एक छोटी सी कोशिश

हमारे देश में बड़ी -बड़ी बातों को  लोक कथाओं के माध्यम  से समझाया गया है | आज ऐसी ही एक लोक कथा पर नज़र पड़ी | जो एक बहुत खूबसूरत सन्देश दे रही थी | तो आज ये  छोटी सी लोक कथा आप सब के लिए … एक छोटी सी कोशिश  एक नन्हीं चिड़िया थी | वो जंगल में रहती थी | रोज सुबह वो दाना ढूँढने निकलती | उसके रास्ते में एक ऋषि का आश्रम पड़ता था | वहां पेड़ पर बैठ वो थोड़ी देर सुस्ताती | इसी बीच ऋषि के प्रवचन उसके कान में पड़ जाते |धीरे –धीरे उसको उन प्रवचनों में आनंद आना लगा और वो ध्यान से सुनने लगी | जिससे उसके व्यवहार में परिवर्तन आने लगा | एक दिन जंगल में आग लग गयी | सभी जानवर इधर उधर भागने लगे | किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करा जाए | तब वो नन्हीं चिड़िया उस जंगल के सरोवर से अपनी चोंच में पानी भरभर के लाने लगीऔर आग पर डालने लगी | उसे देखकर अन्य चिड़ियों ने उसे समझाया, “ यहाँ क्यों समय बर्बाद कर रही हो | उड़ जाओ, शायद तुम्हारा जीवन बच जाए | वैसे भी तुम्हारे इन प्रयासों से ये आग तो बुझेगी नहीं | तब चिड़िया ने कहा,  “ आप ठीक कहती हैं पर मैं चाहती हूँ कि जब इतिहास लिखा जाए तो मेरा नाम मदद करने वालों में लिखा जाए तमाशा देखने वालों में नहीं |” यूँ तो ये कहानी बहुत छोटी सी है पर बात बहुत गहरी है | जब भी कोई विपत्ति या समस्या आती है, तो हमें लगता है, हमारी क्षमता तो बहुत कम है | हम तो अकेले हैं | ऐसे में हम क्या मदद कर सकते हैं | कई बार किसी एक्सीडेंट के होने पर  हम सब भीड़ में खड़े होकर शोर तो मचाते हैं पर सोचते हैं मदद के लिए शायद कोई दूसरा हाथ आगे आये | कई बार अपनी क्षमता पर संदेह भी होता है कि क्या हम कर पायेंगे | साइकोलॉजी की भाषा में इसे bystander effect कहते हैं | जब किसी घटना या दुर्घटना में बहुत सारी भीड़ इकट्ठी हो जाती है पर हर किसी को लगता है कि वो अकेले कोई क्या कर पायेगा, मदद कोई दूसरा करे | ऐसे में जितनी ज्यादा भीड़ होती है, ये भावना उतनी ही प्रबल होती है | कई बार इस कारण जरूरतमंद को मदद मिल ही नहीं पाती | लेकिन हर एक व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारी होती है …. 1)      पर्यावरण बिगड़ रहा है पर एक मेरे पौधा ना लगाने से क्या  होगा ? 2)      खाली मैं पॉलीथीन बैग ले भी जाऊ तो क्या होगा ? 3)      आखिर मेरे कार रोज धो लेने से कितना पानी खर्च होगा ? 4)      सड़क पर सिर्फ मेरे कूड़ा फेंक देने से पूरी सड़क थोड़ी ही न गन्दी हो जायेगी ? 5)      अगर मैं दुर्घटना के समय वीडियो बना रहा था तो क्या हुआ , दूसरे तो थे मदद करने को ? 6)      अगर मैंने आज कश्मीर की लड़कियों का मजाक बना दिया तो क्या हुआ इतने लोग तो है जो उन्हें इज्जत दे रहे हैं ? 7)      धारा 370 हटने पर मैं बहुत खुश हूँ पर ये सिर्फ मेरी जिम्मेदारी नहीं है कि कश्मीरियों का दिल जीतने या उनके साथ अच्छे रिश्ते बनाने की पहल करूँ ? किसी बात, नियम व्यवस्था पर खुश होना और जिम्मेदार होना दो अलग बातें हैं हमें तय करना होगा कि हम क्या चाहते हैं जब इतिहास  लिखा जाए तो हमारा नाम तमाशा देखने वालों में दर्ज हो या मदद करने वालों में ? हमें भीड़ के bystander effect को समझना होगा | भीड़ में हमारी ही तरह बहुत से लोग अपने को छोटा और कमजोर समझ कर पहल नहीं करते | पर भीड़ का हिस्सा होते हुए भी हम सब का अलग –अलग बहुत महत्व है | जरूरत है बस अपने हिस्से भर की छोटी सी कोशिश करने की …     यह भी पढ़ें … मेरा पैशन क्या है ? माँ के सपनों की पिटारी भागो लड़कियों अपने सपनों के पीछे भागो  भविष्य का पुरुष आपको  लेख “ एक छोटी सी कोशिश “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  keywords:bystander effect, personal role, effort, effect of cumulative efforts

क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?

