के लिए और यदि असफल हैं तो … Read more

स्वाद का ज्ञान

Motivational story in hindi – swad ka gyan                          दोस्तों , हमारी माताओ और बहनों की आधी से अधिक  जिन्दगी रसोई में निकल जाती है | दिन का बड़ा हिस्सा वो रसोई में व्यंजन तैयार करने में लगा देती हैं | यहाँ उनकी सृजनात्मकता देखने को मिलती है | पर अपनी इस रचना धर्मिता में वो अपने स्वाद का ध्यान नहीं रखती | उनका पूरा ध्यान इस बात पर होता है की उनके द्वारा बनाए गए खाने से घर के सदस्य संतुष्ट हो जाएँ | ख़ास कर अपने पति और बच्चों की पसंद का खाना तैयार करते समय उनके मन में गज़ब का उत्साह और संतुष्टि होती है | अपने इस अवैतनिक काम के लिए वो बस दो शब्द स्नेह भरे सुनना चाहती हैं | तभी तो आपने भी महसूस किया होगा | बड़े मन से बनाए गए खाने को आपको परोसने के बाद एक निश्छल सा प्रश्न उनकी  तरफ से आता है ,” खाना कैसा बना है ? खाने वाले की स्वीकृति की मोहर उनका दिन बना देती है | पर क्या हम ऐसा कर पाते हैं ? आज एक ऐसी ही कहानी एक पंडित और पंडिताइन जी की है | पंडित जी अपनी पत्नी के साथ रहते थे | संतान कोई थी नहीं | घर में बस दो लोग |सुबह भोजन करने के बाद पंडित जी अपना पोथी पत्रा ले कर बाहर निकल जाते | देर शाम को घर आते | फिर खाना खा कर सो जाते | ये उनका दैनिक नियम था | अब पंडिताइन जी दन भर अकेली रहती | पति का स्नेह व् साथ पाने के लिए वो बहुत मेहनत से रसोई तैयार करती | धनिया का एक एक पत्ता तोडती , मसाले हाथ से सिल बटने पर पीसती , देर तक भूनती | इस तरह बड़ी मेहनत से सुस्वादु व्यंजन तैयार करती | फिर तैयार हो कर पति का इंतज़ार करती | पुलक कर खाना परोसने के बाद वो ये प्रश्न पूँछना नहीं भूलती की खाना कैसा बना है | उन्हें किसी मीठे से ऊत्तर का इंतज़ार रहता | पर उनका इंतज़ार पूरा होने का नाम नहीं ले रहा था | पंडित जी सर झुकाए झुकाए खाना खा लेते | पूंछने पर भी कोई उत्तर नहीं देते | पंडिताइन जी निराश हो जाती उन्हें लगता शायद खाना पंडित जी की रूचि के अनुसार नहीं बना है | जब वही खाना वह अडोस – पड़ोस में किसी को खिलाती तो सब बहुत प्रशंसा करते | फिर भी पंडिताइन जी को अपने पति से प्रशंसा सुननी थी | इसलिए वो संतुष्ट नहीं होती | वो अगले दिन और बेहतर बनाने का प्रयास करती | पर वही  ढ़ाक के तीन पात | पंडित जी को कुछ नहीं कहना था तो नहीं कहना था | दिन बीतते गए और पंडिताइन जी की निराशा भी बढती गयी | सारे प्रयास विफल जा रहे थे | एक दिन उन्होंने कुछ अलग करने का निश्चय किया | अगले दिन उन्होंने दाल चावल के कंकण नहीं बीने , वैसे ही बना दिए | सब्जियां ठीक से धोयी नहीं | हरी सब्जियां थी पकने के बाद किसकिसाने  लगी | रोटी भी कच्ची – पक्की सेंक दी | नियत समय पर पंडित जी खाना खाने बैठे | पंडिताइन जी ने खाना परोस दिया | पंडित जी ने जैसे ही पहला कौर मुंह में रखा | तो थू – थू कर के उलट दिया | गुस्से में पंडिताइन से बोले ,” ये भी कोई खाना है , इससे बेस्वाद तो कुछ हो ही नहीं सकता | ऊपर से इतना किसकिसा रहा है की मेरा पूरा मुंह धूल  से भर गया | पंडिताइन जी तो इसी अवसर की प्रतीक्षा  में थी | तपाक से बोली ,” अरे आप को तो स्वाद का ज्ञान हैं | रोज इतना रुच विध के आपके लिए खाना बनाती | पूँछती  भी की खाना कैसा बना है | बरसों – बरस बीत गए पर आपने कोई जवाब ही नहीं दिया | तब मुझे लगा की शायद आपको स्वाद का ज्ञान ही नहीं है | मैं बेकार ही इतनी मेहनत करती हूँ | मैं जो बनाउंगी , जैसा भी बनाउंगी आप चुप – चाप खा लेगे | अब पंडित जी का चेहरा देखने लायक था |उन्हें अपनी गलती का अहसास भी हो गया  | दोस्तों , हम सब की जीभ में टेस्ट बड्स यानी की स्वाद की ग्रंथियां होती हैं | जो हमें भोजन के स्वाद के बारे में बताती हैं | फिर भी कितने लोग हैं जो खुलकर तारीफ़ करते हैं |ये झूठा अहंकार किस बात का ?  ये हमारे ही घर की महिलाएं हैं जो इतनी मेहनत से भोजन तैयार करती हैं | क्या हमारा फर्ज नहीं बनता की खाना पसंद आने पर खुलकर प्रशंसा करें व् उन्हें इस के लिए धन्यवाद करें | उम्मीद है की आपभी अब इस बात का ध्यान रखेंगे , खाना खाते समय दो मीठे बोल भी बोलेंगे खाली खाने का स्वाद ही नहीं लेंगे | वर्ना किसी दिन आपको भी कंकण पत्थर से भरी दाल खाने को मिल सकती है | तैयार रहिये | हमारी ये प्रेरक कथा “ स्वाद का ज्ञान “ आप को कैसी लगी | पसंद आने पर इसे शेयर जरूर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपके पास भी कोई कहानी लेख , आदि है तो हमें editor.atootbandhann@gmail.comपर भेजें | पसंद आने पर उसे यहाँ प्रकशित किया जाएगा | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …  पापा ये वाला लो सफलता का हीरा टाइम है मम्मी आग 

