नयी सोंच -कुमार गौरव की लघुकथाएं ( ई – बुक )

                                                       प्रस्तुत है कुमार  गौरव की लघुकथाओ की ई -बुक ,  नयी सोंच   इसमें आप पढेंगे आठ  लघुकथाएं  1 ..सूखा … इलाके में लगातार तीसरे साल सूखा पडा है अब तो जमींदार के पास भी ब्याज पर देने के लिए रूपये नहीं रहे । जमींदार भी चिंतित है अगर बारिश न हुई तो रकम डूबनी तय है । अंतिम दांव समझकर जमींदार ने हरिद्वार से पंडित बुलवाकर बारिश हेतु हवन करवाया । दान दक्षिणा समेटते हुए पंडित ने टोटका बताया कोई गर्भवती स्त्री अगर नग्न होकर खेत में हल चलाये तो शर्तिया बारिश होगी । आगे पढ़े २ …मोहसिन की बेवा  मोहसिन सेना की वर्दी पहने लद्दाख के ग्लेशियर में कहीं दब गया । सरकार उसे मरा हुआ नहीं मानती । वो ड्यूटी पर नहीं आता उसकी सैलरी नहीं जाती खाते में । मोहसिन की बेबा रोज एटीएम लेकर जाती है टेलर की दुकान पर । अफजल दोस्त था मोहसिन का , पिन मालूम है उसे । रोज चेक करता है और कुछ रूपये जेब से निकालकर उसके हाथ में रख देता है अभी इतना ही आया है कहकर । आज अफजल की बीबी ने पैसे को लेकर हंगामा कर दिया तो अफजल ने कह दिया पैसे नहीं हैं एटीएम में । चक्की पर आटा लिए सर झुकाए खड़ी है मोहसिन की बेबा । चक्कीवाला पिसाई मांग रहा है छह किलो का पंद्रह रूपया । आगे पढ़ें ३ …चालाक कबूतर  बहेलिये ने कबूतर पकड़ा तो कबूतर चिल्ला उठे ” हमें छोड़ दो , हमें भी जीने का अधिकार है संविधान में भी लिखा है शायद । ” बहेलिया हँसा और पिंजरे में रखकर दरवाजा बंद करते हुए बोला ” अबे आज मंदिर निर्माण समिति की बैठक है रात के खाने में जाएगा तू । भगवान के काम में लग रहा जीवन तेरा , सीधा स्वर्ग जाएगा । ” आगे पढ़ें 4 … सूखी रोटियाँ  चैनल के लिए कहानियों की खोज में कोशी के कछार भटकते भटकते एक बुढिया को देखा जो रोटियां सुखा सुखाकर घर के आंगन में बने एक बडे से मचान पर रख रही थी । उसने बुढिया से इसका कारण पूछा तो मुस्कुरा खर वापस अपने काम में लग गई । स्टोरी न बन पाने के अफसोस के साथ कुछ फोटोज खींचे और मन में सोचा कम से कम ब्लॉग पर जरूर लिखूंगा इस पगली बुढिया के बारे में । फिर वो शाम होते ही लौट आया जिला मुख्यालय के अपने होटल पर । अभी खाना खाकर सोने की कोशिश कर ही रहा था कि एडिटर का फोन आया ” नेपाल ने बराज के चौबीसो गेट खोल दिये हैं ,भयंकर तबाही मचाएगी कोशी , काम पर लग जाओ । ” आगे पढ़ें 5 … नयी सोंच  धर्मपरायण परिवार में नई बहू के आगमन के उपलक्ष्य में रामचरितमानस का पाठ एवं विद्वजनों द्वारा व्याख्यान रखा गया । सारा परिवार बाहर व्याख्यान सुन रहा था वहीं सुनसान पाकर किसी ने बहू को दबोच लिया । पलटकर जो देखा तो दूर के रिश्ते का देवर था । नजर मिलते ही उसने कुत्सित ढंग से आंख दबाई ” भौजाई में तो आधा हिस्सा होता ही है । ” बाहर प्रसंग चल रहा था लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काट दी थी और सूर्पनखा विलाप करती हुई लौट रही थी । बहू ने जोर का धक्का दिया और पास पडी फांसुल उठाकर आधा हिस्सा मांगनेवाले उस पुरूष से उसका पुरा पुरूषत्व छिन लिया । आगे पढ़ें ६ … भूख और कवि  नेताजी ने क्षेत्र में कवि सम्मेलन रखवाया । कवि को खबर करवाया शाम को कवि सम्मेलन है अपनी बेहतरीन कविता लेकर पहुँच जाना । कवि फूला न समाया । अपने सबसे नये कुरते पाजामें को कलफ किया । संदूक ने निकाला अपनी सहयोग के आधार पर छपी ताजातरीन काव्य संग्रह की प्रकाशक द्वारा दी गई एक मात्र प्रति को और झोले में रख छल दिया सम्मेलन को । पत्नी ने आवाज दी ” रोटी तो खालो । ” कवि गुर्राये तुझे रोटी की पडी है वहाँ मेरा सम्मान होना है , मंत्री जी का कार्यक्रम है भूखे थोडे आने देंगे। सम्मेलन शुरु हुआ कवि को मंच पर दुशाला ओढाकर सम्मानित किया गया । मंत्री जी कार्यक्रम छोडकर अपने गुर्गौं के साथ गेस्ट हाउस चले गये । कवि ने मंत्री जी की प्रशंसा और अपनी कविताओं के साथ मंच संभाल लिया । आगे पढ़ें ७ … नारी सम्मान  मॉल में रामायण का मंचन चल रहा था । चलते चलते सीता की राह में एक बडा पत्थर आ गया तो राम ने आगे बढकर लात मारकर पत्थर को रास्ते से हटा दिया । पत्थर पैर लगते ही औरत के रूप में बदल गया । औरत ने अंगडाई ली , कमर सीधी किया और रास्ता छोडकर जंगल की तरफ चल दी । लक्ष्मण को बहुत गुस्सा आया वो चिल्लाकर बोले ” एहसानफरामोश औरत तुम श्रीराम के कारण जड से चेतन अवस्था में आई क्या तुम्हें इसके लिए धन्यवाद कहना उचित नहीं लगा । ” आगे पढ़ें 8 … दूध भात  जब दुआरी के कटहल पर कौए ने नीर बनाया तो धनेसरी खूब खुश हुई थी । अब तो बडका समदिया घर के पास ही आ गया । पीरितिया के बापू उहां आने का सोचेगा और कौआ इहां फटाक से उसको खबर कर देगा । केतना दिन हो गया मुंह देखे , पिरितया के जनम में भी नहीं आए थे खाली पैसा भेजवा दिए अब तो पिरितिया घुटन्ना भरने लगी है । रोज बरतन बासन के बहाने अंगना में मोरी के पास घंटों बैठी रहती । लेकिन निर्मोहिया एक्को बार भी कांव कांव नहीं करता उसकी तरफ देखकर । आगे पढ़ें

