शब्दों के घाव

क्या शब्दों के भी घाव हो सकते हैं ? जी हाँ , दोस्तों पर इस बात से अनजान  हम दिन भर बोलते रहते हैं … बक बक , बक  बक | पर क्या हम इस बात पर ध्यान देते हैं की जो भी हम बोल रहे हैं उनसे किसी के दिल में घाव हो रहे हैं | मतलब उसका दिल दुःख रहा है | कहा जाता है की सुनने वाला उन श्ब्दों के दर्द को जिंदगी भर ढोता रहता है | जब की कहने वाला उन्हें कब का भूल गया होता है | तो आज  हम एक ऐसी ही कहानी ले कर आये हैं | जो हमें शब्दों को सोंच समझ कर बोलने की शिक्षा देती है … प्रेरक कहानी शब्दों के घाव  एक लड़का था मोहन , उसके पिता जी का भेड़ों का एक बाड़ा था | उसमें कई लोग काम करते थे | पर मोहन को गुस्सा बहुत आता था | वह बात – बेबात पर सबको बुरा – भला कह देता | लोगों को बुरा तो लगता पर वो मालिक का बेटा समझ कर सुनी अनसुनी कर देते |मोहन के पिता जानते थे की बाड़े में काम करने वाले उसकी वजह से सुनी अनसुनी कर देते हैं पर मोहन की बातों का बोझ उनके दिल पर रहता होगा |  वो मोहन को कई बार समझाते ,” बेटा तुम गुस्सा न किया करो | सबसे प्यार से बोला करो | पर मोहन के कानों पर जूं तक  न रेंगती | आखिरकार मोहन के पिता ने मोहन को सुधारने का एक तरीका निकाल ही लिया |  एक दिन वो मोहन को बाड़े पर ले गए | वहां एक दीवार दिखा कर बोले ,” मोहन बेटा मैं जानता हूँ गुस्से पर कंट्रोल करना तुम्हारे लिए मुश्किल है | मैंने तुमको कई बार कहा की गुस्सा न करो तब भी तुम गुस्सा रोक नहीं पाए | हालांकि मैं जानता हूँ की तुमने प्रयास जरूर किया होगा | इसलिए मैंने तुम्हारा गुस्सा दूर करने का एक खेल बनाया है | जिससे तुम्हारा गुस्सा भी दूर होगा और एक खेल भी हो जाएगा | आखिरकार तुम भी तो गुस्सा दूर करना ही चाह्ते होगे |  मोहन पिता की तरफ देखने लगा | उसको भी जानने की बड़ी उत्सुकता हो रही थी की आखिरकार पिताजी ने क्या खेल बनाया है |  मोहन के पिता कुछ रुक कर बोले ,” मोहन ये लो कीलों का डिब्बा और हथौड़ा | अब जब भी तुम्हें गुस्सा आये | इस पर एक कील ठोंक देना | मोहन ने हां में सर हिलाया | उसने सोंचा इसमें क्या कठिनाई हैं | कील ही तो ठोंकनी है | ठोंक देंगे | पर धीरे धीरे मोहन का उत्साह जाता रहा | अब खाना खा रहे हो तो खाना छोड़ के कील ठोंकने जाओ , खेल रहे हो तो खेल छोड़ के कील ठोंकने जाओ | उफ़ ! ये तो बहुत बड़ी सजा है |  पर इस खेल या सजा जो भी हो उससे  धीरे – धीरे मोहन अपने गुस्से पर कंट्रोल करने लगा ताकि उसे कील न ठोंकनी पड़े | पर गुस्से पर कंट्रोल इतना आसान तो था नहीं | लिहाजा कील ठोंकने का काम चलता रहा |  धीरे – धीरे कर के पूरी दीवाल भर गयी | उसने ख़ुशी ख़ुशी अपने पिता को दिखया कि देखिये पिताजी ये तो पूरी दीवाल भर गयी है | अब मैंने गुस्सा करना भी कम कर दिया है | पिताजी ने दीवाल देख कर कहा ,” हां ये तो भर गयी | पर अभी तुम्हारा गुस्सा पूरी तरह से कंट्रोल में नहीं आया है | तो ऐसा करो जिस दिन पूरा दिन तुम्हें गुस्सा न आये एक कील उखाड़ देना | मोहन ने पिता की बात मान ली | उसे लगा ये तो आसान है , क्योंकि उसे गुस्सा कम जो आने लगा था |  मोहन