मुझे मिला वो, मेरा नसीब है

मुझे मिला वो, मेरा नसीब है  वही सुकून जहां वो करीब है  मैं और क्या भला चाहूंगी  जब प्यार से उसके भर गई । उसने जो कहा मैंने मान ली  नज़र की हरकतें पहचान ली  जिस राह उसके कदम बढ़े  बनी फूल और मैं बिखर गई । वह मोड़ जहां टकराए हम बने जिस्म, जिस्म के साये हम  मेरा वक्त आगे बढ़ गया  पर मैं वहीं पर ठहर गई । जीवन उसी पर वार के  मैं खुश हूं खुद को हार के उसने देखा जैसे प्यार से  मेरी रूह तक निखर गई। आ जाए तो उसे प्यार दूं  मेरे यार सदका उतार लूं डर है नजर लग जाएगी  गर उसपर कोई नजर गई ।।   साधना सिंह  यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ लज्जा फिर से रंग लो जीवन टूटते तारे की मिन्नतें बाबुल मोरा नैहर छुटो नि जाए मेरे भगवान् आपको  कविता  “. डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under: , poetry, hindi poetry, kavita,

लघु कहानी — कब तक ?

     कल एक बहुत ही खूबसूरत विचार पढ़ा … “यह हमारे ऊपर है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अनुचित परम्पराओं को तोड़े ….जब वो कहते हैं कि हमारे परिवार में ऐसा ही होता आया है …तो आप उनसे कहिये कि यही वो बिंदु (स्थान) है जहाँ इसे परिवार से बाहर हो जाना चाहिए” समाज बदल गया पर आज भी हम परंपरा के नाम पर बहुत सीगलत चीजे ढो रहे हैं …खासकर लड़कियों के जीवन में बहुत सारे अवरोध इन परम्पराओं ने खड़े कर रखे हैं … 1)      हमारे परिवार की लडकियां पढ़ाई नहीं जाती | 2)      हमारे परिवार की लड़कियों की शादी तो २० से पहले ही जाती है | 3)      हमारे परिवार की लडकियां नौकरी नहीं करती | 4)      हमारे परिवार की लडकियाँ ….बहुत कुछ आप खुद भी भर सकते हैं |  ऐसी ही एक परंपरा को तोड़ती एक सशक्त लघु कथा  लघु कहानी —  कब तक ? बचपन से ही उसे डांस का बहुत शौक था । अक्सर छुप छुप कर टीवी के सामने माधुरी के गाने पर थिरका करती थी । जब वह नाचती थी तो उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती थी ।       मां भी बेटी के शौक के बारे में अच्छे से जानती थी .. कई बार मां ने बाबा को मनाने की कोशिश की थी पर उसका रूढ़िवादी परिवार नृत्य को अच्छा नहीं समझता था ।      ” क्या ?? नचनिया बनेगी ? ”  इस तरह के कमेंट से उसका मन भर आता था ।    एक दिन से ऐसे ही बाबा के काम पर जाने के बाद वह टीवी के सामने थिरक रही थी कि उसके कानों में आवाज आई  ” रश्मि, तैयार हो जा.. डांस एकेडमी चलना है !”   रश्मि मां का मुंह देखने लगी ।  “चल , तैयार हो .. देर हो जायेगी । ” मां उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली ।     अब मां ने फैसला कर लिया था कि बच्ची की इच्छा को यूं नहीं मरने देगी । परिवार के सामने बेटी की ढाल वह बनेगी । आखिर कब तक बेटियां इच्छाओं का गला घोंट घोंट कर जीवित रहेगी ?  कब तक ??  ___ साधना सिंह   गोरखपुर यूपी यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “कब तक ?”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, 

किताबें

ऑनलाइन पढने में और किताब हाथ लेकर पढने में वहीँ अंतर है जो किसी मित्र से रूबरू मिलने और फोन पर बात करने में है | ऑनलाइन रीडिंग की सुविधाओं के साथ कुछ तो है जो अनछुआ रह जाता हैं | एक तरफ हम  उन भावों की कमी से जूझते रहते हैं , दूसरी तरफ किताबिन शोव्केस में सजी हमारा रास्ता निहारी रहतीं हैं | क्या कहतीं हैं वो ….वक्त मिले तो पास बैठ कर सुनियेगा …. किताबें  किताबें  सबसे प्रिय मित्र ,संगी- साथी और मार्गदर्शक होते थे उन दिनों ।  बचपन में लोरी बन कर हमें हंसाते थे , गुदगुदाते थे , बहलाते थे , सुलाते थे । जवानी में लिपटकर सीने से  कल के सपने सजाते थे रूमानी ख़्वाब दिखाते थे तो कभी डाकिया बन जाते थे ।  बुढ़ापे के अकेलेपन में  गीता के श्लोक सुनाते थे, जीने की राह दिखाते थे ,  ईश्वर से मिलाते थे ।  पर आजकल डिजिटल संसार में  सबसे कोने वाली सेल्फ में  सजी रहती है किताबें  आते जाते सबको तकती रहती है किताबें  ज़रा ग़ौर से सुनो तो  कितना कुछ कहती रहती है किताबें ।  साधना सिंह गोरखपुर यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “किताबें “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, books 

