व्यवसाय में लोन कब और कितना

                                                  अक्सर लोग मुझसे पूंछते हैं कि व्यवसाय में लोन कब लें और कितना लें कैन लोग तो अति उत्साहित हो कर बहुत बड़ा लोंन ले कर अपने व्यवसाय में लगाने की  बात करते हैं | आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि व्यवसाय में कब और कितना लोंन लें | व्यवसाय में लोन कब और कितना                        जब भी कोई  नया काम शुरू करना होता है तो उसमें पूंजी की आवश्यकता पड़ती है |  लोग अक्सर एक बड़ी मात्र में पूँजी लोन पर ले लेते हैं |  सकारत्मक होना अच्छा है पर इतना नहीं कि  आप दिवालिया होने का खतरा उठाये | अपनी बात रखने से पहले मैं आप  से अपने एक मित्र का सच्चा किस्सा शेयर करना चाहता हूँ | फैशन डिजाइनर नीता की कहानी  मेरी एक मित्र हैं नीता गुप्ता | उन्होंने आज से २५ साल पहले अपना बुटिक खोला था | वो खुद ही कपडे डिजाइन करती व् बेंचती | शुरुआत के हिसाब से उनका व्यवसाय ठीक चल रहा था | तभी एक दिन उन्हें एक फोन आया कि हमारे पास एक स्पेशल मखमल का कपडा है आप चाहे तो देख लें | उन्होंने रेट पूंछा | रेट बाज़ार के रेट से काफी कम थे | मखमल का कपडा उन दिनों बहुत डिमांड में था | नीता खुश हो गयीं | उन्हें लगा अगर इस कपडे से उन्होंने अपने बुटीक में ऑउटफिट बना कर भेजे तो उन्हें बहुत फायदा होगा | उन्होंने फोन कर के  कपडा देखने की इच्छा जताई | दूसरे दिन वो कानपुर के पास एक गोदाम में कपड़ा  देखने गयीं | कपड़ा  देख कर नीता जी पागल हो गयीं | इतना बेहतरीन मखमल उन्होंने पहले कभी देखा नहीं था | वो थान पर थान खुलवाती गयीं , हर थान का कपडा बेहद अच्छा था | उस गोदाम के मालिक ने बताया कि ये कपडा इटली का है इस लिए इतना सुन्दर है यहाँ तो ऐसा मिलेगा ही नहीं | नीता जी कल बताने का कह कर घर चली आई | सारे रास्ते नीता जी बहुत खुश थी | वो पल -पल सोच रहीं थीं कि वो उस कपडे से यूनिक वस्त्र बनायेंगी और उनकी बूटीक पूरे प्रान्त की नंबर वन बन जायेगी | अब उनका पैसों पर ध्यान गया |  नीता जी के दिमाग में दो बातें थी कि अगर इस कपडे पर किसी और बुटीक वाले की नज़र पड़ गयी तो उनका बुटीक जो अभी नया है प्रतियोगिता में हार जाएगा , और अगर वो सारा माल एक साथ ले कर अपने गोदाम में  डाल लें तो उन्हें बहुत पैसा चाहिए | नीता जी के पास पैसा था नहीं | उन्होंने मन ही मन निर्णय लिया की वो लोन लेंगीं | लोन पर ढेर सारा पैसा लेना खतरनाक तो था , पर उन्होंने अपनी बिजनेस के लिए ये रिस्क उठाना बेहतर समझा | उत्साह में उन्हें सारी रात नींद नहीं आई | उन्होंने सोच रखा था कि सुबह १० बजते  ही उन्हें फोन करके सारा कपड़ा  खरीद लेंगीं | संयोग से सुबह -सुबह ही उनकी एक और सहेली  उनसे मिलने आ गयी | उसने अपने साथ हुए एक धोखे को बता कर इतना बड़ा रिस्क लेने से मना कर दिया | नीता जी ने उसके जाने के बाद गोदाम मालिक को फोन किया | उसने  हंसकर कहा , ” हमें पता था मैडम आपका फोन जरूर आएगा | अरे हम हीरा इतने सस्ते दाम में दे रहे हैं कौन मूर्ख होगा जो सारा न खरीद ले |” ये वाक्य सुनते ही नीता जी का माथा ठनका , उन्होंने ये बात केवल सोची थी , कही नहीं थी | खैर अपनी सहेली के बताये रास्ते पर चलते हुए उन्होंने केवल २५ ००० रुपये का कपडा खरीदा | उन्होंने कपड़ा  ले कर सूट सिलना शरू किया … ये क्या हर कपडे से धागा खिंच  रहा था | कहीं  थान के अन्दर के कपडे का रंग उड़ा हुआ था | नीता जी को समझते देर न लगी कि ये विदेश का डंपिंग का कपडा