रोज गुस्से पर कंट्रोल करता और दूसरे दिन सुबह एक कील निकाल देता | धीरे – धीरे सारी  कीलें निकल गयीं | वो ख़ुशी ख़ुशी अपने पिता को बताने गया | उसके पिता ने खुश हो कर कहा ,” ये तो तुमने अच्छा किया की सारी कीलें निकाल दी| चलो तुम्हारे साथ चल कर देखते हैं की बाड़े की उस दीवाल का कील निकलने के बाद क्या नया रूप रंग है | मोहन पिता के साथ चल पड़ा | पर दीवाल का हाल देखकर वो सकते में आ गया | जहाँ – जहाँ से कीले निकाली थीं वहां – वहां उन्होंने छेद बना दिए थे | च च च … करते हुए मोहन के पिता ने कहा उफ़ इस दीवाल में कितने छेद हो गए | पर ये तो निर्जीव दीवाल थी | जब तुम किसी इंसान पर गुस्सा करते होगे | तो भी उसके दिल में ऐसे ही घाव हो जाते होंगे | जो कभी भरते नहीं हैं | ओह बेटे तुमने तो न जाने कितने लोगों को अनजाने ही अनगिनत घाव दे दिए |  पिता की बात सुनकर मोहन रोने लगा | उसने पिता से कहा ,” पिताजी मुझे बिलकुल पता नहीं था की शब्दों से भी घाव हो जाते हैं | मैंने अनजाने ही सबको घाव दिए | अब मैं अपने शब्दों का बहुत ध्यान रखूँगा | और गुस्सा नहीं करूँगा |  मोहन के पिता ने उसे गले से लगा कर कहा ,” अब मेरा बेटा समझदार हो गया है | वो अपने शब्दों का सोंच – समझ कर इस्तेमाल करेगा व् उनसे किसी को घाव नहीं देगा |  अर्चना बाजपेयी  रायपुर ,छतीसगढ़  ————————————————————————————————————————- मित्रों प्रेरक कहानी शब्दों के घाव आपको कैसी लगी | हमें जरूर बताये | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज  लाइक करें | अगर आप को “अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब करें | जिससे हम सीधे  लेटेस्ट  पोस्ट  आपके ई मेल पर भेज सकें | यह भी पढ़ें … अधूरापन अभिशाप नहीं प्रेरणा है 13 फरवरी 2006 इमोशनल ट्रिगर्स – क्यों चुभ जाती है इत्ती सी बात असफलता से सीखें

महात्मा गाँधी जी के 5 प्रेरक प्रसंग

महात्मा गाँधी

  हमारे  राष्ट्र पिता  महात्मा गाँधी जी का जीवन अपने आप में मिसाल है | कोई भी व्यक्ति अपने भाषणों या प्रवचनों से महान नहीं बन जाता | ये महानता उसके जीवन की छोटी – छोटी बातों में झलकती है | आज हम महात्मा गाँधी जी के जीवन के कुछ ऐसे ही पांच प्रेरक प्रसंग लाये हैं | जो  बापू की महानता तो सिद्ध करते ही हैं | हमें भी उस मार्ग का अनुसरण करने की प्रेरणा देते हैं | पहला प्रसंग – समय की कीमत  महात्मा गाँधी जी समय को बहुत मूल्यवान कहा करते थे |क्योंकि गया हुआ वक्त फिर कभी नहीं आता है |  वो न तो स्वयं समय बर्बाद करते न अपने आस पास किसी को करने देते | दांडी यात्रा के समय की बात है | गाँधी जी तेज तेज चलते जा रहे थे | उनका ध्यान लक्ष्य की ओर था |  सबके कहने पर वो थोड़ी देर को एक स्थान पर रुके | तभी एक अंग्रेज व्यक्ति उनसे मिलने आया | गाँधी जी को देख कर बोला ,” हेलो मिस्टर गाँधी, मेरा नाम वाकर है |” गांधी जी ने उसकी तरफ देखा फिर बोले ,” आप वाकर हैं तो मैं भी वाकर हूँ | “कह  कर वो अपनी यात्रा पर आगे चल पड़े |  तभी एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला,” आप को उनसे मिल लेना  चाहिए