आत्मसम्मान (लघुकथा)

‘तो क्या हो गया बेचारी विधवा है खुश हो जाएगी |’ ये शब्द जैसे ही सोनम के कानो में पढ़े सहसा उसके कदम रूक गये दरअसल उसकी भाभी उसके भाई द्वारा उसे दिए गये उपहार की उलाहना दे रही थी | अभी कुछ तीन साल पहले ही सोनम का विवाह सार्थक से हुआ था | घर परिवार सब अच्छा था और ससुराल, ससुराल कम बल्कि मायका ज़्यादा लगता था वो अपने ससुराल में रानी की तरह रहती थी | सार्थक उसे हमेशा अपनी पैत्रक सम्पत्ति  के बारे में बताता रहता था और कहता था हमे किसी पर भी ज़रुरत से ज्यादा भरोसा नही करना चाहिए वो चाहता था की सोनम को भी उसकी सम्पत्ति की जानकारी रहे | लेकिन ये बात जब भी वो शुरू करता सोनम कहती क्या जरूरत है मुझे ये सब जानने की आप तो हमेशा मेरे साथ रहेंगे इस पर सार्थक कहता समय का कोई भरोसा नही है चाहे पति हो या पत्नी उन्हें एक दुसरे के बारे में हर एक बात पता होनी चाहिए| जिससे की कभी एक को कुछ हो जाऐ तो दुसरे को दुःख के दिन न देखना पडे तुम तो पढ़ी लिखी हो सब समझ भी सकती हो | लेकिन सोनम उसकी बातों पर ध्यान नही देती | मगर हुआ वही जिसका डर था सार्थक को एक गंभीर बिमारी हो गयी …..उसने बिमारी के दौरान ही सोनम को सम्पत्ति के विषय में सब कुछ बता दिया था| पति की मृत्यु के बाद उसका बड़ा भाई उसे ये कहकर अपने घर ले आया था की तू मेरी बहन नही बल्कि बेटी है लेकिन आज उसकी ये बेटी उसके लिए बेचारी विधवा बनकर रह गयी थी| उसका भाई ही उसकी सारी धन सम्पत्ति का लेखा जोखा रखता था और उससे अपने और अपने परिवार के शौक भी पूरे कर लेता था | जिस पर सोनम ने  कभी आपत्ति नही जताई |  लेकिन भाई की ऐसी बात सुनकर सोनम को बहुत ग्लानी हुई और उसके आत्म सम्मान को गहरा आघात लगा उसे अपना आने वाला भविष्य अनिश्चित और दुखद लगने लगा क्योंकि वो केवल एक विधवा ही नही थी बल्कि एक बच्ची की माँ भी थी उसे अफ़सोस हो रहा था की … उसे आंखे बंद करके विश्वास नही करना चाहिए था |  उस रात वो सो नही पायी सार्थक के शब्द उसके कानो में गूंजते रहे | दूसरे दिन उसने अपनी  सम्पत्ति की कमान खुद सम्भालने का निर्णय अपने भाई को सुना दिया और सामान समेटकर अपने घर चली आई | पंकज ‘प्रखर’ कोटा ,राज. पंकज कुमार शर्मा “प्रखर”  (साहित्य भूषण सम्मानोपाधि से विभूषित)  लेखक ,लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तंभकार  सम्पर्क:- 8824851984 E-mail: pankajprakhar984@gmail.com  Blog: pankajprakhar.blogspot.in *कोटा (राज.)* यह भी पढ़ें …. परिवार इंसानियत अपनी अपनी आस बदचलन आपको आपको    “आत्मसम्मान (लघुकथा)“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: short stories , very short stories, self respect, 

पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नही

वर्तमान मनुष्य पैसे के लिए पागल हुआ घूम रहा है| जिसे देखो अधिक से अधिक पैसा कमाकर अमीर बनने और अपने जीवन को अधिक सुविधायुक्त बनाने की धमाल चौकड़ी में लगा हुआ है | ये प्रवृत्ति आज के युवाओं की मानसिकता का एक हिस्सा है और हो भी क्यों न क्योंकि हम उन्हें बचपन से ही ये सिखाते है बेटा अच्छा पड़ेगा तो अच्छी नौकरी लगेगी ,अच्छी नौकरी लगेगी तो अच्छा पैसा मिलेगा, अच्छा पैसा मिलेगा तो जीवन में अच्छी सुविधाएं आएँगी, बस फिर तो लाइफ सेट है| ये पाठ आज के हर माता पिता अपने बच्चे को पढ़ाने में लगे है | माता-पिता वो सब काम अपने बच्चों से करवाना चाहते है जिन्हें करने में वे स्वयं असफल रहे है |  महाभारत की एक घटना याद आती है |एक दिन धृतराष्ट बहुत दुखी बैठा था क्योंकि दुर्योधन ने भरी सभा में साफ़ कह दिया था की वो सुई की नोक के बराबर की भूमि भी पांडवों को नही देगा तब विदुर ने धृतराष्ट से पूछा भैया पांडव और कौरव एक ही वंश के है ,उनके गुरु भी एक ही है जिनसे उन्होंने शिक्षा पायी है और हम भरतवंशियों ने उनमे बिना भेदभाव किये दोनो को ही समान स्नेह और प्रेम दिया है फिर भी पांडव इतने विनम्र और सदाचारी जबकि दुर्योधन इतना अहंकारी और क्रोधी है| ऐसा क्यों है तब धृतराष्ट ने जो उत्तर दिया वास्तव में वो बहुत महत्वपूर्ण है |उसने कहा दुर्योधन मेरी महत्वाकांक्षाओं का प्रतिबिम्ब है जो मैं अपने जीवन में हांसिल नही कर पाया वो मै हमेशा दुर्योधन से प्राप्त करवाना चाहता था |मैंने उसे अपनी अपूर्ण महत्वाकांक्षाओं का विष पिला–पिला कर पाला है | आज के माता-पिता की स्थिति भी ये ही है | मनुष्य धन संगृह के लिए रोज़ नई-नई तिकड़म लगाता रहता है| जिसमे उसके जीवन का एक बढ़ा भाग खो जाता है| पैसे के लिए वो अपने परिवार और रिश्तेदारों से कटता चला जाता है| उसे मालुम ही नही पढता की समय कैसे निकल गया जब उसे होश आता है तब तक उसके अपने उसके लिए अपनापन खो चुके होते है | इसका मतलब ये बिलकुल भी नही है की पैसे का संगृह नही किया जाए| पैसे का संगृह किया जाना चाहिए लेकिन ज़रुरत से ज्यादा किसी भी वस्तु का संगृह दुखदायी ही होता है| एक समय था जब एक कमाता था और दस खाते थे मोटा कपड़ा पहनते थे और सब बड़े ही प्रेमभाव से जीवन जीते थे| हाँ घर में सुविधाओं की वस्तुं का आभाव था | लेकिन मानसिक शांति थी छिनझपट जैसी मानसिकता के कुछ ही उदाहरण मिलते थे| पिता के बाद परिवार में बढ़े भाई को बाप के समान दर्जा दिया जाता था और भाभी मां की भूमिका अदा करती थी| मां भूखी सो जाती थी लेकिन अपने बच्चों को रोटी खिलाती थी| विपत्ति के समय में पिता बेटे के कंधे पर हाथ रखता और कहता की सब ठीक जो जायेगा लोग एक दुसरे से जुढ़े हुए थे| हाँ पैसा तो इतना नही होता था लेकिन जीवन आसानी से एवं शांति से बसर हो जाता था | पैसे से ही परिवार और व्यक्ति सुखी हो सकता है यह सत्य नही है | इस संसार में ऐसे अनेक मनुष्य थे जिनकी जेब में एक पैसा नहीं था या कहें जिनकी जेब ही नहीं थी, फिर भी वे धनवान थे और इतने बड़े धनवान कि उनकी समता दूसरा कोई नहीं कर सकता। वैसे भी जिसका शरीर स्वस्थ है, हृदय उदार है और मन पवित्र है, यथार्थ में वही बड़ा धनवान है। स्वस्थ शरीर चाँदी से कीमती है, उदार हृदय सोने से मूल्यवान है और पवित्र मन की कीमत रत्नों से अधिक है। जिसके पास पैसा नहीं, वह गरीब कहा जायगा, परन्तु जिसके पास केवल पैसा है, वह उससे भी अधिक कंगाल है। क्या आप सद्बुद्धि और सद्गुण को धन नहीं मानते? अष्टावक्र आठ जगह से टेड़े थे और गरीब थे, पर जब जनक की सभा में जाकर अपने गुणों का परिचय दिया तो राजा उनका शिष्य हो गया। द्रोणाचार्य जब धृतराष्ट्र के राज दरबार में पहुँचे, तो उनके शरीर पर कपड़े भी न थे, पर उनके गुणों ने उन्हें राजकुमारों के गुरु का सम्मान पूर्ण पद दिलाया। हम कह सकते है कि यदि व्यक्ति पैसे कि हाय को छोड़कर अपने जीवन को सादगी एवं सरलता से जीये तो वो जीवन को मानसिक शांति के साथ ढंग से जी सकता है जिसका आज चहुंओर आभाव दिखाई देता है सारे मत पंथ, धर्म शास्त्र ये कहते नही थकते की जीवन में कितना भी धन, सम्पत्ति, पुत्र, परिवार इकट्ठा कर लो लेकिन एक दिन खाली हाथ ही जाना पढ़ता है तो क्यों न मैं धन संगृह की बेकार मजदूरी से दूर होकर ऐसा काम करूं जिसका फल और यश में अपने साथ ले जा सकूं | एक बार सोचियेगा ज़रूर………………………. पंकज ‘प्रखर’ कोटा राज. यह भी पढ़ें …………….. घुटन से संघर्ष की ओर धन उपार्जन और आपका विवेक खराब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पोजिटिव सफल व्यक्ति – आखिर क्या है इनमें ख़ास

