डॉन्ट डिस्टर्व मी

         घर और बाहर दोहरी जिन्दगी जीने वालों के चेहरे , चल , चरित्र और सोच भी दोहरी हो जाती है | उत्तर जानने के लिए पढ़िए  लघु कहानी  डॉन्ट डिस्टर्व मी क्या रोज की खीच -खींच मचा रखी है “तुमने यह नहीं किया तुमने वो किया ” यह कहते हुए सोनाली ने शुभम को अनदेखा कर अपना पर्स उठाया और चल दी । आटो स्टैण्ड पर आ आटो  में बैठ ऑफिस की ओर चल दी , उतर कर कुछ दूरी ऑफिस के लिए पैरों भी जाना होता था । आफीस में पहुँचते ही उसे साथी ने टोक दिया “कि आप लेट हो गयी ,”मुँह बना अपने केविन की ओर जा ही रही थी कि पिओन आ बोला “साहब , बुलाते है , पर्स रख साहब के केविन में पहुँची ,जी सर  । साहब जो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था , बोला “व्हाट प्रोब्लम , वाय आर यू सो लेट ? सर आइ नोट लेट , आइ हेव सम प्रोव्लम ,  आइ ट्राई नाट कम टू लेट । अपनी बात को कहते हुए आगे वॉस के आदेश का इन्तजार करने लगी ।             दो मिनट के मौन के बाद वॉस ने आदेश देते हुए कहा कि ” सी मी फाइल्स आॅफ इमेल्स , सेन्ट  टुमारो” मिसेज सोनाली । “यस सर , इन फ्यू मिनट्स ” कहते हुए अपने केविन की ओर चल दी । और फाइल्स को निकालने लगी  । लगभग पन्द्रह मिनट्स बाद फाइल्स हाथ में लेकर वाॅस के आकर बोली ,  देट्स फाइल्स ।          फाइल्स देखते  हुए वाँस,  जो एक अधेड़ उम्र का था , गुड सोनाली,  कहते हुए प्रोमोशन का आश्वासन दिया । प्रफुल्लित होते हुए घर चली आई दरवाजे पर पैर रखते ही  सुबह  शुभम के साथ घटित वाक्या पुनः याद आ गया । डा मधु त्रिवेदी संक्षिप्त परिचय  ————————— .  पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी  पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ  बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर  साइंस आगरा  प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  यह भी पढ़ें … परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ डॉन्ट डिस्टर्व मी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, ,personality, 

टैम्पोवाली

             ये सही है कि जमाना बदल रहा है पर स्त्रियों के प्रति सोच बदलने में समय लगेगा | ये बात जहाँ निराशा उत्पन्न करती है वहीँ कई लोग ऐसे भी हैं जो आशा की किरण बन कर उभरते हैं | एक ऐसे ही किरण चमकी टैम्पो वाली की जिंदगी में  लघुकथा -टैम्पोवाली सुबह का अलार्म जो बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता । जल्द ही काम सिमटा कर  बूढ़ी माँ की अाज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे परअपना टैम्पो को खड़ा कर लेंती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखे उसके चेहरे पर आ टिक जाती थी एक सिहरन फैल जाती उसके बाॅडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।                  सिर से पैर तक अपने को ढके वो अपने काम में लीन रहती हर रेड लाइट पर रूक उसको ट्रेफिक पुलिस से भी दो चार होना पड़ता , यह पुलिस भी गरीब को सताती है और अमीर के सामने बोलती बंद हो जाती है ।      शादीशुदा होने के बावजूद उसको पति का हाथ बँटाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।         दिन प्रतिदिन यही चलता शाम को घर लौटने पर बेटी बेटे की देख रेख करना और सासु के साथ हाथ बँटाना रात थक बच्चों के साथ सो जाना । वाकई रोटी का संकट भी विचित्र होता है सब कुछ करा देता है । सुबह से शाम तक सिटी के चौराहों की धूल फाँकना सवारी को बैठाना और उतारना और कहीँ कहीँ पुरुष की सूरत में  बैठने वाले कुत्तों से दो चार होना यहीँ जीवन चर्या थी ।  और …पासा पलट गया            एक बार उसका टैम्पो कई दिन तक नहीं निकला तो उसकी रोजमर्रा की सवारी थी उसमें से एक जो उसके टैम्पों से आफिस जाया करता था बरबस ही उसके विषय में सोचने लगा कि “ऐसा क्या हुआ जो वो दिखाई नहीं देती ” पर पता न होने के कारण ढूढ़ भी नही सका ।                   टैम्पोवाली का  बीमारी से शरीर बहुत दुर्बल हो गया था एक रोज जब वह किसी दोस्त से मिलने जा रहा था तो वही टैम्पो खड़ा देखा जिस पर अक्सर बैठ आफिस जाता था पूछताछ करने पर पता लगा कि वो पास ही रहती है ।                 पता कर घर पहुँचा तो माँ बाहर आई “बोली , बाबू किते से आये हो और किस्से मिलना है ” संकुचाते हुए उसने टैम्पो वाली के विषय में पूछा तो पता लगा , बीमार है और पैसे न होने के कारण इलाज नहीं हो सकता  , बताते हुए माँ सिसकने लगती है ” वो व्यक्ति कुछ पैसे निकाल देता है इलाज के लिए ।           बच इसी बीच उसका पति अपना टैम्पो ले आ जाता है वस्तुस्थिति को समझते हुए पति हाथ जोड़ पैर में गिर पड़ता है और सोचने लगता है कि दुनियाँ में नेक लोगों की कमी नहीं । डॉ . मधु त्रिवेदी  यह भी पढ़ें … गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन  आपको    “टैम्पोवाली “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, tempo, short story in hindi