पापा , ये वाला लो

                                     दोस्तों , कहा गया है की बच्चे मन के सच्चे होते हैं |ऐसी ही एक छोटे बच्चे की कहानी मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ | जो बचपन की मिठास से भरी है |  चार साल का छोटा सा बच्चा राजू अपने पापा -मम्मी व् दादी बाबा के साथ रहता था |राजू सब का लाडला था | कभी कभी उसके पापा  कहते की  राजू के साथ थोड़ी सी कड़ाई से पेश आना चाहिए | ज्यादा लाड – प्यार की वजह से वो जिद्दी होता जा रहा है |  पर कोई उनकी बात सुनता ही नहीं था | तो पापा ने खुद ही राजू को सुधारने की ठान ली |  एक बार राजू को उसकी दादी ने दो सेब दिए | राजू उन सेबों को खाने से स्थान पर खेलने लगा | खेलते – खेलते वहीँ बिस्तर के पास रख दिए और दूसरे खिलौनों से खेलने लगा | तभी राजू के पापा आये |  उन्होंने राजू के पास सेब देख कर उसे बांटना सिखाने के लिए कहा ,” राजू तुम्हारे पास तो दो सेब हैं | एक सेब मुझे दे दो |  राजू को खिलौनों  में व्यस्त देखकर पापा ने फिर कहा ,” राजू , एक सेब मुझे दे दो | नन्हें राजू ने सुना ही नहीं | वो तो अपने खेल में ही मस्त रहा | अब पापा को थोडा गुस्सा आ गया | वो जोर से बोले ,” राजू तुम्हारे पास दो सेब हैं | कायदे से तुम्हें इन्हें बांटना चाहिए | बांटना तो दूर तुम मुझे मांगने पर भी एक भी नहीं दे रहे हो |ऊपर से मेरी बात भी नहीं सुन रहे हो | ये बहुत गलत बात है | चलो ठीक है | तुम नहीं दे रहे हो तो मैं खुद ही ले लेता हूँ | पापा सेब लेने आगे बढ़ने लगे |  अब राजू का ध्यान पापा की बात पर गया | उसने झट से दोनों सेब उठा लिए और बोला एक  मिनट पापा | कहते हुए उसने एक सेब  की एक बाईट ली | पापा ने दूसरे सेब की तरफ हाथ बढ़ाया | तभी राजू ने दूसरे सेब की भी एक बाईट ले ली |  अब तो पापा को नाराज़गी महसूस हुई की राजू इतना छोटा होने के बाद स्वार्थी हो गया है | अपनी चीजे किसी से शेयर ही नहीं करना चाहता | पापा उसे डाँटने ही वाले थे | तभी राजू का मीठा सा स्वर गूंजा … “ये वाला लो पापा , ये ज्यादा मीठा है “                              पापा का गुस्सा एक मिनट में छू मंतर हो गया | उनकी आँखे नम हो गयीं और उन्होंने राजू को गले से लगा लिया | और बोले ,” i love you बेटा | दोस्तों , राजू कितना प्यारा बच्चा था | वह अपने पापा को best देना चाहता था | पर पापा उसकी feelings नहीं समझ पाए | एक सेकंड के लिए ही धोखा खा गए | वो तो बच्चा था जल्द ही confusion दूर हो गया | पर कई बार टीन एज आने के बाद पेरेंट्स व् बच्चों में ये कान्फुजन दूर नहीं हो पाता | जहाँ एक तरफ पेरेंट्स को लगता है की बच्चे उन पर ध्यान नहीं देते | उनसे कुछ शेयर नहीं करते | पर कई बार बच्चे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो अपने पेरेंट्स को बेस्ट देना चाहते हैं | इस कारण तनाव में चले  जाते हैं | जरूरत है दोनों इस पर खुल कर बात करें | व् पहले से ही धारणा बना लेने के स्थान पर  सही समय पर प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें ….  महात्मा गाँधी जी के 5 प्रेरक प्रसंग सफलता का हीरा बोनसाई खीर  में कंकण  बाल मनोविज्ञान पर ये कहानी आप को कैसी लगी | अगर आप को यह कहानी पसंद आई हो तो इसे शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | 