जब भी आप कोई गेजेट खरीदते  हैं तो उसका यूजर मैन्युअल जरूरार पढ़ते हैं | आखिर उसी में सारे दिशा निर्देश होते हैं उस को चलाने के लिए | ऐसा ही एक कमल का गेजेट है हमारा mind यानि की दिमाग या फिर थोडा और विस्तार में जाएँ तो मन | जो हमारा हो कर भी हमारा नहीं है | पलक झपकते ही यहाँ पलक झपकते ही वहाँ |हमें ये तो पता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या क्या खाना चाहिए पर क्या हमने कभी अपने दिमाग का यूजर मैनुअल पढ़ा है ? पढ़िए और इसे सही से इस्तेमाल करना सीखिए … देखिएगा आप कितने शांत व् प्रसन्न रहेंगे | जानिये  अपने mind के  user manual के बारे में  क्या आप ठीक हैं ? हाँ ठीक तो हूँ , पर वो चार साल पहले की बात जब -तब याद आ जाती है तो मन से निकलती ही नहीं , कभी -कभी लगता है जैसे जीवन ही व्यर्थ है … जब तक उस बात का ठीक ना कर लूँ तब तक दिमाग से निकलना मुश्किल है | और आप ? अजी क्या बताये , ये प्रश्न  मत पूछिए जब तक कार न आ जाये /मकान  न खड़ा हो जाए , बेटे की शादी ना हो जाए /बेटे की नौकरी ना लग जाए तब तक क्या खाक ठीक हैं ?                                         हममे  से अधिकतर लोग अतीत की यादों या भविष्य की चिंता से जूझ रहे होते हैं | जबकि जीवन केवल इस पल है | दरअसल हमारा दिमाग तीन काल में चलता है भूत काल , वर्तमान काल और भविष्य काल | आप किसी ज्योतिषी के पास जाए तो वह आपके past या future के बारे में बताता है … ऐसे लोगों को त्रिकाल दर्शी भी कहते हैं | पर यहाँ हम बात कर रहे अपने mind की जो तीन स्तरों पर चलता है स्मृति , कल्पना और ये पल , यानि की memory, imagination और वर्तमान समय | अधिकतर लोगों को मेमोरी या इमेजिनेशन के कारण दुःख होता है | वर्तमान समय में उन्हें कोई खास दुःख नहीं होता फिर भी वो या तो पिछला या अगला सोच -सोच कर परेशां होते रहते हैं | अतीत से छुटकारा  मान लीजिये कि किसी के साथ कोई बहुत बड़ा हादसा हो गया वो उससे नहीं निकल पा रहा है … तब तो कुछ हद तक बात समझ में आती है पर ज्यादातर लोग छोटे बड़े हादसों , बातों , किसी की गलती के बारे में इतना सोचते हैं कि वो वर्तमान समय का आनन्द उठा ही नहीं पाते | आप जिसे महान जीवन समझते हैं वो पृथ्वी की नज़र में बस एक उपजाऊ मिटटी है जिसे एक फसल के बाद फिर से रौंद कर दूसरी फसल उगानी है … सद्गुरु जग्गी वाशुदेव                                          जो घटना घट चुकी है अब उसका कोई अस्तित्व नहीं है वो केवल अतीत में थी | लेकिन हम उसे अपनी स्मृति में जिन्दा रखते हैं और उसी दुःख को जिसे एक बार भोग कर हम निकल आये थे बार -बार भोगते हैं | कितने लोग हैं जो अच्छी स्मृतियों को बार -बार दोहराते हैं और अगर दोहराते भी हैं तो एक कसक के साथ कि अब वो समय नहीं रहा | जब आप कहते हैं कि मैं उसको माफ़ नहीं कर सकता मतलब आप उस व्यक्ति से सम्बंधित स्मृतियों को नहीं भुला पा रहे हैं , और खुद को बार -बार दंड दे रहे हैं | भविष्य की चिंता से मुक्त                                   एक कहावत है सामान सौ बरस का … खबर पल की नहीं | जो हम आज हैं वो हमारे अतीत में किये गए कामों और फैसलों की वजह से हैं जो हम कल होंगे वो आज किये गए कामों और फैसलों की वजह से होंगे | बेहतर है कि हम सही काम आज करें न कि भविष्य की चिंता | हमारे सोचते रहने से कुछ होने वाला नहीं है |  मेमोरी या इमेजिनेशन क्या है … माइंड के एप्रेटस में आने वाले विचार ही तो हैं -संदीप महेश्वरी  ऐसा नहीं हो सकता कि विचार ना आयें पर उन पर चिंतन ना करे ये आपके हाथ में है | इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रक्रिया को समझें | विचारों के बनने की प्रक्रिया को समझें , विचारों के बहुगुणित होने की प्रक्रिया को समझे | वर्तमान के जीवन को समझे … समझे कि केवल वर्तमान ही हमारे हाथ में हैं …. जहाँ हम कुछ कर सकते हैं बाकि दुःख सब विचार रूप में हैं | जिस दिन हम अपने mind का user manual समझ जायेंगे … उस दिन से ही हम चिंता मुक्त ,सुखी जीवन जी पायेंगे | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको   लेख  “  क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?“  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking, mind, user manual, user manual of mind

संवेदनाओं के इमोजी

       फेसबुक पर भावनाओं को व्यक्त करने के लिए तरह तरह के इमोजी उपलब्द्ध हैं , हंसने के रोने के , खिलखिलाने के शोक जताने के या दिल ही दे देने के , इतनी तकनीकी सुविधा के बावजूद हम एक भावना पर कितनी देर रह पाते हैं | किसी की मृत्यु पर एक रीता हुए इमोजी क्लीक करने के अगले ही पल किसी के चुटकुले पर बुक्का फाड़ कर हँसने वाले इमोजी को चिपकाते समय हम ये भी नहीं सोचते कि क्या  एक भावना से दूसरी भावना पर कूदना इतनी जल्दी संभव है या हम भावना हीन प्रतिक्रिया दे रहे हैं | कुछ लोग सोशल मीडिया पर समय की कमी बताते हुए इसे ठीक बताते हैं | परन्तु दुखद सत्य ये है कि ये बात केवल फेसबुक तक सीमित नहीं है … हमने इसे अपनी वास्तविक दुनिया में उतार लिया है | हम स्वयं संवेदनाओं के इमोजी बनते जा रहे हैं | रिश्तों में दूरी इसी का दुष्परिणाम है | संवेदनाओं के इमोजी  आज मैं बात कर रही हूँ एक सर्वे रिपोर्ट की |ये सर्वे अभी हाल में विदेशों में हुए हैं | सर्वे का विषय था कि “ कौन लोग अपने जीवन में ज्यादा खुश रहते हैं ?”यहाँ ख़ुशी का अर्थ जीवन के ज्यादातर हिस्से में संतुष्ट रहना था | इसमें जिन लोगों पर सर्वे किया गया गया उन्हें बचपन से ले कर वृद्ध होने तक निगरानी में रखा गया | इसमें से कुछ लोग जिंदगी में बहुत सफल हुए, कुछ सामान्य सफल हुए और कुछ असफल | कुछ के पास बहुत पैसे थे और कुछ को थोड़े से रुपयों में महीना काटना था | ज्यादातर लोगों को लगा कि जिनके पास पैसा है , सफलता है वो ज्यादा खुश होंगे पर एक आमधारणा के विपरीत सर्वे के नतीजे चौकाने वाले थे | सर्वे के अनुसार वही लोग ज्यादा खुश या संतुष्ट रहे जिनके रिश्ते अच्छे चल रहे थे | परन्तु आज हम अपने रिश्तों को प्राथमिकताओं में पीछे रखने लगे हैं | रिश्ते त्याग पर नहीं स्वार्थ पर चल रहे हैं | “गिव एंड टेक “…बिलकुल व्यापार  की तरह | ऐसे ही एक व्यापारी से टकराना हुआ जिनके पिताजी १५ दिन पहले गुज़र गए थे | सामान लेने आई एक महिला के सहानुभूति जताने पर बोले , ” अरे क्या बताये , पिताजी तो चले गए ,दुकान ठीक से ना चला पाने के कारण नुक्सान मेरा हो रहा है | जबकि तेरहवीं तक भी मैं बीच -बीच में खोलता था दुकान ताकि लोग मुझे भूल ना जाएँ |” आश्चर्य ये हैं कि जो अपने पिताजी को १३ दिन तक सम्मान से याद नहीं कर सके वो ये सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि दुनिया उन्हें और उनकी दुकान को भूले नहीं | स्नेह वृक्ष को बहुत सींचना पड़ता है तब छाया मिलती है | अभी हाल में  एक ऑफिसर की आत्महत्या की खबर सुर्ख़ियों में है |कारण घरेलु झगड़े हैं | पति -पत्नी के बीच मतभेद होना सामान्य बात है | लेकिन झगड़े के बाद यहाँ तक झगडे के समय भी एक दूसरे की चिंता फ़िक्र दिखती है | जहाँ झगडे में दुश्मनी का भाव हो, ना निकल पाने की घुटन हो , समाज के सामने अपनी व् अपने परिवार की जिल्लत का भय हो वहां निराश व्यक्ति इस ओर बढ़ जाता है | झगडे दो के बीच में होते हैं पर अफ़सोस उस समय उसको सँभालने वाला परिवार का कोई भी सदस्य नहीं होता | मोटिवेशनल गुरु कहते हैं ,” दुःख दर्द , शोक सब फिजूल है … समय की बर्बादी | आगे देखो , वो है सफलता का लॉली पॉप , उठो कपड़े झाड़ों ,दौड़ों ….देखो वो चूस रहा है , उसे हटा कर तुम भी चूसो … और मनुष्य मशीन में बदलने लगता है | लेकिन परिणाम क्या है ? सफलता की दौड़ में लगा हर व्यक्ति अकेला है ,  उसकी सफलता पर खुश होने वाला उसका परिवार भी नहीं होता | संदीप माहेश्वरी ने एक बार कहा था कि जिन्दगी को दो खंबों पर संतुलित करना आवश्यक है | एक सफलता का खम्बा , दूसरा परिवार का खम्बा , एक भी खम्बा कमजोर पड़ गया तो दूसरा महत्वहीन हो जाता है | दोनों को संतुलित कर के चलना आवश्यक है | एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स जिन्होंने सफलता के कीर्तिमान स्थापित किये उन्होंने भी अपने अंतिम समय में कहा ,” मृत्यु के समय आप को ये नहीं याद आता की आप कितने सफल हैं या आपने जीवन में कितने पैसे कमाए बल्कि ते याद आता है आप ने अपने परिवार के साथ अपने , अपनों के साथ कितना समय व्यतीत किया है | सब जान कर भी अनजान बनते हुए हम सब एक दिशा हीन दौड़ में शामिल हो गए हैं | जहाँ रुक कर , ठहर कर किसी के दुःख में सुख में साथ देना समय की बर्बादी लगने लगा है , बस सम्बंधित व्यक्ति के सामने चेहरे पर जरा सा भाव लाये और आगे बढ़ गए …अपनी रेस में |  हम सब इस दौड़ में संवेदनाओं के चलते , फिरते इमोजी बनते जा रहे हैं | इंसान का मशीन में तब्दील होना क्या रंग लाएगा |  कभी ठहर कर सोचियेगा | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको   लेख  “संवेदनाओं के इमोजी  “  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking, emotions, emoji, feelings, life