घुटन से संघर्ष की ओर

पंकज ‘प्रखर  सरला अब उठ खड़ी हुई थी ये विवाह उसके माता-पिता और गर्वित के माता-पिता की ख़ुशी से हुआ था| लेकिन न जाने क्यों गर्वित उससे दुरी बनाये रखता था न जाने उसे स्त्री में किस सौन्दर्य की तलाश थी ये सोचकर उसके माथे पर दुःख की लकीरें उभर आई | पति का उसके प्रति यह व्यवहार, ताने, व्यंग्य, कटूक्तियों की मर्मपीड़क बौछार सुनते- सुनते उसका अस्तित्व छलनी हो गया था। यदि उसके पास वासनाओं को भड़काने वाली रूप राशि नहीं हैं, तो इसमें उसका क्या दोष है? गुणों के अभिवर्द्धन में तो वह बचपन से प्रयत्नशील रही है। बेचैनी से उसके कदम कमरे की दीवारों का फासला तय करने लगे। पढ़िए – अनावृत आज निर्णय की घड़ी है। निर्णय की घड़ी क्या-निर्णय हो चुका। पति साफ कह चुके, “मैं तुमको अपने साथ नहीं रख सकता।” उनकी दृष्टि ने शरीर के अलावा और कुछ कहाँ देखा? यदि देख पाते तो … काश…..! बेचैनीपूर्वक टहलते-टहलते पलंग पर बैठ गयी। अचानक उसने घड़ी की ओर देखा, शाम के 5-15 हो चुके। अब तो वे आने वाले होंगे। पढ़िए – जीवन तभी दरवाजे पर बूटों की खड़खड़ाहट सुनाई दी। शायद…….मन में कुछ कौंधा। अपने को स्वस्थ-सामान्य दिखाने की कोशिश करने लगी। थोड़ी देर में सूटेड-बूटेड, ऊँचे, गठीले शरीर के एक नवयुवक ने प्रवेश किया। उसके मुखमण्डल पर पुरुष होने का गर्व था। एक उचटती-सी नजर उस पर डालकर वह कुर्सी पर बैठा व प्रश्न दाग बैठा-”हाँ तो क्या फैसला किया तुमने?” घुटन या संघर्ष में से वह पहले ही संघर्ष चुन चुकी थी। पति का निर्णय अटल था, अतः उसने बन्धनों से मुक्ति पा ली|  यह भी पढ़ें … अम्माँ परदे के पीछे अपनी – अपनी आस बदचलन