यह भी गुज़र जाएगा ( motivational story in Hindi )

 everything is temporary – motivational story in Hindi  जीवन सुख दुःख से मिलकर बना है | हम सब ये जानते हैं | फिर भी दुखी कौन रहना चाहता है | पर ऐसा होता नहीं | लगता है ऐसा कोई एक मंत्र  मिल जाए जिससे हमेशा खुश रहे | आज मैं एक ऐसा ही एक मंत्र आप सब के साथ शेयर करने जा रही हूँ | ये मंत्र मेरा बनाया हुआ नहीं है | दरसल इस मंत्र के पीछे एक कहानी है | बहुत पहले की बात है | एक राजा था भी हमारी तरह लगता था की वो हमेशा  रहे | अब होता ये की जब वो वास्तव में खुश होता तो उसे डर लगा रहता की कहीं बड़ा सा दुःख न आ जाए और सारी  खुशियाँ खत्म कर दे | जब वो दुखी होता  तो उसे लगता ये समय  तो कभी खत्म ही नहीं होगा | ये तो चलता जा रहा है | चलता जा रहा है | उसने सोंचा की खुशियों के साथ थोडा सा दुःख हो और दुखों के साथ थोड़ी सी ख़ुशी हो तो शायद सामंजस्य बन जाए | उसने कोशिश करी पर यह संभव नहीं हुआ | अब तो राजा बहुत बेचैन रहने लगा | उसने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी की जो कोई उसकी इस समस्या का समाधान कर देगा उसे बहुत बड़ा इनाम मिलेगा | पर कोई उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाया | तभी राज्य में दूसरे राज्य का एक विद्वान व्यक्ति आया उसने राजा के पास संदेश भिजवाया की वो उसकी समस्या का समाधान कर देगा  | राजा ने उसे पूरे आदर के साथ राजमहल में बुलवाया | पढ़िए – वो भी नहीं था युवक बोला , “ महाराज कोई भी परिस्तिथि हो आप जब भ्रमित हो तो यह मंत्र बोलिये ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा ने ऐसा ही करने का निश्चय किया | अब जब ख़ुशी आई तो राजा ने यही मंत्र कहा ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | अब राजा ने सोंचा यह समय तो गुज़र जाएगा | कल को ख़ुशी रहे न रहे तो  क्यों न इसमें खुल के जी लें | और खुल के खुश हो लें | राजा ने ऐसा ही किया | वो बहुत खुश हुआ | कुछ समय बाद दुःख आया | राजा का मन घबरा गया | फिर उसने जोर – जोर से व्ही मंत्र कहना शुरू किया ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा का मन बड़ा हल्का हो गया | अरे ये दुःख स्थायी तो है नहीं | फिर क्यों इसको इतना महत्व दें | अपना काम अच्छे से करते रहे | क्योंकि ये तो एक न एक दिन जाना ही है | मित्रों यही सदा सुखी रहने का मूल मंत्र है | जब सब कुछ अस्थायी है तो सुख या दुःख से चिपकना कैसा | जब ख़ुशी का समय हो तो उन्मुक्त आनंद लो  क्योंकि वो हमेशा रहने वाला नहीं है | और जब दुःख का समय हो तो घबराओं नहीं क्योंकि “यह भी गुज़र जाएगा “ |  सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …  कामलो सो लाडलो मनोबल न खोएं यकीन टाइम है मम्मी

