आध्यात्मिक चेतना के अभाव में मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता!

– डाॅ. (श्रीमती) भारती गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापिका-निदेशिका, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ मानव जीवन का उद्देश्य प्रभु को प्राप्त करना और प्रभु शिक्षाओं पर चलना है:             जिस प्रकार से किसी भी देश को चलाने के लिए संविधान की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार से मनुष्य को अपना निजी जीवन चलाने के लिए व अपना सामाजिक जीवन चलाने के लिए धर्म की आवश्यकता है। अगर वह इसमें सही प्रकार से सामंजस्य करता है तो वह आध्यात्मिक कहलाता है। अध्यात्म का मतलब यह नहीं होता कि दुनियाँ से बिलकुल दूर जाकर के जंगल में पहाड़ों की कन्दराओं में जाकर बैठ जाओं। धर्म का मतलब होता है अपने जीवन को इस प्रकार से संचालित करना कि मानव अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। मानव जीवन का उद्देश्य है प्रभु को प्राप्त करना और उसकी शिक्षाओं पर चलना। इस प्रकार जैसे-जैसे हमारे जीवन में धर्म आता जायेंगा वैसे-वैसे हम आध्यात्मिक होते जायेंगे। आध्यात्मिक चेतना के अभाव में मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता:             आध्यात्मिक चेतना के अभाव में मनुष्य कभी भी सुखी नहीं रह सकता है। इस जगत में केवल आध्यात्मिक चेतना वाला व्यक्ति ही सुखी रह सकता है। इसके बारे में हमें केवल अंदरूनी ज्ञान होना चाहिए। हमें दिव्य ज्ञान होना चाहिए। हमारी आँखें सदैव खुली होनी चाहिए। हमारे कान सदैव खुले होने चाहिए। महात्मा गाँधी ने भी कहा था कि ‘‘मैं अपने कमरे की खिड़कियों को हमेशा खुला रखता हूँ। पता नहीं पूरब या पश्चिम से, उत्तर या दक्षिण से कहाँ से मेरे को अच्छे विचार मिल जायें।’’ वास्तव में अच्छे विचार वही होते हैं जो कि धर्म से पोषित होते हैं। जो विचार धर्म के अलावा होते हैं, वे टिकाऊ नहीं होते। उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। वे दुनियाँ में जम नहीं पाते हैं। प्रत्येक युग अवतार, उस युग की समस्याओं के समाधान हेतु परमात्मा द्वारा भेजा जाता है:             सभी धर्मों में दो बातें विशेष रूप से बताई गई हैं। (1) सनातन पक्ष तथा (2) सामाजिक पक्ष। सनातन पक्ष में बताया गया है कि हमें सदैव सत्य बोलना है। हमें सदैव प्रेम करना है। हमें सदैव न्याय करना है। हमें सदैव दूसरों की सेवा करनी हैं, इत्यादि-इत्यादि। जबकि सामाजिक पक्ष में हमें बताया गया है कि हम जिस युग में रहते हैं, हमें उस युग की समस्याओं को समझना है। इन समस्याओं के समाधान हेतु उस युग के अवतार द्वारा जो शिक्षाएं दी गई हैं, उन शिक्षाओं पर हमें चलना है। प्रत्येक युग का अवतार उस युग की समस्याओं के समाधान हेतु परमात्मा द्वारा भेजा जाता है। वह युग अवतार हमें उस युग की समस्याओं को समझ करके उसके समाधान के रूप में हमें युग धर्म देता है। इस युग का धर्म है, भगवान को पहचानना। उनका ज्ञान प्राप्त करना और उनकी बताई हुई सामाजिक शिक्षाओं पर चलना। इस युग की सामाजिक शिक्षा है ‘एकता‘:             इस युग की सामाजिक शिक्षा है ‘एकता’। एकता की शुरूआत परिवार से होती है। इसीलिए कहा भी गया है कि पारिवारिक एकता के अभाव में विश्व एकता की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इसलिए परिवार के अंदर हमें त्याग करके, धैर्य व संयम के साथ ‘एकता’ का प्रयास करना चाहिए। ये सब दिव्य बातों को इस युग के अवतार ने बताई हैं। हमें इन बातों को जानने के साथ ही उन पर चलने की परम आवश्यकता है। वास्तव में अगर दुनियाँ के लोगों ने यह समझ लिया होता कि हमारे जीवन का उद्देश्य प्रभु को जानना है, प्रभु की शिक्षाओं को अपने जीवन धारण करना है, तो दुनियाँ में जो इतना दुःख है, इतनी परेशानी है, वे समाप्त हो गई होतीं। वास्तव में अगर हम अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य जान लें तो हम परमपिता की बनाई हुई इस सारी सृष्टि से बिना किसी भेदभाव के प्रेम करने लग जायेंगे। परिवार के सदस्यों के बीच में एकता स्थापित हो जायेगी। मानव सारी मानवमात्र से प्रेम करने लग जायेगा और विश्व में एकता एवं शांति की स्थापना हो जायेगी। ——–

विश्व में शांति की स्थापना के लिए महिलाओं को सशक्त बनायें!

