रेगिस्तान में फूल

रेगिस्तान में फूल

जीवन के मौसम कब बदल जाएँ कहा नहीं जा सकता | कभी प्रेम की बारिशों से भीगता जीवन शुष्क रेगिस्तान में बदल जाए, पर कहीं ठहर जाना, मनुष्य की वृत्ति भले ही हो जीवन की नहीं | आइए पढ़ें बारिशों के बाद एक ऐसे ही रेगिस्तान में ठहरे जीवन की कहानी .. रेगिस्तान में फूल   वह मेरी तरफ हैरान सा होता हुआ देखता रहा | जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी बात कह दी हो |अब इसमें मेरा क्या दोष था ? अब इसमें मेरा दोष क्या था ? मैंने उसे कोई ऐसा अवसर नहीं दिया था की वो समझने लगे की मुझे उससे प्यार है | मुझे तो अपने देश वापस जाना ही था | उसके इस एकतरफा प्यार की जिम्मेदारी लेने को मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी | मुझे अहसास  था की पीटर एक सीधा -सादा सच्चा  इंसान है | पर मैं क्या करती मेरे दिमाग में तो यह कूट कूट कर भरा था की यहाँ के अंग्रेज लोग फरेबी, दिलफेंक और अस्थायी रूप से घर गृहस्थी पर ध्यान देते हैं |   अपने देश की बात ही कुछ अलग है |संस्कार कए भूत सर चढ़ कर बोल रहा था | वह अमरीकी एक ही कार्यालय में काम करता हुआ कब मुझसे प्यार कर बैठा, उस समय शायद उसे भी पता ना चला | चे की फुरसत पर वह मुझे निहारता मुझे कुछ कहने से सकुचाता |पर अब मुझे लगने लगा था कि  उसके मन में कोई और ही दवंद चल रहा है |   जब मैंने पीटर से इंडिया जाने की बात कही उसे विश्वास ही नहीं हुआ | उसकी हैरानगी चरम सीमा पर तब पहुंची जब मैंने उससे कहा कि, “मेरी शादी होने वाली है | और मैं नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए जा रही हूँ |” वह एकदम अवाक सा मेरी ओर देखता रह गया | उसकी नीली आँखों में मुझे समुद्र की गहराई नजर आने लगी |   अपनी नम हुई आँखों को तनिक छुपाते हुए वो एकदम से बोल उठा, “ हे (hey ) listen meera, please don’t go.I will miss you .”   “अरे यह क्या उसमें इतना साहस कैसे आ गया |मुझे उसकी बात पर अचानक हँसी आ गई | मुझे मुसकुराते देख वो अचानक से गंभीर हो गया |उसे गंभीरता से उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए और बोल उठा, “please marry me meera.”   उसकी हालत देखकर मुझे लगा जैसे कोई बच्चा अपने खिलौने के लिए जिद कर रहा हो | मैं क्या जवाब देती ? चुपचाप अपने आप को समेटते हुए घर चली आई, और दो दिन बाद की फ्लाइट की तैयारी करने लगी |   दिन कैसे उड़े पता  नहीं चला | मेरी शादी एक फौजी अफसर से बड़ी धूमधाम से हुई |अपने सपनों की रंग भरी दुनिया में मैं खो गई |ना मुझे पीटर याद रहा और ना ही उसका शादी का प्रस्ताव |पर कहते हैं ना किस्मत कब पलट जाए किसी को पता ही नहीं चलता |   6 महीने भी ना बीते थे कि मेरी दुनिया जो खुशियों से सराबोर थी उजाड़ गई | मेरे पति मरणोंपरांत परमवीर चक्र मेरे हाथों में पकड़ा कर, मुझे रोता बिलखता छोड़ गए | शहादत की गरिमा, तालियों की गड़गड़ाहट मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती |   दो साल बीत गए | जिंदगी थोड़ी बहुत पटरी पर चल निकली थी | अचानक एक दिन पीटर का फोन आया | मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ | इतने दिनों बाद मैं उसे कैसे याद आ गई , और मेरा नंबर उसे कहाँ से मिला ? मैं थोड़ा घबरा गई |उधर से आवाज आई, “क्या मैं मीरा जी से बात कर रहा हूँ ?”     एक क्षण को मई स्तबद्ध रह गई मैंने कहा “जी कहिए, क्या आप पीटर हैं ?” इतना सुनते ही वो भी खुश हो गया, “अरे वाह तुम मुझे भूली नहीं?” वह मुझसे  मिलना चाहता था |मैंने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया | शाम होने से कुछ पहले ही वो मेरे घर पहुँच गया | उसने बताया कि वो किसी ऑफिसियल काम से इंडिया आया है | कुछ औपचारिक बातों के बाद उसने मेरे पति के बारे में पूछा | मेरा दुख सुन कर उसकी आँखें भर आईं | थोड़ी देर वो यूँ ही चुपचाप बैठा रहा और फिर भारी मन से फिर आने का वायदा कर वह चला गया |     आज मैं पीटर के साथ उसके देश जा रही हूँ, उसकी पत्नी बनकर | बीते दो साल के अंतराल में पीटर मुझे भुला नहीं पाए | मेरी बिखरी जिंदगी को अपने सशक्त हाथों में थामकर उन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि आत्मीयता, संस्कार और भावनाओं का कोई देश जात पात  और मजहब नहीं होता | वह इन सबसे ऊपर है |   आज सब कुछ बदल चुका है | वो मेरी साथ वाली सीट पर मेरे हाथों को कसकर पकड़ कर बैठे हैं | जैसे कह रहे हों , “ मीरा  अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं जाने दूंगा | स . सेन गुप्ता यह भी पढ़ें “वो फ़ोन कॉल” एक पाठकीय टिप्पणी कविता सिंह की कहानी अंतरद्वन्द इत्ती-सी खुशी  ठकुराइन का बेटा आपको कहानी “रेगिस्तान में फूल कैसी लगी ? अपने विचारोंसे हमें अवश्य अवगत कराए | अगर आप को अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया साइट सबस्क्राइब करें और अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा

फोटो क्रेडिट -आउटलुक इंडिया .कॉम गाँधी जी आज भी प्रासंगिक है | गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही सशक्त है | हम ही उन पर नहीं चलना चाहते | पर एक नन्ही बच्ची मुन्नी ने उन पर चल कर कैसे अपने अधिकार को प्राप्त किया आइये जाने इस काव्य कथा से … मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा  मुन्नी के बारे में आप नहीं जानते होंगे कोई नहीं जानता कितनी ही मुन्नियाँ हैं बेनाम सी पर एक नाम होते हुए भी ये मुन्नी थी कुछ अलग जो जमुनापार झुग्गीबस्ती में रहती थी अपनी अम्मा-बाबूजी और तीन बहनों के साथ अम्मा के साथ झुग्गी बस्ती में रोज चौका -बर्तन करते बड़े घरों की फर्श चमकाते जब ब्याह दी गयीं थी तीनों बहने तब मुन्नी स्लेट पट्टी पकड़ जाती थी पास के स्कूल में पढने मुन्नी की नज़रों में था पढने का सपना एक -एक बढती कक्षा के साथ इतिहास की किताब में  मुन्नी ने पढ़ा था गाँधी को , पढ़ा था, आमरण अनशन को, और जाना था अहिंसा की ताकत को वो अभी बहुत पढना चाहती थी, पर मुन्नी की माँ की आँखों में पलने  लगा सपना मुन्नी को अपने संग काम पर ले जाने का  कद हो गया है ऊँचा, भर गया है शरीर , सुनाई देने लगी खनक उन पैसों की जो उसे मिल सकते थे काम के एवज में चल जाएगा घर का खर्चा, जोड़ ही लेगी खुद का दहेज़ अपनी तीनों बहनों की तरह …आखिर हाथ तो पीले करने ही हैं बिठा कर थोड़ी ना रखनी है लड़की अम्मा की बात पर बापू ने सुना दिया फरमान बहुत हो गयी पढाई , अब कल से जाना है अम्मा के साथ काम पर दिए गए प्रलोभन उन बख्शीशों के जो बड़े घरों में मिल जाती है तीज त्योहारों पर मुन्नी रोई गिडगिड़ाई ” हमको पढना है बापू, हमको पढना है अम्मा, पर बापू ना पसीजे और अम्मा भी नहीं ठीक उसी वक्त मुन्नी को याद आ गए गाँधी और बैठ गयी भूख हड़ताल पर शिक्षा  के अधिकार के लिए एक दिन,  दो दिन, पाँच दिन सात दिन गले के नीचे से नहीं उतारा निवाला अम्मा ने पीटा , बापू ने पीटा पर मुन्नी डटी रही अपनी शिक्षा  के अधिकार के लिए आखिरकार एक दिन झूके बापू और कर दिया ऐलान मुन्नी स्कूल जायेगी , शिक्षा  पाएगी मुन्नी स्कूल जाने लगी … और करने लगी फिर से पढाई इस तरह वो मुन्नी हो गयी हज़ारों मुन्नियों  से अलग बात बहुत छोटी  है पर सीख बड़ी गर संघर्ष हो सत्य  की राह पर तो टिके रहो , हिंसा के विरुद्ध भूख के विरुद्ध सत्ता के विरुद्ध यही बात तो सिखाई थी गांधी ने यही तो था कमजोर की जीत का मन्त्र कौन कहता है कि आज गाँधी प्रासंगिक नहीं … सरबानी सेन गुप्ता यह भी पढ़ें …  रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, gandhi jayanti, Mahatma Gandhi, 2 october, gandhigiri, गाँधी , गाँधीवाद 

शुक्र मनाओ

शुक्र मनाओ शुक्र मनाओ कि आज तुम्हारी पूजा सफल हुई बेटी लौट आई है स्कूल से जहाँ टाफी -चॉकलेट का लालच देकर अ आ … इ ई सिखाते हुए किसी टीचर ने नहीं खेला उसके साथ बड़ों वाला ‘खेल ‘ नहीं लगाये हाथ उसको यहाँ -वहाँ शुक्र मानों की वो खेल रही है आज भी गुडिया से शुक्र मनाओ तुम भी कि तुम्हारी बेटी लौट आई है खेल के मैदान से नहीं खींची गयी है किसी झड़ी के पीछे न ही उसने देखे हैं बिना सींग वाले राक्षस शुक्र मनाओ कि वो आज भी  खेल रही है मिटटी के चूल्हे से शुक्र मनाओ हर सुबह की तुम्हारी बेटी कर रही है स्कूल जाने की तैयारी  इठला कर डाल रही है बस्ते  में किताबें कि आज भी उसे मामा , चाचा , भैया लगते हैं मामा ,चाचा , भैया आज भी सलामत हैं उसके रिश्तों की परिभाषाएं शुक्र मनाओ कि वो आज भी खेल रही है घर -घर शुक्र मनाओ कि तुम आज भी जोड़ रही हो हाथ बेटी की हिफाजत के लिए ईश्वर के आगे जबकि कितनी माएं चीख  रहीं है बेटी के क्षत -विक्षत शव के आगे जो मिले हैं कहीं खेत में , झड़ी के पीछे , मंदिर में लहुलुहान से जिन्हें वो प्यार से कहती थी बेटियाँ दरिंदों को नज़र आई सिर्फ योनियाँ खैर तुम शुक्र मनाओ , शुक्र मनाओ शुक्र मनाओ जब तक मन सकती हो बस तब तक शुक्र मनाओ सरबानी सेन गुप्ता  यह भी पढ़ें …. बदनाम औरतें बोनसाई डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बैसाखियाँ  आपको “ शुक्र मनाओ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- rape, crime against women, daughter

