रंगनाथ द्विवेदी
जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है?
बता एै सिनेमा—————— आखिर तुम्हें हमारी इतिहास से, इतनी अदावत क्यू है? तेरे दामन मे———- जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है? । सवाल है मेरा तुझसे, कि सिनेमा के वे सेंटीमेंटल सीन और अंतरंगता, कोई मनोरंजन नही, ये इतिहास की पद्ममिनी का, सीने से खिचा आँचल है, हद तो ये है कि, इतने टुच्चे सिनेमाकारो के … Read more
मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई
सुबह होते ही———– कपाल भाति और अनुलोम-विलोम कर गई, हाय!राम——— मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई। एलोवेरा और आँवले के गुण बता रही, मुझे तो अपने जवानी की चिंता सता रही, हे! बाबा रामदेव———- आपने मेरी खटिया खड़ी कर दी, सारे रोमांस का नशा काफुर हो गया, ससुरी पति के प्यार का आसन छोड़—– आपके … Read more
पतंग और गफुर चचा
एक ज़माने में पतंगों का खेल बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय होता था , साथ ही लोकप्रिय होते थे गफुर चचा , जो बच्चों के लिए एक से बढ़कर एक पतंगे बनाते थे| जो ऊँचे आसमानों में हवा से बातें करती थीं | मोबाईल युग में पतंग उड़ाने का खेल अतीत होता जा रहा है … Read more
रेप से जैनब मरी है
उफ! मासूम जैनब ये जो रेप से जैनब मरी है, किसी वालिद की बिटिया, किसी की जीऩत,किसी की परी है——- ये जो रेप से जैनब मरी है। जिस्मानी भूख और हवस की हद है, वे मासूम कितनी चीख़ी होगी, या अल्लाह! वे कौन? नमाज़ी था, कि मरने के बाद भी लग रहा की, जैसे जैनब … Read more
गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये
शर्मिंदा हूं—————- सुनुंगा घंटो कल किसी गोष्ठी में, उनसे मै हिन्दी की पीड़ा, जो खुद अपने गाँव मे, शहर की अय्याशी के लिये——– अपने पनघट की हिन्दी छोड़ आये। गंभीर साँसे भर, नकली किरदार से अपने, भर भराई आवाज से अपने, गाँव की एक-एक रेखा खिचेंगे, जो खुद अपने बुढ़े बाप के दो जोड़ी बैल, … Read more
सुहागरात (कविता )
यूँही पड़ी रहने दो कुछ दिन और कमरे मे— हमारे सुहागरात की बिस्तर और उसकी सिलवटे। मोगरे के अलसाये व गजरे से गिरे फुल, खोई बिंदिया,टूटी चुड़ियाँ! और सुबह के धुंधलके की अंगडाई मे, हमारे बाँहो की वे मिठी थकन! कुछ दिन और———- हमारे तन-मन,बिस्तर को जिने दो ये सुहागरात। फिर जिवन की आपाधापी मे … Read more
नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई
टेक्नोलोजी पर हालांकि पुरुषों का एकाधिकार नहीं है | पर एक सीधी – साधी घरेलू महिला जब नया मोबाइल लेती है तो बेचारे पति को क्या – क्या समस्याएं आ सकती हैं | जानने के लिए पढ़ें रंगनाथ दुबे जी की व्यंग कविता और करें नए साल की शुरुआत थोड़े हंसी मजाक के साथ …….. … Read more
नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी
यूँ तो प्यार का कोई मौसम नहीं होता | परन्तु आज हम एक ऐसे प्रेम की मोहक गाथा ले कर आये हैं | जहाँ नये साल की शुरुआत यानि जनवरी ही प्रेम की कोंपलों के फूटने की शुरुआत बनी |फरवरी , मार्च अप्रैल … बढ़ते हुए प्यार के साक्षी बने , धीरे धीरे महीने दर … Read more
एक खूबसूरत एहसास है
गुनगुनी धूप में—————— खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। मै तकता हू एकटक तुम्हे चोर नज़र, पता ही नही चलता कि————- तेरे पाँव तले छत की ज़मी है, याकि मखमली घास है। गुनगुनी धूप में———— खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। ये उजले से दाँत,गुलाबी से होठ,आँखो … Read more