है | ये ऐसा कपडा होता है  जो खराब मनुफैक्चर हुआ होता है , उसे हमारे देश के या विकासशील देशों के लोग बहुत सस्ते दामों में खरीद लेते हैं और दाम बढ़ा  कर बेंचते हैं | नीता जी तो  लोन ले कर न चुका  पाने की स्थिति में दिवालिया होने से बच गयीं पर हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता | लोग अति उतसाह में भारी  लोन ले लेते हैं जिसे वो चुका  नहीं पाते और कर्ज में इतना डूब जाते हैं कि दुबारा खड़े नहीं हो पाते | इसलिए व्यसाय में जरूरी है कि हम लोन कब और कितना लें इस बात का ध्यान रखे | सारा पैसा  किसी एक  प्रजेक्ट में न लगाये                                                        बचपन में आप ने एक कहावत सुनी होगी  ” सारे अंडे एक टोकरी में न रखे ” अगर आप किसी एक काम के लियेव सारा पैसा  लगा देते हैं तो उस काम के खत्म होने पर आप भी खत्म  हो जाते हैं | अगर नीता जी ने माल ले लिया होता … माल सही भी होता तो एक दो साल तक उसका रख रखाव करना पड़ता ,  इस बीच भी माल खराब हो सकता था |  और उनका सारा पैसा डूब सकता  था | वो ये कर सकती थी कि कुछ पैसा कपडे को खरीदने में लगाती और कुछ उच्च क्वालिटी की सिलाई मशीन खरीदने में | बहुत भारी  लोन न लें                                   कुछ लोग बहुत ज्यादा लोन लेने की गलती कर देते हैं | ये एक बहुत खतरनाक कदम है | विजय माल्या तक इसी में डूब गए और आज विदेशों में फरार घूम रहे हैं तो हम आप कैसे अपने को सुरक्षित समझ … Read more

हैरी पॉटर की लेखिका जे के रॉलिंग का अंधेरों से उजालों का सफ़र

                            अगर यह प्रश्न पूँछा जाए कि क्या कोई लेखक मेलेनियर बन सकता है, तो सबसे पहले जिसका नाम आपके जेहन  में आएगा वो होगा जे के रोलिंग  का , जिन्होंने हैरी पॉटर लिख कर वो इतिहास रचा जिसकी कल्पना तक इससे पहले किसी लेखक  ने नहीं की थी | इस इतिहास को रचने वाली जे के रोलिंग  के लिए रातों -रात मिलने वाली सफलता नहीं थी | इसके लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष झेला है | उनकी असली जिंदगी की कहानी दुःख , दर्द भावनात्मक टूटन , रिजेकशन , तनाव व् अवसाद से भरी पड़ी है | पर  इस गहन अन्धकार के बीच जिस ने उनका हाथ थामे रखा वो थी उनकी रचनात्मकता और अपने काम के प्रति उनका पूर्ण विश्वास | और इसी के साथ शुरू हुआ उनका अँधेरे से उजालों का सफ़र | हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोलिंग  का अंधेरों से उजालों तक  का सफ़र                             फैंटेसी की दुनिया मल्लिका जेके रोलिंग का पूरा नाम जुआने जो रॉलिंग (joanne ‘jo’ rawling) है जबकि उनका पेन नेम जे के रोलिंग है | उनका जन्म 31 जुलाई 1965 को इंग्लैण्ड के येत शहर में हुआ था | उनके पिता  पीटर जेम्स रोलिंग एयरक्राफ्ट इंजिनीयर व् माँ एनी रोलिंग साइंस टेक्नीशियन थीं | उनसे दो वर्ष छोटी एक बहन भी थी , जिसका नाम डियाना रोलिंग है | जब वो बहुत छोटी थीं तब ही उनका परिवार येत के पास के गाँव में बस गया | जहाँ उनकी प्रारंभिक शिक्षा -दीक्षा हुई | कहते हैं की पूत के पाँव पालने में ही देखे जाते हैं | छोटी उम्र से ही उन्हें फैंटेसी का बहुत शौक था | उनके दिमाग में काल्पनिक कहानियाँ उमड़ती -घुमड़ती रहती | अक्सर वो अपनी बहन को सोते समय अपनी बनायीं काल्पनिक कहानियाँ सुनाया करती | उनके मुख्य पात्र चंपक की कहानियां की तरह जीव -जंतु व पेड़ पौधे होते थे |  उनकी कहानियों में  जादू  था , हालांकि शब्द कच्चे -पक्के थे , या