सेल्फ आइसोलेशन के 21 दिन – हम कर लेंगे

हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी ने घोषणा करी है कि covid-19 महामारी के खतरे से देश को बचाने के लिए 25 मार्च 2020 से 14 अप्रैल 2020 तक 21 दिनों के लिए India lockdown किया जाएगा | WHO के अनुसार बिमारी के संक्रमण की तीसरी स्टेज के लिए ये 21दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं |इस दौरान सभी को अपने घरों में रहने की हिदायत दी गयी है | ये 21 दिन देश के और देश के नागरिकों के की परीक्षा के दिन हैं |समय कठिन है पर साथ में विश्वास है कि हम कर लेंगे | आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए हैं| पूजा करके माता के आगे घी का दीपक जला दिया है और एक आशा का दीप अपने मन के आगे जला  लिया है| आज रह-रह कर “बीरबल की खिचड़ी” कहानी का वह धोबी याद आ रहा है जो ठंडे पानी में रात भर खड़े रहने की हिम्मत दूर महल में जलते उस दीपक को देखकर जुटाए रहा | उसके मन में विश्वास था, शायद इसी लिए वो ऐसा कर सका| विश्वास में शक्ति होती है | इस कठिन समय में हम सब को भी इसी विश्वास के सहारे आगे बढ़ना है |  अपने पर संयम  रख कर ही हम इस बिमारी को हरा सकते हैं | हम सब को दिहाड़ी मजदूरों की, बिखारियों  की बहुत चिंता है | आशा है सरकार उनको भोजन उपलब्द्ध करायेगी | दिल्ली सरकार के कुछ वीडियो देखे हैं जिसमें पुलिस वाले भिखारियों को भोजन दे रहे हैं | लंगर में खाना मिल रहा है|आशा है और शहरों में भी यही किया जाएगा |बाकी कई किराना स्टोर्स अपने अपने एरिया में हेल्प लाइन नंबर दे रहे हैं जो घर आ कर सामान पहुंचा सकेंगे | कोरोना और ट्रॉली प्रॉब्लम बहुत पहले एक विश्व प्रसिद्द ट्रॉली  प्रॉब्लम की विश्व  पहेली के बारे में सुनती थी|  शायद आपने भी सुना हो …ये पहेली आज भी अनुत्तरित ही है | पहेली हैं कि आप ट्रॉली चला रहे हैं |  उसके ब्रेक फ़ैल हो गए | आपके सामने दो पटरियां हैं | एक पर एक व्यक्ति है दूसरी  पर ६ व्यक्ति हैं | ट्रॉली एक पटरी पर अवश्य जायेगी |  आप किसे बचायेंगे …एक को या छ: को ? इसमें बहुत सारे समीकरण बनते हैं| मैं अभी दो की बात करुँगी | जाहिर है अभी ज्यादातर लोग कहेंगे कि हम ६ को बचायेंगे | दूसरा समीकरण देखिये …दूसरी पटरी पर जो अकेला व्यक्ति खड़ा है वो हमारा अपना प्रियजन है | तब ?   पूरा विश्व आज इसी ट्रॉली प्रॉब्लम से गुज़र रहा है | इटली में डॉक्टर रोते हुए वृद्धों को मौत के मुँह में जाने दे कर जवान व्यक्ति को बचा रहे हैं |क्योंकि उनके जिन्दा रहने की अधिक सम्भावना है |  ये उनकी चाही हुई परिस्थिति नहीं है | उनके द्वारा खायी हुई कसम के भी विपरीत है पर विकट समय में उनको ये निर्णय करना पड़ रहा है | नकारात्मक सोचने  का नहीं है समय  ये समय नकारात्मक सोचने  का नहीं है | मैं जानती हूँ कि हम सब कम खा के कम सुविधाओं में जी सकते हैं पर आहत है उनके लिए जो गरीब है, दिहाड़ी मजदूर हैं, अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों के लिए जो अकेले रहते हैं, अपने उन रिश्तेदारों के लिए जो इस समय कई शारीरिक दिक्कतों को झेल रहे हैं, या जो दूसरे शहरों में कहीं फंस गए हैं |कोशिश करें कि अगर आप के घर के आस -पास ऐसे कोई लोग हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग बनाते हुए ही सही उनकी मदद करें | उन्हें हेल्पलाइन नंबर दें | अपने घर से खाना बना कर उन्हें दे सकते हैं | फोन पर बात कर हालचाल ले सकते हैं | दिहाड़ी मजदूरों भिखारियों के लिए पास की पंसारी की दुकान में कुछ धन दे कर एक बड़े अभियान में मदद कर सकते हैं | क्योंकि कई पंसारी स्टोर ऐसी लंगर योजना में निजी धन लगा कर आगे आ रहे हैं |  ना हो तो उपाय है कि हम स्वयं को बचा कर उन सब को बचाएँ | आशा है हम और वो सब भी इस कठिन  समय को झेल कर इस परीक्षा को पार कर लेंगे |   पहले तो जीवन को बचाने  की फिर नौकरी /व्यवसाय , देश की अर्थव्यवस्था बचाने की बहुत सारी आशंकाओं के बीच एक दिया आशा का जालाये रखें | सकारात्मक रहने की कोशिश करें पर दिमाग पर बहुत ज्यादा बोझ डाल कर नहीं | मानसिक स्वास्थ्य का भी रखें ख्याल  शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी उतना ही बचाए रखने की जरूरत है | क्योनी ये समय डर, आशंका और निराशा का है |बार -बार हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग की नयी आदत हमें डालनी है | ऐसे में मन घब्राना स्वाभाविक है |  जब मन बहुत घबराए तो सब तरफ से मन हटा कर अपनी साँसों पर ध्यान दीजिये | इसे चाहें मेडिटेशन मान कर करें, चाहें व्यायाम | वही हवा (प्राण वायु)जो मेरी साँसों में जा रही है वही आपकी में भी वही संसार में सबकी | हम सब इस कदर जुड़े हुए हैं | यही समझ, यही  जुड़ाव ही हमें हर समस्या से पार ले जाएगा | यही हमारी शक्ति है |इसी शक्ति के सहारे हम ये 21 दिन पार कर लेंगे | नियमों का पालन करें, स्वस्थ रहे प्रसन्न रहे माँ जगदम्बा सब पर कृपा करें वंदना बाजपेयी Covid-19:कोरोना पैनिक से बचने के लिए सही सोचें आपको यह लेख कैसा लगा ? अपने विचारों से हमें अवगत करायें | filed under-social distencing, covid-19, virus, 21 days, corona    

