अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस : तकनीकी युग में कम्प्यूटर पर काम करने वाले कर्मचारियों विशेषकर महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी चाहिए
विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस “1 मई” के दिन मनाया जाता है। जिस प्रकार एक मकान को खड़ा करने और सहारा देने के लिये जिस तरह मजबूत “नीव” की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ठीक वैसे ही किसी समाज, देश, उद्योग, संस्था, व्यवसाय को खड़ा करने के लिये कामगारों की विशेष भूमिका होती है।इतिहास के अनुसार वर्ष 1886 में 4 मई के दिन शिकागो शहर के हेमार्केट चौक पर मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर रखी थी |मजदूर चाहते थे कि उनसे दिन भर में आठ घंटे से अधिक काम न कराया जाए।व् दुर्घटना आदि होने पर उन्हें उचित मुआवजा मिले | तभी अचानक किसी अज्ञात व्यक्ति द्वारा भीड़ पर एक बम फेंका गया। इस घटना से वहाँ मौजूद शिकागो पुलिस नें मजदूरों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिये एक्शन लिया और भीड़ पर फायरिंग शुरू कर दी। इस घटना में कुछ प्रदर्शनकारीयों की मौत हो गयी।इसके बाद इस घटना में निर्दोष मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मानाने की घोषणा करी | भारत में मजदूर दिवस पहली बार सन 1923 में चेन्नई में मनाया गया | मजदूर दिवस मजदूरों के हितों को सुरक्षित करने की दिशा में बढाया गया कदम है | आज दुनिया भर में मजदूरों के हितों की सुरक्षा के लिए मजबूत यूनियन है | फिर भी इस दिन का आज भी ज्यों का त्यों महत्व है | क्योंकि इसी दिन से शुरुआत हुई थी एक कमजोर तबके के संगठित होने की व् अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की | अगर आज के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो बहुत सारे जॉब्स कम्प्यूटर रिलेटेड हो गए हैं | ऐसे में आठ घंटे काम करने के बाद भी कर्मचारी अपने साथ घर में काम लाने को विवश हैं | घर से काम करने वालों के ऊपर काम का दवाब इतना है की कई बार उन्हें १८ घंटे भी काम करना पड़ता है |कई बार कर्मचारी सारे काम निबटा कर सांस लेने बैठा ही होता है की बॉस का फोन आ जाता है और सारे जरूरी घरेलू काम छोड़ कर कम्प्यूटर पर बैठना पड़ता है | क्योंकि बॉस से अब कर्मचारी बस एक फोन कॉल की दूरी पर है | और वो उसे जब जी चाहे घर में भी डिस्टर्ब कर सकता है | जबकि तनख्वाह उतनी ही मिलती है |पुरुषों पर तो इसका प्रभाव पड़ता ही है पर इसका सबसे बुरा असर महिलाओं व् बच्चों पर पड़ता है | एक कामकाजी महिला को घर जा कर अपनी घरेलु जिंदगी भी संभालनी होती है | बच्चों को समय न दे पाने पर जहाँ बच्चों का विकास सही रूप से नहीं हो पाता | वहाँ माँ अपराध बोध से ग्रस्त रहती है | वैसे भी हर कर्मचारी को सुस्ताने व् अपने निजी जिन्दगी सुचारू रूप से चलाने की सुविधा मिलनी चाहिए | ताकि वो शारीरिक व् मानसिक रूप से स्वस्थ रहे | ऐसे में क्या ये जरूरी नहीं है की आज के तकनीकी युग में इन नए कर्मचारियों को अपनी हिस्से की ज़िन्दगी जीने के लिए समय माँगना चाहिए | आवाज़ उठानी चाहिए और मजदूर दिवस के दिन अपनी बातों को एक मंच प्रदान करना चाहिए। वंदना बाजपेयी