प्रियंका–साँप पकड़ लेती है

फोटो -morungexpress.com से साभार प्रियंका गांधी , चुनाव नहीं लड़ रही हैं पर वो अपने भाई राहुल गांधी व् कोंग्रेस के प्रचार को मजबूती प्रदान करने केव लिए राजनीति के दंगल में उतरी हैं | प्रस्तुत कविता इस दूषित राजनीति में प्रियंका के कदम रखने पर अपने विचार व्यक्त करती है … प्रियंका–साँप पकड़ लेती है कभी नदी——— कभी नाव पकड़ लेती है, मोदी न आये सत्ता में, इस डर से, सपेरो के यहां जा——- प्रियंका साँप पकड़ लेती है. यही तो लोकतंत्र है, कि इस तपती धूप में, महलों की रानी, अपने पति और भाई के लिए गांव की पगडंडी , अपने आप पकड़ लेती है, और सपेरो के यहां जाके— प्रियंका साँप पकड़ लेती है. हँसती है,घंटो बतियाती है इस डर से- कि कही अमेठी से भाजपा की स्मृति न जीत जाये, हाय! ये काग्रेंस की आबरु का सीट बचाने के लिये प्रियंका——- अपने दादी की छाप पकड़ लेती है. और सपेरो की बस्ती में—– साँप पकड़ लेती है. जनता जानती है,समझती है कि क्यो—— चुनाव के समय ही, ये प्रियंका सपेरो के यहा जाके—- साँप पकड़ लेती है. लेकिन ये जनता साँप नही, कि कोई पकड़ ले, ये वोटर है, जो चुनाव से पहले ही, इन रंगे सियारी नेताओ का—- हर पाप पकड़ लेती है. मोदी सत्ता में न आये, इस डर से, सपेरो के यहां जाके —- प्रियंका सांंप पकड़ लेती है. रचनाकार –रंगनाथ द्विवेदी जज कालोनी,मियांपुर जिला–जौनपुर यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़िए बेहतरीन कवितायें संगीता पाण्डेय की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ रूचि भल्ला की कवितायें आपको  कविता  “  प्रियंका–साँप पकड़ लेती है …..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    डिस्क्लेमर – कविता , लेखक के निजी विचार हैं , इनसे atootbandhann.com के संपादक मंडल का सहमत/असहमत होना जरूरी हैं filed under- priyanka Gandhi, Rahul Gandhi, Modi, Politics

हे! धतुर वाले बाबा

भोले बाबा जो धतूरा , बेल , मदार और ना जाने कितने जहरीले फल प्रेमसे चढ़ा देने पर प्रसन्न हो जाते हैं और सब की बिगड़ी बनाने लगते हैं | उन्हीं के चरणों में एक भक्तिमय प्रार्थना हे! धतुर वाले बाबा सुना है— सबकी बिगड़ी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। ना दौलत ना शोहरत से आप खुश हो, ऐसा सुना है,कि आप उन लोगों के भी है, जिनका कोई नहीं—- हे! मजुर वाले बाबा। सुना है—- सबकी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। ना हो पाऐ पुरी शैतानी ख्वाहिश, इसके लिए—- समंदर से निकला जहर तक पिया हे! त्रिशूल वाले बाबा। सबको दिया घर और दुनिया चलाई, हिमालय की चोटी पर जाकर बैठे, हो खुद आधा नंगा—- हे! फक्कड़,हे! अवघड़, हे! मुड़ वाले बाबा। रहमत जरा सा हमपे भी कर दो, देखो, रोते गले से “रंग” तुमको पुकारे, हे! दूर वाले बाबा। सुना है—- सबकी बिगड़ी बनाते हो हे! धतुर वाले बाबा। @@@रचयिता—रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी, मियांपुर जिला–जौनपुर 222002 (U P) यह भी पढ़ें …….. महाशिवरात्रि -एक रात इनर इंजीनीयरिंग के नाम  सोऽहं या सोहम ध्यान साधना -विधि व् लाभ मनसा वाचा कर्मणा -जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल उसकी निशानी वो भोला भाला  आपको  रचना    “हे! धतुर वाले बाबा”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-shiv, mahashivraatri, fasting, dohe, bhagvan shiva, ॐ नम:शिवाय , shankar , bhole , baba

