प्रथम गुरु

अक्सर ऐसा कहा जाता है कि बालक की प्रथम गुरु उसकी माता होती है परंतु मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। माता भी एक इंसान है और उसके अपने सुख-दुख हैं । कुछ चीजों से वह विचलित हो सकती है , कभी वह उद्वेलित भी हो सकती है । लेकिन उसको गुरु रूप में हम स्थापित करते हैं तो उससे अपेक्षा करते हैं कि वह इन भावनाओं पर काबू रखें और कभी भी कठोर प्रतिक्रिया ना दें । वह हमेशा सद्गुणों से भरपूर रहे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें ।घर में माहौल अच्छा रखे ताकि बच्चों में अच्छे संस्कार पड़ें। मगर यह सारी चीजें हम स्त्री से ही क्यों अपेक्षित रखते रखते हैं जबकि बच्चों की परवरिश में घर के दूसरे लोगों का भी पूरा प्रभाव पड़ता है।  प्रथम गुरु                                     अगर किसी का पति शराबी है या गुस्से वाला है, घर में माहौल अच्छा नहीं रखता है तो उसका प्रभाव क्या बच्चों पर नहीं पड़ेगा?एक स्त्री प्रभावों से, नहीं बल्कि कुप्रभाव कहना चाहिए,घर के माहौल के प्रभाव से अपने बच्चे को कैसे अछूता रख सकती है? ये जो हम मां को गुरु के रूप में ,शिक्षक के रूप में ,प्रथम शिक्षक के रूप में स्थापित करते हैं वह मेरी नजर में स्त्री पर अत्याचार है ! यह अमानवीय व्यवहार है ! जो उसकी भावनाएं है उन्हें वह क्यों सबके सामने व्यक्त नहीं कर सकती?  अगर कोई बच्चा अच्छा संस्कारी है तो उसमें परिवार का नाम बताइऐंगे कि अरे वाह !कितने अच्छे परिवार का बच्चा है! देखो उसके संस्कार कितने अच्छे हैं! और इसके विपरित अगर कोई बच्चे में कोई बुरी आदतें हैं ,कुछ गलत संस्कार है तो मां का नाम लेते हैं कि इसकी मां ने कुछ नहीं सिखाया ! अरे सिखाने की सारी जिम्मेदारी अकेले मां की है क्या?  परिवार के बाकी सदस्य भी ज़िम्मेदार होते हैं।और सबसे महत्वपूर्ण है पिता! पिता की भूमिका को बच्चे पालने के लिए क्यों नजरअंदाज किया जाता है जबकि घर के वातावरण के लिए पिता बराबर से जिम्मेदार होता है !अगर पिता शराबी है या गुस्से वाला है, घर में वातावरण अच्छा नहीं रहता है !बच्चों में भय का वातावरण रहता है !तो आप एक मां से अपेक्षा करते हैं कि वह उस वातावरण से बच्चों को दूर रखे! पर सोचिए क्या वो इंसान नहीं है ? वो भी पति के भय से भयभीत है। तो ऐसे में आप उससे सहज रहने के अमानवीय व्यवहार की अपेक्षा रखते हैं! कि वह सारे दुख दर्द चुपचाप सहते हुए बच्चों के सामने हंसती मुस्कुराती रहे और एक अच्छा माहौल बच्चों को दे! मैं इस चीज को अत्याचार जैसा महसूस करती हूं ! ये ठीक है कि वह अधिकतर अपनी माता के पास में रहता है इसलिए सबसे ज्यादा कोशिश मां को करनी चाहिए। पर आप सोचिए कि जो मां के जीवन में सब कुछ ठीक है तो उसके लिए सब कुछ आसान है। लेकिन यदि उसके जीवन में केवल कष्ट और पीड़ाएं ही हैं तो कैसे उससे अपेक्षा करते हैं कि सहजता से रहे!  