नया दौर

जमाना बदल रहा है | ये नया दौर है जो पुराने दौर से बिलकुल अलग है |  यहाँ संस्कृतियों का फ्यूजन नहीं हो रहा बल्कि विदेशी संस्कृति हावी होती जा रही है |  हिंदी कविता -नया दौर  फैशन की दोड मे सब आगे है शायद यहीं नया दौर है मम्मी पापा है परम्परावादी मूल्यों की वे आधारशिला वक्त ने बदला हैं उनको बेजोड़ पर मानस में है पुरानी सोच शायद यहीं नया दौड़ है भारतीय सभ्यता की है बेकद्री पाश्चात्य सभ्यता को है ताली पारलर सैलून खूब सजते हजारों चेहरे यहाँ पूतते है मेहनत के धन का दुरूपयोग है बेबसियों का कैसा दौर है शायद यहीं नया दौर है बाला सुंदर सुंदर सजती है मियाँ जी की कमाई बराबर करती है टेन्शन खूब बढाती है अपने को चाँद बना दिखलाती है प्रिय प्राणेश्वर की दीवाणी है हरदम न्यौछावर रहने वाली है शायद यही नया दौर है हिन्दी पर अंग्रेजी हावी है भाषा बोलने में खराबी है अंग्रेजी अपनी दासी है हिन्दी कंजूसी सिखाती है ना हम हिंदूस्तानी हैल बाजार जब मैं जाती हूँ मम्माओं को स्कर्ट शर्ट,जीन्स टॉप पहना हुआ पाती हूँ मम्मा बेटी में नहीं लगता अन्तर बेटी से माँ का चेहरा सुहाना है लगता शायद यहीं नया दौर है अंग्रेजी पढना शान है हिन्दी से हानि है नयी पीढ़ी यहीं समझती है इसलिये हिन्दी अंग्रेजी गड़बड़ाती नौनिहालों का बुरा हाल है माँ को मॉम कहक पिता को डैड कहकर हिन्दुस्तान का सत्यानाश है शायद यहीं नया दौर है बुजुर्ग वृद्धाश्रम की आन है घर में नवविवाहिता का राज है मर्द भी भूल गया पावन चरणों को जिनकी छाया में में बना विशाल वट है संस्कृति , मूल्यों का ह्रास हो रहा पाश्चात्य रंग सभी पर निखर रहा शायद यही नया दौर है डॉ मधु त्रिवेदी संक्षिप्त परिचय  ————————— . पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी शान्ति निकेतन कालेज आॅफ बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा       प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज                     आगरा यह भी पढ़ें … सपने ये इंतज़ार के लम्हे मकान जल जाता है मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के आपको “नया दौर  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- hindi poem, poetry, hindi poetry

