समीक्षा – कहानी संग्रह विसर्जन

प्रस्तुत है डेजी नेहरा के द्वारा वंदना बाजपेयी के कहानी संग्रह ‘विसर्जन ‘की समीक्षा समीक्षा – विसर्जन (कहानी-संग्रह) वंदना वाजपेयी के 2019 में आये कहानी-संग्रह “विसर्जन” की 11 अविस्मरणीय कहानियों में पहली ‘विसर्जन’ से लेकर अंतिम ‘मुक्ति’ तक हर कहानी अपने आप में सोचने पर विवश करती है. आम माध्यम परिवारों के दयनीय-बेकुसूर पात्रों की ये कथाएँ कभी वर्तमान में आस-पास की लगती हैं, कभी अतीत के किसी देखे-सुने पात्र की याद दिलाती हैं. महत्वपूर्ण यह है कि फिर भी पाठक के दिल को छू कर, उसकी आँखों में झाँक ऐसे सवाल कर बैठती हैं जिनका जवाब या तो पाठक के पास है नहीं या घिसी-पिटी सामाजिक मान्यताओं की अनदेखी स्वीकार्यता पाठक को इस कदर खामोश एवं लाचार कर देती है कि अश्रु धारा स्वतः ही बहने लगती है. एक कहानी पढ़ने पर पुस्तक बंद कर भावुक हो आँसू टपकाने के पश्चात अगली पढ़ने के लिए ‘ब्रेक’ लेना ही लेना ही पड़ता है, सिर्फ इसलिए नहीं कि आँसू सुखाने हैं, अपितु इसलिए कि वो पात्र और उसकी परिस्थितियाँ आपके मानस पटल पर छा जाती हैं और विश्लेषण पर मजबूर करती हैं. वंदना जी स्वयं मानती हैं कि औरत होते हुए वह स्त्रियों के दर्द को अधिक समझती हैं, अतः अधिकतर पात्र स्त्री ही हैं. चाहे वह ‘अशुभ’ की दुलारी हो जिसके माथे पर सदा अभागी होने का ठप्पा इस क़दर रहा कि दुर्घटनाग्रस्त हो मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी सरकारी मुआवज़े की रक़म के पति और भाई (जो जीते जी उससे पीछा छुड़ाने में लगे थे) में आधे-आधे बँटने पर दोनों के द्वारा वह ‘अशुभ’ ही कहलाई क्यूँकि रक़म बँट गयी, या ‘काकी का करवाचौथ’ की काकी जिसने असली सुहाग को राम और खुद को अहिल्या मान अंतहीन प्रतीक्षा की दोषमुक्त होने के लिए, किन्तु उसे राम ने नहीं ‘ज्ञान’ ने मुक्त किया. पुरुषों के दिखते दोषी होने पर भी इल्ज़ामों के घेरे में स्त्री ही है. ‘पुरस्कार’, ‘फॉरगिव मी’, ‘अस्तित्व’ व ‘मुक्ति’ बिलकुल आज की कहानियाँ हैं जो वास्तव में अपने आस-पास के ऐसे पात्रों (जिनमें पति, बेटियां, बेटे शामिल हैं) को यदि पढ़वा दी जाएँ तो उनके जीवन की पेचीदगियां सुलझ सकती हैं. ‘दीदी’ सामाजिक बंधनों में बंधे रिश्तों, खून के रिश्तों और मन के पवित्र रिश्तों के सार्थक-निरर्थक पहलू को दर्शाती मार्मिक कहानी है. विशेषतः बहुत सी कहानियों में हम मनुष्यों पर अपनी-अपनी त्रासदियों के कारण छाते जा रहे मानसिक अवसाद की छाया नज़र आती है, जिसका अहसास लेखिका बहुत कुशलता से करवाती है. इस कड़ी में सबसे दमदार कहानियाँ हैं – ‘विसर्जन’ और ‘चूड़ियाँ’, जिनमें पात्र की मानसिक अवस्था या तो समझ में आने में बहुत देर लग जाती है, या जान-बूझ कर परम्पराएँ निबाहने हेतु उसे अनदेखा कर किसी की ज़िंदगी से खिलवाड़ किया जाता है. वंदना जी एक अत्यंत सुलझी हुई साहित्यकारा हैं जो वर्तमान में परिस्थितियों की ज़िम्मेवारी भली-भाँति समझते हुए मानसिक अवसाद जैसे विषय पर न केवल पात्रों के साथ न्याय करती हैं, अपितु एक मनोवैज्ञानिक की तरह पाठकों को भी जीवन में