चुनमुन का पिटारा – पांच बाल कवितायें

आज हम ले कर आये हैं बच्चों के लिए पांच बाल् कवितायें , तो खोलिए चुनमुन का पिटारा और लीजिये आनंद बाल कविताओं का  छुकछुक रेल छुकछुक- छुकछुक चलती रेल मुसाफिरों की रेलमपेल इंजन-पटरी-डिब्बों का अदभुत और अनोखा मेल पहले कोयला खाती थी फिर डीजल पी जाती थी जब बिजली की बारी आई हवा से होड़ लगती थी सुविधाजनक सवारी है नहीं जेब पर भारी है गाँव शहर या हो बस्ती इसकी हद में सारी हैं स्वच्छता का रखना ध्यान कम सामान-सफर आसान रेल हमारी अपनी है इसको ना पहुँचे नुकसान नियमों का पालन करना सफर टिकट लेकर करना बिना टिकट को जेल या जुर्माना पड़ता भरना इंजी. आशा शर्मा बीकानेर शेर-सियार शेर-सियार ने सावन में झूला एक लगाया बीस-बीस बार झूलेंगे ऐसा नियम बनाया एकदिन दोनों दोस्तों में होने लगा जब झगड़ा आकर उनसे पूछी लोमड़ी क्या है भाई लफड़ा बोला शेर, बहन ! इस पर क्यों न आयेगा खीस खुद बीस को दस कहता मेरे दस झूले को बीस नहीं बहन झूठे शेर को गिनना भी न आता है खुद ज्याद झूलता है मुझे पंजे से डराता है अकल लगाओ गिनती सिखो शेर तेरा है गलत धंधा लोमड़ी पर शेर झपटकर बोला यहाँ अकल नहीं चलता है पंजा जान बचाकर भागी लोमड़ी रास्ते में मिला एक पेड़ उसके मोटे तने में था एक बहुत बड़ा सा छेद तना छेद से भागी लोमड़ी शेर को दे डाली झटका शेर पीछे से जब लपका मोटा शरीर उसी में अँटका हँसती हुई बोली लोमड़ी कहाँ गया अब तेरा बल अकल लगाकर नकल भी करना यहाँ पंजा नही चलती है अकल -दीपिका कुमारी दीप्ति बरखा रानी  बरसो बरसो बरखा रानी तुम पर आज आई जवानी। घुटनों तक जल भरा हुआ है वेनिस मेरा शहर हुआ है रुकी हुई हैं बस और कारें नावों पर चलती राजधानी बरसो बरसो बरखा रानी। छुट्टी हम बच्चों ने पायी धमा चौकड़ी मौज मनाई गरम पकोड़े तलती मम्मी ये सब है तेरी मेहरबानी बरसो बरसो बरखा रानी। जूते चप्पल हाथ चढ़ा लो धोती अपनी जरा उठालो गिर जाओगे वर्ना रपटकर बाबू होगी बड़ी परेशानी बरसो बरसो बरखा रानी। बरसो आज जम कर बरसो पर  तुम  बिलकुल मत कड़को बूढ़े दादाजी को डर  लगता है नहीं सुनाते फिर वो कहानी बरसो बरसो बरखा रानी। मम्मी कहती रुक भी जाओ धूप जरा तुम निकल भी आओ गीले कपडे कहाँ सुखाऊँ कील – डोरी कहाँ लगाऊँ पर तुमने कब मम्मी की मानी बरसो बरसो बरखा रानी। वंदना बाजपेयी  जाड़ा  मम्मी मुझे स्कूल न भेजो  बाहर कितना जाड़ा है  किट – किट करते दांत यूँ मेरे  जैसे बजे नगाड़ा है  सूरज भी देखो  कितनी देर से घर से निकलता है  चंदा भी रात में  ठिठुर ठुठुर कर चलता है  मौसम की इस मार ने देखो  हाल सभी का बिगाड़ा है  छोटे दिन है रात बड़ी  जल्दी जल्दी भागे घड़ी  मैडम जी ने नहीं करी है  होमवर्क में कोई कमी  हम बच्चों के टाइम टेबल का  इसने किया कबाड़ा है  सरबानी  सेनगुप्ता  गाए हर बच्चा गीत ख़ुशी के गाए हर बच्चा गीत ख़ुशी के ऐसा जतन करें  साँस ले सकें स्वच्छ हवा में  ऐसा जतन करें  कैसी थाती सौंपेंगे हम इनको  सोचा कुछ हमने? अपने मैं को पोषित करने में ही  सब खोया हमने  क्या करते, क्या करना चाहते ये  पूछो ज़रा कभी संग बैठ कर जानो इनके मन की  थोड़ा समय अभी  कैसा देश, शहर, परिवेश, संस्कार  आँगन इन्हें मिलना  कैसा हो रूप विचारें सब मिलकर  जहाँ इन्हें खिलना  हर बच्चा पाए भोजन भरपेट और पढ़े-लिखे-मुस्काये तभी सार्थक बालदिवस, हर ओर  ज़िंदगी नाचे-गाए। ————————————— डा०भारती वर्मा बौड़ाई आपको आपको   “चुनमुन का पिटारा – पांच   बाल कवितायें  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

