Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार

Anxiety एक बहुत ही सामान्य सा शब्द है जिसे हम सब महसूस करते हैं | पर जब हम Anxiety Disorder की बात करते हैं तो ये एक गंभीर मानसिक बीमारी हैं | जिसे समय रहते इलाज़ की जरूरत है |Anxiety Disorder के बारे में आज हम जानेगे नीता मेहरोत्रा जी के इस विशेष लेख से Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार  आपने अपने आसपास , अपने प्रिय लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखा होगा |  कुछ ऐसे लक्षण जिन्हें भले ही आप न समझ पा रहे हों पर आपको लग रहा हो कि कहीं कुछ तो गलत है |  अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए | ये मानसिक रोगों की शुरुआत हो सकती है |अचानक हुआ व्यवहार में ये परिवर्तन सामान्य नहीं हैं | मेरा उद्देश्य इस लेख के माध्यम से इस विषय में ध्यान आकर्षित करना है |  ताकि समय रहते मानसिक रोगों को पहचाना जा सके व् उनका इलाज हो सके |  व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन ….मानसिक रोगों की शुरुआत के लक्षण  • सामान्य नियमों का पालन नहीं करना  • बिना वजह बहस करना  • नखरे करना  • अत्यधिक जिद्द करना , अपनी बात किसी भी कीमत पर मनवाने के लिए अड़ जाना  • हर समय उत्तेजना से भरे रहना  • खुद को एकदम सही साबित करना और साम-दाम -दंड -भेद से उसे मनवाना  • चिड़चिड़ा होना  • अपने फ्रस्ट्रेशन को संभाल नहीं पाना  • शंकालू होना  • अपने आप कल्पना करके विपरीत परिस्थितियों को वास्तविक बताना  • दूसरों पर बिना उचित बात के दोषारोपण करना  • अनजानी आशंकाओं से भयभीत रहना  . . इन लक्षणों से युक्त आपके प्रिय बहुधा इनसे भी ग्रस्त होते होंगें  • सिरदर्द , माइग्रेन  • बुखार  • अचानक बदन में कँपकपाहट  • आँखों में ब्लड क्लॉट बनना  • याददाश्त में कमी  • ब्लड प्रेशर की समस्या  . . मैं  बात कर रही हूँ मैं Behavioral Disorder /Disruptive Disorder की यह व्यस्कों में आम सी पाई जाने वाली बीमारी है। सामान्यत: यह बचपन में ही प्रारम्भ होता है किन्तु पर्याप्त जानकारी और इलाज़ के आभाव में बड़े होने पर गंभीर समस्या बन जाता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति सामंजस्य के अभाव में बहुत तकलीफ़ से गुज़रता है। वह बहुधा ऐसे सामान्य क्षेत्रों में असफलता का मुँह देखता है जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। उसके रिश्ते , दोस्ती सब तनावपूर्ण हो जाते हैं। . आइये आज जानते हैं Behavioral Disorder कितने प्रकार के होते है …… 1. Anxiety Disorder  2. Emotional Disorder 3. Dissociative Disorder 4. Pervasive Development Disorder 5. Disruptive Behavior Disorder .  Anxiety Disorder . यह एक बहुत ही सामान्य भावना है जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव करता है। किन्तु , कुछ लोगों में इसके आवेग इतना तीव्र होता है कि उनका पूरा जीवन इससे प्रभावित हो जाता है। इससे गंभीर रूप से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित की प्रचुरता पाई जाती है …. • अनिद्रा  • चिड़चिड़ापन  • अत्यधिक जिद्द  • गुस्सा / रोष  • घबराहट  • अपने आप कल्पना में घटनाओं का जन्म और उनको वास्तविक मान कर दुःख में गहरे डूब जाना या अवसादग्रस्त रहना  . यह एक गंभीर समस्या है , Anxiety को पहचान कर , उसका सही इलाज किसी चिकित्सक के परामर्श से बहुत ही जरूरी है।Anxiety व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति हमेशा insecurity से घिरा रहता है परन्तु स्वयं ही यह नहीं समझ पाता कि उसे किस बात का भय या insecurity है। यह व्यक्ति में स्ट्रेस के कारण होती है। व्यक्ति हमेशा नकारात्मक भाव से भरा रहता है। वह खुद से ही नकारात्मक संवाद करता है। .  anxiety से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं  …. 1. हाथ , पैर , बदन में कंपकपाहट  2. पेट में कुछ अजीब तरह की उमड़-घुमड़  4. तनावग्रस्त मांसपेशियाँ 5. Nausea 6. Diarrhoea 7. सिरदर्द , माइग्रेन  8. पीठ का दर्द  9. अचानक सुन्न पड़ जाना  10. हाथ-पैर में सूई जैसा चुभना  11. अचानक अत्यधिक पसीना आना  12. अचानक साँस उखाड़ना और बेहोश तक हो जाना  13. अनिद्रा  14. हार्ट बीट का अचानक अत्यधिक बढ़ना -घटना  15. अपनी काल्पनिक सोच से खुद को तकलीफ पहुँचाने वाले दृश्य / घटनाओं की रचना कर लेना और उसे सच मान कर भयंकर अवसाद में डूब जाना  16. अत्यधिक जिद्द करना और येन केन प्रकारेण अपनी बात मनवा लेना  17. अपने सिवा अन्य सभी को निम्न सोच का समझना  18. समाज में सामंजस्य का पूर्ण अभाव . बहुधा anxiety के लक्षणों को शारीरिक बीमारी हार्ट अटैक या स्ट्रोक समझ कर लोग इलाज प्रारम्भ कर देते हैं जो anxiety को और अधिक बढ़ा देता है। Anxiety की गंभीरता सही उपचार के अभाव में बहुत गंभीर हो जाती है। उन सभी बातों / घटनाओं को जिससे anxiousness बढ़ती है हर संभव टालना चाहिए। साथ ही किसी कुशल चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए क्योंकि एक बार स्थिति को टाल देने पर पर्याप्त इलाज के अभाव में anxiety पलट कर दुगने वेग से अटैक करती है जो गंभीर परिणाम भी दे सकती है। . इलाज _  चिकित्सक से परामर्श अत्यन्त आवश्यक है तथा कुशल चिकित्सक की गहन देखरेख में इलाज का होना भी उतना ही आवश्यक है। . सही इलाज के साथ व्यक्ति को मेडिटेशन , खुद को रिलैक्स करने के तरीकों को भी सीखना और करना चाहिए। बीच-बीच में गहरी साँस अंदर लेकर छोड़ना भी सहायक होता है। . खुद को नकारात्मक बातें करने से यथा संभव रोकना चाहिए। एकांतवास से हर हाल में दूर रहना चाहिए। . कुछ नए रोचक कार्यों में खुद को व्यस्त करना चाहिए। नयी हॉबी डेवलप करनी चाहिए। अपने आसपास हरियाली को जगह देनी चाहिए। पौधों की सेवा स्ट्रेस को दूर भगाती है। . किसी भी तरह के – सही या गलत – गुस्से / रोष के आने पर तुरन्त उस जगह से यह सोच कर हट जाना चाहिए कि उस घटना पर रोष / क्रोध बाद में विस्तार से प्रकट करेंगें। खुद को किसी विपरीत प्रकृति के कार्य में उलझा लेना चाहिए। इससे क्रोध का आवेग निश्चित रूप से कम होते हुए कई बार समाप्त भी हो जाता है। . Anxiety Disorder निम्नलिखित प्रकार का होता है …. 1. Social Anxiety Disorder 2. Specific Phobias 3. Panic Disorder I) SOCIAL ANXIETY DISORDER ========================== Social Anxiety … Read more