टूटते तारे से मिन्नतें

कहते हैं टूटते तारे से जो मानगो वो मिल जाता है | इसलिए जब भी कोई टूटता तारा दिखता है हाथ खुद ब खुद दुआ के लिए जुड़ जाते हैं |लेकिन किसी विरहणी  की मिन्नतें कुछ अलग ही होती हैं ….  कविता -टूटते तारे से मिन्नतें  हर टूटते तारे से मिन्नतें करती हूँ  हर ऊंचे दर पर माथा टेकती हूँ  काश कोई मेरी किस्मत तुमसे जोड़ दे  जाने -अनजाने में हो गये अलग जो हम  कहीं किसी जगह….. किसी ठिकाने  जहां तुम मिल जाओ मेरी राह उधर मोड़ दे गर हो ना सके इतना भी ‘खुदा ‘ तो  बस इतनी सी इल्तिज़ा है मेरी  ले ज़िन्दगी मेरी ..तार सांसों का तोड़ दे …!!!   __________ साधना सिंह              गोरखपुर  यह भी पढ़ें … किताबें लज्जा फिर से रंग लो जीवन अब मैं चैन से सोऊंगी आपको    “   टूटते तारे से मिन्नतें “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: women, poetry, hindi poetry, kavita, shooting star

सपने

कितने मासूम होते हैं सपने जो आँखों में चले आते हैं  कहीं दूर आसमानों से , पल भर को सब कुछ हरा लगने लगता हैं …. कितने बेदर्द होते हैं सपने , जो पल भर में टूट जाते हैं नाजुक काँच से और ताउम्र चुभती रहती हैं उनकी किरचे |  कविता -सपने  सपनें प्राय: टूटते ही हैं  बस आँख खुलने की देर है  ज़िंदगी जिस चारपाई पर पड़ी मुस्करा रही थी  वो कुछ और नहीं  मदहोशी थी….  खुमार था  हकीकत की लु  चुभती  हुई  तंद्रा भंग कर जाती हैं…   और सामने वही रेत के टूटे हुये महल  मुंह चिढाता है ।  जो प्राप्य है वो पुरा नही है  जो नहीं मिला उसके पीछे कितना भागते है?   इतना की टखनें खसीटते हुये साथ देते हैं..   आह.. ये मृगमरीचिका  कितना छलेगी… ? ये कैसा तुफान है जो  मन को भटकाता है..   झुठे सपनें दिखाता है  और उस सपने के टुटे किरचे  सदियों तक आत्मा के पाँव को लहुलूहान करती है  और रिसता हुआ एक दर्द नासूर बनता है  इस तरह झुठा सपना छलता है  ____ साधना सिंह       गोरखपुर  यह भी पढ़ें … यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ”  सपने  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, dream, dreaming

कच्ची नींद का ख्वाब

ख्वाबों की पूरी अपनी एक अलग ही दुनिया होती है | वो हकीकत की दुनिया से भले ही मेल न खाती हो पर दिल को तो सुकून देती है | ऐसे में जब कच्ची नींद के ख्वाब में प्रियतम खुद प्रियतमा के पास आ जाए तो मौसम कैसे न रंगीन हो जाए |  हिंदी कविता -कच्ची नींद का ख्वाब  कच्ची नींद में कोई ख्वाब देखा है जैसे,   तुमको अपने पास देखा है।  मेरे साने पर गिरती तुम्हारी गर्म सासें और तुम्हारे नर्म होठों का जिंदा आभास  उफ़..  हथेलियाँ भींगती सी लगी  मानों तलवों मे हजार तितलियाँ गुदगुदी सी कर गयी …  दिल बेतहाशा धड़का   कि आँख खुल गयी ..   फिर जैसे मेरे उंगलियों के पोरों से तुम्हारे बालों की खुशबू आयी  और आंखों के कोरों से तुम्हारे ना होने का गीला एहसास…..!!! _______ साधना सिंह         गोरखपुर  यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी शुक्र मनाओ किताबें बोनसाई आपको “कच्ची नींद का ख्वाब   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, dream, dreaming

अब चैन से सोऊंगी

तुम्हारा आना तुम्हारा होना मेरा पूर्णता का द्योतक  तुम प्रेम हो इससे इतर  मैं सम्मान क्या जोहूंगी | कियें अास सब तूने पूरे  …विश्वास मेरा जीता  हुआ मेरा सांस-सांस तेरा   तेरी उम्मीद मैं बोऊंगी |  अब  तरंग है, उमंग है , रास-रंग है ये जीवन  एक तुझे पाकर जो पाया है,    तुझे खोकर ना खोऊंगी |  गुदगुदाती रहती है मन को तेरी मीठी ये  बातें  तुने तोहफे में हंसी दी है अब  एक आँसू ना रोऊंगी  |   बहुत गुजरी है रातें मेरी उलझन में, बेचैनियों में  तेरे बांहों का तकिया लेकर  अब चैन से सोऊंगी ||  _____=== साधना सिंह  यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ मुझे शक्ति बनना होगा बैसाखियाँ  आपको “ अब चैन से सोऊंगी“कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

