पेट की मज़बूरी

एक बूढ़े बाबा हाथ में झंडा लिए बढ़े ही जा रहे थे, कईयों ने टोका क्योंकि चीफ मिनिस्टर का मंच सजा था, ऐसे कोई ऐरा-गैरा कैसे उनके मंच पर जा सकता था| बब्बू आगे बढ़ के बोला “बाबा ! आप मंच पर मत जाइए, यहाँ बैठिये आप के लिए यही कुर्सी डाल देते हैं |”“बाबा सुनिए तो…” पर बाबा कहाँ रुकने वाले थे|जैसे ही ‘आयोजक’ की नज़र पड़ी, लगा दिए बाबा को दो डंडे, “बूढ़े तुझे समझाया जा रहा है, पर तेरे समझ में नहीं आ रहा”आँख में आँसू भर बाबा बोले, “हाँ बेटा, आजादी के लिए लड़ने से पहले समझना चाहिए था हमें कि हमारी ऐसी कद्र होगी | ‘बहू-बेटा चिल्लाते रहते हैं कि बुड्ढा कागजों में मर गया २५ साल से …पर हमारे लिए बोझ बना बैठा है’, तो आज निकल आया पोते के हाथ से यह झंडा लेकर…, कभी यही झंडा बड़े शान से ले चलता था, पर आज मायूस हूँ जिन्दा जो नहीं हूँ ….|” आँखों से झर-झर आँसू बहते देख आसपास के सारे लोगों की ऑंखें नम हो गईं| बब्बू ने सोचा जो आजादी के लिए लड़ा, कष्ट झेला वह …और जिसने कुछ नहीं किया देश के लिए वह मलाई ….,छी:!“पेट की मज़बूरी है बाबा वरना …|” रुँधे गले से बोल बब्बू चुप हो गया |————–००—————००———— यह भी पढ़ें … वो व्हाट्स एप मेसेज 99 क्लब का सदस्य प्रश्न पत्र भोजन की थाली आपको  लघु कथा  “  पेट की मजबूरी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – independence, freedom, leader, fight for nation लेखिका का  संक्षिप्त परिचयसम्पूर्ण नाम – सविता मिश्रा ‘अक्षजा’शिक्षा -ग्रेजुएटव्यवसाय..गृहणी (स्वतन्त्र लेखन )लेखन की विधाएँ – लेखन विधा …लेख, लघुकथा, व्यंग्य, संस्मरण, कहानी तथामुक्तक, हायकु -चोका और छंद मुक्त रचनाएँ |प्रकाशित पुस्तकें – .पच्चीस के लगभग सांझा-संग्रहों में हायकु, लघुकथा और कविता तथा कहानी प्रकाशित |प्रकाशन विवरण .. 170 के लगभग रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा बेब पत्रिकाओं में छपी हुई हैं रचनाएँ |दैनिक जागरण- भाष्कर इत्यादि कई अखबारों में भी रचनाएँ प्रकाशित |पुरस्कार/सम्मान –  “महक साहित्यिक सभा” पानीपत में २०१४ को चीफगेस्ट के रूप में भागीदारी |“कलमकार मंच” की ओर से “कलमकार सांत्वना-पुरस्कार” जयपुर (३/२०१८)“हिन्दुस्तानी भाषा  साहित्य समीक्षा सम्मान” हिंदुस्तान भाषा अकादमी (१/२०१८) ‘शब्द निष्ठा लघुकथा सम्मान’ २०१७ अजमेर,  ‘शब्द निष्ठा व्यंग्य सम्मान’ २०१८ अजमेर में |जय-विजय  वेबसाइट द्वारा  लघुकथा विधा में ‘जय विजय रचनाकार सम्मान’  लखनऊ (२०१६)बोल हरयाणा पर प्रस्तुत ‘परिवेश’ नामक कथा, “आगमन समूह” की आगरा जनपद की उपाध्यक्ष,गहमर गाजीपुर में ‘पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति’ २०१८ में सम्मान से सम्मानित |

लगाव (लघु कहानी)