ब्रांडेड का बुखार

 सिर्फ ऋतुएं ही नहीं बदलती | ऋतुओ की तरह जमाने भी बदलते हैं | यह चक्र यूँहीं चलता रहता है | पुराने से नया , नए से और नया , वगैरह –वगैरह | मुझे याद आ रहा है हेमामालिनी द्वारा पर्दे पर अभिनीत “ नया जमाना “मूवी  का पुराना गाना “ नया जमाना आएगा …. “ यह बहुत पुरानी सत्तर के दशक की मूवी है | पर सच में आ ही तो गया | अरे भाई ब्रांडेड का ज़माना आ ही तो गया | पिछले कई सालों से ब्रांडेड का खूनी पंजा हमें जकड़ता ही जा रहा है | जहाँ जाओ वहीँ ब्रांडेड | यह शब्द सुन –सुन कर मेरा सर चकराने लगा है | यह शब्द इतना पापुलर हो गया है कि सर चढ़ कर बोलने लगा है | हर घर में सुबह से शाम तक भगवान् का नाम भी इतना नहीं लिया जाता है जितना की इस शब्द का उच्चारण किया जाता है | आज आलम यह है कि जो जितना ब्रांडेड सामान का उपयोग करेगा वो उतना ही आधुनिक और उच्चवर्गीय कहलायेगा | चाहे वो झूठ ही क्यों न हो , सडे  गले कपड़ों को भी अगर कोई ब्रांडेड कह दे तो हमारे मुँह में चमक आ जाती है | और हम उसे फैशन समझ कर उस व्यक्ति की सराहना करते हैं | सब पर चढ़ा ब्रांडेड का बुखार            किसी आम घर का दृश्य देखिये |” मम्मी आपने मेरी जींस कहाँ रख दी , “बेटी नीरा जोर से अपने कमरे से चिल्ल्लाई | अरे कौन सी माँ सविता अपने आटे से सने हाथ पोंछते हुए बोलीं | बेटी का जवाब भी सुन लीजिये ,” वहीँ काली वाली,  kkk  ब्रांडेड वाली |कपड़ों पर तो ब्रांडेड की माया छाई  ही है | इनकी तो बात ही मत पूंछो  | क्योंकि आधुनिकता का प्रचार करते हुए ब्रांडेड होना अति आवश्यक मान लिया गया  है | पर अपनी आदतें भी ब्रांडेड होती जा रही हैं | माँ के हाथ का खाना , गुज़रे ज़माने की बात लगती है | अब तो दाल रोटी , पिज़्ज़ा बर्गर के सामने मुँह पर पल्लू रख कर शर्माती है | चक्की का आटा  अब किसे सुहाता है | छोटे किराने  की दुकाने मुँह फाड़ –फाड़ कर रो रही हैं कि , “ आओ भाई आओ हमारा सामान भी आजमाओ | “ अरे भाई! अब कौन उनकी सुनता है | ब्रांडेड माल  जो बाजू में सारी  सुन्दरता को अपने में समेटे बैठी है और सबका दिल चुरा ले गयी है | हांल  की ही  बात है श्रीमती खन्ना ने श्रीमती देशमुख से एक पार्टी में कहा , “ हाय ! कैसी हो ? “ इधर कुछ दिनों से दिखाई नहीं  दीं | हां यार थोड़ी बिजी हो गयी थी | फोन करने का भी टाइम नहीं मिला, श्रीमती देशमुख ने जवाब दिया  | कहाँ बिजी हो गयी ? श्रीमती खन्ना ने प्रश्न दागा | हमारे मोहल्ले में आजकल योगा  और एरोबिक्स फ्यूजन एक्सरसाइज का कैंप चल रहा है | इसे वर्ल्ड फेमस x x x ब्रांड वाले करा रहे हैं | खालिश शुद्ध देशी योग … योगा भी नहीं पर निर्भर रहने वाली श्रीमती खन्ना का सुनते ही चेहरा चमक  गया | उत्साह से बस इतना ही बोली , हाउ लकी यू आर | अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर“                 अब बात करते हैं भाषा की | तो वो भी कहाँ रही देशी | वो भी हो गयी है ब्रांडेड – हिंगलिश | यानी अपनी हिंदी में अग्रेजी का तड़का | यकीन मानिए अगर ये तड़का न हो तो आज कल के बच्चे हिंदी हज़म ही न कर पाए | वैसे भी हिंगलिश स्टेटस सिम्बल है | ब्रांडेड लोग हिंगलिश में ही बात करते हैं | शुद्ध हिंदी में बात करने वाला तो गंवार समझा जाता है |हमारी लाइफ स्टायल यानी जीने का तौर तरीका और सलीके बदल गए हैं | पति ब्रांडेड कंपनी में काम करते हैं | बच्चा ब्रांडेड स्कूल में पढने जाता है | मम्मी किट्टी पार्टी में ब्रांडेड कपड़ों और चप्पलों में जाती हैं |  पर्स और मोबाइल की तो बात ही छोड़ो | वहां बैठी सभी औरतें ( लेडीज कहना ज्यादा उचित होगा ) आपस में ब्रांडेड की ही बातें करती हैं | हद तो तब हो गयी जब मिसेज शर्मा ने अपनी नौकरानी को चाय के साथ ब्रांडेड बिस्कुट लाने का आदेश दिया | ऐसा लगा कि उनका भारी –भरकम शरीर  भी इन  ब्रांडेड चीजों को खा – खा कर  फूल चुका है | चर्बी से “ मुटिया गयी हो “ कभी न खत्म होने वाला वाकया बन गया है |                   भगवान् बचाए इस ब्रांडेड रुपी राक्षस से | कल सब्जी वाला ठेले में मेंथी –पालक लाया तो मैंने पूंछा , “ भैया कोई और सब्जी नहीं लाये ? “ वह अपने पीले –चीकट दांतों को निपोरते हुए तपाक से बोला , “ आंटी जी मैं कल आपक लिए बिरानडेट सब्जी  लाउंगा | लाल –पीले काप्सीकम , ब्रॉकली और बोलो क्या लाऊं ?यह शब्द सुन –सुन कर मुझे उपकाई सी आने लगी | क्या हमारी हरी ताज़ा सब्जियां किसी से कम हैं ? फलों के ठेलों में भी विदेशी ब्रांडेड फल हमारे देशी फलों के साथ धींगा – मुश्ती  करते देखे जा सकते हैं | न जाने कब वो उन्हें हमारी थाली सी नीचे गिरा दे , कौन जानता है | क्योंकि डॉक्टर जो रिकमंड करने लगे हैं … देशी सेब नहीं , जल्दी ठीक होना है तो ऑस्ट्रेलिया का एप्पल खाइए | आज मैं शर्मिंदा हूँ                          कभी –कभी लगता है सब छोड़ –छाड़ कर गाँव चली जाऊं | वहां के भोले –भाले लोग कम से कम इस ब्रांडेड से तो परे होंगे | पर कहाँ ? गाँव का सीधा –सादा किसान मेरे यहाँ काम करने आया तो मुझे लगा कि यह भोला –भला ही रहेगा |पर मैं गलत थी | चार महीने में ही वो ब्रांडेड बन गया | देशी चाल  ही भूल गया | हाय रे मेरी किस्मत | कहाँ जाऊं ? किसे सुनाऊं ? लोग डिप्रेशन को दूर भगाने के लिए सुबह –सुबह प्राणायाम करते हैं | पर इस ब्रांडेड बिमारी का कोई तोड़ मुझे नज़र नहीं आता | … Read more