जाड़े की धूप महिलाएं और विटामिन डी

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए कौन है जिसे मौसम फिल्म का ये खूबसूरत गीत ना पसंद हो ? और फिर जाड़े के दिनों में धूप में पड़े रहना भला किसको अच्छा नहीं लगता , उस पर सखियों और मूँगफली का साथ हो तो कहने ही क्या ? एक समय था जब महिलाएं ११ बजे काम से निवृत्त हो कर धूप सेंकने के लिए घर के बाहर चारपाई पर आ धमकती थीं |किसी के हाथ में उन और सलाइयाँ होती , कोई मेथी बथुआ और पालक साफ़ कर रही होती ,कोई खरबूजे के बीज छील रही होती तो कोई बच्चे के मालिश कर रही होती , और साथ में चल रहा होता हंसी ठहाकों का दौर | बीच –बीच में दूसरी खटियाओं पर कम्बल ओढ़े पड़ी बुजुर्ग औरतें कम्बल में से सर निकाल कर उनकी बात –चीत में अपनी विशेष टिप्पणी शामिल करती रहती | बच्चे भी वहीँ पास में खेल रहे होते, और धूप  की गर्माहट के साथ –साथ रिश्तों की गर्माहट से भी मन भर जाता | आज लोग इस तरह धूप  में नहीं बैठते , रिश्तों में भी वो गर्माहट कहाँ बची है ?  जाड़े की धूप  महिलाएं और विटामिन डी  लेकिन ये बात सिर्फ  धूप और रिश्तों  की गर्माहट की नहीं है , धूप की गर्माहट के साथ धूप में बैठने से विटामिन  डी भी मिलता है | ये तो सबको पता है कि विटामिन डी की कमी से हड्डियाँ कमजोर पड़ जाती हैं , कार्डियो वैस्कुलर बीमारियाँ हों सकती हैं व् बच्चों को अस्थमा भी हो सकता है | परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि विटामिन डी की कमी से अवसाद भी हो सकता हैं | तो अगर आप का मन खिन्न -खिन्न रहता है , कुछ करने का जी नहीं करता , लगता है देर तक पड़े रहे तो विटामिन डी की मात्रा को भी चेक कराये | हो सकता है अवसाद की दवाईयाँ खाने की जगह आप का विटामिन डी खाने से ही काम चल जाए | चेक करने पर पता चल जाएगा कि विटामिन डी की कितनी कमी है |डॉक्टरी  आंकड़ों के मुताबिक़…  ३० से ६० ng/ml विटामिन डी की सामान्य मात्रा है | २१ से २९ ng/ml अपर्याप्त है ( यानी कम तो है पर बहुत घबराने की जरूरत नहीं है ) ० से २० ng/ml कम है ६० ng/ml से ऊपर ज्यादा है | ( जरूरत से ज्यादा विटामिन डी हड्डियों से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करता है ) कहने का तात्पर्य ये है कि ज्यादा कमी होने पर दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है |ये गोली व् शैशे दोनों के रूप में आती हैं , ज्यादातर विटामिन डी ३  सप्लीमेंट दिए जाते हैं | अगर आपको दावा लेने की जरूरत हो तो डॉक्टर से पूछ लें | वैसे यह वासा युक्त भोजन  के साथ लेने से अधिक मात्रा में अवशोषित होता है | थोड़ी कमी होने पर अपने खाने में विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा , जैसे  ,दूध , दही , मछली, गाय का दूध , सोयाबीन का दूध , कॉड  लिवर आयल , मशरूम , अनाज , ओटमील आदि से   बढाई जा सकती है फिर  अपने आँगन में आने वाली धूप तो है ही  | धूप में बैठने के लिए ११ से१ तक  का समय सबसे मुफीद है , कपड़ें  हलके हों तो बेहतर हैं | एक बार और आंकड़ों की शरण में जाकर आपको बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति को ६०० IU विटामिन की एक दिन में आवश्यकता होती है | एक बात ख़ास तौर पर युवा महिलाओं से …. क्योंकि आज कल कई बार युवा महिलाएं ये मान कर कि, “ धूप में बैठने से रंग साँवला हो जाएगा” ,धूप में बैठने से परहेज करती हैं | जाड़े की  धूप का रंग पर इतना असर नहीं होता , और अगर कुछ होता भी है तो उसके लाभ के आगे नगण्य है | वैसे , धूप की तरफ पीठ करके भी बैठा जा सकता है | यूँ विटामिन डी का चेहरे से कोई खास लगाव नहीं है , हाथों-पैरों में भी धूप लेने से विटामिन डी मिल ही जाता है | एक एक और खास बात J आप सब से बाँटना चाहती हूँ  जो अभी कुछ दिन पहले एक लड़की ने कही | हुआ यूँ कि सब धूप में बैठे मूंगफलियों का आनंद ले रहे थे | १० मिनट बाद वो महिला अन्दर जाने लगी | मैंने विटामिन डी की महत्ता बताते हुए उसे रोकना चाहा तो उसने कहा कि मेरा तो रंग ज्यादा साँवला है मेरा तो दस मिनट में उतना विटामिन डी बन गया जितना गोरे लोगों का दो घंटे में बनेगा | आश्चर्य की बात है कि ये भ्रम अधिकतर लोगों को होता है | लोगों को लगता है कि जिनका रंग सांवला है उन्हें बस थोड़ी ही देर धूप में बैठना चाहिए जबकि सच्चाई ये है कि अगर आपकी त्वचा सांवली है तो गोरी त्वचा वालों के मुकाबले सही मात्रा में विटामिन डी बनाने के लिए आपको दस गुना ज्यादा धूप की जरूरत होगी | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके स्किन पिगमेंट्स प्राकर्तिक सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं , और सांवले लोगों में ये पिगमेंट्स अधिक मात्रा में होते हैं इसलिए सांवले लोगों को अधिक देर धूप में रहना होता है |    कुछ अध्यन बताते हैं कि सांवली त्वचा वाले अधिक उम्र के वयस्कों में विटामिन डी की कमी होने की अधिक संभावना  हो सकती है। मोटे तौर पर जहाँ गोरे  लोगों का काम १० –पंद्रह मिनट में चल जाता है वहीँ काले लोगों को एक घंटा धूप में बैठना चाहिए | बूढ़े लोगों को और भी देर तक  धूप में बैठना चाहिए क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ –साथ त्वचा द्वारा सूर्य की किरणों से विटामिन डी बनने की क्षमता कम हो जाती है | अच्छा है इसी उम्र से धूप में बैठ कर विटामिन डी की मात्रा को दुरुस्त रखें | अब बात आंकड़ों की है तो बता दें कि ये आँकड़े सर्दियों की धूप  के हैं , गर्मियों में थोड़ा कम से ही  काम चल जाएगा |  फिर … Read more

Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें

                    एक तरफ बुजुर्ग होते माता -पिता की जिम्मेदारी दूसरी तरह युवा होते बच्चों के कैरियर व्  विवाह की चिंता और इन सब से ऊपर अपने खुद के स्वास्थ्य का गिरते जाना या उर्जा की कमी महसूस होना | midlife जिसे हम प्रौढ़ावस्था भी कहते हैं  वो समय है जब लगातार काम करते -करते व्यक्ति को महसूस होने लगता है कि उसकी जिन्दगी काम के कभी खत्म न होने वाले चक्रव्यूह में फंस गयी है |तबी कई भावनात्मक व् व्यवहारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं | जिसे सामूहिक रूप से midlife क्राइसिस के नाम से जाना जाता है | Midlife Crises क्या है और इससे कैसे बाहर निकलें       याद है जब पहला सफ़ेद बाल देखा था … दिल धक से रह गया होगा | क्या बुढ़ापा आने वाला है ? अरे हम तो अपने लिए जिए  ही नहीं अब तक | तभी किसी हमउम्र की अचानक से मृत्यु की खबर आ गयी |कल तक तो स्वस्थ था आज अचानक … क्या हम भी मृत्यु की तरह बढ़ रहे हैं| क्या इतनी जल्दी सब कुछ खत्म होने वाला है |45 से 65 की उम्र में अक्सर लोगों को एक मनोवैज्ञानिक समस्या का सामना करना पड़ता है , जिसे midlife crisis के नाम से जाना जाता है | इसमें मृत्यु भय , अभी तक के जीवन को बेकार समझना , जैसा जी रहे थे उससे बिलकुल उल्ट जीने की इच्छा , बोरियत , अवसाद , तनाव या खुद को अनुपयोगी समझना आदि शामिल हैं | ये मनोवैज्ञानिक समस्या शार्रीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है |                              उदहारण के तौर पर  कल रास्ते में  साधना जी मिल गयीं | बहुत थकी लग रहीं थी | धीमे -धीमे चल रही थीं | मैंने हाल चल पूंछा तो बिफर पड़ी , ” क्या फायदा हाल बताने से ,  डायबिटीज है , पैरों में ताकत नहीं लगती ऊपर से अभी घुटने का एक्स रे कराया तो पता चला कि हड्डी नुकीली होना शुरू हो गयी है | डॉक्टर के मुताबिक अभी अपना ध्यान रख लो तो  जल्दी ऑपरेशन करने की नौबत नहीं आएगी  अब आप ही बताइये सासू माँ का हिप रिप्लेसमेंट हुआ है , बेटे के बोर्ड के एग्जाम चल रहे हैं , बाकी रोज के काम तो हैं ही ऐसे में तो लगता है कि जिन्दगी बस एक मशीन बन कर रह गयी है |                    ऐसा नहीं है कि ये समस्या सिर्फ महिलाओं के साथ है पुरुष भी इससे अछूते नहीं हैं | रमेश जी  ऑफिस से लौटे ही थे कि पत्नी ने नए सोफे  के लिए फरमाइश कर दी | बस आगबबुला हो उठे | तुम लोग बस आराम से खर्चा करते रहो और मैं गधो की तरह कमाता रहूँ | अपने लिए न मेरे पास समय है न ही  तुम लोगों के बिल चुकाते -चुकाते पैसे बचते हैं |                 ये दोनों ही mid life crisis के उदाहरण हैं |इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे कारण होते हैं | जैसे महिलाओं का मेनोपॉज व् माता -पिता की मृत्यु या किसे हम उम्र प्रियजन को खोना , अपने सपनों के पूरा न हो पाने का अवसाद ( इस उम्र में व्यक्ति को लगने लगता है कि उसके सपने अब पूरे नहीं हो पायेंगे क्योंकि उम्र निकल गयी है | Midlife Crises के सामान्य लक्षण                                   यूँ तो midlife crisis के अनेकों लक्षण होते हैं जो अलग -अलग व्यक्तियों के लिए अलग होते हैं पर यहाँ हम कुछ सामान्य लक्षणों की चर्चा कर रहे हैं | mood swings _ये लक्षण सामान्य तौर पर सबमें पाया जाता है | लोग जरा सी बात पर आप खो बैठते हैं | इसका बुरा प्रभाव रिश्तों पर भी पड़ता है | अवसाद और तनाव – इसका शिकार लोग दुखी restless या तनाव में रहते हैं | खुद के लुक्स पर ज्यादा ध्यान –  उम्र बढ़ने को नकारने के लिए खुद पर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं | स्रि बोरियत – ऐसा लगता है कि वो जीवन में कहीं फंस गए हैं जहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं है | जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता | मृत्यु के विचार – दिमाग पर अक्सर  मृत्यु के विचार छाए रहते हैं | midlife crisis से निकलने के उपाय                                midlife crisis से निकलने के लिए कुछ सामान्य  उपाय अपनाए जा सकते हैं | संकल्प –                          बीमारी कोई भी हो सुधर का पहला रास्ता वो संकल्प है जिसके द्वारा ह्म ये स्वीकार करते हैं कि मेरी जिंदगी जैसे है वैसे नहीं रहनी चाहिए मुझे इसे बदलना है | अगर आप भी ये संकल्प ले लेते हैं तो समझिये आधा रास्ता तय हो गया | ध्यान                            ध्यान एक बहुत कारगर उपाय है जो आपको अपनी तात्कालिक समस्याओं के कारण उत्त्पन्न तनाव व् अवसाद को दूर करने में सहायक है | दिमाग का स्वाभाव है कि वो एक विचार से दूसरे विचार में घूमता रहता है | कभी नींद न आ रही हो तो आपने भी ध्यान दिया होगा कि इसकी वजह ये नहीं थी कि आप रकिसी एक विचारपर केन्द्रित थे बल्कि आपका दिमाग एक विचार से दूसरे विचार पर कूद रहा था | जिसे आम भाषा में ” monkey mind” कहते हैं | नेयुरोलोजिस्ट के अनुसार ये DMN या DEFAULT MODE NETWORK है | ध्यान  मेडिटेशन हमें किसी एक विचार पर ध्यान  केन्द्रित अ सिखाता है | जिस कारण विचार भटकते नहीं है और गुस्सा , अवसाद व् तनाव जो कि अनियंत्रित विचारों का खेल है काफी हद तक कम हो जाता है |  ख़ुशी की तालाश छोड़ दें                                   सुनने में अजीब … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग …3 )

