क्षितिज संस्था की पावस काव्य गोष्ठी

वर्षा ऋतु के स्वागत में क्षितिज संस्था द्वारा देवी अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय इंदौर के अध्ययन कक्ष में  ‘पावस कविता गोष्ठी’ का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि,आलोचक डॉ ओम ठाकुर थे। अध्यक्षता व्यंग्यकार एवं वरिष्ठ उपन्यासकार श्री अश्विनी कुमार दुबे ने की। गोष्ठी में सर्वश्री पुरुषोत्तम दुबे, डॉ ओम ठाकुर, ब्रजेश कानूनगो, सतीश राठी, वेद हिमान्शु, डॉ रमेश चंद्र, डॉ चंद्रा सायता, कविता वर्मा,शरद गुप्ता, विनीता शर्मा,अंजनी कुमार, चंद्रभान राही, अशोक शर्मा भारती, अजय पुराणिक आदि ने गीत एवं  कविताओं का पाठ किया गया । इस अवसर पर लघु पत्रिका’ छह शब्द’ के  राजकमल चौधरी पर केंद्रित अंक का विमोचन भी किया गया। पत्रिका के संपादक श्री पुरुषोत्तम दुबे हैं, इस विशेष अंक का अतिथि संपादन डॉक्टर ओम ठाकुर ने किया है। रणजीत सिंह कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉक्टर पुष्पेंद्र दुबे ने पत्रिका के विशेष अंक पर वक्तव्य देते हुए राजकुमार चौधरी के कवि कर्म की विशेषताओं को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री अश्विनीकुमार दुबे ने कहा कि ब्रह्मांड में पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां वर्षा होती है। यही कारण है कि यहां मनुष्य के भीतर, बाहर संवेदनाओं की बारिश से ही कविता और साहित्य का सृजन सम्भव हो पाता है।उन्होंने कहा कि गीत तो प्रायः लय और संगीत के वाहक होते ही हैं लेकिन स्व नरेश मेहता के रचना पाठ में समकालीन छंद मुक्त कविताओं में जो संगीत सुनाई देता था वह ब्रजेश कानूनगो की कविताओं को सुनकर भी महसूस हुआ। श्री सतीश राठी और श्री अजय पुराणिक की संवेदनशील कविताओं सहित सभी कवियों की रचनाओं पर उन्होंने संक्षिप्त एवं सारगर्भित टिप्पणी दी। कार्यक्रम का संचालन क्षितिज संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी  द्वारा किया गया एवं आभार श्री सुरेश बजाज ने माना। इस अवसर पर कथाकार सुश्री कविता वर्मा, वरिष्ठ रचनाकार श्री सुरेश उपाध्याय सहित अनेक प्रबुद्ध श्रोता,रचनाकार एवं पाठक उपस्थित थे।

शूटिंग के मेरे तरीके को सेना ने सिद्धांत बना लिया– सीमा राव, देश की पहली महिला कमांडो टेªनर

