रक्षा बंधन का एक धागा हमारे कश्मीर की कलाई पर …

अबकी बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लीजो बुलाय …बंदिनी फिल्म का यह गीत चाहे कितना भी पुराना क्यों ना हो जाए फिर भी चिर नूतन है | कारण है इससे हर बहन की भावनाएं  जुड़ी हैं | जो बहनें साल भर  मायके नहीं  जा पाती हैं उनके लिए सावन मायके जाने का एक बहाना होता है | सावन के अंत में ही आता है रक्षा बंधन का त्यौहार | जो बहनें -बेटियाँ सावन में मायके जाती हैं वो रक्षा बंधन मना  कर ही वापस ससुराल आती हैं | मायके से चलते समय अपने अंजुरी  से मुट्ठी भर चावल के दाने छिड़क कर भाई और भतीजों के लिए मंगलकामनायें करना नहीं भूलती |  अगर मैं अपनी बात करूँ तो विवाह के इतने वर्षों बाद भी आज भी मायके से आते समय आँखे नम हो जाती हैं | माँ भी तो ऐसा ही करती हैं …और मेरी बेटी भी कई बार मैं दीवारों को अपनी हथेलियों से छूटे हुए जैसे उन सब स्मृतियों को अपने अंदर भर लेना चाहती हूँ , जो मेरे बचपन की वहाँ  पर छूट गयीं है | ये भाव मन को आल्हादित करता है कि दीवारें साक्षी होती हैं , उन्होंने सब देखा है | कितनी बार उनके रंग बदले गए हैं, कितनी बार प्लास्टर भी झड़ा है , फिर भी अंदर कहीं गहराई में वो स्मृतियाँ अभी भी सहेजे हुए हैं | स्नेह के कितने बन्धनों की वो साक्षी रही हैं | वहीँ से मैं पुन : समेट लेना चाहती हूँ वो सारी स्मृतियाँ जो जो पूरे वर्ष भर मुझे जीवन के हर ताप में नम रखती हैं |  बहन बेटियाँ सदा से ऐसी होती आयीं हैं | कितने चुटकुले बने हैं महिलाओं के मायके के प्रति प्रेम से | कौन सी महिला होगी जिसने पति या ससुराल वालों से मायके के लिए ताजने ना सुने हो | “इतने साल साल हो गए पर मन तो वहीँ रखा रहता है इनका ” कितना कुछ छिपा जाती हैं महिलाएं पर मायके के नाम पर जो आँखों में चमक आती है वो छुपाये नहीं छिपती | कितनी बार ऐसा हुआ कि भाइयों ने निष्ठुरता दिखाई  | जल्दी से राखी बाँध दो कह कर अपने कामों में लग गए | मायके आई बहन के पास दो घंटा बैठ कर बात भी नहीं की | आहत बहन आँखों में आँसूं  लिए लौट गयी ससुराल | पर जब भी मायके से कोई खबर आई तुरंत दौड़ी चली आई … ना कोई गिला ना शिकवा |  क्यों करती हैं हम बहने ऐसा ?  क्यों न करें आखिर हमारी नार जो वहां गड़ी हुई हैं | कितना भी दूर रहे कहीं भी रहे पर मन में लौट -लौट वहीँ जाता रहा है … रहेगा |  कहना ना होगा कि एक ना एक दिन भाई भी समझते हैं इस प्रेम की कीमत और चाहें जितने निष्ठुर हो कभी ना कभी झुकते ही हैं इस प्रेम के आगे | भले ही बरसों बात सुध लें पर जब समझ आती है तो बहनों के कानों में भी भाइयों के फोन बज उठते हैं ,  ” बहुत दिन हो गए मिले हुए , इस बार रक्षा बंधन पर जरूर आना |”  आखिरकार कच्चे धागे का ये बंधन होता ही इतना पक्का है | तभी तो अम्मा सदा कहती आयीं हैं , ” पानी बांटने से बंटा है कभी “ इस बार का रक्षा बंधन और भी विशेष है क्योंकि इस बार उसके साथ स्वतंत्रतता दिवस भी आ रहा है | और यह स्वतंत्रता दिवस हमारे लिए इस लिए भी ख़ास है क्योंकि इस बार अभी कुछ ही दिन पहले हमारा प्यारा भाई कश्मीर धारा ३७० की कैद से आज़ाद हुआ है | कितना दुःख झेला है भाई ने | आतंक ने कितना सीना छलनी किया है उसका | कितने भाई बहन वहां से  भगा दिए  | कितना भीषण रक्तपात हुआ , जो बचे उनको भी कहाँ सुकून लेने दिया आतंकवाद ने |  कितना कराहा ता वो | और हम बहनें भी विवश थे | क्या करते सिवाय आँख नम करने के | अभी  तक का मिलना भी कोई मिलना था वो भी दूर हम भी दूर | इस बार हम भाई बहन परस्पर एक दूसरे को ढेर सारा प्यार और दुलार भेज पायेंगे जो अभी तक दिल में भरा था , लेकिन जिसके इजहार में पराये पन की बू थी |  जबसे कश्मीर से धारा 370 हटाई गयी है , तबसे  हमारा पड़ोसी , हमारा पकिस्तान हमारे खिलाफ विश्व को एक जुट कर ये प्रयास कर रहा है कि  कि भाई बहन के इस प्रेम में बाधा पड़े | उसका नजरिया तो फिर भी समझ में आता है पर जिस तरह से कुछ अपने   धारा 370 हटाये जाने का विरोध कर रहे हैं तो आम आदमी के लिए ये समझना मुश्किल हो जाता है कि ये हमारा पक्ष रख रहे हैं या पकिस्तान का | मुझे तो इनमें वो निष्ठुर भाई नज़र आते हैं जिन्हें बहनों का प्रेम नज़र नहीं आता | जो एक बार पराई की गयी को फिर अपनाना ही नहीं चाहते |  खैर कुछ मुट्ठी भर लोगों के विमुख होने से , निष्ठुर होने से या दुष्प्रचार करने से बहनों का प्रेम कभी कम हुआ है भला … वो तो लौट -लौट कर उमड़ता ही रहता है |   इस बार पूरे देश की बहनें अपने कश्मीरी भाईयों  को राखी बाँधने  के लिए थाली तैयार कर रही हैं | माथे पर प्रेम की प्रतीक लाल रोली का टीका, अक्षुण्य प्रेम के के लिए अक्षत के दाने छितराए हुए | आरती का थाल और रेशम के मुलायम धागे जो इस रिश्ते  को और मजबूत करेंगे |  वो फैलाते रहे नफरत हम तो प्यार बांटेंगे |  प्यार हमेशा जीता है …जीतेगा |  हम बांधेंगे  ….इस बार रक्षा बंधन का धागा हमारे कश्मीर की कलाई पर  गम जदा या खौफजदा ना होना भैया … हम हैं ना तुम्हारे साथ  वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … निर्णय लो दीदी – ओमकार भैया को याद करते हुए एक पाती भाई बहन के नाम – डॉ भारती वर्मा ‘बौड़ाई ‘ आया राखी का त्यौहार -भाई बहन पर कुछ कवितायें रक्षा बंधन स्पेशल -फॉरवर्ड लोग  आपको   लेख  “रक्षा बंधन  का एक … Read more

रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड

रक्षा बंधन का पावन दिन जिस दिन भाई -बहनों के पुनीत प्रेम की  धारा में पूरा भारत बह रहा होता है तो कवि मन क्यों न बहे | प्रेम और स्नेह की इस सरिता में कुछ वर्ण पिरामिडों के पुष्प हम भी अर्पित कर रहे हैं …. रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड  ये  पर्व बहन  भाई प्रेम  रक्षाबंधन  आता सावन में  रहता हृदय में। ~~~~~~~~~~~ •• है  बैठी  प्रसन्न राखी थाल  सजाये बहन आये कब भाई  बाँधू राखी जो लाई। ~~~~~~~~~~~~~~~ •• ये धागा  नहीं है  स्नेह सूत्र  विभोर मन  जुड़ाव मन का  संबंध जीवन का। ~~~~~~~~~~~~~ •• मैं  रहूँ  कहीं भी योजक ये  रेशम सूत्र  बनेगा बहना कलाई का गहना। ~~~~~~~~~~~~ •• तू  रहे  स्वस्थ  सदा मस्त  धन समृद्ध  हर्ष का चंदन  मने रक्षाबंधन। ~~~~~~~~~~~~ डा० भारती वर्मा बौड़ाई  रक्षाबंधन की अशेष हार्दिक शुभकामनाएँ। यह भी पढ़ें … यह भी पढ़ें … निर्णय लो दीदी – ओमकार भैया को याद करते हुए  रक्षा बंधन -भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार आया राखी का त्यौहार -भाई बहन पर कुछ कवितायें  रक्षा बंधन स्पेशल -फॉरवर्ड लोग   आपको   “ रक्षाबंधन पर 5 वर्ण पिरामिड ” कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: raksha bandhan, rakhi, bhai -bahan

निर्णय लो दीदी ? ( ओमकार भैया को याद करते हुए )

