मेरा पैशन क्या है ?

                                           मेरा पैशन क्या है    पैशन यानि वो काम जिसे हम अपने दिल की ख़ुशी के लिए करते हैं | लेकिन जब हम उस काम को करते हैं तो कई बार महत्वाकांक्षाओं के कारण या अतिशय परिश्रम और दवाब के कारण हम उसके प्रति आकर्षण खो देते हैं | ऐसे में फिर एक नया पैशन खोजा जाता है फिर नया …और फिर  और नया | ये समस्या आज के बच्चों में बहुत ज्यादा है | यही उनके भटकाव का कारण भी है | आखिर कैसे समझ में आये कि हमारा पैशन क्या है और कैसे हम उस पर टिके रहे | प्रस्तुत है ‘अगला कदम’ में नुपुर की असली कहानी जो शायद आपको और आपके बच्चों को भी अपना पैशन जानने में मदद करे |      मेरा पैशन क्या है ?   धा-धिन-तिन-ता /ता धिन तिन ता  धा-धिन-तिन-ता /ता धिन तिन ता                                                 मैं अपना बैग लेकर दरवाजे के  बाहर निकल रही हूँ , पर ये आवाजें मेरा पीछा कर रही हैं | ये आवाजें जिनमें कभी मेरी जान बसती थी , आज मैं इन्हें बहुत पीछे छोड़ कर भाग जाना चाहती हूँ | फिर कभी ना आने के लिए |                                              मेरी स्मृतियाँ मुझे पांच साल की उम्र में खींच कर ले जा रही हैं |    नुपुर …बेटा नुपुर , मास्टरजी आ गए | और मैं अपनीगुड़ियाछोड़कर संगीत कक्ष में पहुँच जाती और   मास्टर जी मुझे नृत्य और संगीत की शिक्षा देना शुरू कर देते | अक्सर मास्टर जी माँ सेकहा करते, “बहुत जुनूनी है आप की बिटिया , साक्षात सरस्वती का अवतार | इसे तो नाट्य एकादमी भेजिएगा फिर देखना कहाँ से कहाँ पहुँच जायेगी |” माँ का चेहरा गर्व से भर जाता | रात को माँ खाने की मेज पर यह बात उतने ही गर्व से पिताजी को बतातीं | हर आने -जाने वालों को मेरी उपलब्द्धियों के बारे में बताया जाता | कभी -कभी उनके सामने नृत्य कर के और गा कर दिखाने को कहा जाता | सबकी तारीफ़ सुन -सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी मिलती और मैं दुगुने उत्साह से अपनी सपने को पूरा करने में लग जाती | कितनी बार रिश्तेदारों की बातें मेरे कान से टकरातीं , ” बहुत जुनूनी है तभी तो स्कूल, ट्यूशन होमवर्क सब करके भी इतनी देर तक अभ्यास कर लेती हैं | कोई साधारण बच्चा नहीं कर सकता | धीरे -धीरे मुझे भी अहसास होने लगा कि ईश्वर ने मुझे कुछ ख़ास बना कर भेजा है | यही वो दौर था जब मैं एक अच्छी शिष्य की तरह माँ सरस्वती की आराधिका भी बन गयी | पिताजी के क्लब स्कूल, इंटर स्कूल , राज्य स्तर के जाने जाने कितनि प्रतियोगिताएं मैंने जीती | मेरे घर का शो केस मेरे द्वारा जीती हुई ट्रोफियों से भर गया | १८ साल की होते -होते संगीत और नृत्य मेरा जीवन बन गया और २० वर्ष की होते -होते मैंने एक बड़ा संगीत ग्रुप ज्वाइन कर लिया | ये मेरे सपनों का एक पड़ाव था , जहाँ से मुझे आगे बहुत आगे जाना था | परन्तु … “नुपुर  रात दस बजे तक ये नृत्य ातैयार हो जाना  चाहिए | “ ” नुपुर १२ बज गए दोपहर के और अभी तक तुमने इस स्टेप पर काम नहीं किया |” ” नुपुर ये नृत्य तुम नहीं श्रद्धा करेगी |”  ” नुपुर श्रद्धा बीमार है आज रात भर प्रक्टिस करके कल तुम्हें परफॉर्म करना है |” “नुपुर , आखिर तुम्हें हो क्या गया है ? तुम्हारी परफोर्मेंस बिगड़ क्यों रही है ?” “ओफ् ओ ! तुमसे तो इतना भी नहीं हो रहा |” ” नुपुर मुझे नहीं लगता तुम कुछ कर पाओगी |” और उस रात तंग आकर मैंने अपने पिता को फोन कर ही दिया , ” पापा , मुझसे नहीं हो हो रहा है | यहाँ आ कर मुझे समझ में आया कि नृत्य मेरा पैशन नहीं है | मैं सबसे आगे निकलना चाहती हूँ | सबसे बेहतर करना चाहती हूँ | लें मैं पिछड़ रही हूँ | “ ” अरे नहीं बेटा, तुम्हें तो बहुत शौक था नृत्यु का , बचपन में तुम कितनी  मेहनत करती थी | तुम्हें बहुत आगे जाना है |मेरा बच्चा ऐसे अपने जूनून को बीच रास्ते में नहीं छोड़ सकता |” पिताजी ने मुझे समझाने की कोशिश करी | मैंने भी समझने की कोशिश करी पर अब व्यर्थ | मुझे लगा कि मैं दूसरों से पिछड़ रहीं हूँ | मैं उनसे कमतर हूँ | मैं उन्हें बीट नहीं कर सकती | ऐसा इसलिए है कि म्यूजिक मेरा पैशन नहीं है | और मैं ऐसी जिन्दगी को नहीं ओढ़ सकती जो मेरा पैशन ना हो | मैंने अपना अंतिम निर्णय पिताजी को सुना दिया | वो भी मुझे समझा -समझा कर हार गए थे | उन्होंने मुझे लौट आने की स्वीकृति दे दी | घर आ कर मैंने हर उस चीज को स्टोर में बंद कर दिया जो मुझे याद दिलाती थी कि मैं नृत्य कर लेती हूँ | मैंने अपनी पढाई पर फोकस किया  और बी .ऐड करने के बाद मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी | मैं खुश थी मैंने अपना जूनून पा लिया था | समय तेजी से आगे बढ़ने लगा | ————————————– इस घटना को हुए पाँच वर्ष बीत गए | एक दिन टी. वी पर नृत्य का कार्यक्रम देखते हुए मुझे नृत्यांगना के स्टेप में कुछ गलती महसूस हुई | मैंने स्टोर से जाकर उस स्टेप को करके देखा …एक बार , दो बार , दस बार | आखिरकार मुझे समझ आ गया कि सही स्टेप क्या होगा | मुझे ऐसा करके बहुत अच्छा लगा | अगले दिन मैं फिर स्टोर में गयी और अपनी पुरानी डायरी निकाल लायी | उसमें एक नृत्य को कत्थक और कुचिपुड़ी के फ्यूजन के तौर पर स्टेप लिखने की कोशिश की थी | … Read more