था | पता है वो कौन थे | अगर आप का नाम तमाम अंग्रेजी अख़बारों में छपता |  उन से मिल लेते तो आप बहुत प्रसिद्द हो जाते |  गाँधी जी ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया – मेरे लिए सम्मान से कीमती मेरा समय है |  प्रसंग दो – जब गाँधी जी ने सारी  सभा को हंसा दिया  यूँ तो महात्मा गाँधी जी की छवि एक अनुशासित , समय के पाबन्द व्यक्ति के रूप में है | पर उनमें हास्य बोध भी गज़ब का था | इसका उदाहरण  एक जन सभा में देखने को मिला | दरसल गाँधी जी आज़ादी की लड़ाई के दौरान बहुत सारी जनसभाएं करते थे | जिसमें उनके अहिंसात्मक आन्दोलन पर जोर रहता था |  एक बार की बात है वो एक जनसभा कर रहे थे | गाँधी जी गंभीरता पूर्वक अपनी बात जनता के सामने रख रहे थे | तभी पीछे के लोग शोर मचाने लगे की उन्हें कुछ भी सुनाई नहीं पड रहा है | गांधी जी ने भाषण रोक कर पूंछा ,” जिस – जिस को सुनाई नहीं दे रहा है वो हाथ उठाये | कुछ लोगों ने हाथ उठा दिए |  गाँधी जी ने हँसते हुए कहा ,” देखिये ,ये तो बड़ा विरोधाभास है | मेरा भाषण आप को सुने नहीं दे रहा था | पर ये बात आप को सुनाई दे गयी की हाथ उठाना है | इतना सुनते ही पूरी सभा ठहाकों से भर गयी | प्रसंग तीन -बोइये और काटिए  महात्मा गाँधी जी पूरे भारत की यात्रा करते रहते थे | एक बार अपनी किसी यात्रा के दौरान वो एक छोटे से गाँव में रुके | वहां के किसान उनसे मिलने गए | उन्होंने गाँधी जी से कहा आप परम ज्ञानी हैं | हमें भी कुछ ज्ञान दीजिये |  गाँधी जी ने कहा ,” ठीक है , पहल ये बताइये आजकल आप कौन सी फसल बो रहे हैं | किसान उनके प्रश्न पर आश्चर्य में पड़ गए और बोले ,” क्या कहें , शायद आपको जानकारी नहीं है | साल का ये महीना हमारे लिये बिलकुल खाली होता हैं | क्योंकि इसमें कुछ भी बोया नहीं जाता | बाकी समय जब जब हम फसल बोते व् काटते हैं तो हमारे पास एक पल का भी समय नहीं होता | यहाँ तक की हमारे पास रोटी खाने तक का समय नहीं होता | पर अभी तो हम बिलकुल निठ्ठले हैं |  गाँधी जी बोले ,” ये आप का चयन है की आप खाली बैठे हैं | वर्ना कोई भी समय ऐसा नहीं होता जब कोई फसल बोई न जाए व् काटी न जा सके |  किसान आश्चर्य में पड़ गए | वो हाथ जोड़ कर बोले ,” कृपया हमें बताइए की वो कौन सी फसल है जो इस समय बोई व् काटी जा सकती है | हम अवश्य ये करेंगे |  गाँधी जी बोले ,” जब आप के पास काम की अधिकता होती है तब तो आप अतिव्यस्त होते हैं | पर जब आप के पास खाली समय हो तब उसे यूँ ही बर्बाद मत करिए |  आप कर्म को बोइये आदत को काटिए  आदत को बोइये चरित्र को काटिए  चरित्र को बोइये भाग्य को काटिए  तभी ये मानव जीवन सार्थक होगा |  प्रसंग चार -सार को निकाल लिया                        अपनी निंदा सुनना आसान नहीं है | पर हमारे बापू हर बात में संयत रहते थे | एक बार की बात है एक अंग्रेज ने उनको पत्र लिखा | पत्र सिर्फ गालियों से भरा हुआ था | गाँधी जी ने पत्र पढ़ा | फिर  अपने चेहरे पर बिना कोई भाव लाये उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया | फेंकते समय उन्होंने उसमें लगे  एक आलपिन को निकाल कर रख लिया | शाम को वो अंग्रेज जब उनसे मिलने आया तो उसने बड़ी शातिर मूस्कुराहट  के साथ पूंछा ,” आपने पत्र पढ़ा | गाँधी जी ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया ,” हां बिलकुल | अंग्रेज ने फिर पूंछा ,” उसमें आपको कुछ सार लगा | गाँधी जी ने आलपिन दिखाते हुए कहा ,” जी , मुझे तो उसमें ये सार का दिखा | इसलिए मैंने इसे संभाल  कर रख लिया | बाकी काम का नहीं लगा | तो उसे रद्दी की टोकरी में फेंक दिया | प्रसंग पांच – कभी झूठ मत बोलो    एक बार की बात है गाँधी जी के बड़े भाई ने कुछ कर्ज लिया था | जिसे वो आर्थिक स्तिथि ठीक न होने से वापस नहीं कर प् रहे थे | वो तगादे वालों से बहुत परेशांन  थे | गाँधी जी ने उनकी मदद करने के लिए अपना कड़ा बेंच दिया | घर में डांट खाने के भय से उन्होंने झूठ बोल दिया की कड़ा कहीं गिर गया है | माता  – पिता … Read more

सावधान ! आप कैमरे की जद में हैं

अर्चना बाजपेयी रायपुर (छत्तीस गढ़ )    क्लिक , क्लिक , क्लिक … हमारा स्मार्टफोन यानी हमारे हाथ में जादू का पिटारा | जब चाहे , जहाँ चाहे सहेज लें यादों को | कोई पल छूटने न पाए , और हम ऐसा करते भी हैं | माँल  में गए तो चार साड़ियों की फोटो खींच भेज दी सहेलियों को व्हाट्स एप पर | तुरंत सबकी राय आ गयी | खुद को भी फैसला लेने में आसानी हुई | ये तस्वीरे हम खुद खींचते हैं अपनी सुविधा से अपनी मर्जी से | पर अगर यही काम कोई दूसरा करे बिना हमारी जानकारी के बिना हमारी मर्जी के तो ?         अक्सर अख़बारों में पढने को मिल जाता है कि बड़े –बड़े शॉपिंग माल्स में ट्रायल रूम्स में छोटे कैमरे लगे होते हैं जो वस्त्र बदलते समय महिलाओ  की तस्वीरे उतार लेते हैं | महिलाओ को सचेत रहने को कहा जता है  व् कई  ऐसे उपाय बताये जाते हैं जिससे वो आसानी से जान सके कि ट्रायल रूम में कोई कैमरा लगा है या नहीं | इन ख़बरों के आने के बाद से ज्यादातर महिलाएं सतर्कता से काम लेने लगी  हैं | पर आज हम इस लेख में उन छिपे हुए कैमरों की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि उन उन कैमरों  की बात कर रहे हैं जो लोग हाथों में लिए घुमते हैं और यहाँ वहाँ ,ईधर  उधर  बिना १,२,३ रेडी ,स्माइल प्लीज कहे फोटो खीचते रहते  हैं | जी हाँ ! आप सही समझे हम बात कर रहे हैं आपके हाथों में हर वक्त रहने वाले मोबाइल फोन की |       कहते हैं हर आविष्कार के कुछ लाभ होते हैं व् कुछ हानि वही बात मोबाइल फोन पर भी लागू होती है | आज से १० -१५ साल पहले मोबाइल इतने सुलभ नहीं थे | केवल वहीँ लोग जो फोटोग्राफी के शौक़ीन थे अपने पास कैमरा रखते थे वो भी २४ x ७ नहीं | किसी विशेष बात पर विशेष जगह पर ही फोटो खीची जाती थी | उस समय आम आदमी फोटो खिचवाने  के लिए मौके तलाशता था | जो उसे शादी पार्टी आदि समारोहों में ही मिलते थे | बकायदा तैयार होकर ग्रुप फोटो खिचवाने स्टूडियो जाया जाता था | वाजिब बात है सबके पास अपनी गिनी चुनी ही तस्वीरे होती थी | कितने खूबसूरत पल जिन्हें यादों में सहेजना चाहते थे ,रह जाते थे | मोबाइल ने यह मुश्किल आसान कर दी है | हर किसी के पास कैमरा है … जब चाहे जितनी चाहे