                              happy  raksha bandhn , कार्ड्स मिठाइयाँ और चॉकलेट के डिब्बों से सजे बाजारों के  बीच कुछ दबी हुई सिसकियाँ भी हैं | ये उन बहनों  की  हैं जिनकी आँखें राखी से  सजी दुकानों को देखते ही डबडबा जाती  हैं   और आनायास  ही मुँह  फेर  लेती हैं | ये वो अभागी  बहनें  हैं जिन्होंने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर अपने भाई को खो दिया    है | भाई – बहन का यह अटूट बंधन ईश्वर की इच्छा के आगे अचानक से टूट कर बिखर गया | अफ़सोस उन बहनों में इस बार से मैं भी शामिल हूँ | भाई , जो भाई तो होता ही है पुत्र , मित्र और पिता की भूमिका भी समय समय पर निभाता है | इतने सारे रिश्तों को एक साथ खोकर खोकर मन का आकाश बिलकुल रिक्त हो जाता है | यह पीड़ा न कहते बनती है न सहते | लोग कहते हैं की भाई बहन का रिश्ता अटूट होता है | ये जन्म – जन्मांतर का होता है | ये जानते हुए भी की  ओमकार भैया की कलाई पर राखी बाँधने और उनके मुँह में मिठाई का बड़ा सा टुकड़ा रखने का सुख अब मुझे नहीं मिलेगा मैं बड़ों के कहे अनुसार पानी के घड़े पर राखी बाँध देती हूँ | जल जो हमेशा प्रवाहित होता रहता है , बिलकुल आत्मा की तरह जो रूप और स्वरुप बदलती है परन्तु स्वयं अमर हैं | राखी बांधते समय आँखों में भी जल भर जाता है | दृष्टि धुंधली हो जाती है | आँखे आकाश की तरफ उठ जाती हैं और पूँछती हैं…”भैया आप कहाँ हैं ?”                                                        मैं जानती हूँ की बादलों की तरह उमड़ते – घुमड़ते मन के बीच में अगर ओमकार भैया के ऊपर कुछ लिखती हूँ तो आँसुओं का रुकना मुश्किल है , नहीं लिखती हूँ तो यह दवाब सहना मुश्किल है | 16 फरवरी को ओमकार भैया को हम सब से छीन ले जाने वाली मृत्यु उनकी स्मृतियों को नहीं छीन सकीं बल्कि वो और घनीभूत हो गयी | तमाम स्मृतियों में से एक स्मृति आप सब के साथ शेयर कर रही हूँ |                                                                          बात अटूट बंधन के समय की है |    कहते हैं  बहन छोटी हो या बड़ी ममतामयी ही होती है | और भाई छोटा हो या बड़ा , बड़ा ही होता है |  बचपन से ही स्वाभाव कुछ ऐसा पड़ा था की अपनी ख़ुशी के आगे दूसरों की ख़ुशी को रख देती | अपने निर्णय के आगे दूसरों के निर्णय को | उम्र के साथ यह दोष और गहराता गया | हर किसी के काम के लिए मेरा जवाब हां ही होता | जैसे मेरा अपना जीवन अपना समय है ही नहीं | मैं व्यस्त से व्यस्ततम होती चली जा रही थी | कई बार हालत यह हो जाती की काम के दवाब में  घडी की सुइंयों के कांटे ऐसे बढ़ते जैसे घंटे नहीं सिर्फ सेकंड की ही सुइयां हों | काम के दवाब में कई बार सब से छुप कर रोती भी पर आँसूं पोंछ कर फिर से काम करना मुझे किसी का ना कहने से ज्यादा आसान लगता |                                        भैया हमेशा कहा करते की दीदी हर किसी को हाँ मत कहा करो | अपने निर्णय खुद लिया करो | पर मैं थी की बदलने का नाम ही नहीं लेती | शायद ये मेरी कम्फर्ट ज़ोन बन गयी थी जिससे बाहर आने का मैं साहस ही नहीं कर पा रही थी | बात थी अटूट बंधन के slogan की | मैंने ” बदलें विचार , बदलें दुनिया ” slogan रखा | भैया ने भी कुछ slogan सुझाए थे | मुझे अपना ही slogan सही लग रहा था | पर अपनी आदत से मजबूर मैंने भैया से कहा ,” भैया , जो आप को ठीक लगे | वही रख  लेते हैं | भैया बोले ,” दीदी आज कवर पेज फाइनल होना है , शाम तक और सोंच लीजिये | मैंने हां कह दिया | शाम को भैया का फोन आया ,” दीदी क्या slogan रखे | मैंने कहा ,” भैया जो आप को पसंद हो , सब ठीक हैं | दीदी एक बताइये , भैया का स्वर थोडा कठोर था | सब ठीक हैं भैया मेरा जवाब पूर्ववत था | भैया थोडा तेज स्वर में बोले ,” दीदी , निर्णय लीजिये , नहीं तो आज कवर पेज मैं फाइनल नहीं करूँगा | आगे एक हफ्ते की छुट्टी है | मैगज़ीन लेट हो जायेगी | फिर भी ये निर्णय आपको ही लेना है | निर्णय लो दीदी | मैंने मैगजीन का लेट होना सोंच कर तुरंत कहा ,” भैया बदलें विचार – बदलें दुनिया ‘ ही बेस्ट है | मैगजीन छपने चली गयी | लोगों ने slogan बहुत पसंद किया | बाद में भैया ने कहा ,” दीदी जीवन अनिश्चिताओं से भरा पड़ा है | ऐसे में हर कदम – कदम हमें निर्णय लेने पड़ते हैं | कुछ निर्णय इतने मामूली होते हैं की उन का हमारी आने वाली जिंदगी पर कोई असर नहीं पड़ता | पर कुछ निर्णय बड़े होते हैं | जो हमारे आने वाले समय को प्रभावित करते हैं | ऐसे समय में हमारे पास दो ही विकल्प होते हैं | या तो हम अपने मन की सुने | या दूसरों की राय का पालन करें | जब हम दूसरों की राय का अनुकरण करते हैं तब हम कहीं न कहीं यह मान कर चलते हैं की दूसरा हमसे ज्यादा जानता है | इसी कारण अपनी ” गट फीलिंग ” को नज़र अंदाज़ कर देते हैं | अनिश्चितताओं से भरे जीवन में कोई भी निर्णय फलदायी होगा … Read more

