असफलता से सफलता की ओर

‘           मुंशी प्रेमचंद्र जी लिखते हैं कि सफलता में अतीव सजीवता होती है और विफलता में अत्यंत निर्जीवता | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता परन्तु हर कोई सफल नहीं हो पाता , शायद कुछ कमी रह जाती है प्रयास में , जिस कारण सफलता नहीं मिल पाती |अधिकतर लोग असफलता को सहन नहीं कर पाते और निराशा में डूब जाते हैं , और प्रयास करना ही छोड़ देते हैं | यही समय आत्ममुल्यांकन का भी होता है | जो गहरे से असफलता के कारणों पर विचार करके दुबारा प्रयास करता है , वो अवश्य सफल होता है |  आपको ऐसे अनेकों सफल व्यक्तियों के उदाहरण मिल जायेंगे जिन्होंने सफलता से पहले अनेकों असफलताओं का सामना किया है | असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखें                                       सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलु हैं जो जिन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा उन्होंने ढेरों असफलताओं का सामना करके भी सफलता पायी | जिन्होंने प्रयास ही नहीं किया वो असफल लोगों से भी ज्यादा असफल हैं क्योंकि उन्होंने कुछ नया सीखा भी नहीं जो प्रयास के दौरान सीख सकते थे | अगर आप की हिम्मत असफलता के कारण टूट रही है तो याद रखे  इन्हीं असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखनी है |  (1) परीक्षा का रिजल्ट बालक के सम्पूर्ण जीवन का पैमाना नहीं है              स्कूल में बालक की एक वर्ष में क्या प्रगति हुई? इस बात का उल्लेख उसके परीक्षा के रिजल्ट में होता है परन्तु यह रिजल्ट इस बात की कतई गारंटी नहीं देता है कि बालक जीवन में सफल होगा या असफल? हमारा मानना है कि बालक में केवल भौतिक ज्ञान की वृद्धि हो जाये तथा उसका सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान न्यून हो जाये यह संतुलित स्थिति नहीं है। जीवन में इसी असंतुलन के कारण आगे चलकर बालक का सम्पूर्ण जीवन असफल हो सकता है। पूरे वर्ष मेहनत तथा मनोयोग से पढ़ाई करके स्कूल का रिजल्ट तो अच्छा बनाया जा सकता है परन्तु सफल जीवन तो भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों शिक्षाओं के संतुलन का योग है। (2) परीक्षा का रिजल्ट तो केवल विभिन्न विषयों के भौतिक ज्ञान का आईना मात्रः-             आज स्कूल वाले बच्चों की पढ़ाई की तैयारी इस प्रकार से कराते हैं ताकि बालक अच्छे अंकों से परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायें। माता-पिता का भी पूरा ध्यान अपने प्रिय बालक के अंकों की ओर ही होता है। समाज के लोग भी मात्र यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि बालक ने सम्बन्धित विषयों में कितने अंक प्राप्त किये हैं। किसी का भी इस बात की ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि बालक को सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों को बाल्यावस्था से ही विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसको पुस्तकीय ज्ञान देना। मुझे करना है इसलिए मैं कर सकता हूँ। (3) कामयाब व्यक्ति भी अपने जीवन में कभी नाकामयाब हुए थे                           अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन 32 बार छोटे-बड़े चुनाव जीतने में नाकामयाब रहे थे। वह 33 वीं बार के प्रयास में कामयाब हुए और राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर असीन हुए। वह पूरे विश्व के सबसे लोकप्रिय अमरीका के राष्ट्रपति बने। इंग्लैण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल अपने स्कूली दिनों में एक बार भी परीक्षा में सफल नहीं रहे। वह परीक्षा में बार-बार फेल होने से कभी भी निराश नहीं हुए और बाद में अपने आत्मविश्वास के बल पर वह इंग्लैण्ड के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने। उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। किसी ने सही ही कहा है कि असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया। (4) मन के हारे हार है मन की जीते जीत :-             एडिसन बल्ब का आविष्कार करने के दौरान 10,000 बार असफल हुए थे। इसके बावजूद भी एडिसन ने आशा नहीं छोड़ी उन्होंने एक और कोशिश की और इस बार वह बल्ब का आविष्कार करने में सफल हुए। महात्मा गांधी अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान थर्ड डिवीजन में हाई स्कूल परीक्षा पास हुए थे। महात्मा गांधी अपनी मेहनत, लगन एवं ईश्वर पर अटूट विश्वास के बलबूते जीवन में एक कामयाब व्यक्ति बने और अपने जनहित के कार्यो के कारण सदा-सदा के लिए अमर हो गये। लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। (5) असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं                 हमेशा बड़ा लक्ष्य लेकर चले और अच्छी बातों का स्मरण करे। सब अच्छा ही होगा। ज्यादातर लोग बहुत सीमित दायरों में रहकर ही सोचते हैं और ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते। जहाँ तक हो सके अपनी रूचि के अनुसार ही काम चुने क्योंकि ऐसा करने से हम उसमें अपना सौ प्रतिशत समय दे सकते हैं। हमें जीवन में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं जो घर और बाहर दोनों स्तर का हो सकता हैं। ऐसे में हमें चाहिए की हम अपना संतुलन बना के रखे। यही हमारी सफलता का आधार हैं। असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं। उसी काम को और भी बेहतर तरीके से किया जाये इसलिए सफलता असफलता की चिंता किये बिना पूरे मन से काम करे। (6) नए विचारों और योजनाओं से डरे नहीं              कुछ लोग लक्ष्य तो तय कर लेते हैं लेकिन उसके अनुसार काम नहीं करते। वास्तव में सफलता पाने के लिए अपने लक्ष्य के अनुसार मेहनत करना चाहिए। आपके जीवन में कई ऐसे लोग आएँगे जिनका व्यवहार आपसे विपरीत होगा। इसके लिए जरूरी हैं की आप उससे दूरी बनाकर रखे और विवादों से सदैव बचने की कोशिश करे। जब भी हम कोई काम करते हैं तो हम अपने आप से बात अवश्य करते हैं। इस समय हमें हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुनकर ही अपने निर्णय पर पहुँचना चाहिए। हमारा मानना है कि नए विचार हमेशा नयी क्रांति को जन्म देते हैं इसलिए विचारों के प्रवाह को रोके नहीं बल्कि मन में अच्छे और नए विचार लाये ताकि योजनाएँ भी उसी के अनुरूप बने। हमारे मन में यह भरोसा जरूर होना … Read more