यूँ कहे की एक बड़ी लेखिका आकर ले रही थी | उन्होंने ६ वर्ष की उम्र में अपनी पहली कहानी ‘रैबिट ‘लिखी थी व् ११ वर्ष की उम्र में पहला नॉवेल लिखा था जो सात अभिशापित राजकुमारों के बारे में थी |  जब वो किशोरावस्था में कदम रख रहीं थी तो उनके एक रिश्तेदार ने उन्हें जेसिका मिड्फोर्ट की ऑटो बायो ग्राफी ” होन्स एंड रेबल्स ” पढने को दी | इसको पढ़कर वो जेसिका के लेखन की इतनी दीवानी हो गयीं की उन्होंने उनका लिखा पूरा साहित्य पढ़ा | फिर किताबों का प्रेम ऐसा जागा कि ” बुक रीडिंग ” का एक अंतहीन सिलसिला चल पड़ा | शिक्षा व् प्रारंभिक जॉब                              जे के रोलिंग के अनुसार उनका प्रारंभिक जीवन अच्छा नहीं था | उनकी माँ बहुत बीमार रहती थीं व् माता -पिता में अक्सर झगडे हुआ करते थे | हालांकि वो एक एक अच्छी स्टूडेंट थीं | उन्हें इंग्लिश , फ्रेंच व् जर्मन का अच्छा ज्ञान था | पर घर के माहौल का असर उनकी शिक्षा पर पड़ा और स्कूल लेवल पर उन्हें कोई विशेष उपलब्द्धि नहीं प्राप्त हुई | उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रवेश के लिए परीक्षा दी पर वो सफल न हो सकीं |बादमें उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ अक्सीटर से फ्रेंच और  क्लासिक्स में BA किया | ग्रेजुऐशन के बाद उन्होंने ऐमिनेस्टी इन्तेर्नेश्नल और चेंबरऑफ़  कॉमर्स में छोटी सी जॉब की | हैरी पॉटर का आइडिया                        रोलिंग की माता स्कीलोरोस की मरीज  थीं | 1990 में उनकी मृत्यु हो गयी | रोलिंग अपनी माँ के बहुत करीब थीं | माँ की मृत्यु से वो टूट गयीं | पिता ने दूसरी शादी कर ली व उनसे बातचीत करना भी छोड़ दिया | फिर  उनका मन उस शहर में नहीं लगा | वो इंग्लैड छोड़ कर पुर्तगाल चली गयीं और वहां इंग्लिश पढ़ाने लगीं | हैरी पॉटर की कल्पना के जन्म की कहानी भी किसी फैंटेसी से कम नहीं है |  एक बार रोलिंग कहीं जा रहीं थी | ट्रेन चार घंटे लेट हो गयी | उसी इंतज़ार के दौरान रोलिंग के मन में एक ऐसे बच्चे की कल्पना उभरी जो जादू के स्कूल में पढने जाता है | दुःख -दुःख और दुःख                                  पुर्तगाल में आने के बाद रोलिंग की मुलाक़ात टी वी जर्नलिस्ट जोर्ज अरांट्स से हुई | दोनों में प्रेम हो गया | और दोनों ने शादी कर ली | एक वर्ष बाद उन्होंने अपनी बेटी जेसिका को जन्म दिया | उनका शादीशुदा जीवन बहुत ही खराब रहा | उनका पति उनके साथ बहुत बदसलूकी करता था | वो घरेलू हिंसा की शिकार रही | और एक सुबह पाँच  बजे उनके पति ने उन्हें उनकी बेटी के साथ घर से निकाल  निकाल दिया | उस समय जेसिका सिर्फ एक महीने  की थी | रोलिंग अपनी बहन के घर आ गयी | उनके पास सामान के नाम पर सिर्फ एक सूटकेस था जिसमें हैरी पॉटर की पाण्डुलिपि के तीन चैप्टर थे | यह उनके जीवन का कष्टप्रद  दौर था | पति से तलाक के बाद बहन के घर में रहती हुई रोलिंग सरकारी सहायता पर निर्भर थीं | मन भले ही दुखी हो पर उनके लिए हैरी पॉटर की वो पाण्डुलिपि डूबते को तिनके का सहारा थी | उन्होंने तय किया की वो इस कहानी को पूरा करेंगी |वो अपनी बच्ची को प्रैम में डाल कर पास के कैफे में चली जातीं और जब बच्ची सो जाती तो वो कहानी को आगे बढ़ने लगतीं | इस तरह से उन्होंने हैरी पॉटर और पारस पत्थर को पूरा किया | उन्होंने इसे एक हाथ से टाइप किया क्योंकि उनके दूसरे हाथ में उनकी बेटी  होती थी | नोवेल पूरा करने के बाद उन्होंने टीचर्स ट्रेनिग का कोर्स पूरा किया | हैरी पॉटर का प्रकाशन                      … Read more