आया राखी का त्यौहार – भाई बहन पर कवितायें

बहन की राखी  ईमेल एसएमएस की दुनिया में डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा 22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट पते के जगह, जैसे ही दिखी वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट जग गए, एक दम से एहसास सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य वो झगड़ा, बकबक, मारपीट सब साथ ही दिखा, प्यार के छौंक से सना वो मनभावन, अलबेला चेहरा उसकी वो छोटी सी चोटी, उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी, मेरे हाथों कभी एक दम से आ गया सामने उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा खूबसूरत दिखने की ललक एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी “भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??” हाँ! समझ गया था, लिफाफा में था मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ रेशमी धागे का बंधन था साथ में, रोली व चन्दन थी चिट्ठी….. था जिसमे निवेदन “भैया! भाभी से ही बँधवा लेना ! मिठाई भी मँगवा लेना !!” हाँ! ये भी पता चल चुका था आने वाला है रक्षा बंधन आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता दिख रहा था लिफाफे में …… सिमटा हुआ………..!!! मुकेश कुमार सिन्हा  चिट्ठी भाई के नाम*************** भैया  पिछले रक्षाबंधन पर  जैसे ही मैंने नैहर की  चौकठ पर  रखा पांव बड़े नेह से भौजाई लिए खड़ी थी हांथो में थाल सजाकर जुड़ा हमारा  हॄदय खुशी से आया नयन भर हमने दिया आशीष  मन भर सजा रहे भाई का आंगन भरा रहे भाभी का आँचल रहे अखंड सौभाग्य हमारा नैहर रहे आबाद भैया तुम रखना भाभी का खयाल कभी मत होने देना उदास भाभी तेरे घर की लक्ष्मी है और तुम हो घर के सम्राट माँ भी हैं तेरे साथ  उन्हें भी देना मान  सम्मान  सिर्फ़ तुमसे है  इतना आस  पापा का बढ़ाना  नाम  ********************* ©कॉपीराइट किरण सिंह ‎_भैया_लौटे_हैँ‬ भैया लौटे हैँ लौटी हैँ माँ की आँखेँ पिता की आवाज मेँ लौटा है वजन बच्चोँ की चहक लौटी है भाभी के होँठो पर लौट आई लाली बहुत दिन बाद हमारी रसोई मेँ लौटी खुशबू आँगन मेँ लौटा है परिवार नया सूट पाकर मैँ क्योँ न खुश होऊँ बहन हूँ शहर से मेरे भैया लौटे हैँ.! _गौरव पाण्डेय ‘रक्षा -बंधन ; एक भावान्जलि  ” एक थी , छोटी सी अल्हड़  मासूम बहना। …  छोड़ आई अपना बचपन ,तेरे अँगना , बारिश की बूंदो सी  पावन स्मृतियाँ ,  नादाँ आँखे उसकी  उन्मुक्त  भोली हँसी, …. क्या भैया !   तुमने उसे देखा है कही ,………… ! छोटी सी फ्राक की छोटी सी जेब में , पांच पैसे की टाफी की छीना -छपटी  में , मुँह फूलती उसकी ,शैतानी हरकते  स्लेट के  अ आ  के  बीच ,मीठी शरारते  क्या ?… तुम उसे याद करते हो कभी ,…. ! दिनभर, अपनी कानी गुड़िया संग खेलती , माँ की गोद  में पालथी मारे बैठती , ,जहा दो चोटियों संग माँ गूंथती , हिदायतों भरी दुनियादारी की बातें , बोलो भैया ,!वो मंजर भूल तो नहीं जाओगे कभी.… ,! आज तेरे उसी घर – आँगन में, ठहर जाये ,वैसी ही मुस्कानों की कतारे , हंसी -ठहाकों की लम्बी महफिले , हम भाई-बहनो के यादो से भींगी बातें , और ख़त्म ना हो खुशियो की ये सौगाते कभी भी,…  ! राखी के सतरंगे धागो में गूँथे हुए अरमान , तुमने दिए ,मेरे सपनो को अनोखे रंग , और ख्वाईशों को दिए सुनहरे पंख , और अब सफेद होते बालो के संग , स्नेह की रंगत कम न होने देना कभी.… ! माथे पर तिलक सजाकर ,नेह डोर बांधकर, भैया मेरे ,राखी के बंधन को निभाना , छोटी बहन को ना भुलाना , इस बिसरे गीत के संग , अपनी आँखे नम न करना कभी   …. !  आँखों में , मीठी यादो में बसाये रखना, इस पगली बहना का पगला सा प्यार  , यही याद दिलाने आता है एक दिन , बूंदो से भींगा यह प्यारा  त्यौहार, बस ,भैया तुम मुझे भूला ना देना, कभी। ….  ”’ ई. अर्चना नायडू  जबलपुर  पक्के रंग  कितनी खुश थी मैं जब माँ ने बताया था की परी रानी आधी रात कोदे गयी है मुझे एकअनोखा उपहारकोमल सा नाजुक साजिसे अपनी नन्ही गोद में लिटाघंटों खेलतीहाँ ! भैया तुम मेरी गुडियाँ में तब्दील हो गए कब वो नन्हे -नन्हे हाँथ-पाँव बढ़ने लगे शुरू हो गया संग खेलना मेज के नीचे घर का बनाना मिटटी के बर्तन में खाना रूठना -मानना तकिये के नीचे टॉफ़ी छिपाना हाँ ! भैया तुम मेरे दोस्त में तब्दील हो गए जब बढ़ गया तुम्हारा कद मेरे कद से तो हो गए जैसे बड़े उम्र में सजग -सतर्क रखने लगे मेरा ख़याल कॉलेज ले जाना, लाना मेरा हाथ बटाना मेरी छोटी -छोटी खुशियों का ध्यान हां भैया ! तुम मेरे संरक्षक में तब्दील हो गए और उम्र के इस दौर में जब मेरे दर्द पर भर आती है तुम्हारी आँखें निभाते हो जिम्मेदारियाँ फेरते हो सर पर स्नेहिल हाँथ मौन ही कह जाते हो चिंता मत करो” मैं हूँ तुम्हारे साथ “ कब ! पता नहीं कब ? मेरे भाई ! तुम मेरे पिता में तब्दील हो गए आज तुमको भेजते हुए राखी बार -बार कह रहा है मन मेरी गुड़ियाँ , मेरे भाई , संरक्षक , मेरे पिता बड़ा अनमोल है अपना यह रिश्ता क्योंकि कुछ धागों के रंग कभी कच्चे नहीं होते समय बीतने के साथ साल दर साल यह और मजबूत और गहरे और पक्के होते जाते हैं :वंदना बाजपेयी