बाल दिवस : समझनी होंगी बच्चों की समस्याएं

बच्चे , फूल से कमल ओस की बूँद से नाजुक व् पानी के झरने से गतशील | कौन है जो फूलों से ओस से , झरने से और बच्चों से प्यार न करता होगा | बच्चे हमारा आने वाला कल हैं , बच्चे हमारा भविष्य है , बच्चे उन कल्पनाओं को साकार करने की संभावनाएं हैं | रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि  हर बच्चा इस सन्देश के साथ आता है की ईश्वर अभी इंसान से निराश नहीं हुआ है | उन्हीं नन्हें मुन्ने बच्चों के लिए समर्पित है एक खास दिन यानी  बच्चों का दिन … बाल दिवस | आइये सब से पहले जानते हैं इस बाल दिवस के बारे में ……. बाल दिवस का इतिहास हमारे देश भारतवर्ष के लिए ये गौरव की बात है कि बच्चों के लिए एक खास अन्तराष्ट्रीय दिन बनाया जाए इस की यू एन ओ में मांग सबसे पहले पूर्व भारतीय रक्षा मंत्री श्री वी के कृष्ण मेनन ने की थी | और पहली बार २० नवम्बर १९५९ को अन्तराष्ट्रीय बाल दिवस मनाया गया | भारत में भी पहले २० नवम्बर को ही बाल दिवस मनाया जाता था | जैसा की सभी जानते हैं कि भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु जी को बच्चों से बहुत प्यार था | वो बच्चों के साथ खेलते उन्हें दिशा दिखाते व् उनके साथ खेलते थे | उन्होंने बच्चों के लिए कई कल्याण कारी योजनायें भी शुरू की | बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे , और प्यार से उन्हें चाचा नेहरु कहा करते थे | बच्चों द्वारा प्यार से कहा गया चचा नेहरु बाद में नेहरु जी का मानो उपनाम पड़ गया | २७ मई १९६४ को नेहरु जी की मृत्यु के बाद उनके बच्चों के प्रति प्रेम को सम्मान देने के लिए उनके जन्म दिन १४ नवम्बर को बाल दिवस के रूपमें मनाये जाने की घोषणा कर दी गयी |तब से भारत में नेहरु जी की जयंती यानि १४ नवम्बर को बाल दवस मनाया जाने लगा | कैसे मनाया जाता है बाल दिवस बाल दिवस को मानाने में तमाम सरकारी व् गैर सरकारी आयोजन होते हैं | स्कूलों में रंगारंग कार्यक्रम , भाषण व् निबंध प्रतियोगिताएं होती है |बच्चे जिसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं | बाल दिवस पर बच्चों स्कूल में यूनिफार्म में न आने की छूट होती है | जिससे बच्चों को स्कूल में कुछ खास होने का अहसास होता है | कई स्कूलों में प्रिसिपल व् टीचर्स मिल कर बच्चों के लिए कार्यक्रम बनाते हैं | रोज सजा देने वाले या अनुशासन में रहने की ताकीद देने वाले टीचर्स जब इस कार्यक्रम को  बच्चों की ख़ुशी के लिए करते हैं तो बच्चे बहुत आनन्दित होते हैं | कार्यक्रम के अंत में बच्चों को मिठाइयाँ व् फ्रूट्स बांटे जाते हैं | स्कूलों के अतरिक्त टेलीविजन व् रेडियों में भी बाल दिवस पर बच्चों के लिए  खास कार्यक्रम होते हैं | कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिनमें बच्चे बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं | कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी बच्चों के लिए कार्यकर्मों का आयोजन करती हैं | बच्चों को मिठाइयाँ  व् फल आदि वितरित किये जाते हैं | बाल दिवस पर आइये सोंचे बच्चों के बारे में                             बाल दिवस बच्चों का दिन है | इसे स्कूल , संस्थाओं , व् सरकारी तौर पर मनाया जाता है | पर एक  दिन रंगारंग कार्यक्रम कर के मिठाइयाँ बाँट देना बच्चों की सारी  समस्याओं का हल है | जिन्हें आज के बच्चे झेल रहे हैं  | एक नागरिक के तौर पर हमें उन समस्याओं को समझना होगा व् उनका हल निकालना होगा | आइये उस बारे में क्रमवार सोंचे … कन्या शिशु की भ्रूण हत्या .. जन्म लेने का अधिकार ईश्वर का दिया हुआ अधिकार है | परन्तु आज इतने प्रचार के बावजूद कन्या शिशु की भ्रूड हत्या हो रही है | इसके आंकड़े दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे है | ये न सिर्फ अमानवीय बल्कि अत्यंत पीड़ादायक प्रक्रिया है | हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम अपने स्तर पर इसे रोकने का प्रयास करें | मतलब हम अपने परिवार में ऐसा नहीं होने देंगें | बाल श्रम की समस्या सड़कों पर कूड़ा बीनते बच्चे , होटल ढाबों में काम करते बच्चे , कार साफ़ करते बच्चे , हमारे घरों में मेड के रूपमें काम करते बच्चे | ये सब भी बच्चे हिन् हैं जो बचपन में खिलौने व् किताबों के स्थान पर श्रम कर के अपना व् अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं | इनसे इनका पूरा बचपन छीना जा चुका है | क्या हमारा कर्तव्य नहीं की हम इन बच्चों को बाल श्रम से निकाल कर सरकारी स्कूल में पढने की व्यवस्था करवाने की कोशिश करे | सरकारी स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा व् भोजन मिलता है |केवल जरूरत है इनके माँ – पिता को समझाने की , कि जिम्मेदारी परिवार का पेट पालना नहीं है बल्कि आप की जिम्मेदारी है की आप इनको शिक्षा देकर इस गरीबी के जीवन से निकलने में मदद करें | बच्चों का शारीरिक व् मानसिक शोषण की समस्या  अभी हाल में कैलाश सत्यार्थी के व्यक्तव्य ने हर संवेदनशील व्यक्ति की आँखों में आंसूं ला दिए , जब उन्होंने बताया की न जाने कितने बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं | ये शिकार सिर्फ लडकियां ही नहीं लड़के भी होते हैं | अफ़सोस ये ज्यादातर पड़ोस के भैया , मामा , चाचा , अंकल कहे जाने वाले लोगों के द्वारा होता है | शिकार होते बच्चे किस भय से अपने माता – पिता को उस समस्या के बारे में नहीं बता पाते | इन सब कारणों की तह में जाना है | छोटे बच्चों को गुड टच व् बैड टच के बारे में समझाना व् उनके माता –पिता को समझाना की अपने बच्चे की शारीरिक व् मानसिक बदले व्यवहार को नज़र अंदाज न करें | एकसभ्य  नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है | लडकियों की शिक्षा  अभी भी हमारा समाज लड़का लड़की में भेद भाव करता है | लड़कियों की शिक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं | जहाँ है भी वहां माता … Read more

