स्मिता शुक्ला एक आम घर का दृश्य देखिये | पूरा परिवार खाने की मेज पर बैठा है | सब्जी रायता , चपाती , गाज़र का हलवा और टी .वी हाज़िर है | कौर तोड़ने ही जा रहे हैं कि टी वी पर ऐड आना शुरू होता है बिपाशा बसु नो शुगर कहती नज़र आती हैं | परिवार की १७ वर्षीय बेटी हलवा खाने से मना कर देती है | घर का मुखिया फलां ब्रांड का पनीर लाने को कहता है क्योंकि उसमें कैल्सियम ज्यादा है | वहीँ बेटा विज्ञापन देख कर ६ पैक एब्स बनाने के लिए एक ख़ास पॉवर पाउडर की जिद कर रहा है | जिसमें आयरन मैग्नीशियम की ख़ास मात्रा है | सासू माँ अपने तमाम टेस्ट करवाने का फरमान जारी कर देती हैं की उन्हें भी तो पता चले की उनके शरीर में क्या –क्या कमी है |खाने का मजा सेहत के तनाव ने ले लिया | क्या आप का घर भी उनमें से एक है ? ये सच है कि आज स्वास्थ्य के प्रति क्रेज दिनों दिन बढ़ रहा है | इसमें कुछ गलत भी नहीं है | अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और स्वस्थ रहना अच्छी बात है | परन्तु नए ज़माने के साथ स्वाथ्य का औद्योगीकरण हो चुका है | आज विभिन्न देशी विदेशी कम्पनियाँ स्वास्थ्य बेच रहीं हैं | इसके लिए तरह -तरह के लुभावने विज्ञापन हैं , टॉनिक हैं जो पूरी तरह फिट रहने की गारंटी देते हैं , जिम हैं , हाईट वेट चार्ट हैं , प्लास्टिक सर्जरी है | और एक पूरे का पूरा मायाजाल है जो सेहत के प्रति जागरूक लोगों कि जेबें ढीली करने को चारों तरफ फैला है | शहर तो शहर गाँवों में भी दूध मट्ठा छोड़ कर हर्बल पिल्स खाने का चलन बढ़ गया है |अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि एक गाँव की रिश्तेदार मुझे ** कम्पनी की तुलसी खाने की सलाह दे रही थी |जब मैंने कहा की तुलसी तो घर में लगी है उसी की पत्ती तोड़ कर न खा लूं | तो मुंह बिचकाकर बोली , ” आप को न खानी है तो न खाओ , अब टी वी में दिखाते हैं , उसमें कुछ तो ख़ास होगा ये सारा उद्योग रोग भय पर टिका है| बार -बार संभावित रोग का भय दिखा कर अपने उत्पाद बेंचने का प्रयास हैं |लोग ओरगेनिक फ़ूड पसंद कर रहे हैं , जिम जा रहे हैं , हेल्थ मॉनिटर करने वाला एप डाउन लोड कर रहे हैं, कैलोरी गिन गिन कर खा रहे हैं स्वास्थ्य और पोषण को लेकर आजकल पूरी दुनिया पर एक तरह का पागलपन सवार है। यह पागलपन अमेरिका से शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फैल गया। आज हर कोई पोषण और पौष्टिक आहार को लेकर पागल है, लेकिन फिर भी लोगों को सही पोषण नहीं मिल रहा। ऐसे में हो यह रहा है कि लोग ढेर सारी गोलियां सुबह -शाम ले रहे हैं । आज-कल यह फैशन चल पड़ा है कि कोई भी चीज खाने से पहले आप खाद्य पदार्थों के पैकेट पर महीन अक्षरों में लिखा हुआ लेबल पढ़ते हैं और तब उसे खाने में प्रयोग करते हैं। खासतौर पर यह पता लगाने के लिए कि उसमें मैग्नीशियम कितने मिलीग्राम है,आयरन और काल्सियम कितना है , उसमें कैलरी आदि की मात्रा कितनी है। अकसर लोग यह कहते मिलेंगे, ‘नहीं, नहीं, मुझे जितने मैग्नीशियम की जरूरत है, इसमें तो उससे 0.02 मिलीग्राम ज्यादा मैग्नीशियम है। इसलिए मुझे यह नहीं, वह चाहिए। यह सब पागलपन नहीं तो और क्या है! इस धरती का हर जीव अच्छी तरह जानता है कि उसे क्या खाना चाहिए। बस इंसान को ही नहीं मालूम कि उसे क्या खाना है, जबकि वह इस धरती की सबसे बुद्धिमान प्रजाति होने का दावा करता है। इस इंसान की बुद्धिमानी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आप उसे बेकार से भी बेकार चीज बेच सकते हैं, अगर आपके अंदर बेचने की कला हो।| कभी –कभी लगता है अगर मैगी की तरह रोटी का विज्ञापन आता तो हमारे बच्चे रोटी –रोटी कर के उछलते | सिर्फ आपके सोचने भर से आपको पोषण नहीं मिलेगा और न ही इसके बारे में खूब पढ़ने या ढेर सारी बातें करने से मिलेगा। आपको पोषण का मिलना इस बात पर निर्भर करता है कि जो कुछ भी आपके शरीर के भीतर जा रहा है, उसे ग्रहण करने की आपकी क्षमता कैसी है। पोषण सिर्फ खाने में नहीं है। पोषण तो आपकी उन चीजों को अवशोषित करने की क्षमता है, जो आपके शरीर के भीतर जाती हैं। अपने देश में बेहद साधारण खानपान से भी लोगों ने लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जिया है। मेरे एक रिश्तेदार जो ९५ वर्ष की आयु तक जिए वो सत्तू या मक्का का सेवन करते। हफ्ते में एक-दो बार चावल ले लेते थे। इन चीजों के साथ थोड़ी हरी सब्जियां लेते। ये सामान्य सी हरी सब्जियां होती थीं, जिन्हें लोग ऐसे ही यहां-वहां से तोड़ लेते हैं। इसके अलावा, चना, लोबिया या दाल का भी सेवन कर लेते थे। बस यही सब उनका भोजन था। अगर किसी आहार विशेषज्ञ की राय ली जाए तो निश्चित तौर से वह यही कहेगा कि इस भोजन में यह नहीं है, वह नहीं है। इस तरह के आहार पर आप जी नहीं सकते, जबकि सच्चाई यह है कि इसी आहार की बदौलत वह ९५ साल तक जीवित रहे। समझने की बात यह है की कि मानव तंत्र सिर्फ रसायन भर नहीं है। यह सच है कि शरीर में रसायन महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वही सब कुछ नहीं हैं। इसका एक दूसरा पहलू भी है और वह है ‘पाचन शक्ति’। अगर वह ठीक है, तो सब ठीक है। दरअसल, चीजों को खाने से ज्यादा जरूरी है उनका पचना और शरीर में लगना। आपने देखा होगा कि एक ही तरह का भोजन लेने वाले सभी लोगों को एक जैसा पोषण नहीं मिल पाता। यह तथ्य तो मेडिकल साइंस भी मानता है। आप वो सब खायेंगे जो अब्सोर्ब ही नहीं होता तो उस कैल्शियम और आयरन का कोई मतलब नहीं है | शरीर जानता है उसे क्या और कितना पचता है | उसकी आवाज़ सुनिए और सच्ची भूख लगने पर ही वो … Read more