युवाओं में पोर्न एडिक्शन …क्या हो अगला कदम

एडिक्शन केवल तम्बाकू , सिगरेट या शराब का ही नहीं होता | पोर्न देखने का भी होता है | आज इंटरनेट युग में आसानी से उपलब्द्ध होने के कारण बच्चे और युवा इस की चपेट में आ जाते हैं और अपना कैरियर , खुशियाँ और जिन्दगी तबाह कर बैठते हैं | समझना होगा कि इससे कैसे निकलें | अपनी जिन्दगी को बदलने के लिए अपनी आदतों को बदलें -जेनी क्रैग  “हाँ  !तो बोलिए क्या समस्या है ?डॉक्टर ने रीतेश से पूछा इतनी हिम्मत करके यहाँ तक  आने के बाद भी डॉक्टर के इस पूर्व संभावित प्रश्न पर वो अचकचा सा गया | दिल की धड़कन बढ़ गयी और जुबान जैसे साथ छोड़ने लगी | “देखिये आप बताएँगे नहीं तो हम आपका इलाज कैसे शुरू करेंगे ?” डॉक्टर ने फिर कहा पर वो रीतेश का मौन नहीं तोड़ पाया | अबकी बार डॉक्टर अपनी  कुर्सी से उठ कर रीतेश के पास जा कर उसकी पीठ पर हाथ रख कर बोला ,” आप मुझे अपना दोस्त समझ सकते हैं | मेरे पास सब ऐसे ही मरीज आते हैं और मैं एक दोस्त बन कर उनकी मदद करता हूँ |” रीतेश को कुछ हल्का सा महसूस हुआ और वो हकलाते हुए बोला , ” डॉक्टर साहब मुझे अपने आपसे घिन आती है |मुझे लगता है कि मैं अपने को पीटता चला जाऊं तब भी मुझे इस पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी | मेरी पूरी जिन्दगी बर्बाद हो गयी |” “बोलो मैं सुन रहा हूँ |” डॉक्टर ने  छलक आये आंसुओं को पोछने के लिए एक टिसू पेपर उसे देते हुए कहा | युवाओं में पोर्न एडिक्शन …  आँखें पोछ  कर रितेश ने आगे कहना शुरू किया , ” डॉक्टर साहब , आज पाँच   साल पहले की बात है , जब मैं 16 -१७  साल का था | मैं भी सामान्य बच्चों की तरह एक सामान्य बच्चा ही था | क्लास में हमेशा अच्छे नम्बरों से पास होता था , और फुटबॉल का अपनी स्कूल टीम का स्टार था | माता -पिता का एकलौता बेटा होने के कारण वो दोनों मुझ पर जान छिडकते थे | उसी समय टेंथ का रिजल्ट आया मैंने अपने स्कूल में टॉप किया था |मेरे पिता बहुत खुश थे , उन्होंने मुझे मनचाहा उपहार मांगने को कहा | मैंने आई .पैड की माँग की | हालाँकि वो महंगा था पर मेरे पिता ने कैसे भी खर्चों को मेनेज कर मुझे वो लाकर दिया | आई .पैड पाकर मैं बहुत खुश था |  उसी समय मैंने स्कूल के साथ -साथ इंजीनियरिंग इंट्रेंस  की कोचिंग लेना शुरू किया | मेरा सपना IITया NIT से इंजीनियर बनने का था | मैं होशियार था , मेहनती था , मुझे अपनी सफलता पर विश्वास था | स्कूल और कोचिंग दोनों दोनों को सँभालने की कोशिश में मेरे पास हमेशा समय की कमी रहती | क्योंकि मेरा आई .पेड नया था , और उसके प्रति मेरी नयी उत्सुकता थी , इसलिए पिताजी ने मुझसे वादा लिया कि मैं इसे सीमित समय के लिए ही इस्तेमाल करूँ | मैंने भी उनकी बात मान ली , आखिर इसमें मेरा ही भला था | मैं भी तो अपने क्लास के बच्चों को अपने से आगे नहीं जाने देना चाहता था | परन्तु मैं अपने वादे  पर कायम नहीं रह सका | अक्सर मैं कोचिंग से आकर आई .पैड लेकर बैठ जाता   | माँ टोंकती तो थके होने का बहाना बना देता  | फुटबॉल मैच , फिल्मे , एजुकेशन मैटीरियल  देखते -देखते एक दिन अंगुली  , “देखिये फलां अभिनेत्री के उप्स मोमेंट पर क्लिक कर दी |”दोस्तों ने कई बार इन सब के बारे में बताया था पर फिर भी एक भय सा था कि कि कहीं ये कुछ गलत तो नहीं है | लेकिन उस दिन  जाने -अनजाने मैं उस दुनिया में प्रवेश कर ही गया |   उसके बाद एक के बाद एक ऐसे दृश्य आते गए कि आँखें फटी की फटी रह गयीं | दस मिनट के लिए उठाया गया आई .पैड दो घंटे तक इस साईट से उस साईट का सफ़र तय करता रहा जहाँ दुनिया बेपर्दा थी , नग्न थी और शरीर के स्तर पर ही  सीमित थी | ये कुछ ऐसे विषय थे जिनके लिए मेरे किशोर मन में सहज जिज्ञासा भी थी , मैं  तो कुछ बूँद समान प्रश्नों के उत्तर ही चाहता था पर अब तो मेरे  आगे विशाल सागर था | पहली बार देखते हुए दिल की धडकने तेज हो गयीं | आँखों के आगे अंधेरा सा छाया और माथे पर पसीना छलछला उठा | पर मन तो जैसे रुकने को तैयार ही नहीं था | माँ की आवाज से ही तंद्रा टूटी और झट से उस साईट से बाहर निकल एग्जाम क्वेश्चन पेपर की साईट में शरण ली | माँ मुझे पढ़ते देख कर संतुष्ट हुई |  उन्हें अनुमान ही नहीं था कि पिछले दो घंटे में उनका मासूम सा बच्चा एक व्यस्क बन चुका है | उस दिन माता -पता से नज़र भी नहीं मिलाई गयी ना ठीक से खाया गया ना ही सोया | प्रण किया कि अब कल से सिर्फ और सिर्फ पढाई पर ही फोकस करूंगा | परन्तु अगली सुबह ये प्रतिज्ञा ओस बूँद की तरह उड़ गयी | मैंने  सुबह उठते ही जो सबसे पहला काम किया वो था उन्हीं साइट्स पर फिर से क्लिक  करना और उसी संसार में लौट जाना | दिन , महीनों में बदलने लगे …पढाई पर ध्यान हटने लगा | कितनी बार खुद को समझाने की कोशिश करता कि मुझे कुछ करना है , कॉम्पटीशन क्रैक करके अपने माता -पिता का नाम रोशन करना है, अच्छी जॉब पा कर देश और समज के लिए कुछ करना है |  …पर किताब उठाते ही आखों के आगे वेबसाईट की वो आकृतियाँ आने लगतीं और यंत्रवत अंगुलियाँ  उसी और घूम जातीं | क्लास टेस्ट के रिजल्ट आने लगे | हमेशा टॉप करने वाला मैं क्लास में पीछे होने लगा | माता -पिता  के चेहरे पर चिंता की लकीरे बढ़ने लगीं | माँ आकर समझातीं कि किसी विषय में दिक्कत हो तो कोई और ट्यूशन लगवा देंगे , तुम चिंतामत करो |” पर मुझे माँ की बात पर बहुत गुस्सा आता | उन्हें … Read more