जाने कितनी सारी बातें मैं कहते कहते रह जाती हूँ

लफ्जों को समझदारी में लपेट कर निगल जाती हूँ  जाने कितनी सारी बातें मैं कहते कहते रह जाती हूँ ।  और तुम ये समझते हो ,मै कुछ समझ नही पाती हूँ  है प्यार तुमको जितना मुझसे , मै समझ जाती हँ ।  बड़ी मुश्किल से मुहाने पर रोकती हूँ …बेचैनी को  और इस तरह अपना सब्र….मै रोज़ आजमाती हूँ ।  आरजू हो ,  किसी मन्नत के मुरादो में मिले हो तुम  सलामत रहों सदा…. दुआ मैं दिन भर गुनगुनाती हूँ । चाहे तुम रहो जहां कहीं ….तुम मुझसे दूर नही हो  आखें मैं बंद करू और  अपने मन में  तुम्हें पाती है । अब कहीं कहां मेरा…… कोई ठौर या ठिकाना  एक कड़ी हर रोज़ तुम्हारे और करीब आती हूँ ||  _________ साधना सिंह                       गोरखपुर  यह भी पढ़ें … पढ़िए एक से बढाकर एक कवितायें काव्य जगत में आपको  कविता  “जाने कितनी सारी बातें मैं कहते कहते रह जाती हूँ “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें 

डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ.

तुम्हें अपने शब्दों में ढाल कर अपनी डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ…  पर उन शब्दों में निहित भाव तुम्हें यकीनन नागवार गुजरेंगे ।  मेरे जुबान बेशक चुप रहते है  पर मेरे मन में जाने कितने सवाल टीस बनकर चुभतें है । मै वृक्ष सी कब तक तिराहे पर चौराहा बनकर निस्तब्ध पड़ी रहूंगी…   बिना मुसाफिर, बिना मंजिल जिसकी छाँव भी उदास कोई राहगीर की प्रतिक्षा में जड़ हो जाये ।  कहां मिलोगे… कब मिलोगे… पता नहीं,   ये असहज संवाद,  बेवजह ठहाके  निराधार संबंध, और अस्थिर मनोभाव  क्यों,  कैसे और किस लिये साथ लेकर जीना है ? समझा पाओगे मुझे…  ?  या सह पाओगे जब मैं तुमसे अपने कुछ अधिकार मांग लूँ?   तुम्हारे पुरुषत्व की प्रतिष्ठा और मेरे स्त्रीत्व की गरिमा  मैं कागज पर उतार तो दूँ,  पर फिर सवाल निजता की होगी  और मेैं एक तलवार के धार पर  यही सोचकर मैं कलम की स्याही कागज पर उडे़ल कर एक विकृत नासमझ सी आकृति बना देती हूँ ||   _________ साधना सिंह        गोरखपुर  काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें यह भी पढ़ें ……….. नए साल में पापुआ की मम्मी डिजिटल हो गयी पाँच कविताओं को गुलदस्ता – साल बदला है हम भी बदलें बाबुल मोरा नैहर छुटो नि जाए मेरे भगवान् आपको  कविता  “. डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

ये इन्तज़ार के लम्हें

अनजान बेचैनियों में लिपटे,   मेरे ये इन्तज़ार के लम्हें  तुम्हें आवाज़ देना चाहते हैं..   पर मेरा मन सहम जाता है । तुम जानते हो क्यों?   फिर सवाल…   तुम हंस पड़ोगे , या तुम्हारे पास कोई लम्बी सी दलील होगी , लाज़मी है …  और तब भी मेरे लब खामोश ही होंगे , जबकि मेरे अंदर  कितने सारे तुफान बांध तोड़ने पर आमादा है।  मन का ना जाने कौन सा अनछुआ कोना  बगावती हो रहा है…  मेरे ही खिलाफ़ ..  जो भर लेना चाहते है सांसो मे इस लम्हें की खुश्बू  भींग जाना चाहता है उठ रहे एहसासों के ओस में  और खिलना चाहता है,  खिलखिलाना चाहता है  तुम मत सुनना ये शोर  क्योंकि मै जानती हूँ  तुम अब भी हसोंगे या …  या तुम्हारे पास होगी वही लम्बी दलील || _________ साधना सिंह                गोरखपुर  काव्य जगत में पढ़िए बेहतरीन कवितायें संगीता पाण्डेय की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ रूचि भल्ला की कवितायें आपको  कविता  “ ये इन्तज़ार के लम्हें “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |