अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे

हम जंग न होने देंगे  विश्व शांति के साधक हैं, जंग न होने देंगे !  भारत -पकिस्तान पड़ोसी साथ -साथ रहना है  प्यार करें या वार करें, दोनों को ही सहना है,  तीन बार कर चुके लड़ाई , कितना महंगा सौदा , रूसी बम हो या अमरीकी, खून एक बहना है| जो हम पर गुजरी, बच्चों के संग ना होने देंगे | जंग ना होने देंगे |             ‘विश्व शांति के हम साधक हैं जंग न होने देंगे, युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। हम जंग न होने देंगे..’ इस युगानुकूल गीत द्वारा महान युग तथा भविष्य दृष्टा कवि अटल जी ने सारी मानव जाति को सन्देश दिया था कि विश्व को युद्धों से नहीं वरन् विश्व शांति के विचारों से चलाने में ही मानवता की भलाई है। इस विश्वात्मा के लिए हृदय से बरबस यह वाक्य निकलता है – जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि। विश्व शान्ति के महान विचार के अनुरूप अपना सारा जीवन विश्व मानवता के कल्याण के लिए समर्पित करने वाले वह अत्यन्त ही सरल, विनोदप्रिय एवं मिलनसार व्यक्ति थे। सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एक कुशल राजनीतिज्ञ होने के साथ–साथ एक अच्छे वक्ता भी थे। अटल बिहारी बाजपेयी की पुण्य तिथि पर -हम जंग न होने देंगे             भले ही 16 अगस्त 2018 में अटल जी इस नाशवान तथा स्थूल देह को छोड़कर विश्वात्मा बनकर परमात्मा में विलीन हो गये। लेकिन उनकी ओजस्वी वाणी तथा महान व्यक्तित्व भारतवासियों सहित विश्ववासियों को युगों–युगों तक सत्य के मार्ग पर एक अटल खोजी की तरह चलते रहो, चलते रहो की निरन्तर प्रेरणा देता रहेगा। चाहे एक विपक्षी नेता की भूमिका हो या चाहे प्रधानमंत्री की भूमिका हो दोनों ही भूमिकाओं में उन्होंने भारतीय राजनीति को परम सर्वोच्चता पर स्थापित किया। संसार में बिरले ही राजनेता ऐसी मिसाल प्रस्तुत कर पाते हैं। जीवन भर अविवाहित रहकर मानवता की सेवा ही उनका एकमात्र ध्येय तथा धर्म था।             अटल जी पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे। इस दौरान वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने अत्यन्त ही विश्वव्यापी दृष्टिकोण से ओतप्रोत भाषण दिया था। अटल जी ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। इस भाषण कुछ अंश इस प्रकार थे – अध्यक्ष महोदय, भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की परिकल्पना बहुत पुरानी है। हमारा इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। … मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। अटल जी ने अपने भाषण की समाप्ति ‘‘जय जगत’’ के जयघोष से की थी। इस विश्वात्मा ने ‘‘जय जगत’’ से अपने भाषण की समाप्ति करके दुनिया को सुखद अहसास कराया कि भारत चाहता है, किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जीत हो। दुनिया को अटल जी के अंदर भारत की विश्वात्मा के दर्शन हुए थे।             अटल जी के इस भाषण में भी उनके विश्व शांति का साधक होने का पता चलता हैं। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था। यह पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र जैसे शान्ति के सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की ‘विश्व गुरू’ की गरिमा का बोध सारे विश्व को हुआ था। संयुक्त राष्ट्र में उस समय उपस्थित विश्व के 193 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने देर तक खड़े होकर भारत की महान संस्कृति के सम्मान में जोरदार तालियां बजाकर अपनी हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की थी। इस विहंगम तथा मनोहारी दृश्य ने महात्मा गांधी के इस विचार की सच्चाई को महसूस कराया था कि एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब दिशा से भटकी मानव जाति सही मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर रूख करेगी।             ब्रिटिश शासकों ने जोर–जबरदस्ती से विश्व के 54 देशों में अपने उपनिवेशवाद का विस्तार किया था। मेरे विचार से आधुनिक लोकतंत्र का विचार उसी काल में अस्तित्व में आया तथा विकसित हुआ था। अटल जी लोकतंत्र के प्रहरी थे जब कभी लोकतंत्र की मर्यादा पर आँच आई तो अटल जी ने उसका डटकर मुकाबला किया। इसके साथ ही उन्होंने कभी भी राजनीतिक और व्यक्तिगत संबंधों को मिलाया नहीं। 21वीं सदी में इस विश्वात्मा के दिखाये मार्ग में आगे बढ़ते हुए हमें लोकतंत्र को देश की सीमाओं से निकालकर वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का स्वरूप प्रदान करना चाहिए। लोकतंत्र की स्थापना मानवता की रक्षा के लिए ही की गयी थी। अतः राज्य, देश तथा विश्व से मानवता सबसे ऊपर है।             यूरोप के 27 देश जो कभी आपस में युद्धांे की विभीषका में बुरी तरह से फंसे थे। उन्होंने लोकतंत्र को देश की सीमाओं से निकालकर लोकतांत्रिक यूरोपिन यूनियन की स्थापना कर ली है। इसके अन्तर्गत इन देशों ने मिलकर अपनी एक यूरोपियन संसद, नियम–कानून, यूरो मुद्रा, वीजा से मुक्ति आदि कल्याणकारी कदम उठाकर अपने–अपने देश के नागरिकों को आजादी, समृद्धि तथा सुरक्षा का वास्तविक अनुभव कराया है। साथ ही दकियानुसी विचारकों की इस शंका को झूठा साबित कर दिया कि यूरोप के 27 देशों में आने–जाने के लिए वीजा से मुक्ति देने से यूरोप के अधिकांश लोग लंदन तथा पेरिस जैसे विकसित महानगरों की ओर भागेगे जिससे भारी अराजकता तथा अफरा–तफरी मच जायेगी।             अटल जी सर्वाधिक नौ बार सांसद चुने गए थे। वे सबसे लम्बे समय तक सांसद रहे थे और श्री जवाहरलाल नेहरू व श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी। अटल जी विश्व शांति के पुजारी के रूप में भी जाने जाते हैं। उनके द्वारा सारी दुनिया में शांति की स्थापना हेतु कई कदम उठाये गये। अत्यन्त ही सरल स्वभाव वाले अटल जी को 17 अगस्त 1994 को वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया। उस अवसर पर अटल जी ने अपने भाषण में कहा था कि ‘‘मैं आप सबको हृदय से धन्यवाद देता हूं। मैं प्रयत्न करूगा कि इस सम्मान के लायक अपने आचरण को बनाये रख सकूं। जब कभी मेरे … Read more