फोटो खींचों ,पसंद आये रखों बाकी सब डिलीट |  आज कल हर हाथ में मोबाइल है और मोबाइल में अच्छी किस्म का कैमरा | पर इससे जिंदगी की कुछ मुश्किलें बढ़ी भी है | अब आप को सड़क पर बाज़ार में हँसते  –बोलते खाते –पीते , कभी भी किसी असावधान मुद्रा में कैद कर सकता है | सिर्फ कैद ही नहीं कर सकता है वीडियो बना कर फेस बुक , व्हाट्स एप पर शेयर भी कर सकता है | अभी पिछले दिनों व्हाट्स एप पर एक वीडियो बहुत शेयर हुआ जिसमें दुल्हन वरमाल डालते समय गिर गयी थी | किसकी  शादी थी वो लड़की कौन थी इससे किसी को मतलब नहीं पर उसके गिरने के दृश्य पर हँसने  वाले वहां मौजूद लोग ही नहीं अपितु कई अनजान –अजनबी भी बने | रेखा अपने ९ साल के दो जुड़वां  बच्चों के साथ मॉल गयी थी | मॉल में बच्चों ने बहुत शरारते करनी शुरू कर दी | रेखा ने उन्हें संभालने  की कोशिश की पर गुस्से पर काबू न पा सकी जोर से चिल्ला –चिल्ला कर बच्चों को डांटा फिर बच्चों के पलट कर जबाब देने पर वहीँ बैठ सर पकड़ कर रोने लगी | बच्चे तो थोड़ी देर में शांत हो गए पर शाम को रेखा के पास कई फोन आने लगे | दरसल किसी ने उसका वीडियो बना कर “ आजकल की मम्मी “ के नाम से फेस बुक पर डाल  दिया था |    श्रीमान और श्रीमती देसाई सडक  पर झगड़ पड़े | आप को कुछ नहीं आता से शुरू हुई बात दोनों के पुरखो के सत्कर्म उछालने तक खीच गयी | थोड़ी देर बाद उस झगड़े की वीडियो उनके दूसरे शहर में रहने वाले एक मित्र ने व्हाट्स एप पर ये कहते हुए भेजी की उनके पास कहीं से आई है ……… क्या बात है सब ठीक है | नयी माँ सुलेखा अपने १ १/२  साल के बच्चे के साथ मॉल में गयी | बच्चा कभी गोद में चढ़ता  कभी उतरता | साडी   ठीक से पिन अप न होने की वजह से इस आपाधापी में पल्ला कभी अपने स्थान पर न रह पाता | शातिर मोबाइल कैमरों ने उसे खीच कर अपने दोस्तों को भेजना शुरू कर दिया |      वैसे महिलाओं को खतरा ज्यादा है पर इन मोबाईल कैमरों की जद में हर कोई है क्या स्त्री ,क्या पुरुष | गंजा सर खुजाते हुए किशोरी लाल व् कही  ट्रेन न छूट जाए इस लिए हाँफते –दांफ्ते दौड़ लागते मोटी  तोंद  वाले बैंक मैनेजर शैलेश कुमार जी | यहाँ आम और ख़ास का फर्क भी नहीं है रिक्शे वाला हो सब्जी वाला हो या काम वाली उसकी कुछ असावधानीवश की गयी हरकते कैमरे में कैद हो सकती हैं और जस्ट फॉर फन आँन   लाइन हो सकती हैं | क्या आपने कभी सोचा है जो आप दिन भर व्हाट्स एप पर तमाम फुहडाना ,बेवकूफाना हरकतें देखते रहते हैं उनमें से कई किसी  आम घटना को चुपके से कैमरे में कैद करके बनायीं गयी है| ये वो आम बातें भी होती हैं जो हम भी अक्सर करतें हैं …. पर दूसरे का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं हटते | वैसे तो हम जब भी घर के बाहर होते हैं हमें इस बात का हमेशा ख्याल रहता है कि कोई हमें देख रहा है और हमारा प्रयास  भी यही रहता है कि हम घर के बाहर शिष्ट व् सभ्य  व्यवहार करे | पर पहले बात इतनी गंभीर नहीं थी | कुछ दिनों बाद बात आई गयी हो जाती थी | पर आज के समय में हमें जब यह पता है कि  घर के बाहर न सिर्फ लोग हमारी हरकतों को  देख रहे हैं … Read more