किडनी के रोगों को करे प्राकर्तिक उपायों से दूर

डॉ . आशुतोष शुक्ला  किडनी शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। किडनी रक्त में मौजूद पानी और व्यर्थ पदार्थो को अलग करने का काम करता है। इसके अलावा शरीर में रसायन पदार्थों का संतुलन, हॉर्मोन्स छोड़ना, रक्तचाप नियंत्रित करने में भी सहायता प्रदान करता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायता करता है। इसका एक और कार्य है विटामिन-डी का निर्माण करना, जो शरीर की हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है।                               लगातार दूषित पदार्थ खाने, दूषित जल पीने और नेफ्रॉन्स के टूटने से किडनी के रोग उत्पन्न होते हैं। इसके कारण किडनी शरीर से व्यर्थ पदार्थो को निकालने में असमर्थ हो जाते हैं। बदलती लाइफस्टाइल व काम के बढ़ते दबाव के कारण लोगों में जंकफूड व फास्ट फूड का सेवन ज्यादा करने लगे हैं। इसी वजह से लोगों की खाने की प्लेट से स्वस्थ व पौष्टिक आहार गायब होते जा रहें हैं। किडनी समस्‍या के कारण गुर्दों की समस्‍या के लिए खासतौपर पर दूषित खानपान और वातावरण जिम्‍मेदार माना जाता है। कई बार गुर्दों में परेशानी का कारण एंटीबायोटिक दवाओं का ज्‍यादा सेवन भी होता है। मधुमेह रोगियों को किडनी की शिकायत आम लोगों की तुलना में ज्‍यादा होती है। बढ़ता औद्योगीकरण और शहरीकरण भी किडनी रोग का कारण बन रहा है। किडनी रोग के लक्षण मूत्र कम या ज्‍यादा आना मूत्र कम आना या ज्‍यादा आना किडनी रोग का पहला लक्षण है। गुर्दे की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्ति को सामान्‍य की तुलना में कम या ज्‍यादा मूत्र आता है। ऐसे व्‍यक्ति को अक्‍सर रात में ज्‍यादा पेशाब आता है और रोगी के पेशाब का रंग गहरा होता है। कई बार रोगी को पेशाब का अहसास होता है, लेकिन टॉयलेट में जाने पर वह पेशाब नहीं कर पाता। पेशाब में खून आना पेशाब में खून आना भी किडनी रोग का लक्षण होता है। यह समस्‍या अन्‍य कारणों से भी हो सकती है, लेकिन इसका पहला कारण किडनी रोग ही माना जाता है। इस तरह की परेशानी होने पर उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अंगों पर सूजन किडनी शरीर से तमाम अशुद्ध अवशेषों को बाहर निकालने का काम करती है। जब गुर्दे सही ढंग से काम नहीं कर पाते, तो शरीर में बचे ये अवशेष सूजन का कारण बन जाते हैं। ऐसे में हाथ, पैर, टखनों और चेहरे पर सूजन आ जाती है। थकान और कमजोरी गुर्दे शरीर में एथ्रोपोटीन हार्मोन का उत्‍पादन करते हैं। जिससे लाल रक्‍त कणिकाओं के निर्माण में सहायक होता है, ये ऑक्‍सीजन को खींचने में सहायक होती हैं। किडनी के सही ढंग से काम न करने पर व्‍यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है। शरीर में रक्‍त की कम मात्रा होने पर व्‍यक्ति को थकान और कमजोरी महसूस होती है। ठंड ज्‍यादा लगना यदि आपके गुर्दे सही तरीके से काम नहीं करते, तो आपको ठंड का अहसास ज्‍यादा होता है। चारों तरफ गर्म वातावरण होने पर भी रोगी को ठंड लगती है। किडनी इन्‍फेक्‍शन बुखार का कारण भी बन सकता है। चकत्ते ओर खुजली किडनी के सही से काम न करने पर आपके शरीर में गंदा खून मौजूद रहता है। जिससे रोगी के शरीर पर चकत्ते और खुजली की समस्‍या भी हो सकती है। मितली और उल्‍टी आना रक्‍त में अशुद्ध अवशेष रहने और इसके साफ न होने से रोगी का मितली और उल्‍टी आने की भी समस्‍या होती है। ऐसे में व्‍यक्ति का कुछ खाने का मन भी नहीं करता। आमतौर पर लोग मितली और उल्‍टी आने को सामान्‍य समस्‍या मानकर नजरअंदाज कर देते हैं। छोटी सांस आना किडनी की समस्‍या से ग्रस्‍त व्‍यक्ति एनीमिया का शिकार हो जाता है। ऐसे व्‍यक्ति को थकान होने के साथ ही छोटी और रूक-रूक कर सांस आती हैं।किडनी रोग को समय से पहचानना बहुत जरूरी है, रोग को पहचानने में देरी होने पर यह किडनी फेल्‍योर का कारण भी बन सकता है। अन्‍य किसी भी प्रकार की समस्‍या से बचे रहने के लिए डॉक्‍टर से परामर्श अवश्य लें |                                किडनी के रोगों को दूर करने के लिए कुछ प्राकृतिक उपायों की मदद लेना बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है। ऐसे ही कुछ खास उपाय लेकर आए हैं हम आपके लिए। जीवन शैली में बदलाव                  जीवन शैली का प्रभाव हमारे शरीर के हर अंग पर पड़ता है | विकास ने जहाँ हमें इतनी सुविधाएं दी हैं वहीं विकास के साथ आई गलत जीवन शैली ने हमें अनेकों रोग भी दिए हैं | अन्य अंगों की तरह अगरआप  किडनी को भी स्वस्थ रखना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी जीवन शैली को नियमित करना पड़ेगा |   नियमित एक्‍सरसाइज करें प्रतिदिन नियमित रूप से एक्‍सरसाइज और शारीरिक गतिविधियां को करने से रक्तचाप व रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखा जा सकता हैं, जिससे डायबिटीज और उससे होने वाली क्रोनिक किडनी की बीमारी के खतरे को कम ‍किया जा सकता है। डायबिटीज पर नियंत्रण डायबिटीज को किडनी पर बहुत बुरा असर पड़ता है। या आप यह कह सकते है कि डायबिटीज किडनी का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए ब्‍लड में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहना आवश्यक होता है। धूम्रपान का सेवन न करें धूम्रपान का सेवन कई गंभीर समस्याओं का कारण हो सकता है, विशेषकर फेफड़े संबंधी रोगों के लिए। इसके सेवन से रक्त नलिकाओं में रक्त का बहाव धीमा पड़ जाता है और किडनी में रक्त कम जाने से उसकी कार्यक्षमता घट जाती है। इसलिए धूम्रपान के सेवन से बचें। नमक की मात्रा कम लें किडनी की समस्या से ग्रस्त लोगों को अपने आहार पर खास ध्यान देना चाहिए। खाने में नमक व प्रोटीन की मात्रा कम रखनी चाहिए जिससे किडनी पर कम दबाव पड़ता है। इसके अलावा फासफोरस और पौटेशियम युक्त आहार से भी दूर ही रहना चाहिए। वजन को नियंत्रित रखें   अधिक वजन से भी किडनी को नुकसान हो सकता है। इसलिए संतुलित आहार एवं नियमित व्यायाम से अपने वजन को नियंत्रित रखें। ऐसा करने से आपको डायबिटीज, हृदय रोग एवं अन्य बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलेगी जो क्रोनिक किडनी फेल्योर उत्पन्न कर सकती है। दर्द निवारक दवाओं का सेवन दर्द निवारक दवाओं के बहुत ज्‍यादा सेवन से बचना चाहिए। इसके अलावा डॉक्‍टर के सलाह के बिना दवाओं को सेवन आपकी किडनी के … Read more