6 अगस्त – हिरोशिमा दिवस पर परमाणु हमले से मुक्त हो धरती

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा तथा नागाशाकी शहरों पर 6 और 9 अगस्त 1945 को हुए परमाणु हमले से पूरी दुनिया दहल गई थी। इस हमले की प्रतिवर्ष आयोजित वर्षगांठ के मौके पर पूरे जापान सहित विश्व भर की आंखें नम हो जाती है। जापान के पीस मैमोरियल पार्क, हिरोशिमा में हजारों की तादात में प्रतिवर्ष 6 अगस्त को लोग एकत्रित होते हैं और हिरोशिमा और नागासाकी हमले में मारे गए अपने प्रियजनों को बड़े ही भारी मन से मार्मिक श्रद्धांजलि देते हैं। विश्व भर में इस हमले को 20वीं सदी की सबसे बड़ी घटना बताते हुए दुख जताया जाता है। जापान में 6 अगस्त को शांति दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस उम्मीद में यह आयोजन होता है कि दुनिया में अब कभी इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं होगा। 6 अगस्त -हिरोशिमा दिवस पर परमाणु हमले से मुक्त हो धरती              20वीं सदी की इस सबसे बड़ी दर्दनाक घटना का अपराधी अमेरिका था, और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने यह कहकर इस विनाशलीला का बचाव किया था कि मानव इतिहास की सबसे खूनी द्वितीय विश्व युद्ध को खत्म कराने के लिए ऐसा करना जरूरी था। हमले के 16 घंटे के बाद राष्ट्रपति ट्रूमैन ने जब घोषणा की, तब पहली बार जापान को पता लगा कि हिरोशिमा में हुआ क्या है? राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन के शब्द थे, 16 घंटे पहले एक अमेरिकी विमान ने हिरोशिमा पर एक बम गिराया है। यह परमाणु बम है। हम और भी अधिक तेजी से जापान को मिटाने और उसकी हर ताकत को नेस्तनाबूद करने के लिए तैयार हैं। अगर वह हमारी शर्तों को नहीं मानता, तो बर्बादी की ऐसी बारिश के लिए उसे तैयार रहना चाहिए, जैसा इस पृथ्वी ने पहले कभी नहीं देखा है। हिरोशिमा, नागासाकी पर हमले ने बदली थी युद्ध की तस्वीर              अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर हमला कर जापान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। दो दिनों के अंतराल पर हुए इन हमलों से बसे बसाए दो शहर पूरी तरह शमशान में तब्दील हो गए थे। हिरोशिमा पर हुए हमले में एक करीब 1,50,000 हजार लोगों की मौत हुई थी जबकि नागासाकी पर हुए हमले में करीब 80,000 लोग मारे गए थे। अमेरिका के इन दो हमलों ने द्वितीय विश्व युद्ध की सूरत बदल कर रख दी थी। हमले के बाद जापान ने तुरंत सीजफायर का ऐलान कर घुटने टेक दिए। अमेरिका द्वारा किए गए यह दोनों हमले ऐसी जगह किए गए थे जहां न तो कोई बड़ा सैन्य अड्डा था न ही वहां कोई बड़ी सैन्य गतिविधि चल रही थी। यह इलाके पूरी तरह से रिहायशी थे।             आंकड़ों के मुताबिक हिरोशिमा पर हुए परमाणु हमले में करीब साठ प्रतिशत लोगों की मौत तुरंत हो गई थी, जबकि करीब तीस प्रतिशत लोगों की मौत अगले एक माह के अंदर भयंकर जख्मों के बाद हुई। इसके अलावा करीब दस फीसद लोग यहां पर मलबे में दबने और अन्य कारणों से मारे गए थे। इस हमले से पहले द्वितीय विश्व युद्ध में जापान का पलड़ा भारी था और वह अन्य देशों पर हावी होने में कामयाब भी हो रहा था। लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए हमलों ने जापान की कमर तोड़कर रख दी। अभी भी है नुक्लीयर हथियारों से खतरा              स्टाॅकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार वर्तमान में विश्व के नौ देशों ने ऐसे परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं जिनसे मिनटों में यह दुनिया खत्म हो जाए। ये नौ देश हैं– अमेरिका (7,300), रूस (8,000), ब्रिटेन (225), फ्रांस (300), चीन (250), भारत (110), पाकिस्तान (120), इजरायल (80) और उत्तर कोरिया (60)। इन 9 देशों के पास कुल मिलाकर 16,445 परमाणु हथियार हैं। बेशक स्टार्ट समझौते के तहत रूस और अमेरिका ने अपने भंडार घटाए हैं, मगर तैयार परमाणु हथियारों का 93 फीसदी जखीरा आज भी इन्हीं दोनों देशों के पास है।             द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषका से व्याकुल होकर तथा विश्व शान्ति स्थापित करने के लिए अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री फ्रैन्कलिन रूजवेल्ट ने अप्रैल 1945 को अमेरिका के सैन फ्रैंसिस्को में विश्व के नेताओं की एक बैठक बुलाई थी उनकी विश्व शान्ति की इस पहल से 24 अक्टूबर, 1945 को शान्ति की सबसे बड़ी संस्था ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (यू.एन.ओ.) की स्थापना हुई। प्रारम्भ में केवल 51 देशों ने ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर किये थे। आज 193 देश इसके पूर्ण सदस्य हैं व 2 देश संयुक्त राष्ट्र संघ (यू.एन.ओ.) के अवलोकन देश (आॅबजर्बर) हैं। 71 वर्ष बाद अमेरिका ने किया पछतावा              अमेरिकी के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री बराक ओबामा ने 27 मई 2016 को जापान की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान हिरोशिमा परमाणु हमले के पीड़ितों को जापान के हिरोशिमा में स्थित पीस मैमोरियल पार्क में जाकर श्रद्धांजलि दी। हिरोशिमा में दुनिया के पहले परमाणु हमले के करीब 71 साल बाद पहली बार किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस स्थल का दौरा किया। इस दौरान ओबामा ने कहा कि 71 साल पहले आसमान से मौत गिरी थी और दुनिया बदल गई थी। श्री बराक ओबामा के बयानों में हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम हमलों के लिए दुख और पछतावा दिखा। बच्चे ही लायेंगे विश्व में शांति -महात्मा गांधी              राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विश्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सशक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे विश्व को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के ढाई अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सारे विश्व में मनाया जाता है।             दक्षिण अफ्रीका को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्त कराने वाले नेल्सन मंडेला महान इंसान थे। मंडेला को शांति के लिए नोबल पुरस्कार, भारत रत्न जैसे कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें ये सम्मान शांति … Read more

‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की याद में मनाया जाता है ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’

‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों के योगदान को सम्मानित करने तथा उनसे संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के लिए मनाया जाता है। यह दिवस आधुनिक नर्सिंग की शुरूआत करने वाली तथा मानव जाति के लिए दया एवं सेवा की महान नारी फ्लोरेंस नाइटिंगेल के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में 12 मई 1820 को जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल अपनी सेवा भावना के लिए याद की जाती हैं। ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की याद में   मनाया जाता है  ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’ इंटरनेशनल काउंसिल आॅफ नर्सेस 130 से अधिक देशों के नर्स संघों का एक महासंघ है। इसकी स्थापना 1899 में हुई थी और यह स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में है। संगठन का लक्ष्य दुनिया भर के नर्सों के संगठनों को एक साथ लाना है, नर्सों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और दुनिया भर में नर्सिंग के पवित्र प्रोफेशन को आगे बढ़ाने और वैश्विक और घरेलू स्वास्थ्य नीति को प्रभावित करना है। “ये बात सच है कि एक मरीज का इलाज डाक्टर करता है, मगर उस मरीज की देखभाल नर्स करती है। वो मरीज के सिर्फ बाहरी जख्मों पर ही नहीं बल्कि उसके अंदरूनी जख्मों पर भी मरहम लगाती है। ऐसी मदद की जरूरत मरीज को तब और ज्यादा महसूस होती है जब उसे बताया जाता है कि उसे कोई जानलेवा बीमारी है या वह सन 1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीड़ितांे की दयनीय स्थिति देखकर फ्लोरेंस नाइटिंगेल द्रवित हो गयी। अपने एक पारिवारिक मित्र से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की। उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रांे में खलबली मच गयी। इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ्लोरेंस नाईटेंगल ने अपना इरादा नही बदला। विभिन्न देशों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और शयनकक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया। उनके दृढ़ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी। उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा तथा चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने तथा बनाने के कार्यक्रम आरंभ किये। नाइटिंगेल एक विलक्षण और बहुमुखी लेखिका थी। अपने जीवनकाल में उनके द्वारा प्रकाशित किए गये ज्यादातर लेखांे में चिकित्सा ज्ञान का समावेश होता था। फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1854 में क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने मरीजों और रोगियों की सेवा पूरे मनोयाग से की। क्रीमिया युद्ध के दौरान लालटेन लेकर घायल सैनिकों की प्राणप्रण से सेवा करने के कारण ही उन्हें ‘लेडी बिथ द लैम्प’  (दीपक वाली महिला) कहा गया। नर्सिंग में उनके अद्वितीय कार्य के लिए उन्हें 1869 में उन्हें ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने ‘रायल रेड क्रास’ से सम्मानित किया। जन समुदाय के अनुसार “वह तो साक्षात देवदूत है दुर्गन्ध और चीख पुकार से भरे इस अस्थायी अस्पतालों में वह एक दालान से दूसरे दालान में जाती है और हर एक मरीज की भावमुद्रा उनके प्रति आभार और स्नेह के कारण द्रवित हो जाती है। रात में जब सभी चिकित्सक और कर्मचारी अपने-अपने कमरों में सो रहे होते हैं तब वह अपने हाथांे में लैंप लेकर हर बिस्तर तक जाती है और मरीजांे की जरूरतों का ध्यान रखती है।” इसी बीच उन्होंने नोट्स आन नर्सिग पुस्तक लिखी। उन्होंने 1860 में सेंट टामस अस्पताल और नर्सों के लिए नाइटिंगेल प्रशिक्षण स्कूल की स्थापना की थी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने व इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। उनका 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त, 1910 को निधन हो गया। नाइटिंगेल के द्वारा किये गए सामाजिक सुधारांे में उन्होंने ब्रिटिश सोसाइटी के सभी भागांे में हेल्थकेयर को काफी हद तक विकसित किया। भारत में बेहतर भूख राहत की वकालत की और जहाँ महिलाआंे पर अत्याचार होते हंै वहाँ महिलाआंे के हक में लड़ी और देश में महिला कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस के अवसर पर भारत के महामहिम राष्ट्रपति स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए देश भर से चयनित नर्सों को ‘राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार’ से सम्मानित करते हैं। नर्सों की उल्लेखनीय सेवा को मान्यता देने के लिये केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने वर्ष 1973 में यह पुरस्कार शुरू किया था। इस पुरस्कार के तहत प्रत्येक विजेता को पचास हजार रूपये नकद राशि, प्रशस्ति पत्र और एक पदक प्रदान किया जाता है। हमारा सुझाव:- नई महामारियों, संक्रमण और प्राकृतिक आपदाओं जैसे बढ़ते खतरों से उत्पन्न चुनौती से निबटने के लिए देश की स्वास्थ्य सेवाओं को और बेहतर बनाने के वास्ते नर्सिंग शिक्षा और प्रशिक्षण में नवाचार तथा उन्नत प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। – प्रदीप कुमार सिंह, लेखक यह भी पढ़ें … महिला सशक्तिकरण : नव संदर्भ एवं चुनौतियां बालात्कार का मनोविज्ञान और सामाजिक पहलू  #Metoo से डरें नहीं साथ दें  मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं आपको “ ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की याद में   मनाया जाता है  ‘अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस’“कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Hindi article, International nurses day, Florence Nightingale, nurse, lady with a lamp