सूखा

इलाके में लगातार तीसरे साल सूखा पडा है अब तो जमींदार के पास भी ब्याज पर देने के लिए रूपये नहीं रहे । जमींदार भी चिंतित है अगर बारिश न हुई तो रकम डूबनी तय है । अंतिम दांव समझकर जमींदार ने हरिद्वार से पंडित बुलवाकर बारिश हेतु हवन करवाया । दान दक्षिणा समेटते हुए पंडित ने टोटका बताया कोई गर्भवती स्त्री अगर नग्न होकर खेत में हल चलाये तो शर्तिया बारिश होगी । मुंशीजी को ऐसी स्त्री की तलाश का जिम्मा सौंपा गया । मुंशीजी ने गांव में घर घर घुमने के बदले सबको एकसाथ पंचायत बुलाकर समस्या और पंडित जी के द्वारा बताया निदान बताया और गुजारिश की सहयोग करने की । अभी पंचायत में खुसुर फुसुर चल ही रही थी की जमींदार साहब की नौकरानी दौड़ी दौड़ी आई ” मालिक नेग पांच सौ से कम न लूंगी आप दादा बनने वाले हैं बहुरानी के पांव भारी है । ” खुशी से फुल गए जमींदार साहब मुंछ पर ताव देकर बोले ” आता हूं पंचायत का काम निबटाकर घर चल हजार दूंगा । ” पंचायत में अचानक सन्नाटा छा गया सब जमींदार साहब को उम्मीद भरी नजरों से देख रहे थे, मानों बारिश उनकी तिजोरी में भरा रूपया हो । जमींदार इस खामोशी भरी नजरों का मतलब समझते ही उखड़ गये ” सब अंधविश्वास है ऐसा कहीं होता है बारिश तो प्रकृति के हाथ में है उस फरेबी पंडित की बात पर अपनी बहू बेटियों का अपमान क्यों करें । ” कुमार गौरव