एंजिलिना जोली सिंड्रोम – सेहत के जूनून की हद

एक आम घर का दृश्य देखिये | पूरा परिवार खाने की मेज पर बैठा है | सब्जी रायता , चपाती , गाज़र का हलवा और टी .वी हाज़िर है | कौर तोड़ने ही जा रहे हैं कि टी वी पर ऐड आना शुरू होता है बिपाशा बसु नो शुगर कहती नज़र आती हैं | परिवार की १७ वर्षीय बेटी हलवा खाने से मना कर देती है | माँ के मनुहार पर झगड़ कर दूसरे कमरे में चल देती है | वहीँ बेटा विज्ञापन देख कर ६ पैक एब्स बनाने के लिए जिम कि तगड़ी फीस की जिद कर रहा है | सासू माँ अपने तमाम टेस्ट करवाने का फरमान जारी कर देती हैं|परिवार का एकमात्र कमाऊ सदस्य अपनी लाचारी जाहिर करता है तो एक अच्छा खासा माहौल तनाव ग्रस्त हो जाता है | ये सच है कि आज स्वास्थ्य के प्रति क्रेज दिनों दिन बढ़ रहा है | इसमें कुछ गलत भी नहीं है | अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और स्वस्थ रहना अच्छी बात है | ये न सिर्फ व्यक्ति के लिए बल्कि पूरे देश के लिए शुभ है क्योंकि जिस देश के नागरिक स्वस्थ रहेंगे | वो ज्यादा काम कर सकेंगें और देश ज्यादा तरक्की कर सकेगा |परन्तु नए ज़माने के साथ स्वाथ्य का औद्योगीकरण हो चुका है | आज विभिन्न देशी विदेशी कम्पनियाँ स्वास्थ्य बेच रहीं हैं | इसके लिए तरह -तरह के लुभावने विज्ञापन हैं , टॉनिक हैं जो पूरी तरह फिट रहने की गारंटी देते हैं , जिम हैं , हाईट वेट चार्ट हैं , प्लास्टिक सर्जरी है | और एक पूरे का पूरा मायाजाल है जो सेहत के प्रति जागरूक लोगों कि जेबें ढीली करने को चारों तरफ फैला है | शहर तो शहर गाँवों में भी दूध मट्ठा छोड़ कर हर्बल पिल्स खाने का चलन बढ़ गया है |अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि एक गाँव की रिश्तेदार मुझे ** कम्पनी की तुलसी खाने की सलाह दे रही थी |जब मैंने कहा की तुलसी तो घर में लगी है उसी की पत्ती तोड़ कर न खा लूं | तो मुंह बिचकाकर बोली , ” आप को न खानी है तो न खाओ , अब टी वी में दिखाते हैं , उसमें कुछ तो ख़ास होगा |ये सारा उद्योग रोग भय पर टिका है| बार -बार संभावित रोग का भय दिखा कर अपने उत्पाद बेंचने का प्रयास हैं |लोग ओरगेनिक फ़ूड पसंद कर रहे हैं , जिम जा रहे हैं , हेल्थ मॉनिटर करने वाला एप डाउन लोड कर रहे हैं, कैलोरी गिन गिन कर खा रहे हैं | यहाँ तक तो ठीक है पर इससे ज्यादा ? इंसान को सचेत करना और उसको भयग्रस्त करना इन दोनों में अंतर है | एक भयग्रस्त या हाइपोकोंड्रीऐक व्यक्ति जो अपने शरीर में किसी रोग की कल्पना करता हैं और भयभीत होता रहता है | वो सामान्यतः स्वस्थ रहने की चाह के लक्षण नहीं हैं | क्योंकि यह रोग भय का विचार हर समय मष्तिष्क पर छाया रहता है | इंसान कुछ भी अच्छा या सकारात्मक नहीं सोंच पाता , काम में मन नहीं लगता |उसके साथ -साथ अक्सर उसके घर वाले भी परेशान रहते हैं | जो उसके शक का समाधान खोजते -खोजते पस्त हो जाते हैं | यहाँ तक भी समझौता कर लिया जाए पर अगर यह भय इस हद तक बढ़ जाए की किसी संभावित रोग की कल्पना से अपनी स्वस्थ्य शरीर का ऑपरेशन तक करना चाहे तो ?निश्चित तौर पर यह स्तिथि चिंता जनक है | आज इसे एन्जिलिना जोली सिंड्रोम का नाम दिया जा रहा हैं | जैसा की विदित है हॉलीवुड अभिनेत्री एन्जिलिना जोली नें मात्र इस भय से की वो कैंसर की जीन कैर्री कर रही है और भविष्य में उनको कैंसर हो भी सकता है | डबल मेसेक्टोमी व् रीकोंसट्रकटिव सर्जरी करवाई थी |आप यह कह सकतें है कि वो हॉलीवुड एक्ट्रेस थी वो कर सकती है , कोई व्यक्ति तो ऐसा नहीं कर सकता | पर यह बात पूर्णतया सत्य नहीं है मेरे एक जानने वाली श्रीमती पाण्डेय के पति को एक रात पेट में ऐपेंडिक्स का तेज दर्द उठा | डॉक्टर को दिखाने पर उन्होंने तुरंत अस्पताल में भारती कर लिया व् ऑपरेशन कर दिया | इस पूरे प्रकरण को देख कर उनकी पत्नी इतना डर गयी कि पति के ऑपरेशन के १५ दिन बाद ही उन्होंने जिद कर के अपना ऑपरेशन भी करवा लिया | जब हम उनसे मिलने गए तो उनका सीधा सा उत्तर था , ” ऐपेंडिक्स है तो वेस्टिजियल ऑर्गन ही , राम जाने कब दर्द उठ जाए कब रात -बिरात अस्पताल भागना पड़े , इसलिए मैंने तो पहले ही ऑपरेशन करवा लिया | न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी | यह अकेला किस्सा नहीं है | दिनों दिन ऐसे किस्से बढ़ रहे हैं जहाँ रोग भय से लोग ऑपरेशन करवा पहले से ही सारा झंझट ख़त्म कर देना चाहते हैं | “यह एक बेहद खतरनाक स्तिथि का सूचक है जो कि स्वस्थ्य रहने के जूनून और रोग भय के मानसिक विकार के रूप में अपनी जगह बना रहा है जहाँ व्यक्ति केवल रोग भय से अपनी स्वस्थ शरीर का ऑपरेशन करवाना चाहता है या शरीर के उस हिस्से को निकलवाना चाहता है जहाँ रोग का खतरा हो |रूस के गोलमैन ने इस विषय पर रिसर्च कर के पाया है कि आज मेडिकल उद्योग ट्रीटमेंट से ज्यादा प्रीवेंशन पर विश्वास रखता है और इसमें सर्जरी उसे एक अच्छा विकल्प नज़र आता है |रोग होने के बहुत सारे कारण होते हैं | कई बार किसी ख़ास रोग के जीन कैरी करने वाले लोगों में भी पूरी जिंदगी उस रोग के लक्षण दिखयी नहीं देते | अनुभव कहते हैं की किसी रोग के होने के लिए जितनी जीन जिम्मेदार है उतनी ही परिस्तिथियाँ , मानसिक स्तिथि व् जिजीविषा का कम /ज्यादा होना भी जिम्मेदार है | कोई जरूरी नहीं की जिस व्यक्ति में रोग होने की संभावना हो उसमें वो रोग हो ही |अंत में इतना ही कहना चाहूंगी कि स्वस्थ रहने की इक्षा रखना , उसके लिए प्रयास करना एक अच्छी बात है परन्तु दिन रात संभावित रोग की कल्पना करना व् उसके भय से स्वस्थ शरीर का ऑपरेशन … Read more