असफलता से सफलता की ओर

‘           मुंशी प्रेमचंद्र जी लिखते हैं कि सफलता में अतीव सजीवता होती है और विफलता में अत्यंत निर्जीवता | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता परन्तु हर कोई सफल नहीं हो पाता , शायद कुछ कमी रह जाती है प्रयास में , जिस कारण सफलता नहीं मिल पाती |अधिकतर लोग असफलता को सहन नहीं कर पाते और निराशा में डूब जाते हैं , और प्रयास करना ही छोड़ देते हैं | यही समय आत्ममुल्यांकन का भी होता है | जो गहरे से असफलता के कारणों पर विचार करके दुबारा प्रयास करता है , वो अवश्य सफल होता है |  आपको ऐसे अनेकों सफल व्यक्तियों के उदाहरण मिल जायेंगे जिन्होंने सफलता से पहले अनेकों असफलताओं का सामना किया है | असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखें                                       सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलु हैं जो जिन्होंने प्रयास नहीं छोड़ा उन्होंने ढेरों असफलताओं का सामना करके भी सफलता पायी | जिन्होंने प्रयास ही नहीं किया वो असफल लोगों से भी ज्यादा असफल हैं क्योंकि उन्होंने कुछ नया सीखा भी नहीं जो प्रयास के दौरान सीख सकते थे | अगर आप की हिम्मत असफलता के कारण टूट रही है तो याद रखे  इन्हीं असफलता की ईटों से अपनी सफलता की नींव रखनी है |  (1) परीक्षा का रिजल्ट बालक के सम्पूर्ण जीवन का पैमाना नहीं है              स्कूल में बालक की एक वर्ष में क्या प्रगति हुई? इस बात का उल्लेख उसके परीक्षा के रिजल्ट में होता है परन्तु यह रिजल्ट इस बात की कतई गारंटी नहीं देता है कि बालक जीवन में सफल होगा या असफल? हमारा मानना है कि बालक में केवल भौतिक ज्ञान की वृद्धि हो जाये तथा उसका सामाजिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान न्यून हो जाये यह संतुलित स्थिति नहीं है। जीवन में इसी असंतुलन के कारण आगे चलकर बालक का सम्पूर्ण जीवन असफल हो सकता है। पूरे वर्ष मेहनत तथा मनोयोग से पढ़ाई करके स्कूल का रिजल्ट तो अच्छा बनाया जा सकता है परन्तु सफल जीवन तो भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों शिक्षाओं के संतुलन का योग है। (2) परीक्षा का रिजल्ट तो केवल विभिन्न विषयों के भौतिक ज्ञान का आईना मात्रः-             आज स्कूल वाले बच्चों की पढ़ाई की तैयारी इस प्रकार से कराते हैं ताकि बालक अच्छे अंकों से परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायें। माता-पिता का भी पूरा ध्यान अपने प्रिय बालक के अंकों की ओर ही होता है। समाज के लोग भी मात्र यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं कि बालक ने सम्बन्धित विषयों में कितने अंक प्राप्त किये हैं। किसी का भी इस बात की ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि बालक को सामाजिक एवं आध्यात्मिक गुणों को बाल्यावस्था से ही विकसित करना भी उतना ही आवश्यक है जितना उसको पुस्तकीय ज्ञान देना। मुझे करना है इसलिए मैं कर सकता हूँ। (3) कामयाब व्यक्ति भी अपने जीवन में कभी नाकामयाब हुए थे                           अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन 32 बार छोटे-बड़े चुनाव जीतने में नाकामयाब रहे थे। वह 33 वीं बार के प्रयास में कामयाब हुए और राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर असीन हुए। वह पूरे विश्व के सबसे लोकप्रिय अमरीका के राष्ट्रपति बने। इंग्लैण्ड के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल अपने स्कूली दिनों में एक बार भी परीक्षा में सफल नहीं रहे। वह परीक्षा में बार-बार फेल होने से कभी भी निराश नहीं हुए और बाद में अपने आत्मविश्वास के बल पर वह इंग्लैण्ड के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने। उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। किसी ने सही ही कहा है कि असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं किया गया। (4) मन के हारे हार है मन की जीते जीत :-             एडिसन बल्ब का आविष्कार करने के दौरान 10,000 बार असफल हुए थे। इसके बावजूद भी एडिसन ने आशा नहीं छोड़ी उन्होंने एक और कोशिश की और इस बार वह बल्ब का आविष्कार करने में सफल हुए। महात्मा गांधी अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान थर्ड डिवीजन में हाई स्कूल परीक्षा पास हुए थे। महात्मा गांधी अपनी मेहनत, लगन एवं ईश्वर पर अटूट विश्वास के बलबूते जीवन में एक कामयाब व्यक्ति बने और अपने जनहित के कार्यो के कारण सदा-सदा के लिए अमर हो गये। लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। (5) असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं                 हमेशा बड़ा लक्ष्य लेकर चले और अच्छी बातों का स्मरण करे। सब अच्छा ही होगा। ज्यादातर लोग बहुत सीमित दायरों में रहकर ही सोचते हैं और ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाते। जहाँ तक हो सके अपनी रूचि के अनुसार ही काम चुने क्योंकि ऐसा करने से हम उसमें अपना सौ प्रतिशत समय दे सकते हैं। हमें जीवन में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं जो घर और बाहर दोनों स्तर का हो सकता हैं। ऐसे में हमें चाहिए की हम अपना संतुलन बना के रखे। यही हमारी सफलता का आधार हैं। असफलता किसी काम को फिर से शुरू करने का मौका देती हैं। उसी काम को और भी बेहतर तरीके से किया जाये इसलिए सफलता असफलता की चिंता किये बिना पूरे मन से काम करे। (6) नए विचारों और योजनाओं से डरे नहीं              कुछ लोग लक्ष्य तो तय कर लेते हैं लेकिन उसके अनुसार काम नहीं करते। वास्तव में सफलता पाने के लिए अपने लक्ष्य के अनुसार मेहनत करना चाहिए। आपके जीवन में कई ऐसे लोग आएँगे जिनका व्यवहार आपसे विपरीत होगा। इसके लिए जरूरी हैं की आप उससे दूरी बनाकर रखे और विवादों से सदैव बचने की कोशिश करे। जब भी हम कोई काम करते हैं तो हम अपने आप से बात अवश्य करते हैं। इस समय हमें हमेशा अपनी आत्मा की आवाज सुनकर ही अपने निर्णय पर पहुँचना चाहिए। हमारा मानना है कि नए विचार हमेशा नयी क्रांति को जन्म देते हैं इसलिए विचारों के प्रवाह को रोके नहीं बल्कि मन में अच्छे और नए विचार लाये ताकि योजनाएँ भी उसी के अनुरूप बने। हमारे मन में यह भरोसा जरूर होना … Read more

