6 साल के बच्चे का अपने सैनिक पिता को फोन…..

6 साल के बच्चे का अपने सैनिक पिता को फोन.....

आज हम जिस स्वतंत्रता का उत्सव मना  रहे हैं उसके पीछे ना जाने कितने लोगों का बलिदान है |आज भी जब हम घर में चैन  से सोते हैं तो क्या सोचते हैं कि कोई सरहद पर हमारे लिए जाग रहा है ,शहीद  हो रहा है |एक सैनिक  जो शहीद होता है उसका भी परिवार होता है |मता  -पिता,भाई  -बहन ,पत्नी और बच्चे |उसके जाने के बाद उनके जीवन का शून्य कभी नहीं भर पाता |ऐसे ही एक बच्चे का दर्द उभर कर आया है इस कविता में .. 6 साल के बच्चे का अपने सैनिक पिता को फोन….. झंडे में एक लाश आई है, पापा तुम तो जिन्दा हो ना ? मम्मी रोती दादी रोती, पापा तुम तो जिन्दा हो ना ? आज बुआ मेरा हाथ पकड़कर जाने कितना रोती है, मम्मी भी तो पता नहीं क्यों रोकर बेसुध हो होती है? दादू भी चुपचाप खड़े हैं आज नहीं कुछ बोल रहे। जाने सब क्या करें तैयारी, पापा तुम तो जिन्दा हो ना ? जो अंकल हैं लेकर आये, कुछ भी नहीं बताया है। हम भी ज़िद पर अड़े रहे तो, फोन तुम्हें ये लगाया है।। डाटों इनको गन्दे अंकल, कैसे हैं चुपचाप खड़े, ऐसी हरकत करते हैं, इसपर तुम शर्मिंदा हो ना? हमने जो कुछ था मंगवाया, चा वो भी मत लाना। सारे हैं परेशान हो रहे पापा जल्दी आ जाना।। मेरे साथी बोल रहे थे, सैनिक तो हैं मर भी जाते। तुम मत मरना पापा मेरे, बोलो तुम तो जिन्दा हो ना ? झंडे में एक लाश आई है, पापा तुम तो जिन्दा हो ना? ……………….मानस स्वतंत्रता दिवस पर अन्य रचनाएँ यह कविता  आपको कैसी लगी हमें अवश्य बताए |अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करे व अटूट बंधन के फेसबूक पेज को लाइक करे |

देश भक्ति के गीत

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई, देहरादून, उत्तराखंड जय गान करें ———————– भारत का जय गान करें आओ हम अपने भारत की नई तस्वीर गढ़ें भारत का…. अपनी कीमत खुद पहचाने हम क्या हैं खुद को भी जाने अपने मूल्यों और संस्कृति की एक पहचान बनें भारत का…. जो खोया वो फिर पाना है जो छीना वो फिर पाना है अपनी धरोहर की रक्षा में नहीं किसी से डरें भारत का…. अपनी गलती से सीखें हम उसको कभी न दोहराएं हम हिंदुत्व अपने में लेकर हम हर एक कदम धरें भारत का… ———————————— –कुछ इस तरह ———————— जिऊँ कुछ इस तरह देश मेरे कुछ ऋण तुम्हारा उतार सकूँ सोचूँ  कुछ इस तरह देश मेरे जीवन में तुम्हें बसा सकूँ गाऊँ कुछ इस तरह देश मेरे गीतों में तुम्हें गुनगुना सकूँ लिखूं कुछ इस तरह देश मेरे शब्दों में तुम्हें बाँध सकूँ उड़ूँ कुछ इस तरह  देश मेरे तिरंगा अपना लहरा सकूँ देखूँ कुछ इस तरह  देश मेरे हरदम तुम्हें हिय में बसा सकूँ मैं रोऊँ-गाऊँ कुछ भी करूँ देश मेरे जब चाहूँ तुमको बुला सकूँ।        मरुँ कुछ इस तरह देश मेरे मिट्टी में मिल तुझमें समा सकूँ। —————————- मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments are