सेहत का जूनून – क्या आप भी न्यूट्रीशनल वैल्यू पढ़ कर खाद्य पदार्थ खरीदते हैं |

स्मिता शुक्ला एक आम घर का दृश्य देखिये | पूरा परिवार खाने की मेज पर बैठा है | सब्जी रायता , चपाती , गाज़र का हलवा और टी .वी हाज़िर है | कौर तोड़ने ही जा रहे हैं कि टी वी पर ऐड आना शुरू होता है बिपाशा बसु नो शुगर कहती नज़र आती हैं | परिवार की १७ वर्षीय बेटी हलवा खाने से मना कर देती है | घर का मुखिया फलां ब्रांड का पनीर लाने को कहता है क्योंकि उसमें कैल्सियम ज्यादा है | वहीँ बेटा विज्ञापन देख कर ६ पैक एब्स बनाने के लिए एक ख़ास पॉवर पाउडर की जिद कर रहा है | जिसमें आयरन मैग्नीशियम की ख़ास मात्रा है | सासू माँ अपने तमाम टेस्ट करवाने का फरमान जारी कर देती हैं की उन्हें भी तो पता चले की उनके शरीर में क्या –क्या कमी है |खाने का मजा सेहत के तनाव ने ले लिया | क्या आप का घर भी उनमें से एक है ? ये सच है कि आज स्वास्थ्य के प्रति क्रेज दिनों दिन बढ़ रहा है | इसमें कुछ गलत भी नहीं है | अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और स्वस्थ रहना अच्छी बात है | परन्तु नए ज़माने के साथ स्वाथ्य का औद्योगीकरण हो चुका है | आज विभिन्न देशी विदेशी कम्पनियाँ स्वास्थ्य बेच रहीं हैं | इसके लिए तरह -तरह के लुभावने विज्ञापन हैं , टॉनिक हैं जो पूरी तरह फिट रहने की गारंटी देते हैं , जिम हैं , हाईट वेट चार्ट हैं , प्लास्टिक सर्जरी है | और एक पूरे का पूरा मायाजाल है जो सेहत के प्रति जागरूक लोगों कि जेबें ढीली करने को चारों तरफ फैला है | शहर तो शहर गाँवों में भी दूध मट्ठा छोड़ कर हर्बल पिल्स खाने का चलन बढ़ गया है |अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि एक गाँव की रिश्तेदार मुझे ** कम्पनी की तुलसी खाने की सलाह दे रही थी |जब मैंने कहा की तुलसी तो घर में लगी है उसी की पत्ती तोड़ कर न खा लूं | तो मुंह बिचकाकर बोली , ” आप को न खानी है तो न खाओ , अब टी वी में दिखाते हैं , उसमें कुछ तो ख़ास होगा ये सारा उद्योग रोग भय पर टिका है| बार -बार संभावित रोग का भय दिखा कर अपने उत्पाद बेंचने का प्रयास हैं |लोग ओरगेनिक फ़ूड पसंद कर रहे हैं , जिम जा रहे हैं , हेल्थ मॉनिटर करने वाला एप डाउन लोड कर रहे हैं, कैलोरी गिन गिन कर खा रहे हैं स्वास्थ्य और पोषण को लेकर आजकल पूरी दुनिया पर एक तरह का पागलपन सवार है। यह पागलपन अमेरिका से शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया। आज हर कोई पोषण और पौष्टिक आहार को लेकर पागल है, लेकिन फिर भी लोगों को सही पोषण नहीं मिल रहा। ऐसे में हो यह रहा है कि लोग ढेर सारी गोलियां सुबह -शाम ले रहे हैं । आज-कल यह फैशन चल पड़ा है कि कोई भी चीज खाने से पहले आप खाद्य पदार्थों के पैकेट पर महीन अक्षरों में लिखा हुआ लेबल पढ़ते हैं और तब उसे खाने में प्रयोग करते हैं। खासतौर पर यह पता लगाने के लिए कि उसमें मैग्नीशियम कितने मिलीग्राम है,आयरन और काल्सियम कितना है , उसमें कैलरी आदि की मात्रा कितनी है। अकसर लोग यह कहते मिलेंगे, ‘नहीं, नहीं, मुझे जितने मैग्नीशियम की जरूरत है, इसमें तो उससे 0.02 मिलीग्राम ज्यादा मैग्नीशियम है। इसलिए मुझे यह नहीं, वह चाहिए। यह सब पागलपन नहीं तो और क्या है! इस धरती का हर जीव अच्छी तरह जानता है कि उसे क्या खाना चाहिए। बस इंसान को ही नहीं मालूम कि उसे क्या खाना है, जबकि वह इस धरती की सबसे बुद्धिमान प्रजाति होने का दावा करता है। इस इंसान की बुद्धिमानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आप उसे बेकार से भी बेकार चीज बेच सकते हैं, अगर आपके अंदर बेचने की कला हो।| कभी –कभी लगता है अगर मैगी की तरह रोटी का विज्ञापन आता तो हमारे बच्चे रोटी –रोटी कर के उछलते | सिर्फ आपके सोचने भर से आपको पोषण नहीं मिलेगा और न ही इसके बारे में खूब पढ़ने या ढेर सारी बातें करने से मिलेगा। आपको पोषण का मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि जो कुछ भी आपके शरीर के भीतर जा रहा है, उसे ग्रहण करने की आपकी क्षमता कैसी है। पोषण सिर्फ खाने में नहीं है। पोषण तो आपकी उन चीजों को अवशोषित करने की क्षमता है, जो आपके शरीर के भीतर जाती हैं। अपने देश में बेहद साधारण खानपान से भी लोगों ने लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जिया है। मेरे एक रिश्तेदार जो ९५ वर्ष की आयु तक जिए वो सत्तू या मक्का का सेवन करते। हफ्ते में एक-दो बार चावल ले लेते थे। इन चीजों के साथ थोड़ी हरी सब्जियां लेते। ये सामान्य सी हरी सब्जियां होती थीं, जिन्हें लोग ऐसे ही यहां-वहां से तोड़ लेते हैं। इसके अलावा, चना, लोबिया या दाल का भी सेवन कर लेते थे। बस यही सब उनका भोजन था। अगर किसी आहार विशेषज्ञ की राय ली जाए तो निश्चित तौर से वह यही कहेगा कि इस भोजन में यह नहीं है, वह नहीं है। इस तरह के आहार पर आप जी नहीं सकते, जबकि सच्चाई यह है कि इसी आहार की बदौलत वह ९५ साल तक जीवित रहे। समझने की बात यह है की कि मानव तंत्र सिर्फ रसायन भर नहीं है। यह सच है कि शरीर में रसायन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वही सब कुछ नहीं हैं। इसका एक दूसरा पहलू भी है और वह है ‘पाचन शक्ति’। अगर वह ठीक है, तो सब ठीक है। दरअसल, चीजों को खाने से ज्यादा जरूरी है उनका पचना और शरीर में लगना। आपने देखा होगा कि एक ही तरह का भोजन लेने वाले सभी लोगों को एक जैसा पोषण नहीं मिल पाता। यह तथ्य तो मेडिकल साइंस भी मानता है। आप वो सब खायेंगे जो अब्सोर्ब ही नहीं होता तो उस कैल्शियम और आयरन का कोई मतलब नहीं है | शरीर जानता है उसे क्या और कितना पचता है | उसकी आवाज़ सुनिए और सच्ची भूख लगने पर ही वो … Read more

