दुकानदारी

ए भैया कितने का दिया ? 100 रुपये का | 100 का , ये तो बहुत ज्यादा है लूट मचा रखी है | 50 का लगाओ तो लें | अरे बहनजी ८० की तो खरीद है , क्या २० रुपये भी ना कमायें , सुबह से धूप में खड़े हैं | ठीक है 70 का देना हो तो दो , वर्ना हम चले | ठीक है , ठीक है , सिर्फ आपके लिए | मोल -मोलाई की ये बातें हम अक्सर करते और सुनते हैं | ये सब दुकानदारी का एक हिस्सा है , जो थोड़ा सा झूठ बोल कर चलाई जाती है | पर क्या सब ये कर पाते हैं ? लघुकथा-दुकानदारी ‌ये उन दिनो की बात है जब नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद हमने नया-नया कोल्ड डिंक का काम शुरू किया!चूकि सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे।दुकानदारी के दाव-पेच मे हम कोरे पन्ने थे।पहले सीजन मे जोश-जोश मे खूब माल भर लिया था!अनुभव व चालाकी के अभाव मे ज्यादा सेल नही कर पाये,नतीजन माल बचा रहा,! आफ सीजन नजदीक आता देख व बचे माल को देख हमे अपनी अक्ल पर पत्थर पढते दिखाई दिये।हमने आव देखा ना ताव,अपने सारे माल को लेकर उसी होलसेलर के पास जा पहुंचे पर ये क्या,वो तो माल लेने से बिल्कुल मुकुर गया! मेरे यहाँ से ये माल गया ही नही?ये माल तो एक्सपायर हो गया है!इसकी डेट भी निकल चुकी है!कस्टमर तो लेगा ही नही। हम भी आपे से बाहर हो गये,कभी दुकानदारी की नही थी ,सिर मुडाते ही ओले पढे,वाली हालत हो गयी थी हमारी।उसे कुछ भी कहना,कागज काले करने वाली बात थी। एक्सपायरी माल हम तो बेच नही सकते थे। क्योंकि हमारा जमीर ही हमारा साथ नही दे रहा था।हारकर हमने उसे ही कोई हल बताने को कहा!उसने हंसकर कहा-एक बात हो सकती है….अगर तुम अपना सारा माल मुझे आधे दाम पर दे दो तो मै इसपर लिखी तारीख को तेजाब से साफ करके नये रेट से ही शराबखाने मे डाल मुनाफा कमा लूगा।क्योकि वहां आने वाले नशेडिय़ों, शराबियो ने कौन सी छपी तारीख पढनी है।हमे उसकी सलाह माननी पड़ी पर ये खरीद-बेच का गणित हमे समझ नही आया,और फिर हमे ये दुकानदारी बंद करनी पडी।। सोचने लगे थे मुनाफे के चक्कर मे,अपनी दुकानदारी चमकाने के चक्कर मे इंसान कितना नीचे तक गिर सकता है,ये वाक्या हमे मुंह चिढा रहा था।। ऋतु गुलाटी यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “दुकानदारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, shop, shopkeeper, shopping

पालने में पूत के पैर

यूँ तो ये एक कहावत ही है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं , अर्थात नन्हा नाजुक सा बच्चा बड़ा हो कर कैसे स्वाभाव वाला बनेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | हम सब अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे बच्चों से जरूर रूबरू हुए होंगे जिनकी सफलता के बारे में हमें उनके छुटपन से ही अंदाजा हो गया था | एक ऐसा ही अंदाजा लघुकथा के रूप में पिरोया है रीतू गुलाटी जी ने … लघुकथा –पालने में पूत के पैर  आज अचानक फेसबुक पर अपने प्यारे छात्र अनु की तस्वीर देख मेरा मन खुशी से उछल पडा।आज कितने सालो के लम्बे अंतराल बाद जो दिखा था।जल्दी से मैने उसका प्रोफाईल चेक किया,जिसे देख आश्चर्य से मेरा मुंह खुल्ला का खुल्ला रह गया। वो दिल्ली मे सरकारी जॉब पा गया था वो भी Sectional Officer at Ministry of Housing and Urban Affair department मे। M.Sc. करके Ph.D. भी कर गया था,Indian Agriculture Research Institute से।वाह वाह,मै तो खिल गयी थी!कंहाँ से कंहा पहुंच गया मेरा वो छात्र,,,,।मै कुछ सोचने लगी,और अतीत के पन्ने बदलने लगी,!मुझे याद आया जब अनु ने मेरे ग्रामीण परिवेश मे बने एक छोटे से स्कूल मे प्रवेश लिया था,! पतला सा,लम्बा सा,सांवले रंग का वो बच्चा विलक्षण सा लगा।उसकी आँखों की चमक कुछ कहती थी।सीधा-सादा सरल बच्चा नर्सरी से आठवी क्लास तक मेरे संपर्क मे रहा!और आठवीं क्लास के हरियाणा बोर्ड मे 99%नम्बर लेकर वो मेरे स्कूल से लेकर अपने गांव मे चर्चित हो गया था। उसके माता-पिता भी बडे शरीफ व सीधे -सादे थे।पिता खेती करता व दूध भी बेचता।समय समय पर अनु भी पिता की साथ फसल कटवाता।कच्चे मिट्टी के घर मे वो रहते।और हर छह माह बाद फसल कटने के उपरान्त ही उसका पिता फीस भरता।उसका एक छोटा भाई जो रंगत मे अनु से उलट था फिर भी शैतानी करता पर अनु चुपचाप व गंभीर दिखता,,व पढाई मे जुटा रहता। एक दिन मै आठवीं क्लास का पढा रही थी,तभी मैनै पढाई से इतर कुछ बाते करनी शुरू कर दी,तभी अनु मुझे बोला–मैम पहले मेरा वो चैप्टर जल्दी से कम्पलीट करा दीजिये।मै मुस्कुरा दी।उसकी पढाई की लगन ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर दिया था ,कि पूत के पैर पालने मे दिख जाते है।। रीतू गुलाटी ‘ऋतू ‘ यह भी पढ़ें … सीख डोंट डिस्टर्ब मी लेखिका एक दिन की इंटरव्यू आपको  लघु कथा  ” पालने में पूत के पैर “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, short story