फिर से रंग लो जीवन

सुनो सखी , उठो बिखरे सपनों से बाहर एक नयी शुरुआत करो किस बात का खामियाजा भर रही हो शायद … मन ही मन सुबक रही हो कालिख भरी रात तो बीत ही चुकी नयी धूप , नया सवेरा पेंड़ों पर चहकते पंछियों का डेरा उमंग से भरे फूल देख रहे हैं तुम्हें फिर तुम क्यों न भूली अपनी भूल प्रेम ही तो किया था ऐतबार के फूल अंजुली में भरकर आगे बढ़ी थीं टुकड़े हुए अरमानों के महल पर यही तो अंत नहीं है इस विशालकाय भुवन में एक कोना तुम्हारा है जहाँ सतरंगी रंगों को उमंग की पिचकारी में भरकर दोनों बाहें फैलाकर कोई बना सहारा है आओ सखी आओ अपने मन की होलिका जलाओ दर्द तड़फ के  मटमैले आंसू धो  डालो इस होली में फिर इन्द्रधनुष के सारे रंग भरो अपनी झोली में सरबानी सेनगुप्ता  यह भी पढ़ें … बदनाम औरतें रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ माँ मैं दौडूगा आपको “फिर से रंग लो जीवन   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

माँ तुझे दिल से सलाम

माँ दुनिया का सबसे खूबसूरत शब्द है, माँ की तुलना नहीं हो सकती क्योंकि माँ जिस प्रेम व् त्याग से अपने बच्चों को पालती है वो किसी इंसान के लिए संभव नहीं है, पर माँ भी तो आखिर एक इंसान है अपने बच्चों के लिए सब कुछ नयौछावर करने की चाह रखते हुए भी कभी -कभी परिस्थितियों के आगे विवश हो जाती है| पर जब कोई माँ विपरीत परिस्थियों के आगे झुकती नहीं चट्टान की तरह अटल होकर उनका सामना करती है और अपने बच्चों को भविष्य बनाती है, तो उसके साहस को सजदा करते हुए उसके बच्चे ही नहीं हर कोई कह उठता है-  ऐ माँ तुझे दिल से सलाम   स्कूल में अचानक पड़ोस वाले चाचाजी को देख कर नीला हैरान हो गयी|  वह कक्षा 5 की छात्रा थी| चपरासी स्कूल के ऑफिस में बुला ले गया |  चाचा जी ने कहा ,”चलो घर में मेहमान आये हैं | मैं इसीलिये तुम्हें लेने आया हूँ | जब वो घर पहुंची तो वास्तव में बहुत सारे लोग घर के अन्दर बाहर खड़े थे | छोटी उम्र होने पर भी उसे माजरा समझ में आ गया कि कोई अनहोनी हो गयी है | थोड़ी ही देर में पिताजी आ गए | लेकिन ये क्या? वो तो एम्बुलेंस में लेटे  हुए आये थे |  उनका पार्थिव शरीर घर के ड्राइंग रूम में रखा गया, जितने मुँह उतनी ही बातें,  ” अरे, राय साहब को कभी बीमार नहीं देखा”|  ऑफिस के लोग कहने लगे,  ” हम तो समझे थे राय साहब ने आज सी. एल ली है|                   नन्ही नीला कुछ समझ पाती कि अचानक से माँ को पीछे वाले कमरे से कुछ महिलाएं सहारा देती हुई ले आयीं | माँ का पछाड़  खा कर गिरना , फिर हम तीनों छोटे भाई-बहनों को अपनी बांहों में भर कर चीखना चिल्लाना आज भी नीला के मन को दर्द से भर देता है|                                   चौथा निपटते-निपटते घर के दूसरे कमरे में बच्चों के भविष्य को ले कर मीटिंग शुरू हो गयी| एक 34 साल की जवान विधवा और उसके तीन छोटे बच्चे | भाई उनके बारे में सोंचना समझना परिवार के लोगों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है|  बड़े ताऊजी बोले,  ” भाई मैं परिवार की सबसे बड़ी बेटी शिवानी को अपने साथ ले जाऊँगा | माँ को समझ में आ गया कि दीदी, 12-13 साल की है और ताई जी  का हाथ बँटाने लायक है| छोटे चाचा बोले, ” चलो मैं नीला को ले जाऊँगा, छोटी सी, प्यारी सी है, मेरे बच्चों के साथ खेलते कूदते बड़ी हो जायेगी|                  चाचाजी भोले -भाले  होने से क्या?  