मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा
फोटो क्रेडिट -आउटलुक इंडिया .कॉम गाँधी जी आज भी प्रासंगिक है | गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही सशक्त है | हम ही उन पर नहीं चलना चाहते | पर एक नन्ही बच्ची मुन्नी ने उन पर चल कर कैसे अपने अधिकार को प्राप्त किया आइये जाने इस काव्य कथा से … मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा मुन्नी के बारे में आप नहीं जानते होंगे कोई नहीं जानता कितनी ही मुन्नियाँ हैं बेनाम सी पर एक नाम होते हुए भी ये मुन्नी थी कुछ अलग जो जमुनापार झुग्गीबस्ती में रहती थी अपनी अम्मा-बाबूजी और तीन बहनों के साथ अम्मा के साथ झुग्गी बस्ती में रोज चौका -बर्तन करते बड़े घरों की फर्श चमकाते जब ब्याह दी गयीं थी तीनों बहने तब मुन्नी स्लेट पट्टी पकड़ जाती थी पास के स्कूल में पढने मुन्नी की नज़रों में था पढने का सपना एक -एक बढती कक्षा के साथ इतिहास की किताब में मुन्नी ने पढ़ा था गाँधी को , पढ़ा था, आमरण अनशन को, और जाना था अहिंसा की ताकत को वो अभी बहुत पढना चाहती थी, पर मुन्नी की माँ की आँखों में पलने लगा सपना मुन्नी को अपने संग काम पर ले जाने का कद हो गया है ऊँचा, भर गया है शरीर , सुनाई देने लगी खनक उन पैसों की जो उसे मिल सकते थे काम के एवज में चल जाएगा घर का खर्चा, जोड़ ही लेगी खुद का दहेज़ अपनी तीनों बहनों की तरह …आखिर हाथ तो पीले करने ही हैं बिठा कर थोड़ी ना रखनी है लड़की अम्मा की बात पर बापू ने सुना दिया फरमान बहुत हो गयी पढाई , अब कल से जाना है अम्मा के साथ काम पर दिए गए प्रलोभन उन बख्शीशों के जो बड़े घरों में मिल जाती है तीज त्योहारों पर मुन्नी रोई गिडगिड़ाई ” हमको पढना है बापू, हमको पढना है अम्मा, पर बापू ना पसीजे और अम्मा भी नहीं ठीक उसी वक्त मुन्नी को याद आ गए गाँधी और बैठ गयी भूख हड़ताल पर शिक्षा के अधिकार के लिए एक दिन, दो दिन, पाँच दिन सात दिन गले के नीचे से नहीं उतारा निवाला अम्मा ने पीटा , बापू ने पीटा पर मुन्नी डटी रही अपनी शिक्षा के अधिकार के लिए आखिरकार एक दिन झूके बापू और कर दिया ऐलान मुन्नी स्कूल जायेगी , शिक्षा पाएगी मुन्नी स्कूल जाने लगी … और करने लगी फिर से पढाई इस तरह वो मुन्नी हो गयी हज़ारों मुन्नियों से अलग बात बहुत छोटी है पर सीख बड़ी गर संघर्ष हो सत्य की राह पर तो टिके रहो , हिंसा के विरुद्ध भूख के विरुद्ध सत्ता के विरुद्ध यही बात तो सिखाई थी गांधी ने यही तो था कमजोर की जीत का मन्त्र कौन कहता है कि आज गाँधी प्रासंगिक नहीं … सरबानी सेन गुप्ता यह भी पढ़ें … रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको कविता “मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा “ लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-poem, hindi poem, gandhi jayanti, Mahatma Gandhi, 2 october, gandhigiri, गाँधी , गाँधीवाद