पड़ोसी

घर वालों से दूर , परिवार वालों से दूर जब हम किसी अजनबी शहर में अपना घोंसला बनाते हैं तो हमारी सुख में दुःख में जो व्यक्ति सबसे पहले काम आते हैं वो होते हैं पड़ोसी ….एक अजनबी शहर में एक नया परिवार बनने लगता  है , पड़ोस में शर्मा जी , अजहर चाचा , रोजी ताई आदि आदि … ये वो लोग होते हैं जो रक्त से हमारे ना होते हुए भी हमारे हो जाते हैं …पर क्या यूँ ही मात्र कहीं रहने से सारा पड़ोस हमारा हो जाता है या एक रिश्ता बनाना और सींचना भी पड़ता है …. कहानी -पड़ोस  ज्योहि फोन की घंटी बजी,मैने लपक कर फोन उठा लिया,शायद इसी Call का इन्तजार था।सामने से समधिन जी का फोन था!जैसे ही उन्होने बताया,बेटी हुई है,हमारे घर लक्ष्मी आयी है,पोती के रूप मे! सुनकर मन मयूर प्रसन्नता से झूम उठा। रात से ही बिटिया ऐडमिट थी डिलीवरी वास्ते। बडी चिन्ता हो रही थी उसकी,किसी काम मे मन नही लग रहा था।बार-बार ईश्वर के आगे हाथ-जोड विनती कर रही थी,जच्चा-बच्चा सुरक्षित हो बस।ऐसे कठिन समय मे कुछ भी हो सकता था,क्योकि समय पूरा हो चुका था,डाक्टर की दी डयू डेट निकल रही थी।बच्चे की जान को खतरा हो सकता था इसी डर के चलते सासु मां ने समय पर ऐडमिट करवा दिया था। डाक्टर ने समय कि नाजुकता को देखते हुऐ आपरेशन से डिलीवरी करा दी थी।अब बेटी की कुशलता जानकर मन शान्त हो गया था। कैसी होगी,मेरी बिटिया की बिटिया,कुछ सोच मन अतीत के पन्नै खोलने लगा था,मेरी ये बिटिया भी बडे मेजर आपरेशन से ही हुई थी।पर,मेरी बेटी पैदा होने से पूर्वमेरा पहला बच्चा नार्मल घर पर हुआ था।मेरा पूरा प्रयास था कि मेरा दूसरा बेबी भी नार्मल डिलीवरी से हो,पर ऐसा हो ना सका। ये तीस साल पहले की बात है,मै अपने पति संग बेटे सहित कम्पनी के दिये मकान मे यानि कैम्पस मे रहती थी,पर डिलीवरी से पहले जांच हेतु मशहूर डाक्टर उषा गुप्ता के पास नियमित रूप से जाती थी।सब कुछ नार्मल था।मै निशिन्त थी।  एक बार डाक्टर ने मुझसे पूछा उषा :-यहां कौन रहता तुम्हारे संग? मै:-जी,यहां तो मै अपने पति व बेटे संग रहती हूं।  उषा:-मेरा मतलब,डिलीवरी के समय ,तुम्हारे ससुराल वाले,या कोई और रिश्तेदार…..  मै :-जी,यहां तो कोई नही रहता,सब बहुत दूर-दूर है। उषा:-फिर तुम मेरे नर्सिंग होम के जनरल वार्ड मे तो नही रह पाओगी,!  मै :-जी उषा :-तुम्हे अलग से कमरा लेना पडेगा,क्योकि तुम्हारे पति जनरल वार्ड मे नही जा सकते ,वहां पुरूष ऐलाऊड नही है।तुम अकेली कैसे रहोगी। मै :-पर उसका तो खर्चा बहुत होगा वो मै नही दे पाऊगी।  उषा :-कोई बात नही,कुछ तो करना पडेगा.,तुम्हे मै एक अलग छोटा कमरा दे दूगी,वो मंहगा नही पढेगा। पढ़िए -मेरी दुल्हन  समय पंख लगाकर उडता रहा,और मै लेबर पेन ले रही थी।पर ये क्या……दर्द लेते -लेते मेरा प्लस्न्टा भी कट-कट कर यूरिन मे आने लगा। मेरी ऐसी हालत देख डाक्टर उषा भी घबरा गयी!उन्होने तुरन्त अपने सर्जन पति मिस्टर गुप्ता को आवाज दी और स्टाफ को ओ०टी (आपरेशन थियेटर) तैयार करने का निर्देश दिया। रात के तीन बज रहे थे।तुरन्त ऐनीथिसया के डाक्टर को फोन किया!मुझे डाक्टर ने दो टूक शब्दो मे बता दिया, “तुम्हारा मेजर आपरेशन करना पढेगा,”।पर तभी मैनै दलील दी कि मेरा पहला बच्चा तो नार्मल हुआ है!तभी डाक्टर बोली-ऐसा है मै कोई रिस्क नही ले सकती,बलीडिगं हो रही है मां अथवा बच्चे मे किसका खून बह रहा है कह नही सकती,हो सकता है मै मां अथवा बच्चे मे से किसी एक को बचा पाऊ! मेरे पति को देहली के औखला से ब्लड लाने को रवाना कर दिया।उस समय खून केवल देहली मे ही मिलता था।खून लेने जाने से पहले मेरे पति ने डाक्टर से कहा-डाक्टर आप कोशिश कीजिये और दोनो को बचाईये,मां भी बच्चा भी !डाक्टर ने फार्म पर हस्ताक्षर करवा लिये थे।हमारे पास एक बेटा तो था,पर उसके संग खेलने वाली एक बेटी चाहते थे। पढ़िए -हकदारी आनन-फानन मे डाक्टर ने आपरेशन करके मुझे व मेरी बच्ची दोनो को बडी होशियारी से बचा लिया था।मै व बच्ची दोनो अब खतरे से बाहर थे और हमे आई०सीयू मे शिफ्ट कर दिया था।रात तक मेरे पति खून की बोतले लेकर लौट आये थे,एक ओर मेरी बाजु मे ग्लूकोज लगाया गया तो दूसरी बाजु मे खून चढाना शुरू कर दिया। आधी रात के बाद मुझे होश आया,तभी मैने पास बैठी नर्स से पूछा,सिस्टर मुझे क्या हुआ है, बेटा या बेटी, ???नर्स ने मेरी ओर बडे प्यार से देखा,और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुऐ पूछा,आप की क्या इच्छा थी?मैनै कहा ,बेटी होगी,तो मेरा परिवार पूरा हो जायेगा। ठीक  ,बेटी ही हुई है आपको।खुश हो जाये आप।इस तरह आपरेशन हो जाने के बाद मैने एक सप्ताह अस्पताल मे गुजारा। जिस कैम्पस मे रहती थी वहां रहने वालो सभी के संग मेरा बडा प्यार था।एक दूसरे के संग दुख-सुख बांटना मुझे खूब भाता।हर त्यौहार को हम मिलकर मनाते चाहे वो हरियाली तीज हो या दिपावली।लेन-देन भी खूब होता खाने का।मै अस्पताल मे हूं सुनकर सभी कालोनी की औरते मेरे पास पहुंचने लगी,बडी भीड सी जुट गयी मेरे कमरे मे!जब भीड हुई तो शोर भी होना ही था,लाजिमी।जब डाक्टर राऊड पर आयी तो मुझसे मुखातिब होकर बोली-“तुम तो कह रही थी,मेरा यहां कोई रिश्तेदार नही रहता,……. पर सबसे ज्यादा भीड तो तुम्हारे कमरे मे हो रही है……??मैनै डाक्टर को बताया-ये सब मेरे पडोसी है,जरुर,पर ये मेरे लिये किसी परिवार से कम नही।।  मै जितने दिन अस्पताल मे रही,किसी ना किसी के घर से मेरे पति का व मेरा खाना पहुंचता रहा। कोई मेरा बंधा दूध उबालकर पहुंचा रहा।कोई मेरे खाने के बर्तन धो देता।एक सप्ताह कैसे गुजर गया पता भी नही चला था। एक परिवार से भी बढकर था मेरा पडो़स,जिन्होंने दुख की घड़ी मे मेरा पूरा साथ दिया, और आज मेरी उसी बेटी की बेटी हुई थी,अगर उस दिन डाक्टर उषा मेरी बच्ची को नही बचा पाती तो ……क्या ?मै आज ये दिन देख पाती,? अपनी बेटी की बेटी यानि अपनी नातिन को देखने की चाह मे मै बडे उत्साह से उठ खडी हुई ,और वहां जाने से पूर्व की खरीददारी करने के लिये तैयार होने लगी।मन मे एक उत्साह व उमंग बडी हिलोरे ले रहा … Read more

