जया आनंद की कविताएँ

जया आनंद की कविताएँ

कविता मन की अभिव्यक्ति है | जया आनंद की कविताएँ उस स्त्री की आवाज है जो आकाश छूना चाहती है| वहीं धरती से जुड़े रह कर अपने स्नेह से रिश्तों की जमीन को भी सींचना  चाहती हैं | कहीं न कहीं हर स्त्री इन दो को थामने साधने के प्रयास  में हैं | आइए पढ़ें .. जया आनंद की कविताएँ छूना चाहती हूँ आकाश पर धरती से नापना चाहती हूँ ऊंचाई पर आधार नहीं खोना चाहती उड़ना चाहती हूँ पर बिखरना नही चाहती होना चाहती हूँ मुक्त पर बंधन नही तोडना चाहती होना चाहती हूँ व्यक्त पर परिधि नहीं लांघना चाहती ……. देखती हूँ मेरा न चाहना मेरे चाहने से अधिक प्रबल है और फिर मेरा न चाहना भी तो मेरा चाहना ही है इसलिए शायद मेरे सवालों का मेरे पास ही हल है #डॉ जया आनंद ढाईअक्षर का अधूरा सा शब्द ‘स्नेह’ पर कितना पूरा इसकी परिधि में है विचारों की ऊँचाई भावनाओं की गहराई नेहिल मुस्कान सजल  दृष्टि कोमल अभिव्यक्ति सहज अनुभूति आशीषों की वृष्टिे बीते पल जीये गीत सुनहरे सपने हमारे अपने … सच !स्नेह शब्द अधूरा कहाँ यह तो पूरा है । #डॉ जया आनंद अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें जाने कितनी सारी बातें मैं कहते कहते रह जाती हूँ शहीद दिवस पर कविता डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ. आपको जया आनंद की कविताएँ कैसी लगीं | हमें अवश्य बताएँ | अटूट बंधन  का फेसबूक पेज लाइक करें व atootbandhann.com को सबस्क्राइब करें |ताकि रचनाएँ सीधे आप तक पहुँच सकें |

ऐ, सुनो ! मैं तुम्हारी तरह

ऐ सुनो

पितृसत्ता की लड़ाई स्त्री और पुरुष की लड़ाई नहीं है ,ये उस सोच की लड़ाई है जो स्त्री को पुरुष से कमतर मान कर स्वामी और दासी भाव पैदा करती है |कई बार आज का शिक्षित पुरुष भी  इस दवंद में खुद को असहाय महसूस करता है | वो समझाना चाहता है कि भले ही तुमने सुहाग के चिन्हों को धारण  किया हो पर मेरा अनुराग तुम्हारे प्रति उतना ही है |सौरभ दीक्षित ‘मानस’की ये कविता प्रेम और समर्पण के कुछ ऐसे ही भाव तिरोहित हुए हैं……. ऐ, सुनो ! मैं तुम्हारी तरह ऐ, सुनो ! मैं तुम्हारी तरह माँग में सिन्दूर भरकर नहीं घूमता। लेकिन मेरी प्रत्येक प्रार्थना में सम्मिलित पहला ओमकार तुम ही हो। ऐ, सुनो! मैं तुम्हारी तरह आँखों में काजल नहीं लगाता। लेकिन मेरी आँखों को सुकून देने वाली प्रत्येक छवि में तुम्हारा ही अंश दिखता है। ऐ, सुनो! मैं तुम्हारी तरह कानो में कंुडल नहीं डालता । लेकिन मेरे कानों तक पहुँचने वाली प्रत्येक ध्वनि में तुम्हारा ही स्वर होता है। ऐ, सुनो! मैं तुम्हारी तरह गले में मंगलसूत्र बाँधकर नहीं रखता। लेकिन मेरे कंठ से निकले प्रत्येक शब्द का उच्चारण तुम से ही प्रारम्भ होता है। ऐ, सुनो! मैं तुम्हारी तरह पैरों में महावर लगाकर नहीं चलता। लेकिन मेरे जीवन लक्ष्य की ओर जाने वाला प्रत्येक मार्ग, तुमसे ही प्रारम्भ होता है। ऐ, सुनो! मैं तुम्हारी तरह पैर की अंगुलियों में बिछिया नहीं बाँधता। लेकिन मेरी जीवन की प्रत्येक खुशी की डोर तुमसे ही बँधी हुयी है………मानस आपको सौरभ दीक्षित  जी की कविता कैसी लगीं हमें अवश्य बताएं | अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो वेबसाईट सबस्क्राइब करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |

आज का रावण

विजयदशमी में बुराई के प्रतीक रावण का प्रभु श्रीराम द्वारा वध किया जाता है | पर आज रावण एक नहीं अनेक हैं, और राम एक भी नहीं | पढ़िए खूबसूरत कविता “आज का रावण”  इंसानी मुखौटे में घूम रहा है स्कूल, कॉलेज, बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन और तो और घर के भीतर – बाहर हर जगह घात लगाये है – आज का रावण…. दामिनी – प्रद्युम्न जैसे मासूमों का खून पीने मानवता को तार – तार करने अपना काला सामृाज्य बढ़ाने रच रहा षड्यंत्र वो हैवान – शैतान / आज का रावण…. बैठ कर सत्ता के गलियारों में निज घर भर रहा प्रजारूपी जनता पर चाबुक चला रहा देश को रसातल में पहुंचा रहा आज का रावण…. बदल कर भेष बना साधु धर्म को कर रहा नष्ट – भ्रष्ट मठ, मंदिर, आश्रम इसके बने अय्याशी का द्वार गई आज इंसानियत इससे हार  अब श्री राम कहॉ….? रावण घर – घर में तैयार यहॉ….!  मुकेश कुमार ऋषि वर्मा