बरसने की जरुरत न पड़े

रंगनाथ द्विवेदी या खुदा————– उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी, कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े। वे तड़पे इतना जितना ना तड़पी थी मेरे जीते, ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के तड़पने की जरुरत न पड़े। या खुदा———- वे मेहंदी और चुड़ियो से इतनी रुठ जाये, कि शहर मे उसको बन-सँवर के निकलने की जरुरत न पड़े। एै हवा उड़ा ला उसके सीने से दुपट्टे को, और ढक दे मेरी लाश को———— ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के कफ़न की जरुरत न पड़े। या खुदा———— वे जला के रखे एक चराग हर रात उस पत्थर पे, जहाँ बैठते थे हम संग उसके, ताकि एै”रंग”——– मेरी रुह को भटकने की जरुरत न पड़े। या खुदा——— उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी, कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े। रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

बाँध लेता प्यार सबको देश से

डॉ मधु त्रिवेदी बाँध लेता प्यार सबको देश से              द्वेष से तो जंग का आसार है लांघ सीमा भंग करते शांति जो              नफरतों से वो जले अंगार है होड़ ताकत को दिखाने की मची               इसलिये ही पास सब हथियार है सोच तुझको जब खुदा ने क्यों गढ़ा                पास उसके खास ही औजार है जिन्दगी तेरी महक  ऐसे गयी                 जो तराशे इस जहाँ किरदार है शाम होते लौट घर को आ चला                  बस यहाँ पर साथ ही में सार है हे मधुप बहला मुझे तू रोज यूँ                   इस कली पर जो मुहब्बत हार है संक्षिप्त परिचय————————— . पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफबिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  मधु त्रिवेदी के अन्य लेख  बस्ते के बोझ तले दबता बचपन बहू बेटी की तरह होती है , कथनी सत्य है या असत्य अंधेर नगरी चौपट राजा बाल परिताक्त्या

तुफानों का गजब मंजर नहीं है

सुशील यादव 122२  1222 १22 तुफानों का गजब मंजर नहीं है इसीलिए खौफ में ये शहर नहीं है तलाश आया हूँ मंजिलो के ठिकाने कहीं मील का अजी पत्थर नहीं है कई जादूगरी होती यहाँ थी कहें क्या हाथ बाकी हुनर नहीं है गनीमत है मरीज यहाँ सलामत अभी बीमार चारागर नहीं है दुआ मागने की रस्म अदायगी में तुझे भूला कभी ये खबर नही है