पिजड़े से आजादी

यूँही नही मिली एै दोस्त————– गुलाम भारत के पिजड़े की चिड़ियाँ को आजादी। यूँही नही इसके पर फड़फड़ाये खुले आकाश—– बहुत तड़पी रोई पिजड़े मे इसके उड़ने की आजादी। इसने देखा है——– गोली सिने मे लगी घिसटता रहा खोलने पिजड़े को, लेकिन खोलने से पहले दम तोड़ गया, इस आस मे कि मै तो न खोल सका, पर कोई और खोलेगा एकदिन और दुनिया देखेगी—- इस बंद पिजड़े के चिड़ियाँ की आजादी। जश्ऩ मे डुबी सुबह होगी तिरंगे फहरेंगे, जलिया,काकोरी,आजाद,विस्मिल की गाथाये होंगी, हाँ ! आँख भिगोये देखेगी वही पिजड़े की चिड़ियाँ, क्योंकि बड़ी मुश्किलो से पाई है एै “रंग”———- इस चिड़ियाँ ने उस पिजड़े से आजादी। @@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)। मेरा भारत महान ~जय हिन्द

पन्द्रह अगस्त

15 अगस्त पर एक खूबसूरत कविता —रंगनाथ द्विवेदी अपनो के ही हाथो——— सरसैंया पे पीड़ाओ के तीर से विंधा, भीष्म सा पड़ा है——पन्द्रह अगस्त। सड़को पे द्रोपदी के रेप के दृश्यो ने, फिर भर दी है आजाद देश के उन तमाम शहीदो की आँखे, और उनकी रुह के सामने! शर्म से खड़ा है—-पन्द्रह अगस्त। बहुत बिरान है मजा़रे कही मेला नही लगता, ये सच है——————- कि हम शहिदो की शहादत के दगाबाज है, फिर भी एै,रंग————- ये लहराते तिरंगे कह रहे, कि हमारी तुम्हारी सोच से भी कही ज्यादा, विशाल और बड़ा है—–पन्द्रह अगस्त। यह भी पढ़ें ….. क्या है स्वतंत्रता का सही अर्थ भारत बनेगा फिर से विश्व गुरु आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments area

क्या है स्वतंत्रता सही अर्थ :जरूरी है स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता की पुनर्व्याख्या