फिर उनकी वो फैशनपरस्त पत्नी! अरे , बाप रे बाप ! वो तो अकेली ही सौ के बराबर है| वो अपने बच्चों को ही नहीं बख्शती तो मुझे क्या छोडती| माँ चुप ,अवाक् सी खड़ी थी| बाकी बचे माँ और मेरा पांच साल का भाई सोमू, उसका क्या किया जाए| दो बच्चों का तो बँटवारा हो गया, पर सोमू का क्या किया जाए? वो तो छोटा है, इसलिए अपनी माँ के पास ही रहेगा ना | कोई भी चाची, ताई , एक जवान विधवा को  पनाह देने का खतरा मोल नहीं लेना चाहती थीं|                             अचानक बाज़ार से लौटे मझले ताऊजी, जो अभी थोड़े ही दिन पहले विधुर हुए थे ,  ” अरे भाई ऐसी भी क्या बात है, मैं संतानहीन हूँ ,सोमू को मैं गोद ले लेता हूँ और उसके साथ मीना (माँ ) भी कहीं पड़ी रहेगी एक कोने में , इन्हें कोई तकलीफ न होने दूँगा|  हम सब माँ के साथ घर के एक कमरे में स्तबद्ध होकर बैठे थे|  माँ का मायका कमजोर होने के कारण उस ओर से सहयता की कोई गुंजाइश नहीं थी| उन्हें लगा जैसे उनके सामने हम सब की नीलामी हो रही थी, और बोली लग रही थी|                   माँ अचानक से उठी और अपने झर -झर बहते आंसुओं को अपने दोनों हाथों से पोंछते हुए दूसरे कमरे में गयींऔर जोर से चिल्लाई , ” आप सब चुप रहे, जो जी में आया बोले चले जा रहे हैं, कभी मुझ से पूंछा है की मैं क्या चाहती हूँ?” आप सब को इसका अधिकार किसने दिया?एक तो मुसीबत का पहाड़ मुझ पर टूट पड़ा ऊपर से अप मेरे बच्चों का बँटवारा  कर रहे हैं|                 थोडा रुक कर माँ फिर बोलीं , ” याद रखिये, अभी मैं जिन्दा हूँ , मरी नहीं हूँ| आप सब अपने स्वार्थ  के लिए मेरे बच्चों को अपने साथ ले जा रहे हैं| ये लडकियां आप के घर की नौकरानी बनेंगी| अब बहुत हुआ, आप सब अब यहाँ से प्रस्थान करें| मैं संभाल लूँगी, अपने को और अपने बच्चों को |  उस दिन अपनी अपनी गाय जैसी माँ का रौद्र रूप देख कर हम सब सकते में आ गए |  मेरे पिताजी सरकारी मुलाजिम थे| पिताजी के सहयोगी मिस्टर नाथ ने एक दिन घर आ कर माँ से कहा,  ” भाभी जी आप तो पढ़ी -लिखी हैं ,आपको तो मिस्टर राय की जगह नौकरी मिल सकती है | बिलकुल वैसा ही हुआ माँ ने नौकरी की| अपनी जिंदगी के बेहतरीन साल जिंदगी की जद्दोजहद में निकाले, हम सब को पाला-पोसा, उच्च शिक्षा दी | कमर कसकर सब भाई -बहनों की शादियाँ की| आज मैं जिंदगी के जिस मुकाम पर खड़ी हूँ वो सब माँ का दिया हुआ है| उच्च शिक्षित, सभ्रांत  परिवार और सुखी जीवन|                यही सोंचती नीला के आँसूं झर -जहर बहते हुए उसकी जीभ से टकराए| उसे अहसास हुआ कि आँसूं  तो नमकीन होते हैं , चाहे वो ख़ुशी के हों या दुःख के | तो फिर ये कौन से आँसू थे, जिनके प्रसाद के रूपमें मुझे मिला सफल जीवन|   आज माँ नहीं हैं … पर नीला कभी माँ का ऋण चुका ही नहीं पाएगी |उसे माँ की सेवा का मौका ही नहीं मिला| … Read more

