सुरक्षा

फ्रीज के दरवाजे के अंदरूनी रैक पर एक पारदर्शाी डब्बे में बेहद मंहगा खजूर रखा हुआ था। दरवाजा खोलते वक्त वह दिख जाता तो मैं दो-चार अदद खा लेता। पत्नी भी अक्सर ऐसा ही कर लेती थी। मगर फ्रीज के निचले ड्रावर से सब्जियां निकालते वक्त कामवाली की नजर रैक पर पड़ जाती तो वह अपने बच्चे के लिए एक-दो अदद खजूर मांगने से नहीं हिचकती। मुझे या पत्नी को मजबूरन एक-दो अदद खजूर देना पड़ता।   मांगने की यह अप्रिय घटना हर दूसरे-तीसरे दिन घटित हो जाती। हमें यह बुरा लगता था। आखिर एक दिन पत्नी ने खजूर के उस डब्बे को फ्रीज के बिलकुल पीछे के स्थान पर छुपा कर रख दिया। अब फ्रीज खोलते वक्त खजूर नहीं दिखता तो हम उसे खाना भूल जाते। पत्नी भी भूल जाती। देखते-देखते दो माह निकल गए।   एक दिन अचानक पत्नी को खजूर का खयाल आया। उसने खजूर फौरन बाहर निकाला। खजूर खराब हो चुका था और उससे बदबू छूट रही थी। उसे फेंकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। पत्नी खजूर लेकर डस्टबीन की तरफ बढ़ी। मैंने यह देखा तो कहा, ‘‘खजूर के कुछ पीस कामवाली को देने पर हमें मलाल होता था। मगर अब इन्हें फेंकने पर क्या मलाल नहीं हो रहा ?’’   पत्नी ने स्वीकार किया और कहा, ‘‘हां, कसक तो हो रही है।’’ इसपर मैंने पूछा, ‘‘अब आगे से क्या करोगी ?’’ पत्नी ने विश्वास भरे स्वर में कहा, ‘‘कोई कारगर उपाय जरूर करूंगी।’’ कुछ दिन बाद पत्नी दूसरा खजूर ले आई। मैंने पूछा, ‘‘खजूर कहां रखा है ?’’ उसने कहा, ‘‘बस वहीं। फ्रीज के दरवाजे के भीतरी रैक पर ही।’’ मैंने पूछा, ‘‘मगर मुझे दिखा नहीं।’’   पत्नी ने आंखों में चतुराई भरकर कहा, ‘‘अरे, धीरे बोलो। मैंने इस बार उसे एक काले रंग के डब्बे में छुपाकर रखा है। कामवाली समझ नहीं पाएगी। तुम याद कर चुपके से खा लिया करना।’’ जहां देश के सैनिक बिना सुरक्षा के सीमा पर सीना तानकर रहते हैं, वहीं महज खजूर की रक्षा के लिए की गयी इस चालाक व्यवस्था पर मैं भौंचक रह गया। -ज्ञानदेव मुकेश न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी, पटना-800013 (बिहार) यह भी पढ़ें ……… श्राद्ध की पूड़ी मजबूरी नीम का पेड़ आपको लघु कथा   ” सुरक्षा ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under –story, hindi story, emotional hindi story, short story