मेरी दुल्हन

लाली -लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया … नयी नयी दुल्हन का क्रेज ही कुछ ज्यादा होता है | सोचने की बात ये हैं कि जब घर परिवार को इतना होता है तो दुल्हे मियाँ को कितना होता होगा, पर ये लम्बी -लंबी उबाऊ परम्पराएं ..आखिर धीरज रहे भी तो कैसे ? कहानी –मेरी दुल्हन  आज मेरी शादी का दिन था!सारा घर मेहमानों से भरा पडा था!मेरी शादी मे सबसे पहले मां भगवती का जागरण हुआ,बाद मे अन्य रस्मे।मेरी शादी मे आये मेरे चचेरे भाई भी ठिठोली से बाज नही आये,और मुझे छेड रहे थे!चचेरी बहने अलग से चुहलबाजी करती रही। खूब धमाल-चौकडी लगी थी।सभी प्रकार के रीति-रिवाजो को करके मेरी शादी ठीक  से सम्पन्न हो चुकी थी। रिवाज के हिसाब से तारो की छांव मे मै अपनी दुल्हन की डोली लेकर अपने घर लौट आया था। दिसम्बर माह की बर्फानी राते थी।ठंड अपने पूरे शबाब पर थी। मेरी मां ने मेरी दुल्हन को आराम करने के लिये एक कमरे मे सुला दिया,थकी हुई वो जल्द ही नींद की आगोश मे समा गयी।विदाई संग आया भाई भी बहन के कमरे मे ही था। अपनी दुल्हन से बात करने को अधीर था मै,और वो शर्म से निगाहे नीची किये थी।तीखे नैन-नक्श,सुराही दार लम्बी गर्दन,व गोरा मुखडा,जिस पर शर्मीली झुकी हुई आंखे,माथे पर खेलती कटी जुल्फे!सौन्दर्य की साक्षात मूरत मेरे सामने थी पर मै बात नही कर सकता था क्योकि संयुक्त परिवार की कुछ मर्यादा थी। पढ़िए -स्वाद का ज्ञान  बाहर अंधेरा था,सभी रिश्तेदार दो घंटे के लिये आराम करने लगे।और मेरी दुल्हन भी सो गयी थी। सूरज निकल आने पर दुल्हन का भाई तो चला गया वापिस अपने घर।तभी मेरी बडी भाभी ने मेरी दुल्हन को तैयार कर दिया था!और नाश्ते हेतु डाईनिंग रुम मे बैठा दिया था! मेरी मां ने बडे प्यार से नाश्ता परोसा। दही संग आलू के परोठे देख मै खुश हो गया था!पर ये क्या,दुल्हन ने जरा सा खाते ही छोड दिया!मुझसे रहा नही गया!पूछ ही बैठा:- क्या हुआ?खाना अच्छा नही क्या? दुल्हन :-नही,नही, भूख नही है!शर्माते हुए कहा।  फिर मैने जोर देकर कहा:-कुछ तो खाओ!  इस पर दुल्हन ने साफ कह दिया:-इन पराठों मे तो मिर्चें बहुत तेज है,मै नही खा सकती। और जल्द ही व उठ गयी वहां से। घर मे और रिश्तेदार भी घूम रहे थे,और मै मायूसी से चुप रह गया।। इसी बीच नाश्ते के बाद हमे पग फेरे की रस्म के लिये ससुराल जाना था। वहां जाकर दुल्हन अपने भाई बहनो मे रम गयी,मुझे उससे बात करने का मौका भी नही मिल पा रहा था, रात को हम लोग वहां से वापिस लौट आये।  हां इतना जरुर था कि वहां से लौटते समय मै उसके संग ही बैठा था तो मै ठंड से बचने के लिये एकाएक अपने दोनो हाथ रगडने लगा,तो उसने धीरे से पूछा:-“आप ये क्या कर रहे हो”? मैनै हंस कर कहा:-“हीट ले रहा हूं”। और फिर वो चुपचाप हो गयी। तभी मै रात होने का इन्तजार करने लगा और कल्पना करने लगा,कि जब रात होगी,तो वो तारो को अपने आंचल मे समेटे मेरी राह देखेगी और मेरे भीतर उफनते मादक प्रेम को अपने कोमल हाथो के स्पर्श से पुलकित कर देगी!उसके यौवन के भार से लदे अप्रतिम सौन्दर्य का रसपान करने के लिये मै व्याकुल हो उठा। इतनी सुन्दर,कोमलांगी,दुल्हन को पाकर मै खुशी से फूला नही समा रहा था!अपने सपनो मे,अपनी कल्पना मे, जिसकी मूरत बना रखी थी,वो तो उससे भी ज्यादा सुन्दर थी,प्यारी थी,!उसक़ो देखते-देखते मैने अपने प्रेम की उस मीठी अनुभूतियो को बडी शिद्दत से महसूसा।ज्योहि मैने उसे अपनी बाहो मे भरना चाहा,तभी बडी भाभी ने इशारे से अपने पास बुला लिया और मुझे घूमने भेज दिया। सबके सो जाने के बाद,मुझे मेरे कमरे मे जाने की इजाजत मिली। पढ़िए –सही इलाज़  रात काफी हो चुकी थी,इधर मेरी दुल्हन मेरा इन्तजार करते-करते कब सो गयी,उसे खुद भी पता नही चला। एक बार तो मेरी दुल्हन को सोता देख मुझे उस पर प्यार भी आया और गुस्सा भी, पर…..मै कुछ सोचने लगा। मेरे सामने अतुलनीय रूप की मल्लिका आंखें मीचे सो रही थी,उसका अंग-अंग प्रेम की अठखेलियां खेलने को तैयार था,मुझे पल पल कामुकता से सरोबार कर रहा था,और मै मौन था। जब काफी समय गुजर गया,मेरे सब्र का प्याला छलकने लगा,तो मुझसे रहा नही गया!मैने उस सोती हुई अपनी दुल्हन को अपने बाहुपाश मे ले लिया। तभी वो अलसायी सी कुछ बोली:-मुझे सोने दो,बडी नींद आ रही है,!तभी मैने उसके गालो पर चुम्बनो की बोछार कर दी,हंसते हुऐ कहा-आज की रात तुम्हारे मेरे मिलन की रात है,आज की रात जीवन मे एकबार ही आती है,जागो और मुझे प्रेम कर लेने दो,मै तुम्हारे प्रेम का पुजारी हूं,मुझे जी भर कर रसपान कर लेने दो।खैर,मेरी शर्मीली दुल्हन जाग गयी और वो मेरी बाहो मे समा गयी।उसका सामीप्य पाकर मै खिल उठा और सारी रात एक दूसरे से बाते करते गुजर गयी !एक दूसरे का गीतो का आदान प्रदान करते हुऐ मिलन की रात कब उजाले मे बदल गयी,पता ही नही चला।एक नयी भोर का आगाज हो चुका था,जो संग लायी थी,ढेरो खुशियां.-समर्पण व सहयोग की भावना व जीवन भर साथ देने की कसमे।।। —————————– रीतू गुलाटी  टाइम है मम्मी उसकी मौत                                                               हामिद का तोहफा चिट्ठी आपको कहानी “मेरी दुल्हन  ” कैसी लगी | अपने विचारों से हमें अवगत कराएं | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फेसबुक पेज लाइक करें , हमारा फ्री ईमेल लैटर सबस्क्राइब करें ताकि अटूट बंधन की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके ईमेल पर भेजी जा सके | filed under- Bride, Indian bride, Groom, wife, newly wed 