सफलता के तीन चरण

कभी किसी पहाड़ की चोटी पर चढ़ कर देखा है ? ऐसा कभी नहीं होता कि चोटी केवल एक बिंदु हो , वाहन  भी एक क्षैतिज धरातल होता है |  चोटी पर जगह कम नहीं होती , कितने मंदिर-मस्जिद , किले इन चोटियों पर बने है | पर पहाड़ के नीचे खड़े लोगों को ये समझ नहीं आता | उन्हें लगता है कि चोटी पर कोई एक व्यक्ति ही पहुँच सकता है और वही विजेता है |  क्षेत्र कोई भी हो , यही बात सफलता के साथ है | आप गिनती कर के देखिये कितने सफल डॉक्टर हैं , कितने सफल इंजीनियर और कितने सफल लेखक , गायक , कलाकार आदि | फिर भी लोगों को लगता है कि किसी दूसरे की सफलता मेरी सफलता में बाधक है | इसलिए वो खुद आगे बढ़ने में मेहनत करने के स्थान पर दूसरे की लकीर छोटी करने और उसे गिराने में लग जाते हैं |आगे बढ़ता व्यक्ति अपनों के इस व्यवहार परिवर्तन से दुखी होता है …कई बार उसका हौसला पस्त हो जाता है और वो  प्रयास छोड़ देता है | फिर वही होता है जो हमें दिखता है …बहुत से व्यक्ति जो सफल हो सकते थे , असफल व्यक्तियों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं | अगर हम सफलता के तीन चरणों को समझ लें तो सफल होते -होते अचानक से असफल होने की नौबत नहीं आती | अपना E .Q दुरुस्त रखने के लिए समझिये सफलता के तीन चरण  15 साल की रिया की आवाज़ बचपन से ही ईश्वर  का वरदान थी | यूँ तो उसकी दोनों बहनें ( मिताली और दीपा ) अच्छा गाती थी | पर रिया उनसे अलग ही थी | पर उनका ये गायन शौकिया था , उसमें कैरियर बनाने की उनकी तमन्ना नहीं थी | तीनों पढने में भी होशियार थीं |साथ -साथ गाती , खिलखिलातीं , रियाज करती | आने जाने वाले सभी लोग उनकी प्रशंसा करते | यही वो समय था जब उन्हें लगा कि उन्हें अपनी कला को दूसरों को भी दिखाना चाहिए | तीनों ने यू ट्यूब चैनल बनाए  और उसमें अपने -अपने गानों के वीडियो अपलोड करने लगीं | रिया के फॉलोअर्स व् लाइक तेजी से बढ़ने लगे , फेसबुक पर भी उसका एक अच्छा फैन मेल तैयार हो गया | जबकि मिताली और दीपा को महज कुछ लाइक ही मिलते | फेसबुक पर कुछ  अच्छे स्ट्रगल करके वाले या किसी मुकाम पर पहुँचने वाले गायक /गायिकाओं ने उसेबहुत प्रोमोट किया | उसके वीडियो के शेयर्स बढे और वो लोकप्रिय होने लगी | दोनों बहने भी उसकी इस सफलता  पर खुश होतीं और खुद भी अपने वीडियो उत्त्साह के साथ डालती | करीब एक वर्ष तक यही सब चलता रहा | रिया को पहला काम मिला उसे किसी विज्ञापन की जिंगल गानी थी | वो बहुत खुश थी | बहनों ने बधाई दी | रिया ने घर आकर उसका वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया | लाइक कमेंट आये … पर उसकी बहनों ने लाइक नहीं किया | रिया को अच्छा नहीं लगा पर उसने सोचा हो सकता है उसकी बहनें ख़ुशी में भूल गयीं हों | रिया शुरूआती कदम आगे बढ़ने लगे | धीरे -धीरे उसने महसूस किया कि वो सारे नए स्ट्रगल करने वाले , कुछ थोड़े से स्थापित और उसकी बहनें जो उसकी हर पोस्ट पर उत्त्सह्वर्धन करते थे , उसकी पोस्ट से एक दूरी बनाने लगे | आपस में  उनका व्यवहार अभी भी वैसा ही था | मित्रों व् बहनों का ऐसा व्यवहार व् उपेक्षा रिया को अंदर ही अन्दर तोड़ने लगा | उसे समझ नहीं आ रहा था कई उसकी गलती क्या है | वो तो अभी भी पहले की ही तरह है फिर अपने ही उसे क्यों छोड़ रहे हैं | उसका काम से मन हट गया | जो वीडियो वो रोज अपलोड करती अब हफ्ते में और फिर महीने में करने लगी | फैन फॉलोअर्स कम होने लगे | रिया अवसाद में डूबने लगी एक ऐसा अवसाद जिसमें उसे उसके अपनों ने डुबोया था | गाने का उत्साह और मन खत्म हो गया | रिया का अवसाद माँ से छिपा नहीं रह सका | एक दिन बालों में तेल लगाते हुए उन्होंने रिया से पूछा तो वो फफक -फफक कर रो उठी | उसने माँ को सारी  बात बतायी | अनुभवी माँ को बात समझते देर ना लगी | उन्होंने रिया से कहा , ” ठीक है , अपनों ने तुमसे दूरियाँ  बनायीं पर इसके लिए तुमने अपना काम क्यों छोड़ दिया | तुम अपना काम वैसे ही करती रहो , पूरी निष्ठां के साथ | देखना एक दिन सब लौटेंगे , उस दिन , जब तुम्हारी सफलता का तीसरा चरण होगा  | ” रिया ने माँ की बात को गंभीरता से लिया और फिर अपने काम में जुट गयी | उसे फिर से विज्ञापन मिलने लगे और फिर एक दिन वो भी आया जब उसे फिल्म में गीत गाने का अवसर भी मिला | रिया की मेहनत और भाग्य रंग लाया , वो गीत  सुपर हिट  हुआ | रिया के पास काम की झड़ी लग गयी | उसकी अपनी बहने व् मित्र जो उससे दूर हो गए थे उसके पास लौटने लगे | एक सम्मान समारोह में बहनों ने उसकी जमकर तारीफ़ करी | रिया बहुत खुश थी | घर आ कर वो रिया से बोलीं , ” रिया मुझे भी स्टेज पर थोड़ी देर गाने का मौका  दिला देना |” रिया ने हाँ कह दिया | वो अब परिपक्कव हो चुकी थी और समझ चुकी थी कि वो सफलता के दो चरण पार कर तीसरे में आ गयी है जहाँ अब उसकी बहनें व् मित्र वापस लौट आये हैं | मित्रों ये कहानी  भले ही रिया की हो पर आप भी अगर किसी काम में सफलता पाने के लिए मेहनत कर रहे हैं तो आपको भी ये किस्सा अपना लग रहा होगा | दरअसल सफलता के तीन चरण होते हैं | सफलता का पहला चरण – ये वो समय है जब आप शुरुआत करते हैं | उस समय आपके मित्र , नजदीकी लोग आपका उत्साह  वर्धन करते हैं … “क्या गाते हो ? “क्या लिखते हो ?” ” अरे ट्राई … Read more

ब्रेकअप के बाद जिन्दगी

ब्रेकअप यानि किसी रिश्ते का खत्म होना , ये प्रेम का खत्म होना बिलकुल भी नहीं है |  अक्सर लोग निराश हो जाते हैं और जिंदगी ही खत्म करने की सोचने लगते हैं | एकता के साथ भी ऐसा ही हो रहा था फिर ऐसी क्या समझदारी दिखाई एकता ने ब्रेकअप के बाद…. ब्रेकअप के बाद  जिन्दगी  इलाहाबाद में पली बढ़ी  एकता की साँसों में इलाहाबादी अमरूदों की खुशबु मिली हुई थी और    और जुबान में अमरुद् सी मिठास  | माँ -बाबूजी के प्यार का  संगम  , घर में रोज ढेर सारे रिश्तेदारों का आना -जाना , दीदी . भैया से रूठना , मनाना , खट्टे -मीठे झगडे और उनके पीछे छिपा ढेर  सारा प्यार और अपनापन  जीवन की यही परिभाषा जानती थी एकता | दुःख तो दूर से भी नहीं छू गया था उसे | नटखट चंचल एकता पढाई में भी शुरू से बहुत होशियार थी | एक दिन उसकी मेहनत रंग लायी और उसका चयन मुंबई के मेडिकल कॉलेज में हो गया | घर में ख़ुशी की लहर दौड़ उठी | दूर -दूर से रिश्तेदारों के फोन आने लगे | खुशियाँ जैसे खुद ही उसके दामन में भर जाना चाहती थीं | पर यही वो समय था जब उसे अपने परिवार से दूर जाना था | स्नेह के आंचल में पली -बढ़ी एकता घबरा तो बहुत रही थी परिवार से दूर रहने के नाम पर | लेकिन अपने कैरियर के लिए जाना तो था ही | उसका  का सामान बांधा जाने लगा | माँ ने ढेर सारे लड्डू , आचार , पंजीरी आदि भी बाँध दिए | क्या पता उनकी लाडली को वहां का खाना पसंद आये या ना आये | बाबूजी ढूँढ -ढूंढ के सामान ला कर ले जाने वाले सामानों के साथ रखने लगे | कई सामानों को ढूँढने में तो उन्होंने सारा इलाहाबाद छान मारा था | कितना हँसी  थी वो , ” अरे  आप लोग तो ऐसे तैयारी कर रहे हैं जैसे ससुराल जा रही हूँ , हॉस्टल ही तो जा रही हूँ |” जवाब में माता -पिता के साथ खुद उसकी आँखें भी गीली हो गयी थीं | मुंबई नया शहर ,नयी पढाई , नया जीवन | कभी माँ के खाने की याद आती , कभी भाई -बहनों के साथ की शरारतों की , तो कभी पिता का विश्वास , ” परेशांन  क्यों होती हो , मैं हूँ ना ” मन को भिगो देता था | धीरे -धीरे उसने खुद को संभाल  ही लिया | कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हुई | सबकी आँखों में एक ही सपना था पढने का , आगे बढ़ने का | हॉस्टल में तो नहीं , हाँ कॉलेज में उसे थोड़ी दिक्कत आती थी | को. एड. जो था | अभी तक तो गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ी थी वो | फिर इलाहाबाद शहर भी तो ऐसा था , जहाँ खुलापन इतना नहीं था , भाई लोग भी थे जिनके साथ आना -जाना हो ही जाता था | लड़कों को भैया के अतिरिक्त दोस्त भी समझा जा सकता है ये उसकी परिभाषा में नहीं था | लड़कों से बात करने में एक स्वाभाविक हिचक से गुज़रती थी वो | उसी के क्लास में एक लड़का था सौरभ | अपने नाम की तरह अपनी हँसी की खुशबु  लुटाता हुआ |  सौरभ ने ही उसके आगे दोस्ती का हाथ बढाया था , पर उत्तर में अपने में ही सिमिट गयी थी वो | समय के साथ वो लड़कों से थोडा -थोडा बात करने लगी पर सौरभ के सामने आते ही हकला जाती | इसी तरह पूरे दो साल बीत गए | सौरभ रोज उससे मिलना और बात करना नहीं भूलता | क्लास में उनके दबे -छुपे चर्चे होने लगे | खुद उसका मन भी प्रेम के रेशमी अहसास से खुद को कहाँ मुक्त कर पा रहा था | अब तो अकेले कमरे में भी सौरभ हमेशा साथ रहता , भले ही यादों के रूप में | थर्ड इयर के फाइनल सेमिस्टर के बाद  जब सौरभ ने उससे  साथ में कॉफ़ी पीने को कहा तो वो इनकार ना कर सकी | बातों  ही बातों में सौरभ बोला , ” अरे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा तुम ने मुझ से I Love You कहा |” एकता ने हतप्रभ होते हुए कहा , ” अरे , ऐसा कैसे , मैंने ऐसा तो  नहीं कहा |” सौरभ मुस्कुराया , “तो अब कह दो ना !!!” एक दिलकश हँसी के साथ प्रेम की पहली बयार की खुशबु वातावरण में फ़ैल गयी | अगले दो साल …. प्रेम के दिन थे और प्रेम की रातें | वो एक दूसरे से घंटों बातें करते | साथ -साथ घूमने जाते | एक दूसरे  की तस्वीरे खींचते , प्रेम पत्र लिखते | कॉलेज में उनके प्रेम की किस्से सब को को पता थे | कॉलेज के फेयर वेल  के बाद जब उन्हें अपने -अपने घर जाना था तो उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि जल्द ही अपने माता -पिता को मना लेंगे और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जायेंगे | इलाहाबाद लौट तो आई थी वो पर मन सौरभ के ही पास रह गया था | उसने सौरभ से कह रखा था , पहले तुम अपने माता -पिता से बात कर लेना , फिर मैं कर लूंगी | सौरभ ने भी तो हामी भरी  थी पर मुंबई से कलकत्ता जाने के बाद ना जाने क्यों वो इस सवाल को टालने लगा था | धीरे -धीरे उसके फोन ही आने कम हो गए | एकता के हिस्से में केवल इंतज़ार था | नटखट चंचल एकता मौन हो गयी | गुलाब के फूल सा चेहरा मुरझाने लगा | माँ -पिताजी पूंछते तो काम का प्रेशर बता कर बात टालती थी | हालांकि कि वो जानती थी कि हॉस्पिटल के लम्बे घंटों की ड्यटी भी उसे उतना नहीं थकाती , जितना एक पल का ये ख्याल कि कहीं सौरभ उसे भूल तो नहीं गया |उसका फोन सौरभ उठाता नहीं था , खुद उसका फोन आता नहीं था | मन अनजानी आशंकाओं से घिरने लगा था | सौरभ ठीक तो है ना ? लम्बे इंतज़ार के बाद वो दिन भी आया जब एकता को मेडिकल कांफ्रेस … Read more