मंदिर-मस्जिद और चिड़िया

सारे धर्म भले ही बाँटने की कोशिश करें पर हवा , पानी , खशबू , जीव जंतुओं को कौन बाँट पाया है | ऐसे ही चिड़िया की बात कवि ने कविता में की है जो मंदिर -मस्जिद में भेद भाव न करके इंसानों से कहीं ज्यादा सेकुलर है | कविता –मंदिर-मस्जिद और चिड़िया मै देख रहा था——— अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी, वही कुछ देर पहले——– मस्जिद के मुँडेर पे बैठी थी. वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी, चंद दाने चुगे थे, यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी, और चंद दाने चुग, फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई. फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा, मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे, और वे चिड़िया सहम गई. शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे, जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे, अभी चंद दाने चुग, अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी, उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है, जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है, और हुआ भी वही, फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी, और फिर कभी मैने उस चिड़िया को, शहर के दंगो के बाद, दाना चुग पर फड़फड़ा, किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया , शायद वे चिड़िया एै “रंग “———– हम इंसानो से कही ज्यादा सेकुलर निकली. रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी । जज कालोनी, मियाँपुर जौनपुर—-222002 (उत्तर-प्रदेश) यह भी पढ़ें … बोनसाई काव्यकथा -गहरे काले रंग के परदे शहीद दिवस पर कविता संगीता पाण्डेय की कवितायें आपको    “  मंदिर-मस्जिद और चिड़िया   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, mandir, masjid, bird

योग- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है

योग एक ऐसे प्रक्रिया है जो तन के साथ मन को भी स्वस्थ करती है | इसके महत्व को समझते हुए इसे अपनाने पर जोर देने के लिए २१ जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है | योग- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है योग———- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है। रुग्ण मन,रुग्ण काया किस काम का बोलो, शरीर,शरीर पहले है ये कहां——– किसी हिन्दू या मुसलमान का है। योग———- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है। आओ इसके आसन मे प्रेम है अपना ले, स्वस्थ रहेगे ये मन सभी बना ले, आखिर घर-घर है दवाखाना नही—— किसी वैद्य या हकिम का है। योग———- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है। इसे घूँघट या पर्दानश़ी औरत मे हरगिज़ न बाँटिये, क्योंकि योग——— हर शख्स़ और तंजीम का है। योग——- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम का है। पुरी दुनिया हो उठी है कायल, इसका फक्र है हमें, क्योंकि हमारा योग एै”रंग”——- न किसी रसिया न किसी चीन का है। योग——-– न हमारे राम और न तुम्हारें रहीम का है। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) यह भी पढ़ें ………. साडे नाल रहोगे तो योगा करोगे स्कूलों में बच्चों को ‘यौन शिक्षा’ के स्थान पर दी जाए ‘योग’ एवं ‘आध्यात्म’ की शिक्षा योग दिवस आपको    “  योग- न हमारे राम और न तुम्हारे रहीम  का है “ कैसा लगा    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: international yoga day, yoga

मकान जल जाता है

जल जाना यानि सब कुछ स्वाहा हो जाना खत्म हो जाना | क्या सिर्फ आग से मकान जलता है ? बहुत सी परिस्थितियाँ हैं जहाँ आग दिखाई नहीं देती पर बहुत कुछ भस्म हो जाता है | हिंदी कविता –मकान जल जाता है जब राजनेता कोई घिनौनी चाल चल जाता है——— तो उससे बिहार और बंगाल जल जाता है। सब एक दूजे को मरते-मारते है और——— हमारे खून-पसीने से बनाया मकान जल जाता है। जिन्हें ठीक से श्लोक नही आता, और जिन्हें ठीक से आयत नही आती, उन्ही के हाथो———- शहर की पूजा और अजान जल जाता है। कर्फ्यू में– रेहड़ी और खोमचे वाले मजदूरो के बच्चे, आँख मे आँसू लिये, तकते है तवे का सुनापन सच तो ये है कि, शहर के दंगे मे———– गरीबो और मजदूरो की रोटी का सामान जल जाता है। सब एकदूजे को मरते-मारते है और———- हमारे खून-पसीने से बनाया मकान जल जाता है। बिहार और बंगाल के दंगे पे लिखी रचना। @@@@रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर–222002 (उत्तर-प्रदेश)। यह भी पढ़ें … बैसाखियाँ गीत वसंत उम्र के 75 वर्ष मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के आपको “ मकान जल जाता है “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- hindi poem, poetry, hindi poetry