बुद्ध पूर्णिमा – भगवान् बुद्ध ने दिया समता का सन्देश

आज से 2500 वर्ष पूर्व निपट भौतिकता बढ़ जाने के कारण मानव के मन में हिंसा का वेग काफी बढ़ गया था। इस कारण से मानव का जीवन दुःखी होता चला जा रहा था, तब परमात्मा ने मनुष्यों पर दया करके और उन्हें अहिंसक विचार का व्यक्ति बनाकर उनके दुखों को दूर करने के लिए भगवान बुद्ध को धरती पर भेजा। बुद्ध पूर्णिमा – भगवान् बुद्ध ने प्रदान किया  समता का सन्देश  बुद्ध जयन्ती/बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में करोड़ों लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया तथा पाकिस्तान में मनाया जाता है। (2) बुद्ध के मन में बचपन से ही द्वन्द्व शुरू हो गया था:-  गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु राज्य के लुंबिनी (जो इस समय नेपाल में है) में हुआ था। उनके पिता राजा शुद्धोदन व माता का नाम महामाया था। आपके बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था। सिद्धार्थ का हृदय बचपन से करूणा, अहिंसा एवं दया से लबालब था। बचपन से ही उनके अंदर अनेक मानवीय एवं सामाजिक प्रश्नों का द्वन्द्व शुरू हो गया था। जैसे – एक आदमी दूसरे का शोषण करें तो क्या इसे ठीक कहा जाएगा?, एक आदमी का दूसरे आदमी को मारना कैसे एक क्षत्रिय का धर्म हो सकता है? पूजा के समय सुनाई जाने वाली गणेश जी की चार कहानियाँ वह एक घायल पक्षी के प्राणों की रक्षा के लिए मामले को राज न्यायालय तक ले गये। न्यायालय ने सिद्धार्थ के इस तर्क को माना कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। सिद्धार्थ एक बीमार, एक वृद्ध तथा एक शव यात्रा को देखकर अत्यन्त व्याकुल हो गये। सिद्धार्थ युद्ध के सर्वथा विरूद्ध थे। सिद्धार्थ का मत था कि युद्ध कभी किसी समस्या का हल नहीं होता, परस्पर एक दूसरे का नाश करने में बुद्धिमानी नहीं है। (3) ‘बुद्ध’ ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था:- बुद्ध ने बचपन में ही ईश्वरीय सत्ता को पहचान लिया और मानवता की मुक्ति तथा ईश्वरीय प्रकाश ;क्पअपदम म्दसपहीजमदउमदजद्ध का मार्ग ढूंढ़ने के लिए उन्होंने राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट झेले। अंगुलिमाल जैसे दुष्टों ने अनेक तरह से उन्हें यातनायें पहुँचाई किन्तु धरती और आकाश की कोई भी शक्ति उन्हें दिव्य मार्ग की ओर चलने से रोक नहीं पायी। परमात्मा ने पवित्र पुस्तक त्रिपिटक की शिक्षाओं के द्वारा बुद्ध के माध्यम से समता का सन्देश सारी मानव जाति को दिया। त्रिपटक प्रेरणा देती है कि समता ईश्वरीय आज्ञा है, छोटी-बड़ी जाति-पाति पर आधारित वर्ण व्यवस्था मनुष्य के बीच में भेदभाव पैदा करती है। इसलिए वर्ण व्यवस्था ईश्वरीय आज्ञा नहीं है।  अतः हमें भी बुद्ध की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए। (4) वैर से वैर कभी कभी नहीं मिटता अवैर (मैत्री) से ही वैर मिटता है:- जो मनुष्य बुद्ध की, धर्म की और संघ की शरण में आता है, वह सम्यक् ज्ञान से चार आर्य सत्यों को जानकर निर्वाण की परम स्थिति को पाने में सफल होता है। ये चार आर्य सत्य हैं – पहला दुःख, दूसरा दुःख का हेतु, तीसरा दुःख से मुक्ति और चैथा दुःख से मुक्ति की ओर ले जाने वाला अष्टांगिक मार्ग। इसी मार्ग की शरण लेने से मनुष्य का कल्याण होता है तथा वह सभी दुःखों से छुटकारा पा जाता है। निर्वाण के मायने है तृष्णाओं तथा वासनाओं का शान्त हो जाना। साथ ही दुखों से सर्वथा छुटकारे का नाम है- निर्वाण। बुद्ध का मानना था कि अति किसी बात की अच्छी नहीं होती है। मध्यम मार्ग ही ठीक होता है। बुद्ध ने कहा है – वैर से वैर कभी नहीं मिटता। अवैर (मैत्री) से ही वैर मिटता है – यही सनातन नियम है। (5) पवित्र त्रिपिटक बौद्ध धर्म की पवित्र पुस्तक है:-  भगवान बुद्ध ने सीधी-सरल लोकभाषा ‘पाली’ में धर्म का प्रचार किया। बुद्ध के सरल, सच्चे तथा सीधे उपदेश जनमानस के हृदय को गहराई तक स्पर्श करते थे। भगवान बुद्ध के उपदेशों को उनके शिष्यों ने कठस्थ करके लिख लिया। वे उन उपदेशों को पेटियों में रखते थे। इसी से इनका नाम पिटक पड़ा। पिटक तीन प्रकार के होते हैं – पहला विनय पिटक, दूसरा सुत्त पिटक और तीसरा अभिधम्म पिटक। इन्हें पवित्र त्रिपिटक कहा जाता है। हिन्दू धर्म में चार वेदों का जो पवित्र स्थान है वही स्थान बौद्ध धर्म में पिटकों का है। सूर्योपासना का महापर्व छठ  बौद्ध धर्म को समझने के लिए धम्मपद का ज्ञान मनुष्य को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए प्रज्जवलित दीपक के समान है। संसार में पवित्र गीता, कुरान, बाइबिल, गुरू ग्रन्थ साहब का जो श्रद्धापूर्ण स्थान है, बौद्ध धर्म में वही स्थान धम्मपद का है। त्रिपटक का संदेश एक लाइन में यह है कि वर्ण (जाति) व्यवस्था ईश्वरीय आज्ञा नहीं है वरन् समता ईश्वरीय आज्ञा है। जाति के नाम से छोटे-बड़े का भेदभाव करना पाप है।  (6) सभी धर्मों के हृदय से मानव मात्र की एकता का सन्देश प्रवाहित हो रहा है:-    मानव के विकास तथा उन्नति में धर्म का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। वास्तव में धर्म मानव जीवन की आधारशिला है। भिन्न-भिन्न धर्मों के पूजा-उपासना की अलग-अलग पद्धतियों, पूजा स्थलों तथा ऊपरी आचार-विचार में हमें अन्तर दिखाई पड़ता है, पर हम उनकी गहराई में जाकर देखे तो हमें ज्ञान होगा कि सभी धर्मों के हृदय से मानव मात्र की एकता का सन्देश प्रवाहित हो रहा है। भगवान बुद्ध का आदर्श जीवन एवं सन्देश युगों-युगों … Read more

विश्व जल संरक्षण दिवस पर विशेष लेख- जल संरक्षण के लिए बेहतर जल प्रबन्धन की अति आवश्यकता है