फिर से कैसे जोड़े दोस्ती के टूटे धागे

हमारे तमाम रिश्तों में दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे हम खुद चुनते हैं , इसलिए इसे हमें खुद ही संभालना होता  है | फिर भी कई बार दो पक्के दोस्तों के बीच में किसी कारण से गलतफहमी हो जाती है और दोनों दोस्त दूर हो जाते हैं |  ऐसा ही हुआ निखिल और सुमेर के बीच में | निखिल और सुमेर बचपन के दोस्त थे …. साथ पढ़ते , खाते –पीते , खेलते | कोलेज  के ज़माने तक साथ थे | एक दिन किसी बात पर दोनों में बहस हो गयी | बहस ने गलतफहमी का रूप ले लिया और दोनों में बातचीत बंद हो गयी | भले ही दोनों अन्दर अंदर सोचते रहे की बातचीत शुरू हो पर पहल कौन करे …. अहंकार आड़े आ जाता , दोनों को लगता वो सही हैं या कम से कम वो गलत तो बिलकुल नहीं हैं …और देखते ही देखते चार साल बीत गए | फिर से कैसे जोड़े दोस्ती के टूटे धागे   जब दो लोग एक दूसरे की जिन्दगी में बहुत मायने रखते हैं तो वो भले ही एक दूसरे से दूर हो जाएँ , उनमें बातचीत बंद हो जाए पर वो दिल से दूर नहीं हो पाते | एक दूसरे की कमी उनकी जिन्दगी में वो खालीपन उत्त्पन्न करती है जो किसी दूसरे  रिश्ते से भरा नहीं जा सकता |  एक दिन अचानक से निखिल का मेसेज सुमेर के पास आया की “वो उससे मिलना चाहता है |” सुमेर की आँखों में से आंसू बहने लगे | ये आँसू ख़ुशी और गम दोनों के थे | उसे लग रहा था कि ये पहल उसने क्यों नहीं की | वो दोनों निश्चित स्थान पर मिले …. गले लगे रोये , समय जैसे थम गया , लगा ही नहीं की चार लंबे लंबे  साल बीत चुके हैं | उनके दिल तो अभी भी एक लय पर नृत्य कर रहे थे | हालांकि कुछ समय उन्होंने जरूर लिया , फिर दोस्ती वैसे ही गाढ़ी हो गयी जैसे की वो कभी टूटी ही नहीं थी | जिंदगी के सफ़र में न जाने कितने दोस्त बनते हैं पर कुछ ही ऐसे होते हैं जिनसे हम आत्मा के स्तर तक जुड़े होते हैं पर न जाने क्यों उनके बीच भी गलतफहमी हो जाती है … दूरियाँ बन जाती हैं | फिर जिंदगी आगे बढती तो है पर अधूरी अधूरी सी | अगर आप का भी ऐसा कोई दोस्त है जिससे दूरियाँ बढ़ गयीं हैं तो आज के दिन उससे मिलिए ,  फोन करिए ,या एक छोटा सा मेसेज ही कर दीजिये ….. देखिएगा दोस्ती की फसल फिर से लहलहाने लगेगी और खुशियों की भी |   अगर आप को उस दोस्ती को फिर से शुरू करने में दिक्कत आ रही है तो आप इस लेख की मदद ले सकते हैं। … सबसे पहले इंतज़ार करिए रेत के बैठने का अगर आप का झगडा अभी हाल में हुआ है तो आप जाहिर तौर पर आप दोनों ने एक दूसरे को बहुत बुरा –भला कहा होगा | आप दोनों के मन में मनोवैज्ञानिक घाव होंगे | अगर आप अपने मन से वो बाते निकल भी दें तो जरूरी नहीं कि आप का दोस्त भी उसी मानसिक स्थिति में हो | हो सकता है वो आभी उन घावों का बहुत दर्द महसूस कर रहा हो | मेरे नानाजी कहा करते थे “रोटी ठंडी कर के खाओ “ अर्थात जब थोडा समय बीत जाए तब बात करो | आज की भाषा में आप इसे “ कुलिंग टाइम “ कह सकते हैं | यकीन मानिए अगर बिना खुद को ठंडा किये आप ने बात चीत शुरू कर दी तो ये पक्का है कि उसी बात पर आप दुबारा उतने ही उग्र हो कर झगड़ पड़ेंगे | अपने गुस्से को संभालना सीखिए  जिस समय आपकी अपने प्रिय दोस्त के साथ अनबन होती है , आप के अन्दर बहुत गुस्सा भरा होता है | आप को लगता है आप जोर –जोर से चिल्ला कर उसके बारे में कुछ कहें या कोई ऐसा हो जिसके सामने आप अपने मन का हर दर्द कह कर खाली हो जाए | ये एक नैसर्गिक मांग है | पर यहाँ मैं ये कहना चाहती हूँ , “ आप को जितना मर्जी आये आप अपने दोस्त के बारे में कहिये , जो मन आये कहिये , आने को खाली करिए पर हर किसी के सामने नहीं | मामला आप दोनों के बीच था बीच में ही रहना चाहिए | कई बार गलती ये हो जाती है कि खुद को खाली करने के चक्कर में हम अपने दोस्त के बारे में अंट शंट कुछ भी दूसरों से बोल देते हैं | जबकि हमारा इंटेंशन नहीं होता | अभी भी हमारे दिल में उस दोस्त के प्रति नफरत नहीं होती बस हम अपने आप को खाली करना चाहते हैं , इसलिए अपने मन की भड़ास किसी एक व्यक्ति के सामने निकालिए जिस पर आप विश्वास कर सकते हैं कि वो आप की बात अपने तक ही रखेगा | अब जैसे सुनिधि और नेहा  को ही देख लें | जब नेहा को पता चला की सुनिधि सब को उसके बारे में बता रही है वो सुनिधि से हंमेशा के लिए दूर हो गयी | मैं ऐसी स्थिति में अपने पति या दीदी  से बात करती हूँ | कई बार ये लोग मेरी गलती भी दिखा देते हैं | जो भी हो ऐसा करने से दोस्ती के बंधन को पुनः मजबूत करने की डोर आपके हाथ में रहती है | आलोचना , आंकलन और शिकायत से दूर रहे  जब किसी की दोस्ती टूटती है या यूँ कहें की उसमें पॉज आ जाता है तो जो चीज उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है वो है हमारा ईगो यानी अहंकार | अहंकार एक छद्म आवरण है , हमारा अहंकार हमें वैसे रहने पर मजबूर करता है जैसे हम दुनिया को दिखाना चाहते है कि देखो हम ऐसे हैं | पहल करने का अर्थ ये लगता है कि अगला कहीं हमें कमजोर न समझ ले या लोग मुझे ही गलत कहेंगे | इसलिए दोबारा जुड़ने से पहले अपने  “ शुद्ध रूप “ को समझिये | जो आप वास्तव में है इस आवरण के बिना … Read more

क्या फेसबुक पर अतिसक्रियता रचनाशीलता में बाधा है ?