चलो मेरी गुइंयाँ – रिश्ता सहेलियों का

चलो मेरी गुइंया  चलो लाल फीता बांध  और सफेद घेर वाली फ्रॉक पहन कर  फिर से चलें  उसी मेले में  जहाँ जाते थे बचपन में  जहाँ खाते थे कंपट की खट्टी – मीठी गोलियां  जहाँ उतरती थी परियाँ  धरती पर  और हम सपनों के झूलों में बैठ  करते थे आसमान से बातें  सुनो ,  चुपके से आना  मत बताना किसी से  डांटेंगी अम्माँ , बाबूजी  फिर भी वो  कंपट , वो परियां , वो सपनों के झूले  संभव हैं  आज भी  गर तुम साथ हो तो … चलो मेरी गुइंयाँ-खास शब्द की मिठास  गुइंया बहुत ही प्यारा शब्द है | यह उस रिश्ते की मिठास को बताता है जो बचपन की दो सहेलियों का होता है | अब जरा समय को पीछे लेजाते हुए याद करिए अपने बचपन के कुछ खूबसूरत पल | वो कागज़ की नाव को बरसात के पानी में तैराना , वो मिटटी के बर्तनों में खाना बनाना ,वो गुड़ियाँ की शादी पर तैयार होना , और गुड़ियां की विदाई पर फूट –फूट कर रोना , स्कूल का  पाठ याद करना, एग्जाम में उत्तर न आने पर ईधर उधर ताक  –झांक करना ,पिता की डांट से बचने के लिए मिल कर झूठे बहाने बनाना | इन सब यादों में एक शख्स सदा आपके साथ होता है और वो है आपकी गुइंया यानि आपके बचपन की सहेली |   अगर आपके पास जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सहेली  है तो जिंदगी आसान हो जाती है और न हो, तो सफर तय करना और मुश्किलों का हल अकेले ढूंढना  बहुत मुश्किल हो जाता है ।  ये सच है की लड़कियों की शादी  के बाद मायका व् बचपन  की सहेलियां अक्सर पीछे छूट जाती हैं | सब अलग – अलग अपने – अपने ससुराल में रम जाती हैं |उतना मिलना नहीं हो पाता |फिर भी जब मिलते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे बचपन से मिल लिया हो | समय कितना भी आगे बढ़ जाए कोई दूरी नज़र ही नहीं आती | क्योंकि ये दोस्ती उस समय की होती है जब कोई परदे नहीं थे | ऐसी ही एक सहेली मुझे याद आती है जो २० साल बाद मुझे मिली | हम अचानक एक रेलवे स्टेशन पर मिले | फिर जो गप्पे लगी तो लगा ही नहीं हमारे बीच २० साल का फासला है | ये जानने  के बाद हम अब एक ही शहर में हैं | हमने फिर से उस रिश्ते को सहेज लिया |  लेकिन कुछ ऐसे भी खुश किस्मत लोग होते हैं जिनकी सहेलियों का साथ कभी छूटता ही नहीं | दोनों उसी शहर में रहती हैं | जहाँ दोनों एक दूसरे के हर सुख – दुखमें साथ देती हैं | अगर आप की भी कोई सहेली अब तक आप के साथ है | तो आप खुशकिस्मत हैं |कई बार खून के रिश्ते भी उतना साथ नाहीं देते जितना सहेलियां देती हैं | राधा और मीता ऐसी ही सहेलियां थी | बचपन से ४० की उम्र तक साथ – साथ | पर फिर उसके बाद उनकी दोस्ती में ऐसी दरार आई की वो खाई में ही बदल गयी | दरसल रिश्ता सहेलियों का या कोई और उसे सींचने की जरूरत होती है | आज मैं उन्हीं नुस्खों की बात कर रही हूँ जिन्हें अपना कर आप अपनी सहेली के साथ वैसा ही बचपन जैसा प्यार भरा रिश्ता बनाए रह सकती हैं |     खास सहेली को ख़ास  होने का कराये अहसास                 अक्सर हम सोंचते हैं की जो हमारी खास सहेली है वो तो हैं ही | बाकी सब से ही वैसा ही रिश्ता बनाने की कोशिश करें | क्योंकि दोस्त जितने  ज्यादा हो उतना ही अच्छा | बस यही हमसे चूक हो जाती है | कहा गया है जो सबका दोस्त होता है वो किसी का दोस्त नहीं होता | बात सुनने में विचित्र लग सकती है पर है सही | पक्की सहेली का अर्थ है की आप उससे कोई राज न रखे , न वो आपसे कोई राज़ रखे | ऐसा व्यक्ति कोई एक या दो ही हो सकते हैं | जिनके ज्यादा दोस्त घनिष्ठ  होते हैं  वो दूसरों का राज रख नहीं पाते | जिस कारण उन्हें कोई दिल की बात बताता भी नहीं |कई बार आपकी खास सहेली को लगता है किआप उसके साथ जितना लगाव रखते हैं उतना ही सबके साथ रखते हैं तो वो खुद आपसे दूर हो जायेगी | याद रखिये घनिष्ठ रिश्ते खास होने का अहसास दिलाने पर ही टिकते हैं | सहेली के रिश्ते में बराबरी कैसी                      सहेली का रिश्ता पूरी जिंदगी बरक़रार रखने के लिए जरूरी है की बराबरी नहीं मिलानी चाहिए |नहीं तो उस रिश्ते में से बचपन की मिठास चली जायेगी |  मैं उसके घर दो बार हो आई अब वोपहले आएगी तभी मैं जाउंगी | या मैंने उसे खाना खिलाया उसने केवल चाय नाश्ता करा कर भेज दिया | अब ये तुलना करनी शुरू कर दी तो बहुत मुश्कल हो जायेगी |हो सकता है आप की सहेली की परिस्थितियां कहीं आने – जाने के अनुकूल न हों या आप एकल परिवार में हों वो संयुक्त परिवार में | ऐसे में वो सबकी अनुमति ले कर ही घर से निकल पाएगी | अब अगर आप बराबरी मिलायेंगी तो रिश्ता चलना मुश्किल है | आप के पास समय है , आप मिलना चाहती हैं तो बेधड़क जाइए | किसने रोका है | खाने की बात पर भी सोंच लीजिये | हर किसी को खाना बनाने का शौक नहीं होता | उसे जो शौक है वो चीज या काम वो आपके लिए जरूर करेगी | इस बात को चाहे तो आजमा कर देख लीजिये | सहेली की भावनाओं का करिए सम्मान                      सहेलियों का रिश्ता खून का रिश्ता नहीं होता | वो परस्पर प्यार और सम्मान पर ही टिका होता है | इसलिए जरूरी है की भावनाओं का सम्मान करें | अगर उसके जीवन में कोई दुःख चल रहा है तो उसकी इच्छा से ही उस विषय में बात करें | कई बार आप फटाफट उस बारेमें बात करना चाह रही होंगी | पर उसे उस बारे में बात करने में संकोच हो रहा होगा | या वो थोडा हीलिंग टाइम चाहती होगी … Read more