एक प्यासे इंसान के लिए पानी की एक बूँद सोने की एक बोरी से ज्यादा मूल्यवान है  जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती , जल है तो हम हैं | यह जान कर भी अनजान बने हम जल का दुर्प्रयोग करके ओने अस्तित्व को ही खतरे में दाल रहे हैं | दुरप्रयोग दुरप्रयोग करके अपने अस्तित्व को स्वयं ही मिटाने में लगे हुए हैं | क्या हम इस बात से अनभिग्य हैं कि दुनिया भर में भूजल का स्तर खतरनाक रूप से गिरता जा रहा है, जो विभिन्न विद्वानों के इसी कथन को बल प्रदान करता है कि जल ही तृतीय विश्वयुद्ध का कारण बनेना। ऐसे में यदि तीसरे विश्वयुद्ध की विभीषिका से मानवता को बचाना है तो सर्वप्रथम आज से अभी से जल संवर्धन हेतु ठोस कदम उठाने होंगे। जल संरक्षण के लिए बेहतर जल प्रबन्धन की अति आवश्यकता है पानी बचाने के लिए जागरुकता और लोगों को इसके लिए उत्तरदायी बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में प्रतिवर्ष मनाने का निश्चय किया। जिसके अन्तर्गत् सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया। इस दिवस को विश्व भर में जल संरक्षण विषयक सरकारी, गैर-सरकारी, शैक्षिक संस्थानों आदि में सारगर्भित चर्चायें तथा समारोहों के माध्यम से लोगों का पानी बचाने के लिये जागरूक किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए 37 भीषण हत्याकांड हुए हैं। पानी को जिस तरह से बर्बाद किया जा रहा है उसे देखते हुए हर देश चिंतित है। हर देश में पानी के लिए टैक्स, बिल, बर्बादी करने पर सजा आदि का प्रावधान है लेकिन फिर भी लोग पानी की सही कीमत को नहीं समझ पाते। (1) जल है तो मानव जाति का कल सुरक्षित है:- आज गंदे और दूषित पानी की वजह से दुनिया भर में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु पीलिया, डायरिया, हैजा आदि जानलेवा बीमारियों के कारण हो रहीं हैं। इसके साथ ही पानी के बिना अच्छे भोजन की कल्पना भी व्यर्थ है। पानी का इस्तेमाल खाना बनाने के लिए सबसे अहम होता है। खेतों में फसल से लेकर घर में आंटा गूथने तक में पानी चाहिए। शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती मांग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिए कारगर उपाय नहीं है उनके लिए मुसीबतें हर समय मुंह खोले खड़ी हैं। कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं से रुबरु होना पड़ सकता है। जिस तरह पानी को बर्बाद करना बेहद आसान है उसी तरह पानी को बचाना भी बेहद आसान है। अगर हम अपने दैनिक जीवन की निम्न छोटी-छोटी बातों को अपनी दिनचर्या तो शामिल कर ले तो हम काफी हद तक पानी की बर्बादी को रोक सकते हैं- 1) नल से हो रहे पानी के रिसाव को रोकें। कपड़े धोते समय, शेव बनाते हुए या ब्रश करते समय नल खुला ना छोडं़े। 2) वर्षा जल का संरक्षण करें। 3) नहाते समय बाल्टी का प्रयोग करें ना कि शावर का। 4) ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को इसका मूल्य समझाएं। 5) सब्जी धोने के लिए जिस पानी का प्रयोग होता है उसे बचाकर गमलों में डाला जा सकता है। 6) कार या गाड़ी धोते समय बाल्टी में पानी लेकर कपड़े की मदद से हम कम पानी में अपनी गाड़ी को साफ कर सकते है। (2) विश्व के दो अरब से अधिक लोग स्वच्छ जल की कमी से जूझ रहे हैं:- पृथ्वी में जीवित रहने के लिए जल महत्वपूर्ण पेय पदार्थ है जो निरन्तर घटता जा रहा है। वल्र्ड बैंक तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व के दो अरब से अधिक लोग स्वच्छ जल की कमी से जूझ रहे हैं तथा एक अरब लोगों के लिए अपनी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है। प्रतिदिन नदियों तथा झीलों का पानी प्रदूषित हो रहा है जो कि मनुष्य के उपयोग के लिए खतरनाक है। जल का एक प्रमुख óोत्र भूमि के अंदर से मिलने वाला पानी है जिसका स्तर निरन्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को दृष्टि में रखकर देखा जाये तो आने वाले कुछ वर्षों में मनुष्य के लिए स्वच्छ जल का मिलना दुर्लभ हो जायेगा। (3) संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके उसे ‘विश्व संसद’ का स्वरूप प्रदान करें:-   विश्व भर में जल की कमी, ग्लोबल वर्मिंग, जैवविविधता के क्षरण तथा जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एक मंच पर आना होगा। एक मंच पर आकर सभी देशों को सर्वसम्मति से तत्काल संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान करके उसे ‘विश्व संसद’ का स्वरूप प्रदान करने के लिए सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाना चाहिए। इस विश्व संसद द्वारा विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढि़यों के सुरक्षित भविष्य के लिए जो भी नियम व कानून बनाये जाये, उसे ‘विश्व सरकार’ द्वारा प्रभावी ढंग से लागू किया जाये और यदि इन कानूनों का किसी देश द्वारा उल्लघंन किया जाये तो उस देश को ‘विश्व न्यायालय’ द्वारा दण्डित करने का प्राविधान पूरी शक्ति के साथ लागू किया जाये। इस प्रकार विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों के साथ ही आगे जन्म लेने वाली पीढि़यों तथा सम्पूर्ण मानव जाति को जल की कमी, ग्लोबल वार्मिंग, जैवविविधता के क्षरण, शस्त्रों की होड़, युद्धों की विभीषिका तथा जलवायु परिवर्तन जैसे महाविनाश से बचाने के लिए अति शीघ्र विश्व संसद का गठन नितान्त आवश्यक है। (4) जल संरक्षण की दिशा में हमारे विद्यालय का योगदान:- सी.एम.एस. के छात्र समय-समय पर अपनी सामाजिक दायित्वों को समझते हुए पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने, जल संरक्षण करने, वृक्षारोपण करने आदि जैसे अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों को जागरूक करते आ रहे हैं। इसी कड़ी में विद्यालय के बच्चों द्वारा भूगर्भीय जल संसाधन को बचाने हेतु ‘वाटर मार्च’, गोमती नदी को … Read more

खुश रहना चाहते हैं तो एक दूसरे की मदद करें

    एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर ने अचानक ही सबको रोकते हुए सभी प्रतिभागियों को गुब्बारे देते हुए बोला , ”आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया। अब गुब्बारों को एक दूसरे कमरे में रख दिया गया। स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे प्रतिभागी तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था। पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया। स्पीकर बोला, ”अरे! क्या हुआ, आप सभी खाली हाथ क्यों हैं? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला?” नहीं! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया।” एक प्रतिभागी कुछ मायूस होते हुए बोला। “कोई बात नहीं, आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये, पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उस पर लिखा हुआ है।“ स्पीकर ने निर्देश दिया।                 एक बार फिर सभी प्रतिभागी कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे और कमरे में किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दूसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये। स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा, ”बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है, उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है, पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता, दोस्तों हमारी खुशी दूसरों की खुशी में छिपी हुई है।  जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हंे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी और यही मानव-जीवन का उद्देश्य है।” हमारा विश्वास है कि मानव जाति की एकता में सभी की खुशहाली, शान्ति, एकता तथा समृद्धि निहित है। अन्तर्राष्ट्रीय खुशी दिवस-परस्पर सहयोग की भावना ही है सच्ची ख़ुशी  want to be happy-help other’s-in Hindi                 संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2012 में प्रतिवर्ष 20 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय खुशी दिवस मनाने की घोषणा की। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व के सभी व्यक्तियों तथा बच्चों के जीवन में खुशहाली, एकता, शान्ति तथा समृद्धि लाना है। हमारा मानना है कि मानव जाति की एकता में ही सारे जगत की प्रसन्नता निहित है। इसके लिए सारी धरती पर यह विचार फैलाने का समय अब आ गया है कि मानव जाति एक है, धर्म एक है तथा ईश्वर एक है। हमारा मानना है कि धार्मिक विद्वेष, शक्ति प्रदर्शन के लिए शस्त्रों की होड़ तथा साम्राज्य विस्तार की नीति से आपसी बैर-भाव पैदा होते हैं जबकि मानव जाति की एकता में सारे जगत की खुशहाली निहित है। हम विगत 60 वर्षों से बच्चों की शिक्षा के माध्यम से एक न्यायप्रिय विश्व व्यवस्था के लिए प्रयासरत हैं। हमारा लक्ष्य शिक्षा के माध्यम से एक युद्धरहित संसार विकसित करके विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करना है।  (1)  चिन्ता चिता के समान होती है:-                 मनुष्य का जीवन सदैव से अनेक चिन्ताओं से ग्रसित रहा है। चिता तो मृत व्यक्ति को जलाती है, लेकिन चिंता की अग्नि जीवित व्यक्ति को ही जलाकर खाक कर देती है। इसलिए कहा जाता है कि चिन्ता चिता के समान होती है। चिन्तायें कई प्रकार की होती हैं जो कि जीवन का सुख-चैन समाप्त करने में लगी रहती हैं। जैसे- बच्चे, स्वास्थ्य, शिक्षा, कैरियर, भविष्य, पद, व्यवसाय, मुकदमा, शादी-ब्याह, मान-सम्मान, कर्जा, बुढा़पा आदि से जुड़ी चिंतायें। चिंताओं से ग्रसित व्यक्ति के लक्षण तनाव, कुंठा, क्रोध, अवसाद, रक्तचाप, हृदय रोग आदि के रूप में दिखाई देते हंै। चिंताओं से बुरी तरह ग्रसित व्यक्ति की अंतिम मंजिल आत्महत्या, हत्या या अकाल मृत्यु के रूप में प्रायः दिखाई देता है। ये दुःखदायी स्थितियाँ हमारी शारीरिक, भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास में एक बड़ी बाधा बनती हैं। #ये ख़ुशी आखिर छिपी है कहाँ (2) एक शुद्ध, दयालु हृदय धारण करना:-                 आत्मा के पिता परमात्मा की सदैव यह चिन्ता रहती है कि मेरे को दुःख हो जाये किन्तु मेरी संतानों को कोई दःुख न हो। परमात्मा अपनी संतानों के दुःखों को दूर करने के लिए स्वयं धरती पर राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, महावीर, नानक, झूले लाल,  बहाउल्लाह आदि अवतारों के माध्यम से अवतरित होता हैं। ये अवतार संसार से जाने के पूर्व गीता, रामायण, वेद, कुरान, बाइबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, त्रिपटक, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता आदि जैसी पवित्र पुस्तकें हमें देकर जाते हैं। इन पुस्तकों का ज्ञान हमें अपनी सभी प्रकार की चिन्ताओं को प्रभु को सौंपकर चिंतामुक्त होने का विश्वास जगाता है। सभी चिन्ताओं को प्रभु को सौंपने के बाद हमारी केवल एक चिंता होनी चाहिए कि मैं सौगंध खाता हूँ, हे मेरे परमात्मा! कि तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू और तेरी पूजा करूँ। तुझे जानने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं को जाँनू और तेरी पूजा करने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं पर चलँू। एक शुद्ध, दयालु एवं ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके पवित्र ग्रन्थों की गहराई में जाना परमात्मा रूपी चिकित्सक से अचूक इलाज का यह सबसे सरल तरीका है। (3) मनुष्य को केवल एक ही चिन्ता करनी चाहिए:-                 मैंने एक बार अपनी चिन्ताओं की लिस्ट बनाने का विचार किया तथा इन चिन्ताओं की लिस्ट बनाने पर जब मैंने उनकी गिनती की तो वे 215 तक पहुँच गयी थी। इसके थोड़ी देर के बाद ही मंैने महसूस किया कि इसमें अभी कुछ चिन्तायें लिखनी छूट गयी हैं। तब घबराहट में मेरे अंदर विचार आया कि जब चिन्तायें इतनी ज्यादा हैं तो उनकी लिस्ट बनाने से क्या फायदा? इसलिए प्रिय मित्रों, मनुष्य की केवल एक ही चिन्ता होनी चाहिए कि वह अपने प्रत्येक कार्य के द्वारा परमात्मा की इच्छा का पालन कर रहा है या नहीं? इसके बाद मनुष्य को अपनी सारी चिन्ताओं को परमात्मा को सौंप देना चाहिए। हमारा … Read more

बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें

                                    नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में परीक्षा के कार्यक्रम के दौरान उपस्थित बच्चों एवं वीडियो काॅन्फ्रेसिंग के द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा दिये गये गुरू मंत्र न केवल बच्चों को विभिन्न शैक्षिक प्रतियोगिताओं में सफल बनाने में प्रेरणा का काम करेंगे बल्कि उन्हें अपने सारे जीवन में आने वाली किसी भी परीक्षा को भी सफल बनाने में अत्यन्त ही सहायक होंगे। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के उपरोक्त विचारों पर आधारित यह  लेख ‘बच्चों के मन से परीक्षा का डर दूर करने के साथ ही उनके सम्पूर्ण जीवन की परीक्षाओं को सफल बनाने में भी अत्यन्त ही सहायक होगा |  बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें   भारत के इतिहास में पहली बार माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बच्चों के मन से परीक्षा का डर दूर करने के लिए देश भर के बच्चों न केवल सम्बोधित किया बल्कि काफी हद तक वे बच्चों के मन से परीक्षा का डर निकालने में सफल भी रहें।आइये उन्हीं अबातों की विस्तृत चर्चा करते हैं  (1) अंक और परीक्षा जीवन का आधार नहीं हैंः- इस अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री जी नेे कहा कि वर्तमान में जीने की आदत एकाग्रता के लिए एक रास्ता खोल देती है। उन्होंने बच्चों से कहा कि आप खुद के साथ स्पर्धा कीजिए कि मैं जहां कल था उससे 2 कदम आगे बढ़ा क्या, अगर आपको ऐसा लगता है कि आप आगे बढ़े हैं तो यही आपकी विजय है। इसलिए कभी भी किसी दूसरे के साथ कम्पटीसन नहीं बल्कि खुद के साथ कम्पटीसन कीजिए क्योंकि अंक और परीक्षा जीवन का आधार नहीं हैं। (2) आत्मविश्वास के बिना किसी भी परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कि जा सकती बच्चों की मेहनत में कोई कमी नहीं होती है। छात्र के साथ उसके माता-पिता और शिक्षक भी तैयारी करते हैं, लेकिन अगर छात्र में आत्मविश्वास नहीं है तो परीक्षा देना मुश्किल हो जाता है। पेपर जब हाथ में आता है तो छात्र सब पढ़ा-पढ़ाया भूल जाता है। इस तरह आत्मविश्वास के बिना किसी भी परीक्षा में सफलता हासिल नहीं कि जा सकती, इसलिए आत्मविश्वास का होना बेहद जरूरी है। अगर आत्मविश्वास नहीं तो 33 करोड़ देवी-देवता भी कुछ नहीं कर सकते। आखिर क्यों 100 %के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे (3) आत्मविश्वास कैसे हासिल किया जाए आत्मविश्वास कोई जड़ी-बूटी नहीं है, जो खाने से आ जाएगी। ना ही मां द्वारा दी गई कोई दवाई है जो परीक्षा के समय मिल जाए तो काम आ जाएगी। यह तो तभी संभव है जब छात्र खुद को परीक्षा की कसौटी पर कसे। तभी जीत हासिल हो सकती है। आप खुद के साथ प्रतिस्पर्धा कीजिए कि मैं कल जहां था उससे दो कदम आगे बढ़ा क्या? अगर आपको ऐसा लगता है तो यही आपकी विजय है। कभी भी दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा मत कीजिए, खुद के साथ अनु-स्पर्धा कीजिए। (4) किताबों से सिर्फ बुद्धि ही नहीं मन को भी जोड़ेः  एकाग्रता के सवाल पर पीएम ने कहा एकाग्रता के लिए किसी एक्टिविटी की जरूरत नहीं है। आप खुद को जांचिए परखिए। बहुत से लोग कहते हैं कि मुझे याद नहीं रहता है लेकिन यदि आपको कोई बुरा कहता है तो 10 साल बाद भी आपको वह बातें याद रहती है। इसका मतलब है कि आपकी स्मरण शक्ति में कोई कमी नहीं है। जिन चीजों में सिर्फ बुद्धि नहीं आपका मन भी जुड़ जाता है, वह जिंदगी का हिस्सा बन जाती है। वर्तमान में जीने की आदत एकाग्रता के लिए एक रास्ता खोल देती है। (5) यह सोच कर परीक्षा में बैठें कि आप ही अपना भविष्य तय करेंगे: छात्रों को ध्यान देना चाहिए कि कौन सी बातें उनका ध्यान भटका रही हैं। इसके लिए खुद को जांचना और परखना जरूरी है, ताकि उन्हें अपनी कमियों का एहसास हो सके और वे पढ़ाई में ध्यान केंद्रित कर सकें। ‘स्कूल जाते समय यह बात दिमाग से निकाल दीजिए कि कोई आपका एग्जाम ले रहा है। कोई आपको अंक दे रहा है। इस बात को दिमाग में रखिए कि आप खुद का एग्जाम ले रहे हैं। इस भाव के साथ बैठिए की आप ही अपना भविष्य तय करेंगे।  चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स (6) आप खुद ऐसा बनें कि दूसरे आपसे प्रतिस्पर्धा करें: युद्ध और खेल के विज्ञान दोनों में एक नियम है कि आप अपने मैदान में खेलिए। जब आप अपने मैदान में खेलते हैं तो आपकी जीत के अवसर बढ़ जाते हैं। दोस्तों के साथ कम्प्टीशन में आपको उतरना ही क्यों है। आपके दोस्त की परवरिश, खेल और रुचि सभी अलग हैं। इसलिए किसी से किसी की तुलना नहीं है। पहले खुद को अपने दायरे में रहकर सोचें। छात्रों और उनके माता-पिता को वर्तमान में जीने की आदत डालनी चाहिए। इससे ही भविष्य में एकाग्रता और सक्सेस के रास्ते खुलेंगे। आप खुद ऐसा बनें कि दूसरे आपसे प्रतिस्पर्धा करें। (7) अभिभावक दूसरे बच्चों से अपने बच्चों की तुलना न करें: भारत का बच्चा जन्मजात राजनेता होता है, क्योंकि ज्वाइंट फैमिली में उसे पता होता है कि उसे कौन सा काम किससे करवाना है। अभिभावकों से कहना चाहूंगा कि वे दूसरे बच्चों से अपने बच्चों की तुलना न करें। आपके बच्चे के अंदर जो सामथ्र्य है, उसी के अनुसार उससे उम्मीद करें। अंक और परीक्षा जीवन का आधार नहीं हैं इसलिए हर वक्त बच्चे के भविष्य और करियर की चिंता करना ठीक नहीं है। एक खुला और तंदरुस्त वातावरण बच्चों को दिया जाना चाहिए। केवल एग्जाम के वक्त ही नहीं बल्कि हमेशा। और आप विश्वास करिये आपका बच्चा अपने आपको केवल स्कूली परीक्षा को ही सर्वोच्च अंकों के साथ ही पास नहीं करेंगा बल्कि अपने आपको सम्पूर्ण जीवन की परीक्षा के लिए भी तैयार कर लेगा। —— डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं  संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ यह भी पढ़ें … बस्तों के बोझ तले दबता बचपन गीली मिटटी के कुभ्कार खराब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पॉजिटिव माता – पिता के झगडे और बाल मन  आपको आपको  लेख “ बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट … Read more