शक्ति रूप

इस कहानी को पढ़कर एक खूबसूरत कविता की पंक्तियाँ याद आ रहीं है |  “उठो द्रौपदी वस्त्र संभालो , अब गोविन्द ना आयेंगे “ वायरल हुई इस कविता में यही सन्देश था कि आज महिलाओं और खासकर बच्चियों के प्रति बढती यौन हिंसा को रीकने के लिए अब हमारी बच्चियों को अबला  बन कर किसी उद्धारक की प्रतीक्षा नहीं करनी बल्कि शक्ति रूपा बन कर स्वयं ही उनका संहार  करना है | शक्ति रूप सोलह साल की नाबालिग लड़की जंगल में लकड़ी बीनने जा रही थी। जरूर कोई मजबूरी रही होगी। नहीं तो आज के समय में ऐसी कौन-सी माँ  होगी, जो बेटी को खतरों से खेलने के लिए छोड़ दे। लेकिन आज सचमुच खतरा मंडरा रहा था। वह जंगल में थोड़ा अंदर पहुँची , तभी इंसान रूपी दो भेड़ियों ने उस लड़की को घेर लिया। लड़की तत्क्षण समझ गई कि आज उसकी इज्जत जाएगी और शायद जान भी। लड़की बचने का उपाय खोजने लगी। सबसे पहले उसने दया की भीख मांगी। उसने कहा, ‘‘भगवान के लिए मुझे छोड़ दो। एक अबला की इज्जत से न खेलो। वो तुम्हारा भला करेगा।’’ संवेदनहीन भेडियों  पर इस अनुनय-विनय का कोई असर नहीं हुआ। वे लड़की तरफ बढ़ने लगे। लड़की दो कदम पीछे हटी। उसने चिल्लाना शुरू किया, ‘‘बचाओ ! बचाओ !!’’ शहर में जहां हृदय-युुक्त प्राणी रहते हैं, वहां उसकी गुहार न सुनी जाती, तो यहां जंगल में उसकी सुनने वाला कौन था। लड़की का यह प्रयास भी व्यर्थ गया। अब उसने पुलिस का नाम लेना शुरू किया। उसने दरिंदों को डराते हुए कहा, ‘‘तुम बचोगे नहीं। पुलिस अब बहुत चैकन्नी हो गई है। वो तुम्हें ढूंढ़ निकालेगी और तुम्हें कड़ी सजा देगी।’’  भेड़िया अट्टहास करने लगे। उन्होंने कहा, ‘‘पुलिस में इतनी ताकत कहां ? दूसरे, हम कोई साक्ष्य छोड़ेंगे तब न !’’ भेडियों ने उसे अपनी गिरफ्त में लेने के लिए पंजा मारा। लड़की झटके से फिर चार कदम पीछे हटी। उसने मां-बेटी का हवाला देना शुरू किया। उसने कहा, ‘‘तुम्हारे घर में मां-बेटी नहीं हैं क्या ? क्या मैं तुम्हारी छोटी बहन की तरह नहीं हूं ?’’ भेड़िया विद्रूप हंसी हंसने लगे। जैसे कह रहे होें, भेड़िया और मानवीय रिश्ता ? हुंह ! खुद को बहन कहने का यह प्रयास भी व्यर्थ गया। लड़की अब रोने लगी। वह गिड़गिडा़ती रही, चिल्लाती रही। मगर यह सब इन निष्ठुरों पर चिकने घड़े पर पानी के समान था। अब वह उनकी पकड़ में आने ही वाली थी।  तभी पीछे एक पहाड़ी आ गई। लड़की को पहाड़ी पर चढ़ भागने का मौका मिल गया। वह पहाड़ी पर तेजी से काफी ऊपर चढ़ गई। वे दरिंदे भी पहाड़ी चढ़ने लगे। लड़की फिर घबराई। वह थक चुकी थी। उसे लगा, अब वह पकड़ी जाएगी। तभी उसने देखा, पहाड़ी पर बड़े-बड़े कई पत्थर पड़े हैं। अब उसने ताकत दिखाने की सोची। उसने पाया, आज उसकी साहस और शक्ति ही उसकी रक्षा करेगी। वह ऊपर से चिल्लाई, ‘‘रुक जाओ पापियो ! आगे बढ़े तो मैं ये पत्थर तुमपर गिरा दूंगी !’’ भेड़िये डरे नहीं और आगे बढ़ते रहे। लड़की अब शक्ति रूप में आ गई। उसने कई पत्थर नीचे ढकेल दिए। अब भेड़ियों को बचने और भागने की बारी थी। वे बचते-बचते नीचे की तरफ भागने लगे। इधर लड़की पत्थर-पर-पत्थर गिराती चली गई। थोड़ी ही देर में भेड़िये आंखों से ओझल थे। शक्ति रूप की जीत हुई थी। कुछ देर इंतजार के बाद लड़की निश्ंिचत होकर नीचे उतर आई।                                                                                                                                                                                                            ज्ञानदेव मुकेश                                                  पटना-800013 (बिहार)                                                 फोन नं –   0्9470200491 यह भी पढ़ें … चॉकलेट केक आखिरी मुलाकात गैंग रेप यकीन  आपको  कहानी  “शक्ति  रूप   “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under – hindi story, emotional story in hindi, crime against women, rape, women empowerment