मीठा अहसास

यूँ तो हमारे हर रिश्ते भावनाओं से जुड़े होते हैं परन्तु संतान के साथ रिश्ते के मीठे अहसास की तुलना किसी और रिश्ते से नहीं की जा सकती | इसी अहसास के कारण तो माता -पिता वो कर जाते हैं अपनी संतान के लिए जिसका अहसास उन्हें खुद नहीं होता | ऐसी ही एक लघु कथा …. लघुकथा -मीठा अहसास लोहडी व संक्रान्त जैसे त्यौहार भी विदा ले चुके थे। लेकिन अब कि बार ग्लोबलाइजेशन के चलते ठंड कम होने का नाम नही ले रही थी।ठंड के बारे बूढे लोगो का तो बुरा हाल था,जिसे देखो वही बीमार।हाड-कांप ठंड ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया था।देर रात जागने वाले लोग भी अलाव छोड बिस्तरो मे घुसे रहते शाम होते ही। बर्फिली हवा से सब दुखी थे।कही बैठा ना जाता।सब सुनसान हो रहा था।रात छोड दिन मे भी कोहरा दोपहर तक ना खुलता।सूर्य देव आंख -मिचौली मे लगे रहते,कभी दिखते कभी गायब हो जाते। स्कूलो मे भी 15-15दिनो की छुट्टियाँ कर दी गयी थी!पर छोटे बच्चे कहां टिकते है? पर इस ठंड मे वो भी बिस्तर मे दुबक गये थे। बिस्तर पर पडे-पडे मै भी कब यादो के जंगल मे घूमने निकल गयी थी!पुरानी यादे,चलचित्र की रील की तरह मेरे सामने घूम रही थी।मुझे याद आया जब आज से 30 साल पहले मेरे पति की नाइट डयूटी थी। ये उस दिन की बात है जब मेरे पति रात की पारी मे दो बजे घर से चाय पीकर डयूटी पर जा चुके थे!मुझे आठवां महीना लगा हुआ था,और मेरा चार साल का बेटा बिस्तर पर सोया मीठी नींद ले रहा था।पतिदेव जब जाने लगे थे,तो मै उन्हे “बाय” कहने जब गेट पर आयी तो इतने कोहरे को देख मै भी ठंड से कांपने लगी। पतिदेव के जाने के बाद मे कुछ सोचने लगी,अभी दीवाली आने मे समय था,!हर दीवाली पर मै अपने बेटे को नयी डैस जरूर दिलवाती,इस बार सोचा,नयी स्कूल डैस दिलवाऊगी,मेरे बेटे को निकर पहन कर स्कूल जाने की आदत थी,अभी छोटा सा लगता था कद मे।फिर इसी साल स्कूल जाना शुरु किया था।मैनै स्कूल पैन्ट का कपडा लाकर रखा हुआ था,सोच रही थी,किसी दिन टेलर को देकर आऊगी,पर अपनी ऐसी हालत मे जा ही नही पायी,झेप के मारे! आज के कोहरे को देख,कुछ सोचने लगी।इतनी ठंड मे मेरा बेटा स्कूल कैसे जायेगा?कुछ सोचने के बाद मैने खुद उसकी पैन्ट सिलने का फैसला किया!रात के तीन बजे से छह बजे तक मैने पैन्ट सिलकर तैयार कर दी।सात बजे मेरा बेटा जागा,और मैनै उसे गरम पानी से नहला कर नयी पैन्ट पहना दी,वो बडा खुश हो गया,!उसके चेहरे की खुशी देकर मै भी भावविभोर हो गयी और अपनी सारी थकावट भूल गयी,भूल गयी ऐसी हालत मे मुझे मशीन चलानी चाहिये थी या नही। उसकी स्कूल वैन आने वाली थी,मैने उसे लंचबाक्स व बैग देकर विदा किया! पर,ये क्या?वो थोडी देर मे ही वापिस आ गया!मैने पूछा,बेटा,वापिस क्यो आ गये हो? बडी मासूमियत व भोलेपन से बोला,”मम्मी जी”बाहर तो कुछ दिख ही नही रहा!मै समझ गयी असल मे दूर तक फैले कोहरे के कारण उसे घर से दूर खडी स्कूल वैन दिखाई ही नही दे रही थी। तभी उसे मैने प्यार से समझाईश दी,-“बेटा” आप बेफिक्र होकर आगे-आगे चलते चलो,आपको आपकी स्कूल वैन दिख जायेगी।मेरे प्यार से समझाने के बाद वो चला गया था अपने स्कूल।।आज फिर इतने सालो बाद इस कोहरे ने उन दिनो की याद ताजा कर दी थी।एक मीठी याद के रूप मे मेरे मन मस्तिष्क मे गहरी छाप छोड गयी थी। और एक प्रश्न भी,कि अपनी औलाद के स्नेह मे बंधे हम कुछ भी,काम किसी भी समय करने बैठ जाते है ये मीठा अहसास ही तो है जो हमसे करवाता है। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … हकीकत बस एक बार एक टीस प्रश्न पत्र आपको  लघु कथा  “  मीठा अहसास “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – Mother, MOTHER and son, sweet memories