यह सारी चीजें उसके ऊपर दबाव डालती हैं कि वह बच्चे के सामने सामने आए तो सदा हंसते मुस्कुराते हुए आए ! और एक आदर्श स्त्री की भूमिका में आए! क्यों भाई ?आप उसे इंसान नहीं समझते हैं ? पति चाहे जो करे, सास ससुर कितना अपमान करें ,दुख दर्द सहते सारे दिन रात वो काम में खटती रहे !लेकिन जहां बात आती है कि बच्चों के सामने वह आए तो उसे एक आदर्श मां के रूप में सामने आना चाहिए !बहुत ही गलत बात है !इतना दबाव क्यों डालना चाहिए? अगर यह दबाव नहीं हो कि मां प्रथम गुरु है ,बच्चा जो कुछ सीखता है वह मां सीखता है! तो घर के अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी भी तय होगी और वह भी अपने आप को बच्चे के पालन पालन पोषण के लिए जिम्मेदार मानेंगे! और घर में माहौल सही रखने के लिए अपने व्यवहार और आचार विचार पर नियंत्रण रखने को बाध्य होंगे।सबकी सहभागिता सुनिश्चित हो तो निश्चित रुप से घर में माहौल अच्छा रखने के लिए सब प्रयास करेंगे और मां अनावश्यक दबाव से मुक्त होकर अन्य सदस्यों की तरह ही सहजता से अपना जीवन जी सकेगी। सहजता से अपना जीवन बिताने के लिए स्त्री स्वतंत्र क्यों नहीं है? अगर उसे कष्ट है, दुख है, भयभीत है वो तो इसे बच्चों से क्यों छुपाए? इसलिए कि उनके कोमल मन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा! बच्चों की प्रथम शिक्षक होने के दबाव में ही वो बच्चों के सामने हंसती मुस्कुराती है! छुप छुप कर रोती है। जबकि सच तो ये है कि बच्चे घर में सभी से कुछ न कुछ सीखते हैं जिनके भी संपर्क में वह दिन भर आते हैं उन सब से वह कुछ न कुछ सीखते हैं। बच्चे स्पंज की तरह होते हैं अपने आसपास के वातावरण से,माहौल से हर पल कुछ न कुछ सीखते रहते हैं। आपको पता भी नहीं चलता जब तक कि उस स्पंज को निचोड़ा ना जाए ! यानि कि जब बच्चे के मन से ज़बान से बात बाहर आएंगी तभी आपको पता चलेगा कि उसने क्या सीखा है !तो वह सारा दिन केवल मां के पास ही तो नहीं रहता है !अगर संयुक्त परिवार है या बड़ा परिवार है तो हर इंसान से, हर उस इंसान से सीखता है जिसके पास वो पल भर भी रह जाता है !मां के ऊपर यह दबाव है कि वह पहली गुरु है , उससे उसे को बाहर निकालना हमारी जिम्मेदारी है ! उसके ऊपर जो एक आदर्श होने का चोला हमने उसको जबरदस्ती पहनाया हुआ है वह बहुत ही अमानवीय व्यवहार है! वो मां होने के साथ साथ एक इंसान भी है ! उसे दुख है तो दुखी होने दीजिए! भयभीत है तो कहने दीजिए !उसे इन चीजों को छुपाने के लिए मजबूर मत करिए! शिक्षक होने का दबाव है उसकी वजह से वह अपने बच्चों से बहुत कुछ छुपाती है !जबकि उन्हीं बच्चों को सब कुछ पता होना चाहिए! एक मात्र जिम्मेदारी स्त्री को सौंपकर पूरा परिवार जिम्मेदारी से मुक्त कैसे हो सकता है?  दरअसल … Read more

क्या सभी टीचर्स को चाइल्ड साइकॉलजी की समझ है ?