ब्रेस्ट कैंसर – गुलाबी दिल नहीं जानकारी ही बचाव है

कल से जिस संख्या में नन्हे से गुलाबी दिल देखने को मिल रहे हैं उसके हिसाब से तो आज बहुत सारी  महिलाएं अस्पतालों में जा कर अपना चेकअप शुरू करा देंगी | पर अफ़सोस की ऐसा कुछ नहीं होगा | अव्वल तो बहुत से लोग इस प्रतीकात्मक कैम्पेन का मतलब ही नहीं समझ पाए | जो समझ भी गए उन्होंने इसे गंभीरता के स्थान पर हलके में ही लिया होगा | क्यों न हो ? जिस देश में महिलाएं अपनी छोटी – बड़ी हर तकलीफ को नज़रअंदाज करती है | जहाँ छोटे शहरों  गाँव देहात में शिक्षा की कमी है वहाँ प्रतीकत्मक प्रचार से कुछ नहीं होगा | जरूरत है इस गंभीर मुद्दे पर खुल कर बोलने की | लाइलाज नहीं है स्तन कैंसर कैंसर शब्द दिमाग में आते ही बात आती है की अब पीड़ादायक मृत्यु होगी और इसी कारण कैंसर होने के समाचार मात्र से ही रोगी को जीवन के प्रति निराशा हो जाती है। लेकिन स्तन या ब्रेस्ट कैंसर के क्षेत्र में एक अच्छी बात यह है कि  इसके ठीक होने की संभावना ज़्यादा होती है। स्तन कैंसर होने का पता साधारणतः पहले या दूसरे चरण में ही चल जाता है। इसलिए इसका इलाज सही समय पर हो पाता है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है हर किसी को इस बारे में सही जानकरी हो और वे सचेत हो। स्तन कैंसर से बचने का सबसे पहला कदम है जागरूकता। उसके बाद आता है इस रोग से बचने के उपाय। जीवनशैली में बदलाव और सचेतता ही आपको कष्टदायक स्तन कैंसर से बचा सकता है। स्तन कैंसर होने के आम कारण: • बढ़ती उम्र • ज़्यादा उम्र में पहले बच्चे का जन्म • आनुवांशिकता (heredity) • शराब जैसे पेय पदार्थ का अधिक सेवन • खराब जीवनशैली स्तन कैंसर के आम लक्षण: स्तनों के बारे में जान लेने का सरल तरीका है T L C यानि T – TOUCH Your Breasts (अपने स्तनों को छुएं) क्या आपको कुछ असामान्य लगता है? क्या आप स्तन में, छाती के ऊपरी हिस्से में, या बगलो में कोई गाँठ (Lump) महसूस करती हैं? क्या आपको स्तनों के ऊपर कोई परत महसूस होती है जो हटती नहीं? क्या स्तनों में साधारण सा दर्द है। L – LOOK for changes (कुछ बदलाव तो नही लगता) क्या स्तनों के आकर या बनावट ( shape or texture) में कोई बदलाव है? क्या स्तनों के आकर या आकृति (size or shape) में कोई बदलाव है (कोई एक स्तन दूसरे के मुकाबले छोटा या बड़ा हैं)? स्तनों की त्वचा की बनावट में कोई बदलाव जैसे फ़टी फ़टी सी या कोई गड्डा सा पड़ जाना? रंग में बदलाव जैसे की निप्पल्स के आसपास सुर्ख लाल रंग.हो जाना? क्या निप्पल की दिशा सही है, कहीं वह अंदर की तरफ तो नही मुड़ गया है? किसी भी निप्पल से तरल पदार्ध का रिसना? निप्पल के आस पास किसी प्रदार्थ का रिसना या पपड़ी का जमना? C – CHECK any unusual findings with your doctor (कुछ असामान्य सा महसूस हो तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें) क्या आपको कुछ असामान्य या अलग सा महसूस हो रहा है? अगर ऐसा है तो तुरंत ही डॉक्टर से सलाह लें। समय समय पर अपने स्तनों की जांच स्वयं करते रहें ऐसा करने से आप उनमे सामान्य तौर पर आने वाले बदलावों और असामान्य बदलाव के बारे में जान जायेंगे, अक्सर मासिक धर्म (Menses) के समय स्तनों में कुछ बदलाव अवश्य आता है। लक्षणों के उभरने का इंतज़ार न करें, नियमित रूप से स्तनों की जांच करवाएं। यह सर्वविदित है कि रोकथाम इलाज़ से बेहतर है  |  अगर स्तन छूने में दर्द हो यह बिनाइन ब्रेस्ट डिजीज हो सकता है। यह अक्सर हार्मोन की वजह से होता है, जिसे मेडिकली फाइब्रॉइड ऐडिनोसीस कहा जाता है। इसमें गांठ का क्लियर पता नहीं चलता है। अल्ट्रासाउंड या मेमोग्राम से पता चल जाता है। ऐसे में  कैंसर स्पेशलिस्ट से मिलें और उन्हें अपनी परेशानी बताएं। कई सरकारी अस्पतालों में इसका इलाज होता है। हां, मरीज को इनर वियर एक साइज छोटा पहनना चाहिए। इसके इलाज में सर्जरी की जरूरत नहीं होती है। दवा और कुछ स्पेशल ऑइल दी जाती है | घर में कैसे करें जांच-‘नो योर लेमन्स‘  स्तन कैंसर के लक्षणों की जांच महिलाएं खुद कर सकती हैं, ये तो अक्सर बताया जाता है लेकिन जांच के बारे में महिलाओं की जानकारी कितनी सही और कारगर है, ये कहना मुश्किल है.स्तन में आने वाले बदलावों को लेकर अक्सर महिलाओं के मन में उलझन रहती है. कुछ ऐसी ही उलझन कॉरीन ब्यूमॉन्ट के मन में थी.अपनी नानी और दादी को स्तन कैंसर के कारण खोने वाली कॉरीन के मन में स्तन कैंसर के लक्षणों की पहचान को लेकर कई सवाल थे. इन सवालों के जवाब ढूंढ़ते हुए उन्होंने ‘नो योर लेमन्स‘ कैंपेन बना डाला जिसकी सोशल मीडिया वेबसाइट फ़ेसबुक पर काफ़ी चर्चा है. ‘नो योर लेमन्स‘ कैंपेन में अंडों रखने वाले डिब्बे में नींबुओं की तस्वीर से महिलाओं को स्तन कैंसर के लक्षणों की समझ बड़ी आसानी से मिल सकती है. कॉरीन के अनुसार  कई मरीज़ स्तन के बारे में बात करना या उनकी तरफ़ देखना नहीं चाहते. लेकिन इस तस्वीर से कम पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इसकी समझ हासिल कर सकती हैं. क्या है इलाज़  स्तन कैंसर शरीर के दुसरे हिस्सा तक भी पहुच सकता है और अलग-अलग अंगों में कैंसर पैदा कर सकता है। इसलिए बहुत ज़रूरी है अपने शरीर में, अपने स्तनों में होते हुए बदलावों का सही समय पर जांच कराएं और इलाज भी। क्युकी जितनी जल्दी कैंसर के बारे में पता चलेगा उतना जल्दी ही उसका इलाज भी हो पायेगा, और कैंसर से बचाव भी।   स्तन कैंसर का इलाज शुरू होता है ऑपरेशन से। और यह होता है ट्यूमर को निकाल देना (लुपेकटोमी) या ल्युम्फ नोड्स, लेकिन कुछ केसों में पूरा स्तन ही निकाल देना पड़ता है (मास्टेकोमी)। इसके बाद मरीज़ को भारी दवाइयां दी जाती हैं (कीमोथेरेपी), विकिरण चिकित्सा, और कुछ होरमोन थेरेपी। और हाँ, पुरुषों को भी स्तन कैंसर हो सकता है, इसलिए उनको भी अपने स्तन के आस-पास के हिस्से में हुए किसी भी बदलाव को नज़रंदाज़ नहीं करना चाहिए।   कैंसर ठीक होने के बाद बहुत सारी महिलाएं स्तन कैंसर से … Read more