भोले- भक्त

   बचपन में माँ जब देवी – देवताओं की कहानियाँ सुनाया करती थी तो कमरे में दीवार पर जो भोले की तस्वीर टँगी थी उसमें उस भोले- भक्त वीरू की अनायास श्रद्धा  उत्पन्न हो गयी । पैरों से लाचार  भगवान ही उसका सहारा था , जब बड़ा हुआ तो उसके मन में भोले के प्रति एक दृढ़ता घर कर गयी । जब लोगों को काँवर चढाने के लिएजाते देखता तो माँ से अक्सर  प्रश्न रहता है माँ ” ये लोग कहाँ जा रहे है ?  माँ क्या मैं भी जाऊं क्या ? बालमन को समझाना बड़ा मुश्किल होता है । तब माँ केवल एक ही बात कहती ,”बेटा बड़ा होकर ।बड़ा होने पर माँ से अनुमति ले अपनी काँवर उठा  कैलाश मन्दिर की ओर भोले के दर्शन के लिए चल पड़ा ।                       “जय बम-बम भोले , जय बम -बम भोले”का शान्त भाव से नाद किये सड़क पर दण्डवत होता मौन  भाव से चुपचाप चला जा रहा था । सड़क और राह की बाधाएँ उसको डिगा नहीं  पा रही थी , एक असीम भक्ति थी उसके भाव में ।  सावन के महीने में कैलाश का अपना महत्व है भोले बाबा का पवित्रता स्थल है यह भोले भक्त महीने भर निराहार रहता है ।आस्था भी बडी अजीब चीज है भूत सी सवार हो जाती है ,  कहीं से कहीं ले  जाती है ।    ‘       पैरों में बजते घुघरूओं की आवाजें ,काँवरियों का शोरगुल उसकी आस्था में अतिशय वृद्धि करता था । सड़क पर मोटर गाड़ियों और वाहनों की पौ -पौ उसकी एकाग्रता को डिगा न पायें थे । राह के ककड़ पत्थर उसके सम्बल थे ।    सावन मास में राजेश्वर, बल्केश्वर, कैलाश , पृथ्वी नाथ इन चारों की परिक्रमा उसका विशेष ध्येय था । 17 साल के इस युवक में शिव दर्शन की ललक देखते ही बनती थी ।           दृढ़ प्रतिज्ञ यह युवक ने सावन के प्रथम सोमवार उठकर माता के चरणस्पर्श कर उसने जो  कुछ कहा , माता से । उसका आशय समझ माँ ने व्यवधान न बनते हुए “विजयी भव ” का आशीर्वाद दिया और वह चल दिया । साथ में कुछ नहीं था, चलते फिरते राहगीर और फुटपाथ पर बसे रैन बसेरे उसके आश्रय – स्थली थे ।            आकाश में सूर्य अपनी रश्मियों के साथ तेजी से आलोकित हो रहा था जिसकी किरणों से जीव , जगत और धरा प्रकाशित हो रहे थे । इन्हीं धवल चाँदनी किरणों में से एक किरण भोले – भक्त पर पड़ रही थी । दिव्यदृष्टि से आलोकित उसका भाल अनोखी शोभा दे रहा था , रश्मिरथी की किरणों के पड़ने से जो आर्द्रता उसके अंगों पर पड़ रही थी वो ऐसी लग रही थी जैसे नवपातों पर ओंस की बूँदें मोती जैसी चमक रही हो । मगर भक्त इन सब बातों से बेखबर लगातार रोड -साइड दण्डवत् होता हुआ भोले बाबा का नाम लिए चला जा रहा था ।      हर शाम ढलते ही उसे अपने आगोश में ले टेम्परेरी बिस्तर दे देती थी , चाँद की चाँदनश उसका वितान थी आकाश में चमकते तारें पहरेदार थे । सब उसके मार्ग में साथ – साथ थे ।  अन्त में शिव धाम   पहुँच उसने साष्टांग भोले को नमन  किया ।जैसे लगा मन की सारी  मुराद पूरी हो गयी है | सही है भोले के भक्त भी भोले की तरह ही भोले होते हैं |आस्था की शक्ति खींचती जाती है | तब कोई दुनियावी आकर्षण काम नहीं करता हैं | डॉ. मधु त्रिवेदी  यह भी पढ़ें … परिस्थिति सम्मान राम रहीम भीम और अखबार अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “भोले- भक्त “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