घर की देवी

हर साल मंदिरों में नवरात्रों के दौरान भीड़ बहुत बढ़ जाती है | हर कोई माँ की उपासना करने में लगा होता है | कहते हैं माँ और भगवानों से ज्यादा दयालु होती हैं क्योंकि वो बच्चे की पुकार पर पहले ही दौड़ आती है | लोग इसे सच मानते हैं क्योंकि हर किसी को अपनी माँ के स्नेह का अनुभव होता है …पर क्या देवी माँ के ये उपासक अपनी घर में उपस्थित अपनी माँ के प्रति भी कुछ श्रद्धा रखते हैं ? घर की देवी      भैया, तुम और भाभी दशहरे में घर नहीं आए। मां बहुत बेसब्री से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थीं। मैंने देखा, तुम लोगों के आने की बात सुनकर वे बेहद प्रसन्न थीं। वे खुशी के अतिरेक में फूली नहीं समा रही थीं। मैंने मां के चेहरे पर खुशी का ऐसा उछाह पहले कभी नहीं देखा। यदि तुमलोग सचमुच आ जाते तो वे खुशी से पागल हो जातीं और तुमलोगों पर आशीर्वाद और दुआओं की घनघोर वर्षा कर देंती।  मगर तुमलोगों ने ऐन वक्त पर आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और तुमलोग नहीं आए। इससे मां निराशा और दुख के गहरे सागर में चली गईं। तुमलोगों ने दशहरा अपने शहर में ही बनाया। सुना कि तुमलोगों ने खूब सारी तैयारियां कीं। घर में ही मां दुर्गा का भव्य और विशाल दरबार सजाया। दिनभर मां की पूजा-अर्चना की और मंगल आरती उतारी। तरह-तरह के फूल-फल और नैवेद्य चढाए और देवी मां को प्रसन्न किया।  निस्संदेह ऐसी समर्पित पूजा-अर्चना से तुमलोगों को देवी मां का आशीर्वाद मिला होगा। मगर तुम लोगों के आने की सूचना पर मां के चेहरे पर तो अप्रतिम प्रसन्नता खिली थी, उसे याद कर मैं दावे एवं पूर्ण विश्वास से कह सकती हूं कि आपको देवी मां से वह आशीर्वाद नहीं मिला होगा, जो तुम्हारे घर आने पर अपनी बूढ़ी मां के थरथराते हाथों से मिलता। घर आते तो वह एक बड़ी पूजा-अर्चना होती। मैं कुछ ज्यादा या गलत कह गई तो क्षमा करना।                                                                              तुम्हारी,                                                                            छोटी बहन।                                                               -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                           न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी,                                                  पटना-800013 (बिहार)                                                                                           काफी इंसानियत कलयुगी संतान बदचलन आपको आपको    “घर की देवी“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, mother, devi

परहितकारी

परहित सरिस धरम नहीं भाई … तुलसीदास जी की यह चौपाई परोपकार को सबसे श्रेष्ठ धर्म बताती है | अच्छे मुश्यों का प्रयास रहता है कि वो परोपकार कर दूसरों का हित करें परन्तु जीव -जंतु भी परोपकार की भावना से प्रेरित रहते हैं | ऐसे ही मूक प्राणियों की परहित भावना को अभिव्यक्त करती लघुकथा … लघुकथा -परहितकारी  सुबह-सुबह आसमान में सूर्य की लालिमा उभरने लगी थी। इस लालिमा के स्वागत में पक्षियों का कलरव शुरू हो चुका था। राहुल नींद से उठकर आंखें मल रहा था। तभी उसके बालकनी में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी। राहुल समझ गया कि चिड़ियां पानी पीने के लिए व्याकुल हो रही हैं। राहुल रोज रात में सोने से पहले बाॅलकनी के मुंडेर पर पानी की कुछ प्यालियां रख देता था। मगर कल रात वह प्यालियां रखना भूल गया था। वह फौरन किचेन में गया और दो प्यालियों में पानी भरकर बालकनी में आया। उसने मुंडेर पर प्यालियां रख दीं और वह पीछे हट गया। मगर प्यासी चिड़ियां पानी के प्याली तक नहीं आईं। राहुल आश्चर्यचकित था। पढ़ें –जीवन दाता     वही मंुडेर पर कुछ गमले रखे थे। सभी चिड़ियां उन गमलों के पौधे के ईर्द-गिर्द मंडरा रही थीं और चीं-चीं कर रही थीं। राहुल कुछ समझ नहीं पाया। वह चिड़ियों की इस हरकत से परेशान होने लगा। तभी दादी मां बालकनी में आई। उन्होंने राहुल को परेशान देखा तो इसका कारण पूछा। राहुल ने कहा, ‘‘देखो न दादी, चिड़ियां मेरा पानी न पीकर गमलों पर क्यों मडरा रही हैं ?’’   दादी ने गमलों को गौर से देखा। सभी गमले सूख चुके थे। उनमें पड़ी मिट्टी में दरारें पड़ने लगी थीं। दादी मां सब समझ गईं। उन्होंने राहुल एक बाल्टी पानी और मग लाने को कहा। राहुल पानी और मग ले आया। दादी मां ने जल्दी-जल्दी सभी गमलों में पानी डाला। देखते-ही-देखते गमलों में पड़ी मिट्टी की दरारें खत्म हो गईं।    तभी राहुल ने देखा, सभी चिड़ियां गमलों पर से मंडराना छोड़कर पानी की प्यालियों की तरफ बढ़ गईं और चोंच डुबाकर पानी पीने लगीं। राहुल के आश्चर्य की सीमा न रही। दादी मां ने राहुल को हैरान देखा तो कहा, ‘‘ये पंछी हैं, मनुष्य नहीं। यह अपनी प्यास से ज्यादा दूसरों की प्यास की फिक्र करते हैं।’ ’   राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘दूसरों की प्यास ? मतलब ?’’   दादी मां ने राहुल के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘इन सूखे पौधों की प्यास। यही पौधे तो हमें जीवन देते हैं। इन्हें भी तो पानी देना होगा।’’                                                                                                                                                                                                                                           – ज्ञानदेव मुकेश                                                 न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                                 पटना-800013 (बिहार)                                                         यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “परहितकारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