Teachers should have basic understanding of child psychology  वंदना बाजपेयी   शिक्षक दिवस -यानी  अपने टीचर के आभार व्यक्त करने का , उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का | छोटे बड़े हर स्कूल कॉलेज में “टीचर्स डे “ पर कार्यक्रम का आयोजन होता है  | जिसमें बच्चे  कविता ,कहानी  नृत्य के माध्यम से टीचर्स के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं  | लम्बी – लम्बी स्पीच चलती है  | टीचर्स को फूल कार्ड्स , गिफ्ट्स मिलते हैं  | आभासी  जगत यानी इन्टरनेट की दुनिया में भी हर वेबसाइट पर , फेसबुक की हर वाल पर  टीचर्स की शान में भाषण , सुविचार व् टू  लाइनर्स पढने को मिलते हैं | यह जरूरी भी है | क्योंकि टीचर्स हमें गढ़ते हैं | उन्होंने हमें ज्ञान का मार्ग दिखाया होता है | इसलिए हमारा कर्तव्य है की हम उनके प्रति आदर व् सम्मान का भाव रखे | क्या सभी टीचर्स को चाइल्ड साइकॉलजी  की समझ है ?  सामूहिक सम्मान तो ठीक है | पर जैसे  की बच्चों का अलग – अलग मूल्याङ्कन होता है | उसी तरह हर टीचर का मूल्यांकन करें तो क्या हर  टीचर इस सम्मान का अधिकारी है ? क्या टीचर हो जाना ही पर्याप्त है ?क्या सभी टीचर्स बाल मनोविज्ञान की समझ रखते हैं | आइये इस की गहन विवेचना करें |   क्यों हो मासूम बच्चों पर इतना प्रेशर                             शिक्षक दिवस पर  मुझे उस बच्चे की याद आ गयी | जिसका वीडियो  वायरल हुआ था | जिसमें बच्चे की माँ बच्चे को बहुत गुस्सा करते हुए पढ़ा रही थी | सभी  ने एक स्वर में माँ की निंदा की | पर माँ के इस व्यवहार के पीछे क्या कारण हो सकता है | ये जानने के लिए किसी भी स्कूल के “ पेरेंट्स टीचर मीटिंग “ में जा कर देख लीजिये | टीचर किस बुरी तरीके से बच्चों के चार – पांच नंबर कम आने पर बच्चे के बारे में नकारात्मक  बोलना शुरू कर देते हैं | जिससे माँ – बाप के मन में एक भय पैदा होता है |शायद  मेरा बच्चा कभी कुछ कर ही न पाए या कम से कम इतना तो लगता ही है की सबके बीच में अगली बार उनके बच्चे को ऐसे न बोला जाए |हमें खोजना होगा की एक मासूम बच्चे पर इतना प्रेशर पड़ने की जडें कहाँ पर हैं | क्या जरूरी नहीं की पेरेंट्स टीचर मीटिंग में बच्चे के माता – पिता व् टीचर अकेले में बात करें | जिससे माता – पिता या बच्चे में सबके सामने अपमान की भावना न आये | होता है मासूम बच्चो का शारीरिक शोषण  एक उदहारण  मेरे जेहन में आ रहा है | एक प्ले स्कूल का | प्ले स्कूल में अमूमन ढाई से चार साल के बच्चे पढ़ते हैं | उस प्ले स्कूल की  टीचर बच्चों के शरारत करने पर , काम न करने पर , दूसरे बच्चे का काम बिगाड़ देने पर उस बच्चे के सारे कपडे उतार कर बेंच पर खड़ा होने का पनिशमेंट देती थी | इस उम्र के बच्चों को शर्म  का अर्थ नहीं पता होता  है | परन्तु जिस तरह से सार्वजानिक रूप से ये काम करा जाता उससे बच्चे बहुत अपमानित महसूस करते | कुछ बच्चों को सजा हुई | बाकी बच्चे भयभीत रहने लगे  | कुछ बच्चे स्कूल