ख़राब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पॉजिटिव

अपने बच्चों पर BEST  RESULT का दवाब न डालें  पंकज“प्रखर” कोटा(राजस्थान) माता-पिता अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं और अपने स्नेह एवं मार्गदर्शन से उनमे आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें और उन्हें आश्वस्त करें की अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नही भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं की एक असफलता हमारा जीवम समाप्त नही करती बल्कि जीवन जीने के और भी नये व अच्छे रास्ते खोल देती है | परीक्षाओं का परिणाम निकलने का मौसम है और इन दिनों ज्यादातर विद्यार्थी सफलता और अफलता  या इच्छानुरूप अंक प्राप्त होंगे या नही होंगे इसी प्रकार के विचारों के बीच अपनी आशा रुपी नौकामें गोते खारहे होंगे | ऐसे समय में आवश्यकता है की माता-पिता अपने बच्चों को नकारात्मक विचारों से बचाएं औरअपने स्नेह एवं मार्गदर्शनसे उनमे आत्मविश्वास का दीपक प्रज्वलित करें और उन्हें आश्वस्त करें की अगर वे अपनी इच्छानुसार सफलता नही भी प्राप्त कर पाए या पूरी तरह असफल हो गये तब भी उनके पास अपनी योग्यता सिद्ध करने के कई अवसर आने वाले समय में उपलब्ध होंगे उन्हें विश्वास दिलाएं की एक असफलता हमारा जीवम समाप्त नही करती बल्कि जीवन जीने के और भी कई सारे नये व अच्छे रास्ते खोल देती है | ऐसे समय में माता-पिता का ये कर्तव्य हो जाता है की वो अपने युवा हो रहे बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करें उनकी चेष्टाओं को समझने का प्रयत्न करें उनके मित्र बने | आजके माता-पिता की ये शिकायत होती है की बच्चा उनकी नही सुनता अपनी मनमानी करता है ये आज की पीढ़ी की प्रमुख समस्या है ,युवा हो रहे बच्चे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहतेहै| यदि आप चाहते है की आपके बच्चे आप के अनुसार अपने जीवन को एक सांचे में ढाले और जीवन को श्रेष्ट मार्ग पर लेकर जाए तो उसके लिए ये आवश्यक हो जाता है की आप उन्हें वो सब करने दें जो वो चाहते है ,जी हाँ शायद आप को ये शब्द आश्चर्य में डाल दे परन्तु ये सत्य है आप जिन चीज़ों के लिए उन्हें रोकेंगे उनका मन उसी चीज़ की और अकारण ही आकर्षित होगा |चाहे तो ये प्रयोग माता-पिता स्वय अपने साथ करके देख सकते है|लेकिन हाँ इसका मतलब ये भी नही है की बच्चे को हानि होती रहे और आप देखते रहें | इसका एक सीधा सरल सा उपाय ये है की आप उन्हें कार्य करने से रोके नही बल्कि उससे होने वाली हानियों से उन्हें अवगत करायें | उन्हें समझाएं की ये करने से तुम्हे ये हानि होगी और नही करने से ये लाभ, और उसके द्वारा की गयी गलती के लिए उसे कोसते ना रहे बल्कि उसे आने वाले अवसरों के लिए सचेत करें | इस प्रयोग से दो लाभ है पहला तो ये की बच्चे को आपकी सोच पर विश्वास बड़ेगा और बच्चा भावनात्मक रूप से आप से और अधिकजुड़ जाएगा की जो बात आपने उसे बताई थी वो सही थी यदि वो आपकी बात मान लेता तो उसे लाभ होता दूसरा लाभ ये होगा की बच्चे को काम करके जो अच्छा या बुरा अनुभव हुआ है वो उसे सदेव याद रखेगा अच्छे लाभ उसकी योग्यत प्रदर्शित करेंगे उसके आत्मविश्वास को बढ़ायेंगेऔर बुरे अनुभव उसको कुछ सिखाकर जायेंगे |युवा हो रहे बच्चों के आप मार्गदर्शक बनिए नकी उनपर हुकुम चलाने वाले तानाशाह नही क्युकी बच्चे के मनोभाव कोमल होते है माता पिता कीडांट- फटकार और कडवी बातें बच्चे को मानसिक हानि पहुंचती है |माता-पिता को इससे बचना चाहिए| लेकिन आज के माता-पिता यहीं चुक जाते है बच्चे के परसेंट उनकी आकांक्षा के अनुरूप नही हुए या बच्चा असफल हो गया तो बस घर का माहौल ही बिगड़ जाता है याद रहे डॉक्टर हमेशा रोग पर प्रहार करता है रोगी पर नही | यदि बच्चा समझाने पर भी आपकी बात नही मानरहा है तो इसके दोषी बच्चे नही बल्कि आप स्वयं है यदि आपने शुरू से उन्हें अनावश्यक छूट न दी होती और उसमे संस्कारों का सिंचन किया होता तो आज ये परिस्थितियाँ नही होती अपनी कमी का ठीकरा हमे बच्चों पर नही फोड़ना चाहिए | आज हम सभी अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, सी.ए.और न जाने, क्या-क्या तो बनाना चाहते हैं, पर उन्हें चरित्रवान, संस्कारवान बनाना भूल जाते हैं। यदि इस ओर ध्यान दिया जाए, तो विकृत सोच वाली अन्य समस्याओं से आसानी से बचा जा सकेगा। आज के बच्चे अधिक रूखे स्वभाव के हो गए हैं। वह किसी से घुलते-मिलते नहीं। इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग के इस युग में रोजमर्रा की जिंदगी में आमने-सामने के लोगों से रिश्ते जोड़ने की अहमियत कम हो गई है। बच्चा माता-पिता के पास बैठने की जगह कंप्यूटर पर गेम खेलनाअधिक पसंद करता है | इसके लिए आवश्यक है की बच्चे के साथ भावनात्मक स्तर पर जुडेंउसे पर्याप्त समय दें उसकी बात भी सुने और उपयुक्त सलाह दें उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियों के लिए उसे सराहें तो निश्चित रूप से बच्चा आप को भी समय देगा और आपकी बात सुनेगा और समझेगा |  रिलेटेड पोस्ट ………. बच्चों की बाल सुलभ भावनाएं – माता – पिता धैर्य के साथ आनंद लें बस्तों के बोझ तले दबता बचपन किशोर बच्चे बढती जिम्मेदारियां आज बच्चों को संस्कार कौन दे रहा है माँ दादी या टीवी बदलता बचपन

सफल व्यक्ति ~आखिर क्या है इनमें ख़ास