 व्यायाम / कसरत / शारीरिक श्रम का विज्ञान ——- आधुनिक जीवन मशीनीकृत जीवन है जो न केवल वर्तमान समय की आवश्यकता है बल्किजिंदगी की  बढ़ती भाग दौड़ से सामंजस्य बैठाने के लिए जरुरी भी है . विस्तृत होते कंक्रीट के जंगलों ने चारों दिशाओं में दूरियों को जन्म दे दिया है और इन बढ़ती दूरियों को पाटने के लिए न चाहते हुए भी मशीनो पे हमारी निर्भरता बढ़ गई है . वर्तमान उपभोक्तावादी नूतन भौतिकता से भरपूर जीवन शैली ने हमारे जीवन परिचर्या को सरल तो बनाया है पर हमे स्वयं से दूर भी कर दिया है . अब हम सुबह से शाम तक दौड़ रहे है जीवन को साधन सुविधा संपन्न बनाने के लिए और ऐसे में सबसे ज्यादा अनदेखी होती है  स्वयं के शरीर की.  ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1)              मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( कड़ी …3 )  न खाने का पता , न सोने का पता और न ही आराम का पता. और ऐसे में बढ़ता थकान का स्तर शरीर को शिथिल बना देता है व शरीर के ऊर्जा स्तर में निरंतर कमी लाता है इस से व्यक्ति शारीरिक श्रम से बचने लगता है क्योकि मानसिक थकान शरीर पर हावी हो जाती है और शिथिल पड़े शरीर में धीरे धीरे जंग लगने लगती है व यही जंग मोटापे की परतों के रूप में शरीर के चारों और लिपटने लगती है क्योकि भोजन के रूप में ऊर्जा की आपूर्ति तो भरपूर होती है पर शरीर में उसकी खपत नही होती | एक बात और आजकल मेनुअल कार्यों को हम हेय दृष्टि से देखने लगे हैं यथा घर का झाड़ू पूछा करना , बर्तन मांजना , कपडे धोना , घर के सामन को व्यवस्थित करना , पास के बाजार तक पैदल चल कर जाना और थैले में सामान लेकर लौटना  , बगीचे की साफ सफाई करना ,  पैदल चलने से बचना और इसी प्रकार के सैकड़ों छोटे छोटे कार्य जिन्हे हमारे पूर्वज मजे से किया करते थे उन सब से बचना और ऐसे कार्यों को खुद के काबिल नही समझना . अब आप ही बताये गर सारा दिन बैठे बैठे दिमागी घोड़े ही दौड़ाएंगे और हाथ पांव जरा भी इधर का उधर नही करेंगे तो वो शरीर में भोजन के रूप में ली हुई ऊर्जा  कैसे और किस तरह से काम में आये और जब काम में नही आये तो इकट्ठी होए फिर शरीर के स्टोर में मोटापा बनकर. इसलिए ये आवश्यक है कि व्यक्ति के शरीर की प्रणालियां ठीक से कार्य करे और वह मोटापे का शिकार न हो तो उसे भोजन व नींद की तरह  शारीरिक श्रम को भी अपने जीवन का हिस्सा बनाना ही होगा अन्यथा वह कभी भी मोटापे से लड़ ही नही पायेगा . व्यायाम का महत्व  व्यायाम को किसी न किसी रूप में जीवन में शामिल करना अनिवार्य है क्योकि ग्रहण की गई ऊर्जा ( भोजन के रूप में ) की जब शरीर में खपत नही होगी तो वह अतिरिक्त ऊर्जा वसा ऊतकों में परिवर्तित हो जाएगी . व्यायाम या कसरत के लिए जिम जाना जरुरी नही है बल्कि शरीर को कार्य करने केलिए उद्दत करना  है जिस से शरीर में ऊर्जा की खपत बढे और कार्य करने का आत्मिक संतोष भी प्राप्त हो इसके लिए आज से ही कुछ कार्य स्वयं करना शुरू करे यथा बगीचे की सफाई , कार की धुलाई, घर के साधारण किन्तु  महत्वपूर्ण काम , आसपास जाने केलिए दोनों पैरों का भरपूर उपयोग इत्यादि साथ ही एक आदत को नियमित रूप से जीवन का हिस्सा बनाये और वो है मॉर्निंग वॉक या फिर शाम को खाना खाने से पहले की इवनिंग वॉक और भी बहुत ज्यादा नही लगभग आधा घंटा रोज या 3 किलोमीटर  रोज़ . और हाँ इसे टालने के लिए कोई भी बहाना नही  . जैसे हम साँस  लेना नही टाल सकते ठीक वैसे ही इसे जीवन में शामिल कीजिये. बहुत बार कामकाजी महिलाएं या पुरुष जिन्हे सुबह जल्दी निकलना होता है वे गर सुबह नही जा सकते वॉक पे तो शाम को इसे नियमित बनाएं पर इसे न करने का कोई बहाना न तलाशे . समझें शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को  इसलिए  शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को अपनाने के लिए इन तीन बातों को अपनाइये —- **  घर के हर काम को खुश होकर करने की आदत बनाइये इससे दोहरा लाभ होगा . आत्मिक आनंद के साथ साथ मोटापे से मुक्ति ** श्रम से बचने के लिए बहाने बनाना छोड़ दे ….कोई भी बहाना नही (कन्फ्यूशियस ने कहा है कि जिस दिन से हम असफलता के लिए बहाने तलाशने छोड़ देतेहैं सफलता उसी दिन से हमारा दामन थाम लेती है. )             ** स्वयं की अनदेखी ना करें ( क्योकि आप महत्वपूर्ण हैं और आप के साथ बहुत सारे लोगों का जीवन और खुशियां जुडी हुई हैं ) .तनाव का विज्ञान—— आज के जीवन में अगर कुछ है जो सबके साथ जुड़ गया है चाहे बिना चाहे वो है तनाव …तनाव का अपना एक विज्ञान है . हम में से ज्यादातर लोग जीवन में जबरदस्ती तनाव को पाले होते हैं . वास्तव में लोग जिन वजहों से तनावग्रस्त होते हैं , वे महत्वपूर्ण नही होती हैं लेकिन इतनी अधिक प्रभावशाली होती हैं कि उनका हमारे दिमाग, मन एवं शरीर  पर जबरदस्त असर होता है  वास्तव में देखा जाये तो तनाव  हमारे शरीर , दिमाग , संवेदनाओं और उर्जा को व्यवस्थित न कर  पाने की अयोग्यता है. अतीत , वर्तमान और भविष्य का चक्र, अधूरे सपनों को पूरा करने की ख्वाहिश व  जिन्दगी में संतुलन बनाये रखने की चाहना के वाजिब और सही  जवाब को आने से रोकने वाली मानसिक स्थिति ही तनाव है जीवन की भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति, व्यक्तिगत उपलब्धियों की प्राप्ति और इसके लिए  परस्पर होड़ा होड़ी से उपजता है अंतर्द्वद जो जन्म देता है तनाव को . तनाव  एक ऐसी स्थिति है जिससे बचा नही जा सकता है इसलिए जरुरी है इसका अपेक्षित प्रबंधन क्योकि तनाव मोटापे के मूल में रहता है . तनाव शरीर की ऐसी अवस्था जब व्यक्ति सोचते हुए थकने लग कर दिशाहीन हो जाता है और उसका भोजन … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -2)