जोरू का गुलाम

राधा आटा गूंधते गूंधते बडबडा रही थी ” पता नहीं क्या ज्योतिष पढ रखी है इस आदमी ने हर बात झट से मान जाता है । उसका भी मन करता है रूठने का , और फिर थोडी नानुकुर के बाद मान जाने का । अभी कल कहा सर में दर्द है तो फौरन से झाडू पौंछा बरतन सब करके बैठ गया सर दबाने आराम पाकर थोड़ा आंखें क्या बंद की लगा पैर दबाने । पता नहीं इस आदमी में स्वाभिमान नाम की कोई चीज है कि नहीं । पिताजी ने न जाने किस लल्लू को पल्लू में बांध दिया । “  तभी आहट हुई तो देखा विनोद बेसिन पर हाथ धो रहे थे । उसने पूछा ” सब्जी नहीं लाये क्या । “विनोद झुंझलाकर बाहर की तरफ जाते हुए बोला ” जोरू का गुलाम समझ रखा है क्या , सामने सडक पर तो मिलती है खुद क्यों नहीं ले आती । ”  राधा को तो मन की मुराद मिल गई पल्लू कमर में खोंसकर अपने डायलाग सोचते सोचते वो विनोद के पीछे लपकी । तभी उसके पैरों से कुछ टकराया और वो धडाम से गिर पडी , देखा तो सब्जियां थैले से बाहर निकल कर किचन में टहल रही थी । उनको पकड पकडकर उसने पुनः थैले में बंद करना शुरु कर दिया और मन ही मन बडबडाने लगी ” इस आदमी पर न पक्का किसी भूत प्रेत का साया है मेरे मन की सब बात जान जाता है आज ही माँ को फोन करके कहती हूं मसान वाले बाबा से भभूति लेकर भिजवा दे । “ उधर से विनोद चिल्लाया ” अरे क्या टूटा । “ गुस्से में ये भी चिल्लाई ” मेरा भ्रम । “ कुमार गौरव हमारा वेब पोर्टल

लघुकथा – सूकून

कुमार गौरव मौलिक एवं अप्रकाशित एक छुट्टी के दिन कोई पत्रकार कुछ अलग करने के ख्याल से जुगाड़ लगाकर ताजमहल में घुस गया । बहुत अंदर जाने पर उसे एक बेहद खूबसूरत औरत अपने नाखून तराशती हुई मिली । पत्रकार को आश्चर्य हुआ दोनों की नजरें मिली तो उसने पूछा ” कौन से चैनल से हो । ” उसने बिना चेहरे पर कोई भाव लाये कहा ” मैं यहीं रहती हूं । ” लडकी कुछ दिलचस्प लगी सो उसने कैमरा ऑन कर लिया और बात शुरु करी ” कब से रहती हो यहाँ । ” “बहुत पहले ये बनने के कुछ दिनों बाद से ही । ” “अच्छा ये बताओ शाहजहां को तुमने देखा था कैसे थे । ” ” हां बहुत करीब से उनमें वो सारी खूबियां थी की कोई उनको अपना महबूब बना ले । ” ” तुम्हारे हिसाब से ताजमहल क्यूं बनवाया उनकी और भी तो बेगमें थी क्या वो उनसे प्यार नहीं करते थे । ” आह भरी उसने ” हां सबसे प्यार करते थे लेकिन मैं चाहती थी की वो सिर्फ मुझसे प्यार करें इसी जिद में मैंने खाना पीना छोड दिया था और बीमार पड गई । आखिर में उन्होंने वादा किया की वो कुछ ऐसा करेंगे जिससे आने वाली नस्लें यही महसूस करेंगी की वो मुझसे बेपनाह प्यार करते थे । ” पत्रकार अचंभित रह गया ” ओ मॉय गॉड आप मुमताज हैं । ” “हां मैं ही वो बदनसीब हूं जिसकी रूह इस इश्क की कब्रगाह में भटकती रहती है । ” “क्या कोई उपाय नहीं जिससे इस भटकती रूह को सूकून मिले ” बेसाख्ता खिलखिलाई वो ” जब हर मर्द सिर्फ एक औरत का हमेशा के लिए हो जाया करेगा तब हर घर ताज होगा और शायद मेरी रूह को सूकून भी ” कहकर वो एक चल दी । उसकी बात पर सोचते हुए उसने कैमरा उठाया तो देखा कैमरे के लेंस का शटर तो उठाया ही नहीं था ।