देवी को पूजने वालों देवी को जन्म तो लेने दो
संजीत शुक्ला नवरात्रों के दिन चल रहे हैं | हर तरफ श्रद्धालु अपनी मांगों की लम्बी कतार लिए देवी के दर्शन के लिए घंटों कतार में लगे रहते हैं | हर तरफ जय माता दी के नारे गूँज रहे हैं , भंडारे हो रहे हैं , कन्या पूजन हो रहा है | और क्यों न हो जब माँ सिर्फ माँ न हो कर शक्ति की प्रतीक हैं |परंपरा बनाने वालों ने सोचा होगा की शायद इस बहाने आम स्त्री को कुछ सम्मान मिले , उसके प्रति मर्यादित दृष्टिकोण हो | कन्या को पूजने वाले अपने घर की कन्याओं पर हो रहे अत्याचारों पर रोक लगाए | पर दुर्भाग्य ,” कथनी और करनी में बहुत अंतर है | आज भी आम स्त्री आम स्त्री ही है | ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मेरे हाथ में अखबार है | और उसमें छपी खबर मुझे विचलित कर रही है | खबर है … दूसरी बार कन्या पड़ा करने के जुर्म में एक स्त्री को उसके ससुराल वालों ने इतना मारा की उसकी मृत्यु हो गयी | अभी ये खबर ज्यादा पुरानी नहीं हुई है जब दिल्ली में रहने वाली मधुमति दो लड़कियों की माँ बनने के बाद जब तीसरी बार गर्भवती हुई तो उसने भ्रूण परीक्षण कराया. ये पता लगने पर कि उसके भ्रूण में फिर एक कन्या पल रही है उसने गर्भपात करा लिया|भ्रूण हत्या की यह प्रक्रिया उसने इस उम्मीद के साथ आठ बार दोहराई कि वो एक बेटे की माँ बन सके.एक अनुमान के अनुसार भारत में पिछले दस वर्षों में क़रीब डेढ़ करोड़ लड़कियों को जन्म से पहले ही मार डाला गया या फिर पैदाइश के बाद 6 वर्षों के अंदर ही उनको मौत के मुँह में धकेल दिया गया | कितना विरोधाभास है | एक तरफ हम कन्याओं की पूजा करते हैं दूसरी तरफ कन्याओं को अवांछित मान कर गर्भ में ही उनका समापन किया जा रहा है | बिगड़ते हुए लिंगानुपात चीक -चीख कर इस बात की गवाही दे रहे हैं | भले ही आज सरकार की तरफ से लिंग परिक्षण पर रोक हो | परन्तु चोरी छुपे यह व्यवसाय बहुत फल -फूल रहा है | और क्यों न हो ,जब समस्या सामाजिक हो तो सरकारी प्रयास नाकाफी होते हैं |आश्चर्य की बात है की जितने विकसित राज्य है वहां लिगानुपात भयंकर तरीके से बिगड़ा हुआ है | एक सामाजिक संस्था इसके खिलाफ चेताते हुए कहती है की अगर यह अनुपात इसी तरह से घटता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब “विवाह के लिए कन्या का अपहरण किया जाएगा, उसकी इज़्ज़त पर हमले होंगे, उसे ज़बरदस्ती एक से अधिक पुरूषों की पत्नी बनने पर मजबूर भी किया जा सकता है.”अरब जातियों में लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करने की प्रथा असभ्य काल में प्रचलित थी लेकिन भारत में कन्या भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में उभरी है जहाँ शिक्षा, ख़ासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर है और लोगों का आर्थिक स्तर भी अच्छा है| अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन का कहना है , कि पिछले साल से मौजूदा साल में भ्रूण हत्या अधिक हो रही है । इस बढ़ती भ्रूण हत्या के लिए केवल पुरुष को दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा । आजकल तो पढ़ी- लिखी महिलाएँ स्वयं भी क्लिनिक में जाकर लिंग टेस्ट करवाती हैं । अगर पहले बेटी है और दूसरी आने वाली संतान भी कन्या है, तब खुद ही डाक्टर से कहती है , हमें इसे खतम कराना है । फ़िर डाक्टर को भारी भरकम पैसे का लोभ देकर कन्या भ्रूण हत्या करवाती है । ये सच है की हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्या के पीछे सामाजिक सोंच है | चाहे वो बेटी को परायी मानने व् तर्पंण की अधिकारी न होने की हो , दहेज हो या बेटी को पालने में उसकी सुरक्षा का ज्यादा ध्यान रखना हो | कारण कुछ भी गिनाये जा सकते हैं | उन को धीरे -धीरे दूर करने का प्रयास किया जा सकता है | सरकार अपनी तरफ से बेटी वाले घरों को कुछ विशेष सहूलियतें भी दे रही है | पर जरूरट सोच बदलने की , मानसिकता बदलने और ये समझने समझाने की … ” देवी को पूजने वालों देवी को जन्म तो लेने दो ” यह भी पढ़ें … सेंध गुडिया माटी और देवी आप की अपनी माँ देवी माँ का ही प्रतिबिम्ब हैं दोगलापन