आखिरी मुलाकात

उसकी सूरत जैसे ओस की बूँदें जमीं हो मखमली दूब पर . निश्चल शीशे की मानिंद . सरलता की मूरत…कोई बनावटीपन नहीं . उसे देख आँखों को श्वेत रंग की शांति का अनुभव होता था . तिरछे नयनों से टपकता मधुर शहद और उसकी शरारती बातें ! मानो जैसे कोई नदी बह रही हो कल – कल ध्वनि के साथ . उसकी मीठी आवाज़ किसी अपरिचित अंजान से टापू पर लिए जाती थी . मन खिंचता चला जाता उसी की ओर .जैसे कोई अदृश्य महीन रेशमी डोर खींच रही हो उस ओर . एक सौम्य सा आकर्षण..जो किसी को भी लुभाने की अद्भुत क्षमता रखता था . हाँ ऐसी ही शख्सियत की स्वामिनी थी सुनैना . हमेशा मुस्कुराकर मिलती . आज इतने वर्षों पश्चात् उसे अपने सामने देख मैं आश्चर्यचकित था । मुझे मालूम नहीं था कि वह भी इसी शहर में है . पाँच सालों में कोई इतना कैसे बदल सकता है ! गुमसुम और उदास आँखों के नीचे पड़े काले स्याह घेरे कुछ अनकहा बयान कर रहे थे । “कैसे हैं आप ? ” उसने धीमे से पूछा । ” मैं एकदम खुश हूँ . ” ” मैं भी बहुत खुश हूँ ” ” एक बात कहूँ सुनैना ” “हाँ कहिये ” “तुम मुझे पहली वाली सुनैना नहीं लग रही ।” ” ये ज़िंदगी अच्छों- अच्छों को बदल देती है फिर मैं क्या हूँ , उम्र के हिसाब से गम्भीरता भी तो आ जाती है .” धीमे से मुस्कुराकर बोली वह । ” चलो कॉफी मँगाते हैं ” “आज नहीं फिर कभी… पहले ही बहुत देर हो चुकी है.. अभी मुझे जाना होगा .” सुनैना तो चली गयी लेकिन मेरे ज़ेहन में अनगिनत सवाल उत्पन्न कर गयी . मैंने आगे बढ़कर ऑटो लिया और चल दिया घर की तरफ . अचानक ऑटो ड्राइवर ने ऑटो रोक लिया . “क्या हुआ ? ” “पता नहीं साब भीड़ ने रास्ता जाम किया हुआ है ” “देखो तो ज़रा आखिर मामला क्या है ” वह जा पाता उससे पहले ही मैं खुद ही उस भीड़ का हिस्सा बन गया . पुलिस भीड़ को तितर बितर करने लगी . लोगों की फुसफुसाहट से पता लगा कोई दुर्घटना हुई है .तभी मेरी नज़र सड़क पर पड़े क्षत विक्षत शव से जा टकरायी । मेरे कदमों की ज़मीन हिल गयी । आँखें शून्य हो ठहर सी गयी क्योंकि…वह निर्जीव देह सुनैना की थी । अनन्या गौड़ यह भी पढ़ें … आत्मसम्मान अंतर आठ अति लघु कथाएँ परिस्थिति गैंग रेप  आपको  कहानी  “  आखिरी मुलाकात ” कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords : last, last meeting, death, accident

गुमनाम

डिम्पल गौड़ ‘अनन्या‘ अहमदाबाद गुजरात  “आज भी नहीं ठहरोगे ? मालूम है तुम्हारा अक्स मेरे अन्दर पलने लगा है ! “क्या ? यह नहीं हो सकता ! मेरी कुछ मजबूरियाँ हैं वेदैही !” “मेरी ज़िन्दगी खुद एक मजबूरी बनकर रह गयी है विवेक ! सच कहूँ तो तुम कायर निकले !” एक व्यंग्य उछला | “ तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती ! घर परिवार की प्रतिष्ठा, समाज के बंधन और पार्टी के दायित्व..!!|” “ओह्हो ! तो इनके समक्ष मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं ! क्यों चले आए थे मेरी ज़िन्दगी में जब हिम्मत ही नहीं थी तुम्हारे अन्दर !  ठीक है मैं ही चली जाऊँगी तुम्हारी जिंदगी से दूर…बहुत दूर “भावुक हो उठी वह | कुछ महीने उपरान्त विवेक को पार्टी अध्यक्ष निर्मित कर दिया गया | अब उस पर पदोन्नति, प्रसिद्धि और राजनीति का गहरा नशा चढ़ चुका था |  वैदेही ने बीस सालों का लम्बा समय विवेक की यादों के सहारे बिता दिया मगर एक दिन उसकी शांत ज़िन्दगी में भूचाल आ गया….. “ माँ ! मैं जो सुन रहा हूँ क्या वह सच है ? बताओ मुझे ? “ राजनीति ने अपना प्रभाव दिखलाना प्रारम्भ कर दिया था | विरोधियों के स्वर उग्र होने लगे | आरोप प्रत्यारोप की दूषित राजनीति ने उनके बीस वर्षों के छुपे रिश्ते को सबके सामने ला कर रख दिया | इस कड़वे सच ने कितनों की जिंदगी में हलचल मचा दी.. आखिर में पुत्र को तो पिता का नाम प्राप्त हो गया परन्तु  वैदेही आज भी गुमनाम ही है | यह भी पढ़ें गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ

डिम्पल गौड़ ‘अनन्या ‘ की लघुकथाएं

समझौता “आज फिर वही साड़ी ! कितनी बार कहा है तुम्हें..इस साड़ी को मत पहना करो ! तुम्हें समझ नहीं आता क्या !” “यही तो फर्क है एक स्त्री और पुरुष की सोच में ! तुम अपनी पहली पत्नी की तस्वीर दीवार पर टांग सकते हो , उसकी बाते मुझसे कर सकते हो ! और तो और हर साल उनके नाम का श्राद्ध भी करते हो जिसमें मैं पूर्णतया तुम्हें सहयोग करती हूँ । बिना कुछ कहे क्योंकि मैं तुम्हारे गहन प्रेम की अनुभूति को समझती हूँ और तुम ! मेरे स्वर्गवासी पति की दी गयी साड़ी में मुझे देख भी नहीं सकते !! सच में, पुनर्विवाह एक समझौता ही तो है ! डिनर रेस्टोरेंट लोगों से खचाखच भरा हुआ था | सामने वाली टेबल पर निशांत, विधि के सामने बैठा उसे निहारे जा रहा था…दोनों आँखों में आँखें डाल दुनिया भुलाए बैठे थे | कैंडिल लाईट डिनर बेहतरीन  करिश्मा दिखला रहा था | उन्हें देख साफ़ मालूम पड़ रहा था कि यह नवविवाहित जोड़ा है |  ”क्या लोगी बताओ न ?” निशांत के शब्दों से मिश्री टपक रही थी | “जो आप मंगवाएंगे खा लूँगी |” विधि नज़रे झुकाए बोली | खुबसूरत मुस्कान अधरों पर अपना भरपूर असर छोड़ रही थी | दोनों का प्यार अपने पूरे शबाब पर था | उधर ईश्वर की पत्नी जमुना अपने छोटे छोटे बच्चों में उलझी हुई थी ! कभी छुटकू दाल फ्राई में अंगुलियाँ डालने की कोशिश करता, कभी मुन्नू पूरी एक चपाती हाथ में लेकर खाने की जिद करता !  “आगे से कभी नहीं लाऊंगा तुम लोगों को ! उह्ह ! इज्जत का कचरा कर के रख दिया ! अब मेरा मुँह क्या ताक रही है संभाल अपने लाडलों को ! देख उसने दाल खुद के कपड़ों पर गिरा ली !! ”बहुत ही धीमे स्वर में बोला ईश्वर | “हाथ में पकड़े कोर को जोर से पटककर जमुना वहां से उठ गयी | “क्या बोले ! इन दोनों को तो मैं अपने मायके से साथ लाई हूँ न ! खाओ तुम ही मैं तो चली !”जमना फुसफुसाकर बोली | “अब बैठ भी जा ! नखरे मत मार ! हज़ार रूपये का चूना लगवाएगी क्या !!”ईश्वर की आवाज़ और धीमी हो चली थी | जैसे तैसे दोनों ने खाना खत्म किया |  बिल चुकाने के लिए ईश्वर और निशांत  एक साथ काउंटर पर खड़े हुए | एक की आँखों में प्यार बेशुमार था दूसरे की आँखों में गुस्सा अपने पूरे यौवन पर था !” अश्कों से लिखा एक खत    हाँ… साँसे ले रही हूँ | जिन्दा हूँ अभी | कभी मेरा खूबसूरत चेहरा तुम्हारी रातों की नींदें चुरा लिया करता था क्योंकि अथाह प्रेम करते थे तुम मुझसे | मगर मैं नहीं…इसलिए जब मैंने तुम्हारा प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो तुम कितने आगबबूला हो उठे थे ! नहीं चाहते थे तुम कि मैं किसी और की हो जाऊं… इसलिए तुमने मेरे चेहरे पर उस रात तेज़ाब छिड़क दिया !!! तरस गयी हूँ अपने ही चेहरे को देखने के लिए ! आईना देखे बरस बीत गए | यह आजीवन पीड़ा जो तुम मुझे दे कर गए हो न उसका आंशिक भाग भी तुमने कभी महसूस नहीं किया होगा जानती हूँ मैं ! सच्चे प्यार का दंभ भरने वाले अगर तुम सही में एक सच्चे प्रेमी हो तो क्या अब मुझसे विवाह कर पाओगे ? तुम्हारा जवाब न ही होगा | मालूम है मुझे |  डिम्पल गौड़ ‘अनन्या’