रक्षा बंधन -भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार

मेरे भैया मेरे चंदा मरे अनमोल रतन तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज न लूँ                               रेडियो पर बहुत ही भावनात्मक मधुर गीत बज रहा है | गीत को सुन कर बहुत सारी भावनाऐ   मन में उमड़ आई | वो बचपन का प्यार ,लड़ना –झगड़ना ,रूठना मानना | भाई –बहन का प्यार ऐसा ही होता है |इस  एक रिश्ते में न जाने कितने रिश्ते समाये हैं ,बहन ,बहन तो है ही ,माँ भी है और दोस्त भी | तभी तो खट्टी –मीठी कितनी सारी यादें लेकर बहने ससुराल विदा होते समय भाइयों से ये वादा लेना नहीं भूलती कि “भैया साल भर मौका मिले न मिले पर रक्षा बंधन के दिन मुझसे मिलने जरूर आना , और भाई भी अश्रुपूरित नेत्रों से हामी बहर कर बहन को विदा कर देता | दूर –दूर रहते हुए भी निश्छल प्रेम की एक सरस्वती दोनों के बीच बहती रहती ,और ये पावन  रिश्ता सदा हरा भरा रहता है | रक्षा बंधन -भाई बहन के प्यार पर हावी बाज़ार     अपने बचपन को याद करती हूँ तो माँ साल भर रक्षा बंधन का इंतज़ार किया करती थी | फिर खुद ही रेशमी धागों से कुछ  कपड़ों की कतरनों से काट –काटकर सुन्दर राखियाँ तैयार किया करती थी | हमें भी वो ये पकड़ा देती और हम भी ग्लेज़ पेपर , ग्रीटिंग कार्ड से निकाले गए सितारे व् धागों से राखियाँ बनाते | जब हम ये बनाते तो माँ अक्सर गुनगुनाया करती “ अबकी बरस भेज भैया को बाबुल सावन में लेजो बुलाय | “ राखी के महीने भर पहले से यानी सावन की शुरुआत से ही राखी के कपडे ,घर में तैयार करने वाली राखी ,और इस बार मामा के आने पर क्या बनेगा की चर्चा से बाहर सावन से धरती भीगती और अन्दर मन भाई के प्रेम से भीगता | मामा के आने पर लगता ठहाकों का दौर |  शगुन की मीठी  सेवईयों से रिश्ते की मिठास बढ़ जाती | एक –एक पकवान माँ हाथ से बनाती | हर राखी का धागा भाई बहन के  इस रिश्ते को और मजबूत कर देता | समय बदला हर त्यौहार की तरह रक्षा बंधन को भी बाजारवाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया | जिस तरह से दीपावली पर  बल्बों की झालरों की बेतहाशा रौशनी भी दिये  की सात्विकता का मुकाबला नहीं कर सकती उसी तरह ये डिजायनर राखियाँ भी हाथ की बनायी राखियों के प्रेम भाव का मुकाबला नहीं कर पाती | सावन  की शुरुआत  से ही बाज़ार  चायनीज राखियों से सज जाते हैं | एक दूसरे की देखा –देखी अपने –अपने भाई को महंगी और महँगी राखी बंधने की होड़ लग जाती |  सलमा सितारे लगी राखी ,नोट लगी राखी , चांदी  के सिक्के लगी राखी , हीरे पन्ने की राखी हर तरह की राखियाँ  उपलब्ध हैं | एक मन में प्रश्न उपजता है ज्यादा महंगी राखी  या  ज्यादा प्रेम  का प्रदर्शन | या ये सात्विक  प्रेम भी अब बाज़ारों में बिकने लगा है ,उसकी भी कीमत होने लगी है जितना भुगतान उतना ऊंचा प्रेम का पायदान |             बहन त्यौहार के दिन रसोई में न उलझी रहे बाज़ार ने इसकी पूरी व्यवस्था की है | तमाम  तरह के नमकीन मीठे ,बने बनाये डिब्बे अलग –अलग कम्पनियों ने अलग –अलग नामों से बाज़ार में उतार  दिए हैं | खोये की मिलावट के भय ने चॉकलेट  के सेलेब्रेशन के गिफ्ट पैकिटों पर चांदी बरसा दी है | बहन का हाथ से सेवैया बना कर भाई का इंतज़ार करना बेमानी सा लगता है | बाज़ार में बिकते खूबसूरत कार्ड अपनी तराशी हुई शब्दावली के कारण बहन द्वारा पोस्टकार्ड पर लिखे चार अनगढ़ से शब्दों और अंत में लिखी दो  लाइनों “ भैया थोड़े को कम समझना राखी पर जरूर आना को विजयी भाव से मुंह चिढाते हुए प्रतीत होते हैं |         भाई भी कहाँ कम हैं ………. भले ही राखी बाँधने आई बहन को भाई २ मिनट का वक्त न दे “ जल्दी राखी बांधों मुझे तुम्हारी भाभी को ले कर ससुराल जाना है कहकर बहन का सारा उत्साह ठंडा कर दे पर एक बढ़िया सा गिफ्ट बहन के लिए जरूर तैयार होगा |दूसरे शहर में रहने वाली बहन बरसों भाई के आगमन की प्रतीक्षा करती रहे पर नौ की लकड़ी नब्बे खर्च के सिद्धांत पर चलते हुए भाई गिफ्ट आइटम भेजना खुद जाने से कहीं बेहतर समझने लगे हैं | सही भी है बहन को देने के लिए गिफ्ट पैक करे हुए आइटम्स भी बाज़ार में उपलब्ध  जो हैं | जाइए अपने बजट  के हिसाब  से खरीदिये और  गिफ्ट करिए  भले ही इन रगीन कागजों  के नीचे भाई बहन के प्रेम का दम घुट रहा हो |              आजकल पैकेजिंग का जमाना है ……… ठीक वैसे ही जैसे मेक अप की बनावटी परतों  के नीचे असली  चेहरा छिप जाता है वैसे ही  इस गिफ्ट कल्चर में रिश्तों में भावनाओं की कमी छिप जाती है | आज सेलिब्रेशन का जमाना है हम बात –बात में सेलिब्रेट करते हैं , बर्थ डे ,होली ,दिवाली ,ईद ,दशहरा कोई त्यौहार इनसे छूटा  नहीं है| उस पर व्यक्ति गत सेलिब्रेशन “ यार तेरी नयी गाडी , नया पर्स , बेटे का सेलेक्शन , बेटी का स्टेज पर गायन चल सेलिब्रेट करते हैं “| सेलिब्रेशन के नाम पर वही खाना –पीना मौज मस्ती  रंगीन –कागजों में लिपटे गिफ्ट का लेंन –देन | पाश्चात्य सभ्यता ने जहाँ हमें जिंदादिल रहने के लिए सेलिब्रेट करना सिखाया है वही बात बात पर सेलिब्रेट करने के कारण  ये सारा सेलिब्रेशन मशीनी लगने लगा है | हंसी –मजाक गिफ्ट्स का लेंन  देन  सब सब में मोनोटोनी (एक रूपकता )  लगने लगी  है |        ये सच है कि भारत पर्वों का देश है पर हर पर्व को मनाने के तरीके , उसमें बनाये जाने वाले व्यंजन ,उसमें होने वाली पूजा भिन्न होती थी | इसलिए हर त्यौहार का सभी को साल भर इंतज़ार रहता था | अब हर त्यौहार में  महिलाओ का ब्यूटी पार्लर में एक तरीके से सजना …….. सावन की हरी व् करवा चौथ की लाल चूड़ियों का मजा फीका कर देता  है | हर त्यौहार में चॉकलेट  ,केक महंगे गिफ्ट्स जैसे कुछ अंतर रह ही नहीं गया है | मेरा … Read more

