स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग – 4 ) -स्त्री देह को अंधाधुंध प्रदर्शित कर नये -नये “प्रोडक्ट” बनाने की मुहिम

डॉ. मधु त्रिवेदी      क्रिएटिव ऐश-ट्रे को वेबसाईट पर पेश कर नया तरीका सर्च किया महिलाओं की भावनाओं से छेड़छाड़ करने का आॅन लाइन शापिंग कम्पनी अमेजन ने ।            “ट्राईपोलर क्रिएटिव ऐश-ट्रे’            इस उत्पाद    को ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी अमेजन ने बिक्री के उद्देश्य से अपनी वेबसाइट पर पेश किया था. विरोध करने का मुख्य आधार यह है कि इस कम्पनी ने उत्पाद के प्रस्तुतीकरण द्वारा मर्यादा की सारी सीमा लांघ दी ।        ‘क्रिएटिविटी ‘ शब्द का गलत प्रयोग करते हुए अमेजन ने अश्लील एवं घिनोनी मानसिकता का परिचय दिया है ।           अमेजन के इस उत्पाद को देख महिला वर्ग का टिप्पणी करना स्वभाविक ही नहीं बल्कि अधिकार था । इस तरह की छवि को प्रस्तुत करना महिलाओं के प्रति अत्याचार ,  हिंसा एवं बलात्कार     जैसी प्रवृतियों को उकसाना एवं बढ़ावा देना नहीं है तो और क्या है?             हर घंटे बलात्कार होते हैं, सिर्फ बलात्कार नहीं होते, बाॅडी की चीरा फाड़ी होती है लड़कियों के शरीर की फजीहत की जाती है स्तन काटे जाते हैं  वेजाइना में कांच, लोहे की रॉड, कंकड़ पत्थर के टुकड़े, शराब की टूटी बोतलें घोंप  मारने के बाद जला देते हैं चेहरा को  ताकि कोई पहचान न सके । क्या उस देश का बाजार आपको मानसिक संतुष्टि दे सकता है ?          क्या गंदी पुरूष मानसिकता की शिकार सोनी सोरी या दिल्ली गैंगरेप के दौरान पीड़िता के शरीर में रॉड घुसाया गया  उसे भूल सकते है । यह सब अपराध है  एक औरत के प्रति समाज की सोच साफ दिख रही है ।          स्त्री देह को अंधाधुंध प्रदर्शित कर नये -नये  “प्रोडक्ट” बनाने की मुहिम तेज हो गयी है।                 “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का “गलत प्रयोग हो रहा है स्वतंत्रता का अर्थ यह कदापि नहीं कि  पूंजी बनाने के लिए अपने माल की ज्यादा से ज्यादा बिक्री के लिए नग्नता, अश्लीलता का प्रदर्शन किया जाए  । प्राय : यहीं देखने में आता है कि विज्ञापनों में जिस तरह से नारी देह का प्रदर्शन हो रहा है, उसमें आधुनिकता व फैशन के नाम पर देह पर कपड़ों की मात्रा घटती जा रही हैजो भावी संस्कृति के लिए अच्छे संकेत नहीं  ।       अतः आवश्यकता सोच को बदलने की है ।  औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता पूंजीवाद अपने इस्तेमाल के लिए ।  चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।यह सोच ठीक नहीं है ।       औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता है पूंजीवाद अपने लाभ के लिए ।   चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।      लड़कों का हर गुनाह माफ होता है  लड़कियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हैं पुरुष प्रधान समाज उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है इसलिए उनके खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी कर उन्हें पुन: चाहरदिवारी के अंदर ढकेलने की कोशिश में जुटा हुआ है।  हमारा समाज आज भी लड़कों का हर गुनाह माफ करता है और लड़कियों को लड़कों के द्वारा किये गए कुकर्म का भी सजा देता है।                मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बलात्कार की अधिकांश घटनाओं में बलात्कारी का मुख्य उद्देश्य यौनेच्छा की पूर्ति नहीं बल्कि स्त्री का अपमान करना और उसे शारीरिक व मानसिक कष्ट देना होता है। असभ्य और राक्षसी-प्रवृत्ति के पुरुषों को एक ही बात समझ में आती है कि किसी का अपमान करने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि उसकी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया जाए। और समाज व सिनेमा से इन हैवानों ने यही सीखा होता है ।              महिलाओं को भी आत्मसंयम के साथ अपने आत्मविश्वास   को बनाए रखते हुए हिंसक समाज का विरोध करना चाहिए।इस दिशा में सरकार व निजी संस्थाओं ने महिलाओं को इन हिंसक प्रवृत्तियों से लड़ने के लिए बहुत से प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखे हैं साथ ही वे कई जगह जाकर अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों की शिकायत भी दर्ज करा सकती हैं।           असल में महिलाओं पर हिंसा को रोकने के लिए खुद समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पहल करनी पढ़ेगी।  डॉ. मधु त्रिवेदी  संक्षिप्त परिचय  ————————— .  पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी  पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ  बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर  साइंस आगरा  प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  उप संपादक   “मौसम ” पत्रिका में ☞☜☞☜☞☜☞☜☞☜☞☜