कैसे करें शांति व् आध्यात्म की खोज

परिवर्तन संसार का नियम है। जैसे दिन के बाद रात, वैसे ही एक युग के बाद दूसरा युग आता है। इसी परिवर्तन में परमात्मा के आगमन एवं नई दुनियाँ की स्थापना का कार्य भी सम्मिलित है। वर्तमान समय में बदलता परिवेश, गिरती मानवता, मूल्यों का पतन, प्राकृतिक आपदायें, पर्यावरण बदलाव, हिसंक होती मानवीय चेतना, आतंकवाद सभी घटनाऐं बदलाव का संकेत है। आज पूरा विश्व बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में परमात्मा की अनुभूति कर जीवन में मानवीय मूल्यों की धारणा कर नई दुनियाँ, नम परिवेश के निर्माण में भागीदारी निभाना चाहिए। वर्तमान में हम सुख-सुविधा सम्पन्न युग में रह रहे हैं। सब कुछ इंसान की मुट्ठी में है, लेकिन मन की शान्ति का अभाव है। हमारे अंदर का अमन चैन  कहीं खो गया है, वो अंतर्मन का प्यार, विश्वास और शान्ति हमें चाह कर भी नहीं मिल सकती है। चाह तो हर व्यक्ति की है हमें दो पल की शान्ति की अनुभूति हो लेकिन अफसोस कि अन्दर खोखलापन ही है। शान्ति एवं आध्यात्म की खोज- वह शान्ति जिसके लिए हमने मंदिर, मस्जि़द, गुरूद्वारें, गिरजाघर दौड़ लगाई है, फिर भी निराशा ही मिली। इसका कारण है कि हम शान्ति के सागर परमपिता शिव के मूल चक्र हैं, जिसके स्मरण से असीम शान्ति मिलती है। यह शान्ति केवल परमात्मा के सच्चे ज्ञान से ही मिल सकती है। यदि हम उस परमात्मा को नहीं जानेंगें तो कैसे शान्ति प्राप्त होगी, कैसे हमारी जीवन नैया पार लगेगी। इस संसार से हम आत्माओं का कौन ले जायेगा यह जान पाने के लिए परमात्मा को जानने के लिए परमात्मा को जानना आवश्यक है। परमात्मा कौन है- हमारे यहाँ 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा होती है, परन्तु सबका केन्द्र बिन्दु शिव को ही मानते हैं। परमात्मा शिव देवों के भी देव सृष्टि रचियता तथा सृष्टि के सहारक हैं, परमात्मा तीनों लोकों का मालिक त्रिलोकीनाथ, तीनों कालों को जानने वाला त्रिकालदर्शी है। परमात्मा अजन्मा, अभोक्ता, अकर्ता है। ज्ञान, आनन्द, प्रेम, सुख, पवित्रता का सागर है। शान्ति दाता है, जिनका स्वरूप ज्योतिस्वरूप है। पढ़ें –मनसा वाचा कर्मणा – जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल आत्मा व परमात्मा- संसार में प्रत्येक व्यक्ति का कहीं न कहीं कोई रिश्ता होता है। जो जिस प्रकार शरीर को धारण करता है, वो उस शरीर का पिता होता है। इसी तरह परमात्मा-आत्मा का सम्बन्ध पिता-पुत्र का है। जितनी भी संसार में आत्माधारी अथवा शरीरधारी दिख रहे हैं, वे सब परमात्मा निर्मित हैं। इसी कारण हम सभी आत्माओं का परमात्माओं के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसी सम्बन्ध के कारण जब व्यक्ति भौतिक दुनियों में जब चारों तरफ से अशान्त एवं दुखी होता है, तब वह सच्चे दिल से परमात्मा को याद करता है, क्योंकि वही उसका मार्ग प्रदर्शक होता है एवं निस्वार्थ मनुष्यात्माओं को निस्वार्थ प्रेम कराता है। कर्म- इस दुनियाँ का निर्माण ईश्वर करता है, जब व्यक्ति अपने कर्र्मों में निरन्तर तक पहुँच जाता है, तब मनुष्य के रूप में होते हुए भी उसके हाव-भाव, कर्म, सोच सब मनुष्यता के विपरीत हो जाते हैं, एवं दुनियाँ में सर्वश्रेष्ठ प्राणी