किसी भी बालक के व्यक्तित्व निर्माण में ‘माँ’ की ही मुख्य भूमिका:-  कोई भी बच्चा सबसे ज्यादा समय अपनी माँ के सम्पर्क में रहता है और माँ उसे जैसा चाहे बना देती है। इस सम्बन्ध में एक कहानी मुझे याद आ रही है जिसमें एक माता मदालसा थी वो बहुत सुन्दर थी। वे ऋषि कन्या थी। एक बार जंगल से गुजरते समय एक राजा ने ऋषि कन्या की सुन्दरता पर मोहित होकर उनसे विवाह का प्रस्ताव किया। इस पर उन ऋषि कन्या ने उस राजा से कहा कि ‘‘मैं आपसे शादी तो कर लूगी पर मेरी शर्त यह है कि जो बच्चे होगे उनको शिक्षा मैं अपने तरीके से दूगी।’’ राजा उसकी सुन्दरता से इतनी ज्यादा प्रभावित थे कि उन्होंने ऋषि कन्या की बात मान ली। शादी के बाद जब बच्चा पैदा हुआ तो उस महिला ने अपने बच्चे को सिखाया कि बुद्धोजी, शुद्धोजी और निरंकारी जी। मायने तुम बुद्ध हो। तुम शुद्ध हो और तुम निरंकारी हो। आगे चलकर यह बच्चा महान संत बन गया। उस जमाने में जो बच्चा संत बन जाते थे उन्हें हिमालय पर्वत पर भेज दिया जाता था। इसी प्रकार दूसरे बच्चे को भी हिमालय भेज दिया गया। राजा ने जब देखा कि उसके बच्चे संत बनते जा रहंे हैं तो उन्होंने रानी से प्रार्थना की कि ‘महारानी कृपा करके एक बच्चे को तो ऐसी शिक्षा दो जो कि आगे चलकर इस राज्य को संभालें।’ इसके बाद जब बच्चा हुआ तो महारानी ने उसे ऐसी शिक्षा दी कि वो राज्य को चलाने वाला बन गया। बाद में हिमालय पर्वत से आकर उसके दोनों भाईयों ने अच्छे सिद्धांतों पर राज्य को चलाने में अपने भाई का साथ दिया। प्रत्येक बच्चे के हृदय में बचपन से ही ‘ईश्वरीय गुणों’ को डालें:- प्रत्येक बच्चे का हृदय बहुत कोमल होता है। यदि हम किसी पेड़ के तने पर कुदेर कर ‘राम’ लिख दें तो पेड़ के बड़े होने के साथ ही साथ ‘राम’ शब्द भी बढ़ता हुआ चला जाता है। इसलिए हमें अपने बच्चों में बचपन से ही ईश्वरीय गुणों को डाल देना चाहिए। बचपन में बच्चों के मन-मस्तिष्क में डाले गये गुण उसके सारे जीवन को महका सकते हैं। सुन्दर बना सकते हैं। वास्तव में बचपन में डाले गये जिन विचारों के साथ बच्चा बड़ा होता जाता है धीरे-धीरे वह उन विचारों के करीब पहुँचता जाता है। इस प्रकार बच्चा एक पेड़ के तने के समान होता है। पतली टहनी को जितना चाहो उतना मोड़ सकते हों, लेकिन यही टहनी यदि मोटी डाल बन गई तो फिर हम उसे मोड़ नहीं सकते और अगर हमने उसे जबरदस्ती मोड़ने की कोशिश की तो उसके टूटने की संभावना ज्यादा हो जाती है। इसलिए हमें प्रत्येक बच्चे के हृदय में बचपन से ही गुणों को डाल देना चाहिए। बड़े होने पर बच्चों में इन गुणों को नहीं डाला जा सकता। नारी संवेदना के स्वर विश्व में ‘एकता’ एवं ‘शांति’ की स्थापना में महिलाओं की ही मुख्य भूमिका:- आज महिलाओं को चाहिए कि न वे केवल अपनी दक्षता, सहभागिता व नेतृत्व क्षमता को सिद्ध करें बल्कि उन सभी भ्रांतियों और कहावतों को भी मुँह तोड़ जवाब दें, जो उनका कमजोर आँकलन करती हैं क्योंकि:- नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे।धैर्य, दया, ममता बल हंै विश्वास तुम्हारे।कभी मीरा, कभी उर्मिला, लक्ष्मी बाई।कभी पन्ना, कभी अहिल्या, पुतली बाई।अपने बलिदानों से, युग इतिहास रचा रे।नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे।अबला नहीं, बला सी ताकत, रूप भवानी।अपनी अद्भुत क्षमता पहचानो, हे कल्याणी।बढ़ो बना दो, विश्व एक परिवार सगा रे।नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे।महिला हो तुम, मही हिला दो, सहो न शोषण।अत्याचार न होने दो, दुष्टांे का पोषण।अन्यायी, अन्याय मिटा दो, चला दुधारे।नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे।। इस प्रकार धैर्य, दया, ममता और त्याग चार ऐसे गुण हैं जो कि महिलाओं में पुरुषों से अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘जब आदमियों में स्त्रियोंचित्त गुण आ जायेंगे तो दुनिया में ‘रामराज्य’ आ जायेगा।’’ आज अमेरिका की आर्मी में बहुत सारी औरतें भी हैं। माँ ही बच्चों की सबकुछ होती है। वह जिस तरह से चाहेगी दुनिया को चलायेगी। अगर उसके हाथ में साइन करने की ताकत आ जायेगी तो कभी भी दुष्टों का पोषण नहीं होने पायेगा। लड़ाई सस्ती होती है या शांति? निःसंदेह शांति सस्ती होती है। इसलिए शांति को लाने के लिए हमें बच्चों को प्रेम, दया, करुणा, न्याय, भाईचारा, एकता एवं त्याग आदि सिखाना है। और चूंकि सारी मानवजाति एक समान है इसलिए विश्व से भेदभाव को दूर करने के लिए हमें प्रत्येक बच्चे को एक समान शिक्षा दी जानी चाहिए। आज सारे विश्व की शिक्षा में एकरुपता लाने की आवश्यकता है। दुनिया के घावों को भरने के लिए हमें शांति रुपी मलहम का प्रयोग करना चाहिए। अटूट बंधन विश्व में शांति की स्थापना के लिए महिलाओं को सशक्त करना जरूरी:-  अब्दुल बहा ने कहा है कि विश्व में शांति आदमियों के द्वारा नहीं लायी जायेगी बल्कि महिलाओं के द्वारा लाई जायेगी। यह शांति तभी आयेगी जब कि महिलाओं के पास निर्णय लेने की शक्ति या क्षमता आ जायेगी। कोई भी महिला कभी भी लड़ाइयों के दस्तावेज पर साइन नहीं करेंगी क्योंकि उसे पता है कि उस लड़ाई से उसके पुत्र की, उसके पति की हत्या हो सकती है। एक बच्चे को जो वह पैदा करती है उसे पहले वह 9 महीने तक अपने पेट में पालती है। उसमें वह बहुत कष्ट उठाती है। उसके बाद उस बच्चे को 20 सालों तक पालती-पोषती है। इसमें उसको बहुत सी यातनायें सहनी पड़ती है। इसमें उसको बहुत त्याग करना पड़ता है। बहुत से कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसलिए उस बच्चे के जीवन को खत्म करने के लिए वह कभी भी लड़ाई के दस्तावेज पर कभी भी साइन नहीं करेगी। इसलिए हमें महिलाओं को सशक्त बनाना है। उन्हंे अच्छी शिक्षा देनी है। उन्हें अच्छी नौकरी देनी है। उन्हें ऊँचे ओहदों पर बैठाना है। -जय जगत्- डाॅ. भारती गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-संचालिका, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