गलती

आलीशान कोठी मे रहने वाले दम्पति की बडी खुशहाल फैमली थी।घर की साजो सामान से उनके रहन सहन का पता चलता था।घर के मालिक की उमर चालीस पैन्तालिस के आसपास थी।गठीले बदन घनी-घनी मूंछे उसके चेहरे का रौब बढा देती।रंग ज्यादा गोरा ना था पर फिर भी जंचता खूब था।अपना जमा जमाया बिजनेस था।घर मे विलासिता का सब सामान था।पत्नी भी सुन्दर मिली थी।होगी कोई चालीस बरस की।बडे नाजो मे रखी थी अपनी जीवन संगनी को।कुछ चंचल सी भी थी।पतिदेव को जो फरमाईश कर देती पूरी करवा कर दम लेती।कुल मिलाकर बडी परफैक्ट जोडी थी,यूं कहो मेड फार इच अदर थी। शादी के दस साल बीत जाने के बाद भी जब कोई औलाद नही हुई तब उन दोनो ने एक बिटिया को गोद ले लिया था। बडा प्यार करते दोनो बिटिया को।मधुरिमा नाम रखा उसका।दिन रात वो दोनो बिटिया के आगे पीछे रहते।उसके लिये अलग कमरा,अलग अलमारी यानि जरूरतो का सारा सामान सजा रहता।दिन पर दिन वो बिटिया सुन्दर होती जा रही थी।गोरा सुन्दर रंग उस पर काले लम्बे बाल।सुन्दर सुन्दर पोशाको मे वो बिल्कुल परी जैसी दिखती। मेरे पडोस मे ही उनकी कोठी थी। इस मिलनसार फैमली से मेरी खूब बनती।अक्सर छोटेपन मे मधुरिमा हमारे घर भी आती जाती। समय पंख लगाकर उड रहा था।मधुरिमा अब दसवी क्लास मे पहुंच गयी थी।बडी मासूम व भोली मधुरिमा मुझे भी बहुत भाती।अच्छे स्कूल की कठिन पढाई से निजात पाने हेतु उसने दो-दो टयूशने भी लगा ली थी।सब बढिया चल रहा था।आये दिन उनके घर कोई ना कोई फंक्शन होता,पूरा परिवार चहकता दिखता। हर साल मधुरिमा का जन्मदिन बडे होटल मे मनाया जाता। उस दिन मुझे अचानक किसी काम से उनके घर जाना हुआ,तकरीबन ग्यारह बज रहे थे सुबह के।आतिथ्य सत्कार के बाद मै बैठी हुई थी कि मधुरिमा को उसकी मम्मी ने आवाज लगाई…… मंमी–बेटी उठ जा,ग्यारह बज चुके है!नाश्ता कर लो आकर। मधुरिमा—(चुपचाप सोती रही) मंमी–बेटी उठ जा,कितनी देर से जगा रही हूं!!! मधुरिमा–आंखे खोल कर,,,,मंमी की ओर मुंहकर गुस्से से चिल्लाई–मुझे नही करना नाशता वाशता। मुझे सोने दो,आज मेरी छुट्टी है,मुझे केवल टयूशन जाना है। मंमी झेप सी गयी व चुप हो गयी,और मेरे पास आकर बातचीत करने लगी।थोडी देर मे वो काटने के लिये सब्जियाँ भी उठा लायी और काटने लगी।तभी मैने उठना चाहा पर उन्होने जबरदस्ती से फिर मुझे अपने पास बिठा लिया।हम दोनो बातो मे लग गये। ‌देखते ही देखते दो घंटे बीत गये । मधुरिमा की मम्मी ने किचन मे आकर दोपहर का लंच भी तैयार कर दिया था क्योकि उनके पति का डिफिन लेने नोकर आने वाला था।अब एक बजे फिर से मधुरिमा की मम्मी ने बिटिया को उठाने का उपक्रम किया,मगर फिर वही ढाक के तीन पात।हार कर मैनै भी कह ही दिया कि ये इतना सोयेगी,तो कल क्या करेगी?जब स्कूल जाना होगा। उसकी मम्मी बतलाने लगी,छुट्टी के दिन तो ये हमारी बिल्कुल नही सुनती,कहती है मै तो आज ज्यादा सोऊगी।देखना,अभी टयूशन का टाईम होगा तो अपने आप उठेगी।एक बार तो मैने भी मधुरिमा के कमरे का जायजा लिया,देखती क्या हुं,मधुरिमा आंख खोल कर अपने मोबाईल पर टाईम देख ले रही है और फिर सो जाती। ‌अपने पति का टिफिन नौकर को देकर अब मधुरिमा की मम्मी ने मधुरिमा को उठाने का फैसला किया!लगता था अब उन्हे गुस्सा आ रहा था।हार कर अब मधुरिमा उठी और राकेट की तरह बाथरूम मे घुस गयी।तुरन्त नहाकर टयूशन जाने के लिये तैयार होने लगी।जब वो तैयार हो रही थी तभी उसे घर के बाहर किसी चाट पकोडी बेचने वाले की आवाज सुनाई दी,वो मुस्कुरा दी। ‌मम्मी ने बार-बार लंच करने को कहा,तो हंसकर मधुरिमा ने कहा-मुझे तो चाट-पकोडी खानी है।मम्मी ने समझाईश देनी चाही। मम्मी -बेटी मैने तेरी पसन्द का लंच बनाया,सुबह का नाश्ता भी तेरी पसन्द का बनाया,और तूने चखा भी नही।अब चाट-पकोडी की फरमाईश कर रही है। बिटिया-मम्मी मुझे कुछ नही पता,मैनै जो मांगा है वही मंगाकर दो।सुना आपने। हार कर मम्मी ने नोकर को भेजकर चाट-पकोडी मंगवाई जिसे लेकर वो मेरे सामने दूसरे कमरे मे बैठकर खाकर खुश होकर बुक्स हाथ मे लेकर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर टयूशन के लिये निकल गयी। मैं सोचने लगी,मधुरिमा जैसी लडकियां जो अपनी मां का कहना नही मानती,ससुराल मे जाकर किस तरह सेटल होगी,कुसूर किसका है?क्या मां बाप के ज्यादा लाड प्यार का?अथवा मां ने ज्यादा ही सिर पर बैठा लिया? जो मां अपनी बेटी की जमीन शादी से पहले तैयार नही करती,क्या वो शादी के बाद ससुराल मे समायोजन कर पायेगी।मायके मे सब इतना नाज नखरा सहन करेगे क्या ससुराल मे भी ऐसा हो पायेगा?युवा होती इस बिटिया ने मेरे सामने किचन मे झांका तक नही,कया वो हकीकत की दुनिया मे अपने ससुराल जाकर किचन मे पारंगत हो पायेगी।माता-पिता अपने जीवन की सारी पूंजी लगाकर भी क्या अपनी बेटी की खुशियां खरीद पायेगे,हकीकत मे वो एक सुखद गृहस्थी की तारनहार हो पायेगी,?ऐसे अनसुलझे सवालो को लेकर मै अपने घर लौट आयी थी। रीतू गुलाटी ‌ यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये वो व्हाट्स एप मेसेज  लेखिका एक दिन की किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ गलती ‘कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, mistake