पंकज प्रखर  मानव ईश्वर की अनमोल कृति है लेकिन मानव का सम्पूर्ण जीवन पुरुषार्थ के इर्दगिर्द ही रचा बसा हैगीता जैसे महान ग्रन्थ में भी श्री कृष्ण ने मानव के कर्म और पुरुषार्थ पर बल दिया है रामायण में भी आता है “कर्म प्रधान विश्व रची राखा “ अर्थात बिना पुरुषार्थ के मानव जीवन की कल्पना तक नही की जा सकती इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पढ़े है जो पुरुषार्थ के महत्व को प्रमाणित करते है हम इतिहास टटोलकर देखें तो ईसा मसीह,सुकरात, अब्राहम लिंकन,कालमार्क्स ,नूरजहाँ,सिकंदर आदि ऐसे कई उदाहरण इतिहास में विद्यमान है जिन्होंने अपने निजी जीवन में बहुत से दुःख और तकलीफें झेली इनके जीवन में जितने दुःख और परेशानियां आई इन्होने उतनी ही मजबूती के साथ उनका मुकाबला करते हुए न केवल एक या दो बार बल्कि जीवन में अनेको बार उनका डटकर मुकाबले किया और अपने प्रबल पुरुषार्थ से उन समस्याओं और दुखों को परास्त करते हुए इतिहास में अपना एक सम्माननीय स्थान बना लिया | सिकंदर फिलिप का पुत्र था कहा जाता है की सिकंदर की माँ अपने प्रेमी के प्रणय जाल में इतनी अंधी थी की उसने अपने पति फिलिप को धोखे से मरवा दिया और सिकंदर का भी तिरस्कार किया मगर सिकंदर का परिस्थितियों पर हावी होने का इतना प्रबल पुरुषार्थ था की सिकंदर ने अपने दुर्भाग्य को पुरुषार्थ से सोभाग्य में परिणित कर दिया | एक मूर्तिकार का बेटा जो देखने में बड़ा कुरूप था उसने अपने जीवन की शुरुवात एक सैनिक के रूप में की और बहुत छोटी उम्र में उसके पिता का साया उस पर से उठ गया अब उसकी माँ ही थी जो अपने पुत्र और अपने जीवन का निर्वाह दाई का कम करके करती थी यही कुरूप बालक आगे चलकर सुकरात के नाम से प्रसिद्द हुआ जिसने अपने पुरुषार्थ से दर्शनशात्र के जनक की उपाधि प्राप्त की | एक सम्पन्न परिवार में जन्म लेने वाला लिओनार्दो विन्ची को भी अपने जीवन में माता पिता के बीच हुए मनमुटाव के कारण अलग होने पर कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पढ़ा बहुत गरीब स्थिति में उसने अपना जीवन बिताया थोडा बड़े होते ही घर की सारी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर आ गयी लेकिन उसने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाया और इटली ही नही अपितु पुरे विश्व में शिल्प और चित्रकला के नये आयाम स्थापितकरअपनी कलाकृतियों के द्वारा अमर हो गया | ईसामसीह जिनके आज दुनिया में एक तिहाई अनुयायी है उनका जन्म एक बड़ई के घर में हुआ लेकिन ईश्वर में अपनी आस्था और विश्वास के द्वारा उन्होंने श्रेष्ठ मार्ग पर चलते हुए सभी विघ्न बाधाओं को काटते हुए वे एक महामानव बने और लोगों के लिए सत्य का मार्ग अवलोकित कर गये | भारत वर्ष को एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म भी एक दासी से हुआ था लेकिन उसे चाणक्य जैसे गुरु मिले और उनके बताये रास्ते पर चलते हुए वह अपने पराकृम और पुरुषार्थ के द्वारा राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने में सफल रहा | प्रसिद्द विचारक और दार्शनिक कुन्फ़्युसिअस को तीन वर्ष की छोटी सी उम्र में ही पिता के स्नेह से वंचित होना पड़ा था अपने पिता को वो अभी ठीक प्रकार से पहचान भी नही पाया था की वह अनाथ हो गया है और छोटी सी उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन  के कार्य में लगना पढ़ा लेकिन बढ़ा बनने की इच्छा उसमे प्रारम्भ से ही थी यद्यपि 19 वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हो गया और तीन संतानों के साथ बड़ी ही तंगहाली में उसने जीवन जिया लेकिन अपने पुरुषार्थ और दृण इच्छा शक्ति के कारण उसने चमत्कार कर दिखया और महान  दार्शनिक कहलाया | कालमार्क्स यद्यपि गरीब था और मरते तक उसने तंगहाली में ही जीवन जिया लेकिन अपनी संकल्प शक्ति और दृण विचारों द्वारा दुनिया के करोड़ो लोगों को अपने भाग्य का विधाता आप बना गया उसने अपनी पुस्तक “दास केपिटल” को सत्रह बार लिखा अठारवीं बार में वो अपने उद्दत रूप में निकलकर बाहर आई और साम्यवाद की आधारशिला बन गयी| नूरजहाँ जिसके इशारे पर जहांगीर अपना शासन चलाता था एक निर्वासित ईरानी की बेटी थीजो शरणार्थी बनकर सम्राट अकबर के दरबार में आया था | अपने संगठन शक्ति दूरदर्शिता दावपेंचऔर सीमित साधनों के बल पर औरंगजेब के नाकों चने चबवाने वाले शिवाजी के पिता शाहजी एक रियासत के दरबारी थे शिवाजी को अपने पिता का किसी प्रकार का सहयोग या आश्रय नही मिला उनका साहस केवल माता की शिक्षा और गुरु के ज्ञान पर टीका हुआ था वे साहस और पराकृम के बल पर स्वराज्य के लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ते गये एवं यवनों से जूझकर छत्रपति राष्ट्राध्यक्ष बने | शेक्सपियर जिनकी तुलना संस्कृत के महान कवि कालिदास से की जाती है एक कसाई के बेटे थे परिवार के निर्वाह हेतु उन्हें भी लम्बे समय तक वही काम करना पड़ा लेकिन बाद में अपनी अभिनय प्रतिभा तथा साहित्यिक अभिरुचि के विकास द्वारा अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि तथा नाटककार बन गये | न्याय और समानता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले  अब्राहम लिंकन को कौन नही जानता उन्होंने अपने जीवन में असफलताओं का मुँह इतनी बार देखा की यदि पूरे जीवन के कार्यों का हिसाब लगाया जाए तो उनमे सौ में से निन्यानवे तो असफल रहे है जिस काम में भी उन्होंने हाथ डाला असफल हुए |रोजमर्रा के निर्वाह हेतु एक दूकान में नौकरी की तो दुकान का दिवाला निकल गया किसी मित्र से साझेदारी की तो धंधा ही डूब गया जैसे तैसे वकालत पास की लेकिन वकालत नही चली चार बार चुनाव लढ़े  और हर बार हारे जिस स्त्री से शादी की उसके साथ भी सम्बन्ध बिगड़ गये और वो इन्हें छोड़कर चली गयी जीवन  में एक बार उनकी महत्वाकांक्षा  पूरी हुई जब वे राष्ट्रपति बने और इस सफलता के साथ ही वो विश्व इतिहास में सफल हो गये | विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइनजिसने परमाणु शक्ति की खोज की वो खोजी बचपन में मुर्ख और सुस्त था | उनके माता-पिता को चिंता होने लगी थी की ये अपना जीवन कैसे चला पायेगा लेकिन जब उन्होंने प्रगति पथ पर बढ़ना शुरू किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया | सफलता के लिए … Read more