जाने  से मना करने लगे | बात का पता तब चला जब एक बच्चा १० दिन तक स्कूल नहीं गया | वो तरह – तरह के बहाने बनता रहा | जबरदस्ती स्कूल भेजने पर वह चलते ऑटो से कूद पड़ा | फिर माता – पिता को शक हुआ | बच्चे से गहन पूँछतांच में बच्चे ने सच बताया | पेरेंट्स के हस्तक्षेप से टीचर को स्कूल छोड़ना पड़ा | परन्तु बच्चों के मन में जो ग्रंथि जीवन भर के लिए बन गयी उसका खामियाजा कौन भुगतेगा | वर्बल अब्यूज भी है खतरनाक  मेरी एक परिचित के तीन साल के बच्चे ने एक दिन घर आ कर बताया की ड्राइंग फ़ाइल न ले जाने पर टीचर ने मारा | हालांकि वो डायरी में नोट भी लिख सकती थीं | दूसरे ही दिन वे दोनों स्कूल गए व् प्रिंसिपल से बात की ,की मासूम बच्चों को न मारा जाए | उसके बाद बच्चे ने स्कूल की बातें घर में बताना बंद कर दिया | वह अक्सर स्कूल जाने से मना  करने लगा | जब पेरेंट्स ने बहुत जोर दे कर पूंछा की क्या टीचर अब भी मारती हैं तो बच्चा बोला नहीं मारती नहीं हैं , पर रोज कहतीं हैं की इन्हें तो कुछ कह ही नहीं सकते अगले दिन इनके माता – पिता आ कर खड़े हो जाते हैं | इसके बाद बच्चे ताली बजा कर हँसते हैं | आप लोग मेरा स्कूल चेंज करवा दो | मनोविज्ञान के अनुसार वर्बल अब्यूज , फिजिकल अब्यूज से कम घातक  नहीं होता | लगातार ऐसी बातें सुनने से बच्चे के कोमल मन पर क्या असर होता है ये सहज ही समझा जा सकता है | मारपीट किसी समस्या का हल नहीं   एक और वीडियों जो अभी वायरल हुआ उसमें टीचर बच्चे को बेरहमी से पीट रही थी | वीडियो देखने से ही दर्द महसूस होता है | मासूम बच्चों को मुजरिम की तरह ऐसे कैसे पीटा  जा सकता है ? हालांकि यहाँ मैं सपष्ट करना चाहूंगी की कई पेरेंट्स भी बच्चे को रोबोट बनाने की इच्छा रखते हैं वह आकर स्वयं कहते हैं की ,” आप इसकी तुड़ाई करिए | टीचर भी सहज स्वीकार करती हैं कि  मार पीट से ही बिगड़े बच्चे सुधरते हैं | जबकि उसे बताना चाहिए की तुड़ाई करने से कमियाँ नहीं टूटती बच्चे का आत्मविश्वास टूटता है | इसके अतिरिक्त भी  टीचर्स अक्सर बच्चों पर  नकारात्मक फब्तियां कसते रहते हैं | एक कोचिंग सेंटर में जहाँ इंजीनयरिंग इंट्रेंस एग्जाम की तयारी करवाते हैं | वहां के गणित के टीचर कोई भी सवाल बच्चों को हल करने के लिए देते | फिर यह जुमला कसना नहीं भूलते की देखना कोई लड़का ही करेगा | लड़कियों से तो मैथ्स होती ही नहीं | वैसे तो जेंडर बायस कमेंट बोलने का अधिकार किसी को नहीं है | फिर भी यह जानते हुए की समान अवसर व् सुविधायें मिलने के बाद लडकियां लड़कों से कहीं कम सिद्ध नहीं होती | उस क्लास में पढने वाली लड़कियों का आत्मविश्वास डगमगाने लगा | जाहिर है … Read more

शिक्षक दिवस – हमारे व्यक्तित्व को गढ़ने के लिए जीवन के हर मोड़ पर मिलते हैं शिक्षक