माफ करना आशिफ़ा बिटिया

आशिफ़ा जैसी मासूम बच्चियो के बलात्कार की लाश,महज़ इस देश के किसी भी लहू-लुहान हिस्से मे नही पाई जाती, बल्कि हमारे पशुता और विभत्सता की पराकाष्ठा के जेरे साया हमारे देश के उस हिस्से के—संगीन के बीचो-बीच “अपने टपकते लहू से ये प्रश्न लिखती है, हिन्दुस्तान के नक्शे से ये सवाल पुछती है कि मुझे किस जुर्म की सजा दी गई? —-मेरे वे कौन से अंग विकसित हुये जिसे तक इस हद तक बलात्कार की इच्छा बलवती हुई की मुझ मासुम का बलात्कार कर मार दिया गया?”. हम कजोर नहीं हैं –रेप विक्टिम मुख्तार माई के साहस को सलाम मेरे तो वे यौवनांग भी न दिखे थे, ना ब्रा पहने थी न बड़े व खूबसुरत सुस्पष्ट यौवन उभार थे , मुझ मासूम को फिर क्यूँ इस तरह बेरहमी से नोचा व मारा गया. मै एक मासुम सी बच्ची थी मुझे गोद व वात्सल्य चाहिये था लेकिन मुझे क्या मिला बताओ कि आखिर मुझ जैसी मासूम सी बच्ची का दोष क्या था?. शायद इन प्रश्नो का उत्तर न ये देश दे पायेगा, न यहा की सियासत और न ही यहॉ की जम्हुरियत दे पायेगी. क्योकि आशिफ़ा जैसी मासूम बच्चियो की लाशे भी इन सियासत दा लोगो को—–” अपने सदन की वे सिढ़ियाँ लगती है जिसे लॉघ इस देश के तमाम घिनौने और घृणित नेता सत्ता सुख की तवायफ़ के अजीमोशान मुज़रे का पुरे पाँच साल तक लुत्फ़ और मज़े लेते है सदन की नम आँखे आशिफ़ा सी तमाम सवालात के साथ खामोश व मौन रहती है”. ये हमारे देश के वे खुशनसीब लोग है जो मंचो और मजलिसो मे चिंघाड-चिंघाड बेटियो को बचाने और उनके पढ़ाने की बात करते है.लेकिन इन्हि की बिरादरी और बस्ती का कोई भी विधायक;नेता, मंत्री सांसद, उन्नाव सा इस देश को एक दर्द दे अपनी पुरी विश्वसनिय निर्लज्जता का परिचय देता है| स्त्री देह और बाजारवाद ये वे चुनिंदा शैतान है दिनकी आवाभगत थानेदार,यस.पी.,डि.यम. सभी करते है. “ये दोयम दरज़े की कमिनगी मैने कईयो कई खाकी और खद्दर वाले मे देखी है”. खासकर इनकी हनक मैने मजलूमो और कमजोरो पर ही अधिक देखि है.सच पुछियो तो इनकी दबंगई किसी-किसी मामले मे अपराधी से भी ज्यादा खतरनाक है.अगर अपराध के एक पहलु का नंगा जायज़ा लिया जाय तो आप पायेंगे—” कि आशिफ़ा और उन्नाव जैसी घटना के एक अघोषित पात्र ये भी है ये वे सरकारी कलाकार है जिनकी मदद से कभी-कभी सियासत अपने खून के छींटे भी साफ करवाती है”. कई अपराधी राष्ट्रिय,अंतराष्ट्रिय जेलो मे बंद हो हत्या पे हत्या करवाये जा रहे है,पर किसी–“उन्नाव सी घटना का फरियादी पिता रो वही पवित्र थाने और जेल मे मार दिया जाता है और उसकी थाने पे ऐफ.आई.आर तक नही लिखि जाती”.सच तो ये है कि बच्ची कोई हो चाहे हिन्दु या मुसलमान की वे आशिफ़ा, गीता हो पशु को महज़ पशु कहा जाये न कि किसी आठ साल की मासुम सी बच्ची के बलात्कार की लाश –“राजनीति के कडाहे मे पका उसे अपनी राजनीति की मदांधता के नानवेज का लेग पीस”. हा!जबसे मैने आशिफ़ा की वे नग्न जिस्मानी-हवस के नाखुनी निशानो से भरी उसकी वे पीठ देखी है तबसे मुझे जाने क्यूँ लग रहा है कि ये–“आठ साल की मासुम आशिफ़ा ज़मीन पर नही अपितु हमारे और आपके उस गीता के श्लोक और कुरआन की मुकद्दस आयत पे पड़ी है दिसे हम रोज चुमते व पढ़ते है”. अब तो मै बस यही लिख सकता हूं—-“कि उफ! आशिफ़ा बिटिया दोबारा तुम किसी एैसे मुल्क मे जन्मो जहा तुम्हारे मासूम और कोमल से बदन पे ये निशान न हो”. फोटो क्रेडिट –herjindagi.com @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी. जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर—–222002 (उत्तर–प्रदेश). यह भी पढ़ें … विवाहेतर रिश्तों में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं बाबा का घर भरा रहे आपको  लेख “ माफ करना आशिफ़ा बिटिया  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अ टूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords: #justice for girl child,  women issues, Crime against women, Asifa, Kathua rape case, Rape