बच्चों के लिए संतुलित शिक्षा की आवश्यकता

बच्चे हमारी सबसे कीमती धरोहर हैं | उनकी शिक्षा केवल पाठ्य पुस्तकों तक सीमित नहीं होनी चाहिए क्योंकि  मनुष्य केवल एक  शरीर नहीं है | वह भौतिक प्राणी होने के साथ – साथ सामाजिक व आध्यात्मिक  प्राणी भी है। इसलिए मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए उसे सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे मानवीय एवं आध्यात्मिक शिक्षा भी देनी चाहिए। यदि हम अपने पूर्वजों की जानकारी रखते हो तो हम पायेंगे कि वे भी रोटी, कपड़ा तथा मकान के लिए कार्य करते थे। लेकिन उस समय समाज में कोई आत्महत्या, रेप तथा लूटपाट नहीं होती थी। इसका प्रमुख कारण था कि प्रारम्भिक काल में शिक्षालयों  में बालक को बाल्यावस्था से भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों प्रकार की शिक्षा  संतुलित रूप से मिलती थी। उस समय मानव जीवन सुन्दर, सुखी तथा एकता से भरपूर था। आज  बच्चों के लिए संतुलित शिक्षा की आवश्यकता  यदि बालक को केवल विषयों का भौतिक ज्ञान दिया जाये और उसके सामाजिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान में कमी कर दी जायें तो उससे बालक असंतुलित व्यक्ति के रूप में विकसित हो जायेगा। इस प्रकार की शिक्षा में पला-बढ़़ा बालक अपने परिवार एवं समाज को अच्छा बनाने के बजाये उसे और भी अधिक असुरक्षित एवं असभ्य बनाने का कारण बन जाता है। अतः प्राचीन काल के शिक्षालयों  से प्रेरणा लेकर आज के आधुनिक विद्यालयों को भी प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही सर्वश्रेष्ठ भौतिक शिक्षा के साथ ही साथ उसे सामाजिक तथा आध्यात्मिक अर्थात् संतुलित शिक्षा  देकर उसे ईश्वर का उपहार एवं मानवजाति का गौरव बनाना चाहिए।  शिक्षा का मुख्य उद्देश्य हो बच्चों को अच्छा इंसान बनाना  कालान्तर में  वर्ष 1850 से वर्ष 1950 तक लगभग 100 वर्षो के बीच सारे विष्व में औद्योगिक क्रान्ति हुई। विष्व के सभी देषों के बीच अपना-अपना सामान अधिक से अधिक बेचकर लाभ कमाने की अत्यधिक होड़ बढ़ने लगी। उस दौड़ में षिक्षा एवं षिक्षालय भी डूब गये। षिक्षालय केवल कमाई के योग्य व्यक्ति बनाने के टकसाल बन गये। इसके पूर्व शिक्षालयों की चिन्ता होती थी कि बच्चे कैसे अच्छे इंसान बने? यह बात नालन्दा, तक्षषिला, शान्ति निकेतन, बनारस हिन्दू विष्व विद्यालय में देखी जाती थी। वर्तमान समय में अच्छे रिजल्ट बनाने की होड़ को कम नहीं किया जा सकता। इस हेतु बालक को अपने सभी विषयों का संसार का उत्कृष्ट भौतिक ज्ञान मिलना चाहिए। किन्तु इसके साथ ही साथ उसके चरित्र का निर्माण तथा उसके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम भी उत्पन्न करना होगा तभी हम प्रत्येक बालक को एक अच्छा इंसान भी बना पायेंगे। यदि हमें धरती पर शैतानी सभ्यता की जगह आध्यात्मिक सभ्यता स्थापित करनी है तो इसके लिए शिक्षा के द्वारा तीन क्षेत्रों को तराशना होगा। पहला क्षेत्र इस युग के अनुरूप ‘शिक्षा’ होनी चाहिए (अर्थात शिक्षा केवल भौतिक नहीं वरन् भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों की संतुलित शिक्षा), दूसरा क्षेत्र धर्म के मायने साधारणतया समझा जाता है कि मेरा धर्म, तेरा धर्म, उसका धर्म। धर्म के मायने- ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। तीसरा क्षेत्र सारे विश्व में कानूनविहीनता बढ़ रही है। बच्चों को बचपन से कानून पालक तथा न्यायप्रिय बनने की सीख देनी चाहिए। हम सब संसारवासी कानून को तोड़ने वाले बनते जा रहे हैं। समाज को व्यवस्थित देखना है तो कानून का पालन होना चाहिए। सामाजिक शिक्षा के द्वारा बालक में परिवार तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए। बच्चों को ऊँच-नीच तथा जात-पात के बन्धन से बचाना चाहिये। विद्यालयों में हो बच्चों की शिक्षा का तीन सूत्रीय कार्यक्रम  आध्यात्मिक शिक्षा के अन्तर्गत बालक को पवित्र ग्रन्थों- गीता, कुरान, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस में संकलित परमात्मा की शिक्षाओं का ज्ञान कराना चाहिए तथा परमात्मा की शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। बच्चों को बताना चाहिए कि सभी अवतार राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, मोजज, अब्राहम, जोरस्टर, महावीर, नानक, बहाउल्लाह एक ही परमात्मा की ओर से आये हैं। परमात्मा का ज्ञान किसी धर्म विशेष के अनुयायियों के लिए नहीं हैं सारी मानव जाति के लिए है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अर्पित मनुष्य की ओर से की जाने वाली समस्त सम्भव सेवाओं में से सर्वाधिक महान सेवा है- (अ) बच्चों की शिक्षा, (ब) उनके चरित्र का निर्माण तथा  (स) उनके हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।                                जब बच्चों को इन तीन सूत्रीय कार्यकर्मों पर चल कर शिक्षा दी जायेगी | तो न सिर्फ उनका सर्वंगीड विकास होगा बल्कि हम एक स्वस्थ्य , संतुलित समाज की स्थापना करने के अपने लक्ष्य में भी कामयाब होंगे | – डा0 जगदीष गांधी, षिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ ’’’’’ किशोर बच्चों में अपराधिक मानसिकता जिम्मेदार कौन आखिर क्यों 100 %के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे बाल दिवस :समझनी होंगी बच्चों की समस्याएं  माता – पिता के झगडे और बाल मन   आपको  लेख “बच्चों के लिए संतुलित शिक्षा की आवश्यकता “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    keywords:  children issues,  child, children,child education, balanced child education