इंजीनियर शुभेंदू शर्मा की अफोरेसटेशन की नयी पहल – बसाते हैं शहर – शहर जंगल

             जैसे-जैसे विकास हो रहा है, हरियाली और जंगल खत्म होते जा रहे हैं। इसका असर पर्यावरण पर भी दिखने लगा है। इसके बावजूद हम पेड़-पौधों को लेकर जागरूक नहीं हो रहे हैं। कुछ लोग पेड़-पौधे लगाने की बात तो करते हैं, ताकि पर्यावरण स्वच्छ रहे, लेकिन जब बारी खुद हो, तो पीछे हट जाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पर्यावरण को बचाने के लिए अलग-अलग तरीके से काम कर रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं शुभेंदू शर्मा। पेशे से इंजीनियर शुभेंदू एक कार कंपनी में नौकरी करते थे, जहां उन्हें काफी अच्छी सैलेरी मिलती थी। लेकिन प्रकृति से लगाव की वजह से वे ज्यादा दिन तक नौकरी नहीं कर पाए। उनकी जिद थी कि हर व्यक्ति प्रकृति का अनुभव ले और हर ओर हरियाली हो, इस जिद में आकर उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। इंजीनियर शुभेंदू  शर्मा  की अफोरेसटेशन की नयी पहल  –  बसाते हैं शहर – शहर जंगल              शुभेंदू शर्मा बताते हैं कि एक बार उन्होंने एक जंगल देखा, जिसे जापान की एक डाॅक्टर अकिरा मियावकी ने डिजाइन किया था। उन्हें वह तरीका काफी पसंद आया, क्योंकि उससे पहले वह जमीन बेकार पड़ी थी। उन्हें यह देखकर काफी अच्छा लगा कि हम एक जमीन को उस लायक बना सकते हैं कि वह हमारे और हमारे पर्यावरण के काम आ सके। शुभेंदू शर्मा कहते हैं, ‘उत्तराखंड का होने से मेरे अंदर शुरू से ही प्रकृति के लिए काफी लगाव था, क्योंकि जहां मेरा बचपन बीता, उस जगह सिर्फ हरियाली ही हरियाली थी। काफी सोचने के बाद, मैंने निर्णय लिया कि मैं अब अपने आगे की जिंदगी पेड़-पौधे लगाने में बिताऊंगा। फैसला काफी कठिन था, क्योंकि मैं एक अच्छी नौकरी कर रहा था, जहां मुझे काफी अच्छी सैलरी मिल रही थी। आसान नहीं था फैसला              मुझे याद है जब मैंने यह फैसला लिया, तब मेरे घरवाले मेरे इस फैसले से काफी नाराज थे। सबको मनाना और फिर खुद को भरोसा देने के लिए, मैंने काफी मेहनत की। मैंने डाॅक्टर अकिरा मियावकी से बात की, क्या मैं उन्हें असिस्ट कर सकता हूं। डाॅक्टर अकिरा ने ‘हाँ’ कर दिया और मैंने फिर उन्हीं से सारा काम सिखा। उसके बाद मैंने 2011 में खुद अफोरेस्ट नाम की एक संस्था खोल ली, जिसमें हम बेकार खाली पड़ी जमीन को ठीक करते हैं और उसे हरा भरा बनाते हैं। उस पार्क की खास बात यह होती है कि उनमें लगे पड़े-पौधों पर किसी भी तरह के केमिकल का प्रयोग नहीं होता है। यानी पर्यावरण की सुरक्षा का हम पूरा ध्यान रखते हैं। भारत में हर घर के पीछे एक पार्क हो, ताकि लोग शुद्ध हवा लेकर अपना जीवन पूरा स्वस्थ तरीके से बिता सकंे, अब यही मेरी जिंदगी का उद्देश्य रह गया है।’ बढ़ने लगा काफिला              आगे शुभेंदू बताते हैं कि जब मैंने अफोरेस्ट ( aforest )  की शुरूआत की, तो काफी दिक्कतें आई थीं, क्योंकि मैं अकेला था और कोई ग्राहक भी नहीं मिलता था। लेकिन एक बार मुझे जर्मन कंपनी से 10 हजार पेड़ लगाने का आॅर्डर मिला। तब से लेकर आज तक हमारे पास तकरीबन 50 से ऊपर क्लाइंट हैं, जो हमें पेड़ लगाने का आॅर्डर देते हैं। अगर किसी को अपने घर के बाहर पार्क एरिया बनवाना है, तो उन्हें हमें कम-से-कम 1000 स्क्वायर फीट जमीन देनी होगी। लगभग 20 महीने में हम उन्हें खूबसूरत पार्क बनाकर दे देते हैं। मैं तो चाहता हूं कि भारत में हर घर के पीछे एक पार्क हो, ताकि लोगों को शुद्ध हवा मिले और वे स्वस्थ जिंदगी जी सकें।                                                         संकलन – प्रदीप कुमार सिंह साभार – अमर उजाला नौकरी छोड़ कर खेती करने का जोखिम काम आया        मेरा एक महीने का वेतन पिता के कर्ज के बराबर  जनसेवा के क्षेत्र में रोलमॉडल बनी पुष्प पाल   “ग्रीन मैंन ” विजय पाल बघेल – मुझे बस चलते जाना है  आपको    “ इंजीनियर शुभेंदू  शर्मा  की अफोरेसटेशन की नयी पहल  –  बसाते हैं शहर – शहर जंगल “ कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under:Afforestation, Environment, World Environment day

लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर

अनेक महापुरूषों के निर्माण में नारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान रहा है। कहीं नारी प्रेरणा-स्रोत तथा कहीं निरन्तर आगे बढ़ने की शक्ति रही है। भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही नारी का महत्व स्वीकार किया गया है। हमारी संस्कृति का आदर्श सदैव से रहा है कि जिस घर नारी का सम्मान होता है वहाॅ देवता वास करते हंै। भारत के गौरव को बढ़ाने वाली ऐसी ही एक महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर हैं |  31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई, 1725 को औरंगाबाद जिले के चैड़ी गांव (महाराष्ट्र) में एक साधारण परिवार में हुआ था।इनके पिता का नाम मानकोजी शिन्दे था और इनकी माता का नाम सुशीला बाई था। अहिल्या बाई होल्कर के जीवन को महानता के शिखर पर पहुॅचाने में उनके ससुर मल्हार राव होलकर मुख्य भूमिका रही है। फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स देवी अहिल्या बाई होल्कर ने सारे संसार को अपने जीवन द्वारा सन्देश दिया कि हमें दुख व संकटों में भी परमात्मा का कार्य करते रहना चाहिए। सुख की राह एक ही है प्रभु की इच्छा को जानना और उसके लिए कार्य करना। सुख-दुःख बाहर की चीज है। आत्मा को न तो आग जला सकती है। न पानी गला सकता है। आत्मा का कभी नाश नही होता। आत्मा तो अजर अमर है। दुःखों से आत्मा पवित्र बनती है।                   मातु अहिल्या बाई होल्कर का सारा जीवन हमें कठिनाईयों एवं संकटों से जूझते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। हमें इस महान नारी के संघर्षपूर्ण जीवन से प्रेरणा लेकर न्याय, समर्पण एवं सच्चाई पर आधारित समाज का निर्माण करने का संकल्प लेना चाहिए। अब अहिल्या बाई होल्कर के सपनों का एक आदर्श समाज बनाने का समय आ गया है। मातु अहिल्या बाई होल्कर सम्पूर्ण विश्व की विलक्षण प्रतिभा थी। समाज को आज सामाजिक क्रान्ति की अग्रनेत्री अहिल्या बाई होल्कर की शिक्षाओं की महत्ती आवश्यकता है। वह धार्मिक, राजपाट, प्रशासन, न्याय, सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्याे में अह्म भूमिका निभाने के कारण एक महान क्रान्तिकारी महिला के रूप में युगों-युगों तक याद की जाती रहेंगी। पहाड़ से दुखों के आगे भी नहीं टूटी अहिल्याबाई होलकर   माँ अहिल्या बाई होल्कर ने समाज की सेवा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन पर तमाम दुःखों के पहाड़ टूटे किन्तु वे समाज की भलाई के लिए सदैव जुझती रही। वे नारी शक्ति, धर्म, साहस, वीरता, न्याय, प्रशासन, राजतंत्र की एक अनोखी मिसाल सदैव रहेगी। उन्होंने होल्कर साम्राज्य की प्रजा का एक पुत्र की भांति लालन-पालन किया तथा उन्हें सदैव अपना असीम स्नेह बांटती रही। इस कारण प्रजा के हृदय में उनका स्थान एक महारानी की बजाय देवी एवं लोक माता का सदैव रहा। अहिल्या बाई होल्कर ने अपने आदर्श जीवन द्वारा हमें ‘सबका भला जग भला’ का संदेश दिया है। गीता में साफ-साफ लिखा है कि आत्मा कभी नही मरती। अहिल्या बाई होल्कर ने सदैव आत्मा का जीवन जीया। अहिल्या बाई होल्कर आज शरीर रूप में हमारे बीच नही है किन्तु सद्विचारों एवं आत्मा के रूप में वे हमारे बीच सदैव अमर रहेगी। हमें उनके जीवन से प्रेरणा लेकर एक शुद्ध, दयालु एवं प्रकाशित हृदय धारण करके हर पल अपनी अच्छाईयों से समाज को प्रकाशित करने की कोशिश निरन्तर करते रहना चाहिए। यही मातु अहिल्या बाई होल्कर के प्रति हमारी सच्ची निष्ठा होगी। मातु अहिल्या बाई की आत्मा हमसे हर पल यह कह रही है कि बनो, अहिल्या बाई होल्कर अपनी आत्मशक्ति दिखलाओ! संसार में जहाँ कही भी अज्ञान एवं अन्याय का अन्धेरा दिखाई दे वहां एक दीपक की भांति टूट पड़ो।                 मातु अहिल्या बाई होल्कर आध्यात्मिक नारी थी जिनके सद्प्रयासों से सम्पूर्ण देश के जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों, घाटों एवं धर्मशालाओं का सौन्दर्यीकरण एवं जीर्णोद्धार हुआ। देश में तमाम शिव मंदिरों की स्थापना कराके लोगों धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। नारी शक्ति का प्रतीक महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा दिखाये मार्ग पर चलने के लिए विशेषकर महिलाओं को आगे आकर दहेज, अशिक्षा, फिजुलखर्ची, परदा प्रथा, नशा, पीठ पीछे बुराई करना आदि सामाजिक कुरीतियों का नाम समाज से मिटा देना चाहिए। जिस तरह अहिल्या बाई होल्कर एक साधारण परिवार से अपनी योग्यता, त्याग, सेवा, साहस एवं साधना के बल पर होल्कर वंश की महारानी से लोक नायक बनी उसी तरह समाज की महिलाओं को भी उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। मातु अहिल्या बाई होल्कर सम्पूर्ण राष्ट्र की लोक माता है। जिस तरह राम तथा कृष्ण हमारे आदर्श हैं उसी प्रकार लोकमाता आत्म रूप में हमारे बीच सदैव विद्यमान रहकर अपनी आत्म शक्ति दिखाने की प्रेरणा देती रहेगी। लोक माता अहिल्या बाई होल्कर की आध्यात्मिक शक्तियों से भावी पीढ़ी परिचित कराना चाहिए।                  लोकमाता अहिल्या बाई होलकर ने अपने कार्यो द्वारा मानव सेवा ही माधव सेवा है का सन्देश सारे समाज को दिया है। अहिल्या बाई होल्कर के शासन कानून, न्याय एवं समता पर पूरी तरह आधारित था। कानूनविहीनता के इस युग में हम उनके विचारों की परम आवश्यकता को स्पष्ट रूप से महसूस कर रहे है। मातेश्वरी अहिल्या बाई होल्कर के शान्ति, न्याय, साहस एवं नारी जागरण के विचारों को घर-घर में पहुँचाने के लिए सारे समाज को संकल्पित एवं कटिबद्ध होना होगा। आइये, हम और आप समाज के उज्जवल विकास के लिए देवी अहिल्याबाई के ‘सब का भला – अपना भला’ के मार्ग का अनुसरण करें। अहिल्या बाई होलकर अमर रहे। अहिल्याबाई होलकर के जीवन के कुछ प्रसंग                                              होलकर वंश के मुख्य कर्णधार श्री मल्हार राव होलकर का जन्म 16 मार्च, 1693 में हुआ। इनके पूर्वज मथुरा छोड़कर मराठा के होलगाॅव में बस गये। इनके पिताश्री खण्डोजी होलकर गरीब परिवार के थे इसलिए मल्हार राव होलकर को बचपन से ही भेड़ बकरी चराने का कार्य करना पड़ा। अपने पिता के निधन के पश्चात् इनकी माता श्रीमती जिवाई को अपने बेटे का भविष्य अन्धकारमय लगने लगा। और वह अपने पुत्र को लेकर अपने भाई भोजराज बारगल के यहाॅ आ गयी। अब वह अपने मामा की भेड़े चराने जंगल में जाने लगे। एक दिन बालक के थक जाने पर उसे नींद आ गयी तो पास के बिल से एक सांप ने आकर अपने फन … Read more