                         मोटापे से मुक्ति के लिए आवश्यकता है जीवन पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार की तथा  स्वयं से कुछ निश्चित प्रण करने की . ये उपाय बेहद सरल हैं किन्तु इनका पालन करना उतना ही कठिन है . इसके लिए उच्च  स्तर की इच्छा शक्ति , संकल्प व सौंदर्य बोध की आवश्यकता होती है जो शरीर को मोटापे के साथ साथ इससे जनित अनेको बीमारियों से भी मुक्त करवाती है. तो आइये एक शुरुआत करें हम आज से और अभी से और जाने कि किस प्रकार से हम आसानी से इसके खिलाफ लड़ सकते हैं प्रथम भाग  के लिए ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2)    I..भोजन का विज्ञान—  मोटापा नियंत्रण का यह पहला कदम है जिसमें हमें भोजन की मात्रा , क्वालिटी /गुणवत्ता व उससे प्राप्त ऊर्जा पर ध्यान देना है . यथा——: 1. व्यक्ति को दोनों समय का भोजन नियमित करना चाहिए अर्थात मोटापा कम करने के लिए व्यक्ति सबसे पहले ये करता है कि  वो एक समय या दोनों समय का भोजन छोड़ देता है जिसे आम भाषा में डाइटिंग कहा जाता है जो बिलकुल गलत है क्योकि भोजन की मात्रा एकदम से कम कर देने से रक्त में भोजन  की कमी आती है व शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा की अतः शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली इस ऊर्जा असंतुलन से निपटने के लिए शरीर में ऊर्जा  की खपत एकदम से घटा देती है और भूख को बढ़ा देती है ताकि शरीर का ऊर्जा स्तर सामान्य हो जाये किन्तु जब व्यक्ति बहुत देर तक भूखा रह कर खाने बैठता है तो ऊर्जा प्रणाली की क्रियाशीलता के कारन आवश्यकता से अधिक भोजन कर लेता है और ये अतिरिक्त भोजन की मात्रा शरीर में वजन बढ़ने को प्रेरित करती है  वहीँ दूसरी ओर व्यक्ति में भोजन न करने से एक मानसिक बैचैनी उत्पन्न  होती है जो उसे अवसाद की तरफ ले जाने लगती है जिस से वो न चाहते हुए भी ऐसे पदार्थों का सेवन करने लगता है जिसके बारे में वो सोचता है की इससे मोटापा थोड़े ही बढ़ेगा जैसे चाय या कॉफी की मात्रा बढ़ा देना या सलाद की मात्रा बढ़ा देना या फिर  या फिर फलों के रस की और ऐसे में अनजाने में वो एक बार फिर मोटापे को आमंत्रित कर बैठता है 2. दूसरी बात कि व्यक्ति एकदम से मीठा और घी तेल खाना छोड़ देता है क्योकि उसका यही देखा सुना होता है  कि मोटापा इन दोनों चीजों से ही बढ़ता है इन्हे छोड़ कर सब कुछ खाओ जल्दी ही स्लिमट्रिम हो जायेंगे जबकि ऐसा करना गलत ही नही बल्कि शरीर के लिए घातक है क्योकि भोजन का मूल मंत्र है संतुलन न कि त्याग . वस्तुतः भोजन रासायनिक रूप से  शर्करा ( मीठा ), प्रोटीन, वसा ( घी /तेल ), खनिज , विटामिन्स , पानी व रेशा का संतुलित सम मिश्रण है जो  शरीर के निर्माण व  इसकी समय समय पर मरम्मत हेतु आवश्यक होता है और साथ ही शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए ऊर्जा देता है . ऐसे में किसी भी एक पदार्थ की कमी या अधिकता ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली के कार्यों में अवरोध पैदा करने लगती है व शरीर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ने लगता है और ऊर्जा की खपत , संग्रहण व उत्पादन तीनो ही कार्यों में परस्पर टकराहट होने लगती है , ऐसे में शरीर के हार्मोन्स व एंजाइम्स के कार्य करने का सारा गणित गड़बड़ा जाता है और मोटापा तो कम होगा या नही पर शरीर अन्य दूसरी परेशानियों से जूझने लगता है जैसे ….वसा खाना एक दम छोड़ देने से वसा में घुलनशील विटामिन्स की शरीर में कमी हो जाती है और शरीर अनेक अभाव रोगों से ग्रस्त हो जाता है , शरीर में कई हार्मोन्स निर्माण बाधित होने लगता है क्योकि वे वसा से ही बनते हैं …इत्यादि इसी प्रकार से एकदम मीठा छोड़ देने से भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है इससे हमारे लीवर और किडनी का कार्य बढ़ जाता है और इस से शरीर के ऊर्जा स्तर में एकदम से कमी आती है ,शरीर शिथिल पड़ने लगता है , व्यक्ति को सामान्य  कार्यों को करने में भी अत्यधिक कमजोरी महसूस होने लगती है , मांसपेशियों में दर्द रहने लगता है , और वो चिंताग्रस्त रहने लगता है. इसी प्रकार से व्यक्ति एकदम से आवश्यकता से बहुत अधिक पानी पीने लगता है और इससे शरीर की मूत्र उत्सर्जन प्रणाली बिगड़ जाती है और किडनी का कार्य बढ़  जाता है अतः भोजन की किसी भी मात्रा में कमी या अधिकता से ज्यादा जरुरी है भोजन के सारे अवयव यथा शर्करा , प्रोटीन , वसा,रेशा , मिनरल्स व पानी के अनुपात में संतुलित परिवर्तन लाकर किया जाना चाहिए ताकि शरीर को सभी वांछित पदार्थी की प्राप्ति हो सके .  3. तीसरी जरुरी  बात है भोजन  की मात्रा अर्थात एक बार में एक साथ बहुत ज़रा न ही खाना चाहिए बल्कि थोड़ी थोड़ी मात्रा में दिन में चार बार खाना चाहिए जिसमे सुबह का नाश्ता , दोपहर का लंच . शाम का नाश्ता और रात का डिनर. और इन सब खानो में लगभग तीन से चार घंटो का अंतर होना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए की सुबह का नाश्ता ऊर्जा से भरपूर हो , दोपहर का लंच वसा प्रोटीन व शर्करा का संतुलन हो शाम का नाश्ता रेशे से भरा हो और रात का डिनर तरल हो ताकि शरीर का मेटाबॉलिज्म सुचारू रूप से कार्य कर सके और इसकी किसी भी कार्य प्रणाली पे अतिरिक्त कार्य भार न आये पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन  4. चौथी सबसे महत्वपूर्ण बात है भोजन करने का समय ….वर्तमान समय की जीवन शैली ने इस सारे ताने बाने को ही छिन्न भिन्न कर दिया है जबकि होता ये है कि हमारे मस्तिष्क ( दिमाग ) में एक घडी (पिनियल काय )होती है जो  दिन और रात के सापेक्ष शरीर में समय का हिसाब किताब रखती है और अपने समय के संदर्भ में ये सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहती है . इसी … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -1)