फर्क

                                सुधाकर बाबू का किस्सा पूरे  ऑफिस में छाया हुआ था | सुधाकर बाबू की अखबार के एक अन्य कर्मचारी से ठन  गयी थी | सुधाकर बाबू प्रिंटिंग का काम देखते थे और दीवाकर जी अखबार का पहला पेज डिजाइन करता थे  | सुधाकर बाबू की दिवाकर जी से कैंटीन में चाय समोसों के साथ गर्मागर्म बहस हो गयी |  यूँ तो दोनों की अपने -अपने पक्ष में दलील दे रहे थे | इसी बीच  सुधाकर बाबू ने दिवाकर जी पर कुछ  ऐसी फब्तियां कस दी कि दिवाकर जी आगबबबूला हो गए | तुरंत सम्पादक के कक्ष में जा कर लिखित शिकायत कर दी कि जब तक  सुधाकर बाबू उनसे माफ़ी नहीं मांगेंगे तब तक वो अखबार का काम नहीं संभालेंगे, छुट्टी ले कर घर पर रहेंगे | संपादक जी घबराए | दिवाकर जी पूरे दफ्तर में वो अकेले आदमी थे जो अख़बार का  पहला पेज डिजाइन करते थे | पिछले चार सालों  में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली थी | कभी छुट्टी लेने को कहते भी तो अखबार के मालिक सत्यकार जी उन्हें मना लाते | सम्पादक जी ने हाथ -पैर जोड़ कर उन्हें हर प्रकार से मनाने की कोशिश की पर इस बार वह नहीं माने | अगर कल का अखबार समय पर नहीं निकल पाया तो लाखों का नुक्सान होगा | कोई और व्यवस्था भी नहीं थी |  उन्होंने सुधाकर जी को बुलाया | पर वो भी  माफ़ी मांगने को राजी न हुए | मजबूरन उन्हें बात मालिक तक पहुंचानी पड़ी | बात सुनते ही अखबार के मालिक ने आनन् -फानन में सुधाकर जी को बुलाया | प्रायश्चित इस बार सुधाकर जी भी गुस्से में थे | उन्होंने मालिक से कह दिया की बहस में कही गयी बात के लिए माफ़ी वो नहीं मांगेंगे | क्योंकि बहस तो दोनों तरफ से हो रही थी | दिवाकर जी को बात ज्यादा बुरी लग गयी तो वो क्या कर सकते हैं | आखिर उनकी भी कोई इज्ज़त है वो यूँही हर किसी के आगे झुक नहीं सकते | सत्यकार जी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की |उन्होंने कहा कि आपसी विवाद में अगर किसी को बात ज्यादा बुरी लग गयी है तो आप माफ़ी मांग लें | दिवाकर जी यूँ तो कभी -किसी से माफ़ी माँगने को नहीं कहते |  उन्होंने सुधाकर  जी को लाखों के नुक्सान का वास्ता भी दिया |  पर सुधाकर जी टस से मस न हुए | उन्होंने इसे प्रेस्टीज इश्यु बना रखा था | उनके अनुसार वो माफ़ी मांग कर समझौता नहीं कर सकते | दूसरा फैसला अंत में सत्यकार जी ने सुधाकर जी से  पूंछा ,  ” आपकी तन्ख्य्वाह कितनी है ? सुधाकर जी ने जवाब दिया – १५००० रुपये सर सत्यकार जी बोले , मेरे ऑफिस का १५ ०००० करोंण का टर्नओवर हैं | पर मैं विवादों को बड़ा बनाने के स्थान पर जगह -जगह झुक जाता हूँ | शायद यही वजह है कि हमारे बीच  १५००० रुपये से १५००० करोंण का फर्क है | देर शाम को दिवाकर जी अपनी टेबल पर बैठ कर अखबार का फीचर डिजाइन कर रहे थे और सुधाकर जी  टर्मीनेशन लैटर के साथ ऑफिस के बाहर निकल रहे थे | विवाद को न खत्म करने की आदत से उनके व्  सत्यकार जी के बीच सफलता का फर्क कुछ और बड़ा हो गया था | बाबूलाल मित्रों एक कहावत है जो झुकता है वही उंचाई  पर खड़ा रह सकता है | छोटी -छोटी बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने वाले जीवन में बहुत ऊंचाई पर नहीं पहुँच पाते | यह भी पढ़ें …….. घूरो , चाहें जितना घूरना हैं गैंग रेप   अनावृत  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क आपको आपको  कहानी  “राग पुराना”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, hindi stories, difference, short stories in hindi