“नज़रे बदलो नज़ारे बदल जायेंगे” आपकीसोच जीवन बना भी सकती है बिगाढ़ भी सकती है

पंकज प्रखर,  सकारात्मक सोच व्यक्ति को उस लक्ष्य तक पहुंचा देती है जिसे वो वास्तव में प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसके लिए एक दृण सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है| जब जीवन रुपी सागर में समस्यारूपी लहरें हमे डराने का प्रयत्न तोहमे सकारात्मकता का चप्पू दृण निश्चय के साथ उठाना चाहिए | यदि आप ऐसा करते है तो निश्चितरूप से मानकर चलिए आप की नैया किनारे लग ही जाएगी | लेकिन ये निर्भर करता है की उस समयसमस्या के प्रति आपका दृष्टिकोण क्या है ,आप उन परिस्थितियों पर हावी होते है या परिस्थितियाँ आप पर दोपंक्तियाँ याद आती है नज़रें बदली तो नज़ारे बदले,कश्ती ने बदला रुख तो किनारे बदले|सोच का बदलना जीवन का बदलना है जी हाँ आप जब चाहे अपने जीवन को बदल सकते है| समाज में कई बार देखने को मिलता है की एक व्यक्ति जो पूरी मेहनत से काम करता हैवो उस व्यक्ति से पीछे रह जाता है जो कम समय में मेहनत करता है और अधिक सफल दिखता है| यह प्राय: विद्यार्थियों के साथ भी देखा जाता है कम मेहनत करने वाला  छात्र ज्यादा अंक अर्जित करने में सफल होता है| जबकि पूरे वर्ष लगन से पढ़ने वाला छात्र कई बार पिछड़ जाता है इसका कारण क्या है जी हाँ इसका कारण है हमारी सोच ,विचार और उसके अनुरूप किये गये हमारे कर्म हम जैसा सोचते है वैसे ही बनते चले जाते है | इसका एक सशक्त उदाहरण में आपको देना चाहूँगा | भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, गरीब मछुआरे के बेटे थे। बचपन में अखबार बेचा करते थे। आर्थिक कठनाईंयों के बावजूद वे पढाई करते रहे। सकारात्मक विचारों के कारण ही उन्होने भारत की प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनेक सफलताएं हासिल कीं। अपने आशावदी विचारों से वे आज भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व में वंदनीय हैं। उन्हे मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है। हमारे देश में ही नही अपितु पूरे विश्व में ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होने विपरीत परिस्थिति में भी अपनी सकारत्मक वैचारिक शक्ति से इतिहास रचा है। दूसरा उदाहरण आता है महानतम राजनेताऔं में से एक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल का जो बचपन में हकलाते थे, जिसके कारण उनके सहपाठी उन्हे बहुत चिढाया करते थे। अपनी हकलाहट के बावजूद चर्चिल ने बचपन में ही सकारत्मक विचारों को अपनाया और मन में प्रण किया कि, मैं एक दिन अच्छा वक्ता बनुंगा। उनके आशावादी विचारों ने विपरीत परिस्थिति में भी उन्हे कामयाबी की ओर अग्रसर किया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन को एक साहसी अनुभवी और सैन्य पृष्ठभूमि वाले प्रधानमंत्री की जरूरत थी। विस्टन चर्चिल को उस समय इस पद के लिये योग्य माना गया। राजनीति के अलावा उनका साहित्य में भी योगदान रहा। इतिहास, राजनीति और सैन्य अभियानों पर लिखी उनकी किताबों की वजह से उन्हे 1953 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। ये सब उपलब्धिया उनके सकारत्मक विचारों का ही परिणाम है। सकारात्मक सोच का तीसरा उदाहरण आता है जो क्रिकेट प्रेमी है उन्होंने कई बार क्रिकेटरों को कहते सुना होगा कि एक दो चौका पङ जाने से दूसरीटीम का मनोबल टूट गया जिससे वे गलत बॉलिंग करने लगे और मैच हार गये। वहीं कुछ खिलाङियों के साथ ये भी देखने को मिलता है कि वे पुरे सकारात्मक विचारों से खेलते हैं परिस्थिती भले ही विपरीत हो तब भी, जिसका परिणाम ये होता है कि वे हारी बाजी भी जीत जाते हैं। हमारी सकारात्मक सोच, सकारात्मक संवाद और सकारात्मक कार्यों का असर हमें सफलता की ओर अग्रसर करते हैं। वहीं निराशा तथा नकारात्मक संवाद व्यक्ति को अवसाद में ले जाते हैं क्योंकि विचारों में बहुत शक्ति होती है। हम क्या सोचते हैं, इस बात का हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। इसीलिए अक्सर निराशा के क्षणों में मनोवैज्ञानिक भी सकारात्मक संवाद एवं सकारात्मक कहानियों को पढने की सलाह देते हैं। हमारे सकारात्मक विचार ही मन में उपजे निराशा के अंधकार को दूर करके आशाओं के द्वार खोलते हैं। सकारात्मक विचार की शक्ति से तो बिस्तर पर पङे रोगी में भी ऊर्जा का संचार होता है और वे पुनः अपना जीवन सामान्य तौर से शुरु कर पाता है। हमें अपने मस्तिष्क को महान विचारों से भर लेना चाहिए तभी हम महान कार्य संपादित कर सकते हैं। जैसे कि हम सोचे, मै ऊर्जा से भरपूर हूँ, आज का दिन अच्छा है, मैं ये कार्य कर सकता हूँ क्योकि विचार शैली विषम या प्रतिकूल परिस्थिति में भी मनोबल को ऊँचा रखती है। सकारात्मक व्यक्ति सदैव दूसरे में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। अक्सर देखा जाता है कि, हममें से कई लोग चाहे वो विद्यार्थी हों या नौकरीपेशा या अन्य क्षेत्र से हों काम या पढाई की अधिकता को देखकर कहने लगते हैं कि ये हमसे नहीं होगा या मैं ये नही कर सकता। यही नकारात्मक विचार उन्हे आगे बढने से रोकते हैं। यदि हम ना की जगह ये कहें कि हम कोशिश करते हैं हम ये कर सकते हैं तो परिस्थिति सकारात्मक संदेश का वातावरण निर्मित करती है। जिस तरह हम जब रास्ते में चलते हैं तो पत्थर या काटोँ पर पैर नही रखते उससे बचकर निकल जाते हैं उसी प्रकार हमें अपने नकारत्मक विचारों से भी बचना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार एक पेङ से माचिस की लाख से भी ज्यादा तीलियाँ बनती है किन्तु लाख पेङ को जलाने के लिए सिर्फ एक तीली ही काफी होती है। उसी प्रकार एक नकारात्मक विचार हमारे हजारों सपनो को जला सकता है। हमारे विचार तो, उस रंगीन चश्में की तरह हैं जिसे पहन कर हर चीज उसी रंग में दिखाई देती है। यदि हम सकारात्मक विचारों का चश्मा पहनेंगे तो सब कुछ संभव होता नजर आयेगा। भारत की आजादी, विज्ञान की नित नई खोज सकारात्मक विचारों का ही परिणाम है। आज हमारा देश भारत विकासशील से बढकर विकसित राष्ट्र की श्रेणीं में जा रहा है। ये सब सकारात्मक विचारों से ही संभव हो रहा है। अतः हम अपने सपनो और लक्ष्यों को सकारत्मक विचारों से सिचेंगे तो सफलता की फसल अवश्य लहलहायेगी। बस, केवल हमें सकारात्मक विचारों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना होगा। स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं कि, “मन में अच्छे विचार लायें। उसी विचार को अपने जीवन का लक्ष्य … Read more