मेरे पिता रमाकांत सिनारी पुर्तगाल से गोवा की मुक्ति के आंदोलन से जुड़े थे। पिता की स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पहचान ने ही मुझे देश सेवा के लिए प्रेरित किया। लेकिन देश की पहली महिला कमांडो टेªनर बनने का मेरा सफर इतना आसान नहीं था। मेरे सपने को पहली सीढ़ी मुझे 16 साल की उम्र में मिली, जब मैं डाॅ. दीपक राव से मिली। दीपक से मार्शल आर्ट सीखते-सीखते मैंने उन्हें ही अपना जीवन साथी बनाने का फैसला किया। मैंने खुद भी पारंपरिक चिकित्सा की पढ़ाई की है। हम दोनों की जिंदगी का एक ही मकसद था। मार्शल आर्ट की कला के माध्यम से देश की सेवा ही हमारा लक्ष्य था। इसी को ध्यान में रखते हुए 1996 में मेरे पति ने सेना, नौसेना, बीएसजी और एनएसजी प्रमुखों से संपर्क किया। वे हमारे समर्पण से प्रभावित हुए, और इस तरह हमारा असली सफर शुरू हुआ। हमने उसके बाद 20 सालों तक लगभग सभी भारतीय सशस्त्र बलों को बिना किसी शुल्क के प्रशिक्षण दिया। हमें अपनी शादी के शुरूआती वर्षों में कई वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मैं दुनिया के उन लोगों में शामिल हूं, जो एक विशिष्ट मार्शल आर्ट ‘जीत कुने डो’ का प्रशिक्षण देने के लिए अधिकृत हैं। खात बात यह है कि मैंने गै्रडमास्टर रिचर्ड बुस्तिलो से प्रशिक्षण लिया है, जो ब्रूस ली के स्टूडेंट थे। शायद इसी प्रशिक्षण का परिणाम है कि मैं आज 50 गज दूर खड़े व्यक्ति के सिर पर रखे सेब निशाना लगा सकती हूं और अपने सिर को लक्ष्य बनाकर आ रही गोली की मार से आसानी से बच सकती हूं। मेरी अब तक की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि हमने करीब से लड़ी जाने वाली लड़ाइयों के लिए एक विशिष्ट तरीका ईजाद किया है। ‘सीक्यूबी’ यानी क्लोज क्वाटर बैटल नामक इस तरीके को मैंने खासतौर पर भारतीय सेना के लिए बनाया है। 2009 में ‘गरूड़’ कमांड़ो को प्रशिक्षण करने के बाद वायु सेना के चीफ ने आधिकारिक आईएएफ पैरा जंप कोर्स के लिए मुझे आमंत्रित किया था। एक एंडवांस्ड कमांडो काॅम्बैट सिस्टम के बारे में शोध करने के बाद हम पति-पत्नी ने शूटिंग के तरीके का भी ईजाद किया, जिसका नाम पेड़ा- ‘राव सिस्टम आॅफ रिफ्लेक्स फायर’। कम दूरी की लड़ाई में इसे आजमाया जा सकता है, क्योंकि ऐसी शूटिंग में सटीक उद्देश्य के लिए बहुत कम समय लगता है, जबकि परंपरागत तरीकों से लंबी दूरी से लड़ा जा सकता है। आधुनिक युद्ध में इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए हमने ‘राव सिस्टम आॅफ रिफ्लेक्स फायर’ तैयार किया है। मैंने भारतीय बलों को प्रशिक्षण देने और प्रशिक्षण पुस्तकें प्रकाशित करने के लक्ष्य के साथ ‘द अनआम्र्ड एंड कमांडो काॅम्बैंट अकादमी’ (यूसीसीए) की स्थापना भी की है। कभी कभार कुछ लोगों को एक महिला से टेªनिंग लेना असहज लगा, लेकिन बाद में उन्हें मेरी सिखाने की क्षमता पर भरोसा करना पड़ा। एक बार सिर में चोट लगने की वजह से कुछ समय के लिए अपनी याददाश्त भी खो चुकी हूं। काम की वजह से मैं अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी भाग नहीं ले सकी। अपने काम के कारण गर्भधारण मेरे लिए असंभव था, इसलिए मैंने अपने पति की रजामंदी से एक लड़की को गोद लिया। मैंने करीब आधा दर्जन किताबें या तो लिखी है या तो उसे लिखने में मदद की है। मेरी किताब ‘एन्साइक्लोपीडिया आॅफ क्लोज काॅम्बैट आॅप्स’ दुनिया की पहली सीक्यूबी टेªनिंग की एन्साइक्लोपीडिया है। मेरी सारी किताबें विश्व भर के पुस्तकालयों में उपलब्ध है। मैंने फिल्म, ‘हाथापाई’ में अभिनय भी किया है। साभार- अमर उजाला विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित

साहित्य समाचार— राष्ट्रीय ख्यााति के अम्बिका प्रसाद दिव्य: पुरस्कार घोषित

भोपाल। साठ महत्वयपूर्ण ग्रंथों के सर्जक एवं चार सौ चित्रों के चित्रकार स्व. अम्बिका प्रसाद दिव्य की स्मृति में, विगत उन्नीस वर्षो से दिये जा रहे दिव्य पुरस्कारों की घो‍षणा 16 मार्च, 2017 को दिव्य जी की, जन्म-जयन्तीू पर कोलार रोड, सांईनाथ नगर, सी-सेक्टर, भोपाल स्थित ‘साहित्य सदन’ में संयोजक श्री जगदीश किंजल्क द्वारा की गई । इस वर्ष साहित्य की सभी विधाओं में 122 पुस्त कें प्राप्त हुई थीं । उपन्यास विधा का दिव्य् पुरस्कार, श्रीमती राधा जनार्दन (पन्ना) को उनके उपन्यास ‘द्वापर की नायिका’, कहानी विधा के लिए श्रीमती नीता श्रीवास्ताव (महू) को उनके कहानी संग्रह ‘अमृत दा ढाबा’, काव्य विधा का दिव्य पुरस्कार श्रीमती श्रीति एवं श्री संदीप राशिनकर (इंदौर) को उनकी काव्य कृति ‘कुछ मेरी, कुछ तुम्हारी’, निबन्ध विधा का दिव्य पुरस्कार प्रो. वरूण कुमार तिवारी (वैशाली) को उनके निबन्ध संग्रह ”सृजन समीक्षा के अन्त’र्पाठ”,व्यंग्य् विधा का दिव्य पुरस्कार डॉ. रवि शर्मा मधुप (दिल्ली ) को उनकी कृति ”अंगूठा छाप हस्ता‍क्षर” एवं बाल साहित्यु के लिए श्री घमंडीलाल अग्रवाल (गुडगांव) को उनकी कृति ‘सीख सिखाते बाल एकांकी’ को प्रदान किये जायेंगे। इसके अतिरिक्त, गुणवत्ता के क्रम में आई कृतियों के लेखक सर्वश्री राम बाबू नीरव (सीतामढ़ी) को (कृति-पश्यन्ती्), श्रीमती सुदर्शन प्रियदर्शनी (यू.एस.ए.) को (कृति- अब के बिछुड़े), श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा (छिन्दवाड़ा) को कृति ”थोड़े से सुख की तलाश में, श्री शिवानंद सिंह सहयोगी (मेरठ) को कृति ‘सूरज भी क्यों बंधक, श्री बैकुंठ नाथ (अहमदाबाद) को, कृति ‘सरगोशियॉ (गजल संग्रह), श्री मोहन सगोरिया (भोपाल) को उनकी कृति ”दिन में मोमबतियॉ”, श्री आशीष कंधवे (दिल्ली) को उनकी काव्यृ कृति ’21वीं सदी का आदमी’, श्री शांतिलाल जैन (भोपाल) को उनके व्यंग्य् संग्रह ‘न आना इस देश’, श्री सुदर्शन सोनी (भोपाल) को उनके व्यंग्य संग्रह ”महंगाई का शुक्ल पक्ष”, श्री राकेश चंद्रा (लखनऊ) को उनके व्यंग्य संग्रह” बे चहरे वाले लोग ”, डॉ. आशारानी (जबलपुर) को उनके निबन्ध संग्रह ‘हिन्दी को बोलियों में बोध गम्यता’, श्रीमती अनघा जोगलेकर (कृति – वाजीराव वल्लाक), डॉ. अरबिन्द जैन (भोपाल) कृति ‘आनन्द कही अनकही’, श्री कमल चन्द्र वर्मा (महू) को उनकी कृति ‘अमृत कथाऍ’, एवं डॉ. अलका अग्रवाल (भरतपुर) को उनकी कृति ”कहानियों की दुनिया” के लिए दिव्य प्रशस्ति-पत्र प्रदान किये जायेंगे । राष्ट्रीय ख्याति के अत्यन्त महत्वपूर्ण अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृाति पुरस्कारों के निर्णायक मण्डल के सदस्यि हैं – श्री मयंक श्रीवास्तिव, श्री राजेन्द्र नागदेव, श्री राग तैलंग, श्रीमती विजयलक्ष्मी विभा, डॉ. मंगला अनुजा, प्रो. परशुराम शुक्ल्,श्री वसन्त निरगुणे, श्री राधेलाल विजघावने, श्री प्रियदर्शी खैरा,श्री अरूण तिवारी, श्री कैलाश नारायण शर्मा, डॉ. श्रीमती विनय राजाराम, डॉ. प्रभुदयाल मिश्र एवं श्री जगदीश किंजल्क । साहित्यत सदन की संचालक श्रीमती राजो किंजल्क ने इस अवसर पर बताया कि बीसवें दिव्य पुरस्कारों हेतु, वर्ष 2015 से 2017 के मध्य प्रकाशित पुस्तकें आमंत्रि(जगदीश किंजल्क)संयोजक : दिव्या पुरस्कारसाहित्य सदन, 145-ए, सांईनाथ नगर,सी-सेक्टर,कोलार रोड, भोपाल 462042संपर्क -09977782777ई-मेल – jagdishkinjalk@gmail.com चित्र प्रतीकात्मक  जगदीश किंजल्क संयोजक: दिव्य पुरस्कार साहित्य सदन,145-ए,सांईनाथ नगर ,सी-सेक्टर, कोलार रोड,भोपाल-462042संपर्क-09977782777 / 0755-2494777