बाल दिवस है

चाय की दुकान पे———- सुट-बूट वाले साहब के, अधरो पे सुलगते सिगरेट का कश है, उस फैले धुँऐ में तेरह साल का बच्चा, जूठे कप-प्लेट उठाता है, जरा सा उसके मैले हाथो का श्पर्श और माँ की गाली! मासूम गालो पर—— बाल पकड़कर चंद चाटे, देख रोटी——- इतनी कम उम्र में इस बच्चे की भूख, तेरी खातिर कितना विवश है! इस मासूम को——— अपनी पिड़ाओ की दुनिया से बाहर, ये भी पता नही कि——— कल तमाम देश के बच्चो के चाचा नेहरु का जन्मदिन, यानी की बाल दिवस है। रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी।

मैं नन्हीं – सी

मैं नन्हीं – सी प्यार की मूरत हूँ |मैं भविष्य की छिपी हुई सूरत हूँ || मेरे मुस्कराने से कलियां खिलतीं |मेरे चहचहाने से चिढियां उढ़तीं ||मैं गाऊं तो भँवरे गाएँ मीठे गान |मुझको तनिक नहीं कोरा अभिमान || मैं नन्हीं – सी प्यार की मूरत हूँ |मैं भविष्य की छिपी हुई सूरत हूँ || मातु – पिता का मुझपर उपकार |मैं हूँ ईश्वर का प्यारा-न्यारा उपहार || मैं कोमल हूँ, सुंदर फूलों के जैसी |ये गंदी नजर हटालो, कांटों जैसी || मैं नन्हीं – सी प्यार की मूरत हूँ |मैं भविष्य की छिपी हुई सूरत हूँ || मुझे बचाया और पढ़ाया – लिखाया |मैंने इन्द्रा, किरण – सा नाम कमाया ||भारतवर्ष की बेटी हूँ, लक्ष्मी मर्दानी |इतिहास के पन्ने-पन्ने पे लिखी कहानी || मैं नन्हीं – सी प्यार की मूरत हूँ |मैं भविष्य की छिपी हुई सूरत हूँ || मुकेश कुमार ऋषि वर्मा