                       उसे देखा . बहुत बदली सी लगी .पूछा क्या बात है भई .कुछ ज्यादा ही भरी हुई सी लग रही हो.उसकेबोलने से पहले ही कई ओर से जवाब आया ..अरे भई खाते पीते घर की हैं…अब कुछ तो अंग लगना ही चाहिए न.  और वो बढ़ते शरीर पे साड़ी कसते हुए बस मुस्करा दी पर आँखे उसका साथ न दे सकी. जी हाँ मोटापा ..एक ऐसा बोझ जो दबे पाँव आता है और  न जाने कब ग्रहण की तरह शरीर के लग जाता है पता ही नहीं चल पाता  और जब पता चलता है तब तक तो ये लगता है खोने अपना आपा और फिर सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता चला जाता है.                         आज भारत में हर तीसरा व्यक्ति या तो अधिक भारी है या फिर मोटापे से ग्रसित है और इस प्रकार भारत में 3 करोड़ लोग मोटापे का शिकार हैं और अगले 20 वर्षो में इसकी संख्या दुगुनी होने की संभावना है . ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज ( GBD) की रिपोर्ट के अनुसार वज़न जनित बीमारियों का भार भुखमरी से अधिक हो गया है . आज कुपोषण 8 वें  स्थान पे है और मोटापा 6 ठे पे ,जो अपनेआप में बेहद चौंका देने वाले तथ्य हैं पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन            ये तो हुई आंकड़ों  की बात पर सबसे महत्व पूर्ण तथ्य है ये जानना की आखिर ये मोटापा है क्या ?? कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में  ??आखिर कैसे जाने की शरीर मोटापे की ओर अग्रसर है . तो आइये समझे मोटापे का गणित जो बेहद सरल है —– मोटापा — कैसे खोने लगा है आपा   ( भाग -1)                     मोटापा एक शारीरिक माप है जिसमे वज़न को लम्बाई के अनुपात में मापा जाता है और इस माप को बॉडी मास इंडेक्स (BMI )कहते हैं . इसे मापने का बेहद सरल फार्मूला है जिसके अनुसार —–                         शरीर का वजन ( किलोग्राम में )      BMI === ———————————–                         ( शरीर की लम्बाई मीटर में ) 2             इस सूत्र में वजन व लम्बाई का मान रखकर कोई भी व्यक्ति अपना  BMI जाँच सकता है और नीचे दिए गए चार्ट के आधार पे ये यह परख सकता है कि कहीं  वो अधिक भार या मोटापे की और अग्रसर तो नही हो रहा है और साथ ही वो अपनी श्रेणी का निर्धारण कर सकता है.  BMI का मोटापा सम्बन्धी चार्ट निम्नानुरूप सारणीकृत है क्रम संख्या                             BMI                           श्रेणी 1.                                 18—-25                        स्वस्थ 2.                                  25—-30                      अधिक भारी 3.                             30—-35                  मोटापा I श्रेणी ( खतरा आरम्भ ) 4.                                35—-40                   मोटापा II श्रेणी (खतरे की ओर अग्रसर ) 5.                               40 से अधिक                 मोटापा III श्रेणी ( खतरे के निशान से ऊपर )             BMI  मोटापे से सम्बंधित सूचना देने का सर्वाधिक उपयुक्त इंडेक्स है और इसे किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है इस माप  की एक मात्र कमी ये है कि यह शरीर कि मांस पेशियों के भार एवं वसा जनित भार में अंतर नही कर पाता है . अतः BMI  एक सूचना मपक है जो व्यक्ति को आने वाले खतरों से आगाह कर देता है. मोटापा दो प्रकार का होता है —- 1..कमर व पेट पर जमी वसा से उपजा मोटापा ( सेब आकृति का शरीर ) 2..कूल्हों, जांघो व हाथों पे जमी वसा से उपजा मोटापा ( नाशपाती आकर का शरीर ) इन दोनों प्रकार के मोटापे में कमर व पेट पर  वसा के जमाव से उत्पन्न मोटापा अधिक खतरनाक व हानिकारक है|     कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में शरीर ??             अब सवाल आता है कि मोटापा किस कारण से उत्पन्न होता है और फिर लगातार बढ़ता चला जाता है . मोटापे का मूल स्त्रोत  है अधिक भोजन और कम शारीरिक श्रम जो वर्तमान  जीवन पद्धति का एक अहम हिस्सा हो गया है. इससे शरीर में बची हुई अतिरिक्त ऊर्जा धीरे धीरे वसा कोशिकाओ में जमा हो जाती है और मोटापे का रूप ले लेती है          आरम्भ में यह प्रक्रिया धीमी गति से होती है जिस पर समय रहते ध्यान न दिए जाने पर यह विकराल रूप धारण कर लेती है अर्थात शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता, खपत एवं संग्रहण में असंतुलन से उत्पन्न होता है मोटापा और इसकी परवाह न करने पे ये विस्तार पाता चला जाता है इन दो कारणों के अलावा मोटापा बढ़ने के अन्य कारण ये हो सकते हैं —– 1.भोजन की मात्र के साथ भोजन  की क्वालिटी अर्थात भोजन में संगृहीत ऊर्जा व भोजन में शामिल अवयव 2.भोजन करने का समय 3.नींद की अवधि व गुणवत्ता 4.शरीरिक श्रम व व्यायाम का कु प्रबंधन 5.बढ़ता तनाव 6.आनुवंशिक कारण पढ़िए – क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल रखते हैं            मोटापा इन सारे कारणों का मिला जुला परिणाम  है जो शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली को प्रभावित करते हैं जससे ये प्रणाली अनियंत्रित व अनियमित हो जाती है व मोटापा बढ़ने लगता है हमारा शरीर एक कारखाने की तरह से है जिसमे अनेको कार्य प्रणालियां क्रियाशील रहती हैं . इनमे से ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसका स्वप्रबंधन बेहद शानदार होता है जिसमें वाञ्छित कार्यों के लिए ऊर्जा की खपत के साथ साथ बुरे दिनों ( जब किसी भी कारण से भोजन प्राप्त न हो ) के लिए ये कुछ ऊर्जा को बचा के रख लेता है ताकि शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति सुचारू बनी रहे और शरीर  कार्य करते रहें             शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक मेटाबोलिक प्रक्रिया है जो पूरे शरीर में आवश्यकता व कार्य के अनुरूप ऊर्जा का बंटवारा करती है जिसमें शरीर के अनेक एन्जाइम्स , प्रोटीन्स के साथ अनेक हार्मोन भी भाग लेते हैं . यह एक जटिल प्रक्रिया है जो शरीर में बिना रुके लगातार चलती है जिससे शरीर में ऊर्जा की निरंतरता को बनाये रखा जाता  है              किन्तु आवश्यकता से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति  (भोजन के रूप में  ) होने पर इस कार्य प्रणाली के एन्जाइम्स व हार्मोन्स पर अतिरिक्त कार्य भार बढ़ जाता है और ऐसे में ये अपना कार्य संतुलन खो देते हैं व प्रणाली फेल  हो जाती है … Read more

जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, यानि की खाली घोंसला और सिंड्रोम मतलब लक्षणों का समूह|  जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह उन लक्षणों का समूह है जो बच्चों द्वारा हॉस्टल या नौकरी पर घ से चले जाने से माता- पिता खासकर माँ में उत्पन्न होता है |आइये जानते हैं इसके बारे में … नए ज़माने की बिमारी एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम        आज सुधा जी के घर गयी| सोफे पर उदास सी बैठी थी| मेरे लिए पहचानना मुश्किल था यह वही  सुधा जी हैं जिन्हें कभी शांति से बैठे नहीं देखा| एक हाथ बेसन में सने बेटे के लिए पकौड़ियाँ तल रही होती दूसरे हाथ से एक्वागार्ड ओन कर पानी भर रही होती और मुंह जुबानी बेटी के गणित के सवालों से जूझ रही होती| अक्सर मुस्करा कर कहा करती तुम आ जाया करो ,मेरे पास तो फुर्सत नहीं है| मेरी तो हालत यह है कि अगर यमराज भी आ जाए तो मैं कहूँगी अभी ठहर जाओ पहले ये काम खत्म कर लूँ| मैं मुस्कुरा कर कहती करिए ,करिए ,ये समय भी हमेशा नहीं रहेगा|  पर आज …. मैंने उनके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा “ क्या हुआ? उनकी आँखों से आँसू की धारा बह चली| सुबुकते हुए बोली “ कितना चाहती थी मैं की बच्चे कुछ बन जाए, जीवन में सफल हो जाए …उनको समय पर हेल्दी खाना , डांस क्लासेज, ट्युशन ले जाना ,पढाना, हर समय उन्हीं के चारों ओर घूमती रहती| अब जब की दोनों का मनपसंद कॉलेज में चयन हो गया है और मुझसे दूर चले गए हैं …. घर जैसे काट खाने को दौड़ता है| अब कौन है जिसको मेरी जरूरत है, खाना बनाऊ  तो किसके लिए, कौन बात –बात पर कहेगा “ आप दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ मॉम हो| कहकर वो फिर रोने लगी |                   ये समस्या सिर्फ सुधा जी की नहीं है| इससे एकल परिवार में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं व् कुछ हद तक पुरुष भी जूझ रहे हैं| वो बच्चे जो माँ के जीवन की धुरी होते हैं जब अचानक से हॉस्टल चले जाते हैं तो माँ का जीवन एकदम खाली हो जाता है| २४ घंटे व्यस्त रहने वाली स्त्री को लगता है जैसे उसके पास कोई काम ही नहीं हैं| यही वो समय होता है जब उनके पति अपने –अपने विभाग में ज्यादा जिम्मेदारियों में व्यस्त होते हैं| एकाकीपन और महत्वहीन होने की भावना स्त्री को जकड लेती है| मनो चिकित्सीय भाषा में इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहते है| क्या है एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम                 शाब्दिक अर्थ देखे तो ,एक चिड़िया द्वारा तिनके –तिनके को जोड़कर घोसला बनाना फिर चूजे के पर लगते ही उसका खाली हो जाना| देखा जाए तो एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कोई शारीरिक बीमारी नहीं है|  ये उस खालीपन का अहसास है जो बच्चों के घर के बाहर चले जाने से उत्पन्न हो जाता है| ये अहसास  अब बच्चों को मेरी जरूरत नहीं रही| या मुझे अब २४ घंटे बच्चों का साथ नहीं  मिलेगा| साथ ही बच्चों की जरूरत से ज्यादा चिंता … वो ठीक से तो होगा , सुरक्षित होगा , खाया होगा या नहीं| यदि किसी का एक ही बच्चा है और उसने जरूरत से ज्यादा अपने को बच्चे में व्यस्त कर रखा है तो उसकी पीड़ा भी ज्यादा होगी|  एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण             इस के शिकार पेरेंट्स ऐसी वेदना से गुजरते हैं जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है | इसके अतिरिक्त उनमें  हर समय होने वाले सर दर्द ,  आइडेंटिटी क्राइसिस , और  वैवाहिक झगड़ों व्  अवसाद के भी लक्षण दिखाई देते हैं | एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम में क्या करे           जाहिर है यह मानसिक अवस्था है ,इसलिए इसकी तैयारी भी मानसिक ही होगी | जब आपके बच्चे दूर रह रहे हों तब  अपने टाइम टेबल के हिसाब से उनका टाइम टेबल सेट करना छोड़ दीजिये ,बल्कि इस बात पर ध्यान देने की कोशिश करिए की आप अपने बच्चे की सफलता में अब  क्या योगदान दे सकते हैं|  फोन ,विडिओ कालिंग या वहां जा कर उनसे टच बनायें रखिये | जितना हो सके सकरात्मक रहिये| अगर आप फिर भी अवसाद महसूस कर रहे हैं तो दोस्तों ,रिश्तेदारों की मदद लीजिये व् अगर जरूरत समझे तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करिए| इस समय का उपयोग अपने जीवन साथी के साथ झगड़ने में नहीं रिश्ते सुधारने में करिए| क्योंकि अब आप आराम से एक दूसरे को वक्त दे सकते हैं, कैंडल लाइट डिनर कर सकते हैं |ताजमहल घूमने जा सकते हैं |     एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से बचने की तैयारी    आपको पता है कि बच्चो को अपना भविष्य बनाने के लिए आपसे दूर जाना ही है तो उसकी तैयारी पहले से करिए | कोई रचनात्मक स्किल में रूचि लीजिये |कोई एन जी .ओ ज्वाइन कीजिये |  घर के अन्दर और बाहर कोई बड़ी जिम्मेदारी लीजिये |कुछ भी ऐसा कीजिये जिसमें  आप अपनी पूरी शक्ति झोक सके और आप को उस खालीपन का अहसास न हो जो बच्चों के घर से दूर जाने की वजह से उत्पन्न हुआ है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …. प्रिंट या डिजिटल मीडिया कौन है भविष्य का नंबर वन बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन आखिर क्यों 100% के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे गुरु कीजे जान कर   आपको  लेख “क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

खतरनाक है जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल

        ये  हमारी कंपनी का नया  सिम कार्ड “ गीत “ उनके लिए जो जरूरत से ज्यादा बातें करते हैं | जब वी मेट का शाहिद कपूर भले ही  गीत सिम कार्ड लांच करके आपको जरूरत से ज्यादा बातें करने के रंगीन सपने दिखाए | पर अगर आप भी गीत की तरह बक बक ,बक बक करते रहतें है ,वो भी मोबाइल पर …. जो जरा सावधान , ये खतरनाक हो सकता है |                बड़ा हो छोटा हो ,अमीर हो गरीब आज हर हाथ में एक नन्हा जादुई पिटारा है …. यानी आपका  मोबाइल | जगह –जगह  लगे होर्डिंग्स विज्ञापन आदि जो दिन रात नए लांच हुए मोबाइल की गुणवत्ता बताते रहते हैं ,झूठ भी तो नहीं हैं | ये जादुई पिटारा ही तो है जिससे आप घर ,बाहर , ट्रेन में , कार में बाथरूम में अपनों से कनेक्ट हो सकते हैं | वीडियो गेम खेल सकते हैं ,जहाँ चाहे जिसे चाहे msg भेज सकते हैं | आधुनिक मोबाइल के आने से आप यह तो कह ही सकते हैं की आप अपना पी सी अपनी जेब में लिए घूमते  हैं |  कोई भी सखी ,साथी ,सह्पाठी नया मोबाइल ले कर आता है तो उसके फायदे गिनाना शुरू कर देता है| देखो टच स्क्रीन ,इतने पिक्सेल का कैमरा , इतनी जी.बी की मेमोरी आदि- आदि | फायदे ,फायदे न जाने कितने फायदे पर जरा ठहरिये … मोबाइल से जितने फायदे हैं उसके गलत प्रयोग से उतने नुक्सान भी हैं | मोबाइल बढ़ा रहा है अपनों से दूरियाँ              अब जरा किसी आम घर का दृश्य देखिये | ट्रिन ….ट्रिन …… नमस्कार  से शुरू हुआ वार्तालाप एक –डेढ़ घंटे खिंच ही जाता है | फिर शुरू हो गया वीडियों गेम | मेज पर खाना ठंडा हो रहा है तो हो रहा है ,किसे होश है ….. जब होश आया तो मजबूरन ईयर फोन कान में ठूंस कर ठंडा खाना मुंह में ठूसना शुरू कर दिया |  अब जरा दूसरा दृश्य देखिये | एक कमरे में माता –पिता बच्चे बैठे हैं  दो चार सद्स्यों  के नाम और जोड़ लीजिये ….. सब अपने –अपने मोबाइल में मस्त | कोई फेस बुक कर रहा है ,कोई व्हात्ट्स एप्प , कोई sms तो कोई बात कर रहा है | एक दूसरे के साथ ,एक दूसरे के पास बैठे हुए भी सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त | एक कमरे में न जाने कितनी दुनिया बसी है| ऐसे दृश्य देखकर मुझे रसखान की पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाती हैं ………… “ कोहू न कहू कि कानी करे सिगरो ब्रिज वीर बिकाय गयो रे “              हालाँकि ये पंक्तियाँ भगवान  श्री कृष्ण पर कही गयी हैं पर मोबाइल पर पूर्णतया सूट करती हैं | एक ही छत के नीचे रहने वाले अपने –अपने मोबाइल में इस कदर डूबे रहते हैं कि   स्टे कनेक्टेड “ का नारा देने वाले मोबाइल ने घरों में संवाद हीनता की स्तिथियाँ उत्त्पन्न कर दी हैं | गौर तलब है कि रिश्ते बन रहे हैं या टूट रहे हैं | या यूँ कहे हमारी दुनियाँ बड़ी हो रही है और दायरे सीमित | कई बार दूर से बात करने पर चेहरे के भाव न दिख पाने के कारण बातों के गलत अर्थ लग जाते हैं | ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो जाती हैं | जिसको समझाना या सुलझाना मुश्किल हो जाता है | मोबाइल कर रहा है विद्यार्थियों का फोकस कम                      रिश्ते नातों  को छोड़ भी दिया जाए तो मनुष्य की सबसे अहम् जरूरत स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ को तो मॉफ  नहीं किया जा सकता | पहला सुख ही निरोगी काया है | अभिषेक बच्चन टी वी ऐड में भले ही “ वाक वेन यू टॉक “ को जितना जोर शोर से कहे पर यह सच्चाई से कोसों दूर है | फोन मोबाइल में बात करते समय कोई अन्य काम करने से हमारी ध्यान या कंसेंट्रेशन क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है | विद्यार्थियों के लिए तो यह पक्ष खासा चेतावनी दायक है | जानलेवा भी साबित हो रहा है मोबाइल   मोबाइल के साथ फ्री में आया उसका छोटा भैया ईयर फोन परले दर्जे का जानलेवा साबित होता है | अच्छी क्वालिटी के ईयर फोन बाहर की सारी ध्वनियाँ कट कर देते हैं | इस तरह सगीत सुनने की आदत इतनी बुरी पड़  जाती हैं कि घर में चाहे आग लगे चाहे चोर आये ….होता है तो होने दो | संगीत के आनंद में सुनाई किसे देगा | पर सबसे दर्दनाक है जब न जाने कितने किशोर ,युवा कान में ईयर फोन लगा कर संगीत सुनते हुए  सड़क पार करते हैं तो वाहन के हॉर्न की आवाज़ न सुन पाने की वजह  से  अल्पायु में ही  अपनी ईहलीला समाप्त करके सुरों से पार चले जाते हैं |  मोबाइल के अतिशय प्रयोग से होने वाली बीमारियाँ  १ )  मोबाइल से निकलने वाली रेडियो एक्टिव वेव्स सीधे दिमाग में प्रवेश करती हैं |जो कालांतर में ब्रेन संकुचन , ,तनाव ,चिडचिडापन ,कैंसर व् ट्यूमर का कारण बनता है | अगर आप ज्यादा बात करते हैं और आधुनिक फोन से बात करते हैं तो आप को खतरा ज्यादा है | जहाँ तक हो सके मोबाइल को कान से दूर रखे | रिसर्च कहती है बात करते समय मोबाइल कान से कम से कम २० cm दूर रखना चाहिए | कहना  अतिश्योक्ति न होगी कि यह एक धीमा जहर है जो धीरे –धीरे मौत की तरफ ले जाता है | २ ) टेक्स्ट क्लॉ वो मेडिकल टर्म है जो ज्यादा टेक्स्ट टाईप करने , स्क्रोल करने मसेजिंग करने वालों की अँगुलियों में हो जाता है | टेंडन सूज जाते हैं | अंगुलियाँ मोती व् भद्दी हो जाती हैं व् उनमें दर्द होता है | ३ )  मोबाइल ज्यादा कान पर लगाने से कानों में सुजन व् ट्यूमर की सम्भावना रहती है व् सुनने की क्षमता का हास होता है | ४ ) आजकल टच स्क्रीन वाले मोबाइल को आप खाना खाते समय , बाज़ार में कहीं भी इस्तेमाल करते है तो आप की अँगुलियों से कीटाणु निकल कर वहां ग्रो करने लगते हैं | अगर आप रोज स्क्रीन साफ़ नहीं करते तो दोबारा छूने से ये हमारी बिल्ली हामी को म्याऊ करते हुए  आप को ही बीमार कर … Read more