ड्रग एडिक्शन की गिरफ्त में युवा – जरूरी है जागरूकता

जैसे –जैसे शाम  गहराने लगती है , बड़े पार्कों में , जहाँ ज्यादा घने पेड़ व् झाड़ियाँ हों , दो तरह के लोगों की की संख्या बढ़ने लगती है पहला “ प्रेमी युगल जो हॉस्टल , कॉलेज या कोचिंग से कुछ पल साथ बिताने के लिए बहाने बना कर आये होते हैं , और दूसरा उन किशोर बच्चों और युवाओं के   छोटे –छोटे समूह जो ड्रग्स के शिकार हैं | पार्क के किसी सुनसान कोने में किसी चिलचिलाते  कागज़ , इंजेक्शन या सिगरेट  के साथ अपनी जिंदगी धुंआ करने वाले इन बच्चों के बारे में आज  मैं बात कर रही हूँ , जिन्हें आप ने भी शायद सब से डरते छुपते नशा करते देखा होगा , परन्तु कुछ कहा नहीं होगा , क्योंकि उस समय ये कुछ कहने सुनने की मानसिक अवस्था में नहीं होते हैं |  ड्रग एडिक्शन की गिरफ्त में युवा – जरूरी है जागरूकता  अभी  कुछ दिन पहले व्हाट्स एप पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक माँ अपने बच्चे को ढूंढते हुए कूड़े के ढेर के पास जाती है | वहाँ  उसे अपने बेटे का शव मिलता है | रोती –विलाप करती माँ को उसके हाथों में एक इंजेक्शन मिलता है |   ड्रग्स ने  उसके बच्चे की जान ले ली थी | माँ के ऊपर अंगुली उठाने से पहले रुकिए … ये भी हमारी आप जैसे ही कोई माँ होगी जो अपने बच्चे को दुनिया का सबसे प्यारा बच्चा कहती होगी … पर कब कैसे ये लाडला ड्रग की गिरफ्त में आया इसकी कहानी माँ के प्यार की कमी नहीं एक साजिश थी , जिसका वो शिकार हुआ |  ड्रग्स लेने वाले बच्चों की संख्या दिनों दिन बढती जा रही है | ये बहुत दुखद है | भारत में हर साल १० हज़ार करों रुपये की हेरोईन इस्तेमाल होती है | भारत एशिया का सबसे बड़ा हेरोइन इस्तेमाल करने वाला देश है | ५० लाख से ज्यादा युवा ड्रग्स के एडिक्शन के शिकार हैं ये संख्या हर रोज बढ़ रही है | पंजाब और दिल्ली ने इनकी संख्या पूरे भारत में सबसे ज्यादा है | सबसे ज्यादा नुक्सान पंजाब को हुआ है | इस विषय पर “उड़ता पंजाब” फिल्म भी बनी थी | पाकिस्तान जो की अफीम का सबसे बड़ा उत्पादक है, वहाँ   से आने वाली अफीम को नार्कोटेरिरिज्म का नाम दिया गया है | पाकिस्तान से एक लाख की अफीम दिल्ली आते –आते एक करोंण की हो जाती है , यानी पैसा और युवा वर्ग दोनों की बर्बादी का उद्देश्य पूरा हो जाता है | ये जानते समझते हुए भी ये संख्या रोज बढ़ रही है |  क्यों होते हैं ड्रग एडिक्ट  ये ड्रग्स कुछ रुपयों से ले कर लाखों रुपयों तक की होती है | इसीलिये गरीब से लेकर अमीर तक इसके शिकार हैं | यूँ तो किसी भी एडिक्शन से निकलना मुश्किल है पर  दूसरे नशों में एडिक्ट बनने  में समय लगता है पर ड्रग्स के मामले में एक या दो डोज ही एडिक्ट बनाने के लिए पर्याप्त हैं | ड्रग्स रीहैब सेंटर्स के अनुसार  हम जब भी तकलीफ में होते हैं तो हमारा शरीर कुछ ऐसे केमिकल बनाता  है जो हमें आराम पहुचायें , घर में किसी प्रियजन की मृत्यु होने पर भी इंसान एक सीमा तक रोने चीखने के बाद खुद ही शांत पड़ जाता है , थोड़ी देर बाद फिर दर्द की लहर आती है | दरअसल ये हमारे शरीर की दर्द की प्रतिरोधक क्षमता होती है | जो हमें बचाए रखती है |  ड्रग्स की एक या दो डोज लेने के बाद ही हमारा शरीर वो केमिकल बनाना बंद कर देता है | अब जब भी मष्तिष्क को शांति या आराम चाहिए तो ड्रग्स की शरण में जाना ही पड़ेगा | ये एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें एक बार फंसने के बाद निकलना मुश्किल है | कैसे बढ़ रहे हैं ड्रग एडिक्ट   ड्रग एडिक्शन की शुरुआत केवल किसी परिचित के ये कहने से होती है , “ एक बार , बस एक बार …. और ये शिकंजा बढ़ता चला जाता है | सवाल ये है की जो खुद ड्रग्स के कुप्रभाव अपने शरीर पर झेल रहा है वो दूसरों को क्यों फँसाता है ? दरअसल उसे फ्री में ड्रग्स का लालच दिया जाता है | जो जितनों को जोड़ लेगा उनको ड्रग्स फ्री हो जायेगी | एक ड्रग एडिक्ट के लिए ड्रग्स साँसे बन जाती है और वो अपना जीवन बचाने  के लिए दूसरों का जीवन लीलने से गुरेज नहीं करता | ड्रग्स बनाने वाली कम्पनियां भी यही तो  चाहती हैं इसीलिए वो सदस्य बढ़ाने  के एवज में फ्री ड्रग का ऑफर रखतीं है | पार्कों के आस –पास आपने भी कुछ ऐसे शातिर आँखें जरूर देखी  होंगी जो शिकार ढूंढ  रहीं है पर हमें क्या ये सोच कर हम आगे बढ़ जाते हैं , पर जो चपेट में आता है वो हमारा न सही किसी दूसरे का मासूम बच्चा ही होता है |  एक बार चपेट में आने का मतलब ज्यादातर मामलों में कभी ना निकल सकना ही होता है क्योंकि जितने रीहैब सेंटर हैं वो जितने ड्रग एडिक्ट हैं की तुलना में ऊँट के मुंह में जीरा ही हैं | कैसे दूर करें  ड्रग एडिक्शन  मेरा इस पोस्ट को लिखने का मकसद किशोर और युवाओं से ये गुजारिश करना है कि कोई कुछ भी कहे एक बार ले लो , अरे अभी  तो माँ के आँचल में बैठा है , बच्चा है … बेबी , बेबी … पर अपनी ना पर अडिग रहे | ये किसी भी हालत में बड़ा बनना नहीं है | बड़ा वो है जो समझदार है , जो हित –अनहित जानता है |  दूसरे समाज  को ड्रग एडिक्ट के बारे में अपना रवैया बदलना होगा | हम सब ड्रग एडिक्ट पर एक लेबिल लगा देते हैं कि ये तो ड्रग एडिक्ट है … समाज उसे स्वीकारता नहीं तो वो फिर से उन्हीं लोगों के पास जाएगा जो ड्रग एडिक्ट हैं , कम से कम उसे वहां अपनापन तो मिलेगा |  अपने बच्चों की छोटी सी छोटी गतिविधि पर ध्यान रखें | आपके व्हाट्स एप , मोबाइल या फेसबुक लाइक से कहीं जायदा जरूरी है कि बच्चों समय दिया जाए |  जरूरी है कि … Read more

आखिर निर्णय लेने से घबराते क्यों हैं ?