बनाए रखे भाषा की तहजीब

यूँ तो भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है |पर शब्द चयन , बोलने के तरीके व् बॉडी लेंग्वेज तीनो को मिला कर यह कुछ ऐसा असर छोडती है की या तो कानों में अमृत सा घुल जाता है या जहर | सारे रिश्ते बन्ने बिगड़ने की वजह भी ये भाषा ही है | कुछ बोलना ही नहीं सही तरीके से बोलना भी जरूरी है |           एक स्कूल टीचर होने के कारण सदा से बच्चो को ये पढ़ाती रही कि अच्छे शब्द और प्रेम भरी वाणी से आप न केवल खुद आनंदित होते हैं अपितु दूसरों को भी भावनाओं के सागर में डुबो देते हैं | सुबह के समय किसी के द्वारा चेहरे पर एक मीठी मुस्कान के साथ कहा गया “गुड मॉर्निंग “ एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह पूरे दिन को सुगंधित  कर देता है | अक्सर सोचती हूँ क्या जाता है किसी का इतना सा कहने में जो किसी का दिन बना दे | पर हकीकत कुछ अलग ही है | क्या आपने कभी लोगों की भाषा पर ध्यान दिया है ? अभद्र और अश्लील भाषा का प्रयोग रोजमर्रा की जिंदगी का अंग बन गया है | बात –बात पर एक दूसरे को गाली देना एक लकाब  जैसा बन गया  है | पुरुष अनौपचारिक बातचीत करते समय अभद्र भाषा का प्रयोग बहुतायत से करते हैं | पर क्या ये सही  समाज का आइना है ?          गुस्सा ,तनाव या रोज़मर्रा की परेशानियाँ  कब नहीं थी| इनकी ढाल बना कर अभद्र भाषा के प्रयोग को सही नहीं सिद्ध किया जा सकता | मेरे विचार से तो इसमें घरों में पीढ़ी दर  पीढ़ी चली आ रही अभद्र भाषा के प्रयोग का योगदान हैं | बच्चा पहले घर से सीखता है | माता –पिता पहले शिक्षक होते  हैं | अगर वो सही भाषा का प्रयोग करेंगे तो बच्चे भी सही भाषा ही सीखेंगे |  मुझे एक वाकया याद आ रहा है | हमारे पड़ोस में एक भरा –पूरा परिवार रहता था | उस परिवार के मुखिया बात –बात पर अभद्र भाषा का प्रयोग करते थे |घर की छोटीबड़ी महिलाओं को भद्दी गालियाँ देकर आवाज़ लगाते थे | लगातार सुनते –सुनते एक दिन परेशान होकर मैं उनकी धर्मपत्नी से  पूँछ ही बैठी कि ऐसी भाषा आप के यहाँ क्यों बोली जाती है | वह बड़ी सरलता से हँसते हुए बोली “अरे छोड़ न ! टू क्यों टेंशन लेती है | इनकी तो आदत है हमारे घर में गालियाँ देकर ही बात की जाती है और कोई बुरा भी नहीं मानता | मैं उनका उत्तर सुन कर अवाक् रह गयी क्योंकि किसी संभ्रात परिवार में ऐसी वीभत्स  भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता| नतीजा यह हुआ कि उनके घर में छोटे बड़े बच्चे जब भी आपस में  लड़ते तो एक दूसरे को जी भर के गालियाँ देते | मुझे तो भय लगने लगा कि उनकी आने वाली नस्ल भी अपनी तोतली जुबान में ऐसी ही गन्दी भाषा का प्रयोग करेगी …… “अले मम्मी टुम टो  बिकुल …..”     मेरा परिवार तेरा परिवार कह कर हम इस प्रकार की भाषा को उचित नहीं ठहरा सकते | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है हमारी बात व्यवहार  का असर हमारे बच्चों पर ,और उनसे दूसरे बच्चों पर पड़ता है |  अभद्र भाषा किसी संक्रामक बिमारी की तरह बढती है | इसे अपने स्तर पर ही रोक लेना बहुत जरूरी है नहीं तो एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती  है की तर्ज़  पर  एक व्यक्ति की अभद्र भाषा पूरे समाज को प्रदूषित  कर सकती है |  समाज में   स्वस्थ और मिठास  से ओत –प्रोत  भाषा को संचालित करना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए | इसकी शुरुआत तो घर से ही हो सकती है | बात करते समय सभी का सम्मान करना चाहिए चाहे वो परिचित हो या अपरिचित | हम जब भी बोले शालीनता से बोले |यदि हम अच्छी भाषा का प्रयोग आज और अभी से करेंगे तो पायेंगे कि इसका  सुनहरा जादू पूरे समाज में खुशबू की तरह फ़ैल गया है |     गुस्से और तनाव को परे धकेलकर ,ठन्डे दिमाग से सोच समझ कर बातचीत का प्रयोग सुन्दर सभी व् शालीन भाषा में करे तो हमारे जीवन के मायने ही बदल जायेंगे और मुंह का जायका भी बदल जाएगा | भाषा के जादुई असर इ रिश्ते –नाते भी मज़बूत हो जायेंगे | याद रखिये अगर आपकी भाषा रोशोगुल्ला ( रसगुल्ला ) की तरह मीठी –मीठी हो तो देखिएगा लोग कैसे मखियों की तरह आप के आस –पास मंडराएंगे | क्यों न हम प्राण लें कि हम सदा मीठी वाणी का ही प्रयोग करेंगे  ,साथ ही धयान दे कि हमारे आस –पास कोई गलत भाषा का प्रयोग तो नहीं कर रहा है | अगर ऐसा है तो उसे प्यार से समझाए |और समझाइये की भाषा की कोयल और कौवे में फर्क होता है |सही तरीके से बोलेन ताकि रिश्तों में काँव  – कांव की जगह कुहू कुहू के मीठे स्वर गूंजे |  श्रीमती स .सेनगुप्ता  यह भी पढ़ें … अतिथि देवो भव – तब और अब आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ? आज गंगा स्नान नहीं गंगा को स्नान करने की आवश्यकता है क्या आप जानते है की आप के घर का कबाड़ बढ़ा सकता है आप का अवसाद

लज्जा

शरबानी  सेनगुप्ता वह कोयले के टाल  पर बैठी लेकर हाथ में सूखी रोटी संकुचाई सिमटी सी बैठी पैबंद लगी चादर में लिपटी  मैली फटी चादर को कभी वह इधर से खींचती उधर से खींचती न उसमें है रूप –रंग ,और न कोई सज्जा सिर्फ अपने तन को ढकना चाहती क्योंकि उसे आती है लज्जा || अरे ! देखो वो कौन है जाती ? इठलाती और बलखाती अपने कपड़ों पर इतराती टुकड़े –टुकड़े वस्त्र को फैशन कहती और समझती सबसे अच्छा क्योंकि उसे न आती लज्जा लज्जा का यह भेदभाव मुझे समझ न आता कौन सी लज्जा निर्धन है और कौन धनवान कहलाता यह सोच सोच कर मन में लज्जा भी घबराती वस्त्रहीन लज्जा को देखकर लज्जा भी शर्माती

क्या आत्मा पूर्वजन्म के घनिष्ठ रिश्तों की तरफ खिंचती है ?