सविता मिश्रा  “बुढऊ देख रहें हो न हमारे हँसते-खेलते घर की हालत!” कभी यही आशियाना गुलजार हुआ करता था! आज देखो खंडहर में तब्दील हो गया|” “हा बुढिया चारो लड़कों ने तो अपने-अपने आशियाने बगल में ही बना लिए है! वह क्यों भला यहाँ की देखभाल करते|” “रहते तो देखभाल करते न” चारो तो लड़लड़ा अलग-अलग हो गये|” “उन्हें क्या पता उनके माता-पिता की रूह अब भी भटक रही है! यही खंडहर में वे अपने लाडलो के साथ बीते समय को भला कैसे भुला यहाँ से विदा होतें! दुनिया से विदा हो गये तो क्या?” लम्बी सी आह भरी आवाज गूंजी “और जानते हो जी, कल इसका कोई खरीदार आया था, पर बात न बनी चला गया! बगल वाले जेठ के घर पर भी उसकी निगाह लगी थी|” “अच्छा बिकने तो ना दूंगा जब तक हूँ …..!” खंडहर से भढभडाहट की आवाज गूंज उठी वातावरण में “शांत रहो बुढऊ काहे इतना क्रोध करते हो” “सुना है वह बड़का का बेटा शहर में कोठी बना लिया है! अपने बीबी बच्चों को ले जाने आया है …!” “हा बाप बेटे में बहस हो रही थी ..! अच्छा हुआ हम दोनों समय से चल दिए वर्ना इस खंडहर की तरह हमारे भी …..|”  यह भी पढ़ें ………… अम्माँ परदे के पीछे अपनी – अपनी आस बदचलन

दोगलापन (लघुकहानी)

सविता मिश्रा =============“कुछ पुन्य कर्म भी कर लिया करो भाग्यवान, सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती है, और तू है कि कोई धर्म कर्म है ही नहीं|”“देखिये जी लोग क्या कहते है, करते है इससे हमसे कोई मतलब ……”बात को बीच में काटते हुए रमेश बोले- “हाँ हाँ मालुम है तू तो दूसरे ही लोक से आई है, पर मेरे कहने पर ही सही कर लिया कर|” नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी- -सामने छोटे बच्चों की भीड़ देख सोचा रख ही लूँपतिदेव का मन| जैसे ही बिठा प्यार से भोजन परोसने लगी तो चेहरे और शरीर परनजर गयी किसी की नाक बह रही थी, तो किसी के कपड़ो से गन्दी सी बदबू आ रही थी, मन खट्टा सा हो गया| किसी तरह शिखा ने दक्षिणा दे पा विदा कर अपने हाथ पैर धुले|“देखो जी कहें देती हूँ इस बार तो आपका मन रख लिया, पर अगली बार भूले से मत कहना……..| इतने गंदे बच्चे जानते हो एक तो नाक में ऊँगली डालने के बाद खाना खायी| मुझसे ना होगा यह….ऐसा लग रहा था कन्या नहीं खिला रही बल्कि…..भाव कुछ और हो जाये तो क्या फायदा ऐसी कन्या भोज का| अतः मुझसे उम्मीद मत ही रखना|”“अच्छा बाबा जो मर्जी आये करो, बस सोचा नास्तिक से तुझे थोड़ा आस्तिक बना दूँ|”“मैं नास्तिक नहीं हूँ जी. बस यह ढोंग मुझसे नहीं होता समझे आप|”“अच्छा-अच्छा दूरग्रही प्राणी|”…पूरे घर में खिलखिलाहट गूंज पड़ीपड़ोसियों ने दूजे दिन कहा -यार तेरी मुराद पूरी हो गयी क्या ? बड़ी हंसी सुनाई दे रही थी बाहर तक| हम इन नीची बस्ती के गंदे बच्चो को कितने सालो से झेल रहे है, पर नवरात्रे में ऐसे ठहाके नहीं गूंजे ..बता क्या बात हुई|”शिखा मुस्करा पड़ी ….. सविता मिश्रा का परिचय पति का नाम ..श्री देवेन्द्र नाथ मिश्र  पिता का नाम …श्री शेषमणि तिवारी  माता का नाम ….श्रीमती हीरा देवी  जन्म तिथि …१/६/७३  शिक्षा …बैचलर आफ आर्ट …(हिंदी ,रजिनिती शास्त्र, इतिहास) अभिरुचि ….शब्दों का जाल बुनना, नयी चीजे सीखना, सपने देखना यह भी पढ़ें ………. सेंध  गुडिया माटी और देवी  दुर्गा शप्तशती के प्रमुख मन्त्र  आपकी अपनी माँ भी देवी माँ का प्रतिबिम्ब हैं