जीवनदाता

गर्मी का मौसम शुरू हो गया है | इन्सान तो क्या , जीव -जंतु , पेंड -पौधे सब का हाल बुरा है | तपती हुई धुप में कितनी बार हम लोगों को लगता है कि कहीं से बस दो बूँद पानी मिल जाए तो जीवन चल जाये | शायद ऐसा ही तो जीव -जंतु , पेंड पौधे भी कहा करते होंगे , पर क्या उनकी आवाज़ हम सुन पाते हैं ? ये आवाज़ महसूस की एक नन्हे बच्चे ने …  लघुकथा -जीवनदाता  गर्मी के दिन थे। सुबह होते ही सिर पर तेज-कड़ी धूप निकल आती थी। सिंटू ने सुबह-सुबह अपनी किताब से पेड़-पौधों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। तभी उसे प्यास लगी तो वह कमरे से निकल कर मां के पास आया। मां ने एक ग्लास पानी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, पानी बर्बाद मत करना। आजकल इसकी बड़ी किल्लत हो गई है।’’ घर के अंदर उमस हो रही थी। सिंटू ग्लास लेकर छत पर निकल आया। वहां उसने देखा, गमले के पौधे सूख रहे हैं। वह अपनी प्यास भूल गया। उसने ग्लास का सारा पानी गमले में उड़ेल दिया। तभी मां बाहर आ गई और यह दृश्य देखकर चैेक पड़ीं। उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुमने क्या किया ?’’ सिंटू ने कहा, ‘‘मां, हम पानी के बिना कुछ दिन रह सकते हैं। मगर आक्सीजन के बगैर बिल्कुल नहीं। मत भूलो, ये पौधे हमें आॅक्सीजन देकर जीवन देते हैं। इनका खयाल पहले रखना जरूरी है।’’                                                            -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                               पटना- (बिहार)                                                         e-mail address –             gyandevam@rediffmail.com                                                                                                                                                                यह भी पढ़ें – गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ आपको लघु   कथा  “जीवन दाता “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