कर्म और आत्मसंतुष्टि

गीता के अध्याय 3 में श्रीकृष्ण से अर्जुन ने कहा – हे जर्नादन! हे केशव! यदि आप बुद्धि को सकर्म से श्रेष्ठ समझते हैं तो आप मुझे घोर युद्ध में क्यों लगाना चाहते हैं? आपके उपदेशों से मेरी बुद्धि भ्रमित हो रही है। इसलिए मुझे निश्चयपूर्वक बताये कि इनमें से मेरे लिए श्रेष्ठतम क्या है? कृष्ण ने कहा – हे निष्पाप अर्जुन! जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने वाले दो तरह के इंसान होते हैं। कुछ लोग ज्ञान योग से कुछ लोग भक्ति सेवा के द्वारा आत्मसाक्षात्कार की अवस्था को प्राप्त करने का प्रयास करते हंै। हे अर्जुन! न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्म फल से छुटकारा पा सकता है। और न केवल संन्यास से सिद्धि पायी जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति के अर्जित गुणों के अनुसार कर्म करना पड़ता है। कोई भी इंसान एक क्षण के लिए भी कर्म से दूर नहीं रह सकता। Karma and self satisfaction(in Hindi) कर्म न करने की अपेक्षा यज्ञीय भाव से कर्म करना श्रेष्ठ है। यज्ञीय भाव से कर्म करने से भगवान के भक्त सारे पापों से मुक्त हो जाते हैं। यज्ञ नियत कर्म करने से उत्पन्न होता है। इन्द्रियों की तृप्ति के लिए कर्म करने से जीवन व्यर्थ में जाता है। कर्मफल में असाक्त हुए बिना मनुष्य को निरन्तर यज्ञीय भाव से कर्म करना चाहिए। यज्ञीय भाव से जीवन जीने वाले राजा जनक इसका श्रेष्ठ उदाहरण थे। भगवान कहते है कि यदि मैं भी निश्चित कर्म न करूं तो सारे लोग भी मेरा अनुसरण करेंगे। विद्वान लोगों को चाहिए कि साक्षी भाव से अपने प्रत्येक कर्म को परमात्मा को समर्पित करके करें ताकि उनके जीवन से संसार के लोगों को प्रेरणा मिले। इसलिए हे अर्जुन अपने कार्याें को मेरे पर समर्पित करके युद्ध करो। हमारा मानना है कि ज्ञानी पुरूष अपनी प्रकृति के अनुकूल नौकरी या व्यवसाय का कार्य करते हैं। लोककल्याण की भावना से अपनी नौकरी या व्यवसाय करना आत्मसाक्षात्कार के लिए सहायक है। अर्जुन ने कहा- हे देवकी नंदन! मनुष्य न चाहते हुए भी बुरे कर्म में क्यों संलग्न रहता है? कृष्ण ने कहा- हे भारत! इन्द्रियों को वश में करके कार्य करें। फल की इच्छा से प्रेरित होकर कर्म ही बंधन बनते हैं। क्योंकि हमारे कर्म यज्ञ नहीं बने है। यज्ञीय तथा साक्षी भाव से हम जीवन में जो क्रिया करते हैं उस कर्म को करते हुए हमें जो आनंद प्राप्त होता है वह ही उस कर्म का महाफल हैं।  हमारा मानना है कि माया निरन्तर दूरबीन लेकर हमारे ऊपर नजर लगाये बैठी है। वह अपनी पैनी दृष्टि से यह देखती है कि इस इंसान की रूचि किसमें है। माया के लिए हमको वश में करने के लिए एक इन्द्री की पकड़ ही काफी है। डोर का एक छोर पकड़ में आ गया तो फिर डोर की पूरी रील खीची जा सकती है। शरीर से पांच इन्द्रियां श्रेष्ठ हैं, पांच इन्द्रियों से मन श्रेष्ठ है, मन से श्रेष्ठ बुद्धि है तथा बुद्धि से श्रेष्ठ आत्मा है। इस प्रकार हमें आत्मा के द्वारा बुद्धि को वश में करके पूर्णतया अहंकाररहित तथा भौतिक इच्छा रहित संतुलित जीवन जीना चाहिए। गीता के अध्याय 3 को जानकर, पीकर तथा जीकर अब हम जो भी कर्तव्य करेंगे उसमें महा-आनंद तथा महाफल मिलना सुनिश्चित है। भौतिक समृद्धि तो बोनस में मिलने ही वाली हैं।  माता-पिता अपने बच्चे से कहते हैं कि बेटे! जाओ मोहल्ले के मैदान/पार्क में बच्चों के साथ खेल कर आओ हम तुम्हें चाकलेट देंगे। बच्चे अच्छी तरह समझते हैं  कि खेलने में ही महाफल छिपा है। उसके लिए चाकलेट की लालच देने की क्या आवश्यकता है। सहजता में जी रहे बच्चे के लिए जीवन ही एक खेल है और वह उसके प्रत्येक पल का आनंद लेते हैं। इसलिए बच्चे भगवान के ज्यादा नजदीक रहते हैं। बच्चों को हम बड़ी उम्र के लोग ही अज्ञानतावश ईश्वर से दूर करते हैं । इस शायरी के ये पंक्तियां बहुत प्रेरणादायी हैं – घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूँ कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये। रोशनी की भी हिफाजत है इबादत की तरह,  बुझते सूरज से, चारागों को जलाया जाये।  जीवन हो खेल जैसा  हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं उसके साथ ही हम यह भूलते जाते हैं कि कर्म में ही महाफल आत्मिक संतुष्टि तथा आनंद के रूप में छिपा है। हमारा सारा जीवन एक खेल ही है। समझ के साथ कर्म करने से अन्दर से आनंद के रूप में महाफल मिलता ही है। हमें जीवन में होने वाली घटनाओं को खेल समझकर लेना चाहिए। खेल में आसक्ति की वजह से उलझ ना जाएँ। जीविका लक्ष्य के साथ ही उसके साथ पृथ्वी में आने के उद्देश्य को भी साथ जोड़कर हर पल जीना चाहिए। पृथ्वी का लक्ष्य है – इस हथियार रूपी मन तथा मित्र रूपी शरीर के द्वारा ईश्वर की उच्चतम अभिव्यक्ति करना। ईश्वर ही है हम है कि नहीं पता करें? वर्ष 2018 गीता का श्रवण और मनन करने के लिए बेहतरीन सुअवसर ईमानदारी के साथ अपनी नौकरी या व्यवसाय करना ही आत्मा के विकास का एकमात्र तथा सबसे सरल उपाय है। इसके अलावा आत्मा के विकास का अन्य कोई रास्ता नहीं है। यदि हम गीता के द्वारा भगवान के इशारे तथा संकेतों को समझ गये तो पूरा जीवन सफल है। वर्ष 2018 गीता का श्रवण और मनन करने के लिए बेहतरीन सुअवसर है। गीता के 18 अध्याय की तरह इस वर्ष में भी 18 का योग है। इसलिए वर्ष 2018 में पूरे वर्ष गीता का श्रवण तथा मनन करने का सुनहरा अवसर है। इस संजोग का भरपूर लाभ उठाकर हमें अपनी गीता को अपने रोजाना के क्रियाकलापों तथा आचरण द्वारा प्रकट करना है। ज्ञान को आचरण में लाना ही भक्ति है। यह सब बहुत आसान है। बस केवल सूचनाओं को पालन करना पड़ता है। हम बीमारी में मेडिकल स्टोर से दवा लेकर आते हैं। दवा के डिब्बे में सूचनायें लिखी होती है कि डाक्टर के पूछे बिना दवा मत लीजिए। डाक्टर को दवा के बारे में पूरा ज्ञान होता है। ज्ञानी युधिष्ष्ठिर बनकर नहीं बैठना है। ईश्वर को जो लगे अच्छा वह ही मेरी इच्छा है। ईश्वर की इच्छा को अपनी इच्छा बनाकर जीने में समझदारी है। इसके … Read more

क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?