धन उपार्जन और आपका विवेक – सोंच समझ कर खर्च करें

पंकज“प्रखर” पिछले दिनों अमीरी को इज्जत का माध्यम माना जाता रहा है। इज्जत पाना हर मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा है। इसलिये प्रचलित मान्यताओं के अनुसार हर मनुष्य अमीरी का इच्छुक रहता है, ताकि उसे दूसरे लोग बड़ा आदमी समझें और इज्जत करें। अमीरी सीधे रास्ते नहीं आ सकती। उसके लिए टेड़े रास्ते अपनाने पड़ते हैं। हर समाज और देश की अर्थ व्यवस्था एक स्तर होता है। उत्पादन, श्रम और क्षमता के आधार पर दौलत बढ़ती है। देश में वैसे साधन न हों तो सर्वसाधारण के गुजारे भर के लिए ही मिल सकता है। अपने देश की स्थिति आज ऐसी ही है, जिसमें किसी प्रकार निर्वाह चलता रहे तो पर्याप्त है। औसत देशवासी की परिस्थिति से अपने को मिलाकर काम चलाऊ आजीविका से सन्तोष करना चाहिये। हम सब एक तरह का जीवन जीते हैं और ईर्ष्या, असन्तोष का अवसर नहीं आने देते इतना ही सोचना पर्याप्त है। अमीरी की ललक पैदा करना सीधा मार्ग छोड़कर टेढ़ा अपनाने का कदम बढ़ाना है। पिछले दिनों अनैतिक मार्ग अपनाने वाले-अमीरों इकट्ठी कर लेने वाले इज्जत आबरू वाले बड़े आदमी माने जाते रहे होंगे। पर अब वे दिन लद चुके। अब समझदारी बढ़ रही है। दौलत अब बेइज्जती की निशानी बनती चली जा रही है। लोग सोचते हैं, यह आधे मार्ग अपनाने वाला आदमी है। यदि सीधे मार्ग से कमाता है तो भी ईमानदारी का लोभ है कि देश-वासियों ने औसत वर्ग की तरह जिये और बचत को लोक मंगल के लिए लौटा दे। यदि ऐसा नहीं किया जाता, बढ़ी हुई कमाई को ऐयाशों में बड़प्पन के अहंकारी प्रदर्शन में खर्च किया जाता है अथवा बेटे-पोतों के लिए जोड़ा जमा किया जाता है तो ऐसा कर्तव्य विचारशीलता की कसौटी पर अवांछनीय ही माना जाएगा अमीरी अब निस्सन्देह एवं निष्ठुर वर्ग माना जाएगा हमें सन्देह है कि अमीरी अब पचास वर्ष भी जीवित रह सकेगी। विवेकशीलता उसे छोड़ने के लिए बाध्य करेंगी अन्यथा कानून विद्रोह उसका अन्त कर देगा। अटूट बंधन अमीरी इकट्ठी तो कोई बिरले ही कर पाते हैं पर उसकी नकल बनाने वाले विदूषक हर जगह भरे पड़े हैं। चूँकि अमीरी इज्जत का प्रतीक बनी हुई थी, इसलिए इज्जत पाने के लिये अमीरी इकट्ठी करनी चाहिये और यदि वह न मिले तो कम से कम उसका ढोंग ही बना लेना चाहिये, यह बात नासमझ वर्ग में धर कर गई है और वह इस नकलची मन पर बेतरह अपने आपको बर्बाद करता और अर्थ संकट के दल-दल में धँसता चला जाता है। लोग सोचते हैं कि हम अपना ठाठ-बाठ अमीरों जैसा बना लें तो दूसरे यह समझेंगे कि यह अमीर और बड़ा आदमी है और चटपट उसकी इज्जत करने लगेंगे, इसी नासमझी के शिकार असंख्य ऐसे व्यक्ति, जिनकी आर्थिक स्थिति सामान्य जीवन यापन के भी उपयुक्त नहीं, अमीरी का ठाठ-बाठ बनायें फिरते हैं। कपड़े जेवर, फर्नीचर, सुसज्जा आदि को प्रदर्शनात्मक बनाने में इतना खर्च करते रहते हैं कि उनकी आर्थिक कमर ही टूट जाती है। दोस्तों के सामने अपनी अमीरी का पाखण्ड प्रदर्शित करने के लिए पान-सिगरेट सिनेमा, होटल आदि के खर्च बढ़ाते हैं और उसमें उन्हें भी शामिल करते हैं ताकि उन पर अपनी अमीरी का रौब बैठ जाय और इज्जत मिलने लगे। कैसी झाड़ी समझ है यह और कैसा फूहड़ तरीका है। कोई समझदार व्यक्ति उस नासमझी पर हँस ही सकता है। पर असंख्य लोग इसी बहम में फँसे फिजूल खर्ची और फैशन में पैसा उड़ाते रहते हैं और अपनी आर्थिक स्थिरता को खोखली करते चलते हैं। मामूली आमदनी के लोग जब अपनी स्त्रियों के बक्से कीमती साड़ियों से भरते हैं और जेवरों में धन गँवाते हैं, तब उसके पीछे यही ओछापन काम करता है कि ऐसी सजी-धजी हमारी औरत को देखकर हमें अमीर मानेंगे। पुरुष साड़ी, जेवर तो नहीं पहनते पर सूट-बूट घड़ी, छड़ी उनकी भी कीमती होती है, ताकि मित्रों के आगे बढ़-चढ़कर शेखी मार सकें। विवाह-शादियों के वक्त यह ओछापन हद दर्जे तक पहुँच जाता है। स्त्रियाँ ऐसे कपड़े लटकाये फिरती हैं, जैसे सिनेमा, नाटक के नट लोग पहनते हैं। बारातियों का औघड़पन देखते ही बनता है। ऐसा ठाठ-बाठ बनाते हैं मानों कोई बड़े मिल मालिक, जागीरदार अफसर अथवा सेठ-साहूकार हों। जानने वाले जब जानते हैं कि जरा-सी आमदनी वाला यह ढोंग बनाये फिरता है तो हर कोई असलियत समझ जाता है और दो ही अनुमान लगाता है या तो यह कर्जदार रहता होगा या बेईमानी से कमाता होगा। यह दोनों ही बातें बेइज्जती की हैं। सोचा यह गया था कि ठाठ-बाठ वाले बाबू को गैर सरकारी नौकरी नहीं मिलती। मालिक जानता है, इतना वेतन तो ठाठ-बाठ में ही उड़ जाएगा, फिर बच्चों को खिलाने के लिए इस हमारे यहाँ चोरी का जाल फैलाना पड़ेगा। सच का हौसला फेसबुक पेज यही बात स्त्रियाँ के सम्बन्ध में है। बहुत फैशन बनाने वाली महिलायें दो छाप छोड़कर जाती हैं या तो इनके घर में अनुचित पैसा आता है अथवा इनका चरित्र एवं स्वभाव ओछा है। यह दोनों ही लाँछन किसी कुलीन महिला की इज्जत बढ़ाते नहीं घटाते हैं।घर परिवार में यह सज-धज की प्रवृत्ति मनोमालिन्य पैदा करती है। अपव्यय हर किसी को बुरा लगता है। जो पैसा परिवार के शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, विनोद, पौष्टिक आहार आदि में लग सकता था, उसे फैशन में खर्च किया जाने लगे तो प्रत्यक्षतः परिवार के अन्य सदस्यों की सुख का अपहरण है। ठाठ-बाठ की कोई बाहर से प्रशंसा कर दे किसी को कुछ समय के लिये भ्रम में डाल दे यह हो सकता है पर साथियों में घृणा और ईर्ष्या ही पैदा होगी, वहाँ इज्जत बढ़ेगी नहीं घटेगी। बढ़े चढ़े खर्चों की पूर्ति के लिए अवांछनीय मार्ग ही अपनाने पड़ेंगे। कर्जदार और निष्ठुर जीवन जीना पड़ेगा। आमदनी सही भी है तो भी उसे व्यक्तिगत व्यय में सामाजिक स्तर के अनुरूप ही खर्च करना चाहिये। अधिक खर्च लोक-मुगल का हक मारना है। अच्छा हो हम समझदारी और सज्जनता से भरा हुआ, सादगी का जीवन जिये अपनी बाह्य सुसज्जा वाले खर्च को तुरन्त घटा दें और उस बचत से अपनी-अपने परिवार की तथा समाज की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करने में लगाने लगें। सादगी सज्जनता का प्रतिनिधित्व करती है। जिसका देश विन्यास सादगी पूर्ण है, उसे अधिक प्रामाणिक एवं विश्वस्त माना जा सकता है। जो जितना ही उद्दीपन दिखायेगा, समझदारों की दृष्टि में उतना ही इज्जत गिरा लेगा। इसलिये उचित यही है … Read more

स्त्री और नदी का स्वच्छन्द विचरण घातक और विनाशकारी

लेखक:- पंकज प्रखर कोटा(राज.) स्त्रीऔर नदी दोनों ही समाज में वन्दनीय है तब तक जब तक कि वो अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन नही करती | स्त्री का व्यक्तित्व स्वच्छ निर्मल नदी की तरह है जिस प्रकार नदी का प्रवाह पवित्रऔर आनन्दकारकहोता है उसी प्रकार सीमा रेखा में बंधी नारी आदरणीय और वन्दनीय शक्ति के रूप में परिवार और समाज में  रहती है| लेकिन इतिहास साक्षी है की जब –जब भी नदियों ने अपनी सीमा रेखाओं का उल्लंघन किया है समाज बढ़े –बढे संकटों से जूझता नजर आया है| तथाकथित कुछ महिलाओं ने आधुनिकता और स्वतंत्रता के नाम पर जब से स्वच्छंद विचरणकरते हुए  सीमाओं का उल्लंघन करना शुरू किया है तब से महिलाओं की  स्थिति दयनीय और हेय होती चली गयी है | इसका खामियाज़ा उन महिलाओं को भी उठाना पढ़ा है जो समाज के अनुरूप मर्यादित जीवन जीती है इसका बहुत बढ़ा उदाहरण हमारा सिनेमा है जिसने समाज को दूषित कलुषित मनोरंजन देकर युवतियों को भटकाव की ओर धकेला है | समाज में आये दिन घटने वाली शर्मनाक घटनाएं जिनसे समाचार पत्र भरेपढ़ेहै सीमाओं के उल्लंघन के साक्षी है  रामायण कि एक घटना याद आती है, की जब लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा एक बार खींच दी गयी तो वह केवल एक रेखा मात्र नही बल्कि समाजिक मर्याद का प्रतिनिधित्व करने वाली मर्यादा की रेखा बन गयी थी|लक्ष्मण ने बाण से रेखा खीचकर उसे विश्वास रुपी मन्त्रों से अभिमंत्रित किया और राम की सहायता के लिए जंगल की ओरदौढ़ पढ़ेसीता को हिदायत दी गयी कि वह रेखा पार न करे लेकिन विधि का विधान कुछ अलग ही था| रावण जैसा सिद्ध भी उस रेखा के भीतर नहीं जा सका था| लेकिन सीता ने जैसे हीलक्ष्मण रेखा पार की रघुकुल संकट में पड़ गया फिर जो हुआ वो सभी को विदित है| नारी जब तक सीमाओं में रहे कुल की रक्षा भगवान् करते है एक बार मर्यादा की सीमा लांघी तो स्त्री पर पुरुष के विश्वास और स्त्री की अस्मिता और गरिमा का हरण तय है जब सीता जैसी सती को मर्यादा उल्लंघन का कठोर कष्ट उठाना पड़ा यहाँ तक की दोबार वनवास भोगना पढ़ा | न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या बताती है कि सीमायें रोज लांघी जा रही है क्योंकिकलयुग में लक्ष्मण रेखा धूमिल हो चुकी है|