स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग – तीन ) -कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ?

दिनांक ६ /६ /17 को स्त्री देह और बाजारवाद पर एक पोस्ट डाली थी | जिस पर लोगों ने अपने अपने विचार रखे | कई मेल भी इस विषय पर प्राप्त हुए | कल आपने इस विषय पर पुरुषों  के प्रतिनिधित्व के विचार पढ़े | आज पढ़िए कुसुम पालीवाल जी के विचार … पहले की लिंक … स्त्री देह और बाज़ारवाद (भाग – २ ) लडकियां भी अपनी सोंच को बदलें स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग -1 ) आज की कड़ी – कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ? औरत को आदिकाल से लेकर आज तक देह ही समझा जा रहा है ये कोई माने न माने … देह का मतलब सैक्स पूर्ती तो है ही शारिरिक कार्य से भी है … उसका अपना मत क्या है ये कोई नहीं पूछता , न पहले ही न आज ही ।  राजा महाराजाओं के वक्त से आज तक औरत का दोहन हो रहा है , पहले मनोंरंजन का साधन थी , फिर कोठों पर बैठाई गई ,आज मार्केट में प्रसाधनों पर छापी जा रही है , कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ।  रहा काव्य सृजन का सवाल तो रिति काल में भी कवियों ने नारी के शिख से लेकर पैरों के एड़ी तक का वर्णन कर डाला …यहाँ तक उसके बक्षस्थल और योनि तक का बखान कर डाला । आज जिस तरह से , आज का पुरूष समाज कहता है कि घर से निकलोगी तो ये सब कुछ तो होगा ही , इक्कीसवी शताब्दी में भी औरत को आजादी नही मिलेगी तो कब मिलेगी । पुरूष ने कहीं भी औरत को सम्पूर्ण आजादी नही दी है …आजादी का मतलब ये नहीं कि वो नग्न हो कर नाचना चाहती है वो मानसिक रूप से आजादी चाहती है ।                                                                                 पुरूष ने उसे उसे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया जहाँ सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं जीने के लिए तो उसकी बैचारगी दूर करने के लिए भी इसी समाज के पुरूषवर्ग ने ही कोठो पर बैठा दिया । यहीँ पर दोष स्त्री जाति का कम और पुरूष जाति का ज्यादा है ..याद रखें जब भी नारी को ठुकराया है इस पुरूष जाति ने तब तब तब उसी पुरूष जाति ने उसे कोठे या कॉल गर्ल के धन्धे में लिप्त किया । यहाँ पर एक के बदलने से समस्या का समाधान नही वल्कि दोनो की मानसिकता बदलनी चाहिए , अब मानसिकता को ही लें जगह जगह पर ऐसे पुरूष दिखलाई दे जाते हैं जो अश्लीलता की हदें पार कर चुके होते हैं ,उनको क्या कहा जायेगा ? वही एक लड़की डीप नैक या शोर्टस पहने दिँखती है तो समाज बबाल खड़ा कर देता है । तो ये सब क्या है ? क्या मानसिकता का नजरिया नहीं है क्योकि कोई काम धन्धा नही है लड़कियों को घूरो .. जहाँ तक निगाह पहुँचे खरोंच डालो आँखो ही ऑंखों में । जब आप खुद को संभालेगें तब देश बदलेगा , नई सोच और हैल्दी सोच का प्रादुर्भाव होगा .. इसमें स्त्री पुरूष दोनो को ही बदलना होगा । कुसुम पालीवाल 