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई ——————————- हमारी संस्कृति ऐसी है कि इसमें हर पल, हर समय हम अपने माँ, पिता, गुरुओं, मित्रों को अपने साथ लेकर चलते है। इनसे मिली शिक्षाएँ, सबक जीवन भर हमारे मार्ग को आलोकित करते हैं, प्रशस्त करते हैं, कठिन घड़ी में संबल बनते हैं तो ये जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं।             प्रथम गुरु माँ और पिता से शुरू हुई सीखने की यह यात्रा आज भी अनवरत चल रही है। माँ-पिता से मिली सीख, सबक, शिक्षाएँ कभी खोती नहीं। भूलना भी चाहें तो भी भूलती नहीं। उनका वास्तविक अर्थ तब समझ में आता है जब हम स्वयं माता-पिता बन कर उन स्थितियों से दो-चार होते है।            मेरे माता-पिता ऐसे शिक्षक थे जो जीवन भर विद्यार्थी बने रहे। जो भी चीज सामने आए..उसे सीखने के लिए बच्चों जैसी ललक उनमें रहती। और सीख कर ही वे दम लेते थे। वे हमेशा कहते…जो सीख सको..सीखते जाओ। जीवन में कब कौन सी सीखी हुई चीज काम आ जाए… क्या पता! आत्मनिर्भर बनने की ओर यह पहला कदम है, इसलिए सीखने में संकोच मन करो। पर ये बात तब उतनी समझ नही आ पाती थी।  मेरी माँ मुझे सिलाई सिखाना चाहती थी। उन्होंने सिलाई में एक वर्ष का प्रशिक्षण भी लिया था। मेरी रुचि सिलने में नहीं थी। उन्होनें सोचा.. कि मुझसे तो ये सीखेगी नहीं तो उन्होंने स्कूल की छुट्टियों में एक महीना मेरी रुचि परखने के लिए भेजा, लेकिन मैं एक सप्ताह के बाद वहाँ गई ही नहीं। साइकिल सिखाने की भी बहुत कोशिश की, पर संकोच के मारे मेरी गाड़ी आगे चल ही नहीं पाई। आज जब छोटे-छोटे काम के लिए टेलर के पास भागना पड़ता है, कहीं जाने के के लिए पति, और बच्चों पर निर्भर रहना पड़ता है, तब उनका कहा बहुत याद आता है। इसी कारण बेटी को साइकिल और कार चलानी सिखाई। आज वह आत्मनिर्भर है। मुझे भी जरूरत पड़ने पर लेकर जाती है और पति की अनुपस्थिति में अपने ससुराल में भी अपनी दादी सास, सास ससुर जो को लेकर सब काम करवा लाती है तो देख कर  संतोष होता है। उसके नाना-नानी भी अपनी दूसरी दुनिया से देख कर बहुत प्रसन्न होते होंगे कि जो बेटी की कमी को नातिन ने अपने में नहीं रहने दिया।             आज मुझे आठवीं कक्षा में पढ़ने के समय के अंग्रेजी के शिक्षक पांडे सर की बहुत याद आ रही है। वे सप्ताह के अंतिम दिन शनिवार के पीरियड में लिखाई अच्छी कैसे हो…इस बारे में बता कर, फिर उस पर अभ्यास करवाया करते थे। उनका कहना होता था कि जब लिखना आरंभ करो तो अक्षर अलग-अलग पैन उठा कर मत लिखो, बल्कि लिखना आरंभ करो और शब्द पूरा होने पर पैन उठाओ और तब दूसरा शब्द लिखो। पहले-पहले बहुत असंभव लगा। लेकिन शनिवार में उनके इस पीरियड की बहुत प्रतीक्षा रहती। कब वे कहेंगे कि अब तुम ऐसा लिखने में पारंगत हो गई…. इसके लिए मैं घर में भी अभ्यास करती रहती थी। कक्षा में कॉपी देखते समय जब वे लाल निशान लगाते कि यहाँ पैन बीच में ही उठा दिया…तो यह देख कर प्रसन्नता भी बहुत होती कि मेरी कॉपी में सबसे कम लाल निशान लगते थे। जिस दिन कॉपी में लाल निशान नहीं लगा और उन्होंने मुझे कहा कि अब तुम पारंगत हो गई हो तो उनका वो कहना मेरे लिए किसी मैडल मिलने से कम नहीं था। कक्षा में जैसा लिखना पांडे सर सिखाना चाहते थे…वैसा जल्दी से जल्दी सीख कर पारंगत होने वाली कक्षा की मैं सबसे पहली विद्यार्थी थी। आज जब सब मेरी अंग्रेजी और हिंदी की लिखावट की बहुत प्रशंसा करते हैं तो इसमें सर्वाधिक योगदान पांडे सर का ही है जिन्होंने सिखा-बता कर अभ्यास पर शिक्षक होने के साथ विद्यार्थी बने रह भी सिखाने में रुचि ली थी।        