उपवास का वैज्ञानिक महत्व

   उपवास का केवल धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है | कैसे ? आइये जानते हैं चंद्रेश कुमार छतलानी जी के लेख  से … —————————————                        जानिये क्या है उपवास का वैज्ञानिक महत्व  सर्वप्रथम मैं पाठकों को एक सच्ची राय देना चाहूंगा, इस लेख को पढिए, एक बार, दो बार, फिर इसे भूल जाइए। अगर आप इसे कागज़ पर पढ रहे हैं और मन चाहे तो इसकी चिन्दी – चिन्दी करके ज़ोर से फूंकें, और फिर मौज से इसे धरती पर बिखरता हुआ देखिए। सच पूछें तो उपवास पढ़ने की नहीं वरन् करने की चीज है। लेख, पुस्तकें आदि सिर्फ इसका सामान्य ज्ञान देकर आपको प्रेरित तो कर सकते हैं, लेकिन, अगर उपवास को वास्तव में जानना चाहते हैं तो उपवास कीजिए। यह अनुभव का ज्ञान है। चलिए, अब हम चर्चा करते हैं कि रोग कैसे होते हैं ? थोड्रा सा घ्यान स्थिर कीजिए, और फिर पढि़ए, प्रत्येक रोग के फलस्वरूप किसी न किसी रीति से शरीर से श्लेष्मा बाहर आता है। खांसी में, जुकाम में, क्षय में, मिरगी में, इत्यादि और भी कई रोग, कान के, आखों के, त्वचा के, पेट के एवं हृदय के, जिनमें श्लेष्मा का का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता है, उनमें भी रोग का कारण श्लेष्मा ही होता है। श्लेष्मा, तब शरीर से बाहर न आने की वजह से रक्त में मिल जाता है, और ठंड की वजह से जहां रक्त नलिकाएं सिकुड़ गई हैं, वहां पहुंचकर दर्द पैदा करता है, और जब रोग बढ़ जाता है तो मवाद (सड़ा हुआ रक्त) उत्पन्न होता है। यूं तो थोड़़ा श्लेष्मा प्रत्येक स्वस्थ – अस्वस्थ शरीर में होता ही है और यह मल के साथ थोड़ी – थोड़ी मात्रा में निकलता रहता है। रोग की दशा में रोगी को श्लेष्मा विहिन खाद्य देना चाहिए। जैसे कि कोई फल या सिर्फ नींबू पानी। चिकनाई, मांस, रोटी, आलू एवं अन्य कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ जैसे चावल आदि के रूप में श्लेष्मा शरीर में पंहुचना बंद हो जाता है तो शरीर की जीवनी–शक्ति इकट्ठी होकर रक्त में मौजूद श्लेष्मा एवं मवाद को बाहर फैंकने को प्रवृत्त होती है। यह साधारणतः पेषाब के साथ निकलने लगता है। रोग के अनुसार शरीर के अन्य भागों से भी श्लेष्मा उत्सर्जित हो सकता है। तो फिर भोजन की क्या आवष्यकता हैं ? इसलिए क्योंकि साधारण कार्यों एवं श्रम करने से शरीर की जो छीजन होती है, मस्तिष्क भूख लगने की सूचना भेजता है और खाने के पष्चात, यदि मस्तिष्क को किसी अन्य कार्य में न लगाया जाए तो वह अपनी सारी शक्ति लगाकर किए हुए भोजन को पचाने का कार्य करता है, ताकि शरीर के सेल (कोषों) की मरम्मत हो सके, जीवन–दायिनी शक्ति उत्पन्न हो सके और शरीर गर्म रह सके। प्रश्न यह भी उठता है कि मस्तिष्क को भोजन कहां से मिलता है? तो मित्रों एक सत्य और उजागर कर रहा हूँ कि,  मस्तिष्क अपनी खोई हुई ऊर्जा को आराम और निद्रा से पुनः प्राप्त कर लेता है। हमारा मस्तिष्क हमारा सबसे अच्छा गाइड है, यदि मस्तिष्क कहता है कि रोग में भूख नहीं लगनी चाहिए, तो  भूख बन्द हो जाती है, ताकि शरीर की सारी ऊर्जा विजातिय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकालने में ही खर्च हो, भोजन को पचाने में नहीं। यह हमारे मस्तिष्क की ही शक्ति है वो हमारे शरीर का विश्लेषण कर जिस तरह की आवश्यकता है वैसा व्यवहार शरीर से करवाता है| एक सत्य यह भी है कि हमारे भोजन का जो भाग पचकर शरीर में लग जाता है, वही पुष्टिवर्धक होता है। बाकि या तो उत्सर्जित हो जाता है अथवा शरीर में जमा होता रहता है। जब शरीर में इकट्ठे मल, विष, विजातिय द्रव्य अपने स्वाभाविक मार्ग से (श्वास, पसीना, मल उत्सर्जन आदि) से बाहर नहीं निकल पाते हैं तो अस्वाभाविक तरीकों से शरीर उन्हें उत्सर्जित करने की चेष्टा करता है, सामान्य तौर पर इसे रोग कहा जाता है। दूसरे तरह के रोग वे होते है, जो विकार की अधिकता से जीवन शक्ति के हृास के कारण अंगो की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलने में बाधक होते है। धीरे–धीरे जीवन शक्ति का हृास इतना अधिक हो सकता है कि इसका पुननिर्माण अत्यन्त ही कठिन हो जाता है। प्रारम्भिक स्थितियों में अनावश्यक द्रव्य का शरीर में भोजन द्वारा जाना बन्द होने पर रोगमुक्त होने की पूर्ण संभावना होती है। अर्थात् उपवास के द्वारा हम रोगमुक्त हो सकते है। उपवास प्रकृति की स्वास्थ्य संरक्षक विधि है, पूर्ण एवं स्थायी स्वास्थ्य का दाता है। तो फिर उपवास कैसे किया जाए?  उपवास करने के हेतु कुछ बिंदु निम्नानुसार है: 1.    उपवास करने के लिए शरीर में कुछ बल भी होना चाहिए और एक दृढ़ निश्चय भी। 2.    सर्वप्रथम छोटे–छोटे उपवासों का अनुभव होना चाहिए, उपवास का अनुभव न होने पर सदैव किसी अनुभवी के निर्देशन में ही उपवास करे। पहले 2-3 दिन, फिर एक सप्ताह का और फिर और आगे। 3.    उपवास मे प्रकृति के निकट शुद्ध वायु मे रहें। 4.    कोशिश करें कि अकेले रहें। 5.    आराम अवश्य करें। उपवास के प्रारम्भ में सिरदर्द, कमजोरी, मूर्छा, अनिद्रा, आदि की शिकायत हो सकती है, जीभ गन्दी रह सकती है। धैर्य रखें व चिकित्सक की सलाह लें। 6.    थोड़ी–थोड़ी कसरत रोज करें। 7.    बिना चिकित्सक की सलाह के, उपवास के साथ अन्य चीज़े, जैसे कि वाष्प स्नान आदि न मिलाएं। 8.    उपवास आरंभ करने के एक सप्ताह पूर्व हल्का भोजन करें और इसे निरन्तर कम करते रहें। 9.    उपवास के आरंभिक दिनों को शरीर की सफाई में लगाओं। एनिमा लो, पानी पीओ, गहरी सांसे लो, नींबू पानी पीयो, रगड़–रगड़ कर स्नान करो। अच्छा है कि एक सप्ताह तक एनिमा लेना चाहिए। सारे बदन को रगड़ कर नहाना चाएि। रोज टहलना चाहिए। पाव–पाव भर करके दिनभर में 2-2) सेर पानी पीना चाहिए। नींबू मिलाकर पीये तो और भी ठीक है। पर आधा पाव से अधिक नहीं । अंगूर, संतरे का रस भी लिया जा सकता है। अनुभव के आधार पर धूप स्नान भी किया जा सकता है। 10.    उपवास के समय वायु विकार होने पर चोकर या इसबगोल का उपयोग किया जा सकता है साधरण ज्वर, दुर्गंधपूर्ण पसीने एवं बेस्वाद मुँह की चिंता नहीं करनी चाहिए। 11.    मानसिक स्थिति को संतुलित … Read more