विश्व कैंसर दिवस-ैंआवश्यकता है कैंसर के खिलाफ इस युद्ध में साथ खड़े होने की

आज विश्व कैंसर दिवस है | आज मेडिकल साइंस के इतने विकास के बाद भी कैंसर एक ऐसे बिमारी है | जिसका नाम भी भयभीत करता है |परन्तु ये भी सच है की शुरूआती स्टेज में कैंसर का इलाज़ बहुत आसन है | यहाँ तक की स्टेज ३ और 4 के मरीजों को भी डॉक्टर्स ने पूरी तरह ठीक किया है | पर ये एक कठिन लड़ाई होती है जिसमें मरीज को बहुत हिम्मत व् हौसले की जरूरत होती है |सबसे पहले तो यह समझना होगा की कैंसर मात्र एक शब्द है ये कोई डेथ सेंटेंस नहीं है | world कैंसर डे इसी लिए मनाया जाता है | दरसल ये एक जागरूकता अभियान है | जिसके द्वारा कैंसर को शुरू में पहचानने , सही इलाज़ करने व् कैंसर के मरीजों के कैंसर के खिलाफ इस युद्ध में उनके साथ खड़े होने की आवश्यकता पर बल दिया है | वैसे अलग – अलग प्रकार के कैंसर के लिए भी अलग – अलग डे या माह बनाए गए हैं | जैसे ब्रैस्ट कैंसर मंथ , प्रोस्टेट कैंसर मंथ , world लिम्फोमा अवेरनेस डे आदि , आदि | मकसद इस जानलेवा बिमारी के खिलाफ जागरूकता फैलाना व् मरीजों के साथ खड़े होना हैं | कैंसर के मरीजों के लिए बहुत जरूरी है की वो एक कम्युनिटी बनाए | जहाँ वह अपने लक्षणों , इलाज़ , दुःख व् तकलीफ को शेयर कर सकें | एक दूसरे की तकलीफ को बेहतर तरीके से महसूस कर पाने पर वो बेतर समानुभूति दे पाते हैं | जो मनोबल टूटते मरीज के लिए बहुत जरूरी है |विदेशों में ऐसे बहुत से समूह हैं पर हमारे देश में इनका अभाव है |छोटे शहरों और गाँवों में जहाँ अल्प शिक्षा के चलते लोग कैंसर के मरीजो से संक्र्मकता से डर कर दूरी बना लेते हैं , ख़ास कर जब की वो सरकोमा या नॉन हीलिंग वुंड के रूप में हो | जिसके कारण कैंसर का मरीज बेहद अकेला पं व् अवसाद का अनुभव करता है | जो कैंसर के खिलाफ उसकी लड़ाई को कमजोर करता है | एक बात और जो बहुत जरूरी है वो यह है की कैंसर के मरीजों के केयर गिवर का भी ख़ास ख़याल रखा जाए | क्योंकि अपने परियां की तकलीफ के वो भी पल – पल के साझी दार होते हैं और एक गहरे सदमे की अवस्था में जी रहे होते हैं | कैंसर का इलाज़ जो डॉक्टर करते हैं चाहे वो सर्जरी हो , कीमो हो , रडियो थेरेपी हो बहुत पीड़ादायक है , और इनके बहुत सारे साइड इफेक्ट्स होते हैं | परन्तु एक इलाज ऐसा भी है जो हम भी कर सकते हैं वो है उन्हें , संवेदना , प्यार दे कर , उनकी हिम्मत बढ़ाकर , उन्हें हौसला दे कर , ताकि वो अपनी कैंसर के खिलाफ लड़ाई आसानी से लड़ सकें |मेरे साथ आप भी कहिये कैंसर क्या नहीं कर सकता है ……कैंसर भवः नहीं वो इतना सीमित है कीये दोस्ती को नहीं मार सकताये प्रेम को नहीं कम कर सकताये उम्मीद को नहीं नष्ट कर सकताये विश्वास में जंग नहीं लगा सकताये हिम्मत को मौन नहीं कर सकताये यादों को कम नहीं कर सकताऔर मेटास्टेसिस के बावजूद ये आत्मा तक कभी नहीं पहुँच सकताये अब तक जी चुकी हुई जिंदगी को नहीं चुरा सकतासबसे महत्वपूर्ण ये आत्मशक्ति से तो बिलकुल भी नहीं जीत सकता वंदना बाजपेयी keywords:world cancer day, cancer, 

स्वास्थ्य जगत : डायबिटीस :थोड़ी सी सावधानी

डायबिटीज जिसे  मधुमेह  भी  कहा जाता  है एक गंभीर बीमारी है आम भाषा में इसे धीमी मौत (साइलेंट किलर ) भी कहा जाता हैlसंसार भर में मधुमेह रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है विशेष रूप से भारत में l इस  बीमारी में रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य से अधिक बढ़ जाता है  तथा रक्त की कोशिकाएं इस शर्करा को उपयोग  नहीं कर पाती  l यदि यह ग्लूकोज  का बढ़ा हुआ लेवल खून में लगातार बना रहे तो शरीर के अंग प्रत्यंगों को नुकसान  पहुँचाना शुरू कर देता  है डायबिटीस के प्रकार :- टाइप–। (इंसुलिन आश्रित मधुमेह) टाइप–। मधुमेह में अग्नाशय इंसुलिन नामक हार्मोन नहीं बना पाता जिससे ग्लूकोज शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा नहीं दे पाता। इस टाइप में रोगी को रक्त में ग्लूकोज का स्तर सामान्य रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं। इसे ‘ज्यूविनाइल ऑनसैट . डायबिटीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह रोग प्रायः बच्चों व् किशोरों  में पाया जाता है। इस रोग में ऑटोइम्यूनिटी के कारण रोगी का वजन कम हो जाता है। टाइप-।। (इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह) लगभग 90% मधुमेह रोगी टाइप-।। डायबिटीज के ही रोगी हैं। इस रोग में अग्नाशय इंसुलिन बनाता तो है परंतु इंसुलिन कम मात्रा में बनती है, अपना असर खो देती है या फिर अग्नाशय से ठीक समय पर छूट नहीं पाती जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। इस प्रकार के मधुमेह में जेनेटिक कारण भी महत्वपूर्ण हैं। कई परिवारों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। यह वयस्कों तथा मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों में धीरे-धीरे अपनी जड़े जमा लेता है। अधिकतर रोगी अपना वजन घटा कर, नियमित आहार पर ध्यान देकर तथा औषधि लेकर इस रोग पर काबू पा लेते हैं। आज हम यहाँ टाइप टू डायबिटीस के बारे में जानेगे …………..  रक्त शर्करा  का स्तर और डायबिटीस हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट एक प्रमुख तत्त्व है, यही कैलोरी व ऊर्जा का स्रोत है। वास्तव में शरीर के 60 से 70% कैलोरी इन्हीं से प्राप्त होती है। कार्बोहाइड्रेट पाचन तंत्र में पहुंचते ही ग्लूकोज के छोटे-छोटे कणों में बदल कर रक्त प्रवाह में मिल जाते हैं इसलिए भोजन लेने के आधे घंटे भीतर ही रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तथा दो घंटे में अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाता है। दूसरी ओर शरीर तथा मस्तिष्क की सभी कोशिकाएं इस ग्लूकोज का उपयोग करने लगती हैं। ग्लूकोज छोटी रक्त नलिकाओं द्वारा प्रत्येक कोशिका में प्रवेश करता है, वहां इससे ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया दो से तीन घंटे के भीतर रक्त में ग्लूकोज के स्तर को घटा देती है। अगले भोजन के बाद यह स्तर पुनः बढ़ने लगता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति में भोजन से पूर्व रक्त में ग्लूकोज का स्तर 70 से 100 मि.ग्रा./डे.ली. रहता है। भोजन के पश्चात यह स्तर 120-140 मि.ग्रा./डे.ली. हो जाता है तथा धीरे-धीरे कम होता चला जाता है। मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण कोशिकाएं ग्लूकोज का उपयोग नहीं कर पातीं क्योंकि इंसुलिन के अभाव में ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश ही नहीं कर पाता। इंसुलिन एक द्वार रक्षक की तरह ग्लूकोज को कोशिकाओं में प्रवेश करवाता है ताकि ऊर्जा उत्पन्न हो सके। यदि ऐसा न हो सके तो शरीर की कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य अंगों को भी रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर के कारण हानि होती है। यदि स्थिति उस प्यासे की तरह है जो अपने पास पानी होने पर भी उसे चारों ओर ढूंढ़ रहा है। इन द्वार रक्षकों (इंसुलिन) की संख्या में कमी के कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ कर 140 मि.ग्रा./डे.ली. से भी अधिक हो जाए तो व्यक्ति मधुमेह का रोगी माना जाता है। असावधान रोगियों में यह स्तर बढ़ कर 500 मि.ग्रा./ड़े.ली. तक भी जा सकता है। डायबिटीज के कारण                  खान पान एवं लाइफ स्टाइल की गलत आदतें जैसे मधुर एवं भारी भोजन का अधिक सेवन करना,चाय, दूध  आदि में  चीनी का ज्यादा सेवन,कोल्ड ड्रिंक्स एवं अन्य सॉफ्ट ड्रिंक्स अधिक पीना,शारीरिक  परिश्रम ना करना,मोटापा,तनाव,धूम्रपान,तम्बाकू,आनुवंशिकता आदि डायबिटीज के प्रमुख कारण हैं  lमधुमेह आज महानगरों में ही नहीं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी होने लगा है। मधुमेह जैसी बीमारियां सही जीवनशैली और अच्छा खान-पान ना होने के कारण हो सकती है। मधुमेह और तनाव का गहरा संबंध है। तनाव के कारण मधुमेह पीडि़त कई अन्य बीमारियों का भी शिकार हो सकता है। मधुमेह आमतौर पर गर्भवती महिलाओं और बड़ी उम्र के लोगों में हुआ करता है। लेकिन मधुमेह प्रकार 1 बच्चों में खासतौर पर पनपता दिखाई दे रहा  है। तनाव के कारण मधुमेह पीडि़त व्यक्ति में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है। डायबिटीस  के लक्षण ·         रोगी का मुँह खुश्क रहना तथा अत्यधिक प्यास लगना। ·         भूख अधिक लगना। ·         अधिक भोजन करने पर भी दुर्बल होते जाना। ·         बिना कारण रोगी का भार कम होना, शरीर में थकावट के साथ-साथ मानसिक चिन्तन एवं एकाग्रता में कमी होना। ·         मूत्र बार-बार एवं अधिक मात्रा में होना तथा मूत्र त्यागने के स्थान पर मूत्र की मिठास के कारण चीटियाँ लगना। ·         शरीर में व्रण अथवा फोड़ा होने पर उसका घाव जल्दी न भरना। ·         शरीर पर फोड़े-फुँसियाँ बार-बर निकलना। ·         शरीर में निरन्तर खुजली रहना एवं दूरस्थ अंगों का सुन्न पड़ना। ·         नेत्र की ज्योति बिना किसी कारण के कम होना। ·         पुरुषत्वशक्ति में क्षीणता होना। ·         स्त्रियों में मासिक स्राव में विकृति अथवा उसका बन्द होना। डायबिटीज रोग के अन्य दुष्परिणाम यदि मधुमेह  रोग का समय पर पता ना चले या पता चलने पर भी खान पान तथा जीवन शैली में लगातार लापरवाही  की जाये और समुचित चिकित्सा ना की जाये तो  खून में सामान्य से अधिक बढ़ा हुआ शुगर का लेवल शरीर के अनेक  अंगों जैसे गुर्दे ,ह्रदय,धमनियां , आँखें , त्वचा तथा  नाड़ी  तंत्र को नुकसान  पहुँचाना शुरू  कर   देता  है और जब तक रोगी संभलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती  है l डायबिटीस के रोगी का भोजन :-                 मधुमेह के रोगी का आहार केवल पेट भरने के लिए ही नहीं होता, उसके शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा को संतुलित रखने में सहायक होता है। चूंकि यह रोग मनुष्य के साथ जीवन भर रहता है इसलिए जरूरी है कि वह … Read more