        लाइट , कैमरा ,एक्शन की तर्ज पर लाइक , कमेंट ,एडिक्शन …. और दोनों ही ले जाते हैं एक ऐसी दुनिया में जो असली नहीं है | जहाँ अभिनय चल रहा है | फर्क बस इतना है की एक अभिनय को हम  तीन घंटे सच मान कर जीते हैं … रोते हैं ,हँसते हैं और वापस अपनी दुनिया में आ जाते हैं , लेकिन दूसरा अभिनय हमारे जीवन से इस कदर जुड़ जाता है कि हम उससे खुद को अलग नहीं कर पाते | हमारा निजी जीवन इस अभिनय की भेंट चढ़ने लगता है , बच्चों के लिए समय नहीं रहता है , रिश्तों में दूरियाँ आने लगती हैं और सबसे बड़ी बात हमारी रचना शीलता में कमी आने लगती है …. मैं बात कर रही हूँ फेसबुक की जिसने लेखकों  को एक बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म दिया , नए -नए लेखक सामने आये , उन्होंने  खुद को अभिव्यक्त करना और लिखना सीखा … परन्तु इसके बाद वो यहीं उलझ कर रह गए … फेसबुक एडिक्शन ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया |  उनका लेखन एक स्तर  से ऊपर  बढ़ नहीं पाया | क्या फेसबुक पर अतिसक्रियता रचनाशीलता में बाधा है ?                                                जब भी कोई लेखक कोई रचना लिखता है तो उसकी इच्छा होती है कि लोग उसे पढ़ें उस पर चर्चा करें  | फेसबुक एक ऐसा मंच है जहाँ ये संभव है | लोग लाइक व कमेंट के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते हैं | परन्तु फिर भी एक सीमा से ऊपर लेखक इन गतिविधियों में फंस जाता है | कैसे ? जरा गौर करें …. अगर आप भी फेसबुक पर हैं तो आपने महसूस किया होगा कि लाइक और कमेंट का एक नशा होता है …. अगर किसी एक पोस्ट पर लाइक या  कमेंट बहुत  बड़ी संख्या में मिल जाए तो हर पोस्ट पर उतने की आशा रहती है | ये सामान्य मनोविज्ञान है | अब हर पोस्ट शायद इस लायक नहीं होती कि उस पर ढेरों लाइक या कमेंट मिलें पर स्वाभिमान या अहंकार ये मानने को तैयार नहीं होता | अब हर पोस्ट पर उतनी लाइक पाने की जुगत में वो या तो अपने सभी मित्रों की अच्छी या बुरी पोस्ट पर लाइक लगता है ताकी वो भी बदले में उसकी पोस्ट पर आयें | फेसबुक का एक अलिखित नियम है आप मेरी पोस्ट पर आयेंगे तभी हम आपकी पोस्ट पर आयेंगे | दूसरा वो समय-समय पर अपने मित्रों को हड्काने का काम करेंगे … जो मेरी पोस्ट पर नहीं आएगा मैं उसको अनफ्रेंड या ब्लॉक  कर दूँगा /दूंगी | ये एक तरह से खुली चुनौती है कि आप को अगर फ्रेंड लिस्ट में रहना है तो मेरी पोस्ट पर आना ही पड़ेगा …. जबकि ये लोग अपनी फ्रेंड लिस्ट में हर किसी की पोस्ट पर नहीं जाते | वो काटने छांटने में ही व्यस्त रहते हैं | तीसरा अपना नाम बार -बार लोगों की निगाह में लाने के लिए ये लोग  बार-बार स्टेटस अपडेट करते हैं | यानि एक दिन में कई स्टेटस डालते हैं | स्टेटस न मिला तो तस्वीरे डालते हैं … अपनी न सही तो फूल पत्ती की ही सही | आंकड़े बताते हैं की तस्वीरों पर लाइक ज्यादा मिलती है |  जो लोग लेखन के लिए फेसबुक पर नहीं हैं , उनकी मित्र संख्या भी केवल निजी परिचितों की है , उनके लिए ठीक है, जो फोटो ग्राफर बनना चाहते हैं उनके लिए भी ठीक है ,  पर जो लेखन में गंभीरता से जाना चाहते हैं क्या उनके लिए उचित है ? या महज अहंकार की तुष्टि है | कैसे होती है रचनाशीलता प्रभावित                                      प्रकृति का नियम है जब फल पक जाता है तब वो खाने लायक होता है | सब्जी में कोई मसाला कच्चा रह जाए तो सारी  सब्जी का स्वाद बिगाड़ देता है , चावल कच्चा रह जाए तो खाने योग्य ही नहीं होता … फिर कच्ची रचना का क्या दुष्प्रभाव है ये हम क्यों नहीं सोचते | आज ज्यादातर लेखक जल्दी से जल्दी लाइक कमेन्ट पाने की या प्रतिक्रिया पाने की आशा में कच्ची रचना फेसबुक पर पोस्ट कर देते हैं | ये यूँ तो गलत नहीं लगता पर धीरे -धीरे कच्ची रचना  लिखने की आदत पड़ जाती है | लेखन में धैर्य नहीं रहता | ये बात  आपको तब समझ में आएगी जब आप किसी पत्रिका के लिए भेजे जाने वाले लेखों के इ मेल देखेंगे |  कई संभावनाशील लेखक , जिनमें क्षमता है वो मात्र २० या २२ लाइन का लेख लिख कर भेज देते हैं | जो प्रकाशित पत्रिका में केवल एक -डेढ़ पैराग्राफ  बनता है | अब आप खुद से सोचिये कि क्या किसी प्रकशित पत्रिका में एक  पेज से कम किसी रचना को आप लेख की संज्ञा दे सकते हैं ? उत्तर आप खुद जानते होंगे | एक निजी अनुभव शेयर कर रही हूँ | एक बड़ी  लेखिका जो परिचय की मोहताज़ नहीं है , ने एक बार अटूट बंधन पत्रिका में स्त्री विमर्श का लेख भेजने की पेशकश की | उस अंक में मैं  स्त्री विमर्श के उस लेख के लिए निश्चिन्त थी | परन्तु उन्होंने तय तारीख से ठीक दो दिन पहले दो छोटे छोटे लेख भेजे और साथ में नोट भी कृपया आप इन्हें जोड़ लें | एक अच्छे लेख में एक प्रवाह होता है जो शुरू से अंत तक बना रहता है , लेकिन आज लोग जुड़े हुए पैराग्राफ  को लेख की संज्ञा देने लगे हैं | जो दो फेसबुक स्टेटस की तरह लगते हैं जिनमें तारतम्य बहुत अच्छे से स्थापित नहीं हो पाता | ये लेखिका दिन में कई फेसबुक पोस्ट डालती हैं | अब आप खुद समझ सकते हैं कि जब एक स्थापित लेखिका जल्दबाजी की गलती कर सकती है तो नए लेखकों  का क्या हाल होगा | विज्ञान कहता है जब हम खुश होते हैं , हमें तारीफ़ मिलती है या हमें कुछ रुचिकर लगता है तो हमारे दिमाग … Read more

आखिर निर्णय लेने से घबराते क्यों हैं ?