कॉलेज में जब पहुँची तो उस समय की प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार शशिप्रभा शास्त्री महादेवी कन्या पाठशाला डिग्री कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष थी।         साहित्य प्रेम पापा से मिला था और वे ही मेरे साहित्यिक गुरु भी थे। तो शशिप्रभा शास्त्री जी लेखिका है, वे हमें पढ़ाएंगी भी, दिखने में कैसी होंगी…आदि-आदि जानने की बहुत ही उत्सुकता थी। उनकी लिखी रचनाएँ ढूँढ-ढूँढ कर पढ़ डाली थी। वे जब पढ़ाती तो मैं मनोयोग से सुनती। गर्व भी होता था कि एक बड़ी लेखिका से पढ़ने का अवसर मुझे मिल रहा है। पारिवारिक उपन्यास, कहानियाँ पढ़ने की ओर रुचि उन्होंने ही मुझमें जगाई। देहरादून के रचनाकारों में मैंने उन्हें ही सबसे ज्यादा पढ़ा।            और अब साहित्य के संसार से, जिसमें प्रवेश पापा के ही कारण हो पाया था, नाता इतना दृढ़ हो गया है कि चाह कर भी टूट नही पाता। सोशल मीडिया ने फ़ेसबुक का मंच प्रदान किया… जिसके कारण बहुत से मित्रों का संसार बना। इसमें विभा रानी श्रीवास्तव, जितेंद्र कमल आनंद जी और वंदना वाजपेयी जी मित्र बने….पर कब प्रेरणा गुरु बन गए पता ही नहीं चला। विभा रानी श्रीवास्तव जी के सम्पर्क-सानिध्य से वर्ण पिरामिड जैसी विधा से परिचित हुई, हाइकू, लघुकथा लेखन में गतिशील हुई और इस तरह वे मेरी गुरु संगी बनीं।  वंदना वाजपेयी जी…जिनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन ने मुझमें नई ऊर्जा का संचार किया, आत्मविश्वास प्रदान किया। रचनाओं पर मिलने वाले इनके कमेंट्स निरंतर और अच्छा करने की ओर मुझे प्रेरित करते हैं…. इस तरह वंदना जी मेरी प्रेरणा-प्रोत्साहन गुरु बन कर मेरे जीवन में शामिल हुई।         इसी फ़ेसबुक के संसार में अपने पापा के बाद आध्यात्मिक साहित्य गुरु के रूप में, मार्गदर्शक के रूप में मुझे जितेंद्र कमल आनंद गुरु जी मिले। जिनसे रचनाओं में सुधार भी प्राप्त होता है, विभिन्न काव्य विधाओं की जानकारी भी प्राप्त होती है और आध्यात्मिक संसार से भी परिचित होते चलते हैं।           जीवन में मिलने वाली ठोकरें, धोखे, ठगी..इन सब ने भी कोई न कोई सबक सिखाया ही है। उन मिले सबको ने भी व्यक्तित्व को निखारने के काम किया ही है।           आज दिवस परंपरा  के कारण अपने इन सब गुरुओं को स्मरण करते हुए … Read more

शिक्षक दिवस : जब टीचर की प्रेरणा से पढने में लगा मन