“अवसर” खोजें,पहचाने और लाभ उठायें

लेखक :- पंकज “प्रखर” कोटा , राज. अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नही मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है  इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को पहचानने और उसका भरपूर लाभ उठाने भर का होता है प्राय: आपने देखा होगा की अपने वर्तमान से अधिकाँश मनुष्य संतुष्ट नहीं होते हैं। जो वस्तु अपने अधिकार में होती है उसका महत्व, उसका मूल्य हमारी दृष्टि में अधिक नहीं दीखता। वर्तमान अपने हाथ में जो होता। अपने गत जीवन की असफलताओं का भी रोना वे यही कह कर रोया करते हैं कि हमें भगवान या भाग्य ने अच्छे अवसर ही नहीं दिए अन्यथा हम भी जीवन में सफल होते। ऐसा कहना उनकी अज्ञानता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं जिनसे वह लाभ उठा सकता है। पर कुछ लोग अच्छे और उचित अवसर को पहिचानने में ही अक्षम्य होते हैं। ठीक अवसर को भलीभांति पहचानना तथा उससे उचित लाभ उठाना जिन्हें आता है जीवन में सफल वे ही होते हैं। पर यह भी सत्य है कि अच्छे अवसर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक बार आते हैं। अब हम उन्हें न पहचान पावें या पहचानने पर भी उनसे उचित लाभ न उठा पावें तो यह हमारा अज्ञान है। एक पाश्चात्य विद्वान का कहना है “अवसर के सर के आगे वाले भाग में बाल होते हैं, सर के पीछे वह गंजा होता है। यदि तुम उसे सामने से पकड़ सको, उसके आगे बालों को, तब तो वह तुम्हारे अधिकार में आ जाता है,पर यदि वह किसी प्रकार बचकर निकल गया तो उसे पकड़ा नही जा सकता | आधुनिकता के दौर में संस्कृति से समझौता क्यों आपको अनेक ऐसे मनुष्य मिलेंगे जो बिना सोचे-समझे यह कह देते हैं कि फलाँ – फलाँ को जो जीवन में सफलतायें मिली वह इत्तफाक के कारण। घटनावश उनका भाग्य उनके ऊपर सदय हो गया और यह इत्तफाक है कि आज सफलता पाकर वे इतने बड़े हो सके। पर सच पूछा जाय तो इत्तफाक से प्रायः कुछ नहीं होता। संसार के समस्त कार्यों के पीछे कार्य – कारण-सम्बन्ध होता है। और यदि इत्तफाक से ही वास्तव में किसी को सुअवसर प्राप्त हो जाता है, तो भी हम न भूलें कि यह बात हमें ‘अपवाद’ के अंतर्गत रखनी चाहिए। एक विद्वान ने कहा है” जीवन में किसी बड़े फल की प्राप्ति के पीछे इत्तफाक का बहुत थोड़ा हाथ होता है।” अंधे के हाथ बटेर भी कभी लग सकती है। लेकिन सफलता प्राप्त करने का सर्वसाधारण और जाना पहिचाना मार्ग है केवल लगन, स्थिरता, परिश्रम, उद्देश्य के प्रति आस्था और समझदारी। मानिए एक चित्रकार एक चित्र बनाता है तो उसकी सुन्दरता के पीछे चित्रकार का वर्षों का ज्ञान, अनुभव, परिश्रम और अभ्यास है। इस चित्रकला में योग्यता पाने के लिए उसने बरसों आँखें फोड़ी हैं, दिमाग लगाया है तब उसके हाथ में इतनी कुशलता आ पाई है। उसने उन अवसरों को खोजा है जब वह प्रतिभावान चित्रकारों के संपर्क में आकर कुछ सीख सके। जो अवसर उसके सामने आये, उसने उन्हें व्यर्थ ही नहीं जाने दिया वरन् उन अवसरों से लाभ उठाने की बलवती इच्छा उसमें  थी और क्षमता भी। मनुष्यों की समझदारी तथा चीजों को देखने परखने की क्षमता में अन्तर होता है। एक मनुष्य किसी एक घटना या कार्य से बिल्कुल प्रभावित नहीं होता, उससे कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकता, जब कि एक दूसरा मनुष्य उसी कार्य या घटना से बहुत कुछ सीखता और ग्रहण करता है। साधारण रूप से मनुष्य की बुद्धि तथा प्रवृत्ति तीन प्रकार की हो सकती है। इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए एक प्रसंग याद आता है “एक नदी के तट पर तीन लड़के खेल रहे हैं। तीनों खेलने के बाद घर वापस आते हैं। आप एक से पूंछते हैं भाई तुमने वहाँ क्या देखा? वह कहता है ‘वहाँ देखा क्या, हम लोग वहाँ खेलते रहे बैठे रहे।’ ऐसे मनुष्यों की आँखें, कान, बुद्धि सब मंद रहती है। दूसरे लड़के से आप पूछते हैं कि तुमने क्या देखा तो वह कहता है कि ‘मैंने नदी की धारा, नाव, मल्लाह, नहाने वाले, तट के वृक्ष, बालू आदि देखी।’ निश्चय ही उसके बाह्य चक्षु खुले रहे, मस्तिष्क खुला रहा था। तीसरे लड़के से पूछने पर वह बताता है कि ‘मैं नदी को देखकर यह सोचता रहा कि अनन्त काल से इसका स्रोत ऐसा ही रहा है। इसके तट के पत्थर किसी समय में बड़ी-बड़ी शिलाएँ रही होंगी। सदियों के जल प्रवाह की ठोकरों ने इन्हें तोड़ा-मरोड़ा और चूर्ण किया है। प्रकृति कितनी सुन्दर है, रहस्यमयी है। तो फिर इनका निर्माता भगवान कितना महान होगा, आदि।’यह तीसरा बालक आध्यात्मिक प्रकृति का है। उसकी विचारधारा, अन्तर्मुखी है। ऐसे ही प्रकृति के लोग अवसरों को ठीक से पहचानने और उनसे काम लेने की पूरी क्षमता रखते है .सतत परिश्रम के फल स्वरूप ही सफलता मिलती है, इत्तफाक से नहीं जो भी अवसर उनके सामने आये उन्होंने दत्तचित्त हो उनसे लाभ उठाया। वैलेंटाइन डे : युवाओं का दिवालियापन यदि हम एक कक्षा के समस्त बालकों को समान अवसर दें, तो भी हम देखते हैं कि सभी बालक एक समान लाभ नहीं उठाते या उठा पाते। बाह्य सहायता या इत्तफाक का भी महत्व होता है पर हम अँग्रेजी कहावत न भूलें ‘भगवान उनकी ही सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करना जानते हैं।’अतः आलस्य और कुबुद्धि का त्याग कीजिये। अवसर खोइये मत। उन्हें खोजिये,पहचानिए और लाभ उठाइए । अनेक ऐसे आविष्कार हैं जिनके बारे में हम कह सकते हैं कि इत्तफाक से आविष्कर्त्ता को लक्ष्य प्राप्त हो गया पर यदि हम ईमानदारी से गहरे जाकर सोंचे तो स्पष्ट हो जायगा कि इत्तफाक से कुछ नहीं हुआ है। उन आविष्कर्त्ताओं ने कितना अपना समय, स्वास्थ्य, धन और बुद्धि खर्ची है आविष्कार करने के लिए। न्यूटन के पैरों के निकट इत्तफाक से वृक्ष से एक सेब टपक कर गिर पड़ा और न्यूटन ने उसी से गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञान कर लिया। पर न जाने कितनों के सामने ऐसे टूट-टूट कर सेब न गिरे होंगे। पर सभी क्यों नहीं न्यूटन की भी भाँति गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञात … Read more