ऐसे पात्रों के साथ न्याय करने के तरीके समझाती-सिखाती प्रतीत होती हैं. अंततः मैं उनको ‘विसर्जन’ कहानी संग्रह के लिये बहुत बधाई देती हूँ और भविष्य के लिये शुभकामनाएँ देती हूँ कि वे अपने यथार्थ को चित्रित करते साहित्य के ज़रिये पाठकों के जीवन की विचित्र उलझनों को विसर्जित करती रहें. डॉ. डेज़ी Dr Daisy Associate Prof. & Head Dept. of English, BPS Institute of Higher Learning Director, Women Studies Centre  Additional Public Relations Officer Haryana, INDIA यह भी पढ़ें … बाली उमर-बचपन की शरारतों , जिज्ञासाओं के साथ भाव नदी में उठाई गयी लहर समीक्षा –कहानी संग्रह किरदार (मनीषा कुलश्रेष्ठ) गयी झुलनी टूट -उपन्यास :उषा किरण खान विसर्जन कहानी संग्रह पर किरण सिंह की समीक्षा आपको  लेख “ समीक्षा -कहानी संग्रह विसर्जन “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords; review , book review,  Hindi book , story book, , vandana bajpai, emotional stories

करवटें मौसम की – कुछ लघु कवितायें

    डेज़ी नेहरा जी के काव्य संग्रह ” करवटें मौसम की ” जो की ” विश्वगाथा” प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है,  की  कवितायें पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे कवियत्री के संवेदनशील मन में एक गंभीर चिंतन चल रहा है , जिसे वो कविता के माध्यम से आम पाठकों के लिए सरल से सरल शब्दों में कहना चाहती  है, परन्तु जब बात मन की हो तो इसके आयाम इतने विस्तृत होते हैं कि पाठक उस गहराई में बहुत देर तक घूमता रह जाता है, और प्रवेश करता है एक ऐसी सुरंग में जहाँ मानव मन की गुत्थियाँ खुलती चली जाती हैं | कम शब्दों गहरी बात कह देना डेजी जी की विशेषता है | उनके लघुकथा संग्रह ‘कटघरे’ में ये कला और उभर  कर आई है | दोनों ही पुस्तकों में मानव मन पर उनकी सूक्ष्म पकड़ दिखाई पड़ती है | हम आपके लिए  डेजी नेहरा जी के काव्य संग्रह ” करवटें मौसम की ” से कुछ लागु कवितायें लाये हैं | आप भी थोड़े शब्दों में गहरी बात का आनंद लीजिये | करवटें मौसम की – गहरी बात कहती कुछ लघु कवितायें  1)मौसम कुदरत ने  तो भेजा था हर मौसम हर एक के लिए फिर जाने…  बटोरने वालों ने किया जुर्म या मौसमों ने स्वयं ही किया पक्षपात किसी की झोली में झरे पतझड़ सारे किसी के हिस्से खिले वसंत ही वसंत 2 )पंख पंख आते -जाते रहते मेरी दुनिया में मौसमों के साथ यही भला है वर्ना … मैं भूल न जाता जमीं पे पैर रखना पढ़ें – कटघरे : हम सब हैं अपने कटघरों में कैद ३)जिंदगी उलझे रहे तो है जिंदगी वरना ‘सजा’है बस विश्वास है तो है ‘बंदगी’ वरना ‘खता ‘है बस उबर गए तो है ‘मुक्ति’ वरना ‘तपस्या’है बस 4)मुस्काने हमारी मुस्काने … पहले भी थी स्वत :ही बेवजह किशोरावस्था में मुस्काने…. अभी भी हैं कढ़ी-गढ़ी दमदार परिपक्वता में 5)हर साल सुना है करते हो आत्मावलोकन हर वर्ष के अंत में लेते हो नया प्रण हर बार , प्रारम्भ में , इन दो दिनों को छोड़ क्या करते हो सारा साल ? 6 )परिवर्तन वक्त बदलता है संग ‘सब’ नियम है, सुना है तुम बदलें रंग ‘सब’ फिर मैंने ही ये पड़ाव क्यूँ चुना है ? 