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई, देहरादून, उत्तराखंड ——————————————-             स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?  स्वतंत्रता का अर्थ वही है जो हम समझना चाहते हैं, जो अर्थ हम लेना चाहते हैं। यह केवल हम पर निर्भर है कि हम स्वतंत्रता,स्वाधीनता,स्वच्छंदता और उच्छ्रंखलता में अंतर करना सीखें।           वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्रता पाई, पर लंबे समय तक पराधीन रहने के कारण मिली स्वतंत्रता का सही अर्थ लोगों ने समझा ही नहीं और हम मानसिक परतंत्रता से मुक्त नहीं हो पाए। अपनी भाषा पर गर्व, गौरव करना नहीं सीख पाए।           आज देखा जाए तो स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों के ही अर्थ बदल गए है।  हर व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार इन्हें परिभाषित कर आचरण करता हैं और इसके कारण सबसे ज्यादा रिश्ते प्रभावित हुए हैं। रिश्तों ने अपनी मर्यादा खोई है, अपनापन प्रभावित हुआ है, संस्कारों को रूढ़िवादिता समझा जाने लगा और ऐसी बातें करने और सोच रखने वालों को रूढ़िवादी। रिश्तों में स्वतंत्रता का अर्थ…स्पेस चाहिए। मतलब आप क्या कर रहे हैं इससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए, कुछ पूछना नहीं चाहिए…यदि पूछ लिया तो आप स्पेस छीन रहे हैं। इसे क्या समझा जाए। क्या परिवार में एक-दूसरे के  बारे में जानना गलत है कि वह क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, कब आएँगे, कब जाएँगे… और इसी अति का परिणाम…रिश्ते हाय-हैलो और दिवसों तक सीमित होकर रह गए हैं।  विवाह जैसे पवित्र बंधनो में आस्था कम होने लगी हैं क्योंकि वहाँ जिम्मेदारियाँ हैं और जिम्मेदारियों को निभाने में कुछ बंधन, नियम मानने पड़ते हैं और मानते हैं तो स्वतंत्रता या यूँ कहें मनमानी का हनन होता है। तब लिव इन का कांसेप्ट आकर्षित करने लगा…जहाँ स्वतंत्रता ही स्वतंत्रता। हर काम बँटा हुआ…जब तक अच्छा लगे साथ, नहीं लगे तो कोई और साथी। इसमें नुकसान अधिक लड़की का ही होता है, पर वह स्वतंत्रता का सही अर्थ ही समझने को तैयार नहीं, अपने संस्कार, अपनी मर्यादाओं में विश्वास करने को तैयार नहीं          स्त्री-पुरुष दोनों बराबर हैं… इसने भी स्वतंत्रता के अर्थ बदल दिए हैं। इसने मनमानी और उच्छ्रंखलता को ही बढ़ावा दिया है। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे का पूरक बनाया है तो उसे स्वीकार कर रिश्ते, परिवार, समाज, देश संभाला जाए, पर नहीं… बराबरी करके संकटों को न्योता देना ही है।             एकल परिवारों की बढ़ती संख्या भी इसी का परिणाम है। सबको अपने परिवार में यानी पति-पत्नी,बच्चों को अपने मनमाने ढंग से रहने के लिए देश-विदेश में इतनी स्वतंत्रता चाहिए कि उसमें वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। तभी ऐसी घटनाएं घटती हैं कि कभी जब बेटा घर आता है मेहमान की तरह तो उसे कंकाल मिलता है।            आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना विवेक जगाएँ, सही और गलत को समझें…तब स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता, मनमानी के सही अर्थ समझें, इनकी पुनर्व्याख्या करें, अपनी संस्कृति, अपनी मर्यादाएँ, अपनी सभ्यता, अपने आचरण पर विचार करें | तभी रिश्ते कलंकित होने से बच पाएंगे, परिवार सुरक्षित होंगे, समाज और देश भी सुरक्षित हाथों में रह कर, ईमानदारी के रास्ते पर चल कर अपना विकास करने में समर्थ होंगे। ——————————————- रिलेटेड पोस्ट … आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments area

‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख : भारत बनेगा फिर से विश्व गुरु

15 अगस्त ‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख – डाॅ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के:- भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। (2) उदार चरित्र वालो के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है:-  भारत एक महान देश है इसकी महानता इसकी उदारता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है। विश्वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत जैसे देश के पास ही हैं। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्व भारत की ओर बड़ी ही आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजों की संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढ़ाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील लोग थे जो सारी दुनियाँ में ‘उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आज़ादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज़ उठाई थी, वह महज़ अंगे्रजांे के खिलाफ़ नहीं बल्कि सारी मानव जाति के शोषण के विरुद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कर लिया। (3) भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्व को बचाने का दायित्व है:-  आज से लगभग 157 वर्ष पूर्व बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी, जिसके विरूद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया। लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुईं हैं। वर्तमान में विश्व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, 36,000 बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के समक्ष है। (4) भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा:- प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्व में ‘‘जगत गुरू’’ के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था। हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्व का ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते (1) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’ की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने के नाते, मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातांत्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों का पालन करने के साथ ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति को भी सारे विश्व में फैलायेंगा। विश्व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत ही वो अकेला देश हैं जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। (5) हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एकता की डोर से बांधना है:-  महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शांति की खोज करता-करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’ हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं और हमारा धर्म है ‘‘सारी मानवजाति की भलाई।’ अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें। इसके लिए भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के आदर्श के अनुकूल सारे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय का शीघ्र गठन करने की अगुवाई पूरी दृढ़ता से करनी चाहिए। वह बाल एवं युवा पीढ़ी जो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पलों को इस देश सहित विश्व के निर्माण में लगा रहे हैं वे हमारी ताकत, रोशनी, दृष्टि, ऊर्जा, धरोहर तथा उम्मीद हैं। (6) सी.एम.एस. इस युग की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासरत् हैः-  हमारे विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र से अधिकृत एन.जी.ओ. के रूप में … Read more

आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प लें नए भारत के निर्माण का

15 अगस्त ‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख – डाॅ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक नए भारत के निर्माण का:-             1942 में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक संकल्प लिया था, ‘भारत छोड़ो’ का और 1047 में वह महान संकल्प सिद्ध हुआ, भारत स्वतंत्र हुआ। हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक स्वच्छ, गरीबी मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकवाद मुक्त, सम्प्रदायवाद मुक्त तथा जातिवाद मुक्त नए भारत के निर्माण का। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। (2) उदार चरित्र वालों के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है:-             भारत एक महान देश है इसकी महानता इसकी उदारता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है। विश्वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत जैसे देश के पास ही हैं। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्व भारत की ओर बड़ी ही आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजों की संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढ़ाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील लोग थे जो सारी दुनियाँ में ‘उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आज़ादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज़ उठाई थी, वह महज़ अंगे्रजांे के खिलाफ़ नहीं बल्कि सारी मानव जाति के शोषण के विरूद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कर लिया। (3) भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्व को बचाने का दायित्व है:-             आज से लगभग 157 वर्ष पूर्व बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी, जिसके विरूद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया। लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुईं हैं। वर्तमान में विश्व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, 36,000 बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के समक्ष है। (4) भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा:-             प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्व में ‘‘जगत गुरू’’ के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था। हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्व का ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते (1) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’ की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने के नाते, मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातांत्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों का पालन करने के साथ ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति को भी सारे विश्व में फैलायेंगा। विश्व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत ही वो अकेला देश हैं जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। (5) हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एकता की डोर से बांधना है:-             महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शांति की खोज करता-करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’ हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं और हमारा धर्म है ‘‘सारी मानवजाति की भलाई।’ अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें। इसके लिए भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के आदर्श के अनुकूल सारे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय का शीघ्र गठन करने की अगुवाई पूरी … Read more

अटूट बंधन अंक -१० सम्पादकीय …भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है