                मानव मस्तिष्क हमेशा कुछ नया और अद्भुत खोजने की कोशिश करता है। विज्ञान जगत द्वारा रोमांच की अजीबोगरीब दुनिया में छिपे रहस्यों का पता लगाने के लिये रोज कोई न कोई नई तकनीक विकसित की जा रही है। आदिकाल से ही इस धरती पर रहने वाले लोगों की दिलचस्पी हमेशा ये जानने में रही है कि इस पृथ्वी लोक के अलावा क्या ब्रह्माण्ड कोई दूसरा ग्रह भी है जहां कोई जीव रहते हैं? विज्ञान को या वैज्ञानिकों को अभी तक ऐसे कोई पक्के सुबूत नहीं मिले हैं जिन्हें देखकर ये दावा किया जा सके कि एलियनों का अस्तित्व वाकई में है। संसार में दावे प्रतिदावे तरह- तरह के रहे हैं। कभी किसी अज्ञात उड़न तश्तरी देखने का दावा तो कभी धरती पर किसी हलचल का दावा। लेकिन विभिन्न तरह के साक्ष्य और भी हैं जो संकेत देते हैं कि हो सकता है कि एलियन होते ही हों और वो आज भी धरती पर आते हों और फिर चले जाते हों। क्या आपने कभी सोचा कि धरती पर ऐसे कई निशान और सुराग मिले हैं जो ना सिर्फ बहुत पुराने हैं बल्कि वो इतने सटीक हैं कि ये सोचना मुश्किल है कि उस काल में रह रहे लोगों ने उन्हें बनाया होगा।                 कुछ वर्षों पूर्व जब अंध-विश्वास के कारण विज्ञान अपनी उपस्थिति तथा उपयोगिता नहीं सिद्ध कर पा रहा था। तब लोग प्रेत-आत्माओं और काले जादू की दुनिया पर विश्वास रखते थे। प्रेत-आत्माओं और काले जादू की दुनिया  से मानव जाति का अज्ञान रूपी पर्दा उठाने के बाद वैज्ञानिक ऐसे रास्तों को खोजना चाह रहे हैं जो उन्हें ब्रह्माण्ड में स्थित दूसरे ग्रहों में रहने वाले प्राणियों तक पहुँचा सके। साथ ही उनके साथ ज्ञान-विज्ञान का आदान-प्रदान कर सके।  जाने क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?                 वैज्ञानिकों का मानना है कि आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा ब्रह्माण्ड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक एक जबदस्त विस्फोट- बिग बैग हुआ और ब्रह्यांड अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के प्रारभिक क्षणों में आदि पदार्थ व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से चारों तरफ बिखरने लगा।  कुछ ही क्षणों में ब्रह्माण्ड व्यापक हो गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ धीमी हुई। ब्रह्माण्ड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना पदार्थ से टकराये बेरोकटोक लम्बी दूरी तय करने लगा और ब्रह्माण्ड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तक ब्रह्यांड हजार गुना अधिक विस्तार ले चुका है। ब्रह्माण्ड बनने की खोज के लिए जिनेवा के पास हुए अब तक के सबसे बड़े वैज्ञानिक महाप्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों का दावा था कि उन्हें इस महाप्रयोग से हिग्स बोसोन कण मिला है। भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने आगाह किया है कि वैज्ञानिकों ने जिस कण हिग्स बोसोन की खोज की है, उसमें समूचे ब्रह्मांड को तबाह-बरबाद करने की क्षमता है। क्या है ब्रह्माण्ड का भविष्य                  ब्रह्यांड का आने वाले समय में क्या भविष्य क्या है, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है? क्या अनंत ब्रह्माण्ड अनंतकाल तक विस्तार लेता ही जाएगा? सैद्धांतिक दृष्टि से इस बारे में सच्चाई यह उभरती है कि चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों तथा अन्य अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार को सौरमण्डल कहते है। कोई भी ग्रह एक विशाल, ठंडा खगोलीय पिण्ड होता है जो एक निश्चित कक्षा में अपने सूर्य की परिक्रमा करता है। ब्रह्माण्ड में अवस्थित आकाशीय पिंडों का प्रकाश, उद्भव, संरचना और उनके व्यवहार का अध्ययन खगोलिकी का विषय है। अब तक ब्रह्माण्ड के जितने भाग का पता चला है उसमें लगभग 19 अरब आकाश गंगाओं के होने का अनुमान है और प्रत्येक आकाश गंगा में लगभग 10 अरब तारे हैं। आकाश गंगा का व्यास लगभग एक लाख प्रकाशवर्ष है। हमारी पृथ्वी पर आदिम जीव 2 अरब साल पहले पैदा हुआ और आदमी का धरती पर अवतरण 10-20 लाख साल पहले हुआ।                 एक प्रकाशवर्ष वह दूरी है जो दूरी प्रकाश एक लाख छियासी हजार मील प्रति सेकेंड की गति से एक वर्ष में तय करता है। उदाहरण के लिए सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सवा नौ करोड़ मील है, प्रकाश यह दूरी सवा आठ मिनट में तय करता है। अतः पृथ्वी से सूर्य की दूरी सवा आठ प्रकाश मिनट हुई। जिन तारों से प्रकाश आठ हजार वर्षों में आता है, उनकी दूरी हमने पौने सैंतालिस पद्म मील आँकी है। लेकिन तारे तो इतनी इतनी दूरी पर हैं कि उनसे प्रकाश के आने में लाखों, करोड़ों, अरबों वर्ष लग जाता है। इस स्थिति में हमें इन दूरियों को मीलों में व्यक्त करना संभव नहीं होगा और न कुछ समझ में ही आएगा। इसीलिए प्रकाशवर्ष की इकाई का वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया है। अनादी – अंनत है ब्रह्माण्ड                  मान लीजिए, ब्रह्माण्ड के किसी और नक्षत्रों आदि के बाद बहुत दूर-दूर तक कुछ नहीं है, लेकिन यह बात अंतिम नहीं हो सकती है। यदि उसके बाद कुछ है तो तुरंत यह प्रश्न सामने आ जाता है कि वह कुछ कहाँ तक है और उसके बाद क्या है? इसीलिए हमने इस ब्रह्मांड को अनादि और अनंत माना। इसके अतिरिक्त अन्य शब्दों में ब्रह्मांड की विशालता, व्यापकता व्यक्त करना संभव नहीं है।                 अंतरिक्ष में कुछ स्थानों पर टेलिस्कोप से गोल गुच्छे दिखाई देते हैं। इन्हें स्टार क्लस्टर या तारा गुच्छ कहते हैं। इसमें बहुत से तारे होते हैं जो बीच में घने रहते हैं और किनारे बिरल होते हैं। टेलिस्कोप से आकाश में देखने पर कहीं कहीं कुछ धब्बे दिखाई देते हैं। ये बादल के समान बड़े सफेद धब्बे से दिखाई देते हैं। इन धब्बों को ही नीहारिका कहते हैं। इस ब्रह्माण्ड में असंख्य नीहारिकाएँ हैं। उनमें से कुछ ही हम देख पाते हैं। इस अपरिमित ब्रह्माण्ड का अति क्षुद्र अंश हम देख पाते हैं। आधुनिक खोजों के कारण जैसे जैसे दूरबीन की क्षमता बढ़ती जाती है, वैसे वैसे ब्रह्माण्ड के इस दृश्यमान क्षेत्र की सीमा बढ़ती जाती है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में ब्रह्माण्ड की पूरी थाह मानव क्षमता से बहुत दूर है।                 दूरबीन से ब्रह्माण्ड को देखने पर हमें ऐसा प्रतीत होता है कि हम इस ब्रह्मांड के केंद्रबिंदु हैं और बाकी चीजें हमसे दूर भागती जा रही हैं। यदि … Read more

जीवन के विकास के लिए काम और आराम दोनों ही जरूरी हैं!

