पिता की अस्थियां ….

पिता , बस दो दिन पहले आपकी चिता का अग्नि-संस्कार कर लौटा था घर …. माँ की नजर में खुद अपराधी होने का दंश सालता रहा … पैने रस्म-रिवाजों का आघात जगह जगह ,बार बार सम्हालता रहा …. आपके बनाए दबदबा,रुतबा,गौरव ,गर्व अहंकार का साम्राज्य , होते देखा छिन्न-भिन्न, मायूसी से भरे पिछले कुछ दिन… … Read more

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तुफानों का गजब मंजर नहीं है

सुशील यादव 122२  1222 १22 तुफानों का गजब मंजर नहीं है इसीलिए खौफ में ये शहर नहीं है तलाश आया हूँ मंजिलो के ठिकाने कहीं मील का अजी पत्थर नहीं है कई जादूगरी होती यहाँ थी कहें क्या हाथ बाकी हुनर नहीं है गनीमत है मरीज यहाँ सलामत अभी बीमार चारागर नहीं है दुआ मागने … Read more

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स्मृति – पिता की अस्थियां ….

सुशील यादव पिता , बस दो दिन पहले आपकी चिता का अग्नि-संस्कार कर लौटा था घर …. माँ की नजर में खुद अपराधी होने का दंश सालता रहा … पैने रस्म-रिवाजों का आघात जगह जगह ,बार बार सम्हालता रहा …. @@ आपके बनाया दबदबा,रुतबा,गौरव ,गर्व अहंकार का साम्राज्य , होते देखा छिन्न-भिन्न, मायूसी से भरे … Read more

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