प्रेम का बंधन

                                                                          सफलता , सुख सम्पत्ति अकेलापन भी लाती है और दुःख में सम भाव का अहसास टूटे  रिश्तों के धागों को जोड़ कर परम का अटूट बंधन बना देता है | मानवीय स्वाभाव की इस विशेषता पर एक लघुकथा … लघु कथा -प्रेम का बंधन  दोनों की आयु बारह-तेरह वर्ष होगी। उनके हाथ में रद्दी का सामान जमा करने वाला एक ठेला था। वे उसे घसीटते हुए गली में आगे बढ़ रहे थे और लोगों से अपने घर के कबाड़ बेचने का ऊंचे स्वरों में आह्वान कर रहे थे। मैंने उनकी पुकार सुनी तो उन्हें अपने घर में बुलाया। वे बड़ी उम्मीद से घर में आए। मगर मैंने उनके घर में घुसते ही सवाल किया, ‘‘तुम लोग पढ़ते क्यों नहीं ? यह उम्र क्या यही सब करने की है ?’’ उन्हें प्रश्न बेहद अवांछित लगा। उनमें जो बड़ा था, उसने उलाहना देते हुए पूछा, ‘‘गरीब पहले खाएगा या पढ़ेगा ?’’ जवाब सुनकर मैं अपराध-बोध से ग्रसित हो गया। आवाज को मुलायम करते हुए मैंने पूछा, ‘‘क्या तुम बहुत गरीब हो ?’’ उसमें से छोटे ने कहा, ‘‘हां, आज हम बहुत गरीब हैं। मगर कभी हम अच्छे खाते-पीते घर के थे। हम बड़े शौक से स्कूल जाते थे। मगर एक दिन हमारे बड़े ताऊ ने धोखे से हमारी पूरी जमीन हथिया ली। मेरे पिता जी कोर्ट-कचहरी करते रहे। मगर हमें हमारी जमीन वापस नहीं मिली। उल्टे जो घर में बचा-खुचा था, मुकदमेबाजी के भेंट चढ़ गया। हम कंगाल हो गए। ऊपर से दोनों परिवारों में भीषण दुश्मनी पैदा हो गई। ’’ पढ़िए -लघुकथा :मिलाप  मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे उस दुष्ट ताऊ का क्या हुआ ? क्या वह सुख-चैन से जी रहा है ?’’ छोटे लड़के ने जवाब जारी रखते हुए कहा, ‘‘उस अन्यायी ताऊ का भी भला नहीं हुआ। वह बीमार हो गया। उसकी छाती में पानी भर गया। वह इलाज कराता रहा। मगर ठीक नहीं हुआ। हथियाई हुई जमीन इलाज की बलि चढ़ गई। एक दिन वह भी कंगला हो गया और आखिर एक दिन भगवान को भी प्यारा हो गया।’’ यह सब सुनकर मुझे बड़ा अफसोस हुआ। मेरे मुंह से ‘आह!’ निकल गई। मैंने कहा, ‘‘धन-दौलत तो स्वाहा हो गए मगर दोनों परिवारों की दुश्मनी का क्या हुआ ?’’ इसपर दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे। इस बार बड़े लड़के ने कहा, ‘‘बस यही तो फायदा हुआ। मेरे बाऊजी के मरते ही हमारी दुश्मनी हवा हो गई।’’ मैं चैंक पड़ा। बड़े लड़के की तरफ मुंह घुमाकर मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे बाऊ जी ? मतलब ?’’ उसने बड़ी सहजता से कहा, ‘‘मेरे बाऊजी ही इसके दुष्ट ताऊ थे, जिन्होंने मेरे छोटे ताऊ की जमीन हड़प ली थी। ये छोटा मेरा चचेरा भाई है। हम दोनांे की जमीन गई तो हमारे परिवारों की दुश्मनी भी गई। अब हम मिलकर रोजी-रोटी कमाते हैं। हम जमीन पर आ गए तो क्या हुआ, अब हम एक हैं।’’ एकता की ऐसी अद्भुत कहानी सुनकर मैं भौंचक रह गया।                                                                   -ज्ञानदेव मुकेष                                                                                                        न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                          पटना-800013 (बिहार) यह भी पढ़ें …     परिवार इंसानियत अपनी अपनी आस बदचलन आपको कहानी    “प्रेम  का बंधन  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, love, bond, atoot bandhan