वो भी नहीं था

motivational story in Hindi  संदीप माहेश्वरी की स्पीच में उनके द्वारा सुनाई गयी प्रेरक कथा  मित्रों , संदीप माहेश्वरी एक लोकप्रिय मोटिवेशनल  स्पीकर हैं | उन्होंने बहुत छोटे स्तर से शुरू कर के न केवल स्वयं सफलता पायी बल्कि अब वो दूसरों को भी सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं | स्पीच के दौरान वो छोटी – छोटी प्रेरक कथाएँ सुनाते हैं | ऐसी ही एक प्रेरक कथा उन्होंने एक स्पीच के दौरान सुनाई थी | वही  आज मैं आप के साथ शेयर कर रहा  हूँ | एक गाँव में  दो बच्चे आपस में बहुत गहरे मित्र थे | उनकी दोस्ती इतनी पक्किथि की वो हर काम साथ – साथ करते | साथ – साथ खाते , साथ साथ खेलते व् साथ – साथ पढ़ते भी थे |लोगों को उनकी इतनी गहरी दोस्ती देख कर आश्चर्य होता | क्योंकि उनमें से एक बच्चा १० साल का था और एक ५   साल का | पर जैसा की आप जानते हैं की दोस्ती तो दोस्ती होती है उसमें उम्र बाधा कहाँ होती है |  यह भी पढ़ें – एक राजकुमारी की कहानी तो किस्सा है एक शाम का जब दोनों दोस्त खेलते – खेलते गाँव के पास के जंगल में पहुँच गए | थोड़ी शाम और गहराई तो उन्हें दर लगने लगा | उन्होंने सोंचा अब खेल यहीं रोक कर जल्दी घर चलते हैं | | वो तेजी तेजी से घर की ओर लौटने लगे | तभी बड़ा बच्चा जो १० साल का था एक सूखे कुए में गिर गया | उसके बचाओ , बचाओ चिल्लाने पर ५ साल के बच्चे ने पीछे मुद कर देखा | उसे कुए में गिरा देख कर वह रोने लगा | फिर खुद ही  आँसूं पोंछ कर मदद के लिए आवाज़ दी |पहले एक तरफ दौड़ा फिर दूसरी तरफ दौड़ा | पर जैसा की मैंने पहले बताया की वहां कोई था ही नहीं | अब कोई होता तब आता | ५ साल साल के बच्चे ने सोंचा की अगर वो गाँव की तरफ अकेले मदद मांगने जाएगा तो हो सकता है की वो रास्ता भूल जाए | वो बहुत ही पशोपेश में पद गया की वो अपने दोस्त की जान कैसे बचाये | हैरान परेशां होकर इधर – उधर ढूँढने पर उसे एक रस्सी दिखाई दी | उसकी जान में जान आई |उसने रस्सी कुए में फेंक दी व् दूसरा सिरा अपने हाथ में पकडे रखा |अब उसने अपने १० साल वाले दोस्त को खींचना शुरू किया | खींचना मुश्किल था | पर उसने हिम्मत नहीं हारी खींचता रहा , खींचता रहा | आखिर कार उसने अपने दोस्त को कुए के बाहर खींच लिया | बाहर आने पर दोनों मित्र गले लग कर खूब रोये | फिर हँसते बतियाते घर की तरफ चल दिए |  गाँव पहुँच कर उन्होंने सारा किस्सा अपने घरवालों व् गाँव वालों को सुनाया की कैसे छोटे दोस्त ने बड़े दोस्त की जान बचाई | गाँव वाले उन किस्सा सुन कर हंसने लगे | कोई उन पर विश्वास ही नहीं कर रहा था | ऐसा कैसे हो सकता है की ५ साल का छोटा सा बच्चा १० साल के बच्चे को खींच कर निकाल ले |पर बच्चे बार – बार कह रहे थे की उन पर विश्वास करो वो सच बोल रहे हैं | यह भी पढ़ें …खीर में कंकण बात फैलते – फैलते गाँव के सबसे समझदार रहीम चाचा के पास गयी | रहीम चाचा ने गाँव वालों से कहा , बच्चों पर मत हंसों वो सच बोल रहे हैं | अब आश्चर्य चकित होने की बारी गाँव वालों की थी | अरे , रहीम चाचा ऐसे कैसे कह सकते हैं | भला ५ सालका बच्चा १० साल के बच्चे को कैसे खींच सकता है | सब उत्तर के लिए रहीम चाचा का मुँह देखने लगे | रहीम चाचा मुस्कुरा कर बोले इसमें न विश्वास करने वाली बात क्या है | छोटे बच्चे को तो बड़े बच्चे को बाहर निकालना ही था | क्योंकि जैसा की उसने कहा की वहां कोई नहीं था जो इससे कहता की तुम ये काम नहीं कर सकते हो | | लेकिन वो यह असंभव काम इसलिए कर पाया क्योंकि वहां … ” वो भी नहीं था ”                      दोस्तों , ये खूबसूरत कहानी ” वो भी नहीं था | हमें सन्देश देती है की जब भी कोई कठिन काम करन चाहते हैं तो लोग हमें यह कहने लगते हैं ,” अरे तुम ये नहीं कर पाओगे | धीरे – धीरे ये सुनते सुनते हमारा मन भी यह कहने लगता है ,” क्या हम ये काम कर पायेंगे “? दरसल किसी काम को शुरू करने से पहले ही उसके बारे में इतनी NEGATIVE बातें सोंच कर हम अपनी SELF CONFIDENCE को कमजोर कर लेते है | और सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है | इसलिए जब भी कोई काम शुरू करें तो “वो भी नहीं था”  के सिद्धांत पर चलते हुए NEGATIVE THOUGHTS को अपने मन में न आने दें  आपको ये कहानी कैसे लगी अपने विचार हमें जरूर बताये | पसंद आने पर शेयर करें | अगर आप के पास भी कोई स्टोरी है तो उसे editor .atootbandhan@gmail.com पर भेजें | पसंद आने पर हम उसे यहाँ प्रकाशित करेंगे |  सुबोध मिश्रा  रिलेटेड पोस्ट ….. कामलो सो लाडलो मनोबल न खोएं यकीन टाइम है मम्मी