सफलता के लिए बोर्ड एग्जाम की तैयारी के 11 उपयोगी टिप्स

आगामी मार्च में दसवीं व् बारहवीं की बोर्ड की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं | सभी विद्यार्थीं अपनी  तैयारी को अंतिम रूप दे रहे हैं | माता -पिता भी बच्चों का विशेष ध्यान रख रहे हैं | सबकी कोशिश यही है की बच्चे परीक्षाओं में अच्छे मार्क्स लाये और सफल हों |परन्तु देखा गया है की कई बार सही तैयारी न करने से मेहनत करने के बाद भी सही परिणाम नहीं मिलते हैं | इसी कारण परीक्षाओं से ठीक पहले माता – पिता व् बच्चे तनाव में आ जाते हैं | उन्हें काउंसलिंग की जरूरत होती है | अगर सही समय में पता चल जाए कि तैयारी किस प्रकार करनी है तो कोई कारण नहीं कि कोई बच्चा सफल न हो पाए |  बोर्ड परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं के लिए विशेष लेख बोर्ड परीक्षाओं के मद्दे नज़र बच्चों की और अभिवावकों की  चिंताओं को ध्यान में रखते हुए  लखनऊ के सुप्रसिद्ध सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ के संस्थापक-प्रबन्धक- डा0 जगदीश गांधी अपने लेख के माध्यम बच्चों को बोर्ड  एग्जाम में सफलता के लिए 11 उपयोगी टिप्स बता रहे हैं | जिनकी सहायता से बच्चे अच्छे प्रतिशत के साथ सफल हो सकते हैं | (1)  सफलता की एकमात्र कुंजी निरन्तर अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास ही है:-  किसी ने सही ही कहा है कि ‘करत-करत अभ्यास से जड़मत होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निशान’ अर्थात् जिस प्रकार एक मामूली सी रस्सी कुएँ के पत्थर पर प्रतिदिन के अभ्यास से निशान बना देती है उसी प्रकार अभ्यास जीवन का वह आयाम है जो कठिन रास्तों को भी आसान कर देता है। इसलिए अभ्यास से कठिन से कठिन विषयों को भी याद किया जा सकता है। इस प्रकार सफलता की एकमात्र कुंजी निरन्तर अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास ही है। विशेषकर गणित तथा विज्ञान विषयों में यदि आप अपना वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टिकोण विकसित नहीं कर पाये तो आप सफलता को गवां सकते हैं। इसलिए इन विषयों के सूत्रों को अच्छी तरह से याद करने के लिए इन्हें बार-बार दोहराना चाहिए और लगातार इनका अभ्यास भी करते रहना चाहिए। दीर्घ उत्तरीय पाठ/प्रश्नों को एक साथ याद न करके इन्हें कई खण्डों में याद करना चाहिए। बार-बार अभ्यास करने से जीवन की कठिन से कठिन बातें भी याद रखी जा सकती हैं। (2)  बोर्ड परीक्षाओं का तनाव लेने के बजाय छात्र खुद पर रखें विश्वास:- प्रायः यह देखा जाता है कि बोर्ड की परीक्षाओं के नजदीक आते ही छात्र-छात्रायें एक्जामिनेशन फीवर के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में शिक्षकों एवं अभिभावकों के द्वारा बच्चों के मन-मस्तिष्क में बैठे हुए इस डर को भगाना अति आवश्यक है। वास्तव में बच्चों की परीक्षा के समय में अभिभावकों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। एक शोध के अनुसार बच्चों के मन-मस्तिष्क पर उनके अभिभावकों के व्यवहार का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसी स्थिति में अभिभावकों को बच्चों के साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करना चाहिए ताकि उनमें सुरक्षा की भावना और आत्मविश्वास बढ़ें। इस प्रकार बच्चों का मन-मस्तिष्क जितना अधिक दबाव मुक्त रहेगा उतना ही बेहतर उनका रिजल्ट आयेगा और सफलता उनके कदम चूमेगी। इसलिए छात्र-छात्राओं को बोर्ड परीक्षााओं का तनाव लेने के बजाय खुद पर विश्वास रखकर ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’ कहावत पर चलना चाहिए और अपने कठोर परिश्रम पर विश्वास रखना चाहिए। (3)  स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है:- किसी ने बिलकुल सही कहा है कि एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों एवं डाक्टरों के अनुसार प्रतिदिन लगभग 7 घण्टे बिना किसी बाधा के चिंतारहित गहरी नींद लेना सम्पूर्ण नींद की श्रेणी में आता है। एक ताजे तथा प्रसन्नचित्त मस्तिष्क से लिये गये निर्णय, कार्य एवं व्यवहार अच्छे एवं सुखद परिणाम देते हैं। थके तथा चिंता से भरे मस्तिष्क से किया गया कार्य, निर्णय एवं व्यवहार सफलता को हमसे दूर ले जाता है। परीक्षाओं के दिनों में संतुलित एवं हल्का भोजन लेना लाभदायक होता है। इन दिनों अधिक से अधिक ताजे तथा सूखे फलों, हरी सब्जियों तथा तरल पदार्थो को भोजन में शामिल करें। (4)  अपने लक्ष्य का निर्धारण स्वयं करें और देर रात तक पढ़ने से बचें:-  एक बार यदि हमें अपना लक्ष्य ज्ञात हो गया तो हम उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देंगे। यदि हमारा लक्ष्य परीक्षा में 100 प्रतिशत अंक लाना है तो पाठ्यक्रम में दिये गये निर्धारित विषयों के ज्ञान को पूरी तरह से समझकर आत्मसात करना होगा। इसके साथ ही रात में देर तक पढ़ने की आदत बच्चों को नुकसान पहुँचा सकती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्रातःकाल का समय अध्ययन के लिए ज्यादा अच्छा माना जाता है। सुबह के समय की गई पढ़ाई का असर बच्चों के मन-मस्तिष्क पर देर तक रहता है। इसलिए बच्चों को सुबह के समय में अधिक से अधिक पढ़ाई करनी चाहिए। रात में 6-7 घंटे की नींद के बाद सुबह के समय बच्चे सबसे ज्यादा शांतिमय, तनाव रहित और तरोताजा महसूस करते हैं। (5)  सफलता के लिए  लिखकर याद करने की आदत डालें:- प्रत्येक मनुष्य की स्मरण शक्ति असीमित है। आइस्टीन जैसे महान वैज्ञानिक तथा एक साधारण व्यक्ति के मस्तिष्क की संरचना एक समान होती है। केवल फर्क यह है कि हम अपने मस्तिष्क की असीम क्षमताओं की कितनी मात्रा का निरन्तर प्रयास द्वारा सदुपयोग कर पाते हैं। इसलिए छात्रों को अपने पढ़े पाठों का रिवीजन पूरी एकाग्रता तथा मनोयोगपूर्वक करके अपनी स्मरण शक्ति को बढ़ाना चाहिए। एक बात अक्सर छात्र-छात्राओं के सामने आती है कि वो जो कुछ याद करते हंै वे उसे भूल जाते हैं। इसका कारण यह है कि छात्र मौखिक रूप से तो उत्तर को याद कर लेते हैं लेकिन उसे याद करने के बाद लिखते नहीं है। कहावत है एक बार लिखा हुआ हजार बार मौखिक रूप से याद करने से बेहतर होता है। ऐसे में विद्यार्थी को अपने प्रश्नों के उत्तरों को लिखकर याद करने की आदत डालनी चाहिए। (6)  बोर्ड परीक्षाओं के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का अध्ययन जरूरी है:- सिर्फ महत्वपूर्ण विषयों या प्रश्नों की तैयारी करने की प्रवृत्ति आजकल छात्र वर्ग में देखने को मिल रही है जबकि छात्रों को अपने पाठ्यक्रम का पूरा अध्ययन करना चाहिए और इसे अधिक से अधिक बार दोहराना चाहिए। … Read more