वास्तु दोष

किसी घर में शांति क्यों नहीं रहती … क्या इसका कारण महज वास्तु दोष होता है या उन लोगों के स्वाभाव में कुछ ऐसा होता है जो एक अच्छे -भले घर को अशांत कर देता है | पढ़िए वास्तु दोष के आधुनिक चलन पर प्रहार करती रीतू गुलाटी जी की सशक्त कहानी …. वास्तु दोष ये कहानी है उस दम्पति की,जो रिश्ते मे मेरे भाई -भाभी लगते है दूर के।शहर की जानी-हस्ती,करोडो की कोठी के रहनुमा,सब सुख सुविधाओ के होते हुऐ भी दम्पति एकाकी जीवन जीने को विवश। कारण दोनो मे छतीस का आकडा।दोनो की राय बिल्कुल नही मिलती आपस मे।दोनो ही ज्यादा पढे-लिखे भी नही।पतिदेव तो दिन रात अपने बिजनेस को आगे बढाने की फिक्र मे थे।बचपन से ही अपने बिजनेस को आगे बढाने के गुर वो अपने पिता से ले चुका था।पर पत्नी की उम्मीदो पर वो खरा नही उतरा था।जिस परिवार से वो आयी थी वो सब नौकरी वाले थे।वो भी यही चाहती थी मै शाम को पति संग घूमने निकलू,खूब सारी शापिंग करू!पर पति के पास फुर्सत कहां थी।अपने पिता के संग दुकान पर बैढना उसकी भी मजबूरी थी।पर पत्नी कहां समझती ये सब।हार कर वो पत्नी को नोटो की गडडी देकर कहता तुम अपनी पसन्द से जो चाहो खरीद लाओ।बच्चे जब छोटे थे तो वो उनके संग खरीददारी कर लेती पर अब तो वो अकेली थी। इस तरह दोनो पति पत्नी के बीच तनातनी चलती रही।समय गुजरता गया।तभी किसी मित्र ने उन्हे अपने घर को वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ को दिखाने की सलाह दी।और घर को वास्तु दोष से बचाने हेतु रेनोवेशन कराने की सोची।घर के वास्तु-दोष को दूर करने के लिये तोडा फोडी शुरु हो गयी। बैडरूम की जगह डांईग रूम व किचन की जगह बाथरूम सब बदल दिया गया।पूरी कोठी को बनने मे पूरा एक साल लग गया।अब कोठी सजकर तैयार थी। अब घर देखने की उत्सुकता मेरी भी बढ चली थी।किसी काम से मुझे उसी शहर जाना हुआ तो मैने भाभी को मैसेज कर दिया फोन पर।मै निशिन्त होकर अपने पति संग वहां पहुंची तो भाभी डांइग रूम मे सोफे पर लेटी पडी थी।मुझे देख भाभी हैरान सी हो गयी।मेरे पति मुझे अकेला छोड किसी काम से निकल गये।तभी भाभी मुझसे बोली–दीदी आप आ रहे थे तो मैसेज तो कर देते।मै आप लोगो के लिये लंच बनाकर रख देती।मैनै तो आज कुछ बनाया ही नही,तुम्हारे भाई ने तो बाहर ही खा लिया होगा।मैने भी फल वगेरा लेकर दवा खाकर लेट गयी थी। सामने टी वी चल रहा था,बडी उन्नीदी आंखो से वो बोली,और फिर सोने का उपक्रम करने लगी।खिसयाते हुऐ मैने भाभी को अपने फोन मे भेजे मैसेज को दिखाया।तो भाभी ने अपनी सफाई दी,शायद नेट की समस्या के कारण मुझे मैसेज मिला नही।वैसे आज सुबह से मेरा फोन भी काम नही कर रहा।नौकरानी भी घर की साफ-“सफाई कर जा चुकी थी।पर,भाभी उठी नही फिर सो गयी।मै चुपचाप सारे घर की निरीक्षण करने लगी,सोचा,खुद ही चाय बना लूं!कुछ सोच कर किचन मे पहुंची,पर ये क्या?सब कुछ छिपा हुआ।कुछ भी सामने नजर नही आया।शानदार फिटिग मे सब कुछ मेनैज।हार कर मै वापिस आ गयी।शाम को जब भाभी उठी तब उन्होने ही चाय वगैरा बनायी तब मैने देखा सब समझ गयी,नाम बडे,दर्शन छोटे।। भाई दुकान से रात को वापिस आया।बडा खुश हुआ बहन को घर देखकर।उदास व खामोश घर मे आज तो कुछ रौनक लगी भाई को। यूं तो पहले घर मे दो बेटियां व एक बेटा था।घर मे पूरा शोर रहता,अकसर वो आपस मे लडते झगडते थे पर अब घर शान्त था।क्योकि बेटियां दोनो ब्याहकर अपने ससुराल मे चली गयी थी।बेटा पापा का बिजनेस नही पसन्द करता था,उसे नौकरी करना पसन्द था।दोनो बाप बेटा के विचार नही मिले इसीलिये बेटा अपनी पत्नी को लेकर कही और ही रहने चला गया था। घर मे दो-दो डबलबैड बिछे थे पर भाभी वही सोफे पर व भाई भी पास रखे दिवान पर ही सो गया था। मै सोच रही कि अब तो वास्तु शास्त्र के हिसाब से बने इस घर मे अब ऐसी क्या कमी थी कि ये इस तरह अलग-अलग रह रहे थे?दोनो ही बीमार चल रहे थे,जहां भाभी के हार्ट ब्लोकेज था भाई को किडनी की समस्या थी।सही मायने मे कोठी कम,भूतिया महल ज्यादा लगा मुझे,घर मे सारे साजो सामान होते हुऐ भीदिल बिल्कुल खाली थे,कोई सम्वेदनाएं तो बची ही नही थी!ना ही कोई आतिथ्य सत्कार बचा था।रिशतो मे भरी उकताहट ने जीवन का माधुर्य सोख लिया था।दोनो का आपस मे कटा-कटा रहना साबित कर रहा था कि वास्तुदोष तो था ही नही!दोष तो उनके स्वयं की सोच का था।एक बरस तक कोठी को तोड फोड कर जो पैसा बरबाद किया था वो अलग। वो दोनो पहले तो ऐसे ना थे,आखिर जिंदगी के इतने साल उन्होने एक साथ गुजारे थे।पर अब बीमारी के कारण चिडचिडे भी हो गये थे।दोनो को इस प्रकार देख मेरे जेहन मे उलट-पुलट होने लगी,मेरे लिये वहाँ एक रात भी गुजारना मुशकिल हो गया था। मुझे याद आया जब भाभी ब्याह कर आयी थी तो बहुत सुन्दर लगती थी,कद थोडा छोटा जरूर था,पर फिर भी जचती थी।उनके चेहरे पर हर दम मुस्कुराहट खिली रहती।भाभी नाचती बहुत बढिया थी।ननदो के बच्चो से भी खूब प्यार रखती।पर अब हालत ये थी कि उन्हे देख कर कोफ्त होती।हरदम चिडचिडी सी रहती।बच्चो के बिना सूना घर उसे काटने को दौडता पर फिर भी ऊपर-ऊपर से कहती —-नही–नही मै अकेली खुश हूं ,मेरा मन लग जाता है ऐसा मेरे पूछने पर उन्होने कहा,।पर मै सब समझ रही थी बुढापे मे बच्चे कितना महत्व रखते है मां बाप के सूने जीवन मे।पर भाभी तो ये कुबूल ही नही करना चाहती थी। उस दिन भाभी के रवैये से तंग आकर भाई ने मुझसे अकेले मे पूछा:- भाई:-दीदी , भाभी ने आपसे बात की?या चुप ही रही? बहन:-मैनै भाई का मन रखने के लिये झूठ ही कह दिया,हां,हां,भाभी ने मुझ से बहुत सारी बाते की!भाई:-पर दीदी,मुझसे तो ये आठ-आठ दिन बात नही करती,जब कोई मतलब हो तभी मुंह खोलती है! बहन:-भाई ये तो गलत बात है भाई:-समझ मे नही आता,इसे हो क्या गया है। बहन:-भाई,हिम्मत रख,सब ठीक हो जायेगा। भाई-बहन दोनो मिलकर एक दूसरे को तसल्ली दिला रहे थे।पर भीतर से भयभीत भी थे। जब भाभी मां बाऊजी … Read more