होते हुए भी ऐसे कर्र्मों को अंजाम देता है, जिसे सिर्फ असुर ही करते हैं। हमारे शास्त्रों में गलत कर्म कर पाश्चात्य की भी बात की गई है, लेकिन हमारे कर्म उससे भी अधिक निम्न स्तर के हो गये हैं। देश और दुनिया में जो भक्तिभाव का भाव बड़ा है, उसमें तम की प्रधानता है। मानव पाप करते-करते इतना बोझिल हो गया है कि मंदिर, मस्जि़द में अपने पाप धोने या स्वार्र्थों की पूर्ति के लिए ही जाता है। इन धार्मिक स्थलों पर मानव अपने लिए जीवनमुक्ति या मुक्ति का आर्शीवाद नही मानता है, बल्कि अनेक प्रकार की मन्नतें मांगता है। सम्बन्धों की निम्नस्तरता इतनी गहरी एवं दूषित हो गयी है कि बाप-बेटी, पिता-पुत्र, भाई-बहन, माँ-बेटे के सम्बन्धों में निम्नतम स्तर की घटनाऐं प्राय: देखने को सुनने को मिलती हैं। सांसारिक प्रवृत्ति- संसार में प्राय: तीन प्रकार के लोग होते हैं, पहले जो विज्ञान को मानते हैं, दूसरे वा जो शास्त्रों को मानते हैं, तीसरे वो जो रूढि़वादी होते हैं। किसी को भी अभास नहीं कि हमारी मंजिल क्या है, विज्ञान ने ही तो विभिन्न अविष्कार कर एट्म बॉम्स बनाये क्या रखने के लिए? ग्लोबल वार्र्मिंग का खतरा बढ़ रहा है। ओजोन परत का क्षय होना। इनकी वजह से विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं एवं रोगों को नियंत्रण मिल रहा है। यह अन्त का ही प्रतीक है, जहाँ शास्त्रों को मानते है उनके अनुसार रिश्तों की गिरती गरिमा, बढ़ती अशान्ति, आपसी मतभेद, अन्याय और भ्रष्टाचार आज स्पष्ट रूप से देखने में आ रहा है। महाभारत में वार्णित गृहयुद्ध तो आज स्पष्ट रूप से दिख रहा है। महाभारत के पात्र जैसे शकुनी आज हर गली के मोड़ पर मिल जायेंगे। धन का दुरूपयोग करने वाले पुत्र मोह में अन्धें माँ-बाप, शास्त्रों का उपदेश मात्र देने वाले और अपने मन के वशीभूत पात्र आज सब मौजूद हैं। ये सब वहीं संकेत है, जो परमात्मा ने अपने आगमन के बताये हैं। जो लोग रूढ़ीवादी हैं, उन्हें ये देखना चाहिए कि हमारा कल्याण कि बात में है, क्या पुरानी मान्यताओं पर चला जा सकता है। जरूरत पडऩे पर उनमें स्वयं की मजबूरी को हवाला देते हुए हेर-फेर तक कर लेते हैं। निष्कर्ष- अत: ये सब बातें विचारणीय हैं, अत: आज समय बदलाव के कगार पर खड़ा है। इन सबका परिवर्तन केवल परमात्मा ही कर सकते हैं, जब भौतिक दुनियाँ में इंसान चारों ओर से दुखी और अशांत हो जाता है। तब वह सच्चे दिल से परमात्मा को याद करता है कि वह उसे सही दिल से मार्ग प्रशस्त करें। . डॉ मधु त्रिवेदी परिचय – डॉ. मधु त्रिवेदी        प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज                     आगरा स्वर्गविभा आन लाइन पत्रिका अटूट बन्धन आफ लाइन पत्रिका होप्स आन लाइन पत्रिका हिलव्यू (जयपुर )सान्ध्य दैनिक (भोपाल ) लोकजंग एवं ट्र टाइम्स दिल्ली आदि अखबारों में रचनायें विभिन्न साइट्स पर ( साहित्यपीडिया, लेखक डॉट काम , झकास डॉट काम , जय विजय आदि) परमानेन्ट लेखिका इसके अतिरिक्त विभिन्न शोध पत्रिकाओं में लेख एवं शोध पत्र आगरा मंच से जुड़ी  यह भी पढ़ें ……… मृत्यु सिखाती है कर्तव्य का पाठ आस्थाएं -तर्क से तय नहीं होती मृत्यु संसार से अपने असली वतन की वापसी यात्रा है आपको लेख  “कैसे … Read more