रक्षा बंधन स्पेशल – फॉरवर्ड लोग

  आज सजल बहुत खुश था। पूरे आठ साल बाद आज रक्षाबंधन के दिन मीनल दीदी उसकी कलाई पर राखी बांधेगी। वो जब दसवीं कक्षा में था, मीनल दीदी ने कॉलेज की पढ़ाई के साथ पार्टटाइम जॉब शुरू कर दी थी। पापा -मम्मी ने रोक था कि जॉब के साथ वह पढ़ाई उतनी तन्मयता से नहीं कर पायेगी। पर मीनल को शुरू से ही ढेर सारे कपड़े, घड़ियाँ व महंगे मोबाइल्स का शौक था। उसने जल्दी ही इन्स्टालमेन्ट पर स्कूटी भी ले ली थी। पढाई पूरी होने पर जब उसके लिए विवाह प्रस्ताव आने लगे तो उसने घोषणा कर दी कि वह अपने बॉस से शादी करेगी। उसी दिन घर के दरवाजे उसके लिए बंद हो गए। इसी साल जॉब लगने की ख़ुशी में सजल ने पापा -मम्मी को मनाया था कि उसकी पहली कमाई में दीदी का भी हक़ है अतः वह राखी बंधवाने दीदी के घर जायेगा। मीनल का बड़ा  घर देखकर सजल बहुत खुश हुआ। मीनल ने उसे अपना पूरा वैभव दिखाया। बीते आठ साल की बातें की। पापा -मम्मी को याद कर उसकी आँखे नम हो गई। उसने प्यार से सजल की कलाई पर चंडी की बेशकीमती राखी बांधी। सजल को पांच सौ का नोट थाली में रखते कुछ सकुचाहट हुई। तभी उसके जीजाजी आ गए। सबने ख़ुशी -ख़ुशी साथ खाना खाया। बातों -बातों में जीजाजी ने बताया कि कितनी मेहनत से उन्होंने ये समृद्धि प्राप्त की है। सजल बहुत प्रभावित हुआ। रात्रि होने पर सजल ने विदा मांगी तो जीजाजी बोले “ऐसा कैसे हो सकता है साले साहब। पहली बार घर आये हो ,हमें पूरा स्वागत तो करने दो। ” उनके इशारे पर मीनल पैग बनाने लगी। सजल ने कभी शराब चखी भी न थी। मीनल को पीते देखकर उसका मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। मीनल जान गई कि यह अभी मध्यमवर्गीय मानसिकता से बाहर नही आया है।           वह बोली “सजल , हाई सोसाइटी में उठते बैठते हैं तो साथ देने के लिए पीना पड़ता है। अब पैसा होगा तो आदतें भी वैसी ही होगी नहीं तो लोग हमें बैकवर्ड समझने लगेंगे। तुम भी धीरे -धीरे सीख जाओगे भाई। ” सजल ने निःशब्द ही वहाँ से विदा ली। घर की डोरबेल बजाई। उसे कलाई पर बंधी राखी से शराब की गंध आ रही थी पर चाहकर भी फेंक नही पाया। माँ के दरवाजा खोलने से पहले उसने राखी उतार कर जेब में रख ली। रचना व्यास  अटूट बंधन