      सुनिए ,  आज मीरा के घर पार्टी में जाना है , मैं कौन सी साड़ी पहनूँ | ओह , मेनू कार्ड में इतनी डिशेज , ” आप ही आर्डर कर दो ना , कौन सी सब्जी  बनाऊं …. आलू टमाटर या गोभी आलू | देखने में ये एक पत्नी की बड़ी प्यार भरी बातें लग सकती हैं …. परन्तु इसके पीछे अक्सर निर्णय  न ले पाने की भावना छिपी होती है | सदियों से औरतों को इसी सांचे में ढला गया है कि उनके हिस्से का निर्णय कोई और लेता है और वो बस उस पर मोहर लगाती हैं | इसको Decidophobia कहते हैं | १९७३ में वाल्टर कॉफ़मेन ने इसके ऊपर एक किताब भी लिखी थी | ये एक मनोवैज्ञानिक रोग है जिसमें व्यक्ति छोटे से छोटे DECISION लेने में अत्यधिक चिंता , तनाव , बेचैनी से गुज़रता है | आखिर  निर्णय लेने से घबराते  क्यों हैं ? / How-to-overcome-decidophobia-in-hindi मेरा नाम शोभा है | मेरी उम्र ७२ वर्ष है | मेरे चार बच्चे हैं | चारों  अपनी गृहस्थी में मस्त हैं | मैं -नाती पोते वाली,  दादी और नानी हूँ | मेरी जिन्दगी का तीन चौथाई हिस्सा रसोई में कटा है | परन्तु अभी हाल ये है कि मैं सब्जी काटती हूँ तो बहु से पूछती हूँ …. ” भिंडी कितनी बड़ी काटू , चावल दो बार धोऊँ  या तीन बार , देखो दाल तुम्हारे मन की घुट गयी है या नहीं |  बहु अपना काम छोड़ कर आती है और बताती है , ” नहीं मम्मी , नहीं ये थोडा छोटा करिए , दाल थोड़ी और घोंट लीजिये आदि -आदि | आप सोच रहे होंगे कि मैं अल्जाइमर्स से ग्रस्त हूँ या मेरी बहु बहुत ख़राब है , जो अपनी ही मर्जी का काम करवाती है | परन्तु ये दोनों ही उत्तर सही नहीं हैं | मेरी एक ही इच्छा रहती है कि मैं घरेलू काम में जो भी बहु को सहयोग दूँ वो उसके मन का हो | आखिरकार अब वो मालकिन है ना …. उसको पसंद न आये तो काम का फायदा ही क्या ? पर ऐसा इस बुढापे में ही नहीं हुआ है | बरसों से मेरी यही आदत रही है … शायद जब से होश संभाला तब से | बहुत पीछे बचपन में जाती हूँ तो जो पिताजी कहते थे वही  मुझे करना था | पिताजी ने कहा साड़ी पहनने लगो , मैंने साड़ी  पहनना शुरू किया | पिताजी ने कहा, ” अब तुम बड़ी हो गयी हो , आगे की पढाई नहीं करनी है” | मैंने उनकी बात मान ली | शादी करनी है … कर ली | माँ ने समझाया जो सास कहेगी वही करना है अब वो घर ही तुम्हारा है | मैंने मान लिया | मैं वही करती रही जो सब कहते रहे | अच्छी लडकियां ऐसी ही तो होती हैं …. लडकियाँ पैदा होती हैं …. अच्छी लडकियां बनायीं जाती हैं |  आप सोच रहे होंगे , आज इतने वर्ष बाद मैं आपसे ये सब क्यों बांटना चाहती हूँ ? दरअसल बात मेरी पोती की है | कल मेरी बारह वर्षीय पोती जो अपने माता -पिता के साथ दूसरे शहर में रहती है  आई थी वो मेरे बेटे के साथ बाज़ार जाने की जिद कर रही थी , मैं भी साथ चली गयी | उसे बालों के क्लिप लेने थे | उसने अपने पापा से पूछा , ” पापा ये वाला लूँ या ये वाला ?” …. ओह बेटा ये लाल रंग का तो कितना बुरा लग रहा है , पीला वाला लो | और उसने झट से पीला वाला ले लिया | बात छोटी सी है , परन्तु मुझे अन्दर तक हिला गयी | ये शुरुआत है मुझ जैसी बनने की …. जिसने अपनी जिन्दगी का कोई निर्णय कभी खुद लिया ही नहीं , क्योंकि मैंने कभी निर्णय लेना सीखा ही नहीं | कभी जरूरत ही नहीं हुई | धीरे-धीरे निर्णय लेने की क्षमता ही खत्म हो गयी | वो कहते हैं न जिस मांस पेशी  को  इस्तेमाल ना करो वो  कमजोर हो जाती है | मेरी निर्णय  लेने की क्षमता खत्म हो गयी थी | मैंने पूरी जिंदगी दूसरों के मुताबिक़ चलाई |  मेरी जिंदगी तो कट गयी पर ये आज भी बच्चों के साथ हो रहा है …. खासकर बच्चियों के साथ , उनके निर्णय माता -पिता लेते हैं और वो निर्णय लेना सीख ही नहीं  पातीं | जीवन में जब भी विपरीत परिस्थिति आती है वो दूसरों का मुंह देखती हैं, कुछ इस तरह से  राय माँगती है कि उनके हिस्से का  निर्णय कोई और ले ले | लड़के बड़े होते ही विद्रोह कर देते हैं इसलिए वो अपना निर्णय लेने लग जाते हैं | निर्णय न  लेने की क्षमता के लक्षण  1) प्रयास रहता है की उन्हें निर्णय न लेना पड़े , इसलिए विमर्श के स्थान से हट जाते हैं | 2) चाहते हैं उनका निर्णय कोई दूसरा ले | 3)निर्णय लेने की अवस्था में मनोवैज्ञानिक दवाब कम करने के लिए कुंडली , टैरो कार्ड या ऐसे ही किसी साधन का प्रयोग करते हैं | 4)छोटे से छोटा निर्णय लेते समय एंग्जायटी के एटैक पड़ते हैं 5) रोजमर्रा की जिंदगी मुश्किल होती है | माता -पिता बच्चों को निर्णय लेना सिखाएं  आज जमाना बदल गया है , बच्चों को बाहर निकलना है , लड़कियों को भी नौकरी करनी है …. इसी लिए तो शिक्षा दे रहे हैं ना आप सब | लेकिन उन्हें  लड़की  होने के कारण या अधिक लाड़ -दुलार के कारण आप निर्णय लेना नहीं सिखा रहे हैं तो आप उनका बहुत अहित कर रहे हैं | जब वो नौकरी करेंगी तो ५० समस्याओं को उनको खुद ही हल करना है | आप हर समय वहां नहीं हो सकते | मेरी माता पिता से मेरी ये गुजारिश है कि अपने बच्चों को बचपन से ही निर्णय लेने की क्षमता विकसित करें | छोटी -छोटी बात पर उनके निर्णय को प्रात्साहित करें , जिससे भविष्य में उन्हें निर्णय लेने में डर  ना लगे | अगर उनका कोई निर्णय गलत  भी निकले तो यह कहने के स्थान पर कि मुझे पता था ऐसा ही होगा ये कहें कि कोई  … Read more

