श्रीकृष्ण वंदना
जन्माष्टमी प्रभु श्रीकृष्ण के धरती पर अवतरण का दिन है | दुनिया भर में भक्तों द्वारा यह पर्व हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है | भक्ति प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति है | भक्ति भावना में निमग्न व्यक्ति सबसे पहले ईश के चरणों की वंदना करता है … श्रीकृष्ण वंदना अंतर में बैठे हो प्रभुवर , इतनी करुणा करते रहिये | मम जीवन रथ की बागडोर , कर कमलों में थामें रहिये || उच्श्रिंखल इन्द्रिय घोड़े हैं , निज लक्ष्य का बोध न रखते हैं ठुकरा मेरे निर्देशों को , भव पथ पर सदा भटकते हैं || अति बलि निरंकुश चंचल मन , प्रिय मेरे वश नहीं होता है | ये मस्त गेंद की भांति प्रभु , दिन रात्रि दौड़ता रहता है || चंचल मरकट की भांति जभी ये स्वप्न जगत में जाता है | तब कुशल नटी की भांति वहाँ, अद्भुत क्रीडा दिखलाता है || निज जान अकिंचन दासी को , चरणों में नाथ लगा लीजे , गोविन्द वारि करुणा की बन अब सतत वृष्टि मुझ पर कीजे || मेरे जीवन कुरुक्षेत्र में आ , गीता का ज्ञान उर में भरिये , प्रिय सारथि अब जीवन रथ को , आध्यात्म मार्ग पर ले चलिए || उर के विकार कौरव दल का , प्रिय सारथि अब विनाश करिए | सद्वृति रूपी पांडव की , अविलम्ब प्रभु रक्षा करिए || मन से वाणी से काया से , जीवन भर जो भी कर्म करूँ हे जगन्नाथ करुना सागर | वे सभी समर्पित तुम्हें करूँ || ये ‘राष्ट्रदेवी ‘अल्पज्ञ प्रभु स्वीकार उसे करते रहिये शुभ कर्मों का आचरण करूँ | अवलंबन प्रिय देते रहिये || कृष्णी राष्ट्र देवी त्रिपाठी (श्रीमती एम डी त्रिपाठी,) (संक्षिप्त गीतामृतं से ) यह भी पढ़ें ……. जन्माष्टमी पर सात काव्य पुष्प पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की धर्म और विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है कान्हा तेरी प्रीत में कृष्ण की गीता और मैं आपको ” श्रीकृष्ण वंदना “कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- janmashtami, shri krishna, lord krishna, govind, avtar, krishna avtar