नारी ~ब्रह्मा , विष्णु, महेश तीनों की भूमिका में

पंकज “प्रखर ” कोटा ,राजस्थान नारी का व्यक्तित्व बहुत ही अद्भुत है | हमारे देश भारत ऐसी अनगिनत नारियों सेसुसज्जित है जिन्होंने अपने त्याग और तपस्या से देश के नाम को उनंचा किया है | माता के रूप में  इस देश को विवेकनन्द, महर्षि रमण ,अरविन्द घोष ,रामकृष्ण परमहंस ,दयानंद ,शंकराचार्य ,भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आज़ाद,सुभाष बाबु,वीर सावरकर जैसे महापुरुषों से अलंकृत किया है | ये देश आज भी गार्गी मदालसा,भारती,विध्योत्त्मा,अनुसूया,स्वयंप्रभा,सीता, सावित्री जैसी सतियों और विदुषियों को नही भूल पाया है | मानव जाति ही नही अपितु ईश्वर भी नारी जाती का ऋणी है क्योकि, धर्म के सम्वर्धन और अधर्म के विनाश के लिए जब भी ईश्वर को अवतार लेना होता है तो उसे भी माँ के रूप में एक नारी की ही आवश्यकता होती है | जितना गौरवशाली इतिहास भारत वर्ष में मिलता है उतना,महान इतिहास समूचे विश्व में शायद ही किसी राष्ट्र का हो | नारी वो जो पुरुष को जन्म देतीं है अपने आप को नारी से श्रेष्ठ समझने वाला पुरुष वर्ग ये बात भली भांति जान ले की  जो नारी पुरुष को जन्म दे सकती वो नारी संसार में कुछ भी करने में सक्षम है नारी यदि पुरुष की आज्ञाओं का पालन आर्तभाव और श्रद्धा से कर रही है तो इसका अर्थ बिलकुल भी ये नही है की वो कमजोर है |ये केवल परिवार और अपने पति के प्रति उसका प्रेम और सेवा भाव है जो उसे प्रकृति ने दिया है| पढ़िए – फेसबुक और महिला लेखन नारी यदि पृकृति प्रदत्त इस गुण का त्याग कर दे तो न केवल परिवार अपितु समाज के महाविनाश का कारण  भी बन सकती है | रामायण में एक घटना आती है की जब देवासुर संग्राम चल रहा था तब उसमे युद्ध करते हुए राजा दशरथ मुर्छित हो गये,उस समय कैकयी ने ही अपनी सूझ-बुझ से उनके प्राणों की रक्षा की थी आगे चल कर ये ही कैकयी मंथरा के बरगला देने के कारन भ्रमित हुई और राम वनवास के समय राजा दशरथ की मृत्यु का कारण बनी | नारी की तुलना यदि ब्रुह्मांड की तीन प्रमुख शक्तियों ब्रुह्मा ,विष्णु और महेश से की जाए तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी | जिस प्रकार ब्रह्मा सष्टि  सृजन करते है उसी प्रकार नारी भी वंश रेखा को सींचती है परिवार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है निश्चित रूप से स्त्री को परिवार का हृदय और प्राण कहा जा सकता है। परिवार का सम्पूर्ण अस्तित्व तथा वातावरण गृहिणी पर निर्भर करता है। यदि स्त्री न होती तो पुरुष को परिवार बनाने की आवश्यकता न रहती और न ही इतना क्रियाशील तथा उत्तरदायी बनने की। स्त्री का पुरुष से युग्म बनते ही परिवार की आधारशिला रख दी जाती है और साथ ही उसे अच्छा या बुरा बनाने की प्रक्रिया भी आरम्भ हो जाती है। परिवार बसाने के लिए अकेला पुरुष भी असमर्थ है और अकेली स्त्री भी, पर मुख्य भूमिका किसकी है, यह तय करना हो तो स्त्री पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है। पढ़िए – स्त्री और नदी दोनों का स्वछंद विचरण विनाशकारी नारी विष्णुं की तरह परिवार का पालन पोषण करती है समूचे परिवार को एक सूत्र में बांधकर रखने की जिम्मेदारी भी उसी की है साथ ही सबकी आवश्यकताओं का ध्यान रखना ये सब नारी का कार्यक्षेत्र है | माँ का स्नेह और संस्कारों से भावी पीढ़ी को सींचने का कार्य स्त्री ही करती है| पुरुष वर्ग केवल धनार्जन करता है लेकिन उसके प्रबंधन की बागडोर स्त्री के हाथ में होती है स्त्री चाहे साक्षर हो या निरक्षर पर हर स्त्री ये जानती है की पति की आय का उपयोग परिवार के लिए किस प्रकार हो सकता है, नारी अन्दरूनी व्यवस्था से लेकर परिवार में सुख- शान्ति और सौमनस्य के वातावरण को बनाये रखने का दायित्व भी निभाती है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है परिवार को दूषित मनोवृत्तियों और समाज में फैली बुराइयों से अपने परिवार को सुरक्षित रखना पुरानो में भगवान् शिब को संहार करता बताया गया है| नारी भी परिवार में रहकर संहारक की भूमिका निभाती है जी हाँ नारी भी संहार करती है पर किसका ? नारी संहार करती है परिवार में आई बुराइयों का आज के तनाव पूर्ण समय में जब पुरुष प्रतिकूल परिस्थितियों में अपने आप को निसहाय अनुभव करता है तो वो उनसे छुटकारा पाने के लिए बुराइयों की और अगृसर होता है | शराब, जुआ, हताशा,निराशा आदि में पुरुष घिर जाता है |जिसके फलस्वरूप परिवार का पतन शुरू होता है| ऐसी परिस्थितियों में धन्य है भारतीय नारी जो पुरुष का साथ नही छोडती बल्कि अपने प्रेम और सूझ बुझ से पति को सन्मार्ग पर ले आती है, इसी कारन वो अर्धांगिनी कहलाती है | हालांकि पुरुष को सही मार्ग पर लाने के लिए उसे अग्निपथ पर चलना पढ़ता है ,कई कष्टों और पीढ़ाओं को झेलना पढ़ता है | लेकिन नारी हार नही मानती बच्चों में श्रेष्ठ संस्कारों के सिंचन से लेकर उन्हें आदर्श मानव ही नही अपितु महा मानव बनाने तक नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है | इतिहास बड़े गर्व के साथ शिवाजी ,महाराना प्रताप जैसे शूरवीरों का नाम लेता है लेकिन इन सूरमाओं में वीरता और मात्रभूमि के प्रति अनन्य भक्ति का बीजारोपण करने वाली माँ नारी ही थी शिवाजी के पिता मुगलों के दरबार में ही काम करते थे| लेकिन शिवाजी की माँ ने शिवा को इसे संस्कार दिए जिसने मुगलों को एक बार नही अपितु अनेको बार मराठा शक्ति के सामने विवश कर दिया | महाराणा प्रताप की माता के ही संस्कार थे की मुगल सेना को कई बार महाराणा प्रताप से युद्ध में मुँह की खानी पड़ी और जीते जी मुगल महाराणा को पकड़ ही नही पाए |  इस गौरवशाली इतिहास का श्रेय किसे जाता है “नारी ” को जिन्होंने न केवल ऐसे सूरमाओं को जन्म दिया अपितु श्रेष्ठ संस्कारों से सींचा | इतिहास में इसे अनेकों उदहारण भरे पड़े है जो सिद्ध करते है की नारी ही परिवार से लेकर समाज निर्माण, और समाज निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण में अपना मूक योगदान देती आई है |माँ न व् पत्नी के रूप में हम सब नारी के प्रेम व् त्याग को अपने घरों में देखते हैं | फिर क्यों नहीं हम उसे उसके अधिकारों को दे पाते हैं | … Read more