व्यवसाय में लोन कब और कितना

                                                  अक्सर लोग मुझसे पूंछते हैं कि व्यवसाय में लोन कब लें और कितना लें कैन लोग तो अति उत्साहित हो कर बहुत बड़ा लोंन ले कर अपने व्यवसाय में लगाने की  बात करते हैं | आज हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि व्यवसाय में कब और कितना लोंन लें | व्यवसाय में लोन कब और कितना                        जब भी कोई  नया काम शुरू करना होता है तो उसमें पूंजी की आवश्यकता पड़ती है |  लोग अक्सर एक बड़ी मात्र में पूँजी लोन पर ले लेते हैं |  सकारत्मक होना अच्छा है पर इतना नहीं कि  आप दिवालिया होने का खतरा उठाये | अपनी बात रखने से पहले मैं आप  से अपने एक मित्र का सच्चा किस्सा शेयर करना चाहता हूँ | फैशन डिजाइनर नीता की कहानी  मेरी एक मित्र हैं नीता गुप्ता | उन्होंने आज से २५ साल पहले अपना बुटिक खोला था | वो खुद ही कपडे डिजाइन करती व् बेंचती | शुरुआत के हिसाब से उनका व्यवसाय ठीक चल रहा था | तभी एक दिन उन्हें एक फोन आया कि हमारे पास एक स्पेशल मखमल का कपडा है आप चाहे तो देख लें | उन्होंने रेट पूंछा | रेट बाज़ार के रेट से काफी कम थे | मखमल का कपडा उन दिनों बहुत डिमांड में था | नीता खुश हो गयीं | उन्हें लगा अगर इस कपडे से उन्होंने अपने बुटीक में ऑउटफिट बना कर भेजे तो उन्हें बहुत फायदा होगा | उन्होंने फोन कर के  कपडा देखने की इच्छा जताई | दूसरे दिन वो कानपुर के पास एक गोदाम में कपड़ा  देखने गयीं | कपड़ा  देख कर नीता जी पागल हो गयीं | इतना बेहतरीन मखमल उन्होंने पहले कभी देखा नहीं था | वो थान पर थान खुलवाती गयीं , हर थान का कपडा बेहद अच्छा था | उस गोदाम के मालिक ने बताया कि ये कपडा इटली का है इस लिए इतना सुन्दर है यहाँ तो ऐसा मिलेगा ही नहीं | नीता जी कल बताने का कह कर घर चली आई | सारे रास्ते नीता जी बहुत खुश थी | वो पल -पल सोच रहीं थीं कि वो उस कपडे से यूनिक वस्त्र बनायेंगी और उनकी बूटीक पूरे प्रान्त की नंबर वन बन जायेगी | अब उनका पैसों पर ध्यान गया |  नीता जी के दिमाग में दो बातें थी कि अगर इस कपडे पर किसी और बुटीक वाले की नज़र पड़ गयी तो उनका बुटीक जो अभी नया है प्रतियोगिता में हार जाएगा , और अगर वो सारा माल एक साथ ले कर अपने गोदाम में  डाल लें तो उन्हें बहुत पैसा चाहिए | नीता जी के पास पैसा था नहीं | उन्होंने मन ही मन निर्णय लिया की वो लोन लेंगीं | लोन पर ढेर सारा पैसा लेना खतरनाक तो था , पर उन्होंने अपनी बिजनेस के लिए ये रिस्क उठाना बेहतर समझा | उत्साह में उन्हें सारी रात नींद नहीं आई | उन्होंने सोच रखा था कि सुबह १० बजते  ही उन्हें फोन करके सारा कपड़ा  खरीद लेंगीं | संयोग से सुबह -सुबह ही उनकी एक और सहेली  उनसे मिलने आ गयी | उसने अपने साथ हुए एक धोखे को बता कर इतना बड़ा रिस्क लेने से मना कर दिया | नीता जी ने उसके जाने के बाद गोदाम मालिक को फोन किया | उसने  हंसकर कहा , ” हमें पता था मैडम आपका फोन जरूर आएगा | अरे हम हीरा इतने सस्ते दाम में दे रहे हैं कौन मूर्ख होगा जो सारा न खरीद ले |” ये वाक्य सुनते ही नीता जी का माथा ठनका , उन्होंने ये बात केवल सोची थी , कही नहीं थी | खैर अपनी सहेली के बताये रास्ते पर चलते हुए उन्होंने केवल २५ ००० रुपये का कपडा खरीदा | उन्होंने कपड़ा  ले कर सूट सिलना शरू किया … ये क्या हर कपडे से धागा खिंच  रहा था | कहीं  थान के अन्दर के कपडे का रंग उड़ा हुआ था | नीता जी को समझते देर न लगी कि ये विदेश का डंपिंग का कपडा है | ये ऐसा कपडा होता है  जो खराब मनुफैक्चर हुआ होता है , उसे हमारे देश के या विकासशील देशों के लोग बहुत सस्ते दामों में खरीद लेते हैं और दाम बढ़ा  कर बेंचते हैं | नीता जी तो  लोन ले कर न चुका  पाने की स्थिति में दिवालिया होने से बच गयीं पर हर किसी के साथ ऐसा नहीं होता | लोग अति उतसाह में भारी  लोन ले लेते हैं जिसे वो चुका  नहीं पाते और कर्ज में इतना डूब जाते हैं कि दुबारा खड़े नहीं हो पाते | इसलिए व्यसाय में जरूरी है कि हम लोन कब और कितना लें इस बात का ध्यान रखे | सारा पैसा  किसी एक  प्रजेक्ट में न लगाये                                                        बचपन में आप ने एक कहावत सुनी होगी  ” सारे अंडे एक टोकरी में न रखे ” अगर आप किसी एक काम के लियेव सारा पैसा  लगा देते हैं तो उस काम के खत्म होने पर आप भी खत्म  हो जाते हैं | अगर नीता जी ने माल ले लिया होता … माल सही भी होता तो एक दो साल तक उसका रख रखाव करना पड़ता ,  इस बीच भी माल खराब हो सकता था |  और उनका सारा पैसा डूब सकता  था | वो ये कर सकती थी कि कुछ पैसा कपडे को खरीदने में लगाती और कुछ उच्च क्वालिटी की सिलाई मशीन खरीदने में | बहुत भारी  लोन न लें                                   कुछ लोग बहुत ज्यादा लोन लेने की गलती कर देते हैं | ये एक बहुत खतरनाक कदम है | विजय माल्या तक इसी में डूब गए और आज विदेशों में फरार घूम रहे हैं तो हम आप कैसे अपने को सुरक्षित समझ … Read more

Go Grey-बालों से नहीं व्यक्तित्व से होती है आपकी पहचान

परिवर्तन शाश्वत है | समय के साथ बहुत कुछ बदलता है | कुछ परिवर्तन सकारात्मक होते हैं , कुछ नकारात्मक और कुछ में शुरू में पता ही नहीं चलता कि ये परिवर्तन सकारात्मक है या नकारात्मक परन्तु उसके दूरगामी परिणाम होते हैं | ऐसा  ही एक परिवर्तन बालों के रंग के साथ है | पहले एक उम्र के साथ जब बाल सफ़ेद (grey) हो जाते थे तो कोई उसे छुपाने की कोशिश नहीं करता था |  “ये बाल धूप में सफ़ेद नहीं किये हैं “कुछ दशक पहले ये ऐसा जुमला था  जो सफ़ेद बालों  में चमकते अनुभव के प्रति श्रद्धा  व् सम्मान उत्पन्न करता था | बालों का सफ़ेद होना मात्र उम्र का बढ़ना नहीं अनुभव का बढ़ना था | अनुभव सम्मान का विषय था ,परन्तु आज ” अरे आप की उम्र का पता ही नहीं चलता ” जुमला चलना में है | क्या इंसान की पहचान सिर्फ उसके बालों के रंग से है |  Go Grey-बालों से नहीं  व्यक्तित्व से होती है आपकी पहचान  दिल्ली की अध्यापिका निकिता की कहानी उन्हीं की जुबानी … उस समय मेरी उम्र कोई सत्रह साल रही होगी , जब मैं आईने में अपना पहला सफ़ेद बाल देखा , और मैंने वही किया जो उस उम्र की कोई लड़की करती , मैंने कैची से उसे काट दिया और निश्चित हो कर कॉलेज चली गयी | मुझे नहीं पता था कि ये मेरी परेशानी का अंत नहीं शुरुआत है | मेरे सफ़ेद बाल  घास की खेत की तरह बढ़ने लगे |  हर सुबह सफ़ेद बालों का झुण्ड मुझे बेचैन कर देता | मैं उन्हें तब तक काटती रही जब तक ये संभव था | धीरे -धीरे इतने सारे सफ़ेद बालों को काटना असंभव होने लगा | मैंने अपनी समस्या अपनी माँ को बतायी | मुझसे ज्यादा परेशां मेरी माँ हो गयीं |  भारत में जहाँ आज भी सुन्दरता लड़कियों की शादी का पैमाना है वहां  मेरे बालों की सफेदी मेरी माँ के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गयी | वो मुझे उसे दिन ब्यूटी पार्लर ले गयीं | मुझे आज भी ये याद है कि मुझे देख कर उस पार्लर की महिला ने चिंता व्यक्त की , ” अरे अभी इस उम्र से बूढी दिखने लगोगी तो  ?? मुझे लगा कि बालों का सफ़ेद होना बूढ़े होने का परिचायक है … बूढ़ा  मतलब सुंदर न होना , बेकार होना , जिसकी किसी को जरूरत नहीं है | मैं डर गयी | मैंने अपने बाल काले करवा  लिए | अब मैं समाज द्वारा स्वीकृत थी , पर मेरे मन में डर ने अपने पाँव फैला लिए थे बूढ़े होने के डर ने | अब मेरी जिन्दगी में एक काम सबसे जरूरी हो गया वो था बालों को काला करना | दुनिया इधर की उधर हो जाए पर नियत दिन पर मुझे बाल काले करने ही  हैं |                                    मेरी पढाई पूरी हुई , शादी हुई पर उम्रदराज़  दिखने का डर मेरे दिमाग में अभी भी था | तभी मेरा अपने पति के साथ अमेरिका जाना हुआ उस समय तक मेरी उम्र करीब ३५ साल की थी |वहां मैंने देखा कि नयी उम्र की लडकियाँ अपने बाल  ग्रे  करवा रहीं हैं | कुछ समय बाद भारत के अभिजात्य वर्ग में भी ये फैशन आया | मुझे अहसास होने लगा कि ये जिस काम के लिए पैसे खर्च कर रहीं हैं वो मुझे प्रकृति ने मुफ्त में दिए हैं | और फिर हिम्मत जूता कर मैंने “go grey ” का फैसला लिया |                            हालंकि भारत में ये फैसला इतना आसान नहीं है |  खासकर महिलाओं के लिए | फिर भी धीरे -धीरे लोग मुझे स्वीकार करने लगे , पर उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि मैं खुद को स्वीकार करने लगी |                                                                  जरा पीछे मुड़  के देखें तो एक समय था जब भारतीय महिलाएं अपने सफ़ेद बालों से परेशांन  नहीं होती थी | मुझे याद है कि जब मेरी माँ के बाल सफ़ेद हुए थे तो हम लोगों को चिंता करने की कोई बात नहीं लगी थी क्योंकि समाज में उनका सम्मान और बढ़ गया था , पर क्या आज मेरी बेटी ऐसा कर सकती है ? मुझे वो दौर याद है जब   टी वी पर एक विज्ञापन आता था  , जिसमें एक महिला के कुछ बाल सफ़ेद हो जाते हैं | तभी उसके पास एक बच्चा आता  है जो उसके सफ़ेद बालों  को देख कर उसे आंटी कहता है | महिला का ध्यान अपने बुढ़ापे की तरफ जाता है | वो हेयर डाई खरीद कर लाती है अपने बाल काले करती है | अगले दिन वही बच्चा उसके पास फिर आता है | उसके बालों को गौर से देखता है | फिर उसे दीदी कहता है |                             विज्ञापन  भले ही बालों को काला रंगने के ऊपर हो पर उसने पूरे समाज की मानसिकता को एक रंग में रंग दिया …. जहाँ युवा , ख़ूबसूरती , जोश और हिम्मती होने का पर्याय बन गया बालों का काला होना | गाँव और छोटे शहरों में भी हेयर डाई पहुँच गयी | रंगे  हुए बाल आत्मविश्वास का प्रतीक माने जाने लगे | परन्तु आज धारणाएं बदलना शुरू हो  रही हैं | कई सेलेब्रिटीज भी अपने ग्रे बालों के साथ सामने आये हैं | ” Me too ” मूवमेंट आत्म स्वीकारोक्ति के साथ हमारा ध्यान उन चीजों की और भी जाने लगा जो एक  social myth बन गयीं हैं | लोग उस के खिलाफ आने लगे हैं  और अपने को अपने वास्तविक रूप के साथ स्वीकार लिया जाना पसंद करने लगे हैं |  मैं अपनी बेटी की माँ हूँ , न बड़ी बहन , न दादी                           बालों को रंगने के कई प्रोडक्ट बाज़ार … Read more