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर विशेष : चालीस पार कि महिलाओ कि स्वास्थ्य समस्याएँ

                             चालीस की उम्र एक ख़ास उम्र होती है ,बालों की कालिमा के साथ -साथ शरीर की लालिमा भी खोने लगती है । सच पुछा जाए तो चालीस की शुरुआत से ही कई समस्याएं शुरू हो जाती हैं। कई शारीरिक समस्याएं इतनी तेजी से और चुपचाप हमला करती हैं कि मनुष्य को संभलने का मौका ही नहीं मिलता। कुछ अंदर ही अंदर शरीर को खोखला करती रहती हैं और उनका असर देर से सामने आता है। बीमारी के आने से पहले ही सतर्कता रखने में ही समझदारी है। हर साल पूरे शरीर की भी जांचें और परीक्षण करा लें। खानपान की आदतें बदलें और अनुशासन तथा संयम के रहना सीखें। खुद की फिटनेस  का धयान रखे |                       औरतें जो घर की धुरी होती हैं।  सबके स्वास्थ्य का धयान रखती हैं पर कहीं न कही अप[ने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतती हैं कम उम्र में सब चल जाता है पर चालीस पार ये लापरवाही अक्सर बहुत भारी पड़ती है । आज हम यहाँ ४० पार कि औरतों के स्वास्थ्य से सम्बंधित कुछ बीमारियों कि चर्चा  करेंगे। ………… जानकारी ही इलाज है चालीस पार कि महिलाओ कि स्वास्थ्य समस्याएँ  ओस्टियोपोरोसिस ओस्टियोपोरोसिस के बारें में अपने कई बार सुना होगा। हम सभी जानते है कि बढती उम्र के साथ समस्या में हड्डियाँ कमजोर होती चली जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर आठ पुरुषों में से एक पुरुष को और तीन महिलाओं में से एक महिला को ओस्टियोपोरोसिस की समस्या है। यह आंकड़ा ही इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है ,शरीर में विटामिन डी के स्तर के कम होने पर और सही मात्रामें विटामिन सी का सेवन न करने के कारण बोने डेंसिटी कम होने लगती है जिसका परिणाम हड्डियों के कमजोर होने के रूप में दिखाई देता है। भारतियों में बोन डेंसिटी कम होने के कारण यह समस्या ज्यादा देखने को मिलती है।  अक्सर हमें इस समस्या के होने का पर  शुरुआत में नहीं चल पता है। जब आपकी हड्डियों में फ्रेक्चर देखने को मिलता है तभी जाकर इस बात का पता चल पता है कि व्यक्ति ओस्टियोपोरोसिस कि समस्या का शिकार हो रहा है। यहीं कारण है कि ओस्टियोपोरोसिस को साइलेंट किलर कहा जाता है। कुछ साधारण टेस्ट से इसका पता चल जाता है ।  थायरॉयड  अक्सर माना जाता है कि थायरॉयड महिलाओं की एक समस्या है। परन्तु सत्य यह है कि थायरॉयड पुरुषों और महिलाओं दोनों को ही होता है। यह अलग बात है कि थायरॉयड महिलाओं को पुरुषों कि तुलना में ज्यादा परेशान करता है। थायरॉयड हमारे शरीर में सबसे बड़ा ग्लेंड है जोकि गर्दन पर होती  है। इसका आकर तितली के पंखों कीतरह होता है। हमारा शरीर कितनी जल्दी एनर्जी को बर्न करता है जिससे प्रोटीन का निर्माण हो इसका नियंत्रण थायरॉयड ही करता है। साथ ही हमारा शरीर अन्य हार्मोन्स के प्रति कितना संवेदनशील है, इस बात का भी निर्धारण भी थायरॉयड द्वारा ही किया जाता है।थायरॉयड ग्लेंड थायरॉयड हार्मोन का निर्माण करता है विशेष रूप से थायरोक्सिन और टीडोथीरोनिन हार्मोन का। यह हार्मोन शरीर के मेटाबोलिज्म के रेट को बढाता है और शरीर के सिस्टम में अन्य प्रकार के विकास और गतिविधियों के रेट को प्रभावित करता है। हायपर थायरॉयड यानि ओवर एक्टिव थायरॉयड और हायपो थायरॉयड यानि अंडर एक्टिव थायरॉयड, थायरॉयड ग्लेंड की दो सबसे सामान्य परेशानियाँ है। इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं – फटीग, थकान होना, वजन का बढ़ना और ठण्ड बर्दाश्त न कर पाना। स्किन का शुष्क या मोटा होना, बालों का पतला या कमजोर होना, आईब्रो का हल्का होना, नाख़ून का कमजोर होना। कोलेस्ट्रॉल :  बढती उम्र में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने कि सम्भावना बहुत रहती है कोलेस्ट्रॉल की जांच करने के लिए लिपिड टेस्ट किया जाता है. यह दो तरह का होता है HDl व्  LDl ,इसमें पहले वाला बहुत खतरनाक होता है यह रक्त नलिकाओं में जम जाता है । कार्डियोवैस्कुलर यानी दिल की बीमारियों के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार यह  कोलेस्ट्रॉल ही होता है. इस टेस्ट से खून में कोलेस्ट्रॉल की मात्र को जांचा जाता है. बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल दिल की बीमारियों को जन्म देता है. हालांकि, महिलाओं में एस्ट्रोजेन हार्मोन के कारण दिल की बीमारियों के होने का खतरा कम होता है, लेकिन मीनोपॉज के बाद इस हार्मोन का स्तर कम हो जाता है, इसलिए यह जांच कराना बहुत जरूरी हो जाता है. हिमोग्लोबिन की कमी  :  हिमोग्लोबिन की जांच को ‘कंपलीट ब्लड टेस्ट’ के नाम से भी जाना जाता है. वैसे तो यह जांच हमेशा करानी चाहिए, लेकिन चालीस के बाद हिमोग्लोबिन की जांच कराना बहुत जरूरी होता है. यह एक सामान्य खून की जांच है, जिससे रक्त में लाल रक्त कणिकाओं की मात्र को जांचा जाता है. लाल रक्त कोशिकाओं यानी रेड सेल्स में ही हिमोग्लोबिन होता है, जिसके जरिये शरीर के दूसरे हिस्सों में ऑक्सीजन का प्रवाह होता है. चालीस के बाद महिलाओं के लिए यह जांच इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उनमें एनीमिया या रेड ब्लड सेल्स की अकसर कमी पायी जाती है. इसका प्रमुख कारण है, खुराक में आयरन की कमी. हालांकि, इस कमी को पूरा करने के लिए खाने में हरी सब्जियां, सेब व आयरन के पूरक तत्वों का सेवन किया जा सकता है. मधुमेह :-           शूगर टेस्ट: आजकल की लाइफस्टाइल में शूगर का बढ़ना आम है. खास कर चालीस की उम्र पार करनेवाले लोगों में यह तेजी से बढ़ रहा है. यदि शरीर में शूगर का स्तर बढ़ जाये, तो ‘डायबिटीज’ होने की संभावना बढ़ जाती है. शूगर की जांच के लिए खून का नमूना लिया जाता है. हाइ ब्लड शूगर का अर्थ है कि व्यक्ति डायबिटीज का रोगी है, जबकि लो ब्लड शूगर के लिए भी मेडिकल ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है. यह टेस्ट किडनी की बीमारियों को पहचानने में भी मदद करता है. यह टेस्ट साल में एक बार कराना चाहिए, खास कर महिलाओं को.    सिरम क्रि एटनीन टेस्ट सिरम क्रि एटनीन टेस्ट के द्वारा किडनी की बीमारियों का पता चलता है. इसके स्तर के आधार पर बीमारियों की विभिन्न अवस्थाओं का वर्गीकरण किया जाता है. सिरम क्रिएटनीन मांसपेशियों के मेटाबॉलिज्म और वजन तथा उम्र का बॉयोप्रोडक्ट है. गुरदे की बीमारी की दशा में मानव शरीर में सिरम क्रिएटनीन का स्तर बढ़ जाता है और मूत्र का बनना कम हो जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक किडनी की बीमारियों का शुरुआती अवस्था में पता नहीं चल पाता. इस कारण किडनी की बीमारियों से काफी अधिक मौतें होती … Read more