एक पाती भी /बहन के नाम ( निशा कुलश्रेष्ठ )

एक चिट्ठी भाई के नाम..  प्रिय  भाई अतुल  तुम्हे याद है जब हम छोटे थे तब तुम हमेशा राखी पर रूठ जाया करते थे|  तुम्हारे रूठ जाने के  अपने कारण होते थे.. जहाँ  हमें राखी का इन्तजार रहता था  वहां तुम्हे राखी पर हमेशा भन्नाहट रहती थी तुम्हे याद है न?         हमेशा हम बहिने राखी पर तुम्हारे पीछे पीछे राखी लिए घूमती रहती थीं और तुम आगे आगे टेड़े टेड़े चलते जाते थे , तुम्हारा कहना होता था कि हम बहिने राखी तुमसे पैसे लेने के लिए बांधती हैं 🙂  और तुम्हे नाराजगी इस बात से भी थी कि इन्हें पैसे भी दो  और इनके पैर भी छुओ हा हाहा हा. भाई क्या दिन थे वो भी| मुझे याद है तब मैं तुम्हे खूब मनाती थी राखी बंधवाने को सुबह से शाम हो जाती थी  |  तुम तरह तरह से ब्लैकमेल करते थे पता है कैसे कैसे?  तुम कहते थे   मुझे झूला झुलाओ  पहले तब बंधवाऊँगा राखी |  और तब मैं तुम्हे खूब देर देर तक झूला झुलाती थी | कभी कहते मेरे लिए पानी लेकर आओ | और फिर  भी उसके बाद भी तुम इसी मिज़ाज में जीते थे………. नहीं बंधवाउंगा तब तुमको पापा से जब शिकायत करने की धमकी दी जाती थी तब  कहीं राखी  बंधवाते थे तुम  🙂  वो भी दिन थे कभी भाई..अब जब पापा नहीं हैं तो उनके जाने के बाद वर्षों बाद मैं तुम्हे राखी बाँधूँगी……. सब होंगे… पर हमारे पापा होंगे अब कभी…….. किसी भी त्यौहार पर :'(     पता है भाई… कल जब तुम्हे फोन किया मैंने और पापा को याद कर खूब रोई तुम भले ही मुझसे मीलों दूर थे… पर तुम्हारे इस कथन ने  ” जीजी तुम चुप हो जाओ……… मैं हूँ न अब पापा नहीं हैं तो क्या मैं बड़ा   हूँ न अब… सब ठीक होगा धीरे धीरे… तुम परेशां मत हो”  | मुझे जो हिम्मत दी है न , वह हर उपहार से बड़ी है |   तुम सभी भाई सदा खुश रहो | तुम्हारी उम्र लम्बी हो यही दुआ करतीहूँ |  निशा कुलश्रेष्ठ  अटूट बंधन

एक पाती भाई/बहन के नाम ( कल्पना मिश्रा बाजपेयी )