काम और आराम में संतुलन बनाने से जीवन सफल बनता है:- कुछ लोग काम को अधिक महत्त्व देते हैं और आराम करना पसंद नहीं करते और कुछ लोग आराम को इतना महत्त्व देते हैं कि कुछ काम ही नहीं करना चाहते; जबकि काम और आराम में संतुलन बिठाने से ही जीवन स्वस्थ व संतुलित गति से प्रवाहित होता है। मनोवैज्ञानिक डाॅ0 विलियम एस. एडलर का कहना है कि ‘यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में ठीक से विश्रांत नहीं हो पाता है तो इसका एकमात्र कारण है कि वह तनाव में है और तनाव चिंता का बाई प्रोडक्ट है।’ उनका यह भी कहना है कि ‘काम की अधिकता से संकट नहीं है, संकट है, उसका बोझ महसूस करना।’ मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ:- ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल रोजाना नियमित रूप से 18 घंटे काम करते थे। उनसे किसी ने एक बार पूछा- ‘‘आपके पास इतनी समस्याएँ हैं, आपको चिंता नहीं होती?’’ चर्चिल का जवाब था- ‘‘मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ।’’ ठीक इसी तरह की बात महान वैज्ञानिक ब्लेसी पास्कल भी कहते थे- ‘‘पुुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं में शांति इसलिए रहती है; क्योंकि वहाँ सब अपने काम में इतना मग्न रहते हैं कि उन्हें अपने बारे में चिंता करने का समय ही नहीं मिलता।’’ यह बात शाब्दिक तौर से ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी सच है कि चिंता नहीं होगी यदि चिंता करने का समय ही नहीं मिलेगा। तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है:- आराम का मतलब है- मस्तिष्क को तरह-तरह के विचारों, विभिन्न प्रकार के कार्यों से थोड़ी देर के लिए खाली कर देना। उसे इतना रिक्त कर देना कि उसमें से सब कुछ बाहर आ जाए यहाँ तक कि द्वेष, निराशा, कंुठा, क्रोध आदि विकार भी मस्तिष्क में न रहने पाएँ। ‘इवोल्युशनरी साइकियेट्री’ पुस्तक को लिखने वाली हाॅर्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइकियेट्री विभाग की सदस्या डाॅ0 एमिली डीन्स का कहना है कि ‘अपने तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है। एक भरपूर नींद और थोड़ी-सी खेलने की प्रवृत्ति हमारी जिंदगी को बेहतर बना सकती है।’ जीवन जीने के लिए एक तरह के संतुलन की जरूरत पड़ती है और यह संतुलन कार्य और आराम के बीच तालमेल बैठाने से आता है। मनुष्य का जन्म सहज होता है लेकिन मनुष्यता कठिन परिश्रम से प्राप्त की जाती है:- हमारे मन की प्रवृत्तियाँ ही शरीर के अंग-प्रत्यंगों एवं सूक्ष्मचेष्टाओं पर सबसे अधिक असर डालती हैं। कोई भी काम कितना मुश्किल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं? महान दार्शनिक जर्मी बेंथम इस बारे में कहते थे कि ‘मैं कभी ंिचंता नहीं करता; क्योंकि मैं जिन बातों की चिंता करूँगा, वे शायद ही कभी पूरी होंगी। पर जिन कामों में मैं व्यस्त हूँ, वे आज नहीं तो कल अवश्य पूरे होंगे।’ इसलिए यह जरूरी है कि कार्य की मुश्किलों को दूर करने के लिए कार्य किया जाए न कि चिंता। मनुष्य कार्य की अधिकता से नहीं वरन् कार्य को बोझ समझकर तथा अनियमित ढंग से करने से थकता है। मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है। काम के साथ थोड़ा सा खेल अत्यधिक लाभदायक है:- यदि हम ठीक प्रकार से नींद ले पाते हैं तो काम करने के लिए भली प्रकार तैयार हो पाते हैं और फिर स्वस्थ, प्रसन्न, शांत व तरोताजा मन से कार्य कर पाते हैं। इसी तरह मन को उत्साहित करने का कार्य छोटे-छोटे खेल करते हैं। काम की भागमभाग में थोड़ा-सा खेल हमारे तन व मन पर गजब का असर डालता है। – प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,  लेखक, युग शिल्पी एवं समाजसेवी,  लखनऊ यह भी पढ़ें … तेज दौड़ने के लिए जरूरी है धीमी रफ़्तार इमोशनल ट्रिगर्स – क्यों चुभ जाती है इत्ती सी बात प्रेम की ओवर डोज व्यक्तित्व विकास के पांच बेसिक नियम – बदलें खुद को आपको आपको  लेख “ क्या आप भी दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते हैं ?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords:  personality, , personality development , work -life balance, work   

मृत्यु सिखाती है कर्तव्य का पाठ

                                                                      मृत्यु से ही जीवन  में कर्तव्य निभाने की सीख मिलती है                    जीवन है तो मृत्यु अटल है | जो मृत्यु की इस वास्तविकता को जीवित रहते समझ लेता है | वो जीवन में कर्तव्य के महत्व को समझ लेता है | निरतर अपने कर्तव्य में लगे रह कर मृत्यु का वरण  करना ही सही जीवन जीने का तरीका है | पर हम में से कितने ऐसा कर पाते हैं |          वास्तव में पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु इन पंचतत्वों से इस शरीर की रचना हुई है। शरीर को रोजाना पौष्टिक भोजन देकर तथा पंचतत्वों में संतुलन रखकर हम उसे लम्बी आयु तक हष्ट-पुष्ट तथा निरोग रखते है। इस मानव शरीर की सर्वोच्च मूल आवश्यकताएँ प्रकृति के द्वारा पूरी होती रहें। इसलिए प्रकृति के संपर्क में रहना होगा तथा उसकी रक्षा करनी होगी। शरीर के कनेक्शन प्रकृति से जुड़े हुए हैं। शरीर को जीवनीय शक्ति और पोषण प्रकृति से उपलब्ध होता है। जानिये मृत्यु कैसे सिखाती है कर्तव्य का पाठ   मृत्यु की घटना के कारण जीवनीय शक्ति के शरीर में प्रवेश करने का द्वार बन्द हो जाता है, फिर शरीर प्रकृति से किसी भी प्रकार का पोषण लेने में असमर्थ हो जाता है। इस कारण से मनुष्य मृत्यु को प्राप्त होता है। जब भी किसी अरथी को मनुष्य देखता है तो एक क्षण के लिए ही सही, मनुष्य के मन में यह महसूस होता है कि उसके जीवन का भी एक दिन यही अंत होगा। इसी कारण मनुष्य के शरीर का अंत होने पर अरथी सजाई जाती है। अरथी का मतलब ही है, जो जीवन के अर्थ को बतलाए। जीवन बस यूँ ही जी लेने के लिए नहीं है। जीवन एक कर्तव्य है, जीवन एक अन्वेषण है, जीवन एक खोज है। जीवन एक संकल्प है। जीवन भर व्यक्ति इसी सोच-विचार में उलझा रहता है कि उसका परिवार है, उसकी पत्नी व बच्चे हैं। इनके लिए धन जुटाने और सुख-सुविधाओं के सरंजाम जुटाने के लिए वह हर कार्य करने को तैयार रहता है, जिससे अधिक से अधिक धन व वैभव का अर्जन हो सके। अपने स्वार्थ के लिए व्यक्ति दूसरों को भी नुकसान पहुँचाने के लिए तैयार रहता है।  जबकि हर व्यक्ति का मन रूपी दर्पण हमारे भले-बुरे सारे कर्मों को देखता और दिखाता है। इस उजले दर्पण में प्राणी धूल न जमने पाये। मन की कदर भुलाने वाला हीरा जन्म गवाये। जब व्यक्ति अरथी पर पहुँचता है। उस समय व्यक्ति को जीवन का अर्थ समझ में आता हैं, लेकिन इस समय पश्चात्ताप के अलावा कुछ और नहीं बचता है। सब कुछ मिट्टी में मिल चुका होता है। मृत्यु के बाद अर्थी  सजाना  जीवन का मूल अर्थ समझाने का तरीका  जब व्यक्ति की अरथी उठाई जाती है, उस समय उसकी विचारवान बुद्धि मृत व्यक्ति से कहती है- ‘देखो! यही तुम्हारे इस जीवन की, शरीर की वास्तविकता है। तुम्हें खुद सहारे की जरूरत है, तुम झूठा अहंकार करते रहे कि तुम लोगों को आश्रय दे रहे हो। जिन लोगों के लिए तुम दिन-रात, धन-वैभव जुटाने में लगे रहे, आज वे ही संगी-साथी तुम्हें वीराने में ले जाकर अग्नि में समर्पित कर देंगे।’ जीवन का मात्र यही अर्थ है। इसलिए अरथी को जीवन का अर्थ बताने वाला कहा गया है। अंत में सभी की यही गति होनी है। मनुष्य का जन्म इस महान उद्देश्य के लिए हुआ है कि वह लोक कल्याण के कार्यों द्वारा अपने जीवन को सार्थक कर सके, और सार्थकता तभी हासिल की जा सकती है, जब मनुष्य अपने जीवन के परम अर्थ को समझ सके। जो व्यक्ति इस अर्थ को समय रहते नहीं समझता, उसे अरथी पर जाकर ही जीवन का अर्थ ज्ञात होता है।  जिन्हें मृत्यु याद रहती है, वे व्यक्ति अपना पूरा ध्यान कर्तव्य  के पालन में लगाते हैं और परमार्थी जीवन जीते हैं; क्योंकि कर्तव्य पालन  हमें कभी भी स्वार्थी व आसक्त नहीं बनाता, बल्कि नित्य-निरंतर हमारे जीवन को लोक कल्याणकारी बनाता है। कर्तव्य पालन  करने वाला व्यक्ति संसार से उसी तरह निर्लिप्त रहता है, जिस तरह कीचड़ में खिला हुआ कमल कीचड़ से निर्लिप्त रहता है। कर्तव्यपालन करने से ही व्यक्ति को वास्तव में मनुष्य जीवन की गरिमा का बोध होता है। यह बात पूर्णतः अटल सत्य है कि हर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है, लेकिन इस संसार में रहकर इस बात का सरलता से भान नहीं होता कि जो शरीर आज जीवित है, सुख-भोग कर रहा है, उसकी मृत्यु भी हो जाएगी। इसी कारण यक्ष के द्वारा युधिष्ठिर से यह प्रश्न पूछने पर कि ‘‘इस संसार का परम आश्चर्य क्या है?’ युधिष्ठिर ने जवाब दिया- ‘मृत्यु।’ इस संसार में नित्य लोग मरते हैं, लेकिन फिर भी कोई जीवित व्यक्ति यह स्वीकार नहीं कर पाता कि एक दिन उसकी भी मृत्यु हो जाएगी। मृत्यु का आगमन अघोषित है। इसलिए प्रत्येक दिन अपने कर्मों का लेखा-जोखा कर लेना चाहिए। कोई नहीं जानता कि किस क्षण में उसकी मृत्यु की घटना छुपी है। जब जन्म शुभ है तो मृत्यु कैसे अशुभ हो सकती है। महापुरूष मृत्यु के बाद भी अच्छे कर्मों तथा अच्छे प्रेरणादायी विचारों के रूप में युगों-युगों तक जीवित रहते हैं। मृत्यु की इस वास्तविकता से अपरिचित होने के कारण ही मनुष्य इस संसार में तरह-तरह के कुकर्म करता है और अपने पापकर्मों को बढ़ाता जाता है। इन पापकर्मों की परत इतनी मोटी होकर उसके मानवीय गुणों के प्रकाश को कैद कर लेती है, उसे उसी प्रकार ढक देती है, जैसे सूर्य के तेज प्रकाश को बादलों की परतें ढक्कर धरती तक नहीं आने देतीं। जीवन को सुधारो तो मृत्यु सुधरती है  कर्मों का भार उसके मन पर कितना बोझिल हो रहा है, इस बात का भान उसे तब होता है, जब उसका शरीर अरथी पर चढ़ता है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। इसलिए जरूरी यह है कि मनुष्य अपने जीवन के अर्थ को समय रहते ही समझ सके और अपने कर्तव्यों  का निर्वहन करते हुए, लोक कल्याणकारी जीवन जीते हुए, अपने … Read more