यकीन

एक बार एक आदमी रेगिस्तान में जा रहा था |  तभी रेत भरी आँधी चली और वो रास्ता भटक गया | उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो भी  जल्द ही ख़त्म हो गयीं और  हालत ये हो गयी की वो बूँद – बूँद पानी को तरसने लगा | पिछले दो दिन से उसने पानी पीना तो दूर , पानी पिया भी नहीं था | वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहते हैं न जब तक सांस है तब तक आस है | उसे भी कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ..पहले भी भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…( जैसा की आप जानते हैं रेगिस्तान में पानी की इमेज बनी दिखती है जिसे मृगतृष्णा भी कहते हैं |) पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां आया न हो। फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा | वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नयी उर्जा व् उत्साह से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका!वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से चिपका एक कागज़ दिखा….उस पर लिखा था- इस पानी का प्रयोग हैण्ड पंप चलाने के लिए करो…और वापस बोतल भर कर रखना नहीं भूलना। ये एक अजीब सी स्थिति थी, आदमी को समझ नहीं आ रहा था कि वो पानी पिए या उसे हैण्ड पंप में डालकर उसे चालू करे!उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे| अगर पानी डालने पे भी पंप नहीं चला|.अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुईतो ?  क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो…लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े |क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो | वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे! अजीब उहापोह से गुजरने के बाद उसने उस बात पर यकीन करने का मन बनाया | वो बोतल भर पानी जो उसकी जिंदगी बचा सकता था उसे उसने पंप चलाने में खर्च कर दिया | ख़ुशी की बात थी की पम्प चालू हो गया | वो पानी किसी अमृत से कम नहीं था… आदमी ने जी भर के पानी पिया, उसकी जान में जान आ गयी, दिमाग काम करने लगा। उसने बोतल में फिर से पानी भर दिया और उसे छत से बांध दिया। जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और शीशे की बोतल दिखी। खोला तो उसमे एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था जिसमे रेगिस्तान से निकलने का रास्ता था। उस आदमी का काम तो बन गया | अब वो उस रास्ते को याद करके रेगिस्तान से बाहर निकल सकता था | उसने कागज़ को वापस बोतल में डाला और ईश्वर का नाम ले कर आगे बढ़ चला | तभी उसके दिमाग में एक विचार कौंधा | वो वापस लौटा | उसने पानी वाली बोतल पर कुछ लिखा फिर यात्रा पर चल दिया | क्या आप जानना चाहेंगे की उसने क्या लिखा | उसने लिखा …… मेरा यकीन करिए…ये काम करता है ! दोस्तों जिन्दगी में यकीन का बड़ा अहम् रोल है | हम जिस बात पर यकीन करते हैं उसे कर जाते हैं | कई बार अनिर्णय की स्तिथि यकीन न करने की वजह से होती है | अगर आप जिंदगी में सफल होना चाहते हैं तो अपने काम अपनी प्रतिभा पर यकीन करिए | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …….. एक राजकुमारी की कहानी खीर में कंकण जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा

खीर में कंकड़

motivational story on bhagya  and  karma in hindi  संजीत शुक्ला  दोस्तों अक्सर हमारे मन में ये प्रश्न रहता है की भाग्य बड़ा है या कर्म | आज इसी विषय पर एक motivational story आपसे  share कर रहा हूँ | कहानी है दो दोस्तों की | जिनके नाम थे गौरव और सौरभ                                                                          अब सौरभ था भाग्यवादी और गौरव कर्म को मानने वाला |यूँ तो दोनों गहरे मित्र थे पर  अक्सर इस विषय पर दोनों की बहस हो जाती | दोनों अपने point of view को सही बताते |                        एक बार की बात है दोनों बतियाते बतियाते शहर से दूर निकल आये | थोडा सा रास्ता भी भटक गए | रात होने वाली थी | वहीँ पास में एक झोपडी थी | दोनों ने वहीँ रात बिताने की सोंची | जैसे ही उन्होंने झोपडी में प्रवेश किया तो देखा वहां एक बड़े पात्र में खीर रखी हुई थी | अब सौरभ बहुत खुश हो गया और चहक कर गौरव से बोला की ,” देखो मेरा भाग्य , मुझे इस झोपडी में खीर मिल गयी | कौन जानता था किसने किसके लिए बनायीं थी पर मेरे नसीब में खाना लिखा था तो मुझे मिली |गौरव चुप रहा |  अँधेरा हो चला था | सौरभ  ने खीर खाना शुरू किया | उसने खीर गौरव को भी offer की | पर गौरव ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की तुझे भाग्य से मिली है तू  ही खा | सौरभ ने खीर खाना शुरू किया | पर अगले ही क्षण वो थू थू कर खीर थूकने लगा | अरे इस खीर में तो कंकण ही कंकण हैं | इसे तो कोई नहीं कहा सकता |  अब गौरव ने खीर का पात्र उठा लिया | फिर सौरभ की तरफ देख कर बोला ,” यूँ तो रात कटेगी नहीं , तू सोजा मैं खीर के कंकण बीनता रहूँगा | कर्म करते – करते रात कट ही जायेगी | सौरभ ने बुरा सा मुँह बनाया और सो गया |                             गौरव कंकण अपने रुमाल पर इकठ्ठा करता रहा | सुबह सूरज की रोशिनी में जब गौरव ने कंकण दिखाने के लिए रुमाल खोला तो दोनों की आँखें फटी की फटी रह गयीं | दरसल वो कंकण नहीं हीरे थे | अब खुश होने की बारी गौरव की थी | ये उसके रात भर जाग कर किये गए कर्म का फल जो था |  दोस्तों , i am sure आप भी कर्म और भाग्य की बहस में उलझते होंगे | ये छोटी सी motivational story हमें बताती है की हमें भाग्य के सहारे न बैठ कर कर्म करना चाहिए | भाग्यवादी को भले ही खीर मिल जाए पर diamond तो कर्म वादी के हाथ ही आते हैं  सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें ………. जब कालिदास नन्ही बच्ची से शास्तार्थ में पराजित हुए  इको जिंदगी की क्या आप अपना कूड़ा दूसरों पर डालते हैं