7)आस  अब गम न हो कोई तुमसे लो!  छोड़ दी हर ख़ुशी की आस जो जुडी है तुम से 8)शुक्रिया सपनों की वादी से सच की छाती तक अमृत की हंडिया से विष की नदिया तक ले आये तुम तुम्हारा शुक्रिया !! कि … इंसान की हार से जीवन के सार से परिचय जो करवा दिया इतनी जल्दी 9)…मान लेती हूँ तुझमें साँसे मेरी  जानती हूँ मुझमें साँसे तेरी ‘मान’लेती हूँ कि … बनी रहूँ मैं बनाएं रखूँ तुझको 10)रंग इन्द्रधनुषी  रंगों से परे भी होते हैं कई रंग दिखा दिए सारे ही मुझको शुक्रिया जिन्दगी वरना काली-सफ़ेद भी कोई जिंदगी होती ? 11)श्रेष्ठ योनि जब सब होकर भी कुछ नहीं तुम्हारे पास अपनों से मिली बेरुखी जी करती हताश नाउम्मीद, अकेला और बदहवास  ‘मन ‘ ठोकर सी मारता है इस जीवन को जिसे कभी योनियों में श्रेष्ठ स्वयं माना था उसने यह भी पढ़ें … बहुत देर तक चुभते रहे कांच के शामियाने काहे करो विलाप -गुदगुदाते पंचों और पंजाबी तडके का अनूठा संगम मुखरित संवेदनाएं -संस्कारों को थाम कर अपने हिस्से का आकाश मांगती एक स्त्री के स्वर अंतर -अभिव्यक्ति का या भावनाओं का आपको  समीक्षा   “ करवटें मौसम की – कुछ लघु कवितायें “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |                       

कटघरे – हम सब है अपने कटघरों में कैद

                         कटघरे शब्द पढ़ते ही आँखों के सामने एक दृश्य उभरता है कटघरे में खड़े एक मुजरिम का और उसके पक्ष और विपक्ष में लड़ते वकीलों का| तभी आर्डर-आर्डर कहते हुए जज साहब एक फैसला दे देते हैं, फिर या तो कटघरे में खड़ा व्यक्ति बरी हो जाता है या उसे सजा हो जाती है| पर जिंदगी की अदालत ऐसी नहीं होती , यहाँ हम सब कटघरे में खड़े हैं , कहीं किसी ने हम को खड़ा कर रखा है तो कहीं हम ने ही खुद का खड़ा कर लिया है | यहाँ कोई जज नहीं है, पक्ष विपक्ष पेश करते वकील भी नहीं, इसलिए कोई फैसला नहीं होना है हम सब अपने – अपने कटघरों में फंसे जीवन  घसीटने को अभिशप्त हैं | इसलिए कोई मुक्ति भी नहीं है | इसीलिये शायद हर इंसान परेशान  है | कटघरे के अन्दर की पीड़ा, छटपटाहट और बेचैनी को भोगने के लिए विवश भी |                                         इस  नयी सोंच के साथ एक खूबसूरत कहानी संग्रह ” कटघरे ” के साथ हम सब को कटघरे में खड़ा करने के बावजूद इस की लेखिका डेजी नेहरा जी  पाठकों  का दिल जीत ले जाती हैं | मानव मनोविज्ञान की गहराई में उतर कर नया प्रयोग करते हुए अपने पहले कहानी संग्रह “कटघरे ” के माध्यम से इस  आरोप का खंडन करने में भी सफल हुई हैं कि हिंदी साहित्य में नए प्रयोग नहीं हो रहे हैं |                                                    एक संवेदनशील मन के अन्दर ही इतना मनोवैज्ञानिक विचार आ सकता है| बिना किसी भूमिका के, बिना किसी लाग-लपेट के बहुत ही सरल शैली में डेजी जी छोटी- छोटी कहानियों के माध्यम से गहरी बात करती चली जाती हैं | कठिन को सरल बना देना उनके लेखन की ख़ूबसूरती है|                       मुग्धा, अविश्वास की मारी हुई है| पति पर शक करके एक खूबसूरत