विघ्न विनाशक

डॉ मधु त्रिवेदी हर विघ्न के विनाशक सारे जहाँ में जोदेवता गणेश जी की इनायत हमें भी है कारज सफल करे अब कोई न चूक होकिरपा बनी रहे ये इजाजत हमें भी है हर वक्त हम संभल कर आगे बढ़े सदाहो जब विषम परिस्थिति राहत हमें भी है वरदान ईश्वर का हमेशा हमें मिलासारी हकीकते ये खिलाफत हमें भी है कोई दुखी न हो न परेशान दीन होदे दे खुशी सभी को नसीहत हमें भी है झगड़े कभी न हो हर मजहब का मान होझण्डा ऊँचा रहेगा हिफाजत हमें भी है चाहे पूजे रहीम या पूजे वो राम कोमकसद सभी का एक अदालत हमें भी है

नदी की धारा

डॉ० मधु त्रिवेदीप्राचार्यशान्ति निकेतन कॉलेज ऑफ बिज़नेसमैनेजमेन्ट एण्ड कम्प्यूटर साइन्स आगरा। जीवन संध्या में दोनों एक दूसरे के लिए नदी की धारा थे |  जब एक बिस्तर में जिन्दगी की सांसे गिनता है तो दूसरा उसको सम्बल प्रदान करता है, जीवन की आस दिलाता है।दोनों जानते थे कि जीवन का अन्त निश्चित है, फिर भी जीवन की चाह दोनों में है। होती भी क्यों न हो, जीवन के आरम्भ से दोनों के लिए एक मित्र, सहपाठी और जीवनसाथी एवं बहुत कुछ थे।           बचपन में एक दूसरे के साथ खेलना, आँख मिचौली खेलना, हाथ में हाथ लेकर दौड़ लगाना आदि खेलों ने जीवन में खूब आनन्द घोला। धूप-छाँव की तरह साथ-साथ समय बिताते थे। माँ चिल्लाती कहाँ गया छोरे! तो रामू चिल्ला जवाब देता था आया माँ! फिर अन्तराल पश्चात माँ ने आकर देखा कि रामू और उसकी बालिका सहचारी सीतू आम की बड़ी डाली पर बैठे-बैठे आम खाते-खाते बतिया रहे हैं, फुदकते हुए नज़र आते हैं।                   स्कूली दिनों में बस्ता लादकर दोनों भाग रहे होते थे। सीतू जब भागते हुए थक जाती थी तो रामू उसका बस्ता ले हाथ पकड़ उसे अपने साथ दौड़ा रहा होता था। तभी से सीतू के लिए वह जीवन साथी, पति परमेश्वर सब कुछ था। एकबार सीतू ने रोते हुए कहा-हाथ पकड़कर जो तुम स्कूल ले जाते हो, इसे ऐसे ही पकड़े रहना कह कर सीतू राम की छाती से लिपट उसके कपोल पर चुम्बन लेती लिपट भावविभोर हो गयी। रामू के गम्भीर चेहरे पर बस एक स्वीकारोक्ति होती थी। होती भी क्यों न रामू प्यार करने लगा था। उसे अपनी अर्द्धागिंनी मानने लगा था।जवानी उनमे घर करने लगी थी।                     तो जमाने की दीवार बीच में थी, समाज में स्वीकार न था उसका रिश्ता पर जहाँ चाह होती है वहाँ राह होती है। दोनों ने भागकर ब्याह किया और घर छोड़ दिया।  उतार-चढ़ाव आए मगर दोनों ने एक-दूसरे का हाथ कसकर जो पकड़ रखा था। रामू दिन भर मालिक के यहाँ रहता वहीं खाता बना हिसाब लगाता था तो सीतू घर का सारा काम करती थी,शाम घर के चौक पर बैठी रामू के आने की राह तका करती थी, कितना स्नेह था उसके तकने में जो आज भी दोनों को स्थिर रूप से बाँधे था।               आज जब रामू निसहाय बिस्तर में था, याद कर रहा है सीतू उसके पास समीप बैठी उसको अपने आँचल का सम्बल प्रदान कर रही है और रामू एक टक लेटा जैसा आकाश के तारे गिन रहा हो। शरीर साथ नहीं दे रहा था, साँसे उखड़ रही थी, देखते-देखते कुछ भी शेष न रहेगा। ऐसा लग रहा था सीतू को। सीतू के पास अब और कोई जीवन जीने का सहारा न था केवल रामू के। अतः सीतू यह सोचकर की रामू  ठीक हो जाए हर सम्भव प्रयास कर रही थी, नीम हकीम से लेकर डॉक्टर्स के घर तक दस्तक दे, मन्दिर, मस्ज़िदों में माथा टेक आयी थी, संसार भी कितना निष्ठुर है। एक के रूठने पर दूसरा स्वयं रूठ जाता है, लेकिन सीतू की निष्ठा पति परायणता एवं पत्नी धर्म ने इस निष्ठुरता पर विजय पा ली थी।             सीतू और रामू  एक नदी के किनारे थे फिर से एक दूसरे के साथ थे। सीतू को एक स्त्रियोंचित्त लक्षण प्रदान करने की कोशिश थी, माँ कहती थी खाना अच्छा बनाना पड़ोसी ज़मीदार और उनका बेटा तेरा रिश्ता जोड़ने आने को हैं। साड़ी उल्टे पल्ले की पहन खाना अच्छा खिलाना। सीतू को ये बातें माँ की एक कटोक्ति मात्र लगती थी। रामू जो उसका हो चुका था। प्रेम भी अजीब चीज है वह रामू  की चुम्बनें लेती ऐसी प्रेम डोर में बंधी चली जा रही थी। जिसका कोई छोर न था।                            सीतू और रामू आलिंगनबद्ध थे ।एक दूसरे का स्पर्श करते हुए भावविह्वल है। देखकर ऐसा लगता था मानो खुदा ने प्रेम को इन्हीं दोनों के रूप में जीवित रखा है। कृष्ण की गीता और मैं भूमिका  गुमनाम

