रेगिस्तान में फूल

रेगिस्तान में फूल

जीवन के मौसम कब बदल जाएँ कहा नहीं जा सकता | कभी प्रेम की बारिशों से भीगता जीवन शुष्क रेगिस्तान में बदल जाए, पर कहीं ठहर जाना, मनुष्य की वृत्ति भले ही हो जीवन की नहीं | आइए पढ़ें बारिशों के बाद एक ऐसे ही रेगिस्तान में ठहरे जीवन की कहानी .. रेगिस्तान में फूल … Read more

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मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा

फोटो क्रेडिट -आउटलुक इंडिया .कॉम गाँधी जी आज भी प्रासंगिक है | गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही सशक्त है | हम ही उन पर नहीं चलना चाहते | पर एक नन्ही बच्ची मुन्नी ने उन पर चल कर कैसे अपने अधिकार को प्राप्त किया आइये जाने इस काव्य कथा से … मुन्नी … Read more

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शुक्र मनाओ

शुक्र मनाओ शुक्र मनाओ कि आज तुम्हारी पूजा सफल हुई बेटी लौट आई है स्कूल से जहाँ टाफी -चॉकलेट का लालच देकर अ आ … इ ई सिखाते हुए किसी टीचर ने नहीं खेला उसके साथ बड़ों वाला ‘खेल ‘ नहीं लगाये हाथ उसको यहाँ -वहाँ शुक्र मानों की वो खेल रही है आज भी … Read more

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ब्रांडेड का बुखार

 सिर्फ ऋतुएं ही नहीं बदलती | ऋतुओ की तरह जमाने भी बदलते हैं | यह चक्र यूँहीं चलता रहता है | पुराने से नया , नए से और नया , वगैरह –वगैरह | मुझे याद आ रहा है हेमामालिनी द्वारा पर्दे पर अभिनीत “ नया जमाना “मूवी  का पुराना गाना “ नया जमाना आएगा …. … Read more

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फिर से रंग लो जीवन

सुनो सखी , उठो बिखरे सपनों से बाहर एक नयी शुरुआत करो किस बात का खामियाजा भर रही हो शायद … मन ही मन सुबक रही हो कालिख भरी रात तो बीत ही चुकी नयी धूप , नया सवेरा पेंड़ों पर चहकते पंछियों का डेरा उमंग से भरे फूल देख रहे हैं तुम्हें फिर तुम … Read more

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माँ तुझे दिल से सलाम

माँ दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है, माँ की तुलना नहीं हो सकती क्योंकि माँ जिस प्रेम व् त्याग से अपने बच्चों को पालती है वो किसी इंसान के लिए संभव नहीं है, पर माँ भी तो आखिर एक इंसान है अपने बच्चों के लिए सब कुछ नयौछावर करने की चाह रखते हुए भी कभी … Read more

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चलो मेरी गुइंयाँ – रिश्ता सहेलियों का

चलो मेरी गुइंया  चलो लाल फीता बांध  और सफेद घेर वाली फ्रॉक पहन कर  फिर से चलें  उसी मेले में  जहाँ जाते थे बचपन में  जहाँ खाते थे कंपट की खट्टी – मीठी गोलियां  जहाँ उतरती थी परियाँ  धरती पर  और हम सपनों के झूलों में बैठ  करते थे आसमान से बातें  सुनो ,  चुपके … Read more

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बनाए रखे भाषा की तहजीब

यूँ तो भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है |पर शब्द चयन , बोलने के तरीके व् बॉडी लेंग्वेज तीनो को मिला कर यह कुछ ऐसा असर छोडती है की या तो कानों में अमृत सा घुल जाता है या जहर | सारे रिश्ते बन्ने बिगड़ने की वजह भी ये भाषा ही है | कुछ … Read more

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लज्जा

शरबानी  सेनगुप्ता वह कोयले के टाल  पर बैठी लेकर हाथ में सूखी रोटी संकुचाई सिमटी सी बैठी पैबंद लगी चादर में लिपटी  मैली फटी चादर को कभी वह इधर से खींचती उधर से खींचती न उसमें है रूप –रंग ,और न कोई सज्जा सिर्फ अपने तन को ढकना चाहती क्योंकि उसे आती है लज्जा || … Read more

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क्या आत्मा पूर्वजन्म के घनिष्ठ रिश्तों की तरफ खिंचती है ?

लेखिका – श्रीमती सरबानी सेनगुप्ता जीवन भर दौड़ने भागने के बाद जब जीवन कि संध्या बेला में कुछ पल सुस्ताने का अवसर मिलता है तो न जाने क्यों मन पलट –पलट कर पिछली स्मृतियों में से कुछ खोजने लगता है | ऐसी ही एक खोज आज कल मेरे दिमाग में चल रही है , जो मुझे विवश … Read more

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