अमेरिकी यूनिवर्सिटी द्वारा सी.एम.एस. छात्रा को 1,32,000 डालर की स्कॉलरशिप

प्रेस विज्ञप्ति : 27/4/2017 लखनऊ, 27 अप्रैल। सिटी मोन्टेसरी स्कूल, कानपुर रोड कैम्पस की छात्रा श्रेया वाजपेयी ने अपने उत्कृष्ट शैक्षिक रिकार्ड की बदौलत यूनिवर्सिटी ऑफ डेनवर, अमेरिका में स्नातक कोर्स हेतु चयनित होकर विद्यालय का नाम गौरवान्वित किया है। इसके साथ ही, श्रेया को 1,32,000 डालर की स्कॉलरशिप से भी नवाजा गया है, जो कि चार वर्षीय शिक्षा अवधि के दौरान प्रदान की जायेगी। यह जानकारी सी.एम.एस. के मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी श्री हरि ओम शर्मा ने दी है। श्री शर्मा ने बताया कि सी.एम.एस. कानपुर रोड कैम्पस की इस प्रतिभाशाली छात्रा को उत्कृष्ट ज्ञान-विज्ञान एवं नवीन अवधारणाओं के सृजन की अद्भुद क्षमता के आधार पर चयनित किया गया है। श्री शर्मा ने बताया कि विगत वर्षों की भाँति इस वर्ष भी सी.एम.एस. के अधिकाधिक छात्र विदेशों के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा हेतु चुने जाने की रिकार्ड बना रहे हैं। पिछले 5 दशकों से अधिक समय से सी.एम.एस. अपने छात्रों को भौतिक, सामाजिक व नैतिक शिक्षा प्रदान कर ‘टोटल क्वालिटी पर्सन’ बनाने को संकल्पित है एवं सी.एम.एस. के सभी शिक्षक इसी पुनीत प्रयास को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं। यही कारण है कि सी.एम.एस. छात्र विश्व के अनेक देशों में अत्यन्त उच्च पदों पर आसीन होकर मानवता की सेवा में संलग्न हैं एवं सारे विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना प्रवाहित कर रहे हैं। (हरि ओम शर्मा) मुख्य जन-सम्पर्क अधिकारी सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

