सबरीमाला -मंदिर –जड़ों को पर प्रहार करने से पहले जरा सोचें
Add caption केरल के सबरीमाला क प्रसिद्द तीर्थ स्थान है |सबरीमाला का नाम महान भक्त शबरी के नाम पर है जिसने प्रेम व् भक्ति के वशीभूत हो कर प्रभु राम को झूठे बेर खिलाये थे | यहीं पर अयप्पा स्वामी का विश्व प्रसिद्द मंदिर है | इस मंदिर में ब्रह्मचारी व्रत का पालन करने वाले हरि और हर के पुत्र अयप्पा स्वामी की पूजा होती है | लाखों भक्त यहाँ पूजा -अर्चना के लिए आते हैं | आइये जाने सबरीमाला मंदिर के बारे में सबरी माला का मंदिर चारों तरफ से पहाड़ियों से पश्चिमी घाट की पर्वत श्रृंखला सहाद्री घिरा हुआ है | घने जंगलों , ऊँची -ऊँची पहाड़ियों और जंगली जानवरों के बीच से होते हुए यहाँ जाना होता है | इस लिए यहाँ साल भर कोई नहीं जाता | यहाँ जाने का खास मौसम होता है | मंदिर ९१४ किलोमीटर की ऊंचाई पर है | जो लोग यहाँ आते हैं उन्हें ४१ दिन तक कठिन साधना व्रह्तम से गुज़ारना होता है | जिसमें उन्हें पूरी तरह से सात्विक व् शुद्ध रहना होता है | तामसिक भोजन , काम , क्रोध , मोह का त्याग कर ब्रह्मचारी व्रत का पालन करना होता है | इस मंदिर के द्वार मलयालम पंचांग के पहले पांच दिनों यानी विशु माह (अप्रैल ) में खोले जाते हैं | १५ नवम्बर मंडलम और १४ जनवरी का मकर विल्क्कू ये इसके प्रमुख त्यौहार हैं |बताया जाता है कि मकर संक्रांति की रात घने अँधेरे में रह -रह कर एक रोशिनी दिखयी देती है जिसे मकर विल्क्कू कहते हैं , इसके साथ कुछ आवाज़ भी आती है | इस के दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है | मान्यता है कि ये देवज्योति भगवान् जलाते हैं | जैसा की हम सब जानते हैं कि दक्षिण में शैव व् वैष्णव भक्तों के बीच अक्सर युद्ध होते रहते थे | अयप्पा ही वो भगवान् हैं जीने कारण दोनों समुदायों में एकता स्थापित हुई | इसलिए यहाँ हर जाति धर्म के लोग जा सकते हैं | १८ पावन सीढियां मंदिर में दर्शन करने के लिए १८ पावन सीडियों कोपार करना पड़ता है | पहली पांच सीढियाँ पांच इंदियों को वश में करने का प्रतीक हैं | बाद को आठ मानवीय भावनाओं की प्रतीक हैं | फिर थीं सीडियां मानवीय गुण और अंतिम दो ज्ञान और अज्ञान की प्रतीक हैं | श्रद्धालु सर पर पोटली रख कर जाते हैं जिसमें नैवैद्ध ( भगवान् को लगाया जाने वाला भोग ) होता है | जिहें पुजारी भवान को सपर्श करा कर वापस कर देता है | कौन हैं भगवान् अयप्पा भगवान् अयप्पा हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव के पुत्र हैं | मान्यता के अनुसार जब भगवान् विष्णु ने भस्मासुर राक्षस से शिव भगवान् को बचने के लिए मोहिनी रूप रखा था तब भस्मासुर के भस्म हो जाने के बाद शिव और विष्णु की शक्तियों के मिलन से अयप्पा का जन्म हुआ | उनके जन्म के पीछे एक दैवीय उद्देश्य था | दरअसल उस समय उस इलाके में एक राक्षसी मलिकपुरात्मा का आतंक था | उसे वरदान प्राप्त था कि वो केवल हरि और हर के पुत्र से ही मारी जायेगी | भगवान् अयप्पा ने उससे युद्ध किया और उसे परास्त किया | परास्त होने के बाद वो राक्षसी एक साधारण युवती में बदल गयी | वो साधारण युवती भगवान् अयप्पा पर मोहित हो उन्हें प्रेम करने लगी | उसने अयप्पा से विवाह करने की इच्छा जाहिर की | अयप्पा ने उन्हें बताया कि उन्होंने बरह्मचारी होने का संकल्प लिया है और उनका जन्म भक्तों की कामनाएं पूर्ण करने के लिए हुआ है, परन्तु युवती नहीं मानी, उसने संकल्प लिया कि जब तक अयप्पा उसे नहीं अपनाएंगे वो कुवारी रहेगी | अंत में उसके प्रेम व् त्याग को देखकर अयप्पा ने उससे वादा किया कि वो पहले तो अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे , जब नए भक्त आना बंद हो जायेंगे तब वो उसे अपनाएंगे | कहा जाता है कि तबसे वो वहीँ प्रतीक्षा कर रही है | मुख्य मंदिर के मार्ग में एक उसका भी कक्ष पड़ता है जहाँ प्रतीक्षारत मलिकपुरात्मा रहती हैं | स्त्रियों का प्रवेश निषेध उसके प्रेम को सम्मान देने के लिए किया गया है , क्योंकि अयप्पा ने कसम खायी थी कि वो तब तक किसी अन्य महिला से नहीं मिलेंगे | अयप्पा की अन्य कथा एक अन्य कथा के अनुसार अयप्पा एक राजकुमार थे उन्होंने एक अरब वावर से अपने राज्य की रक्षा की थी | बाद में सब कुछ त्याग कर संन्यास ले लिया , उनके सन्यास में महिलाओं से ना मिलना भी शामिल था | बाद में वावर उनका भक्त हो गया, और उसने संकल्प लिया की वो हर हाल में उस आश्रम की शुचिता बना कर रखेगा और वहां आने वाले भक्तों की रक्षा करेगा | इसी कारण महिलाओं को अभी भी मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है | सबरीमाला और महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा सबरीमाला मंदिर मंदिर आजकल चर्चा में है | मंदिर में १० से ५० वर्ष की आयु की महिलाओं के प्रवेश प्रतिबंधित है | सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी महिलाओं के प्रवेश न करने देने के कारण इसकी चर्चा और बढ़ गयी | महिलाओं में खासा रोष है, क्योंकि उन्होंने इसे महिलाओं के ऋतु चक्र से जोड़ कर देखा , प्रचार भी ऐसा ही हुआ | महिलाओं का रोष स्वाभाविक भी है क्योंकि जिस रक्त और कोख का सहारा भगवान् भी जन्म लेने के लिए करते हैं ये सरासर उसका अपमान है | बात सही है | मंदिर में प्रवेश की मांग करने वाली ज्यादातर महिलाएं इस मंदिर और उसकी मान्यताओं से परिचित नहीं हैं | सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा की हिन्दू धर्म में मंदिर में महिलाओं का प्रवेश निषेध नहीं है | महिलाएं सामाजिक मान्यता के चलते मासिक के दिनों में मंदिर में प्रवेश नहीं करती हैं, अब जब की महिलाओं द्वारा खुद को साफ सुथरा रखने के तरीके मौजूद हैं तो वे स्वेक्षा से ये निर्णय लें सकती हैं कि वो मंदिर में जाए … Read more