स्वप्नदृष्टा युवा वैज्ञानिक डा. रविकांत- जो भारत में बना रहे हैं सिलिकॉन वैली की तरह इन्टरनेशनल प्रयोगशाला

अमेरिका की सिलिकाॅन वेली की तरह भारत को इण्टरनेशनल रिसर्च की वैश्विक प्रयोगशाला बनाने के निर्माण में साधनारत युवा वैज्ञानिक डा. रविकांत लखनऊ सितम्बर। स्वीडन के युवा वैज्ञानिक डा. रविकांत के नेतृत्व में संचालित तथा निर्मित इण्टरनेशनल रिसर्च की वैश्विक प्रयोगशाला, गुरूकुल, भारत उदय तथा ग्रामीण विकास का अध्ययन करने हेतु सिटी मोन्टेसरी स्कूल के सलाहकार प्रदीप कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार श्री संजीव कुमार शुक्ला, तेजज्ञान फाउण्डेशन, पुणे की सत्याचार्या श्रीमती गंुंजन तिवारी, शिक्षिका श्रीमती स्मिता त्रिपाठी एवं समाजसेवी विश्व पाल का पांच सदस्यीय एक दल लखनऊ से सड़क मार्ग से उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के छेड़ी बसायक गांव से 26 सितम्बर 2017 को एक दिवसीय यात्रा से उत्साहवर्धक अनुभव को लेकर वापिस लौटा। इस यात्रा के दौरान हमीरपुर जिले के छेड़ी बसायक गांव में जन्मे स्वीडन की गोटेनबर्ग यूनिवर्सिटी में कार्यरत युवा एसोसिऐट प्रोफेसर रविकांत से 100 एकड़ जमीन में बसाये जा रहे भव्य इण्टरनेशनल रिसर्च सेन्टर, गुरूकुल, भारत उदय मिशन, विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त होस्टल, जैविक खेती के द्वारा ग्रामीण भारत को रसायनमुक्त तथा लाभकारी खेती की जानकारी प्राप्त की। आपने भारतीय संस्कारों तथा आधुनिक संसाधनों से युक्त गुरूकुल तथा इण्टरनेशनल रिसर्च सेन्टर की दो मंजिला भव्य बिल्डिंग का निर्माण भी किया है। देश-विदेश के पर्यावरण शोधार्थियों एवं विशेषज्ञों के लिए आधुनिक संसाधनों से लेस प्रयोगशाला, मीटिंग हाल, आवास आदि की विश्वस्तरीय व्यवस्था की गयी है। आश्रम में जैविक खेती से उत्पन्न अनाजों, फलों, जड़ी-बुटियों तथा गौशाला के दूध, मठे तथा शुद्ध घी का उपयोग किया जाता है।  डा. रविकांत सिटी मोन्टेसरी स्कूल, चैक शाखा, लखनऊ के पूर्व छात्र रहे हैं। डा. रविकांत अपना प्रेरणास्रोत महात्मा गांधी तथा सिटी मोन्टेसरी स्कूल के संस्थापक-प्रबन्धक डा. जगदीश गांधी व डा. भारती गांधी को मानते हैं। उन्होंने डा. जगदीश गांधी व डा. भारती गांधी के प्रति उस जैसे गरीब बालक को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में दिये गये सहयोग के लिए बारम्बार आभार प्रगट किया। डा. रविकांत ने नेतृत्व में भारत उदय मिशन इस गुरूकुल में प्रारम्भिक अवस्था से भारतीय संस्कारों पर आधारित आधुनिक शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था करने जा रहा है। इस गुरूकुल में बच्चों को चरित्र निर्माण, आध्यात्मिक गुणों के विकास, प्रकृति से जुड़ाव, प्रदुषण मुक्त जीवन तथा आधुनिक शिक्षा की आवासीय व्यवस्था भी रहेगी। इस नवीन पद्धति से प्रत्येक बालक खिलकर तथा खुलकर आत्मनिर्भरता पूर्वक तनावरहित जीवन जीने का भरपूर आनंद ले सकेगा। युवा वैज्ञानिक हरित ऋषि डा. रविकांत द्वारा इस संस्कारयुक्त तथा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से ओतप्रोत नवीन शिक्षा पद्धति को विश्व नागरिक गढ़ने की एक खुली प्रयोगशाला का स्वरूप दिया जा रहा है। इस युवा वैज्ञानिक की दिशायुक्त परिकल्पना है कि इस गुरूकुल केन्द्र के सफल होने के बाद इसे पूरे देश के प्रत्येक जिले में विस्तार दिया जायेगा। आपके द्वारा भारत उदय मिशन के अन्तर्गत विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र के गरीब प्रतिभाशाली बच्चों को सहयोग, मार्गदर्शन एवं सुझाव दिया जाता है। भारत उदय के इस महाभियान से जुड़ने के लिए डा. रविकांत से सीधे सम्पर्क किया जा सकता है। – संजीव कुमार शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार, लखनऊ मो. 9140318805 ःःः सम्पर्क सूत्र:ःः डा. रविकान्त मो. 7081996274 तथा प्रदीप कुमार सिंह, लखनऊ मो. 9839423719 (डा. रविकांत 28 सितम्बर को दिल्ली से स्वीडन के लिए रवाना हो रहे हैं।  वह दिसम्बर 2017 में पुनः स्वदेश लौटेगे)