स्त्री देह और बाज़ारवाद ( भाग – २ ) – लडकियां भी अपनी सोंच बदलें

कल स्त्री देह और बाजारवाद पर एक पोस्ट डाली थी | जिस पर लोगों ने अपने अपने विचार रखे | कई मेल भी इस विषय पर प्राप्त हुए | इन्हीं में से एक विचार जो हमें प्राप्त हुआ | जो स्त्री देह और बाजारवाद पर पुरुषों के दृष्टिकोण  को व्यक्त  रहा है | उसे भी पढ़िए और अपनी राय रखिये | जिन्होंने कल की पोस्ट नहीं पढ़ी | उनके लिए लिंक इसी पोस्ट में है | आप भी अपने विचार रखिये | या अपने विचार हमें editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें  स्त्री देह और बाजारवाद( भाग एक )                    आज की पोस्ट  लडकियाँ भी अपनी सोंच को बदलें  लड़कियो केे नग्न घूमने पर जो लोग या स्त्रीया ये कहते है की कपडे नहीं सोच बदलो….उन लोगो से मेरे कुछ प्रश्न है???1)हम सोच क्यों बदले?? सोच बदलने की नौबत आखिर आ ही क्यों रही है??? आपने लोगो की सोच का ठेका लिया है क्या??2) आप उन लड़कियो की सोच का आकलन क्यों नहीं करते?? उसने क्या सोचकर ऐसे कपडे पहने की उसके स्तन पीठ जांघे इत्यादि सब दिखाई दे रहा है….इन कपड़ो के पीछे उसकी सोच क्या थी?? एक निर्लज्ज लड़की चाहती है की पूरा पुरुष समाज उसे देखे,वही एक सभ्य लड़की बिलकुल पसंद नहीं करेगी की कोई उस देखे3)अगर सोच बदलना ही है तो क्यों न हर बात को लेकर बदली जाए??? आपको कोई अपनी बीच वाली ऊँगली का इशारा करे तो आप उसे गलत मत मानिए……सोच बदलिये..वैसे भी ऊँगली में तो कोई बुराई नहीं होती….आपको कोई गाली बके तो उसे गाली मत मानिए…उसे प्रेम सूचक शब्द समझिये…..हत्या,डकैती,चोरी,बलात्कार,आतंकवाद इत्यादि सबको लेकर सोच बदली जाये…सिर्फ नग्नता को लेकर ही क्यों????4) कुछ लड़किया कहती है कि हम क्या पहनेगे ये हम तय करेंगे….पुरुष नहीं…..जी बहुत अच्छी बात है…..आप ही तय करे….लेकिन हम पुरुष भी किस लड़की का सम्मान/मदद करेंगे ये भी हम तय करेंगे, स्त्रीया नहीं…. और हम किसी का सम्मान नहीं करेंगे इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसका अपमान करेंगे5)फिर कुछ विवेकहीन लड़किया कहती है कि हमें आज़ादी है अपनी ज़िन्दगी जीने की…..जी बिल्कुल आज़ादी है,ऐसी आज़ादी सबको मिले, व्यक्ति को चरस गंजा ड्रग्स ब्राउन शुगर लेने की आज़ादी हो,गाय भैंस का मांस खाने की आज़ादी हो,वैश्यालय खोलने की आज़ादी हो,पोर्न फ़िल्म बनाने की आज़ादी हो… हर तरफ से व्यक्ति को आज़ादी हो।6) फिर कुछ नास्तिक स्त्रीया कुतर्क देती है की जब नग्न काली की पूजा भारत में होती है तो फिर हम औरतो से क्या समस्या है??पहली बात ये की काली से तुलना ही गलत है।।और उस माँ काली का साक्षात्कार जिसने भी किया उसने उसे लाल साडी में ही देखा….माँ काली तो शराब भी पीती है….तो क्या तुम बेवड़ी लड़कियो की हम पूजा करे?? काली तो दुखो का नाश करती है….तुम लड़किया तो समाज में समस्या जन्म देती हो…… और काली से ही तुलना क्यों??? सीता पारवती से क्यों नहीं?? क्यों न हम पुरुष भी काल भैरव से तुलना करे जो रोज कई लीटर शराब पी जाते है???? शनिदेव से तुलना करे जिन्होंने अपनी सौतेली माँ की टांग तोड़ दी थी।7)लड़को को संस्कारो का पाठ पढ़ाने वाला कुंठित स्त्री समुदाय क्या इस बात का उत्तर देगा की क्या भारतीय परम्परा में ये बात शोभा देती है की एक लड़की अपने भाई या पिता के आगे अपने निजी अंगो का प्रदर्शन बेशर्मी से करे??? क्या ये लड़किया पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से देखती है ??? जब ये खुद पुरुषो को भाई/पिता की नज़र से नहीं देखती तो फिर खुद किस अधिकार से ये कहती है की “हमें माँ/बहन की नज़र से देखो”कौन सी माँ बहन अपने भाई बेटे के आगे नंगी होती है??? भारत में तो ऐसा कभी नहीं होता था….सत्य ये है कीअश्लीलता को किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता। ये कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधो की तरफ ले जाने वाली एक नशे की दूकान है।।और इसका उत्पादन स्त्री समुदाय करता है।मष्तिष्क विज्ञान के अनुसार 4 तरह के नशो में एक नशा अश्लीलता(सेक्स) भी है।चाणक्य ने चाणक्य सूत्र में सेक्स को सबसे बड़ा नशा और बीमारी बताया है।।अगर ये नग्नता आधुनिकता का प्रतीक है तो फिर पूरा नग्न होकर स्त्रीया अत्याधुनिकता का परिचय क्यों नहीं देती????गली गली और हर मोहल्ले में जिस तरह शराब की दुकान खोल देने पर बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है उसी तरह अश्लीलता समाज में यौन अपराधो को जन्म देती है।।#साभार_श्यामजी के व्हाट्स एप्प सॆ..  शिवा पुत्र 

स्त्री देह और बाजारवाद

बाजारवाद ने सदा से स्त्री को केवल देह ही समझा | पुरुषों के दाढ़ी बनाने के ब्लेड ,शेविंग क्रीम , डीयो आदि में महिला मॉडल्स को इस तरह से पेश किया गया जैसे वो भी कोई प्रॉडक्ट हो |  दुखद है की ये विज्ञापन पढ़ी – लिखी महिला की भी ऐसी छवि प्रस्तुत करते हैं की उसका कोई दिमाग नहीं है वो शेविंग क्रीम या डीयो की महक से बहक कर अपना साथी चुनती है | शिक्षित नारी की बुद्धि पर देह हावी कर स्त्री की छवि बिगाड़ने में इन विज्ञापन कम्पनियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी |इससे भी ज्यादा दुखद है की हम परिवार के बीच बैठ वो विज्ञापन देखने के बाद वो प्रोडक्ट भी खरीद कर लाते हैं | यानी बाज़ार जानता है की उसका फायदा किसमें है |  यह सच्चाई किसी से छुपी नहीं है की तमाम अखबार और वेबसाइट फ़िल्मी हीरोइनों की आपत्तिजनक तस्वीरों को डाल – डाल अपनी पाठक संख्या में इजाफा करते हैं | लेकिन ये सिर्फ पाठक संख्या में ही इजाफा नहीं करते ये एक गलत वृत्ति के भी संवाहक है | जिसका परिणाम महिलाओं के प्रति किये जाने वाले अपराधों के बढ़ते आंकड़ों के रूप में दिखाई देता है | इसी कड़ी में अपने घिनौने रूपमें सामने आई है वह ऐश ट्रे जो अमेज़न .कॉम पर बिकने के लिए उपलब्ध है |  जिस कम्पनी ने इसे बनाया , जिस साइट या दुकानों द्वारा बेंची जा रही है वो समान रूप से दोषी हैं | जो स्त्री के प्रति एक गलत सोंच का प्रचार कर रही हैं |जिसका परिणाम हर आम बेटी बहू , माँ , बहन झेलेंगी | जब मीडिया में स्त्री को देह बनाने की साजिशे चल रही थी | तब हम अपने – अपने घरों के दरवाजे खिड़कियाँ बंद कर मौन धारण कर सुरक्षित बैठे रहे |जिसका परिणाम स्त्री के प्रति बढ़ते अपराधों के रूप में सामने आया | अभी हाल का मासूम नैन्सी कांड किसको विचलित नहीं कर देता | यह भी स्त्री के प्रति ऐसी ही घृणित सोंच का परिणाम है | कहीं तो लगाम लगानी होगी | कभी तो लगाम लगानी होगी | हम तब चुप बैठे , क्या अब भी चुप बैठेंगे | अपना विरोध दर्ज कीजिये वंदना बाजपेयी