मिलाप

ताला चाभी … एक ऐसा रिश्ता जो एक दूसरे की जरूरत हैं | हम इंसानों के रिश्ते भी कई बार जरूरत के कारण  बन जाते हैं …. ये रिश्ते खून के नहीं होते , जान-पहचान या दोस्ती के भी नहीं होते , पर दोनों एक दूसरे के जीं में किसी कमी को पूरा कर रहे होते हैं | अचानक से हुआ इनका मिलाप इन्हें एक नए रिश्ते मैं बांध देता है ……. लघुकथा -मिलाप     शाम हो चुकी थी। एक बेहद विक्षिप्त लड़का नदी किनारे आकर उसमें कूद जाने की तैयारी में था। तभी उसने एक बूढ़े व्यक्ति को नदी में छलांग लगाते देखा। वह अपना कूदना भूलकर बूढ़े को बचाने के लिए पानी में फौरन उतर गया। उसे तैरना भलीभांति आता नहीं था। उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वह किसी तरह बूढ़े को खींचकर पानी के बाहर तट पर ले आया। बूढ़ा व्यक्ति नीम बेहोशी में था। उसने लड़के से पूछा, ‘‘मुझे…मुझे क्यों बचाया….? मैं जीना नहीं चाहता।’’    लड़के ने पूछा, ‘‘क्यों ?’’    बूढ़े ने कहा, ‘‘मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं। मेरा एक ही बेटा था। वह मुझे छोड़कर चला गया। लेकिन मुझे लगता है, तुम भी कूदनेवाले थे। तुम्हारी क्या मजबूरी है ?’’ पढ़ें –आई एम सॉरी विशिका    लड़का डबडबा गया। उसने कहा, ‘‘मैं भी अकेला हो गया हूं। कुछ समय पहले मां चली गई। अब पिता भी छोड़ गए।’’    दोनों गहरी उदासी में डूब गए और शून्य में ताकते रहे। रात उतरने लगी तो दोनों सड़क की तरफ बढ़ चले। सड़क पर आते-आते दोनों एक-दूसरे के नजदीक आने लगे। सड़क पर आते ही बूढ़े ने लड़के का हाथ पकड़ लिया और निराशा से निकलने की कोशिश में पूछा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ रहोगे ?’’    लड़के ने आसमान की ओर देखा। हल्के अंधेरे में एक तारा झिलमिलाता दिखा। तारे की रोशनी उसकी आंखों में भर गई। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, ‘‘हां, मैं आपके साथ चलूंगा।’’                                                       –ज्ञानदेव मुकेश   यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “मिलाप  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, mutual relation, need

सुरक्षित

मृत्यु भय ग्रसित व्यक्ति को पाराधीनता स्वीकार करने में भी सुरक्षित महसूस  होता है | हालांकि ये पराधीनता अपनाने के कई कारण हो सकते हैं पर सुरक्षा सबसे प्रमुख है | जानवर भी इसके अपवाद नहीं | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की कहानी ………. लघुकथा -सुरक्षित  रात अंधेरे एक तेंदुआ गांव में घुस आया और रहर के खेत में जा बैठा। दीनू काका अहले सुबह शौच पर जा रहे थे। उनकी नजर तेंदुए पर पड़ी। वे सिहर गए। वे लोटा फेंककर उल्टे पांव भागे। बस्ती में आते ही उन्होंने शोर मचा दिया। घर-घर में तेंदुए का दहशत व्याप गया। माओं ने बच्चों को गोद में छुपा लिया। कई मर्दों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। लेकिन कुछ मर्दों ने हिम्मत जुटाई।  हाथों में लाठियां लीं और शोर मचाते हुए रहर की खेत की तरफ बढ़े। उनके हाथों में लाठियों की ताकत थी, मगर दिलों में भय का राज था। उन्होंने रहर के खेत को दो तरफ से घेर लिया। मगर उनमें आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की लघुकथा –छुटकारा      क्षितिज से निकलकर सूरज चढ़ने लगा। प्रकाश चारो तरफ फैल गया। लेकिन तेंदुआ कहीं नजर नहीं आ रहा था। इस बीच किसी ने वन विभाग को सूचना दे दी। विभाग के कर्मचारी एक पिंजड़ा लेकर गांव की तरफ बढ़ चले। तभी खेत के एक छोर से तेंदुए के दौड़ने की आवाज मिली। ऐसा लगा जैसे वह हमला करने बढ़ा हो। कुछ मर्द बिदक गए। मगर शेष लाठियां पटकते हुए आगे बढ़ने लगे।  रहर की झाड़ियों  में घुसते ही तेंदुआ दिख गया। मर्द डर रहे थे। मगर उसी डर में आगे बढ़ रहे थे। तेंदुआ कुछ कदम आगे आता तो कुछ कदम पीछे चला जाता है। लोग डरते-डरते ही सही उसे मारने के लिए अंतिम हमला करने आगे बढ़ गए।    तभी वन विभाग अपना पिंजड़ा लेकर हाजिर हो गया। कर्मचारियों ने पिंजड़ा का दरवाजा खुला रख छोड़ा था। वन विभाग के लोग बंदूकें लिए हुए थे। एक छोर से उन्होंने भी तेंदुए को घेर लिया। डर उनमें भी समाया हुआ था। लाठियों और बंदूको के बीच तेंदुआ भी अब डर रहा था। वह भागा। तभी उसके सामने पिंजड़ा आ गया। गेट खुला था। बदहवासी में वह खुले गेट से पिंजरे में घुस गया। वन विभाग के लोगों ने दौड़कर गेट बंद कर दिया।   गांव और वन विभाग के लोगों ने राहत की सांस ली। उनका डर खत्म हुआ। मगर सच यह था कि िंपंजरे में आने के बाद तेंदुआ खुद को कहीं ज़्यादा महफूज़ महसूस करने लगा था।                                             -ज्ञानदेव मुकेश                                  न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                     पटना-800013 (बिहार)                                                                                                                                  यह भी पढ़ें ………    चुप    लेखिका एक दिन की     वो व्हाट्स एप मेसेज   बिगुल            आपको आपको    “माँ के जेवर “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-short story, short story in hindi, safe, attack