नीलम गुप्ता  शिक्षक दिवस अपने शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है |क्यों न हो आखिर उन्हीं ने तो हमें ज्ञान का मार्ग दिखाया है  ऐसे में अपनी एक टीचर के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आपसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण किस्सा शेयर करना चाहती हूँ |                      बात तब की है जब मैं बहुत छोटी थी | अपने पापा -मम्मी की एकलौती बेटी होने के कारण शैतान और नकचिढ़ी  भी थी | जिद्दी इतनी की जो मांगू जब तक मिल न जाए तो खैर नहीं | पढ़ाई से तो मेरा दूर -दूर तक नाता ही नहीं था | हर बार पी टी ऍम में माँ -पापा को मेरी ढेरों शिकायतें सुनने को मिलती | घर में आ कर माँ मुझे पढने के लिए कहती , डांटती  ,मारती पर मेरे कान पर जूँ भी नहीं रेंगती | बात शायद फोर्थ क्लास की है जब मेरी रोज -रोज होम वर्क न करने की आदत से परेशांन  हो कर  मेरी टीचर ने माँ को समझाया की इसी किसी ईनाम का लालच दीजिये जिससे ये पढ़े व् अच्छे नंबर लाये | मेरे पापा बड़े व्यवसायी हैं ,घर में कोई कमी कभी देखी  नहीं |फिर भी माँ ने टीचर की बात पर अमल करते हुए     मेरा मनपसंद कैमरा देने की पेशकश की | उन्होंने कहा ” अगर मैं इस बार अच्छे नंबर लायी तो वो मुझे गिफ्ट में कैमरा देंगी | पर  मेरे दिमाग में कैमरा घूम गया ,मैं इतना सब्र कहाँ कर सकती थी|  मैं उसी रात पापा से उस कैमरे की जिद कर बैठी , मैंने खाना भी नहीं खाया |पापा की लाडली होने के कारण एक दो दिन में  कैमरा मेरे हाथ में था | फिर किसको पढना था | बस दिन भर क्लिक ,क्लिक ,क्लिक | नतीजा मेरी कक्षा में सबसे पिछली रैंक आई | बस यूँ कहिये की फेल होने से बच गयी | माँ -पापा चाहते थे की मैं अच्छी पढाई  करू ….पर  मैं तो मैं ही रही| अगले साल क्लास ५ में स्कूल की तरफ से बंगलौर टूर गया | जाहिर हैं मैं भी गयी | हमने बहुत मजा किया |  एक दिन यूँ ही घुमते -घुमते हम इंडियन इंस्टीट्युट ऑफ़ साइंस के बाहर से निकले | मेरी टीचर ने ” नीलम देखो , इसके अन्दर हर कोई नहीं घुस सकता , केवल अपनी योग्यता को सिद्ध करके ही यहाँ प्रवेश मिल सकता है | पैसे के दम पर तुम दुनिया में चाहे जहाँ घूम लो पर यहाँ तुम्हारे पापा का पैसा काम नहीं आएगा | मैं एक टक  देखती रही |  उस दिन से मैंने प्रण किया कि मुझे बहुत पढना है आई .आई .एस में  जाना है | मेरी शैतानियाँ थम गयी | टीचर ,माँ -पापा सब हैरान की मुश्किल  से पास होने वाली नीलम ९९ % नंबर कैसे ले आई | तब से आज तक मैं लगातार फर्स्ट  फाइव में आती रही | न  जाने कितने इंटर स्कूल क्विज कॉम्पटीशन जीते  | एक छोटे से वाक्य ने मेरे जीवन की दिशा बदल दी | टीचर की प्रेरणा से ही एक  शैतान  पढ़ाकू में बदल गयी ,पर जिद्दी अभी भी हूँ और यह जिद्द ही मुझसे  सफलता के नए नए अध्याय लिखवा रही है | मुझे ये सफलता  मिली है ….अपनी प्रतिभा के दम  पर | अपने पापा के पैसे के दम  पर नहीं | आज अपने टीचर को याद करते हुए मन भावुक हो रहा है | एक सलाम मेरी टीचर के नाम  अटूट बंधन टीचर से संबंधित  पोस्ट …. कहानी – फिर हुई मुलाकात लघुकथा – प्रतिशत शिक्षक दिवस पर विशेष – मैं जानता था बेटी ( संस्मरण ) गुरु चरण सीखें ( कविता )