रिश्ता खो देती है | इस पर उस पर शक करते हुए आगे बढती जाती  है और अकेली होती जाती है| यहाँ तक की रिटायरमेंट में भी उसके साथ कोई इंसान  नहीं आता , आता है तो उसका कटघरा , अविश्वास का कटघरा| किशोर बेटी के प्रति पिता के बदलते व्यवहार के लिए एक पिता कटघरे में खड़े हैं | बहुत पहले किसी के बच्चे के जन्म पर मैंने एक बुजुर्ग महिला को कहते सुना था इसके संतान योग नहीं है | मैंने अपवाद किया कि ,”बेटी तो है “तो उन्होंने कहा, ” बेटियाँ तो बस पैदा हो जाती हैं संतान तो बेटे ही होते हैं | वही दर्द “माँ “कहानी पढ़ कर उभर आया जहाँ तीन बेटियों की माँ सिर्फ इसलिए माँ नहीं है क्योंकि उसने बेटे को जन्म नहीं दिया| माँ होते हुए भी माँ का दर्जा  प्राप्त करने के लिए वो कटघरे में खड़ी है | सेतु सुन्दर नहीं है ,पति और बच्चे को दुर्घटना में खो चुकी है , जाने कितनों की बुरी नज़र से खुद को बचाती है फिर भी वो सकारात्मक रहने व् खुश रहने का प्रयास करती है | समाज ने उसे कटघरे में खड़ा कर दिया है | उस पर आरोप है इतने दुखों के बीच खुश रहने का … “ जरूर कोई बात है “ मोहा , जो बच्चों के लिए दिन भर खटती हैं उसे उसके बच्चों ने ही कटघरे में खड़ा कर दिया | साँवली बेटी ने इंटरनेट से पढ़ कर उस पर आरोप लगाना शुरू कर दिया कि तुमने गर्भावस्था में अपने खाने -पीने का ध्यान नहीं रखा इसलिए मैं सांवली पैदा हुई | उम्र बढ़ने के साथ बेटी का अवसाद बढ़ता है और मोहा की उलझन | अवसाद ग्रस्त बेटी आत्महत्या करती है और मोहा को  एक बेबुनियाद आरोप के साथ जिंदगी भर के लिए कटघरे में खड़ा कर जाती है | जहाँ से उसकी मुक्ति संभव नहीं है | नकली भक्त में देवी पूजन में बालिकाओं का सम्मान करती व् अगले ही दिन से कामवाली की छोटी बेटी को काम पर बुलाती भक्त चाची ” नकली भक्त” के कटघरे में खड़ी  हैं | डेजी जी ने  आधुनिक माँ को भी कटघरे में खड़ा किया है , जो अपने फिगर पर ध्यान देती हैं बच्चों पर नहीं | शहर के बन्दर में वो नगर , निगम वन विभाग और सरकार सबको कटघरे में खड़ा करती है | जब जंगल काट दिए जायेंगे तो बेचारे बंदर क्या करें ?                                    संग्रह में 62 कटघरे हैं जहाँ हम , आप जैसे सब लोग खड़े हैं व् 11 अन्य  कहानियाँ हैं | डेजी जी बड़ी ही सरलता से शुरुआत में घोषणा करती हैं –                                    कहानी हैं , संस्मरण हैं या किस्से हैं                                             सब जीवन के तो  हिस्से हैं                                       ज्ञानी है , अज्ञानी हैं या मसखरे हैं                                       सबके देखो तो अपने -अपने कटघरे हैं                                      कटघरे की हर कहानी  सरलता के साथ बुनी हुई छोटी सी कहानी  है , पर इसका प्रभाव बहुत व्यापक है | ये छोटी – छोटी से कहानियाँ पाठक को बहुत देर तक सोंचने पर विवश कर देती हैं | ” संग्रह विश्वगाथा  प्रकाशन ने निकाला है | इसका कवर पेज  भी बहुत सुंदर व् प्रतीकात्मक है | सरल भाषा में कुछ गंभीर पढने की चाह रखने वाले पाठकों … Read more