      सुनिए ,  आज मीरा के घर पार्टी में जाना है , मैं कौन सी साड़ी पहनूँ | ओह , मेनू कार्ड में इतनी डिशेज , ” आप ही आर्डर कर दो ना , कौन सी सब्जी  बनाऊं …. आलू टमाटर या गोभी आलू | देखने में ये एक पत्नी की बड़ी प्यार भरी बातें लग सकती हैं …. परन्तु इसके पीछे अक्सर निर्णय  न ले पाने की भावना छिपी होती है | सदियों से औरतों को इसी सांचे में ढला गया है कि उनके हिस्से का निर्णय कोई और लेता है और वो बस उस पर मोहर लगाती हैं | इसको Decidophobia कहते हैं | १९७३ में वाल्टर कॉफ़मेन ने इसके ऊपर एक किताब भी लिखी थी | ये एक मनोवैज्ञानिक रोग है जिसमें व्यक्ति छोटे से छोटे DECISION लेने में अत्यधिक चिंता , तनाव , बेचैनी से गुज़रता है | आखिर  निर्णय लेने से घबराते  क्यों हैं ? / How-to-overcome-decidophobia-in-hindi मेरा नाम शोभा है | मेरी उम्र ७२ वर्ष है | मेरे चार बच्चे हैं | चारों  अपनी गृहस्थी में मस्त हैं | मैं -नाती पोते वाली,  दादी और नानी हूँ | मेरी जिन्दगी का तीन चौथाई हिस्सा रसोई में कटा है | परन्तु अभी हाल ये है कि मैं सब्जी काटती हूँ तो बहु से पूछती हूँ …. ” भिंडी कितनी बड़ी काटू , चावल दो बार धोऊँ  या तीन बार , देखो दाल तुम्हारे मन की घुट गयी है या नहीं |  बहु अपना काम छोड़ कर आती है और बताती है , ” नहीं मम्मी , नहीं ये थोडा छोटा करिए , दाल थोड़ी और घोंट लीजिये आदि -आदि | आप सोच रहे होंगे कि मैं अल्जाइमर्स से ग्रस्त हूँ या मेरी बहु बहुत ख़राब है , जो अपनी ही मर्जी का काम करवाती है | परन्तु ये दोनों ही उत्तर सही नहीं हैं | मेरी एक ही इच्छा रहती है कि मैं घरेलू काम में जो भी बहु को सहयोग दूँ वो उसके मन का हो | आखिरकार अब वो मालकिन है ना …. उसको पसंद न आये तो काम का फायदा ही क्या ? पर ऐसा इस बुढापे में ही नहीं हुआ है | बरसों से मेरी यही आदत रही है … शायद जब से होश संभाला तब से | बहुत पीछे बचपन में जाती हूँ तो जो पिताजी कहते थे वही  मुझे करना था | पिताजी ने कहा साड़ी पहनने लगो , मैंने साड़ी  पहनना शुरू किया | पिताजी ने कहा, ” अब तुम बड़ी हो गयी हो , आगे की पढाई नहीं करनी है” | मैंने उनकी बात मान ली | शादी करनी है … कर ली | माँ ने समझाया जो सास कहेगी वही करना है अब वो घर ही तुम्हारा है | मैंने मान लिया | मैं वही करती रही जो सब कहते रहे | अच्छी लडकियां ऐसी ही तो होती हैं …. लडकियाँ पैदा होती हैं …. अच्छी लडकियां बनायीं जाती हैं |  आप सोच रहे होंगे , आज इतने वर्ष बाद मैं आपसे ये सब क्यों बांटना चाहती हूँ ? दरअसल बात मेरी पोती की है | कल मेरी बारह वर्षीय पोती जो अपने माता -पिता के साथ दूसरे शहर में रहती है  आई थी वो मेरे बेटे के साथ बाज़ार जाने की जिद कर रही थी , मैं भी साथ चली गयी | उसे बालों के क्लिप लेने थे | उसने अपने पापा से पूछा , ” पापा ये वाला लूँ या ये वाला ?” …. ओह बेटा ये लाल रंग का तो कितना बुरा लग रहा है , पीला वाला लो | और उसने झट से पीला वाला ले लिया | बात छोटी सी है , परन्तु मुझे अन्दर तक हिला गयी | ये शुरुआत है मुझ जैसी बनने की …. जिसने अपनी जिन्दगी का कोई निर्णय कभी खुद लिया ही नहीं , क्योंकि मैंने कभी निर्णय लेना सीखा ही नहीं | कभी जरूरत ही नहीं हुई | धीरे-धीरे निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म हो गयी | वो कहते हैं न जिस मांस पेशी  को  इस्तेमाल ना करो वो  कमजोर हो जाती है | मेरी निर्णय  लेने की क्षमता खत्म हो गयी थी | मैंने पूरी जिंदगी दूसरों के मुताबिक़ चलाई |  मेरी जिंदगी तो कट गयी पर ये आज भी बच्चों के साथ हो रहा है …. खासकर बच्चियों के साथ , उनके निर्णय माता -पिता लेते हैं और वो निर्णय लेना सीख ही नहीं  पातीं | जीवन में जब भी विपरीत परिस्थिति आती है वो दूसरों का मुंह देखती हैं, कुछ इस तरह से  राय माँगती है कि उनके हिस्से का  निर्णय कोई और ले ले | लड़के बड़े होते ही विद्रोह कर देते हैं इसलिए वो अपना निर्णय लेने लग जाते हैं | निर्णय न  लेने की क्षमता के लक्षण  1) प्रयास रहता है की उन्हें निर्णय न लेना पड़े , इसलिए विमर्श के स्थान से हट जाते हैं | 2) चाहते हैं उनका निर्णय कोई दूसरा ले | 3)निर्णय लेने की अवस्था में मनोवैज्ञानिक दवाब कम करने के लिए कुंडली , टैरो कार्ड या ऐसे ही किसी साधन का प्रयोग करते हैं | 4)छोटे से छोटा निर्णय लेते समय एंग्जायटी के एटैक पड़ते हैं 5) रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल होती है | माता -पिता बच्चों को निर्णय लेना सिखाएं  आज जमाना बदल गया है , बच्चों को बाहर निकलना है , लड़कियों को भी नौकरी करनी है …. इसी लिए तो शिक्षा दे रहे हैं ना आप सब | लेकिन उन्हें  लड़की  होने के कारण या अधिक लाड़ -दुलार के कारण आप निर्णय लेना नहीं सिखा रहे हैं तो आप उनका बहुत अहित कर रहे हैं | जब वो नौकरी करेंगी तो ५० समस्याओं को उनको खुद ही हल करना है | आप हर समय वहां नहीं हो सकते | मेरी माता पिता से मेरी ये गुजारिश है कि अपने बच्चों को बचपन से ही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें | छोटी -छोटी बात पर उनके निर्णय को प्रात्साहित करें , जिससे भविष्य में उन्हें निर्णय लेने में डर  ना लगे | अगर उनका कोई निर्णय गलत  भी निकले तो यह कहने के स्थान पर कि मुझे पता था ऐसा ही होगा ये कहें कि कोई  … Read more

जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे

जिंदगी के छोटे –छोटे सूत्र कहीं ढूँढने नहीं पड़ते वो हमारे आस –पास ही होते हैं पर हम उन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं | ऐसे ही दो सूत्र मुझे तब मिले जब मैं मिताली के घर गयी | ये सूत्र था … जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे  मिताली के दो बच्चे हैं एक क्लास फर्स्ट में और एक क्लास फिफ्थ में | दोनों बच्चे ड्राइंग कर रहे थे | उसकी बेटी सान्या जो छोटी है अपनी आर्ट बुक में डॉट्स जोड़ कर कोई चित्र बना रही थी | और बेटा राघव ड्राइंग फ़ाइल में ब्रश से पेंटिंग कर रहा था | जहाँ बेटी हर मोड़ पर उछल  रही थी क्योंकि उसे पता नहीं था की क्या बनने वाला है …  उसे बस इतना पता था की उसे बनाना है कुछ भी , इसलए बनाते हुए आनंद ले रही थी | गा रही थी हँस  रही थी | बेटा बड़ा था उसे पता था कि उसे क्या बनाना है | वो भी आनंद ले रहा था | लेकिन जब भी उसे अहसास होता कि कुछ मन का नहीं हो रहा है वो दो –तीन कदम पीछे लौटता दूर से देखता , सोचता , “ अरे ये रंग तो ठीक नहीं है , इसकी जगह ये लगा दे , ये लकीर थोड़ी सीधी  कर दी जाए , यहाँ कुछ बदल दिया जाए | फिर जा कर उसमें रंग भरने लगता बच्चे रंग भरते रहे और मैं जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र ले कर घर वापस आ गयी | जीवन एक  कैनवास जैसा ही तो है जिसमें हमें रंग भरने हैं पर इस रंग भरने में इतना तनाव नहीं भर लेना चाहिए कि रंग भरने का मजा ही चला जाए या बाहर से रंग भरते हुए हम अन्दर से इतने बेरंग होते जाए कि अपने से ही डर लगने लगे | चित्र बनाना है उस बच्ची की तरह हँसते हुए , गाते हुए ,हर कदम पर इस कौतुहल के साथ कि देखें आगे क्या बनने वाला है  पर क्योंकि अब हम बड़े हो गए हैं तो दो कदम पीछे हट कर देख सकते हैं , “ अरे ये गलती हो गयी , यहाँ का रंग तो छूट ही गया , यहाँ ये रंग कर दें तो बेहतर होगा | पर क्या हम इस सुविधा का लाभ उठाते हैं ?  शायद नहीं , आगे आगे और आगे बढ़ने का दवाब में जल्दी –जल्दी रंग भरने में कई बार हम देख ही नहीं पाते कि एक रंग ने बाकी रंगों को दबा दिया है | जीवन भी एक रंग हो गया और सफ़र का आनंद भी नहीं मिला |पीछे हटने में कोई बुराई नहीं है पर मुश्किल ये है कि हम पीछे हट कर देखना नहीं चाहते हैं | जो बन गया , जैसा बन गया उसी पर रंग पोतते जाना है | क्या जरूरी नहीं है हम दो कदम पीछे हट कर उसी समय जिंदगी को सुधार लें | भले ही आप का चित्र सबसे पहले न बन पाए पर यकीनन चित्र उसी का अच्छा बनेगा जो दो कदम आगे एक कदम पीछे में विश्वास रखता है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …  अपनी याददाश्त व् एकाग्रता को कैसे बढाएं समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल वो 22 दिन इतना प्रैक्टिकल होना भी ठीक नहीं आपको  लेख “ जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-life, Be positive, success

जीवन के स्पीड ब्रेकर

मुझे एक विवाह समारोह में जाना है | कार आगे बढ़ रही है | और मेरे विचार मुझे स्मृतियों में पीछे घसीट रहे हैं | अपनी कम्पनी को  आज सरपट दौड़ते देख कर  अपार हर्ष हो रहा है | एक यात्रा जो करीब डेढ़ वर्ष पूर्व शुरू की थी वो निरंतर आगे बढ़ रही है | जिस तरह से ग्राहकों   की प्रतिक्रिया  प्राप्त हो रही है वो बहुत उत्साह बढाने  वाली है | परन्तु ऐसा हमेशा से नहीं था | इसके लिए मुझे अपनी नकारात्मकता से सकारात्मकता की और बढ़ना पड़ा |  जीवन के स्पीड ब्रेकर  दरअसल ये सकारात्मक विचार ही जीवन का आधार हैं | जिसको पढ़ कर न जाने कितने लोगों ने अपने जीवन की प्रतिकूल परिस्तिथियों पर विजय पायी | मैंने ऐसे लोगों का एक ग्रुप बनाया जो एक दूसरे को प्रेरणा दे सकें | अक्सर लोग मिलने पर या फोन पर अपने सफलता के किस्से सुनाते  हैं | जिससे एक दूसरे का मनोबल बढता है | मैं अनगिनत किस्सों  की स्मृतियों में डूबा हुआ था | तभी सामने स्पीड ब्रेकर आ गया | ड्राईवर ने गाडी थोड़ी धीमी कर ली | स्पीड ब्रेकर पार करते ही उसने फिर से स्पीड बढा ली |  मेरे विचारों की तन्द्रा टूटी और एक नयी विचार माला ने जन्म लिया | हमारे जीवन में आने वाली तमाम विपरीत परिस्तिथियाँ स्पीड ब्रेकर ही तो हैं |          अक्सर लोग सोचते हैं की सफलता तेज दौड़ने का नाम है | जीवन एक रेस है | जो जीतता है उसी का नाम होता है द्वितीय आने वाले को कभी मंजिल नहीं मिलती | उनमें से कई तेज दौड़ते हुए स्पीड ब्रेकर (जीवन की विषम परिस्तिथियों)  से टकराकर गिर जाते हैं | कुछ लोग स्पीड ब्रेकर के आते ही हिम्मत हार जाते हैं | सफ़र रोक कर वापस लौट जाते हैं | गुमनामियों के अँधेरे में खो जाते हैं | पर जिंदगी की गाडी का कुशल ड्राइवर  वही है जो इन स्पीड ब्रेकर को पार करना जानता है | वो जानता है की  स्पीड ब्रेकर से न तो सीधे मुँह टकरा जाना है न वापस लौट जाना है , वर्ना कभी सफ़र पूरा नहीं होगा | यहाँ बस एक ही नियम काम करता है ,गति धीमी करो पर  “ बस चलते जाओ “ |  जीवन है तो बाधाएं आएँगी | कहीं रफ़्तार धीमी होगी , कहीं तेज गाडी दौड़ेगी | पर रुकना नहीं है चलते जाना है |        स्पीड ब्रेकर एक सच्चाई हैं , एक जरूरत है | अगर यह न हों तो बेहिसाब दौड़ती गाड़ियों के न जाने कितनी दुर्घटनायें होंगी | इसी प्रकार हमें कुशल ड्राइवर बनाने , आत्मनियंत्रण सिखाने , व् विवेक का महत्व  समझाने के लिए जीवन में बाधाएं भी जरूरी हैं |  जिस तरह से स्पीड ब्रेकर अलग –अलग आकार के होते हैं वैसे ही जीवन की विषम परिस्तिथियाँ अलग –अलग तरह की होती हैं |कुछ आसानी से पार हो जाते है कुछ को पार करने में समय अधिक लगता है |  कुछ देर के लिए आप की गाडी की स्पीड भले ही कम हो हो जाए पर  जीवन की गाडी चलाते हुए हर स्पीड ब्रेकर के बाद उस के ऊपर से गाडी पार करने का अलग आनंद है | कहीं न कहीं ये जीवन को रोमांचक  बनाते हैं |  अगर आप एक बार इनको पार करना सीख लेते हैं तो कभी भी नए स्पीड ब्रेकर को देख कर आप का हौसला टूटता नहीं है | अक्षत शुक्ला  यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? सपने देखना भी एक हुनर है अपनी याददाश्त व् एकाग्रता को कैसे बढाएं समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको  लेख “  जीवन के स्पीड ब्रेकर  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under- Speed breaker, Positive thinking, Success, Be Positive