कहीं आपको फेसबुक का नशा तो नहीं ?

                        ऍफ़ बी  या फेस बुक  विधाता कि बनाई दुनियाँ के अन्दर एक और दुनियाँ ……… जीती जागती सजीव …कहते है कभी भारतीय ऋषि परशुराम ने विधाता कि सृष्टि के के अन्दर एक और सृष्टि बनाने कि कोशिश कि थी …. नारियल  के रूप में |उन्होंने आखें ,मुंह बना कर चेहरे का आकार दे दिया था ……. पर किसी कारण वश उस काम को रोक दिया | पर युगों बाद मार्क जुकरबर्ग ने उसे पूरा कर दिखाया फेस बुक या मुख पुस्तिका के रूप में | बस एक अँगुली का ईशारा और प्रोफाइल पिक के साथ  पूरी जीती –जागती दुनियाँ आपके सामने हाज़िर हो जाती है |भारत ,अमरीका ,इंगलैंड या पकिस्तान सब एक साथ एक ही जगह पर आ जाते हैं और वो जगह होती है आप के घर में आपका कंप्यूटर ,लैपटॉप या मोबाइल | कितना आश्चर्य जनक कितना सुखद | इंसान का अकेलापन दूर करने वाली ,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली साइट इतनी लोकप्रिय होगी इसकी कल्पना तो शायद मार्क जुकरबर्ग ने भी नहीं कि थी | आज फेस बुक दुनियाँ कि सेकंड नम्बर कि विजिट की  जाने वाली साइट है |पहली गूगल है | इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि आज इसके लगभग एक बिलियन रजिस्टर्ड यूजर्स हैं | यानी कि दुनियाँ का हर सातवाँ आदमी ऍफ़ बी पर है ……….. आप भी उन्हीं में से एक हैं ,हैं ना ? आज अगर आप किसी से मिलते हैं तो  औपचारिक बातों के बाद उसका पहला प्रश्न यही होता है “क्या आप ऍफ़ बी  पर हैं और अगर आप नहीं कहते हैं तो अगला आप को ऊपर से नीचे तक ऐसे देखता है “ जैसे आप सामान्य मनुष्य नहीं हैं बल्कि चिड़ियाघर से छूटे कोई जीव हों |                        अब आप अगर सामान्य मनुष्य है ,चिड़ियाघर से छूटे  जानवर नहीं तो इतना तो तय है कि आप भी ऍफ़ बी यूज( इस्तेमाल ) कर रहे होंगे |पर सोचने वाली बात यह है  कि आप ऍफ़ बी इस्तेमाल   कर रहे हैं या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं| यहाँ ओवर यूज से मेरा मतलब है आप दिन भर में एक घंटे से ज्यादा ऍफ़ बी यूज तो नहीं कर रहे हैं ….. यहाँ केवल वही  समय नहीं देखना है जो आप ऑनलाइन रहते है बल्कि वो समय भी जोड़ना है जब आप ऍफ़ बी ,उसके लाइक कमेंट ,स्टेटस के बारे में सोचने में बिताते हैं और मानसिक रूप से ऍफ़ बी पर ही रहते हैं क्योंकि वस्तुतः हम वहीँ होते हैं जहाँ हमारा मन होता है | ऐसे समय में हाथों से किया जाने वाला काम प्रभावित होता है |और अगर ऐसा है तो सतर्क हो जाइए क्योंकि  अकेलापन दूर करने वाली ,लोगों को लोगों से जोड़ने वाली इस साइट का एक खतरनाक असर भी है …….. कि ये बहुत जल्दी ही आप को एडिक्ट बना लेती है | क्या मैं ऍफ़ बी एडिक्ट हूँ –                      ऊपर कि पंक्तियाँ पढ़ कर जरूर आप के मन में यह सवाल