चलो चाय पीते हैं

चलो चाय पीते हैं … दो लोग कभी भी इत्मीनान से बैठ कर बात करना कहते हैं तो सबसे पहली बात याद आती है चाय |पर हम में से अक्सर लोग ये नहीं जानते की सुबह – सुबह जिस चाय की तलब हमें लगती है वो न सिर्फ चुस्ती फुर्ती देने वाली बल्कि फायदेमंद भी है       हुआ यूँ की एक सज्जन से मिलने जाना हुआ। पहले पानी और उसके बाद चाय आई। चाय सिर्फ़ एक कप ही थी। मैंने मेज़बान से पूछा, ‘‘आप चाय नहीं लेंगे?’’ ‘‘मैं चाय-काॅफी, बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटका, शराब, तम्बाकू आदि कोई ग़लत चीज़ नहीं लेता,’’ मेज़बान ने फ़र्माया। ‘‘अच्छी बात है आप कई बेकार की चीज़ों से परहेज़ रखते हैं लेकिन चाय-काॅफी की तुलना बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब, तम्बाकू आदि चीज़ों से करना मेरे विचार से उचित नहीं, ’’मैंने किंचित प्रतिवाद किया।      सभ्यता के विकास के साथ-साथ न जाने कितनी चीज़ें हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गईं। माना कुछ चीज़ें बाज़ारवाद के कारण जबरदस्ती हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गई हैं लेकिन इसके बावजूद हर एक चीज़ को हानिकारक, अनुपयोगी अथवा निरर्थक नहीं कहा जा सकता। कुछ वस्तुएँ हमारी दिनचर्या में इसलिए शामिल हैं क्योंकि वे हमारे लिए वास्तव में उपयोगी हैं। आप कितने लोगों को जानते हैं जिन्हें चाय (tea )अथवा काॅफी से कैंसर, टीबी या अन्य घातक बीमारी हो गई हो जबकि बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब अथवा तम्बाकू से हज़ारों नहीं लाखों मौतें हर साल होती हैं। चाय  यूँ ही बदनाम है       कुछ लोग चाय-काॅफी के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं जो ठीक नहीं। चाय पारंपरिक भारतीय पेय नहीं है फिर भी इस समय भारत में ये एक अत्यंत लोकप्रिय पेय है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी न केवल चाय की चुस्कियाँ लेना पसंद करते हैं अपितु प्रायः सभी चाय बनाना भी जानते हैं। चाय बनाने के अनेक तरीक़े हैं और कई प्रकार से इसे तैयार किया जाता है। हमारे देश में विशेष रूप से उत्तरी भारत में चाय प्रायः दूध डाल कर तैयार की जाती है। यूरोपीय देशों, रूस और अमेरीका के लोग प्रायः बिना दूध की चाय पसंद करते हैं। तिब्बत की नमकीन चाय का तो स्वाद ही नहीं बनाने की विधि भी रोचक है।      चाय आप जिस विधि से भी तैयार करें, चाहे वह दूध के बिना हो या दूध के साथ, मीठी हो या फीकी, काली हो या सफेद, नींबू वाली चाय (लेमन टी) हो अथवा तुलसी की पत्तियों वाली चाय, हर प्रकार की चाय में एक चीज़ अवश्य डाली जाती है और वो है चाय की पत्तियाँ अथवा टी लीव्ज़। चाय की पत्ती विशुद्ध रूप से एक वनस्पति है। इसे हर्बल पेय की श्रेणी में रखा जा सकता है। चाय की तरह काढ़ा पीने का रहा है प्रचलन       कुछ लोग चाय को बहुत पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग इसे न केवल घातक पेय मानते हैं अपितु चाय को भारतीय संस्कृति के खि़लाफ़ भी मानते हैं। क्या चाय वास्तव में भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल और घातक है? हमारे यहाँ वैदिक काल से ही विभिन्न रोगों के उपचार के लिए क्वाथ या काढ़ा बनाकर पीने का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों अथवा वनस्पतिजन्य पदार्थों से क्वाथ बनाने का वर्णन मिलता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में जोशांदा भी विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों को उबालकर ही बनाया जाता है।      काली मिर्च, लौंग, बड़ी और छोटी इलायची, सौंठ या अदरक, पीपल, मुलेहटी, उन्नाब, बनफ़्शा आदि विभिन्न जड़ी-बूटियों और मसालों को उबालकर काढ़ा बनाने का प्रचलन आज भी हमारे यहाँ ख़ूब प्रचलित है। सर्दी-ज़ुकाम में के उपचार के लिए तो इससे उपयोगी ओषधि हो ही नहीं सकती। इसी प्रकार चाय में भी अनेक औषधीय गुण विद्यमान हैं जो शरीर को चुस्ती-स्फूर्ति देने के साथ-साथ अनेक प्रकार के रोगों को रोकने अथवा उनका उपचार करने में सक्षम हैं। लाभदायक है चाय में पाया जाने वाला थियानिन       जब भी चाय के गुणों अथवा अवगुणों की बात होती है तो चाय में उपस्थित तत्त्व कैफीन की चर्चा भी अवश्य होती है। चाय में कैफीन के अतिरिक्त और भी एक ऐसा तत्त्व उपस्थित होता है जो केवल लाभदायक है और वह है थियानिन। मस्तिष्क और शरीर को शांत रखने और तनाव को कम करने में इस अमीनो एसिड की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चलता है कि थियानिन न केवल तनाव को कम कर शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार होता है अपितु मानसिक सतर्कता और एकाग्रता के विकास में भी सहायक होता है।      जब हम ध्यान अथवा मेडिटेशन की अवस्था में होते हैं तो उस समय हमारे मस्तिष्क से जो तरंगें निकलती हैं उन्हें अल्फा तरंगें कहते हैं और उस अवस्था को ‘अल्फा स्टेट आॅफ माइंड’। इस अवस्था में शरीर में स्थित विभिन्न अंतःस्रावी ग्रंथियों से लाभदायक हार्मोंस का उत्सर्जन प्रारंभ हो जाता है जो व्यक्ति को तनावमुक्त कर उसे रोगों से बचाता है तथा रोग होने पर शीघ्र रोगमुक्ति प्रदान करने में सहायक होता है। चाय में उपस्थित थियानिन मस्तिष्क को उसी अवस्था में ले जाने में सक्षम है अतः चाय की प्याली ध्यानावस्था का ही पर्याय है।      चाय का सेवन हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होता है। अगर शरीर में पाॅलीफिनाॅल्स की पर्याप्त मात्रा हो तो इससे याददाश्त की कमी का ख़तरा कम हो जाता है। ताज़ा अनुसंधानों से ये बात स्पष्ट होती है कि फल, चाय, काॅफी आदि पेय पदार्थ शरीर में पाॅलीफिनाॅल्स के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इस प्रकार चाय हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होती है। चाय के कुछ खास फायदे  दिनभर में तीन-चार कप चाय पीजिए और हृदय रोगों, स्ट्रोक, त्वचा रोगों तथा कैंसर जैसे रोगों को दूर भगाइए। प्रतिदिन तीन-चार कप चाय पीने से हृदय विकारों की संभावना दस प्रतिशत से भी ज़्यादा कम हो जाती है।  चाय में उपस्थित एंटीआॅक्सीडेंट हमारी रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि कर हमें नीरोग बनाए रखने में सक्षम होते हैं तथा रोग की दशा में शीघ्र रागमुक्ति में सहायक होते हैं। चाय में उपस्थित तैलीय तत्त्व हमारे पाचन में भी सहायक होते हैं। चाय डिहाइड्रेशन दूर करने, दाँतों को मजबूत बनाने तथा कोलेस्ट्राॅल को राकने में भी सक्षम है। … Read more