परमात्मा से मित्रता ही साधारण को असाधारण में बदलती है

                                            परमात्मा हर पल हम सब के साथ है | वो हमारा अभिन्न  मित्र है | पर हम इस बात को स्वीकार कहाँ करते हैं की हम अकेले होते हुए भी अकेले नहीं है वो परमात्मा हर पल हमारे साथ है | जिस पल हमें यह अहसास हो जाएगा हम भी अर्जुन , मीरा या श्री हुनमान जी कर तरह असाधारण कार्य कर जायेंगे | इस बात को समझाने की सबसे ज्यादा आवश्यकता हमारे बच्चों को है | जो परमात्मा की शक्ति को अपने अन्दर महसूस करते हुए  सहज भाव से असाधारण कामों को अंजाम दे सकते हैं | पढ़ें कैसे परमात्मा से मित्रता ही साधारण को असाधारण में बदलती है  संसार में जितने भी महापुरूष हुए हैं वे सभी बचपन में साधारण थे। परमात्मा सबसे महान एवं शक्तिशाली है। आप अपने बालक की इसी सबसे महान एवं शक्तिशाली परमात्मा से मित्रता करा दीजिए। हृदय पवित्र करके परमात्मा की आज्ञा तथा इच्छा को जानने तथा उसके अनुसार प्रभु कार्य करने से ही परमात्मा से मित्रता होती है। इसके लिए हमें बालक को घर तथा विद्यालय में परमात्मा की शिक्षाओं का अर्थ बताना चाहिए। उसे यह बताना चाहिए कि परमात्मा अपना है पराया नहीं और इसलिए परमात्मा की बनायी यह पूरी धरती तथा मानव जाति अपनी है परायी नहीं। वास्तव में मानव जाति की भलाई करना ही हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य है। प्रभु इच्छा तथा आज्ञा को जानकर लोक कल्याण के लिए असाधारण कार्य करने वाले कुछ महापुरूषों के त्यागमय तथा कष्टमय जीवन के विवरण इस प्रकार हंै:- (1) न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए:- अर्जुन को कृष्ण के मुँह से निकले परमात्मा के पवित्र गीता के सन्देश से ज्ञान हुआ कि कर्तव्य ही धर्म है। न्याय के लिए युद्ध करना ही उसका परम कर्तव्य है। उस समय राजा ही जनता के दुःख-दर्द को सुनकर न्याय करते थे। कोई कोर्ट या कचहरी उस समय नहीं थी। और जब राजा स्वयं ही अन्याय करने लगे तब न्याय कौन करेगा? न्याय की स्थापना के लिए युद्ध के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं बचा था। भगवानोवाच पवित्र गीता के ज्ञान को एकाग्रता से सुनने के बाद अर्जुन हाथ जोड़कर बोला ‘‘प्रभु अब मेरे मोह का नाश हो गया है और मुझे ईश्वरीय ज्ञान एवं मार्गदर्शन मिल गया है। अब मैं निश्चित भाव से युद्ध करुँगा।’’ अर्जुन ने विचार किया कि जो परमात्मा की बनायी सृष्टि को कमजोर करेंगे वे मेरे अपने कैसे हो सकते हैं? पवित्र गीता के ज्ञान को जानकर उसने निर्णय लिया कि न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना चाहिए। फिर अर्जुन ने अन्याय के पक्ष में खड़े अपने ही कुल के सभी अन्यायी यौद्धाओं तथा 11 अक्षौहणी सेना का महाभारत के युद्ध में विनाश किया। इस प्रकार अर्जुन ने प्रभु का कार्य करते हुए धरती पर न्याय के साम्राज्य की स्थापना की। (2) माता देवकी ने मानव उद्धारक कृष्ण को अपनी कोख से जन्म देने की प्रतीक्षा की:- माता देवकी ने प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और वह एक महान नारी बन गईं तथा उनका सगा भाई कंस ईश्वर को न पहचानने के कारण महापापी बना। देवकी ने अपनी आंखों के सामने एक-एक करके अपने सात नवजात शिशुओं की हत्या अपने सगे भाई कंस के हाथों होते देखी और अपनी इस हृदयविदारक पीड़ा को अत्यन्त धैर्यपूर्वक अपने आंठवे पुत्र कृष्ण के अपनी कोख से उत्पन्न होने की प्रतीक्षा की ताकि मानव उद्धारक कृष्ण का इस धरती पर अवतरण हो सके तथा वह धरती को अपने भाई कंस जैसे महापापी के आतंक से मुक्त करा सके तथा धरती पर न्याय आधारित ईश्वरीय साम्राज्य की स्थापना हो। (3) मीरा को कृष्ण की भक्ति में अनेक कष्ट सहने पड़े:- मीराबाई कृष्ण भक्ति में भजन गाते हुए मग्न होकर नाचने-गाने लगती थी जो कि उनके राज परिवार को अच्छा नहीं लगता था। इससे नाराज होकर मीरा को राज परिवार ने तरह-तरह से डराया तथा धमकाया। उनके पति राणाजी ने कहा कि तू मेरी पत्नी होकर कृष्ण का नाम लेती है। मैं तुझे जहर देकर जान से मार दूँगा। मीरा ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उसने कहा कि पतिदेव यह शरीर तो विवाह होने के साथ ही मैं आपको दे चुकी हूँ, आप इस शरीर के साथ जो चाहे सो करें, किन्तु आत्मा तो प्रभु की है, उसे यदि आपको देना भी चाँहू तो कैसे दे सकती हूँ? इसलिए हमें भी मीरा की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए। (4) प्रभु कार्य किये बिना मुझे कहा विश्राम:- हनुमान जी ने परमात्मा को पहचान लिया तो वे एक छलाँग में मीलों लम्बा समुद्र लांघकर सोने की लंका पहुँच गये। हनुमान में यह ताकत परमात्मा की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लेने से आ गयी। प्रभु भक्त हनुमान ने पूरी लंका में आग लगाकर रावण को सचेत किया। हनुमान के चिन्तन में केवल एक ही बात थी कि प्रभु का कार्य किये बिना मुझे एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं करना है। हनुमान ने बढ़-चढकर प्रभु राम के कार्य किये। हनुमानजी की प्रभु भक्ति यह संदेश देती है कि उनका जन्म ही राम के कार्य के लिए हुआ था। भक्त प्रहलाद, गाँधी जी, मदर टेरेसा, अब्राहम लिंकन ने अपने त्यागमय तथा सेवामय जीवन द्वारा अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। (5) बच्चों को इस युग का ज्ञान तथा बुद्धिमत्ता देकर पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति बनाये:- परिवार तथा विद्यालय दोनों को मिलकर बच्चों को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक शिक्षाओं का संतुलित ज्ञान कराना चाहिए। बच्चों को यह बतलाये कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। इसके साथ ही हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प कराना चाहिए कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा, धरती स्वर्ग बनाऊँगा। विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊँगा। परमात्मा की ओर से अवतरित पवित्र पुस्तकों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हंै। राम ने अपने जीवन द्वारा मर्यादा, कृष्ण ने गीता द्वारा न्याय, बुद्ध ने त्रिपटक द्वारा सम्यक ज्ञान (समता), ईशु ने बाइबिल द्वारा करूणा, मोहम्मद ने … Read more

‘अहिंसा’ के विचार से ही ‘जय जगत’ की अवधारणा साकार होगी!

गांधी जयंती व अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (2 अक्टूबर) पर विषेष लेख  1) संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया है |   अहिंसा की नीति के जरिये विष्व भर में शांति के संदेष को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को स्वीकारने के लिए ही ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विष्व भर में प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया गया। मौजूदा विष्व-व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भारत द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव को बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को भारी संख्या में सदस्य देषों का समर्थन मिलना विष्व में आज भी गांधी जी के प्रति सम्मान और उनके विष्वव्यापी विचारों और सिद्धांतों की नीति की प्रासंगिकता को दर्षाता है। (2) आज मानव जाति को जय जगत के नारे को बुलन्द करने की आवश्यकता है:-  15 अगस्त, 1947 को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश 300 वर्षों की अग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। भारतवासियों के हृदय में देशभक्ति की भावना गांधी जी ने भरी और फिर अंग्रेजों को भारत छोड़ने को उन्होंने ही विवश किया। इसके साथ ही सरदार पटेल ने भारत के 552 देशी राज्यों को अत्यन्त ही शान्तिपूर्वक समाप्त कर भारत को एक सुदृढ़ तथा संगठित राष्ट्र बनाया। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर विश्व के 54 देश अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद हो गये थे। गाँधी जी ने अपने शिष्य विनोबा भावे से भारत देश के आजाद होते ही कहा था कि अभी तक हमारा लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से देश को आजाद करने के लिए ‘जय हिन्द’ के नारे को बुलन्द करना था। देश के आजाद होने के साथ ‘जय हिन्द’ का हमारा लक्ष्य पूरा हो गया है और अब हमें सारे विश्व को गरीबी, अन्याय, भूख, बीमारी, अशिक्षा तथा युद्धों से बचाने के लिए ‘जय जगत’ अर्थात ‘सारे विश्व की जय हो के’ नारे को बुलन्द करने के लिए कार्य करना है। (3) दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों का भविष्य आज की समस्या:- 21वीं सदी के युग में व्याप्त विश्वव्यापी समस्याओं को समाप्त करने के लिए महात्मा गाँधी के विचारों को अमल में लाने की आवश्यकता है। महात्मा गाँधी भारत जैसे महान राष्ट्र को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए उठ खड़े हुए थे और वह देश को आजादी दिलाने में सफल भी हुए। यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे ग्लोबल विलेज को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के दो अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गाँधी ने महापुरूषों से प्रेरणा ली किन्तु अपने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश की गुलामी की समस्या को हल किया। तथापि विश्व के 54 देशों को गुलामी से मुक्त होने की ऊर्जा तथा विश्वास दिया। (4) ‘जय जगत’ की भावना से ही पूरे विश्व में ‘एकता एवं शांति की स्थापना संभव:- संत विनोबा भावे से किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। सारे जगत की जीत कैसे होगी? बच्चों के सुरक्षित भविष्य की खातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में युद्ध करना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत’ हो जायेगा। अर्थात यदि दो राष्ट्र मिलकर ‘जय जगत’ की भावना से आपसी परामर्श करें तो किसी एक की हार-जीत नहीं वरन् दोनों की जीत होगी। इस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को सारे विश्व में ‘जय जगत’ की भावना के अनुरूप एकता एवं शांति की स्थापना के लिए अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के साथ ही सारे विश्व के देशों के हितों को ध्यान में रखकर भी संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में विकसित करना होगा। (5) महात्मा गांधी ने विष्व में वास्तविक शांति की स्थापना के लिए बच्चों को सबसे सषक्त माध्यम बताया:- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विष्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सषक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ इस प्रकार महात्मा गाँधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने के लिए हमें प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों की संतुलित षिक्षा के साथ ही सार्वभौमिक जीवन-मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें ‘विश्व नागरिक’ बनाना होगा। (6) गांधी जी ने आधुनिक विष्व की समस्याओं के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्रों की महासंघ की वकालत की:-  गांधी जी का कहना था कि भविष्य में शांति, सुरक्षा और निरन्तर प्रगति के लिए संसार के सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को एक महासंघ की आवश्यकता है, इसके अलावा आधुनिक विश्व की समस्याओं को हल करने का कोई अन्य माध्यम नहीं है। एक ऐसे ही विश्व महासंघ के द्वारा उसके घटक देशों की स्वतंत्रता, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये जाने वाले आक्रमण एवं शोषण से बचाव, राष्ट्रीय मंत्रालयों की सुरक्षा, सभी पिछड़े क्षेत्रों एवं लोगों की उन्नति, विकास एवं सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए विश्व भर के संसाधनों के एकत्रीकरण जैसे कार्य सुनिश्चित किये जाने चाहिए। (7) सारा संसार एक नवीन विश्व-व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है:- आज जब हम महात्मा गांधी के जीवन तथा शिक्षाओं को याद करते हैं तो हम उनके सत्यानुसंधान एवं विश्वव्यापी दृष्टिकोण के पीछे अपनी प्राचीन संस्कृति के मूलमंत्र ‘उदारचारितानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ (अर्थात पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके नागरिक है) को पाते हैं। इन मानवीय मूल्यों के द्वारा ही सारा संसार एक नवीन विश्व सभ्यता की ओर बढ़ रहा है। गांधी जी ने भारत की संस्कृति के आदर्श उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम् को सरल शब्दों में ‘जय जगत’ (सारे विश्व की भलाई अर्थात जीत हो) के नारे के रूप में अपनाने की प्रेरणा अपने प्रिय शिष्य संत विनोबा भावे को दी जिन्होंने इस शब्द का व्यापक प्रयोग कर आम लोगों में … Read more