बाँध लेता प्यार सबको देश से

डॉ मधु त्रिवेदी बाँध लेता प्यार सबको देश से              द्वेष से तो जंग का आसार है लांघ सीमा भंग करते शांति जो              नफरतों से वो जले अंगार है होड़ ताकत को दिखाने की मची               इसलिये ही पास सब हथियार है सोच तुझको जब खुदा ने क्यों गढ़ा                पास उसके खास ही औजार है जिन्दगी तेरी महक  ऐसे गयी                 जो तराशे इस जहाँ किरदार है शाम होते लौट घर को आ चला                  बस यहाँ पर साथ ही में सार है हे मधुप बहला मुझे तू रोज यूँ                   इस कली पर जो मुहब्बत हार है संक्षिप्त परिचय————————— . पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफबिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस आगरा प्राचार्या,पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  मधु त्रिवेदी के अन्य लेख  बस्ते के बोझ तले दबता बचपन बहू बेटी की तरह होती है , कथनी सत्य है या असत्य अंधेर नगरी चौपट राजा बाल परिताक्त्या

डॉ मधु त्रिवेदी की पांच कवितायें

मैं व्यापारी हूँ  झूठ फरेब झोले में रखतासच सच बातें बोलतासत्य हिंसा को मैं रोदतासाँच में आँच लगातामैं व्यापारी हूँ संस्कृति हरण का पापीगर्त की ओर ले जातामिथ्या भाषण करता हूँचार छ:रोज सटकातामैं व्यापारी हूँ अशुद्ध परिहास करता हूँनकली बेकार कहता हूँसच्चाई का गला घोटता हूँसाफ साफ हिसाब देता हूँबेजोड हेर फेर करता हूँसदा असत्य कहता हूँमैं व्यापारी हूँ हाँ जीयहाँ मैं बेचता हूँआप भी खरीद लोफ्री में बिकती है झूठ मक्कारीवादों की नहीँ कीमत है यहाँरोज हजार दम तोड़ते यहाँवादा मेरा मैं साथ दूँगानिर्लज्जता सीखा दूँगामैं व्यापारी हूँ हर जगह जगह मेराबोलबाला हैजनमन कैसा बेचारा हैटेडेमेडे लोग सबल हैअन्न जल से निर्बल हैलाज शर्म रोती हैबेशर्मी पनपती हैमैं व्यापारी हूँ बेशर्मी का नंग नाच करतादुर्जनों पर रोज हाथ साफ करताहत्या , रेप , लूटपाट , डकैतीयहीं सब मेरे आचार हैमैं व्यापारी हूँ 1………. हे माँ सीते !दीवाली पर आ जानाहे माँ सीते ! विनती है मेरीघर दीवाली पर आ जानाराम लखन बजरंगी सहितजन – जन के उर बस जाना हे माँ सीते ! मेरा हर धामचरणों में तेरे रोज बसता हैदीवाली की यह जगमगाहटतेरे ही तेज से मिलती है माँ सीते ! आकर उर मेरेप्यार फुलझड़ी जला जानाहर जन को रोशन करकेअँधेरा दिल का मिटा जाना हे मा सीते! आशीष अपनादुष्ट जनों पर बरसा जानाबन कर दीप चाहतों का तुमनवयौवन का अंकुर फूटा जाना हे माँ सीते ! दिलो में आकरलोगों को सब्र का पाठ पढ़ानाजैसे तुम बसी हो उर राम केवैसे प्रिय प्रेम का दीप जला जाना हे माँ ! लक्ष्मण प्रिय भक्त तेरेभाव हर भाई में यह जगानान हो बँटवारा भाई -भाई मेंदीप वह जला माँ तुम जाना हे माँ सीते! खील खिलोने कीहर गरीब जनों पर बारिशें होहृदय में मधु मिठास को घोलशब्द शब्द को मधु बना जाना दीप जलते अनगिनत दीवाली परराकेट जैसे जाता है दूर गगन तकजाति-पाति धर्म की खाई को पाटसबके हृदय विशाल बना जाना 2………………… लाज अपने देश की सबको बचाना है लाज अपने देश की सबको बचाना हैदुश्मनों के आज मिल छक्के छुड़ाना है बार हर मिल कर मनाते प्रव गणतंत्र काइसलिये अब प्रतिज्ञा हमको कराना है याद वीरों की दिला कर के यहीं गाथामान भारत भूमि का अब बढ़ाना है कोन जाने यह कि आहुति कितनी दी हमनेयाद वो सारी हमें ही तो दिलाना है माँग उजड़ी पत्नियों की ही यहाँ पर क्योंबात बच्चों को यही समझा बताना है खो दिये है लाल अपने तब यहाँ पर जोफिर पुरानी आपसे दुहरा जताना है आबरू माँ की बचाने के लिए हम अबगर पडे़ मौका शीश अपना भी कटाना है 3………… जाया भारतभूमि ने दो लालों कोवो गाँधी और लाल बहादुर कहलायेबन अलौकिक अनुपम विभूतिभारत और विश्व की शान कहलाये दो अक्टूबर का यह शुभ दिन आयाविश्व इतिहास में पावन दिवस कहलायाराष्टपिता बन गाँधी ने खूब नाम कमायालाल ने विश्व में भारत को जनवाया सत्य अहिंसा के गाँधी थे पुजारीजनमन के थे गांधी शांति दातादीन हीनों के थे गाँधी भाग्य विधाताबिना तीर के थे गाँधी अस्त्रशस्त्र चल के गाँधी ने साँची राह परदेश के निज गौरव का मान बढायादो हजार सात वर्ष को अन्तर्राष्टीयअहिंसा दिवस के रूप में मनवाया शांति चुप रहना ही उनका हथियार थाभटकी जनता को राह दिखाना संस्कार थाबन बच्चों के बापू उनके प्यारे थेतो मेरे जैसों की आँखों के तारे थे लालबहादुर गांधी डग से डगमिलाकर चला करते थेएक नहीं हजारों को साथ ले चलते थेराह दिखाते हुए फिरंगियों को दूर करते फिरंगी भी भास गये इस बात कोअन्याय अनीति नही अब चलने वालाअब तो छोड़ जाना होगा ही करहवाले देश गाँधी जी को ही गाँधी जी नहीं है आज हमारे बीचफिर हम रोज कुचल देते है उनकीआत्मा और कहलाते है नीचआत्मा है केवल किताबों में बन्द अपना कर गाँधी बहादुर का आदर्शहम देश को बचा सकते हैघात लगाये गिद्ध कौऔं से लुटनेसे हमेशा बचा सकते है 4…….. शहर के मुख्य चौराहे परठीक फुटपाथ परले ढकेल वह रोजखड़ा होता थालोगो को अपनी बारीका इन्तजार रहताजब कभी गुजरना होताघर से बाहरमैं भी नहीं भूलतीखाना पानी पूरीबस पानी पूरीखाते खातेआत्मीयता सी होगई थी मुझेजब कभी मेराजाना होतातो वह भी कहने सेना चूकता थाआज बहुत दिन बाद—– वक्त बीतता गयाजीवन का क्रम चलता रहाअनायास एक दिन वहफेक्चर का शिकारहो गयातदन्तर अस्पताल मेंसुविधाएं भी पैसे वालों केलिए होती है ———पर वो बेचाराजैसे तैसे ठीक हुआबीमारी ने आ घेराएक दिन बस शून्य मेंदेखते ही देखतेकाल कवलितहो गयाफिर बस केवलसंवेदनाएं ही संवेदनाबस स़बेदनाबची सबकी जीवन का करूणांततदन्तरआत्मनिर्भर परिवारिक जनों कीदो रोज की रोटी नेएक गहरी चिंतन रेखाखींच दी पर मैं और मेरीआत्मीयता बाकी हैआज भीक्योंकि व्यक्ति जाता हैजहां सेउसकी नेकी लगावआसक्ति रह जाती हैबाकीपर वक्त छीन देता हैउसे भीऔर घावों को भर देता है

स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग – 4 ) -स्त्री देह को अंधाधुंध प्रदर्शित कर नये -नये “प्रोडक्ट” बनाने की मुहिम

