आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आज़ाद (रचना व्यास )
कोई पैमाना नहीं है अर्धांगिनी नारी तुम जीवन की आधी परिभाषा।’ कितना सच और सुखद लगता है सुनने में पर जब भी किसी को बुर्के में या परदे में लिपटा देखती हूँ तो अर्धनारीश्वर की धारणा असत्य लगती है। कैद किसी को भी मिले चाहे स्त्री हो, पुरुष हो, युवा हो, वृद्ध हो या बच्चा हो- व्यक्तित्व को कुंठित कर देती है। सृष्टिकर्ता ने सबको स्वतन्त्र उत्पन्न किया है चाहे वो मनुष्य हो, पशु- पक्षी हो या वनस्पति इत्यादि। वहीँ भारत का संविधान सबको समानता व स्वतन्त्रता का मूल अधिकार देता है अब कोई व्यक्ति कैसे किसी को कैद कर सकता है। कैद का अर्थ केवल शारीरिक रूप से बन्धन में रखना ही नहीँ है। यह किसी की सोच को प्रभावित करना है, उसे भावनात्मक रूप से दबाना है, उसे आर्थिक रूप से वंचित बना देना है। वहीँ आजादी का अर्थ सिर्फ घर से बाहर घूमते रहना नहीँ है। आजादी का अर्थ है संकुचित सोच से ऊपर उठकर उदार दृष्टि से स्थितियों का अवलोकन, एक निर्द्वन्द सोच। आजादी का अर्थ है भावनाओ का सन्तुलन व सम्मान तथा साथ ही आर्थिक आत्मनिर्भरता। जैसे स्वतन्त्रता व स्वछंदता में बाल के बराबर अंतर है वैसे ही आर्थिक आजादी का अर्थ फिजूलखर्ची कदापि न लिया जावे। वैसे व्यक्ति अपनी सोच से स्वयं अपनी आजादी खण्डित करता है। एक उदाहरण से स्पष्ट करना चाहूंगी। दुनिया की इस आधी आबादी -स्त्री शक्ति ने कोई क्षेत्र अछूता नहीँ छोड़ा है। वह सर्वत्र स्वयं को बेहतर साबित कर रही है पर वो भीतर से कितनी आजाद है; मैं अक्सर यह पढ़ने का प्रयास करती हूँ। मेरी एक सहेली जॉब करती है- पति के आर्थिक रूप से सक्षम होने और मना करने पर भी। शाम को ऑफिस से दोनों लौटते है। चाय बनाने से लेकर बच्चों को सँभालने तक का सारा काम सहेली को ही करना होता है।उसके पति किसी भी काम में उसकी मदद नहीँ करते। उसे बीमार होने पर खुद ही डॉक्टर के जाना होता है। पति का सपाट जवाब होता है कि जब वो जॉब के लिए बाहर जा सकती है तो इलाज के लिए भी जाये और पैसा भी खुद का ही खर्च करे। मैंने उसे मित्रवत् सलाह दी कि दो मोर्चों पर अकेले लड़ने से बेहतर है पति की इच्छानुसार जॉब छोड़कर घर में ही कुछ रचनात्मक कर लो। उसका दो टूक जवाब था कि उसे खुद को पति के बराबर साबित करना है। अब पाठक बतायें कि यहाँ किसने किसको कैद किया है। स्पष्टत: वह अपनी सोच की कैदी है। एक होड़ की कैदी है। उसके पति आजाद है भीतर से इसलिए चाय तक नहीँ बनाते। जिन स्त्रियों पर फिजूल के पहरे है, उनकी प्रतिभा का दमन किया जा रहा है उनके साथ मेरी भरपूर सहानुभूति व सहयोग है । उन्हें अच्छी पुस्तकें उपलब्ध करवाना , उनकी व्यथा सुनना भी मैं अपने लिए एक पुण्यकार्य मानती हूँ पर तकलीफ वहाँ होती है जब मैं उन्हें आत्मविश्वास से विहीन देखती हूँ। छोटी-छोटी बातों पर दिखाया गया आत्मविश्वास भी बड़ी सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। वहीँ पर इसे खो देना – मानो सामने वाले को आमन्त्रित करना है कि आओ हमेँ कैद कर लो -भले ही वो व्यक्ति पारिवारिक सदस्य हो, कार्यस्थल का कोई व्यक्ति हो या हमारा अपना हृदय। जिस दिन कोई स्त्री आत्मविश्वास से लबरेज होती है, कुछ कर गुजरने की इच्छा उसके भीतर जड़े जमा लेती है, भले ही काम कितना ही छोटा हो। राह में आने वाली तमाम बाधाओं को वो अनदेखा कर देती है- उसका हृदय अनायास गा उठता है- काँटों से खींचकर ये आँचल…। ये महज गीत की पंक्तियाँ नहीँ हैं, ये आजादी के सच्चे उदगार हैं। वही सच्ची कर्मयोगिनी है और आजाद भी। वहीँ दूसरी ओर कोई उच्चशिक्षिता स्त्री लाखों के पैकेज के लिए अपनी वास्तविक खुशियों को अनदेखा कर, उन्नत करियर के लिए मातृत्व सुख तक नकार देती है ; मेरी दृष्टि में उससे ज्यादा कैद कोई नहीँ हैं। अतः हमें कैद और आजादी का न तो कोई पैमाना निर्धारित करना है, न ही उसे आकड़ों में बाँटना है। ये नितांत निजी अनुभव है, आंतरिक सम्वेदना है। – द्वारा नाम : रचना व्यास शिक्षा : एम ए (अंग्रेजी साहित्य एवं दर्शनशास्त्र), एल एल बी , एम बी ए अटूट बंधन