छुटकारा

   हम सब को लगता है कि हम हर समय दूसरों की मदद को तैयार रहते हैं | परन्तु जब मदद की स्थिति आती है तो क्या हम वास्तव में करना चाहते हैं ? कहीं हम इन सब से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की एक सशक्त लघुकथा … छुटकारा   सुबह उठते ही मैंने आदतन स्मार्ट फोन उठाया और वाट्सअप खोलकर देखना शुरू किया। सबसे पहले क्रमांक पर हमारे सरकारी ग्रुप पर एक मेसेज आया हुआ था। मेसेज में लिखा था, ‘अपने वरीय अधिकारी, राहुल सर अचानक काफी बीमार पड़ गए हैं। उनके हार्ट का वल्व खराब हो गया है। वे दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जीवन-मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका एक बड़ा ऑपरेशन होना है। सभी अधिकारियों से निवेदन है कि उनकी यथासंभव आर्थिक सहायता करें। सहायता की राशि संघ के अध्यक्ष के खाते में जमा की जा सकती है।’    सुबह-सुबह यह समाचार पढ़ मैं स्तब्ध रह गया। मैंने उनकी कुशलता के लिए ईश्वर से तत्क्षण प्रार्थना की। मेरा अगला ध्यान मेसेज में किए गए निवेदन पर गया। मैं बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। राहुल सर एक बड़े अधिकारी हैं। उन्हें भला पैसे की क्या कमी ? फिर भी ऐसा निवेदन ? मैं सोच में पड़ गया। मैं उनकी सहायता करूं कि न करूं ? यदि करूं भी तो कौन-सी रकम ठीक होगी ? मैं अजीब उधेड़बुन में फंस गया।     उस रात मैं बड़ा परेशान रहा। मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा था। ग्रुप पर मेसेज आया था तो कुछ नहीं करना भी शिकायतों को निमंत्रण देना था। यही उधेड़बुन लिए मैंने किसी तरह रात गुजारी।  पढ़िए -कहानी :हकदारी    सुबह होते ही मैंने फिर सबसे पहले अपना फोन उठाया। वाट्सअप खोला। प्रथम क्रमांक पर फिर सरकारी ग्रुप पर मेसेज आया हुआ था। मेसेज पढ़कर मैं धक् सा रह गया। लिखा था, ‘बेहद दुख के साथ सूचित किया जाता है कि अपने प्रिय राहुल सर कल रात में ही हमें छोड़कर चले गए।’    मेरे दुख का ठिकाना न रहा। राहुल सर का चेहरा मेरे सामने घूमने लगा। कुछ देर बाद मैं थोड़ा संयत हुआ। तभी अचानक मुझे एक राहत सी महसूस हुई। आश्चर्य, यह कैसी राहत थी ? मैंने अपने मन को टटोला। मैंने पाया, इस समाचार ने मेरे मन को कल के उधेड़बुन से मुक्त कर दिया था।                                                        -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                       न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                                    पटना- (बिहार)                                                                 यह भी पढ़ें … माँ के जेवर अहसास चॉकलेट केक दोष शांति आपको    “छुटकारा “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-Hindi story, Kahani, , Emotional Hindi story,  ,