डॉ. मधु त्रिवेदी      क्रिएटिव ऐश-ट्रे को वेबसाईट पर पेश कर नया तरीका सर्च किया महिलाओं की भावनाओं से छेड़छाड़ करने का आॅन लाइन शापिंग कम्पनी अमेजन ने ।            “ट्राईपोलर क्रिएटिव ऐश-ट्रे’            इस उत्पाद    को ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी अमेजन ने बिक्री के उद्देश्य से अपनी वेबसाइट पर पेश किया था. विरोध करने का मुख्य आधार यह है कि इस कम्पनी ने उत्पाद के प्रस्तुतीकरण द्वारा मर्यादा की सारी सीमा लांघ दी ।        ‘क्रिएटिविटी ‘ शब्द का गलत प्रयोग करते हुए अमेजन ने अश्लील एवं घिनोनी मानसिकता का परिचय दिया है ।           अमेजन के इस उत्पाद को देख महिला वर्ग का टिप्पणी करना स्वभाविक ही नहीं बल्कि अधिकार था । इस तरह की छवि को प्रस्तुत करना महिलाओं के प्रति अत्याचार ,  हिंसा एवं बलात्कार     जैसी प्रवृतियों को उकसाना एवं बढ़ावा देना नहीं है तो और क्या है?             हर घंटे बलात्कार होते हैं, सिर्फ बलात्कार नहीं होते, बाॅडी की चीरा फाड़ी होती है लड़कियों के शरीर की फजीहत की जाती है स्तन काटे जाते हैं  वेजाइना में कांच, लोहे की रॉड, कंकड़ पत्थर के टुकड़े, शराब की टूटी बोतलें घोंप  मारने के बाद जला देते हैं चेहरा को  ताकि कोई पहचान न सके । क्या उस देश का बाजार आपको मानसिक संतुष्टि दे सकता है ?          क्या गंदी पुरूष मानसिकता की शिकार सोनी सोरी या दिल्ली गैंगरेप के दौरान पीड़िता के शरीर में रॉड घुसाया गया  उसे भूल सकते है । यह सब अपराध है  एक औरत के प्रति समाज की सोच साफ दिख रही है ।          स्त्री देह को अंधाधुंध प्रदर्शित कर नये -नये  “प्रोडक्ट” बनाने की मुहिम तेज हो गयी है।                 “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का “गलत प्रयोग हो रहा है स्वतंत्रता का अर्थ यह कदापि नहीं कि  पूंजी बनाने के लिए अपने माल की ज्यादा से ज्यादा बिक्री के लिए नग्नता, अश्लीलता का प्रदर्शन किया जाए  । प्राय : यहीं देखने में आता है कि विज्ञापनों में जिस तरह से नारी देह का प्रदर्शन हो रहा है, उसमें आधुनिकता व फैशन के नाम पर देह पर कपड़ों की मात्रा घटती जा रही हैजो भावी संस्कृति के लिए अच्छे संकेत नहीं  ।       अतः आवश्यकता सोच को बदलने की है ।  औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता पूंजीवाद अपने इस्तेमाल के लिए ।  चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।यह सोच ठीक नहीं है ।       औरतों का मनचाहा इस्तेमाल करता है पूंजीवाद अपने लाभ के लिए ।   चाहे उसे घर में रखना हो या रैम्प पर चलना वह सिर्फ ‘कार्य करने’ के लिए होती है, जैसा उसे कहा जाता है या उसे दिखाया जाता है. सोचना और निर्णय लेना औरतों का नहीं, पुरुषों का कार्य है. क्योंकि विश्व की लगभग समस्त पूँजी उन्हीं के पास है।      लड़कों का हर गुनाह माफ होता है  लड़कियां जैसे-जैसे आगे बढ़ रही हैं पुरुष प्रधान समाज उसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है इसलिए उनके खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी कर उन्हें पुन: चाहरदिवारी के अंदर ढकेलने की कोशिश में जुटा हुआ है।  हमारा समाज आज भी लड़कों का हर गुनाह माफ करता है और लड़कियों को लड़कों के द्वारा किये गए कुकर्म का भी सजा देता है।                मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बलात्कार की अधिकांश घटनाओं में बलात्कारी का मुख्य उद्देश्य यौनेच्छा की पूर्ति नहीं बल्कि स्त्री का अपमान करना और उसे शारीरिक व मानसिक कष्ट देना होता है। असभ्य और राक्षसी-प्रवृत्ति के पुरुषों को एक ही बात समझ में आती है कि किसी का अपमान करने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि उसकी इज़्ज़त को मिट्टी में मिला दिया जाए। और समाज व सिनेमा से इन हैवानों ने यही सीखा होता है ।              महिलाओं को भी आत्मसंयम के साथ अपने आत्मविश्वास   को बनाए रखते हुए हिंसक समाज का विरोध करना चाहिए।इस दिशा में सरकार व निजी संस्थाओं ने महिलाओं को इन हिंसक प्रवृत्तियों से लड़ने के लिए बहुत से प्रशिक्षण केन्द्र खोल रखे हैं साथ ही वे कई जगह जाकर अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों की शिकायत भी दर्ज करा सकती हैं।           असल में महिलाओं पर हिंसा को रोकने के लिए खुद समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पहल करनी पढ़ेगी।  डॉ. मधु त्रिवेदी  संक्षिप्त परिचय  ————————— .  पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी  पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ  बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर  साइंस आगरा  प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  उप संपादक   “मौसम ” पत्रिका में ☞☜☞☜☞☜☞☜☞☜☞☜