लेखिका – श्रीमती सरबानी सेनगुप्ता जीवन भर दौड़ने भागने के बाद जब जीवन कि संध्या बेला में कुछ पल सुस्ताने का अवसर मिलता है तो न जाने क्यों मन पलट –पलट कर पिछली स्मृतियों में से कुछ खोजने लगता है | ऐसी ही एक खोज आज कल मेरे दिमाग में चल रही है , जो मुझे विवश कर रही है यह सोचने को कि ईश्वर कि बनायीं इस सृष्टि में , जन्म –जन्मांतर के खेल में कुछ कड़ियाँ ऐसी जरूर हैं जो हमें पिछले जन्मों के अस्तित्व पर सोचने पर विवश कर देती हैं | इन दार्शनिक बातों से इतर आज अपना एक अनुभव साझा कर रही हूँ | जो मेरी समझ के परे है , शायद आप कि समझ में आ जाए और सुलझ जाए उस जन्म से इस जन्म के फेर में फंसी मन कि गुत्थी | मेरा परिचय बस इतना है कि मैंने अपनी जिंदगी के बेहतरीन ३२ साल शिक्षा के क्षेत्र में बिताये |मैं हमेशा प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाती आ रही हूँ | बात उन दिनों कि है जब मैं दिल्ली के एक नामी –गिरामी पब्लिक स्कूल कि प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ाती थी | नए सेशन का पहला दिन था | नन्हे –मुन्ने बच्चे जिनकी उम्र कोई ४ , साढ़े चार साल रही होगी , लुढकते फिसलते एक पंक्ति में मेरी कक्षा में आये | उनकी टीचर सुबकते –सिसकते बच्चों को मुझे सौंप कर अपनी कक्षा में चली गयी | उनमें से कुछ बच्चे ऐसे भी थे जो हंस –बोल भी रहे थे और अपनी कक्षा के ही दूसरे रोते सिसकते बच्चों को अवाक होकर देख रहे थे | तभी एक बच्चा बौखलाया सा मेरी कक्षा में दाखिल हुआ | पीछे –पीछे उसकी माँ भी थी जो मुझसे मिलना चाहती थी | क्योंकि ये बच्चा नया था इसलिए उसकी माँ ने मुझसे कहा , “ मैंम , नमस्ते , हम मुंबई से आये हैं | मेरा बेटा इस स्कूल में नया है , आप इसे जरा संभाल लेना | स्कूल का प्रथम दिन , ऊपर से कक्षाओं की अदला बदली | उफ़ ! इतना शोर की मैं उसकी माँ से ज्यादा बात नहीं कर पायी | वह बच्चे को छोड़ कर चली गयी | जैसे –जैसे दिन बीतते गए , वह बच्चा मुझे अजीब सा लगने लगा | वह न तो दूसरे बच्चों कि तरह खेलता , न हँसता , न् ज्यादा बोलता था | इतने छोटे बच्चे , जिनका अभी बालपन और भोलापन गया नहीं था ,वह सब मुझमें अपनी माँ को खोजते | मेरे नज़दीक आकर मुझ से लिपटते | पर वह नया बच्चा निर्भीक ( परिवर्तित नाम ) अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा ही परिपक्व था | | वह मेरी ओर हमेशा बेरुखी कि नज़रों से देखता , हाथ पकड़ों तो हाथ छुड़ा कर भाग जाता | दिन बीतने लगे | निर्भीक को मैं अपने ज्यादा करीब नहीं पाती थी |हाँ , कभी कभी वो थोड़ी बहुत बात चीत कर लेता था | निर्भीक अपने नाम के अनुरूप ही निडर व् चुस्त था | एक दिन मैं अपनी कुर्सी पर बैठी नोटबुक्स चेक कर रही थी | अचानक निर्भीक मेरे पास आया और मेरी चूड़ियां हटा कर हाथ को सहलाने लगा | फिर धीरे से बुदबुदाया , “ मैंम यू आर सो फेयर |” ओह गॉड ! मुझे ४४० वाल्ट का करंट लगा | उसकी इस हरकत पर मैं हैरान रह गयी | उसके हाव –भाव से मुझे अपने कालेज के ज़माने में पढ़े गए मिल्स एंड बून सीरीज के नोवल्स के हीरो याद आ गए | जो कभी हमारी कल्पना में आकर नींद उड़ाते थे | बात आई गयी हो गयी | सेशन ख़त्म हो गया | एक बार फिर वाही दिन आया | मैं अपने बच्चों को प्रथम कक्षा में छोड़ आई | फिर नए बच्चे आये | पुराने बच्चे रीसेस में मुझसे मिलने आते | पर निर्भीक , वो कभी सबके साथ नहीं आता | कभी खिड़की से , कभी दरवाजे के पीछे से बिना कुछ कहे मुझे देखता | कभी पानी पीने , कभी टॉयलेट जाने के बहाने आता | मैं अब उसकी गहरी नज़रों से डरने लगी थी | समय पंख लगा कर उड़ने लगा | अब वो पांचवीं कक्षा में आ गया था | उसका छुप –छुप कर मुझे देखना जारी रहा | एक दिन उसकी माँ आई और बोली ,” मैंम मैं निर्भीक को खींच कर लायी हूँ | यह रोज आपकी बातें करता है | अभी तक आप को भूला नहीं है | इसने मुझसे कहा है जब बड़ा हो जाएगा तो आपको अपने घर ले जाएगा | आपसे शादी भी करेगा | मुझे उसकी बात पर हंसी आ गयी | मैं निर्भीक कि पीठ थपथपाकर कहा ,” हां बेटा , तुम पढ़ लिख कर बड़े हो जाओ , अच्छी नौकरी करों , अच्छे इंसान बनों | तभी तो मैं तुम्हारे घर जाऊँगी | पता नहीं मेरी इस बात का उस पर क्या असर हुआ , अब वह कभी –कभी ही मेरी कक्षा में बाहर से झांकता | मैं बच्चों में मशरूफ होने के बावजूद हाथ हिला देती और मुस्कुरा देती और वह बिना कुछ कहे सुने चला जाता | धीरे –धीरे ऋतुएं बदली | नए साल पुराने होते चले गए | समय का काफिला आगे बढ़ता चला गया | वह अब किशोरावस्था में पहुँच गया था | बीच –बीच में निर्भीक मुझसे मिलने आता | औपचारिक बातों के बीच सिर्फ पढ़ाई कि बातें होती | मैं उसे सफलता के गुर सिखाती | वह मेरी बातें ध्यान से सुनता और उडती नज़र से मुझे देख कर चला जाता | कभी –कभी मेरे कोरिडोर से गुजरने पर निर्भीक अपने मित्रों कि टोली छोड़ कर दौड़ा –दौड़ा मेरे पास आता, और बिना कुछ कहे चला जाता | पता नहीं किन शब्दों को अपने मन में दबाये | बारहवी कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित होते ही वह मेरे पास आया और मुझसे लिपट कर चहक कर बोला मैंम , यू आर माय इंस्पीरेशन , यू आर रीयली ग्रेट | मैं उसकी इस हरकत पर हकपका सी गयी | मेरी आँखें नम थी कि वो अब स्कूल छोड़ कर चला जाएगा | निर्भीक स्कूल छोड़ कर चला गया पर … Read more