लाइट , कैमरा ,एक्शन की तर्ज पर लाइक , कमेंट ,एडिक्शन …. और दोनों ही ले जाते हैं एक ऐसी दुनिया में जो असली नहीं है | जहाँ अभिनय चल रहा है | फर्क बस इतना है की एक अभिनय को हम तीन घंटे सच मान कर जीते हैं … रोते हैं ,हँसते हैं और वापस अपनी दुनिया में आ जाते हैं , लेकिन दूसरा अभिनय हमारे जीवन से इस कदर जुड़ जाता है कि हम उससे खुद को अलग नहीं कर पाते | हमारा निजी जीवन इस अभिनय की भेंट चढ़ने लगता है , बच्चों के लिए समय नहीं रहता है , रिश्तों में दूरियाँ आने लगती हैं और सबसे बड़ी बात हमारी रचना शीलता में कमी आने लगती है …. मैं बात कर रही हूँ फेसबुक की जिसने लेखकों को एक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म दिया , नए -नए लेखक सामने आये , उन्होंने खुद को अभिव्यक्त करना और लिखना सीखा … परन्तु इसके बाद वो यहीं उलझ कर रह गए … फेसबुक एडिक्शन ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया | उनका लेखन एक स्तर से ऊपर बढ़ नहीं पाया | क्या फेसबुक पर अतिसक्रियता रचनाशीलता में बाधा है ? जब भी कोई लेखक कोई रचना लिखता है तो उसकी इच्छा होती है कि लोग उसे पढ़ें उस पर चर्चा करें | फेसबुक एक ऐसा मंच है जहाँ ये संभव है | लोग लाइक व कमेंट के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते हैं | परन्तु फिर भी एक सीमा से ऊपर लेखक इन गतिविधियों में फंस जाता है | कैसे ? जरा गौर करें …. अगर आप भी फेसबुक पर हैं तो आपने महसूस किया होगा कि लाइक और कमेंट का एक नशा होता है …. अगर किसी एक पोस्ट पर लाइक या कमेंट बहुत बड़ी संख्या में मिल जाए तो हर पोस्ट पर उतने की आशा रहती है | ये सामान्य मनोविज्ञान है | अब हर पोस्ट शायद इस लायक नहीं होती कि उस पर ढेरों लाइक या कमेंट मिलें पर स्वाभिमान या अहंकार ये मानने को तैयार नहीं होता | अब हर पोस्ट पर उतनी लाइक पाने की जुगत में वो या तो अपने सभी मित्रों की अच्छी या बुरी पोस्ट पर लाइक लगता है ताकी वो भी बदले में उसकी पोस्ट पर आयें | फेसबुक का एक अलिखित नियम है आप मेरी पोस्ट पर आयेंगे तभी हम आपकी पोस्ट पर आयेंगे | दूसरा वो समय-समय पर अपने मित्रों को हड्काने का काम करेंगे … जो मेरी पोस्ट पर नहीं आएगा मैं उसको अनफ्रेंड या ब्लॉक कर दूँगा /दूंगी | ये एक तरह से खुली चुनौती है कि आप को अगर फ्रेंड लिस्ट में रहना है तो मेरी पोस्ट पर आना ही पड़ेगा …. जबकि ये लोग अपनी फ्रेंड लिस्ट में हर किसी की पोस्ट पर नहीं जाते | वो काटने छांटने में ही व्यस्त रहते हैं | तीसरा अपना नाम बार -बार लोगों की निगाह में लाने के लिए ये लोग बार-बार स्टेटस अपडेट करते हैं | यानि एक दिन में कई स्टेटस डालते हैं | स्टेटस न मिला तो तस्वीरे डालते हैं … अपनी न सही तो फूल पत्ती की ही सही | आंकड़े बताते हैं की तस्वीरों पर लाइक ज्यादा मिलती है | जो लोग लेखन के लिए फेसबुक पर नहीं हैं , उनकी मित्र संख्या भी केवल निजी परिचितों की है , उनके लिए ठीक है, जो फोटो ग्राफर बनना चाहते हैं उनके लिए भी ठीक है , पर जो लेखन में गंभीरता से जाना चाहते हैं क्या उनके लिए उचित है ? या महज अहंकार की तुष्टि है | कैसे होती है रचनाशीलता प्रभावित प्रकृति का नियम है जब फल पक जाता है तब वो खाने लायक होता है | सब्जी में कोई मसाला कच्चा रह जाए तो सारी सब्जी का स्वाद बिगाड़ देता है , चावल कच्चा रह जाए तो खाने योग्य ही नहीं होता … फिर कच्ची रचना का क्या दुष्प्रभाव है ये हम क्यों नहीं सोचते | आज ज्यादातर लेखक जल्दी से जल्दी लाइक कमेन्ट पाने की या प्रतिक्रिया पाने की आशा में कच्ची रचना फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं | ये यूँ तो गलत नहीं लगता पर धीरे -धीरे कच्ची रचना लिखने की आदत पड़ जाती है | लेखन में धैर्य नहीं रहता | ये बात आपको तब समझ में आएगी जब आप किसी पत्रिका के लिए भेजे जाने वाले लेखों के इ मेल देखेंगे | कई संभावनाशील लेखक , जिनमें क्षमता है वो मात्र २० या २२ लाइन का लेख लिख कर भेज देते हैं | जो प्रकाशित पत्रिका में केवल एक -डेढ़ पैराग्राफ बनता है | अब आप खुद से सोचिये कि क्या किसी प्रकशित पत्रिका में एक पेज से कम किसी रचना को आप लेख की संज्ञा दे सकते हैं ? उत्तर आप खुद जानते होंगे | एक निजी अनुभव शेयर कर रही हूँ | एक बड़ी लेखिका जो परिचय की मोहताज़ नहीं है , ने एक बार अटूट बंधन पत्रिका में स्त्री विमर्श का लेख भेजने की पेशकश की | उस अंक में मैं स्त्री विमर्श के उस लेख के लिए निश्चिन्त थी | परन्तु उन्होंने तय तारीख से ठीक दो दिन पहले दो छोटे छोटे लेख भेजे और साथ में नोट भी कृपया आप इन्हें जोड़ लें | एक अच्छे लेख में एक प्रवाह होता है जो शुरू से अंत तक बना रहता है , लेकिन आज लोग जुड़े हुए पैराग्राफ को लेख की संज्ञा देने लगे हैं | जो दो फेसबुक स्टेटस की तरह लगते हैं जिनमें तारतम्य बहुत अच्छे से स्थापित नहीं हो पाता | ये लेखिका दिन में कई फेसबुक पोस्ट डालती हैं | अब आप खुद समझ सकते हैं कि जब एक स्थापित लेखिका जल्दबाजी की गलती कर सकती है तो नए लेखकों का क्या हाल होगा | विज्ञान कहता है जब हम खुश होते हैं , हमें तारीफ़ मिलती है या हमें कुछ रुचिकर लगता है तो हमारे दिमाग … Read more