लघुकथा संगोष्ठी -क्षितिज :कहानी का शोर उसकी सबसे बड़ी बाधा है।

लघुकथा एक ऐसी विधा है जिसमे शिल्प के साथ ही कथानक का होना जरूरी है क्योंकि यह कथानक ही भाव और संवेदना को पाठक तक ले जाता है। कथानक की संवेदना तीव्रता से पाठक तक पहुंचना भी जरूरी है लेकिन इसके लिए पाठकों पर विश्वास करते हुए बहुत धैर्य की जरूरत है। कथानक ना तो बहुत वर्णनात्मक हो और ना ही कथा का अंत बहुत खुला हुआ हो। सांकेतिक कथा विशिष्ठ प्रभाव छोड़ती है। क्षितिज की लघुकथा गोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर जी ने पढ़ी गई लघुकथाओं पर बात करते हुए कहा कि हर विधा के कुछ नियम होते हैं जिन्हें मानना जरूरी होता है लघुकथा में कल्पनाशीलता और कला का समावेशी होना बेहद जरूरी है। लघुकथा में कुछ अनकहा रह जाये जिसे पाठक आसानी से पकड़ ले यह कला लघुकथा लेखक में होनी चाहिए। क्षितिज संस्था सन 1977 से लघुकथाओं पर काम कर रही है और लघुकथाओ  पर पत्रिका का प्रकाशन कर रही है। उस समय इंदौर के लघुकथाकार सायकिल पर इन गोष्ठियों में शामिल होने आते थे। क्षितिज के शुरूआती दिनों से जुड़े कई लघुकथाकार आज की इस गोष्ठी में शामिल हुए हैं और साथ ही नई पीढ़ी के भी कई लघुकथाकार इसमें सहभागिता कर रहे हैं यह गर्व का विषय है। कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए क्षितिज के अध्यक्ष सतीश राठी जी ने यह बात कही और सबका स्वागत किया।  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने कहा लघुकथा से पहला परिचय चंदामामा की लघुकहानियों के माध्यम से हुआ था जिन्हें बहुत चाव से पढ़ा जाता था। जब लघुकथा विधा अपने शैशवकाल में थी तब इन्हीं कथाओं की स्मृति इन्हें रचने की राह दिखाती थी।  रविवार को अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय में हुए कार्यक्रम में डॉक्टर रमेश चंद्र , अशोक शर्मा भारती , पुरुषोत्तम दुबे , सतीश राठी, योगेंद्र नाथ शुक्ल , अश्विनी कुमार दुबे , ब्रजेश कानूनगो , वेद हिमांशु ,  कविता वर्मा , अंतरा करवड़े , डॉक्टर दीपा व्यास , विनीता शर्मा , डॉ अखिलेश शर्मा, सुरेश बजाज,शारदा गुप्ता,कृष्णकांत निलोसे सहित शहर के अठारह लघुकथाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। सभी ने अपनी दो दो रचनाएँ सुनाई।  रचनाओं पर चर्चा हुए श्री सुरेश उपाध्याय ने उनमे मौजूद सूक्ष्म निरीक्षण और उनकी सुघड़ता की सराहना की। तो प्रदीप कान्त ने निरीक्षण को सशक्त रूप से विधा में बदलने की कला को इंगित किया।  प्रदीप मिश्र ने चुनिंदा लघुकथाओं पर बात करते हुए उनकी भविष्य दृष्टी , स्ट्रोक , काव्यात्मकता , व्यंग्यात्मकता और भाषा शिल्प को इंगित किया। नंदकिशोर बर्वे ने लघुकथा की गागर में सागर भरने को श्रमसाध्य कार्य निरूपित किया। जलेस अध्यक्ष रजनीरमण शर्मा ने अपने निरीक्षण को सही समय पर प्रस्तुत करने की जरूरत पर जोर दिया और कहा लघुकथाओं में बड़ी बड़ी कहानियाँ समाहित होती हैं इन्हें आज के समय के तीखेपन और शिद्दत के साथ दर्ज करें।  कार्यक्रम के दौरान स्वर्गीय सतीश दुबे और एन. उन्नी जी को लघुकथा में उनकी पारंगतता के लिए याद किया गया। अंत में अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।  रपट कविता वर्मा