मैं , महेंद्र सिंह धोनी , क्रिकेट और बच्चों का कैरियर

अगर आप जीवन में कुछ करना चाहते हैं , कुछ बनना चाहते हैं तो आपको बहुत पढाई करनी होगी | बचपन में ऐसी  ही सोच –समझ ज्यादातर लोगों की तरह मेरे दिमाग में भी थी | परन्तु क्रिकेट के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साहस , लगन और कठोर परिश्रम ने मेरी सोच को बदल दिया | मैं , महेंद्र सिंह धोनी , क्रिकेट और बच्चों का कैरियर  अभी हाल में ही फुटबॉल का ‘वर्ल्ड कप “ खत्म हुआ | आज खेलों के प्रति पैशन बढ़ रहा है | न सिर्फ देखने का बल्कि खेलने का भी | क्योंकि अब सब को समझ आ गया है कि खेल हो नृत्य हो , या कोई और कला … हर किसी में कैरियर बन सकता है धन आ सकता है | ऐसे में मुझे वो समय याद आता है जब नानाजी हम लोगों को रटाया करते थे , “खेलोगे कूदोगे तो होगे ख़राब , पढोगे लिखोगे तो बनोगे नबाब “ धीरे –धीरे ये बात दिमाग में बैठती गयी  या नवाब बनने के लालच में कूदने वाली  रस्सी , खो –खो , विष अमृत , पोषम पा सब को छोड़कर किताबो से दोस्ती कर ली |  खेलोगे कूदोगे होगे खराब   खेलोगे कूदोगे होगे खराब की विचारधारा के साथ हम बड़े होने लगे | पति भी (IIT, कानपुर  से ) पढ़ाकू किस्म के जीव मिले | ये अलग बात है कि उनकी रूचि साइंस और टेकनोलोजी विषय में रहती है और हम विज्ञानं से लेकर कर साहित्य , सुगम साहित्य , असाहित्य कुछ भी पढ़ डालते | पढने की आदत का आलम ये है कि आज़ भी अगर घर लौटने  में थोड़ी देर हो जाए तो बच्चे मजाक बनाते है कि मम्मी लगता है मूंगफली वाले ने अख़बार का बना जो ठोंगा दिया था आप उसकी कहानी पढ़ने लगी | उनकी बात गलत भी नहीं है | अगर कुछ लिखा होता है तो हम पढ़ते जरूर हैं | खैर बात उन दिनों की हो रही है जब हम सिर्फ पढाई को ही अच्छा समझते थे | ऐसा नहीं है कि खेल और खिलाड़ियों के बारे में हम जानते नहीं थे | कई मैच भी देखे थे | हमें वर्ल्ड कप का वो  फाइनल की भी याद है जिसमें कपिल देव की कप्तानी में भारत ने पहला वर्ल्ड कप जीता था | हम उस समय छोटे थे , कई पड़ोसी भी हमारे घर आये हुए थे और हर बॉल  में हम लोग हाथ जोड़ रहे थे कि इस में छक्का पड़ जाए | काफी समय तक क्रिकेट में हमारी रूचि भी इसी लिए रही कि इसमें हमारा देश जीतता है | खिलाड़ियों के प्रति श्रद्धा  भाव था पर एक खिलाड़ी बनने में कितनी संघर्ष और कितनी मेहनत है इस बारे में हम सोचते नहीं थे | महेंद्र सिंह धोनी के घर के सामने मेरा फ़्लैट  बात  तब की है, जब  शादी के तुरंत बाद हम पति के साथ रांची “ श्यामली कॉलोनी “ में रहने गए | नयी गृहस्थी  थी ज्यादा काम था नहीं , उस पर सुबह जल्दी उठने की आदत …. पति की नींद न खुल जाए ये सोच  सीधे बालकनी की शरण में ही जाते | सामने महेंद्र सिंह धोनी का फ़्लैट था | उस समय वो नव-युवा थे और हम लोगों की जान –पहचान नहीं हुई थी | मैं देखा करती थी कि सुबह चार-पाँच  बजे उसके दोस्त बुलाने आ जाते और वो बैट  ले कर निकल पड़ते  | कभी –कभी उसकी माँ और बहन भी नीचे छोड़ने आती , पिताजी नहीं आते थे | क्योंकि मैं पढाई को ही ऊपर रखती थी और लगता था अच्छा कैरियर बनाने के लिए पढना बहुत जरूरी है,  इसलिए मेरे दिमाग में बस एक ही बात आती ये लड़का बिलकुल पढ़ता  नहीं है , बस खेलता रहता है जरूर फेल हो जाएगा | तुरंत मेरी  कथा -बुद्धि सक्रिय हो जाती , पिताजी नहीं आते हैं , जरूर वो डाँटते होगे पर माँ और बहन पक्ष ले लेती होंगीं | अक्सर ऐसा ही होता है , माँ के लाड़ से बच्चे बिगड़ जाते हैं | एक दिन यही बात अपने पति से कह दी , “ ये सामने वालों का लड़का बिलकुल पढता –लिखता नहीं है बस खेलता रहता है , जरूर फेल हो जाएगा | पति हंसने लगे और बोले , “ अरे वो रणजी में खेलता है , पूरे रांची को उस पर नाज़ है , इंडियन टीम में आ सकता है | उस समय से धोनी को देखने का दृष्टिकोण थोडा बदलने लगा | थोड़ी बातचीत भी हुई | एक खिलाड़ी को बनने में कितना संघर्ष करना पड़ता है यह बारीकी से देखने और समझने का मौका मिला | अब सुबह चार –साढ़े  चार बजे बैट ले कर निकलता  धोनी मुझे अर्जुन से कम न लगता | उफ़ , हर क्षेत्र में कितनी मेहनत  है | मेरा नजरिया बदलने लगा | मुझे लगने लगा खेल हो सिनेमा हो , कोई अन्य  कला हो , व्यापार हो या पढाई …. सब में सफलता के लिए कुछ बेसिक नियम लगते हैं वो हैं … जूनून, कठोर परिश्रम , असफलता को झटक कर फिर से मैदान में उतरना , और लेज़र शार्प फोकस | बच्चों को न उतारे प्रतिशत की रेस में  आज हम सब जानते हैं कि पढाई के प्रतिशत के अतिरिक्त भी बहुत सारी  संभावनाएं है | फिर भी हम सब ने अपने बच्चों को प्रतिशत की रेस में उतार दिया है बच्चा लायक है नहीं लायक है , दौड़ सकता है नहीं दौड़ सकता है पर रेस में भागने को विवश है | मेरा नज़रिया धोनी की वजह से बदला था हालांकि जब तक धोनी इंडियन टीम में सिलेक्ट हुआ हम राँची  छोड़ चुके थे | फिर और लोगों की सफलता पर भी गौर किया | दरअसल हर बच्चे में एक अलग तरह की प्रतिभा होती है | कई बार माता –पिता यहाँ तक कि बच्चे भी उससे अनभिज्ञ रहते हैं | हर बच्चे का कुछ पैशन हो या ये समय पर समझ आ जाए ये जरूरी भी नहीं है , इसलिए भीड़ कुछ ख़ास प्रतियोगी परीक्षाओं की तरफ ही भागती है | यहाँ पूरा दोष माता -पिता को भी … Read more

क्या आप भी मल्टी टेलेंटेड हैं ?