सूर्योदय में सूर्य दर्शन :स्वाथ्य का खजाना

सूर्य पृथ्वी के लिए उर्जा का केंद्र है।  सूर्य के कारण  ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ इसी कारण सूर्य को देवता भी मानते हैं वनस्पतियाँ सौर उर्जा को अवशोषित कर जो भोजन (फल ,सब्जियां ,अनाज ) बनाती हैं उसी से धरती पर सारा इकोसिस्टम चलता है। पर सूर्य का महत्व यहीं तक सीमित नहीं है। कहा जाता है की जिस तरह पेड़ पौधों में क्लोरोफिल सूर्य प्रकाश से क्रियाशील हो कर भोजन निर्माण करता है , उसी तरह मनुष्य की आँखों में एक तत्व होता है जो सूर्य प्रकाश को ग्रहण कर के मष्तिष्क तक पहुचाता है और मष्तिष्क  क्रियाशील हो कर ऊर्जा का निर्माण करता है और शरीर को आरोग्य प्रदान करता है.सूर्योदय के समय लगभग एक घंटे तक वातावरण में अदृश्य पराबैगनी किरने (अल्ट्रा वायलेट रेज ) का विशेष प्रभाव होता है यह विटामिन डी का अच्छा श्रोत होती हैं। नेत्रों के माध्यम से सूर्य की उर्जा हमारे मष्तिस्क में पहुँचती है और हमारी  मानसिक क्षमता को बढ़ाती है। इसके लिए प्रतिदिन सूर्य दर्शन की अवधि बढाकर आँखों  को सूर्य दर्शन के लिए अभ्यस्त किया जा सकता है व् इस ऊर्जा का अधिकाधिक लाभ उठाया जा सकता है। . सूर्य दर्शन का समय :-                            सूर्योदय के बाद लगभग एक घंटे तक सूर्य दर्शन का सही समय होता है ,इससे आँखों को क्षति नहीं पहुँचती है ,इसके बाद करे गए सूर्य दर्शन में जैसे संध्या वंदन (सूर्यास्त से एक घंटा पहले ) सूर्य दर्शन दोनों हाथों से एक मुद्रा बना कर उसमे से किया जाता है। साथ ही जल से अर्घ देने का भी विधान है जिससे सूर्य की किरने अपवर्तित हो कर आँखों पर पड़े और ज़्यादा रौशनी से आँखों पर बुरा असर ना हो. सूर्य दर्शन की विधि ;-                            प्रारंभ में धरती मिटटी पर खड़े होकर सूर्य को मात्र २ -३  सेकंड तक देखना चाहिए। धीरे -धीरे यह अवधि बढानी चाहिए।क्रम से अवधि बढाने से व् नियमित अभ्यास से आश्चर्य जनक्  परिणाम सामने आते हैं  ऐसा अधिकतम 45 मि. तक किया जा सकता है. यह समय धीरे धीरे नौ महीनों में पहुंचा जा सकता है. समय दस सेकण्ड रोज़ बढाते जाए. एक ही दिन में समय अधिक बढ़ाना सही नहीं है. सूर्य दर्शन के शारीरिक लाभ ;-                                      -सूर्य को निहारने से सभी रंग मष्तिषक ग्रहण करता है जिससे हर प्रकार के शारीरिक रोग दूर होते हैं। जिस प्रकार दवाइयां पेट के माध्यम से सारे शरीर में जाती हैं उसी प्रकार ,सौर उर्जा मष्तिष्क के माध्यम से सारे शरीर में जाती हैऔर शरीर के समस्त न्विकार दूर कर उसे पूर्ण स्वस्थ बनाती है   – रोज़ सूर्य दर्शन करने से , आँखों के रोग आदि ठीक होते हैव् नेत्र ज्योति बढती है।  -मानसिक क्षमता बढती है।  -आत्मविश्वास बढ़ने लगता है ,नकारात्मक सोच ,भय ,निराशा आदि समाप्त हो जाते हैं  – दुश्प्रव्त्तियाँ ,व् दुर्व्यसन छूट जाते हैं  – रक्त में कैल्सियम ,फोस्फोरस व् लोह की मात्रा बढती है। -स्वेत रक्त कणिकाओ के बढ़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है।  -पराबैगनी किरने ,हिस्टीरिया मधुमेह व् महिलाओं के मासिक धर्म सम्बन्धी रोगों में बहुत लाभदायक होती हैं।  -स्नायु दुर्बलता कम होती हैं।  -एंडोक्राइन ग्लांड्स की सक्रियता बढ़ जाती है। -नियमित अभ्यास से मष्तिषक सोलोरियम (सौर उर्जा ग्रहण करने वाले कुकर ) की तरह व्यवहार करने लगता है। साथ ही मानसिक व् शारीरिक शक्ति में अभूत पूर्व वृद्धि होती है    -धीरे -धीरे हाइपोथेलेमस के सक्रीय हो जाने पर भूख कम लगने लगती है। मोटापा कम हो जाता है। –  सूर्य दर्शन का समय बढ़ाते जाने से क्रमबद्ध लाभ:- -एक महीने में 5 मि का समय हो जाएगा , यह आँखों के लिए लाभदायक है. चश्मे छूट जाते है. – मानसिक क्षमता बढाने के लिए 3 महीनो में १५ मि तक पहुँच कर फिर रोजाना 5 मि सूर्य दर्शन करे.– शारीरिक क्षमता के लिए 30 मि तक पहुँच कर फिर धीरे धीरे समय कम करते हुए रोजाना दस मि तक सूर्य दर्शन कर लाभ बनाए रखे.– आध्यात्मिक लाभ के लिए नौ महीनों में 45 मि तक पहुँच कर फिर धीरे धीरे समय कम कर के रोजाना १५ मि तक सूर्य दर्शन करे. सह प्रयोग ;- – साथ ही सूर्य की रौशनी में रखा हुआ पानी पियें. – सूर्योदय काल में थोड़े समय नंगे पैर ज़मीन पर चाहिए  अध्यात्मिक लाभ के लिए सूर्य मन्त्र ;- कनकवर्ण महातेजम रत्नमालाविभूषितम् । प्रात : काले रवि दर्शनं सर्व पाप विमोचनम् ।