सही इलाज

विवाह के बाद अक्सर कुछ समस्याएं आती हैं , जिन्हें परिवार के लोग अपने अनुभव से सुलझाते हैं | ऐसी ही एक कहानी पढ़िए जहाँ बहु -बेटे की टूटती गृहस्थी को कैसे सही इलाज से बचाया गया  कहानी – सही इलाज  महानगर की भीड-भाड़ से दूर वो नवयुवक एक छोटे से कस्बे मे रहता था।पढ लिख कर अपने पैरो पर खडा था,यानि नौकरी करता था।एकाएक समय ने करवट ली।मंहगाई को देख वो आगे बढने के चक्कर मे एन.सी.आर मे नौकरी करने की लालसा करने लगा।क्योकि कस्बे मे रहकर पैकिज बढाना सम्भव नही था। एक सुखद भविष्य की कल्पना मे वो दूर निकल गया घर से।एक मल्टीनेशनल कम्पनी मे ज्याब पाकर वो निहाल हो गया।पर ये क्या——पैकेज तो बढा,पर किराये के फ्लैट ने सारा मजा किरकिरा कर दिया था। माता-पिता को भी साथ नही रख सकता था क्योकि अभी नौकरी से भी पूरी तरह संतुष्ट नही हुआ था।माता-पिता अपनी थोडी जी जरूरतो मे ही खुश थे। इधर आजादी की बयार नवयुवक को ऐसी लगी थी कि बंधन अब कबूल ना था।पहले-पहल दोस्तो के संग वक्त गुजरता मजे मे। पर अब उमर हो रही थी,सभी दोस्तो की शादियो मे जा जाकर उस नवयुवक के मन मे भी विवाह करने की हसरत किलकारियां मार रही थी।कस्बे मे रह रहे माता-पिता से मिलने एकाध बार चक्कर लगा लेता पर अब मन करता था अपनी भी गृहस्थी जमे।। इस बार जब वो घर आया तो अपनी मां से कहने लगा- बेटा-मां अब मेरा ब्याह कर दो।क्या बुढापे मे मेरा विवाह करोगे? मां-बेटा,हम तो खुद यही चाहते है कि कोई बहू बेटी बनकर हमारे घर आंगन मे घूमे। बेटा-देखो ना मां,मेरे सभी दोस्तो की शादियां हो गयी,मै अकेला ही रह गया हूं! मां-बेटा,बता तेरी नजर मे कोई है क्या? बेटा-नही मां,आप ही देखो। मां-बेटा,इस कस्बे की तो तुम्हे पसन्द आयेगी नही,फिर तुम्हारी पसन्द——– बेटा-फिर क्या? ऐसा है मां,आप मेरा एन सी आर मे ही मंदिर मे विवाह हेतु नाम लिखवा दो। वही की लडकी ढीक रहेगी। मां-ढीक है बेटा।हम तो किसी को जानते नही,तुम्ही जाकर ये काम करो। बेटा-ढीक है मां,मै ही ये काम कंरुगा।। संयोगवश वहां भी एक परिवार ऐसा आया,जिसे इस नवयुवक का बायोडाटा जंच गया!इकलौता लडका था वो भी घर से दूर,,,,,। उनकी बेटी शादी की उमर क़ो भी पार कर चुकी थी बतीस बरस की हो गयी थी।कोई रिश्ता उन्हें जमा नही था।क्योकि तीन-तीन बेटियां थी,देने के लिये दहेज भी नही था।ऐसे वर की तलाश थी जो बिना दहेज ही उनकी बेटी ब्याह ले।घर बैठै-बैठे उनकी बेटी एम बी ए कर गयी थी,पर कोई भी नौकरी हेतु आवेदन करती,घबरा जाती व नौकरी छोड घर लौट आती।आत्मविश्वास की कमी थी उसमे।माता-पिता भी कब तक घर बैठाकर रखते,उन्हें भी अपनी जिम्मेदारी उतारनी थी।इस नवयुवक का बायोडाटा उन्हे जम रहा था।इसीलिये उन्होने तुरन्त लडके को फोन कर दिया। लडका संस्कारी था उसने आदर से अपनी मां का फोन नं देते हुऐ वार्तालाप करने को कहा।पर लडकी के पिता को इतनी जल्दी थी कि वो लडके को देखने उसके आफिस ही पहुंच गये। लम्बा उंचा कद,गोरा रंग,स्मार्ट लडके को देखते ही लडकी वालो की बाछे खिल गयी,!अब वो सोच रहे थे कोन सा पल हो ये रिश्ता हो जाये। आननफानन मे उन्होने शहद मे घुली बाते की,लडके की मां से।और उन्हे अपने घर अपनी बेटी दिखाने को न्योता दिया। शरीफ व सीधे सादे लोग उनकी शहद भरी मीठी बातो मे आ गये,बिना किसी रिश्तेदारों की सलाह लिये वो दोनो ही रेलगाड़ी से जैसे ही स्टेशन पहुंचे,लडकी का पिता गाडी लेकर उनके सामने था।आदरपूर्वक अपने घर ना ले जाकर किसी दर्शनीय स्थल पर ले आया था।लडके की मां ने घर देखने की मंशा जतायी,लेकिन वो बडी चालाकी से टाल गये थे।वही लडके को बुलाकर लडकी दिखा दी गयी।कस्बे के भोलेभाले लोग भावविभोर हो गये,उनकी खातिरदारी देख कर।सब कुछ जल्दीबाजी मे तय हो गया।दो ही दिन बाद लडकी वाले पूरे परिवार संग लडके वालो के घर थे।तुरन्त रौका कर दिया गया।लडके वाले चाहकर भी अपने रिश्तेदारों को इतनी जल्दी बुला नही पाये।एक माह बाद ही शादी का दिन तय कर दिया ।लडके वालो ने कहा-अभी थोडा समय दो!पर लडकी वालो ने दलील दी,हमे अपनी दूसरी लडकी की भी शादी करनी है!उसके रिश्ते भी आ रहे है,जबकि बाद मे तीन साल बाद दूसरी बेटी की शादी की थी।लडके वाले अपने बेटे की शादी बडी धूमधाम से अपने कस्बे मे ही करना चाह रहे थे पर लडकी वालो ने मना कर दिया,और अपनी जिद करके एन सी आर मे ही शादी हेतु आने को कह दिया,।सारे रिश्तेदार सीधे वही आ जायेगे,रेलगाडियों की आवागमन अच्छी है,तुरन्त शादी निपटाकर लौट जायेगे,आपको कोई परेशानी नही होगी,आप बस अपनी गाडी करके दुल्हन ले जाओ हम वहां सारा इन्तजाम बढिया कर देगे।अब किसी को भी ना कहने की गुजाईश ही नही थी। जून माह की आग बरसाती गरमी मे विवाह सम्पन्न हुआ।भूख से ज्यादा प्यास सबको सता रही थी। इधर वहां पहुचने पर खराब इन्तजाम देख लडके के माता पिता का माथा ठनका।खुद लडका भी परेशान हो गया,नहाना छोड पीने का पानी भी नही था।सारे बारातियों को परेशान देख कर सीधे-सादे माता पिता का सिर शर्म से पानी-पानी हो गया।वो कोस रहे थे उस दिन को कि वो क्यों लडकी वालो की बातो मे आ गये!इससे बेहतर वो लडकी वालो को अपने कस्बे मे बुलाकर विवाह सम्पन्न कराते। विवाह के फेरे होते ही सब रिश्तेदार खिसकने शुरु हो गये।लडकी वाले अपनी बेटी की डोली घर से देगे,ये ऐलान कर अपने घर खिसक लिये।केम्न्टीसैन्टर पर हम दुल्हन संग कुछ लोग ही रह गये।उन्हे हमारे नाश्ते कि भी फिक्र नही थी।बाजार से हमने पानी की बोतले मंगवाई।इधर गाडी का डाइवर व फोटो वाला दोनो परेशान हो गये,वो लडके वालो पर दबाब बनाने लगे कि उन्हे दूसरी बुकिग पर जाना है।हार कर हम ही बिदा कर दुल्हन लेकर अपने घर लौट आऐ। धीरे-धीरे लडकी वालो की असलियत सामने आ गयी थी।उन्हे सिर्फ लडके मे रुचि थी,उसके माया पिता मे नही। क्योकि उन्होने अपनी बेटी को कोई संस्कार नही दिये थे।रसोई मे भी वो घुसने से डरती।खाना बनाना नही आता था।लाड प्यार मे बिगाड दिया था बेटी को।इसीलिये बेटी एन सी आर मे हमारी आंखो के सामने रहे यही सोच ऐसा लडका चुना था। ससुराल आकर बेटी का … Read more

रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ

कविता मन के भाव हैं , कब ये भाव शब्द के रूप में आकर ले कर पन्ने पर उतर जाते हैं कवि भी नहीं जानता | आइये आज ऐसे ही रीतू जी के कविता के रूप में ढलते कुछ भावों में डूब जाए … रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ जीवन का लेखा-जोखा जीवन के इस सांध्यकाल मे आ, साथी पैगाम लिखूं…….. बीती,कैसे,ये सदियां ये सारे हिसाब लिखूं……… आ,साथी पैगाम लिखूं…… अरमानो के जंगल मे घूमू प्रीत के वो फिर गीत लिखू प्रथम प्रेम के प्रेम नेह को फिर से साथी याद कंरू आ,साथी पैगाम लिखू….. क्या खोया,क्या पाया इसका फिर हिसाब लिखू….. जीवन के इस सांध्यकाल मे, आ,साथी पैगाम लिखू…. कुछ तुम उलझे,कुछ हम सुलझे, कुछ हंसते-गाते वक्त गुजार चले, कुछ गम झेले,कुछ सुख भोगे ये प्रेम भरी,किशती मे नैया,अपनी पार चले। एक दूजे का ऐतबार लिखूं ,।। आ साथी ,पैगाम लिखूं गरीबी ये गरीबी नही तो क्या है….. चंद सिक्को की खातिर लहू बेच रहा अपना कोई ये गरीबी नही तो क्या है…… चंद सिक्कों की खातिर अस्मत बेच रहा कोई चंद सिक्कों की खातिर घर से मिलो दूर जूझ रहा कोई ये गरीबी नही तो क्या है…. प्रतिभा होते हुऐ भी बच्चो को उंच शिक्षा दिला नही पा रहा ये गरीबी नही तो क्या है बेटी जिनकी बिन ब्याही रहे पढने लिखने से महरूम रहे ये गरीबी नही तो कया है चंद सिक्कों की खातिर…. सपनो के महल धाराशाही हुऐ कल्पना के पंछी घायल हुए ये गरीबी नही तो क्या है….. सर पे टपकती हुई छत को ढीक ना करा पाये ये गरीबी नही तो कया है…. किसान का जीवन चिलचिलाती धूप मे खेत खोदता बेचारा किसान….. वक्त से पहले फसल बोने को तैयार बेचारा किसान….. पानी की बाट मे नभ को निहारता बेचारा किसान….. रात के सन्नाटे मे खेत को सम्भालता बेचारा किसान…. भूखे पेट रहकर भी दूसरो का पेट भरता बेचारा किसान…… बैमौसम बरसात की मार सहता बेचारा किसान….. कभी कटी फसल पानी मे डूबती निहारता बेचारा किसान…. संजोये सपने रेत मे मिलते देखता बेचारा किसान…… सुंदर कपडो मे सजा हो,शिशु अपना,देखने को तरसता बेचारा किसान…… नंगे बदन,नंगे पांव भागते खेत मे, शिशु को निहारता बेचारा किसान… टपकते हुऐ,घर मिटटी के देख आंसू भर लेता आंखो मे बेचारा किसान….. आडतिये की मनमर्जी को सहता बेचारा किसान…… बैंक से लोन की आस करता बेचारा किसान….कब होगी खुशहाली,उसकी इस आस मे जीता किसान।। मन की वीणा मेरे प्राण प्रिय,मन की वीणा बजा दो सुप्त हुऐ,तार कही,तुम फिर से आज जगा दो।। मेरे प्राण….. मै नही पिछली झंकार भूली,मै नही पहले दिन का प्यार भूली।। गोद मे ले,मोद से मुझे निहारो, सुप्त हुऐ तारो को,प्रिय फिर से जगा दो। हाथ धरो हाथो मे,मै नया वरदान पाऊ, फूंक दो नव प्राण मै प्राण पाऊ स्वर्ग का सा हिडोला झूलू, जब तुम प्रेम से बाहो मे लैकर मुसकुराओ। सुप्त हुऐ तारो को प्रिय फिर से तुम जगा दो। सुख का प्रभात होगा, जग उषा मुसकान,प्रेम से स्नात होगा, उषा हंसेगी,किरणे मुसुकुरायेगी, प्रेम की मधुर तान से,सुप्त प्राणो मे जान आयेगी।। मेरे प्राणप्रिय मन की वीणा बजा दो इन सुप्त हुऐ तारो को तुम फिर आज जगा दो।।। उम्मीद ही मेरी कल्पना के ख्वाब हो तुम……।। कही दिल के चमकते हुए ताज हो तुम…….।। कही ममता की कमजोरी हो तुम……..।। कही आशीवाद की आस हो तुम….. कही बिखरी हुई ताकत हो तुम…… कही बुझते हुऐ चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले वजूद का अहसास हो तुम…… कैसे बिसराऊ तुम्हे… मेरी आत्मा की जान हो तुम…..। कैसे नकार दूं तुम्हारी आकांक्षा मेरी इच्छाओ के सूत्रधार हो तुम…… मेरे जीवन के पहले-पहले प्यार की सौगात हो तुम….. उम्मीदो पर खरे उतरो इन उम्मीदो की नाव के पतवार हो तुम।।. रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “रीतू  गुलाटी की पांच कवितायेँ  “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita, 

पेशंन का हक

सरकार की पेंशन योजना बुजुर्गों के स्वाभिमान की रक्षा करती है | लेकिन क्या केवल योजना बना देने से बुजुर्गों की समस्याएं दूर हो सकती हैं | क्या ये जरूरी नहीं कि सरकार ये भी सुनिश्चित करे कि अपनी पेंशन निकलने में में उन्हें कोई दिक्कत न हो | पेशंन का हक उस दिन पेशन दफ्तर मे एक बूढी मां को गोद मे उठाए पुत्र को देख मैं चौकं गयी। घोटालो को रोकने हेतू सरकारी आदेशो की पालना के कारण सभी वृद्ध वृद्धा सुबह से ही जमा थे अपने जीवित होने का प्रमाण  देने।एक वृद्धा तो ठंड सहन ना कर पाने के कारण हमेशा के लिये ठंडी हो गयी थी। अब फिर सरकार ने बैकं से पेशन देने का राग अलापा।अब पेशन बैंक से आयेगी इस बात से असहाय वृद्ध ज्यादा दुखी थे जिनके हाथ मे नगद पैसे आते थे। उस दिन बैंक मे एक बूढी स्त्री ने आते ही पूछा.,.मेरी पेशन आ गई?हां””पर 500 रूपये खाते मे छोडने होगे।खाता जो खुला है। उस पर वो दुखी होकर बोली “”””पर अब मुझे 1000 रूपये जरूर दे दो।क्योकि सावन मे मेरी विवाहिता पुत्री मायके आने वाली है।मैं200 रूपये कटवा दूगी हर महीने।तभी मेरी आंखो के सामने शहर के अमीर आडतिये की शक्ल घूम गयी,जो इतना धनी होते हुऐ भी पैशन हेतू चक्कर काट रहा था। असहाय लोगो की मदद रूप मे इस सरकारी पेंशन का वास्तविक हकदार कोन है? काश लोग पेशंन की परिभाषा समझ पाते।। लघुकथा रीतू गुलाटी ऋतु परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “पेशंन का हक “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,pension