मल्टी   टेलेंटेड होना बहुत ख़ुशी की बात है पर मल्टी टेलेंटेड लोग सफल नहीं होते |  उनसे कम टेलेंटेड लोग ज्यादा सफल हो जाते हैं | ऐसा क्यों होता है ? अगर आप भी मालती टेलेंटेड हैं और सफलता के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो ये लेख आपके लिए है | क्या आप भी मल्टी टेलेंटेड हैं ?                          मन्नू एक प्रतिभाशाली लड़की है | ईश्वर जब प्रतिभाएं बाँट रहा था तो  उसकी तरफ न जाने क्यों ज्यादा मेहरबान हो गया | मन्नू बहुत अच्छा गाती है , जब सुर लगाती है तो लगता है कि सरस्वती साक्षात् उसके गले में प्रवेश कर गयीं है , सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते |  जब चित्र बनती तो चित्र बोल पड़ते | अभी कुछ दिन पहले गुलाब का फूल बनाया था , ऐसा लग रहा था ताज़ा डाली पर खिला है , बस अभी तोड़ लें | इसके आलावा मन्नू का फेशन सेन्स भी जबरदस्त है | कोई कपडा मिले उसे नया लुक कैसे देना है ये उसके दिमाग में तुरंत आ जाता और फिर शुरू हो जाता कपडे  को उस आकार में डालने की कवायद |   जो भी उसके सिले हुए कपडे देखता वो कह उठता … मन्नू तुम से बेहतर फैशन डिजाइनर तो कोई हो ही नहीं सकता |                                                      अक्सर लोग मन्नू से रश्क करते , उन्हें लगता मन्नू इतनी प्रतिभाशाली है , वो तो अपनी प्रतिभा के बलबूते पर खूब नाम और पैसा कमा लेगी | ऐसे बातें सुन कर मन्नू के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते थे | उसे लगता था वो बड़ी होकर अपने हर हुनर  को प्रोफेशन बनाएगी | जैसे ही उसने 12 th किया तो उसने गायकी में आगे बढ़ने की सोची  | शुरू में तो उसे बहुत अच्छा लगा | लेकिन धीरे -धीरे उसे लगने लगा कि ये क्षेत्र उसके लिए नहीं है | घंटों रियाज के कारण वो पेंटिंग या फैशन डिजाइनिंग तो कर ही नहीं पाती | उसका मन उसे  पेंटिंग की और खींचने लगा | कुछ दिन पेंटिंग के बाद भी वो बोर हो गयी उसे लगा इससे तो अच्छा फैशन  डिजाइनिंग  थी | उसने फिर अपना कोर्स बदला और फैशन डिज़ानिंग में आ गयी |  ये सब करते -करते चार साल बीत गए थे | मन्नू  की सहेलियाँ जॉब करने लगीं थीं | कुछ जो उससे कम अच्छा गाती या , पेंटिंग करती थीं उन्होंने भी कहीं न कहीं पैर जमा लिए थे , वहीँ मन्नू एक कोर्स से दूसरे कोर्स की और भटक रही थी | मन्नू अवसाद से घिर गयी | उसे लगा वो जीवन में कुछ  नहीं कर पाएगी | एक  मल्टी टेलेंटेड लड़की जिससे बहुत आशाएं थी … कुछ न कर सकी | ये बात सिर्फ मन्नू की ही नहीं है …. बहुत सारे प्रतिभाशाली लोग अपनी तमाम प्रतिभाओं में से चुन नहीं पाते हैं कि वो किसे अपना कैरियर बनाएं |  वो इधर से उधर भटकते रहते हैं लिहाजा किसी चीज में सफल नहीं होते हैं , और अवसाद का शिकार होते हैं | इससे बचने के लिए मल्टी टेलेंटेड लोगों को शुरू से ही बहुत ध्यान देना होता है| चुनिए वो गुण जिसे आपको कैरियर बनाना है –                                               माना की आप के पास कई तरह की प्रतिभाएं हैं पर आपको उनमें से एक चुनना हो होगा | ये काम बचपन में जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा  ताकि आप उस विधा में महारथ हासिल कर सकें | अब मान लीजिये  कोई लड़की है जो इंजीनियर बनना चाहती है व् उसे खाना बनाने का भी बहुत शौक है तो वो  एक शेफ व् इंजीनियर दोनों नहीं बन सकती | उसे बचपन में ही तय करना होगा कि दोनों प्रतिभाओं में से उसे किसे प्रोफेशन बनाना है और किसे हॉबी | प्रोफेशन वो है जिसे हम रोज ८ से १० घंटे आराम से कर सकते हैं | ऐसा नहीं है कि जिसे हमने प्रोफेशन के लिए चुना है  उसमें हम ऊबते नहीं है …. ऊबते हैं पर बनस्पत कम ऊबते हैं | हॉबी वो है जिसे करने में हमें अच्छा लगता है पर उसे रोज घंटों नहीं कर सकते | जैसे लेखन मेरा प्रोफेशन  है और  बुनाई  मेरी हॉबी या टीचिंग मेरा प्रोफेशन है और लेखन मेरी हॉबी | एक लक्ष्य निर्धारित कर के उसे निखारिये                                  किसी भी क्षेत्र में ज्ञान असीमित है | इसलिए जरूरी है कि अप एक लक्ष्य निर्धारित करके उसे निखारने का प्रयास करें | जैसे  आपने गायन को प्रोफेशन के लिए चुना है तो आप निर्धारित करिए कि आप कम से कम रोज चार घंटे अभ्यास करेंगे | इंजिनीयरिंग को चुना है तो रोज चार घंटे गणित व् विज्ञानं पढ़िए | आप जितनी गहराई में जायेंगे उतना स्पष्ट होते जायेंगे | अर्जुन ने हर रोज तीर चलाने का ही अभ्यास किया था … भाला फेंकने व् गदा चलाने का  अभ्यास उतना ही किया जितना जरूरी था पर तीर चलाने का अभ्यास उसने रात में जग -जग कर किया , क्योंकि उसे धनुर्धर बनना था | आप को भी जो बनना है पहला फोकस उसी पर होना चाहिए | जैसे कि कोई अपना परिचय देता है कि , ” मैं एक डॉक्टर हूँ , पर मैं लिखता भी हूँ , मेरे दो उपन्यास आ चुके हैं | अपने प्रोफेशन की गहराई में एक छोटा क्षेत्र चुनिए                                                जब आपने ये निर्णय कर लिया है कि आपको क्या करना है या कौन सा प्रोफेशन चुनना है तो उसकी गहराई में जाकर  उसका एक हिस्सा चुनिए | याद रखिये लेजर शार्प फोकस हीरे को काट  देता है | इस लेजर शार्प फोकस के … Read more