उठा होगा | आप जानना चाहते होंगे कि कहीं मैं ऍफ़ बी एडिक्ट तो नहीं हो गया | उत्तर आसान है ……… जैसे हर बीमारी के सिमटम्स होते हैं वैसे ही ऍफ़ बी एडिकसन  के कुछ सिमटम्स हैं | जरा गौर करिए कहीं आप में इनमें से कोई चिन्ह तो नहीं है | *आप के हाथ कहीं भी व्यस्त हो आपके दिमाग में एक अजीब सी बेचैनी रहती है कि मैंने आज जो स्टेटस डाला था उस पर कितने लाइक कमेंट आये होंगे | * आप बार –बार अपने मित्रों के स्टेटस और अपने स्टेटस में होने वाले लाइक कमेंट कि तुलना करते रहते हैं…. अपने स्टेटस पर कम लाइक कमेंट देख कर आप का मूड उखड जाता हैं और आप बच्चों और घरवालों पर बेवजह झल्लाने लगते हैं | *आप कहीं भी हों कुछ भी कर रहे हो थोड़ी –थोड़ी देर में मोबाइल खोल कर देख लेते हैं कहीं कुछ नया स्टेटस तो नहीं आया है ? *अगर आप का इंटरनेट नहीं चल रहा है तो या तो आप पास पड़ोस में जाकर ऍफ़ बी देखते हैं या अपने दोस्तों से फोन कर –कर के पूंछते हैं कि आपके स्टेटस पर कितने लाइक कमेंट हैं | * रात को सोते समय आप ऍफ़ बी देख कर ही सोते हैं और कोशिश करते हैं कि गुड नाईट का स्टेटस डाल दे * सुबह आँख खुलने के बाद आप सबसे पहले ऍफ़ बी देखते हैं * आप को अपने आस –पास कि घटनाओं से उतना फर्क नहीं पड़ने लगता जितना ऍफ़ बी कि घटनाओं से *आप को लगने लगता है कि अब अप दुनियाँ के सबसे व्यस्त इंसान हो गए हैं जिसके पास अब अपने जिगरी दोस्त से बात करने के लिए १० मिनट भी नहीं हैं जिसके साथ कभी आपकी घंटों बातें ही ख़त्म नहीं होती थी | * और सबसे खतरनाक आप टॉयलेट में भी मोबाइल ले जाकर  स्टेटस चेक करने लगे हैं |                       अगर आप में इनमें से कोई लक्षण है तो सावधान  आप ऍफ़ बी एडिक्ट हो गए हैं | वैसे भी अगर मोटे तौर पर देखा जाए जो लोग एक घंटे से ज्यादा ऍफ़ बी प्रयोग करते हैं उन सब में एडिक्ट होने कि प्रबल संभावना रहती है |इस नियम में केवल उन लोगों को छूट है जो व्यावसायिक तौर पर ऍफ़ बी का प्रयोग करते हैं …. जैसे अपने सामान के  प्रचार के लिए , किसी सामाजिक कारण के लिए या किसी मुद्दे पर जन जागरण के लिए …  आपके ऍफ़  बी अडिक्ट होने कि संभावना ज्यादा है अगर …… क )अगर आप ने जीवन में कोई लक्ष्य नहीं बनाया है                            इन्हें आप घुमंतू भी कह सकते हैं | इनमें से ज्यादातर वो किशोर व् युवा आते हैं जो  लक्ष्य विहीन सिर्फ पास होने के लिए पढ़ रहे है ….. जाहिर है वो इम्तिहान के आस –पास ही पढेंगे बाकी समय कुछ मौज –मस्ती करने कि इरादे से ऍफ़ बी पर आते हैं और फिर यही के हो कर रह जाते हैं | ख ) जो दूसरों का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं                           आप इन्हें हीन भावना ग्रस्त या कुछ हद तक अवसाद में भी कह सकते … Read more

