बदलते हुए गाँव

गाँव यानि अपनी मिटटी , अपनी संस्कृति और अपनी जडें , परन्तु विकास की आंधी इन गाँवों को लीलती जा रही है | शहरीकरण की तेज रफ़्तार में गाँव बदल कर शहर होते जा रहे हैं | क्या सभ्यता के नक़्शे में गाँव  सिर्फ अतीत का हिस्सा बन कर रह जायेंगे |  हिंदी कविता – … Read more

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अटूट बंधन पत्रिका पर डॉ गिरीश चन्द्र पाण्डेय ‘प्रतीक ‘की समीक्षा

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गिरीश चन्द्र पाण्डेय “प्रतीक” की कवितायें

अब रेखाएं नहीं अब तो सत्ता तक पहुचने का कुमार्ग बन चुकी हैं हर पाँच साल बाद फिर रँग दिया जाता है इन रेखाओं को अपने-अपने तरीके से अपनी सहूलियत के रँग में कभी दो गज इधर कभी दो गज उधर बनी रहती है रेखा जस की तस गिरीश चन्द्र पाण्डेय जी की कवितायें मैं … Read more

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