कुछ खौफनाक जंजीरे जो दिखती नहीं हैं  पहना दी जाती हैं अपनों द्वारा इस चतुराई से कि मासूम कैदी स्वयं ही स्वीकार कर लेता है बंधन अंगीकार कर  लेता है पराजय यहाँ तक   कि  उसकी सिसकियाँ ,घुटन ,मौन चीखे नहीं लांघ पाती कभी घर की देहरी न ही उठती है कभी मुक्ति कामना की आवाज़ हत भाग्य !किसी स्वतंत्र देश में भी  नहीं की जा सकती गिनती इन भावनात्मक  परतंत्र लोगो की                 १५ अगस्त सन १९४७ को हमारे देश भारतवर्ष को  ब्रिटिश  हुकूमत से स्वतंत्रता मिली | यह दिन हम सब के लिए अत्यंत प्रसन्नता का दिन है | आज स्वतंत्रता पर कुछ लिखने से पूर्व मेरा मन मनुष्य की एक खतरनाक वृत्ति पर जा रहा है | वो है दूसरे को परतंत्र बनाने की इक्षा | आज से अरबों –खरबों साल पहले जब पृथ्वी पर जीवन का पहला अंकुर  फूटा था तब कौन जानता था कि विकास के क्रम में शीर्ष पर आने वाला मानव अहंकार से इतना अधिक ग्रस्त हो जाएगा कि वो समस्त प्राणियों को ईश्वर द्वारा प्रदत्त स्वतंत्र अस्तित्व के नैसर्गिक अधिकार की अवहेलना करते हुए उनकी स्वतंत्रता  छीन कर उन्हें गुलाम बनाने में लग जाएगा | जिसका आरंभ  हुआ  प्रकृति को गुलाम बनाने की प्रवत्ति से , फिर पुशु –पक्षी , फिर एक कबीले द्वारा दूसरे कबीले को , एक सम्प्रदाय द्वारा दूसरे सम्प्रदाय को, एक रंग द्वारा दूसरे रंग वाले समूह को ,  एक देश द्वारा दूसरे देश को | सर्वश्रेष्ठ होने का अभिमान ,सत्ता का मद या  अधिपत्य की भावना  कितने सिकंदर ,गौरी ,गजनी या अंग्रेज़ हुक्मरानों  को फतह के छलावे से संतुष्ट करती रही | हमने उन्हें एक उपनाम से सुशोभित कर दिया …… तानाशाह ,जो दूसरों को उनके अनुसार जीने न दे | पर आज मैं किसी और प्रकार के तानाशाह और गुलामों के बारे में कुछ कहना  चाहती हूँ |              समय के रथ पर सवार होकर जरा पीछे लौटती हूँ तो याद आता है कि जब मैं छोटी थी तब मेरे मन में गुलाम शब्द पढ़ या सुन  कर एक ऐसे निरीह व्यक्ति की तस्वीर खिचती थी , जिसके सामने  बहुत भयानक शक्ल वाला व्यक्ति (तानाशाह ) होता ,जिसके हाथ में हंटर होता और जुबान पर गालियाँ ………. जो बात –बात पर जोर –जोर से चिल्लाते हुए हंटर चलाता  और बेचारा गुलाम  हाथ जोड़ कर उसकी गलत सही हर बात मानने को तैयार रहता | किसी व्यक्ति का दूसरे व्यति से चाबुक के दम पर गुलामी करवाना निहायत निंदनीय है| हर व्यक्ति को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है | ऐसे में गुलाम के प्रति सहानुभूति होना स्वाभाविक है | पर इससे इतर भी एक गुलामी होती है जिसकी कल्पना भी मेरा बाल मष्तिष्क नहीं कर पाया था | जहाँ तानाशाह के हाथ में चाबुक नहीं दूसरे को रुल बुक के अनुसार उसका कर्तव्य याद दिलाने  की अदृश्य किताब होती है |आँखों में दहकते अंगारे नहीं वरन  आँसू होते हैं , जुबान पर गालियाँ नहीं अपितु तुम्हारी वजह से ,या मुझे समझो के जुमले होते हैं | दूसरों को गुलाम बना कर रखने की प्रवत्ति की इनकी जंजीरे इतनी रहस्यमयी होती हैं कि स्वयं गुलाम बने व्यक्ति को भी  बहुत देर में अपनी दासता  के बारे में समझ आता है | यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इतने नाज़ुक जंजीरों से कोई कैसे गुलाम बन सकता है ? वस्तुतः कोई गुलाम नहीं बनना चाहता पर चाहे -अनचाहे  हममें  से बहुत से  संवेदनशील लोग भावनात्मक  रूप से गुलाम बन जाते हैं | अफ़सोस उन्हें गुलाम बनाने  वाला कोई तानाशाह नहीं वरन उनके  अपने ही जानने वाले ,मित्र ,नाते रिश्तेदार ,जीवनसाथी ,बच्चे यहाँ तक कि कभी –कभी पेरेंट्स भी होते हैं | कैसे ? जरा इन उदाहरणों पर गौर करिए | १ ) पढ़ी  –लिखी सुरुचि जब आँखों में ढेर सारे सपने भर कर  सुशिक्षित पति के साथ ससुराल में आई थी तो उसे इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उसका पति उसे घर से बाहर निकलने का अवसर भी नहीं देगा | जब भी वो घर के बाहर जा कर कुछ काम करने की बात करती उसका पति आँखों में आंसूं भर कर कहता “जब तुम घर के बाहर जा कर काम करोगी कोई तुम्हे देखे  ,बात करे मैं बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा |  क्योंकि मैं तुम्हे इतना प्यार करता हूँ जो पूरी दुनियाँ से अलग है अलहदा है | सुरुचि कभी –कभी विरोध करती पर पति के दुनियाँ से इतर प्यार व् आँसू उसे स्वयं ही घर में कैद रहने को विवश कर देते | सुरुचि गुलाम है प्रेम खोने के भय की | २ )कॉलेज के हॉस्टल में प्रिया  के साथ रहने वाली कृति अक्सर उसे अपने बॉय फ्रेंड से ब्रेक अप के किस्से सुनाती | प्रिया उसके साथ सहानुभूति रखती ,समझाती पर वही बात रोज़ –रोज़ सुनने से प्रिया  की पढाई का नुक्सान होने लगा | एक दिन उसने कृति से मना  कर दिया | कृति ने तुरंत उसे “इनह्यूमन “ करार  दे दिया | साथ ही यह भी याद दिलाया कि वो एक अच्छी मित्र नहीं है ,क्योंकि जब प्रिया  के पिता बीमार थे तब तो उसने सुना था | प्रिया  के अन्दर कर्तव्य बोध  पैदा होगया उसने अपनी किताब एक तरफ रख कर कृति का हाथ पकड़ कर कहा ‘ सॉरी , बता क्या कहना चाहती है | प्रिया  गुलाम है कृति द्वारा सिद्ध किये गए कर्तव्य की | ३ )श्रीमती सावित्री देवी के पिता बचपन में ही भगवान् को प्यारे हो गए | गरीबी असफल विवाह की त्रासदी झेलने वाली सावित्री देवी अक्सर अपने बच्चो से रिश्ते –नातेदारों से व्  मिलने वालों से  कहती “ कम से कम तुम तो मेरी बात मानो ,मुझे तो पहले ही ईश्वर ने इतने दुःख दे रखे हैं | धीरे –धीरे  …. घर आई बहुओ और नाती –पोतो पर भी वह अपने पिछले दुखद जीवन का वास्ता   देकर गलत –सही बात मनवाने का दवाब डालने लगी | सावित्री देवी का यह कहना “जाओ तुम सब सुखी रहो ,हमें तो भगवान् नें पहले से ही दुःख दे रखे हैं ……. परिवार में सबके अन्दर अपराध बोध भर देता और वे सब उनकी हर जायज़ ,नाजायज बात मानने को तैयार हो जाते … Read more

