रिया स्पीक्स : दादी चली पुरूस्कार लौटाने
रिया के घर में सन्नाटा पसरा हुआ है | रिया के माता पिता की आँखों में आँसू हैं | उन्हें समझ नहीं आ रहा है ,आखिर माजी ने ऐसा फैसला किया तो क्यों किया ? कितना फक्र था उन्हें अपने पर | बाल काले से सफ़ेद हो गए , आँखें धस गयी , दो की जगह तीन पैर हो गए | इतना सब कुछ बदल गया पर नहीं बदला तो सिर्फ उनके मुंह से हर आने -जाने वाले के सामने गर्व से कहा जाने वाला ये वाक्य ” तुम आज कल के बच्चे हमें क्या पढाओगे हमको ऐसा वैसा नहीं समझो ,हमें भी उतरी -पूरा साहित्य पुरोधा सम्मान मिल चुका है | पर अब वो उसे ही वापस करने पर तुली हैं | आखिर क्यों ? रिया से अपने माता -पिता का दुःख और अपने मन में उठते प्रश्न सहे नहीं गए तो उसने दादी से डायरेक्ट पूंछने का मन बना लिया | रिया दादी के कमरे में घुसते हुए : दादी मेरी प्यारी दादी आप पुरुस्कार क्यों लौटा रही है | मम्मी -पापा कितने दुखी हैं | दादी : पेपर दिखाते हुए , हे ! शिव , शिव ,शिव , देखा नहीं सब लौटा रहे है |हम सब का साथ देंगे | यही चलन है | रिया : हां दादी पर वो तो …….. दादी : हां पता है पता है , पर लौटाने की इस भीड़ में कौन देखेगा की किसने कौन सा पुरूस्कार लौटाया | मीडिया तो चिल्लाएगा | खबर आएगी , इसने पुरूस्कार लौटाया , उसने पुरुस्कार लौटाया , दादी ने भी पुरूस्कार लौटाया | अब चीखा – चिल्ली के बीच में कौन दिखिए की किसने कौन सा पुरूस्कार लौटाया | फिर हम तो साहित्य का ही लौटा रहे हैं | बरसो पहले से यही चलन है | अश्वथामा मारा गया ………. किन्तु हाथी | और किन्तु पर बज गया शंख …. अब मीडिया का शंख | रिया : तो दादी आप यह सब चर्चा में आने के लिए कर रही हैं | दादी : तो ? पुरूस्कार पाया भी तो चर्चा में आबे की खातिर ही था | बुडबक समझत नाही है | उस समय जितना प्रचार नहीं हुआ | उससे ज्यादा प्रचार अब होगा | जरा लौटाने की घोषणा भर कर दो | देखो , कैसें मीडिया भाव देता है | जिंदगी बीत गयी कभी अखबार के पन्ने पर नहीं आये | सब को ऐसें ही बतावत है की पुरूस्कार मिला , पुरूस्कार मिला | कौन जानता है | पर अब जब अखबार के पहले पन्ने पर छपेगा तो पता तो चलेगा की कोई पुरूस्कार मिला है | और फिर कहेंगे सोचेंगे विचरेंगे लौटावे की नाही | रिया : दादी पर आप को तो जमीन का एक टुकड़ा भी मिला था जिसको बेच कर पापा ने यह फ्लैट लिया है | ऐसा न करिए प्लीज | हम फूटपाथ पर आ जायेंगे | दादी : किसी ने लौटाई है …. नहीं न | काहे को डरत हो बिटिया | कुछ नहीं होगा | बस नाम होगा | लोग हमें भी जान जायेंगे की हम साहित्यकार हैं | इत्ता नाम तो पुरूस्कार लेते वक्त नाही हुआ जितना अब हो रहा है | रिया : अच्छा ! मेरी बुद्धिमान दादी आप बहती गंगा में हाथ धोना चाहती है | दादी : अब समझी | लौटना का लौटना नहीं और नाम का नाम | और दोनों हंस पड़ते हैं |