दशहरा-असत्य पर सत्य की विजय का पर्व

दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है।  इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। (1) दशहरा पर्व हर्ष और उल्लास का त्योहार है:- दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं तथा रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। यह हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। व्यक्ति और समाज में सत्य, उत्साह, उल्लास एवं वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो इस प्रसन्नता के अवसर को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उनका पूजन करता है। (2) दशहरा पर्व का सन्देश है कि अहंकार के मद में चूर व्यक्ति का अंत बुरा होता है:- इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था और सारा समाज भयमुक्त हुआ था। इस दिन कुछ लोग शारीरिक आरोग्यता तथा आध्यात्मिक विकास के लिए व्रत एवं उपवास करते हैं। कई स्थानों पर मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। दशहरा अथवा विजयादशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता है जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं। यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि हमें अंहकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अंहकार के मद में डूबा हुआ व्यक्ति एक दिन अवश्य असफल हो जाता है। रावण चारों वेदों का ज्ञाता और महावीर व्यक्ति था परन्तु उसका अंहकार ही उसका तथा उसके कुटुम्ब के विनाश कारण बना। यह त्योहार जीवन को हर्ष और उल्लास से भर देता है, साथ ही यह जीवन में कभी अंहकार न करने की प्रेरणा भी देता है। रोशनी का त्योहार दीवाली, दशहरा के बीस दिन बाद मनाया जाता है। किसी ने सही ही कहा है कि बुराई का होता है विनाश, दशहरा लाता है उम्मीद की आस। (4) राम के समक्ष सबसे बड़ा संकट कब पैदा हुआ?  पिता की पहली आज्ञा सुनकर राम आनंदित हो गये कि मुझे अपने पूज्य पिता जी की आज्ञा पालन करने का सुअवसर प्राप्त होने के साथ ही साथ मुझे वन में संत-महात्माओं के दर्शन करने एवं उनके प्रवचन सुनकर अपने जीवन में प्रभु की आज्ञाओं के जानने का सुअवसर मिलेगा तथा मुझे ईश्वर की आज्ञाओं का ज्ञान होगा एवं उन पर चलने का अभ्यास करने का सुअवसर प्राप्त होगा। किन्तु पिता की दूसरी आज्ञा सुनकर कि प्रिय राम तुम वन में न जाओ और यदि तुम वन गये तो मैं प्राण त्याग दूँगा। इससे राम के मन में द्वन्द्व उत्पन्न हो गया कि पिता की इन दो आज्ञाओं में से किस आज्ञा को माँनू? क्या करूँ, क्या न करूँ? मैं पिता की पहली आज्ञा मानकर वन में जाऊँ या पिता की दूसरी आज्ञा मानकर और वन न जाकर अयोध्या का राजा बन जाऊँ? (5) राम का संकट कैसे दूर हुआ?  राम ने अपने ऊपर आये इस संकट की घड़ी में हाथ जोड़कर परम पिता परमात्मा से प्रार्थना की और पूछा कि मैं क्या करूँ? पिता की पहली आज्ञा माँनू या दूसरी? राम को परमात्मा से उत्तर मिल गया। परमात्मा ने राम से कहा, तू तो मनुष्य है और हमने मनुष्य को विचारवान बुद्धि दी है। मनुष्य उचित-अनुचित का विचार कर सकता है। मनुष्य यह विचार कर सकता है कि मेरे किसी भी कार्य का अंतिम परिणाम क्या होगा? पशु यह विचार नहीं कर सकता। क्या तू अपनी विचारवान बुद्धि का प्रयोग करके उचित और अनुचित का निर्णय नहीं कर सकता? राम का द्वन्द्व उसी पल दूर हो गया। राम को यह विचार आया कि यदि राजा दशरथ के वचन की मर्यादा का पालन करने के लिए मैं वन में न गया तो पूरे समाज में चर्चा फैल जायगी कि राजा अपने वचन से मुकर गया है। एक राजा के इस अमर्यादित व्यवहार के कारण समाज अव्यवस्थित हो जायगा। अतः मुझे वन अवश्य जाना है। (6) दशरथ तथा राम की सोच में क्या अंतर था?  राम ने प्रभु इच्छा को जानकर दृढ़तापूर्वक वन जाने का निर्णय कर लिया। राम ने यह निर्णय इस आधार पर लिया कि यदि राजा की 14 वर्ष वन जाने की आज्ञा के पालन तथा वचन की लाज एक बेटा नहीं रखेगा तो समाज में क्या सन्देश जायेगा? परमात्मा द्वारा निर्मित मानव समाज परमपिता परमात्मा का अपना निजी परिवार है तथा इस सृष्टि के सभी मनुष्य उसकी संतानें हैं। मित्रों, आप देखे, दशरथ की दृष्टि अपने प्रिय पुत्र के प्रति अगाध भौतिक प्रेम व अति मोह एवं स्वार्थ से भरी होने के कारण उनका राम को कई तरीके से वन न जाने की सीख देना तथा यदि फिर भी राम वन चले जाय तो प्राण त्यागने तक का निर्णय कर लेना परमात्मा एवं उसके समाज के व्यापक हितों के विरूद्ध है। वहीं दूसरी ओर उनके बेटे राम की दृष्टि आध्यात्मिक होने के कारण पिता की अतिवेदना की बिना परवाह किये हुए ही उनका वन जाने का निर्णय समाज को मर्यादित होने की सीख देने वाला था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने अपने जीवन से समाज को यह सीख दी कि मानव की एक ही मर्यादा या धर्म या कत्र्तव्य है कि यदि अपनी और अपने पिता की इच्छा और परमात्मा की इच्छा एक है तो उसे मानना चाहिये किन्तु यदि हमारी और हमारे शारीरिक पिता की इच्छा एक हो … Read more