Students “Adult Content ” addiction से कैसे निकलें

                         इस विषय पर लिखने का मन मैंने तब बनाया जब मेरे पास अमित ( परिवर्तित नाम ) की समस्या आयी | क्लास 6 th तक अमित एक पढने में होशियार , क्लास में फर्स्ट आने वाला , मासूम सा बच्चा था | एक दिन क्लास में दोस्तों ने ऐसा कुछ बताया की जिज्ञासा जगी , पर वो बीज वहीँ पड़ा रह गया | एक दिन किसी म्यूजिक वीडियो को देखते समय एक ऐड क्लिक हो गया और उसके सामने वो संसार खुल गया जो उसके लिए बिलकुल नया था | शुरू की जिज्ञासा धीरे -धीरे आदत बनने लगी | रोज उसकी  किशोर अँगुलियाँ उन साइट्स को क्लिक  कर ही देतीं  जो  “adult content ” था | इसमें कोइ  आश्चर्य नहीं कि घर में किसी को इसका पता नहीं चला ,क्योंकि किसी के आने की आहट  सुनते ही वो पहले से खुली स्टडी मैटीरियल की साईट पर क्लिक कर देता | माता -पिता समझते कि बच्चा पढ़ रहा है , पर अमित पढाई में पिछड़ने लगा | फर्स्ट आने वाला बच्चा  बस पास होने लगा | उसके  अन्दर अपराध बोध भी होता था पर वो किसी शराबी की तरह  हर रोज उसी और दौड़ जाता |  अमित नवीं कक्षा में फेल हो गया | तब जा के अमित को होश आया | उसने डरते हुए अपनी समस्या अपने पिता को बताई | पहले तो उसके पिता के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रही , माता -पिता एक दूसरे पर बच्चे पर ध्यान न देंने का आरोप लगाते रहे | अंत में उन्होंने क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट  को दिखाया | अमित इस  adiction से बाहर निकला | उसने अपनी पढाई को फिर से संभाला और अच्छे  नंबरों से पास होने लगा | Students “Adult Content ” addiction से  बाहर कैसे निकलें                                         हर बच्चा जो इस अँधेरी गुफा में घुस जाता है , वो अमित की तरह निकल नहीं पाता और अपनी शिक्षा के बेहतरीन वर्ष  ” adult content” की भेंट चढ़ा सारा जीवन पछताता है | किशोर व् नव युवा उम्र के वो ८ , ९ साल हैं जो उसकी जिंदगी के बाकी ५० सालों का भविष्य तय करते हैं | अक्सर बड़े ऐसी समस्याओं के सामने आने पर बच्चों को रास्ता दिखाने के स्थान पर ” हमारे समय में तो ऐसा नहीं होता था ” कह कर इतिहास पढ़ने लगते हैं | जिसका  कोई भी फायदा नहीं | वो समय दूसरा था | ये आज की समस्या है और इसका सामाधान भी आज ही निकालना  होगा | मनोवैज्ञानिक अतुल भटनागर जी के अनुसार जो बच्चे ” adult content addiction” में फंस गए हैं , वो भी थोड़े से प्रयास से  इससे निकल सकते हैं  और पुन: अपना कैरियर व् भविष्य बना सकते हैं | क्यों होता है “Adult content addiction”                                       ये सच है कि आज के ज़माने में बच्चों को इन्टरनेट से दूर नहीं रखा जा सकता | ये ज्ञान का भण्डार है |  उन्हें मनोरंजन , स्कूल के प्रोजेक्ट व् अन्य जानकारी के लिए इसकी बहुत जरूरत है | वहीँ ये भी सच है कि इन पोर्न  साइट्स पर पहली क्लिक जिज्ञासा में या अनजाने में होती है ,  पर धीरे -धीरे आदत में शुमार हो जाती है | बच्चों को  उसे नशे में बदलने से रोकना ही होगा |  इसके लिए जरूरी है कि ये समझा जाए कि ” Adult content addiction क्यों होता है | दरअसल  विकास के साथ -साथ “human mind ” में बहुत सारे परिवर्तन हुए | जिस तरहसे  हम अपने पोस्ट को अपडेट करते हैं वैसे ही इसान का दिमाग पुराने जीवों के दिमाग का अपडेटिड वर्जन है | वैज्ञानिकों के अनुसार  दिमाग की तीन लेयर हैं , जो पुरानी लेयर से अपडेट होकर बनी हैं …. पहली लेयर रेपटिलीयन काम्प्लेक्स  – यानि रेपटीलिया का दिमाग ( सांप आदि रेंगने वाले जीव )  दूसरी लेयर -पैलियोमैमेलियन काम्प्लेक्स – कुछ निचले स्तर के स्तनधारी जीव का दिमाग तीसरी लेयर -नीओमैमेलियन काम्प्लेक्स  ( ऊँचे  लेवल के मैमल का दिमाग , जैसे मनुष्य का वर्तमान दिमाग जो की पिछली दो लेयर का अपडेटेड वर्जन है | रेपटी लियन ब्रेन वो ब्रेन है जो सेक्सुअली ओरिएंटेड होता है | पैलियोमैमेलियाँ ब्रेन वो ब्रेन है जो क्षणिक सुख को देखता है , वो बहुत दूर तक भविष्य के फायदे , नुक्सान को सोंच नहीं पाता |  नीओ मैमेलियन ब्रेन वो ब्रेन है जो भविष्य की योजनायें बनाता है , भविष्य के बड़े सुखों के लिए छोटे सुखों को त्याग सकता है | यह प्रायोरिटी बेसिस पर काम करता है | इसके लिये परिवार , नौकरी , शिक्षा , कैरियर ज्यादा महत्वपूर्ण है |                                 जब भी कोई porn content सामने आता है तो रेपटीलियन  और नीयो मैमेलियन लेयर एक्टिव हो जाती हैं और पैलियो मैमेलियन ब्रेन से सारा कण्ट्रोल अपने  हाथ में ले लेती हैं | जैसे ही इंस्टेंट प्लेजर का एक राउंड खत्म होता है  पुन : कण्ट्रोल पैलियोमेमिलीयन ब्रेन के हाथ में आ जाता है तब स्टूडेंट  को गिल्ट महसूस होती है उसे लगता है उसने बेकार में अपना समय ख़राब किया | इसके कुछ और भी नुक्सान हैं जैसे स्वाभाव में चिडचिड़ापन आता है , दिमाग फ़ोकस नहीं कर पाता , पढने से ध्यान हट जाता है , और छोटी छोटी बातों  भूलने लगता है |             फिर भी स्टूडेंट कंट्रोल नहीं कर पाता , रोज देखता है और ये उसकी आदत बन जाती है | ये एक नशे की तरह है | परतु जैसे दूसरे नशे छुडाये जाते हैं इसे भी छोड़ा जा सकता है बस थोड़ी सी संकल्प शक्ति  बढ़ानी होगी | students “Adult Content ” addiction ऐसे बाहर निकलें  एडल्ट कंटेंट एडिक्शन से निकलने के लिए स्टूडेंट्स कुछ तरीके इस्तेमाल कर सकते हैं | ये सभी तरीके मनो वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए बहुत कारगर तरीके हैं … Read more