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के

swatantrta divas par vishesh kavita / main swpn dekhta hoon ek aise swarajy ke  मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ कोई माँ भूख से बिलबिलाते बेबस लाचार बच्चे के आगे पानी भर परात में न उतारे चंदा यूँ बहलाते हुए कि चुप हो जा बेटा देख तेरी रोटी गीली हो गयी है खा लेना जब सूख जाए अपलक उसे ताकते ताकते सो जाए नन्हा बच्चा थक हार कर २ मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ लाला के होटल में  बर्तन मलता भीखू घरों में झाड़ू कटका करती छमिया फेंक कर झाड़ू और जूना उठा लें किताबें चल दे स्कूल की ओर कि यही बस यही उपाय है उत्पीडन से निकलने का ३ मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ मान के गर्भ में न असुरक्षित रहे बेटियां डॉ की सुई से छिपने का असफल प्रयास करते हुए न निकाली जाए टुकड़े -टुकड़े कर अपितु सहर्ष जन्म लेकर करे उद्घोष कि लिंग के आधार पर नहीं छीना जा सकता जन्म लेने का अधिकार ३ मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ कोई निर्भया सड़क पर न फेंकी जाए रौंद कर झोपडी में रहने वाला ननकू न हार जाए मुकदमा घूस न दे पाने की वजह से जहाँ सफाई अभियान में न सिर्फ शहर अपितु तन ,मन और विचारों की भी हो स्वक्षता जहाँ अपने -अपने ईश्वर को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए तलवारे थाम कर न नेस्तनाबूत कर दी जाए मानवता ४ मैं स्वप्न देखता हूँ हाँ ! मैं रोज स्वप्न देखता हूँ मेरी पूरी पीढ़ी स्वप्न देखती है एक ऐसे स्वराज्य की जहाँ हम अपनी जड़ों को सीचते हुए पुराने दुराग्रहों कुटिलताओ और वैमनस्यता को भूलकर रचेंगे एक नया भारत पर ये मात्र स्वप्न ही नहीं है ये उद्घोष है कि ये स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे ले कर रहेंगे शिवम् मेरा भारत महान ~ जय हिन्द