फेसबुक एप – ये फेसबुक है ये सब जानती है

आपको एक पुरानी फिल्म जरूर याद होगी | नाम था शतरंज के खिलाड़ी | वो नवाबों के ज़माने की फिल्म थी | पर यहाँ मैं फिल्म की बात नहीं करना चाहता | मैं बात करना चाहता हूँ खेल शतरंज की | काफी नवाबी खेल हुआ करता था | उस समय लोग जिनके पास समय होता था वह इसे खेला करते थे | एक एक चाल सोचने में मिया चार – पांच घंटे लग जाते | वजीर तो वजीर पैदल भी २ २ घंटे टस से मस नहीं होता | गोया पान खाते रहो और पीक थूकते -थूकते सुबह से शाम हो जायेगी | वो जमाना गया , फिर आया ताश का जमाना , नहले पर दहला डालते घंटे चुटकियों में कट जाते | पान खाने और पीक थूकने की आदत ने यहाँ भी खूब साथ निभाया | हम भारतीय तो उसी में खुश थे | तभी मार्क जुकरबर्ग फेसबुक लेकर आ गए | कहा रिश्ते नातेदारों को एक सूत्र में बाँध कर रखेंगे | दूर रह कर भी पास रहेंगे | बस सब दौड़ पड़े … कोई एक आई डी से, २ -४ कोई फेक आई डी से | ५ रिश्तेदारों के नाम भी न जानने वालों ने ५००० मित्र बनाये | सब सेलेब्रेटी स्टेटस हो वाले हो गए | पर पान खाने और पीक थूकने की आदत गयी नहीं | बस फर्क इतना आया की ये सारी की सारी पीक आभासी होती जो एक दूसरों की पोस्ट पर थूंकते फिरते | बातों के फ़साने बनते | देश में कोई भी मुद्दा चल रहा हो | यहाँ फ़साना बनते देर नहीं लगती | देश में कहीं असहिष्णुता हो न हो फेसबुक पर जम कर दिखती | शायद मार्क जुकरबर्ग इस थूकां थाकी से परेशां हो गए और बड़े बच्चों को व्यस्त करने के लिए एप पर एप बनाने शुरू कर दिए | फार्मूला काम, कर गया कुछ लोग थूका थाकी छोड़ कर एपा एपी में व्यस्त हो गए | और क्यों न हो ? ये एप आपके बारे में सब कुछ जानते हैं | शुरू -शुरू तो फेस बुक ने कम हिम्मत दिखाई | तब एप ऐसे आते थे …. आपके दोस्त आपके बारे में क्या सोचते हैं , आपके क्लोज फ्रेंड कौन हैं | बस पब्लिक इसमें जरा सा उलझी नहीं की फेसबुक के तो पर लग गए | सीधा हमारे मन के बारे मैं भविष्यवाणियाँ करने लगे | आप कितने प्रतिशत अच्छे हैं | आप के दिल का रंग कौन सा हैं | हमें पक्का याद है इतना रट के गए थे क्लास २ में की दिल का रंग चौक्लेटी लाल होता है | पर क्लास में जाते जाते वो लाल कब हरे में बदल गया पता ही नहीं चला | हां ! इतना जरूर याद है टीचर ने मार -मार कर हाथ लाल कर दिया था | खुदा गवाह है सारी दुनिया के अध्यापकों में क्रीऐतिविटी बिलकुल नहीं होती | बस जो कह दिया सो कह दिया | काश तब फेस बुक होता तो रटने की जरूरत ही नहीं पड़ती लाल , हरा नीला , पीला गुलाबी जो भी मन में आया लिख देते | पास तो होना ही था |टीचर कुछ कहती तो झट से मोबाइल पर फेस बुक खोल दिखा देते | अभी ऐसे ही एक दिन एक एप बता रहा था | आप किसे जैसे दिखते हैं | झट दबा दिया | खुदा की कसम हम तो ख़ुशी से झूम उठे जब फेस बुक ने बताया आप धर्मेन्द्र की तरह दिखते है | क्या जमाना हुआ करता था धर्मेन्द्र का | बॉडी – शोडी , डोले -शोले | हमारे तो पैर जमीन पर नहीं टिक रहे थे | लोग लाइक पर लाइक लगा रहे थे | और हम तुरंत ये खुशखबरी उसे बताने पहुँच गए जिसे हम लाइक करते हैं | उल्टा सीधा न सोचिये | हम गए हमारी एक मात्र धर्मपत्नी के पास | पहले तो हमें देख कर बुरा सा मुह बना कर बोली ,” अभी तक नहाए नहीं , ऑफिस नहीं जाना है क्या ? कह कर वो बर्तन धोने में जुट गयी | हमने तरह -तरह के मुँह बना कर दिखाने की कोशिश की की वो हमारी तरफ देखे पर उन्हें नहीं देखना था तो नहीं देखा | आखिरकार हमने खुद ही बता दिया , ” जरा ध्यान से देखो फेस बुक बता रहा है हमारी शक्ल धर्मेन्द्र से मिलती है | पत्नी के हाथ से बर्तन छूट गया | थोड़ी देर तक हमें निर्विकार भाव से देखती रहीं फिर बोली ,” हां सच्ची ! मिलती तो है | पर तब के धर्मेन्द्र से नहीं अब के धर्मेन्द्र से | खुदा गवाह है ४४० वोल्ट का झटका लगा | हम आसमान से गिरे और खजूर पर भी अटकने को नहीं मिला | जैसे दिल का गम मिटाने के लिए शराबी शराब के पास दौड़ता है वैसे ही फेस्बुकिया फेसबुक के पास | हम भी तुरंत फेस बुक क शरण में गए | फेस बुक ने हमें एप की बदौलत टाइम मैगजीन के कवर पर छापा , अखबार के पहले पन्ने पर छापा , मोदी हमारे बारे में क्या सोचते हैं बताया | पर मन का जख्म भरा नहीं | तभी हमारी नज़र एक और एप पर पड़ी | आप पिछले जन्म में क्या थे ? अब इस जन्म में तो धर्मेन्द्र (अभी वाले ) से शक्ल मिला कर कोई इज्ज़त रही नहीं पिछला ही जान लें | बटन दबाते ही हम बल्लियों उछ ल पड़े | मतलब ये की हम अपने मरने से १० साल पहले ही पैदा हो गए थे | हम क्लास में थे जब हमारे मरने की खबर आई थी | तब पता होता तो सारे स्कूल को बताते , की अदब से बात करो हम वो महा पुरुष हैं जिनकी इस समय सब शौर्य गाथाएं गाने में लगे हैं | खैर वो तो अतीत हो गया | पर अगर फेस बुक की माने तो हम अभी कहीं पैदा भी हो गए होंगे | और हो सकता है जवान और खूबसूरत भी दिखते हों | अगर ऐसा एप आया तब बात करेंगे पत्नी जी से | देखो अभी हम ऐसे दिखते हैं | हमें विश्वास है … Read more