प्रिय भाई !! सदैव खुश रहो !! कुशल से रहते हुए तुम्हारी कुशलता के लिए निरंतर प्रार्थनारत रहती हूँ ,ईश्वर तुम्हें लंबी आयु प्रदान करे तुम हमेशा की तरह मुस्कराते रहो। लंबे अंतराल के बाद आज अटूट-बंधन ने मुझे चिट्ठी लिखने के लिए फिर से मजबूर कर दिया पुराने दिन याद आ गए,जब डाकिये का इंतजार घर के सदस्य के जितना होता था उसकी साइकल अपने फाटक कि तरफ मुड़ी नहीं कि भाग कर माँ को सबसे पहले संदेश मैं ही देती थी और माँ भी अपना सारा काम छोड़ फाटक तक दौड़ी चली आती थी ।तेरी चिट्ठी कि खुशी में मुझे एक बिलकुल फ्री वाली हग्गी मिल जाती थी ।   ये रिश्ते कैसे होते है भाई ?जब पास होते है तो उनकी अहमियत पता नहीं चलती दूर होते ही, अपनी चंगुल से छूटने नहीं देते। जमाने हो गए तुम्हारे पत्र को पढे हुए ,तुम्हें याद है ना भाई जब तुम हॉस्टल से पत्र लिखते थे तो पूरे एक हफ्ते तक तुम्हारा पत्र कभी माँ द्वारा कभी मेरे द्वारा पढ़ा जाता था । एक एक शब्द में तुम बोलते से दिखाई पड़ते थे, भला हो इन मोबाइल के चलन को मिठास ही खत्म कर दी रिश्तों की खैर ………………..  अच्छा चलो, बताओ हम सब का राज दुलारा अपने राज दुलारों के साथ कैसा है ?देख भाई सावन आ गया,संग ले आया है वही पुराने सावन की मीठी याद जब मैंने माँ की कढ़ाई वाली रेशमी धागों की कई नलकियों को गुच्छे में तब्दील कर दिया था ,राखी बनाने के चक्कर में तब माँ ने गुस्से होने के बजाय एक गीत गुनगुनाया…. तार न टूटे भाई बहन के प्यार का ……………. हम दोनों को गले लगा कर माँ ने एक साथ हमारे माथे सूंघे थे । देख पढ़ते-पढ़ते रोना नहीं तेरी गीली आँखें बरदास्त नहीं होती है मुझसे, अच्छा बता ना मेरी राखी तुझे मिली या नहीं अगर राखी पहुँचने में देर हो जाए तो तू वही पुरानी राखी फिर से बांध लेना, वैसे भी उस राखी जितना खारापन अब कहाँ ……… J मैं यहाँ कान्हा जी के हाथ में राखी बांध दूँगी तेरे नाम की क्योंकि तू भी कृष्ण से कम नहीं है मेरे लिए …. …….मेरे प्यारे भाई !!! और हाँ मिठाई तू अपनी पसंद की खा लेना वो भी अपने पैसे से  हा हा हा चल अब तो हंस दे बहुत हो लिया भावुक हंसो हंसो हाँ ये हुई न बात शेरों वाली खुश रह J पत्र के अंत में पुनः भाभी बच्चों और तुमको ढेरों शुभाशीष चिरंजीव रहो तुम सब इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम दे रही हूँ । तुम्हारी दीदी              atoot bandhan

एक पाती भाई /बहन के नाम ( संगीता सिंह भावना )

मेरे भाई,,  आज मैं तुमसे शादी के करीब इक्कीस साल बाद कुछ कहना चाहती हूँ | कहने का मन तो कई बार हुआ पर लगा यह उचित अवसर नहीं है | भाई,,मैं जब-जब मायके आई तुमने मुझे बहुत मान  दिया | वैसे तो मैं तुमसे पाँच साल बड़ी हूँ पर तुमने हमेशा बड़े भाई का फर्ज निभाया ,,मेरी हर परेशानियों पर तुम्हें खुद से ज्यादा परेशान होते देखा और मेरी खुशी के हर क्षण मे तुम साथ रहे | मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है ,जब मैं एक बार विदा होकर अपने पिया के घर को आ रही थी ,तुम मलेरिया-टाइफाइड दोनों से बुरी तरह से त्रस्त थे,तुम्हारा बुखार उतरता ही नहीं था और मेरे जाने का समय हो गया ,जब मैं तुमसे मिलने गई तो तुम चादर ओढ़कर सो रहे थे मैंने जैसे ही चादर उठाया तुम रो पड़े ,,मैं भी फफक पड़ी और सोचने लगी कि बेटियाँ इतनी मजबूर क्यों होती हैं …….??? मैं चाहकर भी तुम्हारे पास नहीं रूक पाई क्योंकि मेरी सास बीमार थी और मेरा वहाँ होना ज्यादा जरूरी था |  भाई ,तुम्हें शायद याद होगा जब ” माँ” बीमार थी ,तुमने मुझे फोन से बताया कि माँ बहुत बीमार है और मैं वाराणसी लेकर आ रहा हूँ | माँ जो कि मौत के बहुत करीब पहुँच गई थी ,ऐसा डाक्टरों का कहना था ,पर तुम तन-मन -धन से लगे रहे ,हम दोनों की ड्यूटी हॉस्पिटल में लगी थी पर तुम दोनों ड्यूटी निभाते और मुझे जबरन घर भेज देते | मैं घर आ तो जाती लेकिन मेरा मन मुझे अंदर ही अंदर परेशान करता क्योंकि तुम छोटे जो थे | मैं कभी-कभी सोचती कि भगवान न करे अगर माँ को कुछ हो गया तो तुम अकेले उस अंतहीन पीड़ा को कैसे संभालोगे पर मैं कर भी क्या सकती थी तुम तो मुझे वहाँ रुकने ही नहीं देते थे   और अंत में तुम्हारे हौसले की जीत हुई ,जिसका नतीजा है कि आज माँ हमारे साथ है | कहने को तो कई ऐसे मंजर आए जब तुमने बड़े भाई जैसा फर्ज अदा किया पर मैं शायद वह सब कहकर या याद दिलाकर तुम्हारे मन को दुखी नहीं करना चाहती क्योंकि मैं जानती हूँ जब तुम यह पत्र पढ़ रहे होगे तुम्हारे आँखों में आँसुओं की नमी तैर रही होगी | जल्द ही रक्षा-बंधन आने वाला है ,मेरे भाई तुम सदा सलामत रहो और हाँ जो बात कहनी थी वो ये है कि तुम हर जन्म में मेरे भैया बनकर आना |                                                                   तुम्हारी बहना                                                                      संगीता  अटूट बंधन